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इटली में फासीवाद

 बीसवीं सदी का विश्व

इटली में फासीवाद

प्रथम विश्व युद्ध को मित्र राष्ट्रों ने प्रजातन्त्र की सुरक्षा का युद्ध बताया था। इसलिये उन्होंने अपनी विजय को प्रजातन्त्र की विजय बतायी थी। किन्तु इसके परिणाम वितरीत रहें। 1917 में रूस की क्रान्ति हुई और वहाँ शीघ्र ही स्टालिन का अधिनायकवाद स्थापित हो गया। रूस के अतिरिक्त मित्र राष्ट्रों के परम सहयोगी इटली में ही मुसोलिनी की तानाशाही की छत्र- छाया में फासीवाद का उदय हो गया। इसका कारण इटली की तात्कालिक परिस्थितियाँ थीं।

फासीवाद का अर्थ (Meaning of Fascism)

फासिस्ट शब्द की उत्पत्ति फासियो शब्द से हुई है जो लैटिन शब्द फासेज से बना है यानी छड़ों का गट्ठर (Bundle of Rods)|

सी. डी. एम केटलबी के अनुसार, प्राचीन रोम में लोहे की छड़ों के गट्ठर (Fasces) को सत्ता और अधिकार का प्रतीक माना जाता था।

डब्ल्यू. सी. लेंगसम के अनुसार, फरसे (Battle-Axe) के चारों ओर लिपटी हुई छड़ों का गट्ठर, बल और शक्ति के रूप में फासिज्म का प्रतीक चिह्न बन गया।

फासिस्टों ने इसे लाक्षणिक विरासत के रूप में प्राचीन रोम से ग्रहण किया। मुसोलिनी द्वारा गठित संगठन और शासन की विचारधारा को फासीवाद कहा जा सकता है। गेथोन हार्डी ने इसे सर्वाधिकारवाद या सर्वसत्तावाद के रूप में वर्णित किया है। राज्य द्वारा समस्त मानवीय गतिविधियों का पूर्ण नियंत्रण अपने हाथ में रखने की अवधारणा सर्वसत्तावादी कहलाती है।

बी. मुसोलिनी के अनुसार- फैसिस्ट सिद्धान्त का मुख्य तत्त्व उसकी राज्य की, उसके कार्य और उसके उद्देश्यों की कल्पना है। फैसिज्स के लिये राज्य निरपेक्ष है, व्यक्ति और समूह सापेक्ष।

"फासिस्ट राज्य ही सत्ता तथा साम्राज्य का साधन है।"

जी. पी. गूच के अनुसार- मुसोलिनी का विश्वास था कि राज्य के सामने व्यक्ति की कोई सत्ता नहीं।

फासीवाद की प्रकृति एवं स्वरूप

फासीवाद कोई निश्चित राजनीतिक दर्शन नहीं था। अनेक राजनीतिक विशारदों ने उसे मूलत: प्रयोगात्मक एवं अनुभव मूलक दर्शन माना है। फासिस्टवादियों का कहना था कि औपचारिक सिद्धान्त लोहे की जंजीरों के समान है तथापि उसकी कुछ सैद्धान्तिक मान्यताएँ थीं और कुछ रचनात्मक सामाजिक एवं राजनीतिक उद्देश्य भी थे, जिनको मुसोलिनी ने अपने भाषणों एवं लेखों द्वारा समय-समय पर व्यक्त किया। किन्तु मुसोलिनी भी अवसरवादी था। फासीवाद के इतिहास का अध्ययन करते हुए विद्वानों ने फासीवाद व शासन की प्रकृति की विभिन्न दृष्टियों से व्याख्या की है-

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इटली में फासीवाद


1.  आकस्मिक प्रेरणा व अन्तर्जात प्रकृति-

सी.डी.एम. केटल के अनुसार, इटली में अशान्ति और विश्रृंखलता का बोलबाला था। फासिज्स एक प्रकार की आकस्मिक प्रेरणा थी कि सारे देश में एकता, स्थिरता और दृढ़ शासन स्थापित किया जाये। प्रारम्भ में यह अन्तर्जात प्रकृति के रूप में उदित हुआ। किन्तु बाद में वही एकवाद और विशेष शासन प्रणाली के रूप में विकसित हुआ।

2. फासीवाद संघर्ष में विश्वास रखता है-

इसके अनुसार प्रत्येक वस्तु का जन्म संघर्ष से होता है। अतः वह मानव प्रकृति का एक आवश्यक तत्त्व है, जो पहले से चला आ रहा था। मुसोलिनी विश्व शान्ति की कल्पना को भ्रामक मानता था और युद्ध को सभ्य राष्ट्रों के बीच अवश्यम्भावी प्रतिद्वन्द्वता का अनिवार्य साधन समझता था। मुसोलिनी का कहना है कि शान्ति कायरों का स्वप्न है। वह युद्ध व साम्राज्यवाद का प्रबल समर्थक था।

3. फासीवाद में लोकतन्त्र को कोई स्थान नहीं है-

लोकतन्त्र में भाषण की स्वतन्त्रता निहित होती है और युद्धकाल में भाषण की स्वतन्त्रता नहीं होनी चाहिये। फासिस्ट यह भी मानते हैं कि युद्ध सदैव चलता रहता है, जिसको अन्य राजनीतिक विचारक शान्ति कहते हैं- वह वास्तव में शान्ति नहीं वरन् विराम मात्र होता है। अलावा उसने लोकतन्त्र को राजतन्त्र के निरकुंश शासन से भी बुरा माना है। क्योंकि राजतन्त्र में तो केवल एक राजा का ही निरकुंश शासन होता है, जबकि लोकतन्त्र में अनेक व्यक्तियों का निरकुंश शासन होता है। इन्हीं कारणों से मुसोलिनी ने लोकतन्त्र के स्थान पर अधिनायकवाद का शासन उत्तम बताया।

4. फासीवाद समाजवाद का विरोध करता है-

फासीवाद की वर्ग संघर्ष में कोई आस्था नहीं है। फासीवाद के मतानुसार- "इतिहास का निर्माण आर्थिक तत्त्वों से नहीं वरन् राजनीतिक तत्त्वों से होता है।"

5. कट्टरराष्ट्रवादी-

केटलबी के अनुसार फासीवाद तथ्यत: कट्टर राष्ट्रीयता का ही रूप था। मुसोलिनी का विश्वास था कि राज्य के सामने व्यक्तिकी कोई सत्ता नहीं। फासिस्ट तथ्यों के रूप में जो संगठित हुए, उनमें अधिकांशतः भूतपूर्व सैनिक और अन्य देशभक्त इटलीवासी थे। उनकी देशभक्ति की भावना को मुसोलिनी ने उग्र और कट्टर स्वरूप प्रदान किया जो अन्ततः जातीय अहंकार और नस्लीय भेदभाव के रूप में पूरे विश्व का सरदर्द बन गया।

6. साम्राज्यवादी एवं युद्धवादी-

मुसोलिनी विश्व शान्ति की कल्पना को भ्रामक मानता था। वह शान्ति को कायरों का स्वप्न मानता था। वह युद्ध एवं साम्राज्यवाद का प्रबल समर्थक था। फासीवाद में युद्ध को मनुष्य की शक्ति का परिचायक माना जाता है। युद्ध से साहस, शक्ति व बलिदान की भावना जागृत होती है। फासिस्टों ने युद्ध को राष्ट्रीय पौरुष प्रतीक के रूप में महिमामण्डित किया।

लेगंसम के अनुसार- फासिज्स के लिये विस्तारवाद प्राणतत्व का प्रकटीकरण था। इटली की समस्याओं का प्रकटीकरण था। इटली की समस्याओं का, फासिस्ट विचारधारा के अनुसार समाधान प्रादेशिक विस्तार में ही निहित था। इस सोच ने इटली के वैदेशिक सम्बन्धों को एक खतरनाक मोड़ पर पहुँचा दिया।

7. अनुदारवादी एवं व्यक्ति-स्वातन्त्र्य विरोधी-

फासीवाद व्यक्तिवाद के विरुद्ध था। गियोवानी जेण्टाइल का कहना था कि राज्य तथा कानून ही स्वतन्त्रता की सर्वोत्कृष्ट अभिव्यक्तिकरण है। गेथोर्न हार्डी के अनुसार, फासीवाद राज्य हित के लिये व्यक्ति के बलिदान का हिमायती था। वह हीगल के राज्य सिद्धान्त का समर्थक था कि व्यक्ति राष्ट्र के सर्वोच्च हितों की प्राप्ति के लिये साधनमात्र है।

8. अवसरवादी एवं आतंकवादी-

फासीवाद की प्रकृति अवसरवादी थी। मुसोलिनी एक समय किसी विचार को स्वीकार करता तो अन्य समय पर दूसरा विचार स्वीकार कर लेता था। अतः फासीवाद की प्रकृति की सुस्पष्ट व्याख्या कठिन है। अवसरानुकूल, ड्यूस की इच्छानुसार फासीदल और सरकार की प्रकृति भी परिवर्तित होती रही। फासीवाद की प्रकृति एक आतंकवादी हिंसक विचारधारा से युक्त थी। हार्डी ने इसे भीड़ के मनोविज्ञान और आतंक से जोड़ा है।

9. तर्क व बुद्धि के स्थान पर अन्तःचेतना को महत्व-

सत्ता के विषय में फासीवाद की धारणा थी कि वह जनता में न होकर राज्य में होती है और वह भी एक व्यकि में हो तो अच्छा है। समस्त जनता को एक नेता का कहना बिना तर्क के मानना चाहिये और उनकी यह धारणा होनी चाहिये कि वह कभी गलती नहीं करता। तर्क व बुद्धि के स्थान पर वह अन्तःचेतना में विश्वास न करके कार्य में विश्वास करते थे।

10.  नैतिक मूल्यों में अविश्वास-

सत्य की प्रकृति तथा नैतिक माप-दण्ड के सन्दर्भ में मुसोलिनी व्यवहारवादी था। तर्कप्रधान व्यवहारवादी यह मानते हैं कि कोई भी नैतिक नियम और व्यवस्था स्थायी नहीं होती। अत: मुसोलिनी नैतिक मूल्यों के सम्बन्ध में उनकी अस्थायी प्रकृति में विश्वास करता था।

फासीवाद के उदय एवं सफलता के कारण

इटली में फासीवाद के उत्कर्ष के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इनके विकास में अनेक ऐतिहासिक, राजनीतिक और धार्मिक कारणों की भूमिका रही। प्रायः असंतोष ही अच्छे- बुरे सभी परिवर्तनों का जनक होता है और अवसर का लाभ उठाने में दक्ष व्यक्ति या समूह परिवर्तन का संवाहक बन जाता है। असंतुष्ट, अतृप्त और बेचैन इटली की भूमि "फासीवाद" के लिए बहुत उर्वर थी और अवसर की खाद-पानी देकर मुसोलिनी ने वहाँ इसका पौधा रोप दिया। फासीवाद के उत्कर्ष के लिये निम्न कारण उत्तरदायी थे-

1. प्रथम विश्व युद्ध की भूमिका से उपजा नैराश्य-

पूरे मोल-तोल के बाद इटली प्रथम विश्व युद्ध में मित्र राज्यों के पक्ष में 1915 ई. में सम्मिलित हुआ। उसे केन्द्रीय शक्तियों के प्रतिनिधि आस्ट्रिया से संघर्ष करना था, किन्तु 1917 ई. में कपोरेत्तो में उसे आस्ट्रिया के हाथों करारी मात खानी पड़ी। वित्तोरियो वेनेतो में मित्र राज्यों की मदद से मरणासन्न आस्ट्रिया पर विजय प्राप्त कर लेने पर भी जनमानस कपोरत्तो में इटली की शिकस्त को नहीं भूला । प्रचारित कथित शौर्य गाथाएँ भी नेतृत्व की सैनिक कमजोरियों पर पर्दा नहीं डाल सकी। इससे उपजे नैराश्य को फासिस्टों ने योजनापूर्वक तात्कालिक शासन एवं शासन प्रणाली के प्रति असन्तोष के रूप में रूपान्तरित कर दिया।

2. विजय लाभांश से वंचित रहने पर पनपा असन्तोष-

प्रथम विश्व युद्ध में इटली ने पश्चिमी मित्र राज्यों के पक्ष में हस्तक्षेप भाड़ौती आधार पर (Mercenary grounds) पर किया था। किन्तु युद्धोपरान्त सम्पन्न शान्ति सन्धियों में उसे विजय-जनित लाभांश से वंचित कर दिया गया। प्रथम विश्व युद्ध में उसके 7 लाख सैनिक मारे गये, 10 लाख घायल हुए, 12 अरब डालर युद्ध व्यय के अतिरिक्त 3 अरब डालर की सम्पत्ति नष्ट हुई। शान्ति सन्धियों द्वारा इटली को यूरोप में 16 लाख लोगों द्वारा आवासित मात्र 8900 वर्गमील का प्रादेशिक लाभ हुआ और अफ्रीका के लीबिया और सोमालीलैण्ड में उसका थोड़ा-सा विस्तार हुआ। विनियोग की तुलना में यह प्रतिदान बहुत थोड़ा था। फिर अन्य महाविजयी महाशक्तियों-ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस को जो प्रतिदान मिला उसके सामने तो इटली का लाभांश नगण्य था। इटली वासियों ने इसके साथी राज्यों के विश्वासघात के साथ अपने बूढ़े राजनेताओं को भी दोषी ठहराया।

लेंगसम के अनुसार, उनमे यह धारणा घर कर गयी कि इटली ने युद्ध तो जीत लिया किन्तु शान्ति को खो दिया। इस धारणा ने इटली की आत्मा को बेचैन, असन्तुष्ट व अतृप्त बना दिया। ई.एच. कार के अनुसार-युद्ध के परिणामों ने उसकी तृष्णा बुझाने की बजाय बढ़ा दी। इस असन्तोष ने फासीवाद के उत्थान में अग्रण्य भूमिका निभाई।

बून एवं मैमते के अनुसार- "इटालियन्स धनी पश्चिमी मित्रों के बीच अपने को गरीब रिश्तेदारों की तरह महसूस करते थे और जिस प्रकार जर्मनी के लोगों में वर्साय की सन्धि के विरुद्ध एक गहरा क्षोभ था, उसी प्रकार इटलीवासी भी अपनी टूटी-फूटी विजय या अधूरी विजय के कारण दुःखी थे।"

3. सरकारों की अस्थिरता-

प्रथम विश्व युद्ध काल में मुसोलिनी के सत्ता हथियाने से इटली कितने ही प्रधानमंत्री देख चुका था। इस काल में सैलाण्डरा, आर्लेण्डो, निती, मियोवी गियोलित्ती, इवानो बोनोमी और लुइत्री फैक्टा क्रमशः प्रधानमंत्री बने और हटे। यद्यपि राजा विक्टर एमेनुएल तृतीय ने तो राष्ट्रध्यक्ष के रूप में लम्बी पारी खेली, किन्तु शासन प्रमुखों के त्वरित बदलाव ने राजनीतिक अस्थिरता को जन्म दिया। इससे उत्पन्न अव्यवस्था ने फासीवाद के लिये जमीन तैयार की।

4. राजनीतिक जोड-तोड़-

निम्न सदन चैम्बर ऑफ डेपुटीज में स्पष्ट बहुमत के अभाव में जोड़-तोड़ से सरकारें बनी-बिगड़ीं। 1919 ई. के निर्वाचन में समाजवादियों को 156 स्थान मिले। उन्होंने सदैव सरकार का विरोध किया, जिससे संसदीय गतिरोध कायम हो गया। ग्राण्ट एवं टेम्परले के अनुसार, 1921 ई. में चुने गये 35 फासी डिपुटिज के लिये मुसोलिनी ने कहा कि संविधानवादी होते हुए भी वे गियोलिती का बिना शर्त समर्थन नहीं करेंगे। यह सशर्त समर्थन पर्दे के पीछे की जोड़-तोड़ का संकेत है। लैंगसम के अनुसार तो उसी दौरान संविद सरकार बनाने एवं उसमें एक विभाग सम्भालने हेतु मुसोलिनी को भी आमंत्रित करने की चर्चा चल रही थी। यद्यपि स्वयं मुसोलिनी ने यह कहकर उसे अस्वीकार कर दिया कि फासीवाद सरकार में सेवा प्रवेश नहीं करेगा। उस समय इटली में घूमते हुए एक अंग्रेज यात्री ने तत्कालीन राजनीतिक जोड़-तोड़ का बहुत सुन्दर वर्णन किया है.

"राजनीतिज्ञों के जोड़-तोड़ इतने सूक्ष्म और इतनी सावधानी से मिलाये हुए थे कि वर्तमान प्रधानमंत्री ने पहले से ही इतना प्रबन्ध कर लिया था कि उसका उत्तराधिकारी कौन होगा, यह निश्चित था। इन प्रबन्धों के पीछे गियोलिती का चतुर मस्तिष्क था और वह अगले से अगला प्रधानमंत्री बनने का इरादा रखता था।"

5. राजनीतिक दलों में परस्पर वैमनस्य-

इटली में एक संयुक्त लोकमत के विकास के लिये अवस्थाएँ सदैव प्रतिकूल रहीं। वहाँ सांविधानिक, राष्ट्रवादी और समाजवादी मुख्य धारायें थीं। इनमें भी अनेक दल तथा समूह थे। गियोलिती, बोनोमी और स्टों तीनों के संवैधानिक पद्धति में विश्वास रखते हुए भी इनके दल एक नहीं हो सके। समाजवादी दल भी टुकड़ों में विभक्त थे। समाजवादियों में वामपंथी, सिण्डीकेटलिस्ट भी थे, जो सीधी कार्यवाही में विश्वास रखते थे। इनके विचार वोल्शेविकों से मिलते थे। संसदीय प्रणाली की स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार इटली की विभिन्न राजनीतिक धाराओं, दलों और समूहों में भी अत्यधिक कटुता और वैमनस्य व्याप्त था। इस कारण फासिस्टों के विरुद्ध ये सभी एक जुट नहीं हो सके।

6. शासन की अकर्मण्यता-

इटली की संसदीय सरकारें भ्रष्ट, अकर्मण्य एवं नकारा सिद्ध हुई। वे युद्ध के बाद की आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में असफल सिद्ध हुईं। प्रत्यक्ष कार्यवाही के अन्तर्गत अनेक कम्यूनों पर समाजवादियों ने कब्जा कर लिया, मजदूरों ने अनेक कारखानों पर अपना कब्जा कर लिया, सरकार मूकदर्शक बनी रही। शासन ने देश के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों की ओर से आँखें मूंद लीं। 1920-21 ई. में फासिस्टों और कम्युनिस्टों के मध्य हिंसक संघर्ष होता रहा। सरकार तटस्थ रही। तोड़-फोड़ की कार्यवाहियाँ तेजी से चलने लगी, चारों ओर अशान्ति व्याप्त थी। अस्थिर और दिशाहीन सरकार इन्हें क्या नियन्त्रित करती?

ग्राण्ट और टेम्लरले के अनुसार- "मंत्री अशक्त और भीरु बनकर दुर्बलता से ताकते रहे। साहसी नेतृत्व से स्थिति सम्भल सकती थी। क्योंकि सेना सारी ही सरकार की भक्त थी।" तत्कालिक सरकारों की चतुराईपूर्ण तटस्थता उनके लिये आत्मघाती सिद्ध हुई। अक्टूबर, 1922 ई. में मुसोलिनी की धमकियों से निपटने हेतु प्रधानमंत्री फेक्टा ने मार्शल लॉ लागू करने की अनुशंसा की, जिसे राजा ने अस्वीकार कर दिया। यह शासन की अकर्मण्यता का पुख्ता सबूत है।

7. आर्थिक दुरवस्था-

आलोच्य अवधि में इटली आर्थिक दुरावस्था का शिकार था। प्रथम विश्व युद्ध में उसका व्यय उसकी क्षमता से बहुत अधिक था। इटली आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध देश नहीं था, युद्ध से उसके स्रोतों पर अत्यधिक बोझ आ पड़ा। सेना से मुक्त लाखों लोगों के लिये आजीविका का प्रबन्ध असम्भव था। क्योंकि उद्योग निरुत्साहित थे, विदेशी बाजार बंद हो गये, पर्यटक व्यवसाय प्रायः निश्चल हो गया। विभिन्न देशों के प्रतिबन्धात्मक विधान के कारण परदेश गमन भी कठिन हो गया। बेरोजगारी एक महत्वपूर्ण समस्या बन गयी। सैनिक कर्मचारियों तथा सैनिकों की विधवाओं को पेंशन देने हेतु काफी धन राशि की आवश्यकता पड़ी। इससे बजट असंतुलित हो गया। बजटीय घाटे ने आर्थिक स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। खाद्यान्न का मूल्य तेजी से बढ़ा। महँगाई ने जनता की कमर तोड़ दी। इटली की मुद्रा लीरा का मूल्य 70% से अधिक गिर गया। अत्यधिक जनसंख्या सीमित संसाधन और आर्थिक स्तर में भारी भेद से इटली की आर्थिक स्थिति चिन्ताजनक हो गयी।

8. ऐनन्जियों द्वारा फयूम पर अधिकार से प्रेरणा-

देश के अशान्त, अराजक और भ्रष्ट वातावरण ने समाजवादी और राष्ट्रवादी दोनों धाराओं के चरमपंथियों को प्रोत्साहन दिया। उग्र समाजवादियों, सिण्डीकेटलिस्ट के रूप में प्रत्यक्ष कार्यवाही में संलग्न हुए। उग्र राष्ट्रवादी भी सशस्त्र क्रान्ति को उद्यत हो रहे थे। उनकी प्रेरणा का स्त्रोत फयूम (Fiume) बना और उनको नेतृत्व दिया। कवि "गबील द ऐनन्जिओ"(Gabriole d'Annunzio) ने काली कमीजधारी इटली के कुछ वीरों के सहयोग से शान्ति परिषद् और स्थानीय निवासियों के विरोध के बावजूद फयूम (Fiume) नगर पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया। फयूम पर अधिकार की घटना से ऐनन्जिओ और उसके अनुयायियों को गौरव मिला। ऐनन्जिओ के अनेक काली कमीजधारी अनुयायी फासिस्ट दल से जुड़े। इसी कारण फासिस्ट दल ने अपने गणवेश में काली पट्टी को चुना।

9. इटली की परम्परागत यौद्धिक मनोवृत्ति-

मोरियो कार्ली ने यौद्धिक भावनाओं को इटलीवासियों का मूलभूत चरित्र माना है। उसके अनुसार-मुझे एक भी ऐसा क्षण बताइये जब हम लड़े न हों, किनके लिये और किसके लिये यह मायना नहीं रखता।" ई. एच. कार के अनुसार भी- "यहाँ तक कि 1920-29 में भी वह इटली अपनी उपद्रवी और साहसिक युवावस्था में ही था। पुराने राष्ट्रों को सम्मानीय और शान्तिप्रिय परम्परायें उसमें अभी तक नहीं बन पायी थीं, फिर भी इटली की परम्परागत्त मनोवृत्ति ने प्रजातान्त्रिक सरकार के दब्बूपन और अकर्मण्य रूप की तुलना में फासिस्टों की विरोचित मुद्राओं को अधिक पसन्द किया। यह उनके उत्थान के लिये लाभप्रद स्थिति थी।"

10. साम्यवादी अराजकता की प्रतिक्रिया-

समाजवादी विचारधारा इटली की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी थी। किन्तु चरमपंथियों ने प्रत्यक्ष कार्यवाही द्वारा अराजक स्थिति पैदा कर दी। उन्होंने हड़ताल, कारखानों पर श्रमिकों का स्वामित्व, भूमि पर अधिकार जैसी कार्यवाहियाँ कीं। अपनी हिंसक गतिविधियों के कारण वे उदारवादियों की सहानुभूति खो बैठे। समाजवादी बँट गये। सर्वहारा राज्य की सामर्थ्य पर भी शंका होने लगी, संसदीय व्यवस्था से तो पहले ही मोह भंग हो चुका था। अब इटलीवासियों को यह प्रश्न मथ रहा था कि इसका विकल्प क्या हो? जमींदार और धनपति उस सरकार की तलाश में थे जो निजी सम्पत्ति की रक्षा करे। 1914 ई. के बाद की घटनाओं से क्षुब्ध बुद्धिजीवी भी एक सशक्त और देशभक्त प्रशासन चाह रहे थे। राष्टवादी और पूर्व सैनिक भी एक नये पतवार खेने वाले को ढूँढ रहे थे। साम्यवादी अराजकता ने सत्ता की बागडोर सम्भालने के लिये मुसोलिनी को अच्छा अवसर उपलब्ध करा दिया।

11. पूर्व सैनिकों एवं निम्न मध्यम वर्गीय युवकों का समर्थन-

निम्न मध्यम वर्ग तीव्र प्रतिक्रिया करता है, चाहे वह परिवर्तन के लिये हो, चाहे परम्परा के संरक्षण के लिये । केटलबी के अनुसार, "ऐसी व्यापक अराजकता और अशान्ति की स्थिति में अनेक स्वयं सेवकों के जत्थों ने इटली की दशा सुधारने का बीड़ा उठाया। इन स्वयं सेवकों में अधिकतर भूतपूर्व सैनिक थे किन्तु कुछ अन्य युवक देशभक्त भी थे।"

हैरल्ड बटलर के अनुसार, "इटली और जर्मन दोनों ही देशों में फासिज्म का प्रारम्भ युद्ध और उसके परिणामों से उत्पन्न होने वाली कठिनाइयों और विनाश के विरुद्ध निम्नमध्यम श्रेणी के तरुणों के विद्रोह के रूप में हुआ।"

इस श्रेणी के लोगों की बेरोजगारी और भावुकता का मुसोलिनी ने खूब विदोहन किया।

12. सुखद भविष्य के सपनों का विक्रय-

युद्ध के पश्चात् अराजक इटली को कोई भी चतुर सौदागर सुखद भविष्य के सपने मुँह माँगे दामों पर बेच सकता था। मुसोलिनी में यह चातुर्य भरपूर था। फासिस्ट दल के सदस्य सभी तरह के लोग थे-सेना से निकाले हुए सिपाही, समाजवादी आन्दोलनकारी, मजदूर, विद्यार्थी, नगरों और गाँवों के मध्यम वर्ग के लोग, दक्षिणी इटली के बड़े जमींदार और उत्तर के उद्योगपति। मुसोलिनी ने अपनी प्रतिभा से इन सबको एक सूत्र में बाँध दिया था। वह जन समर्थन प्राप्त करने के लिये सब वर्गों को, सब चीजों का वचन देता था। मुसोलिनी ने पूंजीपतियों को सम्पत्ति की सुरक्षा, श्रमिकों को बेहतर कार्यदशा, बुद्धिजीवियों को एक साफ-सुथरी सरकार, उग्र राष्ट्रवादियों और पूर्व सैनिकों को एक सशक्त इटली के सब्जबाग दिखाकर परस्पर विरोधी वर्गों की सहानुभूति बटोर ली।

13. फासिस्ट अनुशासन एवं आतंक का प्रभाव-

मुसोलिनी ने अपने फासीदल को सैनिक अनुशासन पर ही आधृत रखा। उसने अपने स्वयं सेवकों को ऊपरी एवं मानसिक स्तर पर सैनिक स्वरूप प्रदान किया। फासीदल के सदस्य निर्धारित गणवेश धारण करते थे, उन्हें सैनिक परेड करनी पड़ती थी तथा कठोर अनुशासन में रहना पड़ता था। स्वयं मुसोलिनी उनका मुख्य कमाण्डर था। इस प्रकार के अनुशासन से सदस्यों में एकता स्थापित रह सकी। इससे युवा वर्ग विशेष रूप से प्रभावित हुआ।

फासीदल ने हिंसा को साधन के रूप में अंगीकृत किया। उन्होंने हिंसात्मक उपायों और गुण्डागर्दी का सहारा लिया। उन्होंने विरोधियों को आतंकित किया और उनका दमन किया। मुसोलिनी ने सत्ता भी अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित फासिस्ट स्वयं सेवकों द्वारा रोम पर चढ़ाई करने की धमकी से ही प्राप्त की थी।

 14. फासिस्ट प्रॉपगेण्डा-

मुसोलिनी ने प्रचारतन्त्र पर विशेष बल दिया। उसने प्रिण्ट मीडिया का अपने विचारों के प्रचार-प्रसार में खुलकर उपयोग किया। फासिस्टों ने पैम्पलेट, पत्र, पुस्तकों और भाषणों का उपयोग कर एक प्रबल प्रॉपगेण्डा अभियान चलाया। देशभक्तों को यह समझाने के लिये कि केवल वे ही इटली में सुरक्षा, समृद्धि और अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान की पुनर्स्थापना कर सकते हैं। जन भावनाओं को उद्धेलित कर उनका विदोहन करने में मुसोलिनी की वक्तृत्व-कला सक्षम थी।

15. मुसोलिनी का नेतृत्व-

किसी आन्दोलन, दल या गतिविधि के सफल संचालन के लिये एक कुशल संयोजक सूत्र की आवश्यकता होती है। फासीदल को मुसोलिनी के रूप में एक चतुर और प्रभावी नेता मिल गया। हेजन के अनुसार, वह मानवों का जन्मजात नेता था। वह जनता से अनुरोध करने की कला जानता था, वह शीघ्र निर्णय करने वाला, द्रुत कार्य करने वाला व्यक्ति था। उसका व्यक्तित्व गतिशील और आकर्षक था। उसमें संगठन करने तथा अनुशासन स्थापित करने की उच्चकोटि की योग्यता थी। फासिस्ट दल के जन्म से लेकर उसे सत्ता की चौखट तक पहुँचाने में मुसोलिनी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । मुसोलिनी की संगठन क्षमता के कारण ही उसका दल तीन वर्षों की अल्पावधि में ही इटली की प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन सका।

फासीवाद के प्रभाव व परिणाम

इटली पर प्रभाव

फासीवाद के उत्कर्ष ने इटली की राजनीति को झकझोर दिया। अर्थव्यवस्था, समाज, धर्म, शिक्षा आदि क्षेत्रों में भी परम्परागत ताना-बाना क्षतिग्रस्त हुआ। नवाचार के रूप में अच्छी-बुरी अनेक बातें सामने आयीं। मुसोलिनी की गृहनीति के अन्तर्गत उनका सविस्तार विवेचन किया गया है। फासीवाद सरकार की स्थापना से निम्नलिखित प्रभाव दृष्टव्य हैं-

1. फासी सरकार की स्थापना।

2.  लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर कुठाराघात।

3.  समस्त संस्थाओं का क्रमश: फासीकरण।

4.  विपक्षियों, विरोधियों का दमन।

5.  उग्र राष्ट्रवादी, यौद्धिक मनोवृत्ति का विकास।

6.  नवीन आर्थिक, राजनीतिक एवं शैक्षिक व्यवस्थाएँ।

7.  नस्लीय भेदभाव एवं जातिय अहंकार को संरक्षण।

8.  राज्य और धर्म के मध्य सौहार्द का विकास।

9.  इटली में एकता की यांत्रिक भावना का विकास।

10.  अराजकता की समाप्ति किन्तु फासी आतंक की स्थापना।

11.  उग्र एवं आक्रमणात्मक विदेश नीति का संचालन।

विश्व पर प्रभाव

मुसोलिनी का कहना था कि फासीवाद कोई निर्यात योग्य वस्तु नहीं है, किन्तु कालान्तर में फासीवाद ने विश्व राजनीति को बहुत प्रभावित किया। फासीवाद के विश्व राजनीति पर निम्नलिखित प्रभाव दृष्टव्य हैं-

- यूरोप के अन्य देशों को अधिनायकवादी शासन स्थापना की प्रेरणा मिली।

- राष्ट्र संघ की प्रतिष्ठा पर आघात हुआ।

- अवरोधक के रूप में साम्यवाद के प्रसार पर नियन्त्रण लगाया।

- यौद्धिक वातावरण का निर्माण और साम्राज्यवादी भावनाओं को प्रोत्साहन मिला।

- फ्रांस और ग्रेट-ब्रिटेन की तुष्टिकरण की नीति का विकास हुआ।

इस प्रकार प्रथम विश्व महायुद्ध की विभीषिका से उबरे बिना ही विश्व को द्वितोय महायुद्ध की दहलीज तक पहुँचाने में मसोलिनी की महत्वपूर्ण भूमिका थी यद्यपि युद्ध के प्रारम्भ होने पर कुछ समय तक वह स्वयं एक दर्शन बना रहा। विश्व युद्ध फासीवाद की तार्किक परिणति थी।

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