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देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला: नक्काशी, मूर्तिकला और वास्तुकला का अद्भुत संगम

देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला और उसकी प्रमुख विशेषताएं

परिचय-

राजस्थान के माउंट आबू में स्थित देलवाड़ा के जैन मंदिर भारत की प्राचीनतम और अद्भुत स्थापत्य कला का उदाहरण माने जाते हैं। संगमरमर से निर्मित यह मंदिर अपनी बेजोड़ नक्काशी, तक्षण कला और मूर्तिकला के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं।

देलवाड़ा मंदिर की विशेषताएं इतनी अद्वितीय हैं कि इन्हें देखकर पर्यटक, इतिहासकार और कला मर्मज्ञ सभी मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। अगर ताजमहल को प्रेम का प्रतीक कहा जाता है, तो देलवाड़ा के मंदिरों को धर्म, शिल्प और सौंदर्य का प्रतीक कहा जाता है।

(1) भीतरी भागों में तक्षण कला का प्रयोग-

देलवाड़ा के मन्दिरों की बनावट सादी है, परन्तु भीतरी भागों में खम्भों, छतों, मण्डपों, द्वारों आदि की तक्षण कला अनुपम है। इन मन्दिरों की कारीगरी, तक्षण कला तथा खुदाई का काम देखते ही बन पड़ता है। शिल्पकला की दृष्टि से भारत में ये मन्दिर अपने ढंग के कारीगरी के उत्कृष्ट नमूने हैं। कोसेन ने लिखा है कि "संगमरमर की पतली और पारदर्शी छिलके की भाँति पत्थर की तक्षण कला और कहीं अन्य स्थानों को कला से आगे बढ़ जाती है और उसमें उत्कीर्ण अंश सुन्दरता के स्वप्न दिखाई देते है।

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देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला: नक्काशी, मूर्तिकला और वास्तुकला का अद्भुत संगम

(2) जनजीवन की विविध झाँकियों से सम्बन्धित मूर्तियों का उपयोग-

देलवाड़ा के मन्दिर में जनजीवन की विविध झाँकियों से सम्बन्धित मूर्तियों का उपयोग किया गया है, जिससे हमें उस समय की वेशभूषा, रीति-रिवाज और व्यवहार का समुचित ज्ञान प्राप्त होता है। संगीत और नृत्य आदि विषयों पर प्रकाश डालने वाले अनेक नृत्य और वाद्य के प्रदर्शन की मूर्तियाँ नाट्य शास्त्र के आधार पर बनाई गई हैं जो अपनी सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। यदि यह कहा जाए कि देलवाड़ा के मन्दिर समूह शिल्प-शास्त्र, नाट्यशास्त्र, इतिहास और सामाजिक शास्त्र के अध्ययन के लिए स्वतः मूर्तिमान साक्षात अध्ययन का केन्द्र है, तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी।

(3) मण्डपों की नक्काशी-

देलवाड़ा के मन्दिर की नक्काशी अपने ढंग की विलक्षण है, जिसको देखकर दर्शक स्तब्ध हो जाता है। समस्त मण्डप का काम इतना बारीक है कि दर्शक के धैर्य की सीमा नहीं रहती है और फिर भी उस अनुपम सुन्दरता को देखने से मन नहीं भरता। देलवाड़ा के मन्दिरों की छतों से लटकने वाले मण्डप का भाग इस तरह उपस्थित किया गया है कि सारे मण्डप का एक दृष्टि से देखना अवरुद्ध हो जाता है, जिसके कारण भी दर्शक मण्डपों की सुन्दरता से बंधा रहता है।

(4) नेमिनाथ का मन्दिर-

नेमिनाथ का मन्दिर आदिनाथ के मन्दिर से अधिक कलात्मक है। मण्डप में तक्षित खम्भे, कारीगरी, विशालता, कौशलता और परिष्कृत रुचि के हिसाब से आदिनाथ के मन्दिर के खम्भों से ऊँचे और उत्कृष्ट हैं। बीच की गुम्बद तथा उसके आसपास की छतरियों पर जो कुराई का काम हुआ है, उसकी सुन्दरता का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। खम्भों की नक्काशी व पच्चीकारी आकर्षक है। छैनी का काम बड़ी सफाई से किया गया है।

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि देलवाड़ा के मन्दिर मध्यकालीन राजस्थान के वास्तुकला के जीवित उदाहरण हैं। चार हजार फुट से भी ऊँची पहाड़ी पर संगमरमर के देवालयों का बनाना ही अपने आप में एक अद्वितीय छटा और सौन्दर्य है। इतिहासकार कर्नल टॉड के अनुसार,"भारतवर्ष के भवनों में ताजमहल के बाद यदि कोई भवन है, तो ये मन्दिर हैं।"

डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने देलवाड़ा के मन्दिरों के स्थापत्य की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि इन मन्दिरों की नक्काशी अपने ढंग की विलक्षण है जिसको देखकर दर्शक स्तब्ध हो जाता है। यदि ताजमहल एक स्त्री का संस्करण है, तो इन मन्दिरों के पीछे एक धर्मनिष्ठ उदारता मूर्तिमान दिखाई देती है।"

प्रसिद्ध कला मर्मज्ञ फर्ग्युसन, हेवल, स्मिथ आदि ने लिखा है कि "कारीगरी और सूक्ष्मता की दृष्टि से इन मन्दिरों की समता हिन्दुस्तान में कोई इमारत नहीं कर सकती। ये भारतीय ज्ञान और सभ्यता के सच्चे प्रतीक हैं।"

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निष्कर्ष (Conclusion)

देलवाड़ा के जैन मंदिर केवल पूजा स्थलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय स्थापत्य, सामाजिक इतिहास और शिल्पकला के मूर्त रूप हैं। इनकी नक्काशी, देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला और भव्यता हर दर्शक को चकित कर देती है। यह मंदिर न केवल जैन धर्म की गरिमा को दर्शाते हैं, बल्कि भारतीय संस्कृति की उच्चतम कलात्मक ऊँचाइयों का प्रतीक भी हैं।

यदि आप वास्तुकला और इतिहास में रुचि रखते हैं, तो देलवाड़ा का यह मंदिर आपके लिए एक जीवनपर्यंत अनुभव बन सकता है। आशा हैं कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।

FAQs – देलवाड़ा मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: देलवाड़ा मंदिर कहाँ स्थित हैं?

उत्तर: देलवाड़ा के मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले में, माउंट आबू के पास स्थित हैं।

Q2: देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर: संगमरमर पर की गई सूक्ष्म नक्काशी, तक्षण कला, और सामाजिक जीवन पर आधारित मूर्तियों के कारण यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं।

Q3: देलवाड़ा मंदिर का निर्माण कब हुआ था?

उत्तर: इन मंदिरों का निर्माण 11वीं से 13वीं शताब्दी के बीच हुआ था।

Q4: देलवाड़ा मंदिर में कौन-कौन से प्रमुख मंदिर शामिल हैं?

उत्तर: यहाँ पांच प्रमुख जैन मंदिर हैं विमल वसाही, लूण वसाही, पित्तलहर, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी मंदिर।

Q5: देलवाड़ा मंदिर की नक्काशी में कौन-कौन से विषय दर्शाए गए हैं?

उत्तर: नृत्य, संगीत, जनजीवन, धार्मिक प्रतीक, पशु-पक्षी, और जैन तीर्थंकरों के जीवन दृश्य इनकी नक्काशी में दर्शाए गए हैं।

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