कालीबंगा की सभ्यता
कालीबंगा 4000 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन मानी जाती है। कालीबंगा राजस्थान
के हनुमानगढ़ ज़िले का एक प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्थल है। यहाँ सिंधु घाटी
सभ्यता के महत्वपूर्ण अवशेष मिले हैं। सर्वप्रथम 1952 ई में अमलानन्द घोष
ने इसकी खोज की। बी.के थापर व बी.बी. लाल ने 1961-69 में यहाँ उत्खनन
का कार्य किया।
कालीबंगा की खुदाई का कार्य भारतीय पुरातत्व विभाग के अधिकारियों द्वारा किया गया। इस सभ्यता की विस्तृत जानकारी के लिए अनेक चरणों में खुदाई की गयी। घग्घर नदी जिसका प्राचीन नाम सरस्वती था, के आस-पास के दो टीलों को चुना गया जो कि सामान्य धरातल से लगभग 12 मीटर की ऊंचाई पर थे और जिनका क्षेत्रफल आधा किलोमीटर का था। इस क्षेत्र के उत्खनन में मिली वस्तुओं से सभ्यता से सम्बन्धित विभिन्न क्षेत्रों की पर्याप्त जानकारी मिलती है।
पुरातन सरस्वती
नदी के किनारे कई क्षेत्रों में खुदाई का कार्य किया गया, यह खुदाई का कार्य 1960 ई. के
आसपास करवाया गया जिसमें 100 छोटे-बड़े खण्ड व कालीबंगा स्थान पर एक बड़ा टीला मिला
है जो कि कालीबंगा सभ्यता के भग्नावशेष के रूप में माना गया है। इस टीले
में मुख्य रूप से नगर योजना के तीन खण्ड व उत्खनन से अन्य कुछ वस्तुयें भी प्राप्त
हुयी हैं जिनसे हड़प्पा सभ्यता के सम्बन्ध में विभिन्न क्षेत्रों की
जानकारी मिलती है।
कालीबंगा सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ
(1) नगर निर्माण-
घग्घर नदी के तट
पर तीन खण्डों में विभाजित एक बस्ती है जो कालीबंगा के नाम से विख्यात है।
इन खण्डों में एक किले का भाग है और साधारण नागरिकों के रहने के तीनों खण्ड एक
दीवार से घिरे थे जो कच्ची ईंटों से बने थे। मिट्टी की ये ईंटें 40/30 से.मी.
लम्बी व 20 से.मी. चौड़ी तथा 10 से.मी. ऊँची है। किले का भाग 240 मीटर ऊँचा
उत्तर-दक्षिण और 120 मीटर पूर्व-पश्चिम में विस्तारित था। इसमें एक तरफ कुछ चबूतरे
बने हुए थे जिन पर चढ़ने के लिये सीढ़ियाँ बनी हुई थीं। इतिहासकारों का मानना है
कि सम्भवतः इनका उपयोग धार्मिक कार्यों के लिये किया जाता होगा।
सम्भवतः धार्मिक
कार्यों के लिये वेदियों का प्रावधान भी किया गया था। इनके एक तरफ समृद्ध
लोगों के मकान थे जो वैसी ही ईंटों के बने हुये थे जैसी ईंटों को किले की दीवारें
बनी हुई थीं। मकान सामान्यत: एक मंजिले होते थे। कहीं-कहीं पर दो मंजिले मकान भी
देखने को मिले हैं। मकानों में तीन-चार कमरे, आंगन व रसोई बने मिले हैं। नगर की दूसरी बस्ती नीचे की भूमि
पर बनी हुई थी। इसकी लम्बाई 240-360 मीटर थी। यहाँ के मकान व सुरक्षा की दीवारें
भी ईंटों की ही बनाई गयी थीं। मकान 5-7 मकानों के समूहों में बनाये गये थे। जिनको
उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम की ओर जाने वाली सड़कों से जोड़ा गया था। इन सामूहिक
मकानों में गलियों, पोल व संकरे रास्ते से होकर प्रत्येक
मकान या कमरे में जाया जा सकता था। इस बस्ती के दो मुख्य द्वार थे। पानी के निकास
के लिये लकड़ी व ईंटों की नालियाँ बनी हुई थीं जो सड़क के गड्ढ़ों तक पानी
पहुँचाती थीं।
कालीबंगा सभ्यता की खोज तथा प्रमुख विशेषताएँ
(2) जुते हुए खेत-
कालीबंगा क्षेत्र के उत्खनन की सबसे महत्त्वपूर्ण
उपलब्धि नगर के बाहर जुते हुये खेत हैं। यह भूमि लगभग 3000 ई.पू के
पूर्वार्द्ध की प्रतीत होती है। महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि विश्व की सभी
सभ्यताओं की खुदाई में यह प्राप्त पहला खेत है। इस प्रकार के खेतों में दो प्रकार की
फसलों को एक साथ उगाया जाता था जो कि वर्तमान में भी कालीबंगा के आस-पास के
क्षेत्रों में उगाया जाता है। खेत में ग्रिड पेटर्न की परतों के निशान हैं।
ये निशान एक-दूसरे को समकोण पर मिलाते हैं। कालीबंगा के लोगों ने इन खेतों
के माध्यम से हड़प्पा संस्कृति के पहले जुते हुये खेतों का उदाहरण प्रस्तुत
किया है। सम्भवतः संस्कृत साहित्य में उल्लेखित बहुधान्यकारक क्षेत्र भी
यही था। यह कहना तो अभी कठिन है कि यहाँ कौनसी खेती की जाती थी लेकिन सम्भावित बाढ़
को देखते हुये यही अनुमान लगाया जा सकता है कि रबी की फसल व गेहूँ और जौ ही यहाँ होते
थे। ताँबे के बने कृषि के औजार यहाँ की आर्थिक उन्नति के प्रमाण हैं।
(3) कला प्रेम-
कुछ बर्तनों पर
पेड़-पौधे व पक्षियों के चित्र मिले हैं। शृंगार के उपकरणों व आभूषणों को
बनाने में यहां के निवासियों का कला प्रेम व सांस्कृतिक रुचि का
ज्ञान होता है। कांसे के दर्पण, हाथी दाँत का कंघा, सोने, मूंगे
व सीपों के आभूषण व ताँबे की पिनें इनकी उन्नत सभ्यता के प्रतीक हैं। इस युग को
विकसित सभ्यता कई मुहरें जिन पर पशु और पुरुषों की आकृतियाँ बनी हुयी हैं या गाय
के मुख वाले प्याले व ताँबे का बैल स्वतः ही यहाँ की सम्पन्नता को प्रभावित करते
हैं।
(4) धार्मिक भावनाएँ-
कालीबंगा के निवासियों की मृतक के प्रति श्रद्धा व
धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने वाली तीन प्रकार की समाधियाँ यहाँ मिली हैं। वे
अपने शवों को अण्डाकार खण्ड में सीधा रखकर, उत्तर की ओर सिर रखकर, मृत्यु सम्बन्धी
उपकरणों के साथ गाड़ते थे। दूसरी विधि में शव को टांगें समेट कर गाड़ा जाता था तथा
तीसरी विधि में शव के साथ बर्तन व एक-एक सोने व मणि के दाने की माला से विभूषित कर
गाड़ने की प्रथा थी। कालीबंगा के देवता सम्भवतः सिन्धु घाटी सभ्यता के देवताओं के
ही अनुरूप थे।
(5) बर्तन-
कालीबंगा सभ्यता
की खुदाई में मिट्टी के कई बर्तन व उनके अवशेष मिले हैं। यहाँ के बर्तन
पतले व वजन में हल्के हैं । यद्यपि उन्हें चाक से बनाया जाता था, लेकिन फिर भी उनकी आकृति स्पष्ट
नहीं हो पाती थी। इन पर लाल रंग किया जाता था और ऊपर व मध्य भाग में काली व सफेद
रेखायें बना दी जाती थीं। इन बर्तनों पर अलंकरण, चौकोर,
गाल, जालीदार, घुमावदार,
त्रिकोण व समानान्तर रेखाओं से किया जाता था। फूल, पत्ती, चौपड़, पक्षी, खजूर आदि का अलंकरण भी इन पर किया जाता था। वर्तनों में पड़े, प्याले, लोटे, घड़ियाँ,
सरावले, पेंदे वाले ढक्कन व लोटे भी होते थे।
अनेक पशु व पक्षियों की आकृति भी इन पर बनायी जाती थी।
(6) अन्य वस्तुएँ-
मकानों के अवशेष
व बर्तनों के अतिरिक्त यहाँ कई अन्य प्रकार की वस्तुओं के अवशेष भी पाये गये हैं
जिनमें खिलौने, पशुओं एवं पक्षियों के स्वरूप, मिट्टी की मुहरें, घड़ियाँ, ताले, ताँबे की
चूड़ियाँ, चाक, ताँबे के औजार, काँच के मणिए आदि हैं। मिट्टी के भांडों एवं मुहरों पर अंकित लिपि सैन्धव
लिपि के अनुरूप है।
निष्कर्ष
कालीबंगा की खोज ने पुरातत्त्ववेत्ताओं के समक्ष
एक और प्रश्न खड़ा कर दिया है कि था। एक सम्भावना यह हो सकती है कि हड़प्पा
पूर्व के लोग जिनकी अर्थव्यवस्था हड़प्पा के लोगों से काफी पिछड़ी हुई थी, काफी भिन्न रही हो और बाद में हड़प्पा
के लोगों ने उन पर अपना प्रभुत्व जमा लिया हो और दूसरी सम्भावना यह हो सकती है कि
दोनों एक ही समुदाय की दो श्रेणियाँ रही हों। एक विकास की प्रारम्भिक अवस्था में
और दूसरी विकास के बाद वाली अवस्था में। सैन्धव सभ्यता का प्रारम्भिक स्वरूप वही
रहा हो जो कालीबंगा और कोट-डोगी नामक स्थानों पर देखने को मिलता है और अपने तकनीकी
व भौतिक ज्ञान के सर्वतोन्मुखी विकास के फलस्वरूप विश्वविद्यालय सैन्धव सभ्यता
के रूप में प्रकट हुआ हो।
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