Heade ads

जनजाति आन्दोलन में गोविन्द गिरी की भूमिका

जनजाति आन्दोलन में गोविन्द गिरी की भूमिका

(1) गोविन्द गिरी द्वारा भीलों में अपनी शिक्षाओं को प्रचार करना-

गोविन्द गिरी का जन्म 1858 ई. में डूंगरपुर राज्य के बांसिया नामक गाँव में एक बनजारा परिवार में हुआ था। उसने बांसिया गाँव में धूनीनिशान' की स्थापना की और आसपास के भीलों को धर्म व नीति सम्बन्धी शिक्षा देना शुरू कर दिया। उसने भीलों को धर्म व सत्य के मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उसने भीलों से कहा कि वे अन्धविश्वासों से दूर रहें, चोरी-डकैती, छल-कपट आदि के जीवन का परित्याग करें और माँस तथा मदिरा का सेवन न करें।

(2) सम्प सभा की स्थापना-

जनजाति के लोगों को संगठित करने के उद्देश्य से गोविन्द गिरी ने 1883 ई. में 'सम्प सभा' की स्थापना की। उसने सम्प सभा के माध्यम से मेवाड़, डूंगरपुर, इंडर, गुजरात, विजय नगर और मालवा के भीलों को संगठित किया। उसने एक और तो भीलों में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रयत्न किया, तो दूसरी उन्हें अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया।

(3) जनजाति के लोगों में जागृति उत्पन्न करना-

1903 ई. में गुजरात स्थित मानगढ़ की पहाड़ी पर सम्प सभा प्रथम अधिवेशन आयोजित किया गया। इस अधिवेशन में गोविन्द गिरी के उपदेशों से प्रभावित होकर हजारों भोलों ने शराब छोड़ने, अपने बच्चों को पढ़ाने तथा आपसी झगड़े अपनी पंचायत में हो निपटाने की शपथ ली। गोविन्द गिरी ने उन्हें बैठ-देगार तथा अनुचित लागते नहीं देने के लिए भी प्रोत्साहित किया। उसने भीलों को विदेशी वस्तुओं का यहिष्कार करने तथा स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया। गोविन्द गिरी के असाधारण प्रभाव से भीलों में नई चेतना आई और उनमें आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान की भावनाएं जागृत हुई। वे अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूक हुए।

govind giri ka bhagat andolan, bheel andolan in hindi, भील समुदाय में हुए समाज सुधार आंदोलन में गोविंद गिरी की भूमिका का वर्णन कीजिए, भील विद्रोह का नेतृत्व किसने किया सम्प सभा की स्थापना कब हुई
जनजाति आन्दोलन में गोविन्द गिरी की भूमिका

(4) जागीरदारों तथा शासकों की दमनकारी नीति के विरुद्ध भीलों को संगठित करना-

गोविन्द गिरी ने जागीरदारों तथा शासकों को दमनकारी नीति के विरुद्ध भीलों को संगठित किया। उसको धारणा थी कि भील क्षेत्र में भीलों का वर्चस्व रहना चाहिए। उसने जनजाति के लोगों को जागोरदारों तथा शासकों द्वारा उन पर किये जा रहे अत्याचारों और शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।

(5) भीलों में विद्रोह की भावना पनपने के कारण-

भीलों में विद्रोह की भावना पनपने के निम्नलिखित कारण थे-

(1) भीलों में बढ़ती हुई जागृति से रियासतों के शासक बौखला उठे। वे गोविन्द गिरी द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन को कुचलने का प्रयास करने लगे।

(2) राज्य सरकार तथा जागीरदार भीलों से लगान को भारी रकम वसूल करते थे। वे वेगार करने के लिए भी विवश किये जाते थे।

(3) भोलों के जंगल सम्बन्धी विशिष्ट अधिकार समाप्त कर दिए गए थे।वे अब जंगल से कोई वस्तु बिना कर दिये नहीं ले जा सकते थे।

(4) मेवाड़ राज्य को दोषपूर्ण आबकारी नीति से भी भीलों में असन्तोष व्यक्त था।

(5) गोविन्द गिरी के सामाजिक, आर्थिक व आर्थिक सुधार आन्दोलन ने भीलों को अन्याय के विरुद्ध संघर्षज्ञ करने के लिए प्रेरित किया।

(6) बिटिश सरकार की दमनकारी नीति-

भील आन्दोलन की बढ़ती हुई लोकप्रियता से राज्य सरकार और ब्रिटिश सरकार बड़ी चिन्तित हुई। उन्होंने यह प्रचार करना शुरू कर दिया कि गोविन्द गिरी एक भील राज्य' को स्थापना करना चाहते थे।गोविन्द गिरी ईडर से मानगढ़ को पहाड़ी पर पहुंच गया। उसने अक्टूबर 1913 में भीलों को मानगढ़ को पहाड़ी पर एकत्रित होने के लिए चारों ओर सन्देश भेज दिये। 30 अक्टूबर, 1913 को सूथ के थानेदार ने दो सिपाहियों को मानगढ़ पहाड़ी पर भेजा। भीलों ने एक सिपाही की हत्या कर दी तथा दूसरे को कैद कर लिया। इस अवसर पर सूंथ, डूंगरपुर, इंडर, बाँसवाड़ा आदि राज्यों के शासकों ने ए.जी.जी. से प्रार्थना की कि गोविन्द गिरी को गिरफ्तार किया जाए तथा भीलों के आन्दोलन को कठोरता से कुचल दिया जाए।

मानगढ़-हत्याकाण्ड- नवम्बर, 1913 में ब्रिटिश सेनाओं ने मानगढ़ को पहाडी को चारों ओर से घेर लिया और सैनिकों ने वहाँ एकत्रित भीलों पर अंधाधुंध गोलियों की बौछार शुरु कर दी। इस गोलीकाण्ड में 1500 भील घटनास्थल पर ही मारे गए और हजारों घायल हो गए। नवीनतम शोध के अनुसार इस गोलीकाण्ड में लगभग 3000 भील मारे गए थे। गोविन्द गिरी तथा उसकी पत्नी को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें अहमदाबाद भेज दिया गया। सम्प सभा को अवैध घोषित कर दिया गया। इस प्रकार पाशविक शक्ति के बल पर भीलों के आन्दोलन को कुचल दिया गया।

गोविन्द गिरी पर मुकदमा चलाया गया और उसे मृत्युदण्ड दिया गया, परन्तु बाद में यह सजा 20 वर्ष के कारावास में बदल दी गई तथा बाद में यह सजा भी कम करके 10 वर्ष के कठोर कारावास की सजा में बदल दी गई। 1930 में गोविन्द गिरी को जेल से रिहा कर दिया गया परन्तु उसे सूंथ, बाँसवाड़ा, ईडर, डूंगरपुर तथा कुशलगढ़ राज्यों में जाने की स्वीकृति नहीं दी गई। आज भी भील लोग गोविन्द गिरी की याद में मानगढ़ की पहाड़ी पर हर वर्ष आश्विन शुक्ला पूर्णिमा को एकत्र होकर उसे भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

यद्यपि गोविन्द गिरी के नेतृत्व में भीलों के आन्दोलन को सफलता नहीं मिली थी, परन्तु उसके महत्त्व को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। इस आन्दोलन से भीलों में जागृति उत्पन्न हुई। वे अपने मूलभूत अधिकारों के प्रति जागरूक हुए। उनमें शोषण और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने की भावना विकसित हुई।

आशा है कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करें।

Post a Comment

0 Comments