Heade ads

रणकपुर मंदिर की स्थापत्य कला और 1444 स्तंभों वाली अद्भुत संरचना

रणकपुर मंदिर स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण

परिचय-

राजस्थान की धरती न केवल वीरों की भूमि के रूप में जानी जाती है, बल्कि यह कला, संस्कृति और धर्म की अद्वितीय परंपराओं का भी केंद्र रही है। इन्हीं गौरवशाली धरोहरों में से एक है रणकपुर मंदिर, जो जैन धर्म की आस्था, अद्वितीय शिल्पकला और स्थापत्य का एक अप्रतिम उदाहरण है।

रणकपुर मंदिर की स्थापत्य कला इतनी भव्य और विस्तृत है कि यह भारत ही नहीं, विश्व भर के पर्यटकों और कला प्रेमियों को आकर्षित करती है। मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता इसके 1444 स्तंभ हैं, जो एक-दूसरे से भिन्न डिज़ाइन में बनाए गए हैं। यही कारण है कि जब पूछा जाता है – "किस मंदिर में 1444 स्तंभ स्थित हैं?" – तो उत्तर होता है: रणकपुर जैन मंदिर

इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे- रणकपुर मंदिर की विशेषताएं, उसकी शिल्प और मूर्तिकला, साथ ही यह भी कि कैसे यह मंदिर मध्यकालीन भारत की स्थापत्य प्रतिभा का जीवंत उदाहरण बनकर उभरा है।

ranakpur mandir ki visheshta, ranakpur-mandir-ki-sthapatya-kala, रणकपुर मंदिर स्थापत्य कला, किस मंदिर में 1444 स्तंभ स्थित है
रणकपुर मंदिर की स्थापत्य कला और 1444 स्तंभों वाली अद्भुत संरचना

रणकपुर मंदिर की विशेषता

रणकपुर का मन्दिर मध्यकालीन राजस्थान की स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट नमूना है। यह मन्दिर उत्तरी भारत के श्वेताम्बर जैन मन्दिरों में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। यह मारवाड़ के गोड़वाड़ क्षेत्र में प्रकृति की सुरम्य गोद में बना है, जहाँ चारों ओर पहाड़ियाँ स्थित हैं तथा सामने बहती नदी की कल-कल धारा ने इसकी मोहकता को और अधिक बढ़ा दिया है। इस मन्दिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के समय में हुआ। इसके निर्माण में 99 लाख रुपए खर्च हुए थे। पोरवाल जाति के धरणाशाह (धरणाक) नामक व्यक्ति ने इस मन्दिर का निर्माण करवाया था। इसका प्रमुख शिल्पी सोमपुरा ब्राह्मण देपाक था। जिसके साथ 50 से भी अधिक सहायक शिल्पी थे।

इस मन्दिर को रणकपुर का 'चौमुखा मन्दिर' कहकर पुकारते हैं। यह मन्दिर राणी स्टेशन से 7 मील, फालना स्टेशन से 12 मील तथा सादड़ी से 6 मील की दूरी पर स्थित है। यह मन्दिर 48000 वर्ग फुट जमीन पर निर्मित हुआ है। इसके क्षेत्रफल में 24 मण्डप, 85 शिखर तथा 1444 स्तम्भ हैं। इसके पृथ्वी तल में सेवाड़ी का पत्थर तथा दीवारों में सोनाणा का पत्थर काम में लिया गया है। शिखर के भीतरी भाग ईंटों से बने हुए हैं तथा मूर्तियाँ भी सोनाणा पत्थर की बनी हुई हैं। आदिनाथ की अन्य मूर्तियाँ सफेद संगमरमर पत्थर की बनी हुई हैं। एक उच्च पीठिका पर आसीन आदिनाथ की मूर्तियाँ पाँच फुट ऊँची हैं और एक-दूसरे की पीठ से लगी हुई चारों दिशाओं में मुख किए हुए हैं। चारों ओर द्वार होने के कारण बाहर से कोई भी श्रद्धालु चारो दिशाओं में आदिनाथ के दर्शन कर सकता है।

(1) मन्दिर की बनावट-

यह मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है। अत: चबूतरे तक जाकर तोरण द्वार में प्रवेश करने के लिए लगभग 25 सीढ़ियाँ चढ़कर जाना पड़ता है। मन्दिर के बरामदे में प्रवेश करते ही मण्डप की छत में नग्न एवं सम्भो.... के विभिन्न आसनों का प्रदर्शन करती हुई मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। मन्दिर में प्रवेश करते ही दोनों ओर तहखाने हैं। पृथ्वी तल के मन्दिर के प्रत्येक द्वार के सामने छोटा मन्दिर है, जो 'खूट का मन्दिर' कहलाता है। चारों खूटों के मन्दिरों के सामने खम्भों पर आधारित चार मण्डपों के समूह हैं। सबसे बड़ा मण्डप मुख्य द्वार के सामने है जिसके 16 खम्भों पर दोहरे शिखर हैं। इस मण्डप की छत पर नृत्य करती हुई स्त्रियाँ बहुत सुन्दर बनी हुई हैं। मन्दिर के चारों ओर 80 छोटी तथा 4 बड़ी देव कुलिकाएँ हैं। इन देव कुलिकाओं में महावीर, अजितनाथ, पार्श्वनाथ, धारणशाह आदि की मूर्तियाँ हैं ।

(2) तोरण और मूर्तिकला-

मन्दिर के बाहर के रंग मण्डप में बने तोरण अत्यधिक सुन्दर और आकर्षक हैं। ये तोरण एक ही पत्थर के बने हुए हैं तथा बहुत बारीकी से खुदाई का काम किया हुआ है। इसी रंग मण्डप के गुम्बद के घेरे के चारों ओर नृत्य करती हुई 16 पुतलिकाएँ उत्कीर्ण हैं। मण्डप के स्तम्भ और गुम्बद बड़े चित्ताकर्षक हैं। मूलनायक देवकुलिका के जंघा भाग में बनी मूर्तियाँ बड़ी सुन्दर हैं। इनमें स्त्री मूर्तियाँ नृत्य मुद्रा में हैं। कई नर्तकियाँ तलवार और ढाल लिए प्रदर्शित हैं, जो उस युग की भावना के अनुकूल हैं। स्त्री-मूर्तियों के साथ देव मूर्तियाँ भी बनी हुई हैं। मन्दिर के ऊपरी खण्ड पर जाने के लिए सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। इस खण्ड के मध्य भाग में चार तीर्थंकरों की चौमुखी मूर्तियाँ हैं।

डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि "सभामण्डप, द्वार, स्तम्भ, छत आदि तक्षण-कला के काम से लदे पड़े हैं। उत्कीर्ण मूर्तियों के अध्ययन से तत्कालीन वेशभूषा, रहन-सहन आदि का अच्छा बोध होता है। जगह-जगह नर्तकियों की मूर्तियाँ हाव-भाव से परिपूर्ण हैं।"

प्रमुख मन्दिर में जैन तीर्थों का भी चित्रण है जिनमें सम्मेद शिखर, मेरु पर्वत, अष्टपद, नन्दीश्वर दीप आदि मुख्य हैं। सभामण्डप के उत्कीर्ण सहस्रदल कमल तथा पुतलिकाएँ उच्च कला के प्रतीक है।

(3) स्तम्भ-

मन्दिर में 1444 स्तम्भ हैं। स्तम्भों को इस प्रकार खड़ा किया गया है कि मन्दिर में कहीं भी खड़े होने पर भी सामने की दिशा की देवकुलिका की मूर्ति तथा उस दिशा के स्तम्भ एक ही पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। प्रत्येक स्तम्भ पर भिन्न-भिन्न प्रकार की बारीक अलंकरणों की खुदाई की हुई है। कई स्तम्भों पर तीर्थंकरों के जीवन की प्रसिद्ध घटनाएँ उत्कीर्ण की हुई हैं। मुख्य द्वार की छत पर तीर्थंकर ऋणभदेव की माता मारुदेवी की हाथी पर बैठी प्रतिमा है।

(4) नेमिनाथ का मन्दिर तथा पार्श्वनाथ का मन्दिर-

इस मन्दिर के निकट दो अन्य जैन मन्दिर हैं-

(1) नेमिनाथ का मन्दिर तथा (2) पार्श्वनाथ का मन्दिर।

डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने लिखा है कि "पार्श्वनाथ के मन्दिर का बाहरी भाग पूरा अश्लील मूर्तियों से भरा पड़ा है। इसलिए इस मन्दिर को लोग वेश्याओं का मन्दिर' कहते हैं। पार्श्वनाथ के मन्दिर से थोड़ी ही दूरी पर सूर्य मन्दिर बना हुआ है।"

इस प्रकार रणकपुर का मन्दिर अपनी विशालता तथा कलात्मकता के लिए प्रसिद्ध है। फर्ग्युसन ने लिखा है कि "मैं अन्य ऐसा कोई भवन नहीं जानता जो इतना रोचक व प्रभावशाली हो या जो स्तम्भों की व्यवस्था में इतनी सुन्दरता व्यक्त करता हो।

निष्कर्ष (Conclusion)

रणकपुर मंदिर न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र तीर्थ है, बल्कि यह भारत की वास्तुकला और मूर्तिकला की समृद्ध परंपरा का भी जीवंत उदाहरण है। रणकपुर मंदिर की स्थापत्य कला अपनी बारीकी, संतुलन और धार्मिक भावना की गहराई के लिए प्रसिद्ध है।

इस मंदिर की सबसे अद्वितीय विशेषता इसके 1444 स्तंभ हैं, जो ना केवल स्थापत्य कौशल को दर्शाते हैं, बल्कि यह भी सिद्ध करते हैं कि भारत की प्राचीन कला कितनी उन्नत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाली थी। जब भी पूछा जाता है — “किस मंदिर में 1444 स्तंभ स्थित हैं?” — तो रणकपुर मंदिर का नाम गौरव से लिया जाता है।

यदि आप वास्तुकला, इतिहास, धर्म और शांति की तलाश में हैं, तो रणकपुर मंदिर अवश्य आपके यात्रा-सूची में होना चाहिए। आशा हैं कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।

यह भी जानें- देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला और उसकी प्रमुख विशेषताएं

FAQs – रणकपुर मंदिर के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1: रणकपुर मंदिर कहाँ स्थित है?

उत्तर: रणकपुर मंदिर राजस्थान के पाली ज़िले के गोड़वाड़ क्षेत्र में स्थित है, जो फालना रेलवे स्टेशन से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर है।

Q2: रणकपुर मंदिर किस धर्म से संबंधित है?

उत्तर: यह मंदिर जैन धर्म के श्वेताम्बर संप्रदाय से संबंधित है और भगवान आदिनाथ को समर्पित है।

Q3: रणकपुर मंदिर की मुख्य विशेषता क्या है?

उत्तर: रणकपुर मंदिर की मुख्य विशेषता इसकी भव्य स्थापत्य कला और 1444 स्तंभों की अनूठी बनावट है, जिनमें से हर स्तंभ की डिज़ाइन अलग है।

Q4: रणकपुर मंदिर का निर्माण किसने करवाया था?

उत्तर: इस मंदिर का निर्माण पोरवाल समाज के धरणाशाह नामक व्यापारी ने 15वीं शताब्दी में करवाया था, जो महाराणा कुम्भा के शासनकाल में हुआ था।

Q5: क्या रणकपुर मंदिर में प्रवेश निशुल्क है?

उत्तर: हाँ, भारतीय श्रद्धालुओं के लिए प्रवेश निशुल्क है, जबकि विदेशी पर्यटकों के लिए मामूली शुल्क हो सकता है। फ़ोटोग्राफ़ी के लिए अलग शुल्क लागू हो सकता है।

Q6: रणकपुर मंदिर का वास्तुशिल्प किस शैली में है?

उत्तर: यह मंदिर प्राचीन नागर शैली की वास्तुकला पर आधारित है, जिसमें जटिल नक्काशी और भव्य शिखरों का अद्भुत संयोजन है।

यह भी जानें- देलवाड़ा मंदिर की स्थापत्य कला और उसकी प्रमुख विशेषताएं

Post a Comment

0 Comments