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इटली के एकीकरण में काबूर का योगदान

इटली के एकीकरण में काबूर का योगदान

इटली के एकीकरण में काबूर ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उसने अपने कूटनीतिज्ञ चातुर्य से इंग्लैण्ड और फ्रांस का सहयोग प्राप्त किया और उनकी सहायता से स्वतन्त्र इटली का निर्माण किया। वह इस आन्दोलन का मस्तिष्क कहलाता है।

काबूर की संक्षिप्त जीवनी-

काबूर का जन्म सन् 1801 ई. में पीडमांट के एक सामन्त साइकेल बेन्सी के घर में हुआ था। उसने ट्यूरन की सैनिक अकादमी में शिक्षा प्राप्त की। अपनी शिक्षा समाप्त करने के पश्चात् वह सेना में इन्जीनियर के पद पर नियुक्त हुआ, किन्तु अपने उदारवादी विचारों के कारण 1831 में उसने सेना से त्यागपत्र दे दिया और अपनी जमींदारी का कार्य संभालने लगा। 1847 में उसने 'इल रिसर्जिमेंटो' नामक पत्र निकालना शुरू किया। इस पत्र में उसने इटली के एकीकरण के सम्बन्ध में कई लेख लिखे। 1848 में वह साडीनिया-पीडमांट की संसद का सदस्य चुना गया और 1850 में वह वित्त एवं उद्योग मंत्री नियुक्त हुआ। 1852 में वह प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया और 1861 तक इस पद पर कार्य करता रहा।

इटली के एकीकरण में काबूर का योगदान
इटली के एकीकरण में काबूर का योगदान


काबूर के आन्तरिक सुधार-

काबूर पीडमांट-साडौंनिया को एक आदर्श राज्य बनाना चाहता था जिससे इटली के अन्य राज्य उसे नेता स्वीकार कर लें। अत: उसने पीडमांट साडोंनिया में अनेक राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक सुधार किये। उसने संवैधानिक शासन को दृढ किया और कानून सम्बन्धी अनेक सुधार किये। उसने कृषि, उद्योग, व्यापार के विकास के लिए अथक प्रयास किये। उसने स्वतन्त्र व्यापार की नीति के आधार पर अनेक यूरोपीय राज्यों से व्यापारिक सन्धियाँ कीं। उसने कारखानों को सरकारी सहायता दी और रेलों, सड़को तथा नहरों का निर्माण किया। चर्च की बहुत-सी जमीन छीनकर उसका सार्वजनिक उपयोग किया गया। उसने वित्त विभाग में कई सुधार किये और टैक्सों के द्वारा राज्य की आय में वृद्धि की। उसने चर्च के विशेषाधिकारियों का दमन किया। उसने जेसुईट पादरियों को राज्य से निकाल दिया और चर्च के मठों को समाप्त कर दिया। इससे अतिरिक्त उसने 90 हजार सैनिकों की एक अनुशासित और प्रशिक्षित सेना संगठित की।

काबूर के उद्देश्य-

(1) काबूर की मान्यता थी कि इटली का एकीकरण सार्डीनिया-पीडमांट के नेतृत्व में किया जाना चाहिए।

(2) सार्जीनिया-पीडमांट को राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, बौद्धिक सभी दृष्टिकोणों से आदर्श राज्य बनाया जाये।

(3) इटली को आस्ट्रिया के प्रभुत्त्व से मुक्ति दिलायी जाये तथा आस्ट्रिया को पराजित करने के लिए यूरोप के शक्तिशाली देशों से सहायता प्राप्त की जाये।

काबूर की मान्यता थी कि यूरोपीय देशों की सहायता के बिना आस्ट्रिया को इटली से बाहर नहीं निकाला जा सकता। अतः उसने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इंग्लैण्ड, फ्रांस आदि देशों से सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न किया। वह फ्रांस से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक मानता था। उसने कहा था, "कोई माने या न माने हमारा भाग्य फ्रांस पर निर्भर है।"

प्रो. हेजन का कथन है, "काबूर का मूल उद्देश्य और जीवन की निरन्तर साधना यह थी कि किसी महान् शक्ति को इटली का मित्र बना लिया जाये। इसी एक चीज ने उसके सारे कार्यों और इच्छाओं को अनुप्रमाणित किया। इस कठिन उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह वर्ष-प्रतिवर्ष प्रयत्न करता रहा और ऐसी राजनयिक प्रतिभा का परिचय दिया कि अन्त में वह अपने समय का अद्वितीय राजनयिक सिद्ध हुआ। उसकी यह कहानी अत्यधिक आश्चर्यजनक और चित्ताकर्षक है। एक ओर तो उसको निर्णय-शक्ति व्यावहारिक सूझबूझ, स्पष्ट, सूक्ष्म और तीव्र विचार-शक्ति अद्भुत थी, दूसरी ओर उसमें कल्पना-शक्ति, दुर्बलता, साहस और लोहवत् सुदृढ़ता देखने को मिलती थी। शासन-कला और कूटनीति के इस महान् आश्चर्य के चरित्र की कुछ और भी विशेषताएँ थीं। इटली और यूरोप के राजनीतिक जीवन के सम्बद्ध तत्त्वों और व्यक्तियों की उसे सही और गम्भीर जानकारी थी, अन्तर्राष्ट्रीय मंच में तेजी से बदलने वाले दृश्यों को समझने की उसमें अद्भुत क्षमता थी और अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए साधनों को जुटाने में वह कभी असफल नहीं हुआ। यद्यपि वह 50 लाख की जनसंख्या के छोटे-से राज्य का मंत्री था, किन्तु उसका व्यक्तित्व यूरोप में सर्वाधिक गतिशील, सक्रिय और शक्तिशाली था।"

क्रीमिया का युद्ध-

1845 ई. में रूस और टर्की के बीच क्रीमिया का युद्ध छिड़े गया। इस युद्ध में इंग्लैण्ड और फ्रांस ने टर्की का साथ दिया। काबूर ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए इंग्लैण्ड, फ्रांस और टर्की की सहायता के लिए अपने 18 हजार सैनिक क्रीमिया भेज दिये। इस युद्ध में रूस की पराजय हुई और 1856 में पूर्वी समस्या पर विचार करने के लिए पेरिस में एक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में काबूर को भी आमंत्रित किया गया। काबूर ने सम्मेलन के समक्ष इटली की दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का चित्र प्रस्तुत किया और आस्ट्रिया को उसके लिए उत्तरदायी ठहराया। उसने घोषणा की कि जब तक इटली का एकीकरण पूरा नहीं हो जाता, तब तक यूरोप में शांति स्थापित नहीं हो सकती। इस सम्मेलन में काबूर की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और उसे दो प्रमुख राष्ट्रों, इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की सहानुभूति भी प्राप्त हो गई। अब इटली का प्रश्न अन्तर्राष्ट्रीय प्रश्न बन गया। अतः उचित ही कहा गया है कि, "क्रीमिया के दलदल में इटली रूपी कमल का जन्म हुआ।"

फ्रांस से समझौता-

क्रीमिया के युद्ध के पश्चात् काबूर ने फ्रांस के सम्राट नेपोलियन तृतीय से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के प्रयल शुरू कर दिये। 21 जुलाई, 1858 ई. को काबूर ने नेपोलियन तृतीय से 'प्लाम्बियर्स' नामक स्थान पर भेंट की और उससे एक समझौता किया जिसे 'प्लाम्बियर्स का समझौता' कहते हैं। इस समझौते के अनुसार निम्नलिखित निर्णय किये गये-

(1) यदि आस्ट्रिया पौडमांट साडौँनिया के विरुद्ध युद्ध प्रारम्भ करे तो फ्रांस पौडमांट-साडौंनिया की सहायता के लिए दो लाख सैनिक भेजेगा।

(2) आस्ट्रिया को लोम्बार्डी और वेनेशिया से निकाल दिया जायेगा और ये दोनों प्रदेश साडनिया को दे दिये जायेंगे।

(3) अम्बिया और टस्कनी को मिलाकर एक नया राज्य बनाया जायेगा।

(4) पोप के अधीन इटली का एक संघ बनाया जायेगा।

(5) इस सहायता के बदले फ्रांस को सेवायें और नीस के प्रदेश दे दिये जायेंगे तथा पौडमांट-साडौंनिया के सम्राट विक्टर एमानुअल द्वितीय की पुत्री क्लोराइल्ड का विवाह नेपोलियन तृतीय के चचेरे भाई जेरोम बोनापार्ट से कर दिया जायेगा।

आस्ट्रिया से युद्ध-

प्लाम्बियर्स के समझौते के पश्चात् काबूर ने आस्ट्रिया को भड़काने के लिए सैनिक तैयारियाँ आरम्भ कर दीं। अतः आस्ट्रिया ने 23 अप्रैल, 1859 को सार्जीनिया को एक अल्टीमेटम भेजा, जिसमें उससे तीन दिन के अन्दर निःशस्त्रीकरण करने के लिए कहा गया। काबूर ने आस्ट्रिया की माँग को अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप आस्ट्रिया ने साडौंनिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करदी। नेपोलियन तृतीय ने अपने वचन का पालन करते हुए आस्ट्रिया के विरुद्ध दो लाख सैनिक भेज दिये। साडीनिया-पीडमांट और फ्रांस की सेनाओं ने आस्ट्रिया को मैगेण्टा, साल्फेरिनों तथा सेनमर्टिनों के युद्धों में बुरी तरह से पराजित किया।

विलाफ्रेंका की सन्धि-

इन विजयों के परिणामस्वरूप आस्ट्रिया को लोम्बार्डी खाली करना पड़ा। परन्तु नेपोलियन तृतीय ने 11 जुलाई, 1859 को आस्ट्रिया के साथ विलाफ्रेंका की विराम-सन्धि के अनुसार युद्ध बन्द कर दिया। इन सन्धि की प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित थी-

(1) लाम्बार्डी पर पीडमांट साडीनिया का अधिकार स्वीकार कर लिया गया।

(2) वेनेशिया पर आस्ट्रिया का अधिकार बना रहेगी।

(3) मध्य इटली के राज्यों-परमा, मोडेना और टस्कनी में वहाँ के शासकों को पुनः स्थापित करने का निर्णय किया गया।

काबूर नेपोलियन तृतीय के विश्वासघात से बड़ा क्षुब्ध हुआ और उसने सम्राट विक्टर एमानुअल द्वितीय को युद्ध जारी रखने का परामर्श दिया, परन्तु सम्राट ने उसके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इस पर उत्तेजित होकर काबूर नें अपने पद से त्यागपत्र दे दिया परन्तु कुछ समय पश्चात् उसने अपना त्याग-पत्र वापस ले लिया। अन्त में विक्टर एमानुअल ने आस्ट्रिया और फ्रांस के साथ मिलकर ज्यूरिक की सन्धि पर हस्ताक्षर का दिये। ज्यूरिक को सन्धि के द्वारा विलाफ्रेंका की विराम-सन्धि की शर्तों की पुष्टि की गई। ज्यूरिक को सन्धि के द्वारा लोमार्डी का प्रदेश पीडमांट-सार्डीनिया को दिला दिया गया और इस प्रकार इटली के एकीकरण का प्रथम चरण समाप्त हो गया।

मध्य इटली में एकीकरण की लहर-

आस्ट्रिया की पराजय से मध्य इटली में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। अतः परमा, मोडेना, टस्कनी की जनता ने विद्रोह कर दिया। पोप राज्य में बोलोग्ना तथा रोमैग्ना में भी विद्रोह हो गये। इन राज्यों की जनता ने निश्चय किया इन राज्यों को सार्डीनिया-पीडमांट में सम्मिलित कर दिया जाये। आस्ट्रिया ने इसका विरोध किया, परन्तु काबूर ने इंग्लैण्ड और फ्रांस की सहायता से आस्ट्रिया के विरोध को निष्फल कर दिया। उसने फ्रांस को सेवाय तथा नीस के प्रदेश देकर सन्तुष्ट कर दिया।

मार्च, 1850 में मध्य इटली के राज्यों में एकीकरण के सम्बन्ध में जनमत-संग्रह कराया गया। परमा, मोडेना, टस्कनी, रोमैना की जनता ने भारी बहुमत से सार्डीनिया-पीडमांट के राज्य में मिलाने का निर्णय किया। परिणामस्वरूप ये राज्य सार्जीनिया-पीडमांट में सम्मिलित कर लिए गये। सेवाय तथा नीस के प्रदेश फ्रांस को दे दिये गये। इस प्रकार काबूर की नीति के फलस्वरूप एक वर्ष में सार्जीनिया-पीडमांट का क्षेत्रफल पहले से दुगुना हो गया। 2 अप्रेल, 1860 को विक्टर एमानुअल ने ट्यूरिन मे प्रथम राष्ट्रीय संसद का उद्घाटन करते हुए कहा था, “अब इटलीवासियों के इटली का जन्म हुआ है।"

दक्षिण इटली में विद्रोह-

1860 ई. में काबूर ने कहा था, "मुझे उत्तर की ओर से कूटनीति द्वारा एकीकरण नहीं करने दिया गया। अब मुझे क्रांति का सहारा लेकर दक्षिण की ओर से इटली का एकीकरण करना होगा।" काबूर की गुप्त सहायता पाकर 1860 में गेरीबाल्डी ने नेपल्स और सिसली पर भी अधिकार कर लिया। इन दोनों राज्यों को भी सार्डीनिया-पीडमांट में सम्मिलित कर लिया गया। इस प्रकार वेनेशिया और रोम को छोड़कर सम्पूर्ण इटली एकीकृत हो चुका था। 6 जून, 1861 ई. को काबूर की मृत्यु हो गई।

काबूर का मूल्यांकन-

काबूर 19वीं शताब्दी का एक महान् कूटनीतिज्ञ था। उसने इटली के एकीकरण में सर्वाधिक योगदान दिया। उसने आस्ट्रिया के विरुद्ध यूरोप को प्रमुख शक्तियों का समर्थन प्राप्त करके अपनी कूटनीतिज्ञ प्रतिभा का परिचय दिया। वह एक सूझबूझ वाला प्रतिभा सम्पन्न राजनीतिज्ञ था, जिसने मेजिनी की प्रेरणा को कूटनीति का बल दिया। इसने गेरीबाल्डी की तलवार को राष्ट्रीय शस्त्र बनाने का अवसर प्रदान किया। यदि काबूर न होता तो मेजिनी की प्रेरणा और गेरीबाल्डी का साहस व्यर्थ जाता।"

शेपिरो का कथन है, "उसकी समानता का उस समय कोई भी कूटनीतिज्ञ नहीं था, जो अपने कुशल हाथों से शत्रुओं को फांसने का जाल गूंथ सके।" एलीसन फिलिप्स का कथन है, “एक राष्ट्र के रूप में इटली काबूर की देन है। अन्य नेताओं ने भी इटली की स्वतन्त्रता के लिए बहुत प्रयत्न किया किन्तु उसे सम्भव बनाना वही जानता था। उसने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता एवं एकीकरण को दलगत राजनीति से अलग रखा और कोरे आदर्शवाद के भ्रम में पड़ने नहीं दिया। उसने इटली को संगठित शक्ति, राष्ट्रीय ध्वज, सुदृढ़ शासन, विदेशी राष्ट्रों की मित्रता प्रदान की।" प्राण्ट एवं टेम्परले के अनुसार, "काबूर ने अपने सूक्ष्म मस्तिष्क द्वारा इटली को एक सुव्यवस्थित, स्वतन्त्र तथा संगठित बना दिया।"

ट्रेविलियम का कथन है, “1860 ई. में पोप के राज्य पर आक्रमण काबूर की राजनैतिक तथा कूटनीतिक दूरदर्शिता का परिचायक था। वह चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था, परन्तु उसने उन्हें घुटने टेकने के लिए विवश किया। उसने नव-निर्मित उत्तरी इटली के विरुद्ध उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया को नष्ट किया। उसने मध्य इटली के राज्यों को स्वतन्त्र किया। उसने गेरीबाल्डी के राज्यों से लाभ उठाया। उसने राजतन्त्र की पुनः प्रतिष्ठा स्थापित की तथा विद्रोह को क्रांति में परिणित नहीं होने दिया तथा उसने इटली का एकीकरण किया।प्रो. केटलबी का कथन है, “मेजिनी एक अव्यावहारिक आदर्शवादी था तथा गेरीबाल्डी महान् योद्धा था परन्तु काबूर के बिना मेजिनी का आदर्शवाद तथा गेरीबाल्डी की वीरता निष्फल लड़ाई और निराशा के इतिहास में एक अध्याय और बढ़ा देती। वास्तव में काबूर द्वारा ही इटली का एकीकरण सम्पन्न हुआ। उसने मेजिनी की प्रेरणा को कूटनीतिक शक्ति में बदल दिया।

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