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यूनानी इतिहास लेखन की परंपरा

यूनानी इतिहास लेखन

प्रायः कहा जाता है कि यूनानी दर्शन इतिहास की घटनाओं को विशेष महत्त्व नहीं देता है। वे इसे यथार्थता की छाया मात्र मानते हैं। इतिहास नामक शिक्षा-शाखा की उत्पति 6-5वीं शताब्दी ई. पूर्व क्लासिक यूनान में मिलती है, जहाँ इसका प्रकाशन सृजनात्मक बौद्धिक कार्य, व्यापार को एक अभिव्यक्ति के रूप में हुआ, जिसमें पाश्चात्य दर्शन, विज्ञान, चिकित्सा शास्त्र तथा कला की नींव रखी गयी। स्वयं इतिहास शब्द का प्रयोग इस समय परीक्षा सिद्ध गवेषणा के रूप में हुआ।

थ्यूसीडायडीज लिखित "पेलोपोनेशियन युद्ध का इतिहास" इस युग की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक कृति थी। इसमें लेखक ने युद्ध की घटनाओं का वर्णन 431 ई. पू. में युद्ध आरम्भ के ठीक बाद से किया है। लेखक ने अपनी कृति के सम्बन्ध में यह दावा किया है कि, उसकी कृति पूर्ववर्ती ऐतिहासिक रचनाओं से श्रेष्ठत्तर है। यह समीक्षात्मक तथा तर्कशील धारणा सम्पूर्ण क्लासीकल यूनानी चिन्तन की एक प्रमुख विशिष्टता है, तथा आधुनिक पाश्चात्य विद्वान इससे प्रभावित हैं। तथ्यों के निश्चय तथ्य विवरणों के लेखन के अतिरिक्त थ्यूसीडायडीज ने युद्ध के कारणों तथा एथेन्स के पराजय के कारणों की व्याख्या करने का पूरा प्रयास किया है।

यूनानियों की दृष्टि में इतिहास लेखन विशेष महत्त्वपूर्ण नहीं था। अरस्तू का भी ऐसा ही विचार था। यूनान में दार्शनिकों ने अपनी विचार शक्ति का प्रयोग इतिहास के किसी भी दर्शन का निर्माण करने में नहीं किया। थ्यूसीडायडीज के समय तक इतिहास साहित्य का अंग बना रहा, किन्तु उसके समान स्तर को वह बाद में "हैलेनिस्टिक" विश्व में यूनानी संस्कृति से अधिगृहीत 'रोमन' विश्व में उस स्तर को कायम नहीं रख सका।

यूनानियों ने इतिहास दर्शन को विज्ञान की संज्ञा दी है। उनका इतिहास लेखन आख्यान नहीं अपितु शोध (Research) है। इतिहास लेखन में भी उनका योगदान महत्त्वपूर्ण है। वे न केवल अपने परिवार से सम्बन्धित इतिहास रखते थे, अपितु मानव जाति विज्ञान (Ethnography) और भूगोल में भी अभिरुचि रखते थे। उनके इतिहास लेखन में भौगोलिक और सामाजिक विवरण होते थे।

होमर एक महान कवि था। उसने दो महापुरुषों की रचना की। उसकी कविताएँ ऐतिहासिक सामग्रियों से परिपूर्ण हैं। इसने मेसेन (Mycenae) का गौरवपूर्ण इतिहास है। परन्तु होमर की कविताओं के सम्बन्ध में बड़ा विवाद है। 19 वीं शताब्दी में यह कहा जाता था कि ये कविताएँ लोकगीतों पर आधारित हैं और विभिन्न कालों में विभिन्न कवियों ने इनकी रचना की। जो कुछ भी हो, इन कविताओं में "सौन्दर्य दर्शन" एवं "प्रतिभा की उत्कृष्टता" स्पष्ट दिखाई देती है।

प्रो. शाटवेल के शब्दों में, "यूनानियों के लिये होमर (Homer) की कविताओं का वही महत्त्व था जो यहूदियों के लिये ओल्डटैस्टामेन्ट (Old Testament) का था। इसने यूनानी बौद्धिक जीवन को काफी प्रभावित किया है।"

एक अन्य यूनानी कवि हेसिओड (Hesiod) ने धर्म शास्त्र में पर्याप्त अभिरुचि प्रदर्शित की। उसने देवों के जन्म तथा मानवों के साथ उनके सम्बन्ध का उल्लेख किया। उसने विश्व में पाँच स्वर्ण, रजत, कांस्य, ताम्र और लौह युगों का उल्लेख किया है। उनका कहना है कि हम लोग इतिहास के सबसे निकृष्ट लौह युग में रह रहे हैं। किन्तु होमर और हैसिओड की रचनाओं को इतिहास नहीं माना जा सकता। ये पद्यात्मक रचनाएं हैं और ऐतिहासिक विधा से भिन्न हैं तथा इतिहास के मार्ग पर अवरोध पैदा करती हैं।

यूनानी इतिहास लेखन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिये
यूनानी इतिहास लेखन की परंपरा

छठी शताब्दी ई.पू. यूनान में ऐतिहासिक रचना शुरू हुई। कविताओं द्वारा सामाजिक जीवन का उल्लेख नहीं किया जा सकता। अत: आयोनिया (lonia) में गद्य लेखन शुरू हुआ।

प्रमुख यूनानी इतिहासकार

हेकेटियस-

हेकेटियस पहला यूनानी इतिहासकार है। वह छठी शताब्दी ई. पू. में पैदा हुआ था। उसने मिस्र का विस्तृत दौरा किया था। उसने विश्व पर्यटन (Travels Ground the world) और स्थानीय वंशावलियों का ग्रन्थ Book of local geneaologies लिखा। पहली पुस्तक में उसने फारस का वर्णन किया है और दूसरी पुस्तक में प्राचीन आख्यान की आलोचना की है। पहली बार उसने इतिहास लेखन के दो सिद्धान्तों का उल्लेख किया है। ये हैं, सच्चाई और पारम्परिक आख्यानों का आलोचनात्मक परीक्षण। उसने कहा, "मैं उसी चीज को लिखता हूँ जिसे मैं सत्य समझता हूँ, क्योंकि यूनानियों की अनेक कहानियाँ हैं, जो मुझे हास्यास्पद लगती हैं।"

हेरोडोट्स-

हेरोडोट्स का जन्म 480 ई. पू. एशिया माइनर के हेडी कारनेसस (Hadicarmassus) में हुआ था। उसने मानव शास्त्रों तथा इतिहास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। वह दोनों का ही जनक माना जाता है।

हेरोडोट्स की पहली रचना यूनानी एशिया सम्बन्ध का विवरण है। इसमें लीडिया के क्रोसेश (Croesus) के शासन काल (560-546) से यूनान के पर्शियन हमलावरों की पराजय, अर्थात् 478 ई. पूर्व तक का वर्णन है। यद्यपि इसमें मुख्यतः पर्शियन युद्धों विशेषत: यूनानियों द्वारा पर्शियन राजा जैरेक्स (Xerekes) की सेनाओं के विध्वंश का विवरण है, तथापि हेरोडोट्स ने इसमें भूमध्य सागरीय और एशियाई लोगों का वर्णन किया है। उसकी कृति भी अंधी राजभक्ति का प्रभाव है। उसने पर्शियनों की वीरता की बड़ी तारीफ की है। किन्तु उसने सैनिक घटनाओं का उल्लेख प्रामाणिक और सूक्ष्म ढंग से नहीं किया है। उसकी रचनाओं में अलौकिकता भी है। किन्तु इसके लिये हेरोडोट्स को दोष देना ठीक नहीं है। ये सब उसके युग की सामान्य विशेषताएँ थीं।

हेरोडोट्स की मुख्य रचनाओं की प्रमुख विशेषताएँ हैं, जैसे-

(1) उसने न केवल राजनीतिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों के बारे में भी लिखा।

(2) उसने एक देश के इतिहास को दूसरे देश से परिचित कराने की परम्परा प्रारम्भ की।

(3) उसने आख्यान लेखन रिवाज को वैज्ञानिक लेखन रिवाज में बदल दिया।

(4) उसने साक्ष्यों की व्यापक मदद ली।

(5) उसने एक तर्कपूर्ण पद्धति अपनाई और यह जानने का प्रयास किया कि अतीत में मानव जाति ने क्या किया और जो कुछ भी किया वह क्यों किया?

(6) उसने एक विशेष कार्यवाही के कारणों को व्याख्या करने का प्रयास किया।

प्रो. बार्ने के शब्दों में, "इतिहास लेखन के क्षेत्र में, हेरोडोट्स का यश एक रचनात्मक कलाकार के रूप में अमर रहेगा। वह व्यापक ऐतिहासिक रचना का पहला लेखक था।"

प्रो. शाटवेल के शब्दों में, "हेरोडोट्स में आलोचनात्मक खोज की प्रवृत्ति थी। उसकी रचना शैली अनुपम थी।"

थ्यूसीडाइडिस-

थ्यूसीडाइडिस ने इतिहास लेखन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उसने हेरोडोट्स से भिन्न रूप में इतिहास को देखा तथा इसे कलात्मक शैली और अलौकिकता से मुक्त किया। वह ऐतिहासिक सत्य पर बल देता था और इसे सरल शैली में लिखता था। वह लेखन कार्य के लिये एक विशेष विषय को चुनता और उसी में ध्यान लगाये रहता था। उसने मुख्यत: पेलोपोनेशियन युद्ध के बारे में लिखा है । पेलोपोनेशियन (Peloponesians) युद्ध (431-404) तक चला। उसने 431 ई. पूर्व ठीक युद्ध आरम्भ होते ही लिखा और युद्ध की समाप्ति के अगले वर्ष तक की घटनाओं के बारे में लिखा।

अपनी भूमिका में थ्यूसीडायडीस ने अपने लेखन की विधि की व्याख्या को है। इस विधि में मूल साक्ष्यों के समीक्षात्मक प्रयोग पर बल दिया है। उसने यह दावा किया है कि उसकी कृति पूर्ववर्ती ऐतिहासिक रचनाओं से, जिनमें कि समीक्षात्मक दृष्टि का प्रयोग किये बिना ही किंवदन्तियों तथा पुराण कथाओं को स्वीकार कर लिया है, उनसे श्रेष्ठतर है। यह समीक्षात्मक और तर्कशील धारणा क्लासीकल यूनानी चिन्तन की एक प्रमुख विशिष्टता है तथा आधुनिक पाश्चात्य व्यक्ति इससे सर्वाधिक प्रभावित है। तथ्यों के निश्चय तथा विवरणों के लेखन के अतिरिक्त थ्यूसीडाइडिस ने युद्ध के कारणों तथा एथेन्स की पराजय की व्याख्या भी की। जिससे आगे आने वाली पीढ़ी उनका अन्धुकरण कर सके। ऐतिहासिक विकास गति को वह चक्रात्मक (Cyclic) मानता था। उसके लेखन में दो ऐसी बातें हैं, जिनमें आधुनिक इतिहासकार सन्तुष्ट नहीं होता। उसकी रुचि केवल समसामयिक घटनाओं पर थी। अतीत के विषय में उसका ज्ञान बहुत कम था। किन्तु उसमें कथा कहने का उत्साह था। उसकी रुचि राजनीति और भूगोल में भी थी।

यूनानी इतिहास लेखन में थ्यूसीडायडीस का महत्त्वपूर्ण योगदान इतिहास लेखन का प्रणाली विज्ञान (Methodology) है। वह मुख्य विषय पर अपने को केन्द्रित करता है तथा जो विषय मुख्य विषय से सम्बन्धित नहीं है, उसे त्याग देता है। वह सत्य इतिहास की रचना की प्रामाणिकता पर बल देता है। वह पूरे विषय का विश्लेषण करता है। आलोचकों का कहना है कि थ्यूसीडाइडिस का विवरण नीरस है, क्योंकि वह तथ्यों पर विशेष जोर देता है।

प्रो. शाटवेल के शब्दों में "वह तथ्यों के जगत में ही सदैव परिभ्रमण करता है। वह एक राजनीतिक इतिहासकार था। इसका ज्वलन्त उदाहरण 411 ई.पू. की एथेनियन क्रान्ति है।"

थ्यूसीडाइडिस की रचनाओं के सम्बन्ध में बार्ने (Barne) ने कहा है- "उसने अपने तथ्यों के विवरण में ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में काल पर ध्यान नहीं दिया। हेरोडोट्स की तरह ऐतिहासिक तथ्यों के विवरण में भौगोलिक कारकों के महत्त्व की उपेक्षा की। उसने इतिहास का क्षेत्र राजनीतिक तक ही सीमित रखकर सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं को भुला दिया। उसने गौरवशाली ऐथेनियन सभ्यता के बारे में कुछ भी नहीं लिखा। इसमें उसकी अयोग्यता नहीं है, अपितु यह कहना सर्वथा उचित ही है कि वह केवल राजनीतिक इतिहास पर केन्द्रित था।"

प्रो. बेरी (Bary) के अनुसार- थ्यूसीडाइडिस की कृति सर्वोत्कृष्ट निर्णायक कृति है, जो एक व्यक्ति के द्वारा इतिहास निर्माण में इतना महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है।"

पोलिबियस (198-11 ई.पूर्व)-

पोलिबियस का जन्म यूनान के मेगालोपोलिस (Megalopolis) में एक कुलीन परिवार में 198 ई. पूर्व हुआ था। उसका पिता लकोर्टा (lycortas) एशियन संघ के नेता (Achalean-league) फिलोपोमेन का मित्र था। पोलिबियस अल्पकाल में ही मजिस्ट्रेट और राजदूत बन गया। 168 ई. पूर्व में पेडना (Pydna) के सम्पर्क में वह इतिहास लेखन की ओर उन्मुख हुआ। उसने अपनी पुस्तक "इतिहास" (History) में रोम साम्राज्य के विस्तार व संवैधानिक विकास पर लिखा। यह 40 जिल्दों में है। इसमें रोम का इतिहास 164 ई. पूर्व से 146 ई. पूर्व तक है । उसको 40 जिल्दों में 5 जिल्दें आज भी सुरक्षित हैं। जिनमें हम उसकी कृति के बारे में जानकारी कर सकते हैं।

उसने निष्पक्षतापूर्वक रोम और यूनान का इतिहास लिखा है। इतिहास लेखन में पोलिबियस का एक योगदान प्रणाली विज्ञान है। उसका विचार था कि इतिहास का वास्तविक महत्त्व तथ्यों की प्रामणिकता है जो समकालीन प्रशासन का मार्गदर्शन कर सके।

इतिहास के क्षेत्र में, प्रणाली और उद्देश्य के बारे में पोलिबियस के विचार महत्त्वपूर्ण हैं। वह कहता है कि इतिहास विज्ञान तीन तरह का है।

प्रथम यह लिखित दस्तावेजों और इस तरह प्राप्त सामग्रियों की व्यवस्था है।

द्वितीय स्थलाकृति (Topography), नगरों व स्थानों की आकृति, नादियों और बन्दरगाहों का विवरण है।

तृतीय वह राजनीतिक सामंतों का अध्ययन करता है इतिहास का उद्देश्य व्यवहत शब्दों का अर्थ समझना और यह पता लगाना है कि क्यों एक विशेष नीति या व्यवस्था सफल तथा असफल रही। किसी घटना का उल्लेख मात्र दिलचस्प है, परन्तु जब इसे कारण में बतलाया जाता है, इतिहास का अध्ययन फलदायक बन जाता है।

पोलिबियस सत्य पर बड़ा बल देता था। जिसे वह इतिहास की आँख कहता था। वह कहता था कि इतिहासकार को किसी तरह के पूर्वाग्रह और दलगत भावनाओं से ऊपर होना चाहिये। उसे ऐतिहासिक तथ्यों को तथ्य के रूप में ही देखना चाहिए। उसने कहा, यदि किसी जीव-जन्तु की आँखें निकाल ली जाती हैं तो वह बेकार हो जाता है। प्रो. शाटवेल ने पोलिबियस की वैज्ञानिक प्रणाली की काफी प्रशंसा की है।

जेनोफेन (430-354 ई.पूर्व)-

जेनोफेन ने होमर की पौराणिक कथाओं की निन्दा की। वह उच्चकोटि की साहित्यिक शैली के लिये प्रसिद्ध है। किन्तु उसकी रचनाएँ उत्कृष्ट नहीं हैं। उसकी मुख्य कृति एनोबेसिस (Anobasis) है, जो एक तरह का संस्मरण है। उसने अपनी दूसरी रचना हेलेनिका (Hellenica) में थ्यूसीडाइडिस की कृति को आगे बढ़ाया। उसने एक पुस्तक में यूनानी राजनीति में आर्थिक कारणों का उल्लेख किया है।

स्टोई पोसीडोमियस-

स्टोई पोसीडोमियस ने पोलिबियस के विश्व इतिहास की परम्परा जारी रखी। पोलिबियस की तरह उसने स्पेन से रोड्स और सीरिया तक  की यात्रा की। उसकी प्रमुख कृतियाँ इतिहास और भूगोल हैं। उसने 74 ई. पूर्व में इतिहास लिखना प्रारम्भ किया। जिसमें 144 ई. पूर्व से 82 ई. पूर्व तक का वृत्तान्त है। यह 52 जिल्दों में है। प्रायः सभी इतिहासकार उसके आलोचनात्मक दृष्टिकोण और विद्वता की तारीफ करते हैं।

स्ट्रेबो (64-19 ई.पूर्व)-

पोलीबियस की तरह स्ट्रेबो ने भी इतिहास और भूगोल (Geography) पर लिखा। उसके भूगोल में ऐतिहासिक भूमिका थी, जिसमें उसने अपने समय तक के खगोलशास्त्रियों का उल्लेख किया है। इसमें प्राचीन इतिहास लेखन का भी विवरण है। उसने अपने ऐतिहासिक संस्मरण में (Historical memories) में सिकन्दर की उपलब्धियों का विवरण किया है।

डियोडोरस साइकल्स (80-29 ई.पूर्व)-

डियोडोरस ने सामान्य इतिहासकार (Bibliotheca Historica) का 42 जिल्दों में संकलन किया। इसमें प्राचीन मिस्र, यूनान और सिसली का इतिहास है। वह विश्व इतिहास की रचना करना चाहता था। यद्यपि उसकी कृतियां उसके जीवन काल में लोकप्रिय नहीं थीं, किन्तु तीसरी शताब्दी ईस्वी में ईसाई विद्वानों के बीच ये काफी लोकप्रिय थीं।

डायोनेसियस-

डायोनेसियस का जन्म प्रथम शताब्दी ई. पूर्व में हुआ था। वह 30 ई. पूर्व में रोम गया। उसने 7 ई. में अपनी प्रसिद्ध कृति "रोम का इतिहास" (The Roman History) की रचना की। इसकी रचना में उसने 12 वर्ष लगाए। उसने भी इतिहास को दर्शन (Philosophy) बतलाया।

प्लूटार्क (50-125  ई.)-

प्लुटार्क ने इतिहास लेखन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उसने अपनी कृति लाइव्स (Lives) में 46 समानान्तर रोमन और यूनानियों व्यक्तियों का जीवन चरित्र लिखा है। इसमें उनके समय के वातावरण तथा रीति-रिवाजों का उल्लेख है। प्रो. शाटवेल के शब्दों  में, "प्लूटार्क अपने समकालीन टैसिटस (Tacitus) से अधिक प्रतिभाशाली और उदार था। यूनानी इतिहास लेखन के अवलोकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि यूनानी व्यक्ति में दिलचस्पी लेते थे।

प्रो. कालिंग वुड के शब्दों में "यह मानव इतिहास का वृत्तान्त, मानव की उपलब्धियों का इतिहास, व्यक्ति के उद्देश्यों व मानव की सफलताओं और असफलताओं का इतिहास है। निःसन्देह इसमें दैवी तत्व का भी हाथ है, परन्तु उसका योगदान नियन्त्रित है। यूनानी लेखन के इतिहास के बारे में थाम्पसन (Thompson) ने कहा है, "यूनानियों ने सभी तरह का इतिहास लिखा। उन्होंने सबसे पहले वास्तविक इतिहास लिखने की कला सीखी है। यूनानी विज्ञान तथा दर्शन की तरह इतिहास के भी जन्मदाता थे।"

रोमन इतिहास दर्शन

यदि प्राचीन इतिहास की विषय वस्तु राजनीतिक थी, तो इसमें रोम का पहला स्थान आता है। इसमें व्यावहारिक राजनीति का पाठ पढ़ाया है। यहाँ पर यह स्मरण रखना आवश्यक है कि रोमनों (Romans) न यूनानियों से इतिहास लेखन की कला सीखी। वस्तुत: कुछ प्रारम्भिक रोमन रचनाएँ यूनानी भाषा में लिखी गई। कुछ प्रमुख रोमन इतिहासकार निम्नलिखित हैं:

क्यू. फेबियस पिक्टर-

पिक्टर का जन्म 254 ई. पूर्व में हुआ था। वह पहला रोमन इतिहासकार है। उसकी कृति इतिहास है। इसकी रचना के लिये उसने अपने परिवार के अभिलेखागार में सुरक्षित सरकारी दस्तावेजों का अध्ययन किया। किन्तु उसके इतिहास में केवल कुलीनों का वर्णन है। सामान्य लोगों का कोई भी जिक्र नहीं है। लेकिन इसके लिये पिक्टर को दोष देना उचित नहीं है। उस समय केवल कुलीनों के इतिहास लिखने की परम्परा थी। कालान्तर में उसकी रचनाएँ यूनानी व रोमन विद्वानों के लिये प्रशंसा का पात्र थीं।

एम. पोर्सियस केटो-

केटो का जन्म लगभग 234 ई. पूर्व में हुआ था। इतिहास की रचना आरम्भ करने के पूर्व, वह कई पदों पर काम कर चुका था। उसकी रचना 'व्युत्पत्तियों" एक राष्ट्रीय कृति समझी जाती है। यह सात जिल्दों में थी। किन्तु केटो ने केवल राजनीतिक घटनाओं के बारे में ही लिखा और सामाजिक जीवन की उपेक्षा की।

एल. केलियस एंटीपीटर-

एंटीपीटर ने द्वितीय प्यूनिक युद्ध के बारे में लिखा। इसके लिये उसने फेबियस पिक्टर और केटो की रचनाओं की सहायता ली।

वारो-

वारो का जन्म 116 ई. पूर्व में हुआ था। वह राजनीति में गहरी दिलचस्पी लेता था तथा अपने कार्यों में काफी व्यस्त रहता था। उसने 47 ई. पूर्व में अपनी पुस्तक (Roman Antiquitic) प्रकाशित की। यह 41 जिल्दों में लिखी गई थी। 25 जिल्दों में मानवीय तथ्य, 16 जिल्दों में दैवी पुरातनों के बारे में लिखा गया। किन्तु वारों ने विभिन्न तथ्यों के बीच कोई अन्तर्सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास नहीं किया। आजकल केवल दैवी और धार्मिक पुरातनों से सम्बन्धित भाग ही प्राय: हैं।

जुलियस सीजर (100-44 ई.पूर्व)-

जुलियस सीजर ने प्राचीन विश्व में सबसे महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक संस्मरण लिखा। (The comunelaries of the catholic wars and the civil war), इसमें युद्ध का वस्तुपरक वर्णन है। सीजर की शैली स्पष्ट, प्रभावशाली और प्रत्यक्ष थी। प्रो. बार्ने के शब्दों में, "उसकी टिप्पणियाँ रोमन के पहले गोल की जानकारी के लिये, उतनी ही महत्त्वपूर्ण है जितनी टैसियस की जर्मनिया (Germania) रोमन के पहले जर्मनी की जानकारी आवश्यक है।"

सालुस्ट (84-34 ई.पूर्व)-

सालुस्ट थ्यूसीडायडिस का शिष्य था। उसकी पुस्तक 78 से 67 ई. पूर्व तक रोम का इतिहास (History of Rome) खो गई है, किन्तु उसका सम्बन्ध काफी महत्त्वपूर्ण है। इसमें व्यक्तित्व और राजनीतिक शक्तियों का उत्तम विश्लेषण किया गया है। आलोचकों ने राजनीति में उसकी संलग्नता के बावजूद भी उसकी निष्पक्षता की बड़ी प्रशंसा की है। किन्तु वह कालानुक्रम और भूगोल में बड़ा असावधान था। इन त्रुटियों के बावजूद प्रो.शाटवेल का कथन है कि रोम के महान् इतिहासकारों लिविटासियस की कोटि में सालुस्ट की गणना होती है। इसका कारण यह था कि वह अपने गुरुओं ध्यूसीडायडिस और पोलिबियस के पदचिह्नों पर चलता था।

टायटस लिवि (59-17 ई.पूर्व)-

लिवि पडुआ (Padua) में पैदा हुआ था और काफी दिनों तक रोम में रहा। उसने आगस्टस के संरक्षण में लिखा। उसने यह बताने का प्रयास किया कि रोम के उत्थान का कारण, रोमनों के नैतिक गुण हैं। प्रो. कालिंगवुड के शब्दों में, "लिवि अपनी रचनाओं में कोई मौलिकता का दावा नहीं करता है।"

प्रो. शाटवेल लिवि की बहुत प्रशंसा करता है। उसके शब्दों में, "इतिहास लेखन में लिवि की अवधारणा महत्त्वपूर्ण है। वह अत्यन्त ही बोधगम्य शैली में तथ्यों को प्रस्तुत करता है।"

पुबलियस कोर्नेलियस टैसियस (54-120 ई.)-

रोम का एक महत्त्वपूर्ण इतिहासकार टैसियस था। उसकी प्रमुख कृतियाँ इतिवृत (Annals) और इतिहास है। उसे जनतांत्रिक संस्थाओं के प्रति बड़ी आस्था थी और अपनी रचनाओं में सिनेटर वर्ग (Senatorial class) के प्रति अपना दृष्टिकोण रखा है। टैसियस का कहना है, "इतिहास का काम कोई महत्त्वपूर्ण घटना का उल्लेख करना है तथा पूर्वजों के बुरे कर्मों और कथनों की निन्दा करना है। टैसियस ने व्यक्त्त्वि के चित्रण में बड़ी योग्यता दिखलाई है। टैसियस की एक अन्य रचना जर्मेनिया (Germania) है। यह समाज शास्त्र की प्रारम्भिक वर्णनात्मक कृति है। इसमें उसके युग की जर्मन संस्थाओं का उल्लेख है।

प्रो. कालिंगवुड ने टैसियस को इतिहासकार मानने में सन्देह प्रकट किया है। उसके शब्दों में, "टैसियस ने पाँचवीं सदी के यूनानियों के गुणों का अनुकरण किये बिना उनके संकीर्ण दृष्टिकोण का अनुकरण किया है। उसने रोम का तो इतिहास लिखा, लेकिन रोमन साम्राज्य की उपेक्षा की है। वह दार्शनिक प्रशासन की निन्दा करता है। इतिहास की दार्शनिक पृष्ठभूमि के प्रति उसका दृष्टिकोण असार है। किन्तु प्रो. शाटवेल ने टैसियस की प्रशंसा की है। उसके शब्दों में अपने समस्त दोषों के बावजूद भी टैसियस एक महान् इतिहासकार था।"

सुटोनियस ट्रांकिविलस (75-160 ई.)-

ट्रांकिविलस अभिजात वर्गीय था। वह सेप्टीसियस क्लेरस (Septicius Clarus) का सचिव था। इस कारण वह गोपनीय साम्राज्यीय दस्तावेजों को देख सका। उसने सीजर के जीवन पर आठ ग्रन्थ लिखे।

इसमें विभिन्न रोमन सम्राटों की कथा है। इसे तैयार करने के लिये ट्रांकिविलस ने मूल दस्तावेजों व पत्रों को देखा। उसने महान् व्यक्तियों के जीवन पर प्रकाश डालने के अतिरिक्त समकालीन परिस्थितियों के बारे में भी लिखा है। प्राचीन रिवाज पर लिखने वाला वह अन्तिम इतिहासकार था। प्रो. बार्ने के शब्दों में "इतिहास लेखन में सुटोनियस का मुख्य योगदान ऐतिहासिक आत्मकथा है।"

मेरियस मैक्सिमस (165-230 ई.)-

मैक्सिमस ने सुटोनियस की परम्परा को जारी रखा। उसने भी सम्राटों की आत्मकथाओं की रचना की। उसकी कृतियाँ काफी प्रशंसनीय है।

अमीनस मार्सेलिनस (380-400 ई.)-

मार्सेलिनस रोम की सेना के साथ लड़ चुका था। उसने 96 से 378 ई. तक का इतिहास लिखा है। उसकी अधिकांश कृतियाँ खो गई हैं।

उपर्युक्त सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि रोमन इतिहासकार यूनानी साहित्य शास्त्रियों से काफी प्रभावित थे। इतिहास लेखन में उनका कोई मौलिक योगदान नहीं था, किन्तु उनका विवरण पूर्वाग्रहों से पूर्ण स्वतन्त्र है और इनमें पर्याप्त विश्वसनीयता है।

भारतीय परम्परा में अन्तर-

भारतीय इतिहास परम्परा में इतिहास की परिभाषा के अनुकूल ऐतिहासिक घटनाओं का लेखन नहीं है, परन्तु भारतीय वैदिक साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं तथा सामाजिक संस्थाओं के विवरण भी मिलते हैं। भारतीय साहित्य में सुदूर अतीत को भी सुरक्षित रखा है।

अतीत दो प्रकार का होता है, (1) मृत अतीत जैसे घटनाएँ तथ्य व्यक्ति (2) जीवन्त अतीत परम्पराओं का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में सम्प्रेषण।

निश्चित रूप से परम्पराओं के प्रति चेतना तथा उत्तरदायित्व की भावना भारतीयों में विशेष रूप से विद्यमान थीं। समय तथा समाज की आवश्यकताओं के अनुरुप भारतीयों के इतिहास की पुस्तकों को नवीनतम बनाने का प्रयास किया है। भारतीय परम्परा के अनुसार इतिहास एक चलायमान चक्र है। इसके अनुसार सतयुग (क्रत), त्रेता, द्वापर एवं कलियुग चार युग बतलाये गए हैं। यूनानी, रोमन अवधारणा में भी युग चक्र की कल्पना को गई है।

हेसियड ने धातुओं के नाम चार युग बताए हैं- (1) स्वर्ण युग (Golden age) (2) रजत युग (Siliver Age) (3) कांस्य युग (Bronze Age) (4) लौह युग (Iron Age)

यूनानी, रोमन परम्परा में महाकाव्यों के माध्यम से ऐतिहासिक घटनाओं को बताया गया है। भारतीय परम्परा में भी साहित्य के माध्यम से राजनीतिक व सामाजिक घटनाओं का विवरण मिलता है। बौद्धजैन दर्शन में भी धार्मिक ग्रन्थों में ऐतिहासिक घटनाओं का विवरण मिलता है। भारतीय परम्परा में धर्मकर्म की प्रधानता मानी गई है। अवसरवाद का सिद्धान्त भारतीय देन है।

रोमन इतिहासकार पोलिवियस ने इतिहास अवधारणा के सार्वभौमिक स्वरूप को स्वीकार किया है। अतीत का वर्तमान में सातत्य ही इतिहास है। रोमन साम्राज्य के माध्यम से उसने सम्पूर्ण विश्व को एक शासक के नियन्त्रण में लाने का स्वण देखा था। उसने भी भारतीय परम्परा के अनुसार इतिहास के युग चक्रवादी सिद्धान्त को मान्यता दी है।

प्राकृतिक नियम के अनुसार उत्थान, विकास, पतन तथा अन्त का क्रम इतिहास की गति को प्रभावित करता है। मानव के सुख, दुःख को भाग्य की अपेक्षा, काल तथा परिस्थितियों के कारण बतलाया है। ऐतिहासिक घटनाएँ मानवीय चरित्र तथा इच्छाओं के अनुसार होती हैं। घटनाओं में कार्य व कारण का घनिष्ठ सम्बन्ध है।

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