कार्ल मार्क्स की ऐतिहासिक विचारधारा
कार्ल मार्क्स की ऐतिहासिक विचारधारा ने सामाजिक विज्ञान की सभी धाराओं, जैसे इतिहास, राजनीतिशास्त्र,
अर्थशास्त्र आदि को काफी प्रभावित
किया है। यही नहीं विश्व इतिहास की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ भी इससे
प्रभावित हुई हैं।
मार्क्सवादी इतिहास-लेखन का
तात्पर्य मार्क्सवादी विचारधारा से प्रभावित इतिहास-लेखन से है। मार्क्सवादी
इतिहास लेखन या ऐतिहासिक भौतिकवादी इतिहास लेखन मार्क्सवाद
से प्रभावित इतिहास लेखन की एक पद्धति है।
मार्क्स का मानना था कि अब तक सभी विद्वानों ने समाज के बारे में बहुत कुछ लिखा है, परन्तु समाज को प्रगति की दिशा में बदलने के बारे में विशेष चिन्तन का अभाव है, जबकि मुख्य प्रश्न समाज को बदलने का है।
मार्क्स समाज के महान व्यक्तियों के
क्रियाकलापों को अधिक महत्त्व नहीं देता है। उसने समाज के आन्तरिक संगठन व आन्तरिक
संघर्ष को ही देखने का प्रयास किया है। मार्क्स ने आदर्शवादी
व उदारवादी विचारधारा का विरोध किया है। उनका कहना है कि किसी भी समाज के
इतिहास को समझने के लिए उस समाज विशेष के उत्पादन पद्धति की जानकारी आवश्यक है।
इसमें केवल उत्पादन ही नहीं बल्कि स्वामित्व संबंधी प्रश्न को भी समझना आवश्यक है।
इसी के आधार पर विभिन्न वर्गों के बीच संबंधों की जानकारी की जा सकती है। सामाजिक
वर्गों के बीच अन्तर्विरोध के कारण समाज प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित
होता है। मार्क्स का मानना है कि "समूचा इतिहास वर्ग संघर्ष का
इतिहास है।"
आधुनिक इतिहास लेखन में
मार्क्सवादी विचारधारा के स्वर उन्नीसवीं शताब्दी में मुखरित होने
लगे थे। मार्क्स के उपरान्त, ऐंजिल, लेनिन
आदि अनेक विद्वानों ने इस विचारधारा को और अधिक परिपक्व किया। रूस की साम्यवादी
क्रान्ति के बाद वैज्ञानिक समाजवाद को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वैधानिकता
प्राप्त हुई। इसी क्रान्ति के उपरान्त रूस ही नहीं अपितु विश्व के अनेक देशों में, मार्क्सवादी लेखन की प्रक्रिया व्यवस्थित रूप
से प्रारंभ हुई।
मार्क्सवादी इतिहास लेखन |
शीत युद्ध के उपरान्त विश्व दो गुटों
(खेमों) में बँट गया। इस कारण सोवियत संघ की इस विचारधारा को और भी
अधि प्रोत्साहन मिला। किन्तु हाल के ही कुछ वर्षों से मार्क्सवादी इतिहास लेखन
में रूढ़िवादी इतिहास लेखन को नकारा गया है, क्योंकि रूढ़िवादी मार्क्सवाद
ने आर्थिक पक्षों को संकुचित दायरे में व्याख्यायित किया था। राष्ट्रवाद के
प्रति भी सकारात्मक रुख नहीं रखा। 20वीं शताब्दी में फ्रांस की एक
महत्त्वपूर्ण पत्रिका अनाल्स में रूढ़िवादी मार्क्सवाद की आलोचना की गई।
धीरे-धीरे अनेक मार्क्सवादी विचारकों ने नये मार्क्सवादी इतिहास लेखन
के दृष्टिकोण को अपनाना प्रारंभ किया।
भारतीय मार्क्सवादी
इतिहासकारों ने नवीन विचारों के आधार पर इस प्रक्रिया को अपनाया। प्रारम्भिक मार्क्सवादी
इतिहासकारों में रजनीपाम दत्त 'इण्डिया
टूडे' के
लेखक सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रहे। रजनीपाम दत्त द्वारा रूढ़िवादी, मार्क्सवादी
विचारधारा के अन्तर्गत भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन को बुर्जुआ आन्दोलन बताया गया
था। उनके इतिहास-लेखन में अन्तर्विरोध एवं रूपाकार ग्रहण कर रहे राष्ट्रवाद' की
प्रक्रिया को ध्यान में रखा गया है। वे राष्ट्रवादी इतिहासकारों के समान
भारतीय समाज के अन्तर्विरोधों को भी स्वीकार करते हैं। रजनीपाम दत्त
की तुलना में हाल ही के मार्क्सवादी विचारकों ने अधिक प्रगतिशील तरीके से इतिहास
लेखन का कार्य किया है।
आधुनिक मार्क्सवाद से
प्रभावित इतिहासकारों ने भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन को अखिल भारतीय एवं व्यापक
स्वरूप की प्रशंसा की,
परन्तु उन्होंने भारतीय समाज के अन्तर्विरोधों को भी स्वीकार
किया है। इन इतिहासकारों ने सामाजिक अन्तर्विरोधों को एक प्रगतिशील शक्ति के रूप
में देखने का प्रयास किया है।
इस प्रकार की विचारधारा विपिनचन्द्र के इतिहास
लेखन में दृष्टिगोचर होती है। विपिनचन्द्र
ने मार्क्सवादी विचारधारा के साथ नवीन पक्षों को भी सम्मिलित किया है। जैसे-
आधुनिक भारत के अन्तर्विरोध, जनआन्दोलन का वर्गीय चरित्र, बुर्जुआ
वर्ग, सामाजिक वर्गों के संबंध, बुर्जुआ-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कांग्रेस
का नेतृत्व एवं पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच संबंध, राष्ट्रीय जन आन्दोलन
की राजनीति एवं आन्दोलन का जन आधारित स्वरूप आदि।
निःसन्देह विपिनचन्द्र आदि का इस प्रकार का लेखन रजनीपाम
दत्त एवं ए. आर. देसाई के परंपरागत लेखन से भिन्न है। नये मार्क्सवादी
इतिहासकार नवीन विचारधारा से युक्त इतिहास लिख रहे हैं। सब अल्टर्न स्कूल
वाले इतिहासकारों ने इस प्रकार नवीन इतिहास लेखन प्रारंभ किया है।
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