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बैराठ सभ्यता की खोज तथा प्रमुख विशेषताएँ

बैराठ की सभ्यता (Bairath Civilization)

प्राचीन मत्स्य देश की राजधानी जयपुर से लगभग 85 किमी. की दूरी पर विराट नगर है। यही क्षेत्र बैराठ की प्राचीन सभ्यता का भाग है। बैराठ सभ्यता की खोज दयाराम साहनी ने 1922 में की थी। बैराठ की सभ्यता पाँच मील लम्बी तथा 3-4 मील को चौड़ाई में फैले हुए भू-भाग पर एक घाटी में स्थित है। कस्बे के चारों तरफ टीले हैं, जिसमें से बीजक की पहाड़ी, भीमजी की डूंगरी व महादेव जी की डूंगरी ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

यहाँ से प्राप्त कौड़ियों और फलकों का विश्लेषण करने के पश्चात् पुरातत्ववेत्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि यह क्षेत्र सिन्धु घाटी का समकालीन है। मौर्यकाल और उसके बाद के समय के अवशेष यहाँ से उपलब्ध हो चुके हैं। ईदगाह, टकसाल भवन, मध्य युग का बना हुआ जैन मन्दिर इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि मध्य युग में भी यह क्षेत्र महत्व रखता था।

बैराठ सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ

(1) भवन निर्माण-

बैराठ की सभ्यता के भवन निर्माण के लिए मिट्टी की पकाई गयी इंटों का अधिक प्रयोग किया गया है। उत्खनन में प्राप्त यहाँ से जो ईंटें प्राप्त हुई हैं वे भिन्न आकार की हैं। इनसे चबूतरे, मठ, स्तूप और देवालय बनाये गये थे। ईंट 27" लम्बी, 14" चौड़ी और लगभग 3 इंच मोटी है। ये ईंटें मोहनजोदड़ो से मिली ईंटों के सदृश्य हैं। मठ के अवशेषों में 6-7 छोटे-छोटे कमरे के अवशेष मिले हैं। मठ की दीवार 20 इंच चौड़ी है। कमरों में आने-जाने के लिए तंग मार्ग तथा गोदाम, चबूतरों इत्यादि के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।

(2) मुद्राएँ-

बैराठ की सभ्यता के उत्खनन से यहाँ अनेक प्रकार की मुद्राएँ मिली है। इस सभ्यता में कुल 36 मुद्राएँ मिली हैं जो मिट्टी के एक भाण्ड के कपड़े में बँधी हुई मिली हैं। इनमें 8 पंच-मार्क चाँदी की मुद्राएँ हैं और 28 इण्डो-ग्रीक तथा यूनानी शासकों की हैं। बैराठ की सभ्यता में प्राप्त मुद्राओं से निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-

(i) मुद्राओं पर अंकित तथ्यों के आधार पर यह स्पष्ट किया जा सकता है कि 50 ई. तक बैराठ बौद्धों का निवास स्थान बना रहा होगा।

(ii) मुद्राएं इस बात का प्रमाण हैं कि इस क्षेत्र पर यूनानी शासकों का अधिकार था क्योंकि 28 मुद्राओं में से 16 मुद्राएँ राजा मिनेण्डर को हैं।

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(3) मृदभाण्ड-

उत्खनन में यहाँ मृदभाण्ड भी मिले हैं जो काफी अलंकृत हैं। कुछ पर रोचक ढंग से स्वास्तिक और त्रिरत्न चक्र के चिह्न हैं जो देखने में काफी आकर्षक लगते हैं। इसके अतिरिक्त पूजा-पात्र, थालियाँ, लोटे, मटके, खप्पर, नाचता हुआ पक्षी, घड़े, कंडियाँ आदि अनेक मिट्टी के बर्तन मिले हैं। पत्थर की थालियाँ तथा छोटे सन्दूक भी मिले हैं।

(4) स्तम्भ-

बौद्ध मठ के दक्षिण की ओर दो-तीन स्तम्भों के चुनार के पत्थर के पॉलिशदार टुकड़े बिखरे पड़े हैं। अनेक विद्वानों का मत है कि ये टुकड़े अशोक के स्तम्भों के हैं। डॉ. गोपीनाथ शर्मा के अनुसार, "सम्भवतः मिहिरकुल के आक्रमण के फलस्वरूप यहाँ के स्तम्भों को तोड़ा गया होगा।"

(5) गोल मन्दिर के अवशेष-

बैराठ सभ्यता के उत्खनन के गोल मन्दिर के अवशेष भी मिले हैं। इसके बारे में यह अनुमान लगाया जाता है कि सम्भवतः इस मन्दिर को अशोक ने निर्मित किया था। मन्दिर का फर्श ईंटों का है तथा किंवाड लकड़ी के हैं। किंवाड़ को लोहे की कीलों तथा कब्जों से टिकाया गया था। मन्दिर के अन्दर मृगमय पानी की मूर्तियाँ, खप्पर, धूपदान, थालियाँ, पूजा के पात्र भी प्राप्त हुए हैं। मन्दिर के नीचे चबूतरा बना हुआ है।

निष्कर्ष

इस प्रकार बैराठ की खुदाई से प्राचीन सभ्यता के ऐसे अनेक अवशेष मिले हैं जिनके यहाँ के आद्य ऐतिहासिक काल से लेकर 50 ई. तक की सभ्यता व संस्कृति के क्रमिक विकास का पता लगता है।

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