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नेपोलियन बोनापार्ट का पतन

नेपोलियन बोनापार्ट का पतन

सन् 1808 ई. में नेपोलियन ने पुर्तगाल पर अधिकार कर लिया और इसके पश्चात् स्पेन के लोकप्रिय शासक फर्नीनेण्ड को अपदस्थ कर अपने भाई जोसफ को स्पेन की गद्दी पर बैठा दिया। इससे स्पेन की जनता अत्यधिक क्षुब्ध हो गई और उसने नेपोलियन का विरोध करना प्रारम्भ कर दिया। सन् 1812 ई. में नेपोलियन ने 6 लाख सैनिकों के साथ रूस पर आक्रमण कर दिया और मास्को पर अधिकार कर लिया परन्तु भयंकर शीत व खाद्यान्न के अभाव में उसके 5,80,000 सैनिक मारे गये और वह केवल 20,000 सैनिकों को लेकर ही फ्राँस वापस पहुँच सका। नेपोलियन की दुर्दशा देखकर इंग्लैण्ड, रूस, प्रशा, स्वीडन और आस्ट्रिया ने उसके विरुद्ध एक सैनिक संगठन बनाया।

सन् 1813 ई. में मित्र राष्ट्रों की सेना ने लिप्जिंग नामक स्थान पर नेपोलियन को बुरी तरह पराजित किया और उसे एल्वा के द्वीप में नजरबन्द कर दिया गया। परन्तु कुछ समय पश्चात् ही नेपोलियन एल्वा से भाग आया और 20 मार्च, 1815 को फ्रांस के सिंहासन पर पुनः अधिकार कर लिया। उसको तीन महीने बाद पुनः मित्र राष्ट्रों से टक्कर लेनी पड़ी। 18 जून, 1815 को वाटरलू के युद्ध में मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने नेपोलियन को पराजित कर दिया। उसे बन्दी बनाकर सैण्ट हैलना के द्वीप में निर्वासित कर दिया गया जहाँ 5 मई, 1821 को इस महान् विजेता का देहान्त हो गया।

नेपोलियन बोनापार्ट के पतन के कारण

वास्तव में नेपोलियन का विशाल साम्राज्य शक्ति पर आधारित था, अन्दर से वह खोखला था और आँधी के एक झोंके से गिर सकता था अतः हम नेपोलियन के पतन के कारणों की विवेचना करेंगे।

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नेपोलियन बोनापार्ट का पतन


1. नेपोलियन की अपरिमित महत्त्वाकांक्षाएँ-

नेपोलियन की महत्त्वाकांक्षाओं की कोई सीमा नहीं थी। उसने अनयन्त्रित सीमा तक अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था, फिर भी वह सन्तुष्ट नहीं था। वह सम्पूर्ण विश्व का अधिपति बनना चाहता था। अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उसने अनेक देशों की स्वतन्त्रता का अपहरण किया फलतः ये राष्ट्र उसके कट्टर शत्रु बन गये। वह ज्यों-ज्यों विजय प्राप्त करता चला गया, उसकी महत्त्वाकांक्षाएँ बढ़ती गई और इन महत्त्वाकांक्षाओं के फलस्वरूप वह स्पेन और रूस के युद्धों में फंस गया जो उसके पतन के मुख्य कारण बने।

2. क्रांति की भावना का अन्त-

शासन की बागडोर सम्भालते ही नेपोलियन ने एक निरंकुश राजा की भाति आचरण शुरू कर दिया था। उसने स्वतन्त्रता की भावना का कठोरतापूर्वक दमन किया और अपना स्वेच्छाचारी शासन स्थापित किया। अतः फ्रांस में क्रांति की भावना का लोप होने लगा। परिणामस्वरूप जब मित्र देशों ने पेरिस पर आक्रमण किया तो वहां की जनता ने नेपोलियन का पूरा साथ नहीं दिया। जनता निरन्तर युद्धों से ऊब चुकी थी। अतः नेपोलियन की असफलता का यह भी एक प्रमुख कारण था।

3. नेपोलियन की चारित्रिक दुर्बलताएँ-

नेपोलियन की निरन्तर सफलताओं ने उसे जिद्दी और घमण्डी बना दिया था। वह सदैव अपनी योग्यता और सामर्थ्य की डींग हाँकता था। वह अपने को इतना बुद्धिमान समझता था कि वह अपने परामर्शदाताओं को भी ठुकरा कर स्वेच्छा से काम करता था तथा अपने मस्तिष्क को सबसे अधिक महत्त्व देता था। तेलीरां ने उसे स्पेन पर आक्रमण न करने की सलाह दी थी, परन्तु उसने दृढ़तापूर्वक इस सलाह को ठुकरा दिया था। उसमें हठधर्मिता की मात्रा इतनी अधिक थी कि पराजित होने पर भी उसने मित्र राष्ट्रों से समझौता करने से इन्कार कर दिया और मेटरनिख से एक बार कहा था कि मैं मर जाऊँगा, परन्तु इन्च भी भूमि नहीं दूंगा।" इसी प्रकार स्पेन पर आक्रमण करके वह पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ और प्रथम आक्रमण में रूस की कठिनाइयों का पता लग जाने पर भी उसने 1812 में रूस पर पुनः आक्रमण किया। फिन्नर के अनुसार "नेपोलियन का हठी स्वभाव उसके पतन के लिए उत्तरदायी था।"

4. नेपोलियन को सन्धियों से चिढ़-

नेपोलियन एक साहसी तथा वीर योद्धा था। उसे अपमानजनक सन्धि से सदैव घृणा थी। संकटपूर्ण परिस्थितियों में घिरा हुआ होने, पर भी वह सन्धि के लिए तैयार नहीं हुआ। जब मेटरनिख ने ड्रैस्डन के स्थान पर शांति-सन्धि करने की सलाह दी तो नेपोलियन ने उत्तर दिया- "क्या तुम चाहते हो कि मैं अपने आपको अपमानित करूं, कभी नहीं-मैं मर जाऊँगा परन्तु एक इंच भूमि कभी नहीं दूंगा। तुम्हारे शासक कई बार पराजित होकर भी अपना सिंहासन प्राप्त कर लेंगे, परन्तु मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मेरा उदय तो युद्ध क्षेत्र में हुआ था। तुम सैनिक नहीं हो, इसलिए तुम नहीं जाते कि एक सैनिक के मन में क्या होता है।" नेपोलियन के हठी स्वभाव से दुःखी होकर मेटरनिख ने कहा था, "श्रीमान् जब मैं यहाँ आया था तो मैं अनुभव करता था कि आप पराजित होंगे और अब में यह बात निश्चय से कह सकता है कि तुम पराजित होंगे, जबकि मैं यहाँ से जा रहा हूँ।"

5. नेपोलियन का सैनिकवाद-

नेपोलियन का साम्राज्य सैनिक शक्ति पर आधारित था। उसका कोई सुदृढ़ आधार न था। वह तलवार के बल पर टिका हुआ था। विजित देशों की जनता का यहां के प्रशासन में कोई हाथ न था और यह उनकी इच्छाओं पर भी आधारित नहीं था। अत: जैसे ही नेपोलियन की तलवार कमजोर होने लगी, उसका साम्राज्य भी नष्ट होता गया। वह कहा करता था कि "विशाल सेनाओं के साथ ईश्वर चलता है। परन्तु इतिहास साक्षी है कि तलवार के बल पर चलने वाले साम्राज्य शीघ्रतापूर्वक ध्वस्त हो जाते हैं। नेपोलियन का मुकाबला करने के लिए अन्य देशों ने भी सैनिकवाद की नीति अपनाई और अन्त में उसे मित्र राष्ट्रों से पराजित होना पड़ा।

6. नेपोलियन की महाद्वीपीय योजना-

नेपोलियन ने इंग्लैण्ड को नतमस्तक करने के लिए उसके व्यापारव्यवसाय को नष्ट करने का निश्चय किया। उसकी मान्यता थी कि जव इंग्लैण्ड का व्यापार व व्यवसाय नष्ट हो जायेगा तो इंग्लैण्ड शक्तिहीन हो जायेगा। उसके कारखाने बन्द हो जावेंगे तथा लाखों की संख्या में मजदूर बेकार हो जायेंगे। इस स्थिति में इंग्लैण्ड को घुटने टेकने पड़ेंगे और फ्रांस से संधि याचना करनी पड़ेगी। इस प्रकार इंग्लैण्ड की औद्योगिक स्थिति को पतनशील बनाने के लिए नेपोलियन ने महाद्वीपीय योजना बनाई । उसने अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास किया परन्तु वह अपने उद्देश्य में सफल नहीं हुआ। यह योजना फ्रांस के लिए नुकसान दायक साबित हुई।

इंग्लैण्ड अपनी शक्तिशाली समुद्री सेना के बल पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार व समुद्री मार्गों पर अपना प्रभाव स्थापित करने में सफल रहा तथा उसके व्यापारिक जहाज देश-विदेश के बन्दरगाहों पर आते-जाते रहे। इस योजना के कारण अनेक यूरोपीय देशों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और वे नेपोलियन के कट्टर शत्रु बन गये। इसका फ्रांस की आर्थिक स्थिति पर बहुत प्रभाव पड़ा। पुर्तगाल व स्पेन ने नेपोलियन के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार नेपोलियन की महाद्वीपीय योजना उसके लिए घातक सिद्ध हुई और उसके पतन के लिए उतरदायी सिद्ध हुई।

मेडलिन के अनुसार, "नेपोलियन के पतन के नाटक में उसकी महाद्वीपीय योजना एक प्रमुख दुःखान्तिका थी।" फिशर के अनुसार, "जिस महाद्वीपीय व्यवस्था को पूर्ण करने के लिए नेपोलियन ने अपनी शक्ति लगाई, उसका पतन उसी का ही तर्कपूर्ण परिणाम था।"

7. नेपोलियन का मास्को अभियान-

विश्व विजेता बनने की महत्त्वाकांक्षा ने नेपोलियन को रूस पर भी आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया। यद्यपि उसको रूस में आने वाली प्राकृतिक कठिनाइयों का पूर्वाभास था, परन्तु फिर भी उसने अपनी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए रूस पर आक्रमण किया। 1812 में उसने 6 लाख सेना लेकर रूस पर आक्रमण किया, परन्तु इस अभियान में उसके 5 लाख 80 हजार सैनिक मारे गये। वह केवल 20 हजार सैनिक लेकर फ्रांस पहुँच सका। नेपोलियन की शक्ति का महाविनाश था। रूस में नेपोलियन की दुर्गति से आस्ट्रिया, प्रशा आदि देशों को प्रोत्साहन मिला और उसने उसके विरुद्ध संगठन बनाना शुरू कर दिया। वह स्वयं कहा करता था कि "स्पेन के फोडे और रूसी अभियान ने मेरा सर्वनाश कर दिया है।"

8. पोप से झगड़ा-

जब पोप ने नेपोलियन की महाद्वीपीय योजना का पालन करने से इन्कार कर दिया तो नेपोलियन ने क्रुद्ध होकर पोप को बन्दी बना लिया और उसके राज्य को फ्रांसीसी साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया। यह नेपोलियन का अदूरदर्शितापूर्ण कार्य था। पोप समस्त कैथोलिक संसार का गुरु था। अतः समस्त कैथौलिक नेपोलियन के विरोधी हो गये। इस कारण नेपोलियन की शक्ति एवं प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचा।

9. अंग्रेजी जहाजी बेड़े की श्रेष्ठता-

इंग्लैण्ड का जहाजी बेड़ा फ्रांस की तुलना में अधिक शक्तिशाली था। बेड़े का विनाश कर अंग्रेजी जहाजी बेड़े को सर्वोपरि बना दिया। शक्तिशाली जहाजी बेड़े के कारण ही इंग्लैण्ड ने नेपोलियन से अपने देश की रक्षा की । इसी के आधार पर नेपोलियन की महाद्वीपीय योजना को सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया और उसके व्यापार को नष्ट करके समस्त मनसूबों पर पानी फेर दिया। अत: नेपोलियन के पतन में अंग्रेजी जहाजी बेड़े का महत्त्वपूर्ण योगदान था।

10. राष्ट्रीयता की लहर-

नेपोलियन ने अनेक देशों को जीतकर यूरोप का मानचित्र ही बदल डाला था। उसने विजित देशों की जनता का दमन किया और उन्हें अपार कष्ट पहुँचाये। उसे स्वतन्त्रता से वंचित कर दिया और अपने व्यक्तिगत गौरव के लिए उन्हें दासता के बंधनों में बाँध दिया। परिणामस्वरूप विजित देशों में राष्ट्रीयता की भावनाएँ पनपने लगीं। स्पेन का एक-एक बच्चा नेपोलियन के विरोध में उठ खड़ा हुआ। रूस, आस्ट्रिया, प्रशा आदि देशों में राष्ट्रीयता की भावना इतनी प्रबल हो गई कि नेपोलियन की समस्त सैन्य-शक्ति इस राष्ट्रवाद का दमन न कर सकी।

11. दोषपूर्ण सैन्य व्यवस्था-

नेपोलियन ने जिस साम्राज्यवाद और सैन्यवाद के मार्ग को ग्रहण किया था, उसके लिए एक सैन्य व्यवस्था की आवश्यकता थी। प्रारम्भ में उसकी सेना का संगठन और स्वरूप अत्यन्त सुदृढ़ था, परन्तु कालान्तर में उसकी सैन्य-व्यवस्था दोषपूर्ण होती गई। उसने बलात भरती पर जोर दिया था। उसने उनकी सेना में जर्मनी, हालैण्ड, इटली, डेनमार्क, स्पेन आदि अनेक देशों के सैनिक थे। इससे सेना में आन्तरिक निर्बलता आ गई क्योंकि उनमें राष्ट्रीयता की भावना का अभाव था। इसके अतिरिक्त नेपोलियन के सैनिकों से घृणा करते थे क्योंकि ये सैनिक उन पर अत्याचार करते थे और उन्हें शोषण का शिकार बनाते थे। इस कारण भी नेपोलियन की लोकप्रियता को काफी आघात पहुँचा।

12. नेपोलियन के सम्बन्धियों की अयोग्यता-

यद्यपि नेपोलियन ने अपने सम्बन्धियों के साथ दयालुता और उदारता का व्यवहार किया था, परन्तु वे कृतघ्न निकले। उन्हें उच्च पदों पर नियुक्त किया गया परन्तु वे अयोग्य सिद्ध हुए और उन्होंने संकट के समय नेपोलियन का साथ नहीं दिया। केरोलिन और जेरोम के कारण इटली और जर्मनी में उसके शासन का अन्त हुआ। संकट के समय जोसेफ भी स्पेन छोड़कर भाग निकला। स्वयं नेपोलियन ने कहा था, "मैंने अपने सम्बन्धियों के प्रति जितना अच्छा व्यवहार किया उतना ही उन्होंने मुझे हानि पहुँचाई।"

13. नेपोलियन के स्वास्थ्य का गिरना-

नेपोलियन बड़ा कठोर परिश्रमी था और वह प्रतिदिन 18 घण्टे कठोर परिश्रम करता था। कठोर परिश्रम करते रहने से उसका स्वास्थ्य गिरता गया। मास्को अभियान के पश्चात् उसका स्वास्थ्य काफी गिर गया। टामसन का कथन है, "उसके दिमाग की तन्त्रियों में से आधी नष्ट हो गई थी।" डॉ. स्लोन का कथन है कि नेपोलियन के पतन के सारे कारण एक ही शब्द थकान में निहित हैं।"

14. इंग्लैण्ड की सुदृढ़ आर्थिक नीति-

औद्योगिक क्रांति के कारण इंग्लैण्ड एक धन-सम्पन्न राष्ट्र बन गया था। अतः इंग्लैण्ड फ्रांस के साथ दीर्घकाल तक संघर्ष कर सकता था। इंग्लैण्ड ने ही यूरोप के अन्य राज्यों के सहयोग से फ्रांस के विरुद्ध अनेक संघों का निर्माण किया और उन्हें आर्थिक तथा सैनिक सहायता प्रदान कर उसके मनोबल को बढ़ाया। उचित ही कहा गया है कि 'नेपोलियन को वाटरलू के युद्ध में परास्त नहीं किया गया था वरन् उसकी वास्तविक पराजय मानचेस्टर के कपड़े के कारखानों तथा बरमिंघम की लोहे की भट्टियों में हुई थी।

15. इंग्लैण्ड एक शक्तिशाली शत्रु के रूप में-

नेपोलियन के पतन में इंग्लैण्ड ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। नेपोलियन ने इंग्लैण्ड को समाप्त करने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगा दी, परन्तु उसे सफलता न मिल सकी। अंग्रेजों की नौ-सेना, आर्थिक स्थिति, रण-कुशलता, योग्य सैनिक नेतृत्त्व आदि के आगे नेपोलियन की तानाशाही न चल सकी । इंग्लैण्ड ने समुद्र में नेपोलियन के पाँव न टिकने दिये। उसने नेपोलियन के विरुद्ध चार बार यूरोपीय देशों के संगठन बनाये और उसकी महाद्वीपीय व्यवस्था को असफल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इंग्लैण्ड ने प्रायद्वीप युद्ध में भी नेपोलियन की सेनाओं को अपार क्षति पहुंचाई और स्पेन के देशभक्तों की पूरी सहायता की। अन्त में वाटरलू के युद्ध में इंग्लैण्ड के सेनापति वेलिंगटन ने नेपोलियन को निर्णायक रूप से पराजित किया।

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