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भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता की भूमिका

साम्प्रदायिकता का अर्थ

साम्प्रदायिकता से आशय कुछ लोगों की ऐसी प्रवृत्ति से है जिसमें अपने ही सम्प्रदाय या जाति या धर्म के लोगों को महत्त्व देने, लाभ पहुंचाने तथा उन्हीं के साथ मेल-जोल रखने की भावना पाई जाती है और कभी-कभी इसके साथ अन्य सम्प्रदायों के प्रति वैर-भाव भी जुड़ जाता है।

दूसरे शब्दों में, साम्प्रदायिकता के अन्तर्गत वे सभी भावनाएँ व क्रियाकलाप आ जाते हैं जिनमें किसी धर्म या भाषा के आधार पर किसी समूह विशेष के हितों पर बल दिया जाए, उन हितों को राष्ट्रीय हितों से भी अधिक प्राथमिकता दी जाए तथा उस समूह में पृथकता की भावना उत्पन्न की जाए या उसको प्रोत्साहन दिया जाये। साम्प्रदायिकता की भावना के अन्तर्गत कोई सम्प्रदाय अपने आपको तथा अपनी परम्पराओं को दूसरे से श्रेष्ठ समझते हैं और दूसरे सम्प्रदायों के प्रति घृणा को बढ़ावा देते हैं।

इस तरह "साम्प्रदायिकता से आशय वर्तमान समय की सामाजिक एवं मानसिक दुर्बलता अथवा दुर्भावना से है, अर्थात् साम्प्रदायिकता लोगों की संकीर्ण मानसिकता को प्रदर्शित करती है, इस मानसिकता से ग्रसित व्यक्ति अपने समुदाय विशेष को श्रेष्ठ एवं अन्य समुदायों को हीन समझता है और अकारण ही दूसरे समुदाय के लोगों के लिए प्रतिशोध की भावना पाल बैठता है। हिन्दू महासभा, मुस्लिम लीग, मुस्लिम मजलिस, बजरंग दल और अन्य कुछ संगठनों को साम्प्रदायिक कहा जायेगा, क्योंकि वे धार्मिक कट्टरता के भाव को अपनाकर धार्मिक समूहों के अधिकारों एवं हितों को राष्ट्रीय हितों के भी ऊपर रखते हैं।"

स्वतन्त्र भारत में साम्प्रदायिकता के कारण

भारत में साम्प्रदायिकता के विद्यमान रहने के कई कारण हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(1) धर्मान्धता और पृथक्करण की भावना-

सम्प्रदाय की धार्मिक कट्टरता भारत में साम्प्रदायिकता का एक मुख्य कारण है। धार्मिक कट्टरता ने भारत सरकार से अपने परम्परावादी स्वरूप को बनाये रखने सम्बन्धी अनेक माँगें की हैं। अलीगढ़ विश्वविद्यालय की स्थिति को बनाये रखने, निर्वाचन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की स्थापना पर जोर, मुस्लिम सेना का गठन आदि तत्त्व उनकी कट्टरता के द्योतक हैं। उनकी इस धार्मिक कट्टरता का लाभ लेने के लिए उनके कुछ स्वार्थी नेता साम्प्रदायिक दंगे कराने में सफल हो जाते हैं।

(2) मुसलमानों का आर्थिक एवं शैक्षणिक पिछड़ापन-

ब्रिटिश काल से ही भारतीय मुसलमान आर्थिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए रहे। स्वाधीन भारत में भी इस दृष्टि से उनका पिछड़ापन बरकरार है। शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े होने के कारण सरकारी नौकरियों, व्यापार और उद्योग-धन्धों में उनकी स्थिति नहीं सुधर पाई। इससे उनमें असन्तोष बढ़ा, उनका मनोबल गिरा। इस असन्तोष ने जब उग्र रूप धारण किया तो वह साम्प्रदायिकता के रूप में प्रस्फुटित हुआ।

(3) सरकार की दोषपूर्ण नीतियाँ-

जहाँ भारत में धार्मिक कट्टरता साम्प्रदायिकता के लिए उत्तरदायी है, वहाँ भारत सरकार की दोषपूर्ण नीतियाँ भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं। उदाहरण के लिए, जब कभी कहीं साम्प्रदायिक दंगे हुए, वहाँ सरकार ने निष्पक्ष जाँच न कराकर केवल जनसंघ, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को इसका उत्तरदायी बताकर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर ली। इसके साथ ही साम्प्रदायिक तुष्टीकरण की नीति, संकट के समय भारतीय मुसलमानों पर अविश्वास व्यक्त करना आदि सरकारी रवैये ने साम्प्रदायिकता को बढ़ाने में योग दिया है।

(4) संकुचित हिन्दू राष्ट्रवाद-

भारत में कुछ हिन्दू संगठन भी हिन्दुओं में धार्मिक कट्टरता के लिए उत्तरदायी है। इन हिन्दू संगठनों ने भारतीयकरण, हिन्दू-संस्कृति, हिन्दू-भाषा, हिन्दू आन-बान और शान के नारों द्वारा साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया है।

(5) आर्थिक विकास दोषपूर्ण-

भारतीय आर्थिक विकास की दोषपूर्ण नीति तथा मुसलमानों की दुर्बल आर्थिक स्थिति, धर्मान्धता आदि ने साम्प्रदायिकता को फैलाने के अवसर प्रदान किए हैं। एक तरफ सरकार की आर्थिक विषमता भरी नीतियों से असन्तोष, दूसरी ओर दयनीय आर्थिक दशा और तीसरी तरफ अशिक्षा एवं धर्मान्धता आदि सभी ने मिलकर साम्प्रदायिक भावना को उद्वेलित करने में योगदान दिया।

(6) चुनाव में समुदायबद्धता के दृष्टिकोण का विकास-

समुदायबद्ध चुनावी दृष्टि की बढ़ती हुई प्रवृत्ति ने भी साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया है। इस प्रवृत्ति के कारण जातिवाद, धर्मवाद, भाषावाद, संस्कृतिवाद के आधार पर अनेक समुदाय उभरे हैं। इसके साथ ही अल्पसंख्यकवाद तथा आरक्षण नीति के माध्यम से कुछ दल यही धारणा व्यक्त करते रहे कि केवल उनकी सरकार ही इनके हितों की रक्षा कर सकती है। दूसरे शब्दों में, इन दलों ने हिन्दू-कट्टरता और हिन्दू बहुमत के भय को बार-बार दिखाकर साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि व्यक्तिगत स्वतन्त्र मतदान पर साम्प्रदायिक मतदान की भावना बलवती होती गई जिसकी परिणति साम्प्रदायिकता के भयानक द्वेष के रूप में हो रही है।

bharat mein sampradayikta, भारत में सांप्रदायिक राजनीति के उदय के कारण
भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता की भूमिका

(7) विदेशी धन तथा पाकिस्तान का प्रचार-

उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त खाड़ी के देशों से भारत में जो विदेशी धन आ रहा है, उसने भी साम्प्रदायिक वातावरण को बनाये रखने में अत्यधिक योगदान दिया है। इस धन के द्वारा कट्टरपंथियों ने हरिजनों को धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया, केरल में सामूहिक धर्म परिवर्तनों के प्रयास किये, फलतः साम्प्रदायिकता में वृद्धि हुई। इसके अलावा पाकिस्तान ने अपने रेडियो प्रसारण, भाषणों और पत्र-पत्रिकाओं द्वारा समय-समय पर भारतीय मुसलमानों के नाम पर अनर्गल प्रलाप किया है, जिसका भारतीय मुसलमानों पर विपरीत प्रभाव पड़ता रहा है। इस प्रकार विदेशी धन तथा विदेशी प्रचार भी भारत की साम्प्रदायिता को बढ़ाने में योगदान देता रहा है। वर्तमान में पाकिस्तान ने प्रचार की स्थिति से भी आगे बढ़कर भारत में साम्प्रदायिक आधार पर गृहयुद्ध खड़ा करने के लिए आपराधिक षड्यन्त्रों की स्थिति को अपनाया है।

(8) दलीय एवं गुटीय राजनीति-

वर्तमान में साम्प्रदायिकता के विकास का एक अन्य प्रमुख कारण संकुचित तथा निहित स्वार्थों से प्रेरित दलीय और गुटीय राजनीति है। भारत के सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिकता को उभारने का कार्य करते आ रहे हैं। इन राजनीतिक दलों ने 'मुस्लिम लीग' को केरल की राजनीति में गले लगाया। ये कभी हिन्दू साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहित करते हैं और कभी मुस्लिम साम्प्रदायिकता को। 1950 से लेकर अब तक जो साम्प्रदायिक दंगे हुए, उनमें से अनेक का परोक्ष कारण दलीय, गुटीय तथा चुनावी राजनीति रहा है।

साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम तथा सीमाएँ

भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता के दुष्परिणाम व सीमाएँ इस प्रकार रहे हैं-

(1) आपसी द्वेष-

साम्प्रदायिकता से विभिन्न वर्गों में आपसी द्वेष को बढ़ावा मिलता है। जब हिन्दू और मुसलमान अपने-अपने हितों के लिए एक-दूसरे से लड़ते हैं तो आपस में द्वेष, वैमनस्य हो जाना स्वाभाविक है। यही द्वेष कभी भयंकर रूप धारण कर आतंक फैला देता है और समाज की शांति भंग कर देता है तथा समाज में हिंसा को बढ़ावा देता है।

(2) प्राण हानि-

साम्प्रदायिकता के कारण प्राण हानि भी अत्यधिक होती है। लगभग प्रत्येक साम्प्रदायिक दंगे में कुछ व्यक्तियों की जानें चली जाती हैं। रांची, श्रीनगर, बनारस, अलीगढ़, भिण्डी, हैदराबाद, मेरठ, मुम्बई, गुजरात आदि के साम्प्रदायिक दंगे इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।

(3) आर्थिक हानि-

साम्प्रदायिकता के कारण आर्थिक हानि भी होती है। साम्प्रदायिक तनाव और व्यापक दंगों से धन की अत्यधिक हानि होती है। गुजरात के फरवरी-मार्च, 2002 के दंगे इसके स्पष्ट प्रमाण हैं। इतना ही नहीं, साम्प्रदायिक संस्थाओं पर भी अत्यधिक धन व्यय किया जाता है।

(4) राष्ट्रीय एकता में बाधा-

साम्प्रदायिकता राष्ट्रीय एकता की गम्भीर शत्रु है। इसकी मूल धारणा ही यह है कि विभिन्न सम्प्रदाय के व्यक्ति अपने-अपने हितों के लिए संघर्ष करें।

(5) राजनीतिक अस्थिरता-

साम्प्रदायिकता की एक अन्य सीमा या दुष्परिणाम राजनीतिक अस्थिरता भी है। साम्प्रदायिकता वह परिस्थितियाँ उत्पन्न कर देती है, जिससे कि देश में राजनीतिक अस्थिरता आ जाती है।

(6) मनोवैज्ञानिक तनाव-

साम्प्रदायिकता के कारण विभिन्न सम्प्रदायों में मनोवैज्ञानिक तनाव का वातावरण बन जाता है जिसके कारण वे सम्प्रदाय बार-बार आक्रामक रुख अपनाने को मजबूर हो जाते हैं। उनमें एक-दूसरे के प्रति द्वेष का भाव उत्पन्न हो जाता है।

(7) राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा-

भारत एक बहुसम्प्रदायी देश है। इसमें अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक व्यक्ति निवास करते हैं और इन्हीं अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक के बीच जो साम्प्रदायिक झगड़े और तनाव पैदा होते हैं, उनमें भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को गम्भीर खतरा पैदा हो सकता है।

(8) अन्य सीमाएँ-

साम्प्रदायिकता से देश में आर्थिक उन्नति व औद्योगिक विकास में बाधा पड़ती है। अन्य राष्ट्रों से भारत के सम्बन्धों पर भी साम्प्रदायिकता से बुरा प्रभाव पड़ता है।

साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव

भारत में साम्प्रदायिकता की गम्भीर बुराई को दूर करने के लिए कुछ सुझाव निम्न प्रकार दिये जा सकते हैं-

(1) सरकार की सजगता-

भारत साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिए पहली आवश्यकता यह है कि प्रत्येक सरकार दलीय व चुनावी हितों में आकर साम्प्रदायिकता को प्रोत्साहित करने वाला कोई कार्य न करे।

(2) नैतिक मूल्यों की शिक्षा पर बल-

शिक्षा में धार्मिक शिक्षा के तत्त्वों के स्थान पर नैतिक मूल्यों के तत्त्वों का समावेश किया जाये।

(3) साम्प्रदायिक विरोधीवातावरण का निर्माण-

भारत में साम्प्रादयिकता के निराकरण के लिए यह आवश्यक है कि सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर एक-दूसरे के त्योहारों में सम्मिलित हों और एक-दूसरे की खुशियों में सम्मिलित हों। सभी सार्वजनिक स्थानों में सर्वधर्म समभाव का वातावरण पैदा किया जाये तथा उसे बिगाड़ने वाले तत्त्वों पर सभी सम्प्रदायों के लोग बड़ी निगरानी रखें।

(4) राजनीतिक दल व्यापक दृष्टिकोण अपनायें-

भारत में साम्प्रदायिकता के निराकरण के लिए यह आवश्यक है कि राजनीतिक दल व्यापक दृष्टिकोण अपनायें और चुनावी राजनीति के एक साधन के रूप में साम्प्रदायिक दृष्टिकोण को न अपनायें। वर्तमान में साम्प्रदायिकता में वृद्धि का मूल कारण राजनीतिक दलों का साम्प्रदायिक दृष्टिकोण है। भारत में साम्प्रदायिकता की समाप्ति के लिए राजनीतिक दलों को अपने दृष्टिकोणों में परिवर्तन लाना होगा।

(5) कानूनों की समानता-

सरकार को ऐसे कानून बनाने चाहिए जो प्रत्येक व्यक्ति पर समान रूप से लागू होते हों तथा उन्हें लागू करने में किसी प्रकार का जाति, धर्म, लिंग, भाषा व सम्प्रदाय सम्बन्धी भेदभाव नहीं बरतना चाहिए। इसके अतिरिक्त समान नागरिक आचार संहिता लागू की जाये।

(6) अन्य उपाय-

कुछ अन्य उपाय इस प्रकार हैं-

(i) भाषा के सन्दर्भ में सरकार नई नीति तैयार करे।

(ii) शिक्षण में विवेकशील मानवीय मूल्यों का समायोजन किया जाये।

(iii) अन्तर्जातीय विवाह पर बल दिया जाए।

(iv) पिछड़े हुए लोगों को सभी निकायों में समुचित प्रतिनिधित्व दिया जाये।

(v) गलत सूचनाएँ एवं अफवाहें फैलाने वाले समाचार-पत्रों पर प्रतिबन्ध लगाया जाए।

(vi) जबरदस्ती धर्म परिवर्तन पर कानूनी ढंग से रोक लगाई जाए।

(vii) धार्मिक स्थलों के दुरुपयोग को रोका जाये।

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