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जनजाति आन्दोलन में मोतीलाल तेजावत का योगदान

जनजाति आन्दोलन में मोतीलाल तेजावत का योगदान

(1) एक्की आन्दोलन का सूत्रपात-

मोतीलाल तेजावत भीलों का एक प्रसिद्ध नेता था। उसका जन्म 8 जुलाई, 1887 को मेवाड़ के कोलियारी गाँव में एक ओसवाल परिवार में हुआ था। 1922 में तेजावत के आग्रह पर जनजाति के लोगों ने निर्णय लिया कि जब तक वे अपनी स्थिति की जानकारी मेवाड़ के महाराणा को नहीं दे देते, तब तक कोई भी किसान भूमि-कर की रकम राजकोष में जमा नहीं करवायेगा। इससे आदिवासियों में एकता की भावना तीव्र हुई। यह आन्दोलन 'एक्की आन्दोलन' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

इस आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य भारी लगान, अन्यायपूर्ण लोगों तथा बैठ-बैगार से किसानों, आदिवासियों को मुक्त करवाना था। 1921 में बदराना में आयोजित एक बैठक में भीलों के प्रतिनिधियों ने यह निर्णय लिया कि जब तक अनुचित लाग-बाग और भारी लगान समाप्त नहीं होते, तब तक वे 'एक्को आन्दोलन' जारी रखेंगे।

(2) मेवाड़ के महाराणा को आवेदन-पत्र प्रस्तुत करना-

उदयपुर में तेजावत के नेतृत्व में लगभग 7-8 हजार किसान एकत्र हुए। तेजावत ने 21 सूत्री मांग-पत्र मेवाड़ के महाराणा के समक्ष प्रस्तुत किया जिसमें अनुचित लगान, लाग-बाग, बेगार आदि को समाप्त करने के लिए निवेदन किया गया था। महाराणा ने 18 माँगें स्वीकार कर लीं, परन्तु तीन प्रमुख माँगे जो जंगल में लकड़ी काटने, बैठ-बेगार एवं सूअर मारने से सम्बन्धित थीं, अस्वीकार कर दीं। महत्त्वपूर्ण माँगों को अस्वीकृति के कारण जनजाति के लोगों में तीव्र आक्रोश व्याप्त था।

(3) भील आन्दोलन का प्रसार-

मोतीलाल तेजावत ने अपना सारा समय भील समस्या की ओर लगा दिया। उसकी सलाह से समस्त भोमट क्षेत्र के भीलों ने जागीरदारों को कर देना बन्द कर दिया। जुलाई, 1921 में डूंगरपुर के महारावल ने अपने राज्य में बेगार समाप्ति के आदेश जारी कर दिए। परन्तु जागीरदारों ने अपने किसानों को किसी प्रकार की रियायतें नहीं दी। 19 अगस्त, 1921 को झाडोल के जागीरदार ने मोतीलाल तेजावत को भीलों को भड़काने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया परन्तु 7,000 भीलों ने तेजावत को मुक्त करवा लिया। पानरवा तथा जूडा जागीर के किसानों ने भी भूमिकर तथा बेगार देना बन्द कर दिया। जब झाड़ोल ठिकाने के अधिकारी लगान वसूली कर रहे थे, उस समय तेजावत 200 भीलों के साथ यहाँ पहुँच गया। उन्होंने अधिकारियों की पिटाई कर दी तथा उनसे एकत्रित राजस्व छीन लिया। इससे मेवाड़ का महाराणा बड़ा नाराज हुआ और उसने तेजावत को पकड़ने के लिए 500 रुपये इनाम की घोषणा की।

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जनजाति आन्दोलन में मोतीलाल तेजावत का योगदान

(4) भीलों के लिए सुविधाएँ प्रदान करना-

भील आन्दोलन की प्रबलता को देखते हुए खेरवाड़ा भोमट के पाँच प्रमुख ठिकानों ने भीलों के लिए कुछ रियायतों की घोषणा की। इन रियायतों के अन्तर्गत बेगार में ढील दी गई तथा लागों में कमी की गई। कोटड़ा भोमट के तीन ठिकानों-जूड़ा, ओगणा तथा पानरवा के जागीरदारों ने भी भीलों को कुछ रियायतें देने की घोषणा की। मेवाड़ सरकार ने खालसा क्षेत्र के किसानों को लगान में 12 से 20 प्रतिशत की छूट प्रदान की तथा बेगार में कमी कर दी।

(5) शासकों और जागीरदारों की दमनकारी नीति-

भील आन्दोलन की बढ़ती हुई लोकप्रियता से शासक और जागीरदार बड़े चिन्तित हुए और उन्होंने इस आन्दोलन को कुचलने के लिए दमनकारी नीति अपनाई। जब मोतीलाल तेजावत अपने 2,000 कार्यकर्ताओं के साथ ईडर राज्य में ठहरा हुआ था, तब 7 मार्च, 1922 को मेजर सूटन के नेतृत्व में मेवाड़ भील कोर ने उन्हें घेर लिया और गोलियों की बौछार शुरू कर दी जिससे 22 भील मारे गए तथा 20 घायल हो गए।

1922 में तेजावत ने सिरोही राज्य पहुँचकर वहाँ भीलों तथा गरासियों को संगठित करना शुरू कर दिया। इस पर 12 अप्रैल, 1922 को सिरोही राज्य की सेना तथा मेवाड़ भील कोर ने सम्मिलित रूप से सियावा नामक गाँव में आक्रमण किया। तीन गरासिये मारे गए और एक घायल हो गया। गरासियों के 40 घर नष्ट कर दिये गये।

जब सिरोही राज्य की रोहिड़ा तहसील के बालोलिया, भूला और नया वास गाँव के भीलों और गरासियों ने रबी तथा खरीफ फसलों का लगान नहीं दिया, तो 5 और 6 मई, 1922 को सिरोही राज्य की सेना तथा मेवाड़ भील कोर ने बालोलिया और भूला गाँवों को घेर लिया और आदिवासियों पर गोलियों की बौछार शुरू कर दो। इस गोलीकाण्ड में 11 भील व गरासिये मारे गए तथा अनेक घायल हुए। विवश होकर 23 मई, 1922 को सिरोही राज्य की सरकार को भीलों तथा गरासियों को कुछ रियायतें देनी पड़ी।

(6) मोतीलाल तेजावत द्वारा आन्दोलन जारी रखना-

सरकार की दमनकारी नीति के बावजूद मोतीलाल तेजावत ने भील आन्दोलन जारी रखा। तेजावत को गिरफ्तार करने के सभी प्रयास विफल हो गए। तेजावत ने अपने आन्दोलन को मुख्यत: सामाजिक व धार्मिक बताया। उन्होंने भील समाज में व्याप्त रूढ़ियों, अन्धविश्वासों और कुरीतियों के निवारण पर बल दिया। उन्होंने भीलों को चोरी और हत्या जैसे अपराधों से दूर रहकर सदाचार का जीवन व्यतीत करने के लिए प्रोत्साहित किया।

(7) तेजावत की गिरफ्तारी-

अन्त में गांधीजी की सलाह पर 4 जून, 1929 को मोतीलाल तेजावत ने ईडर राज्य की पुलिस के सामने अपने आपको गिरफ्तारी के लिए प्रस्तुत कर दिया। जुलाई, 1929 में तेजावत को मेवाड़ सरकार को सौंप दिया गया। मेवाड़ सरकार ने उसे केन्द्रीय कारगार में रखा और उस पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। तेजावत को 10 वर्ष कैद की सजा दी गई। तेजावत 6 अगस्त, 1929 से 23 अप्रैल, 1936 तक अर्थात् 7 वर्ष तक सेन्ट्रल जेल, उदयपुर में कैद रहा। उसे 23 अप्रैल, 1936 को जेल से रिहा कर दिया गया, परन्तु उसकी गतिविधियों पर निगाह रखी गई।

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