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इतिहास का क्षेत्र एवं इतिहास-क्षेत्र का वर्गीकरण

    आदिकाल से आधुनिक युग तथा इतिहास-क्षेत्र का स्वरूप निरन्तर परिवर्तनशील रहा है। वास्तव में इतिहास-क्षेत्र का स्वरूप काल एवं समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप विकसित होता रहा है। हम हेरोडोट्स से टायनबी तक इतिहास के स्वरूप की विवेचना करें, तो हमें अनेक रूप मिल सकते हैं। समाज से सम्बन्धित सभी प्रश्न महत्त्वपूर्ण हैं तथा ये सभी विषय इतिहास के  अन्तर्गत आ जाते हैं। अत इतिहासकार से अपेक्षा की जाती है कि वह समाज से सम्बन्धित सभी विषयों का उचित विवरण समाज के समक्ष प्रस्तुत करे। अतः अब आधुनिक इतिहासकारों ने इतिहास-क्षेत्र का वर्गीकरण किया है । इतिहास-क्षेत्र का यह वर्गीकरण वैज्ञानिक युग की देन है। अब इतिहास के सामान्य ज्ञान की अपेक्षा विशिष्ट ज्ञान की उपादेयता बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप इतिहास का क्षेत्र निरन्तर बढ़ता जा रहा है। अब इतिहास का काल विभाजन (प्राचीन, मध्ययुगीन तथा आधुनिक काल) पुराना पड़ गया है। अब इतिहास के अन्तर्गत अनेक छोटी से छोटी शाखाओं पर शोध करके इतिहासकारों ने विशिष्ट ज्ञान को प्राप्त किया है। इस प्रकार इतिहास.का क्षेत्र निरन्तर विकसित होता जा रहा है।

itihaas-history
इतिहास का क्षेत्र


इतिहास-क्षेत्र के विस्तार के सम्बन्ध में विद्वानों के दृष्टिकोण-

1.      मनुष्य के एक साधारण कार्य से लेकर उसकी विविध उपलब्धियों का वर्णन - कुछ विद्वानों के अनुसार इतिहास-क्षेत्र के अन्तर्गत मनुष्य के एक साधारण कार्य से लेकर उसकी विविध उपलब्धियों का वर्णन होता है। इतिहास के प्रस्तुतीकरण में वैज्ञानिक परिकल्पनात्मक तथा साहित्यिक उत्पादनों का प्रयोग होता है। यद्यपि मानवीय कार्यों तथा उपलब्धियों पर प्रकृति का अध्ययन इतिहास के क्षेत्र से बाहर है, तो भी कुछ न कुछ प्रकृति-विषयक अध्ययन होते ही हैं। अत कुछ विद्वान् प्रकृति तथा भौगोलिक परिस्थितियों के परिवेश में ही मानवीय कार्यों एवं उपलब्धियों का अध्ययन इतिहास-क्षेत्र के अन्तर्गत मानते हैं।

2.      सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार इतिहास-क्षेत्र का विकसित होना - जॉन डेवी के अनुसार, “इतिहास का वर्गीकरण उपयोगी तथा स्वाभाविक है। इसका एकमात्र उद्देश्य विशेष तथा परिवर्तित घटनाओं का ज्ञान प्राप्त करना है। जॉन डेवी की मान्यता है कि इतिहास-क्षेत्र का स्वरूप निरन्तर परिवर्तनशील तथा सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार सदैव विकसित होता रहता है। जब समाज का क्षेत्र विस्तृत रहता है, तब उसी के अनुरूप अनेकानेक सामाजिक आवश्यकताएँ हुआ करती हैं और जब उन सबका उल्लेख होना कठिन-सा हो जाता है, तब इतिहास-क्षेत्र का वर्गीकरण किया जाता है ताकि छोटे से छोटे प्रकरण पर भी विस्तार से विचार-विमर्श किया जा सके।

3.      ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा - कुछ विद्वानों की मान्यता है कि प्रारम्भ में लोग इतिहास का अध्ययन ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा की शान्ति के लिए ही किया करते थे, परन्तु कालान्तर में वर्तमान एवं भविष्य के लिए अतीतकालीन मानवीय कार्यों को सन्तुलित रखने के लिए इसका विस्तार हुआ। इस प्रकार मानव-ज्ञान के विकास के साथ-साथ इतिहास का क्षेत्र भी बढ़ता चला गया।

4.      सामाजिक मूल्य तथा सामाजिक आवश्यकताएँ - कुछ विद्वानों के अनुसार इतिहास के विकसित स्वरूप का एकमात्र आधार विभिन्न युगों के सामाजिक मूल्य तथा उनकी सामाजिक आवश्यकताएँ रही हैं। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि इतिहास का स्वरूप सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार सदैव विकसित होता रहा है आज इतिहास के अन्तर्गत छोटे-छोटे विषयों पर शोध कार्य करके इस क्षेत्र को और भी विस्तृत किया जा रहा है।

5.      इतिहास का क्षेत्र विज्ञान की भाँति ही विस्तृत है - ई.एच. कार ने अतीत और वर्तमान के मध्य अनवरत परिसंवाद के रूप में कहकर इतिहास के क्षेत्र को व्यापक बनाने का प्रयास किया है। वे लिखते हैं कि इतिहास का क्षेत्र विज्ञान की भाँति ही विस्तृत है जिसमें तथ्यों की वैज्ञानिक व्याख्या होती है।

6.      मानव-जीवन से सम्बद्ध सम्पूर्ण कार्य-व्यापारइतिहास की विषय-वस्तु है टायनबी ने लिखा है कि मानव जीवन से सम्बद्ध सम्पूर्ण कार्य-व्यापार इतिहास की विषय-वस्तु है।

7.      इतिहास-क्षेत्र के अन्तर्गत समाज के सभी पक्षों का वर्णन है - ए.एल. राउज ने इतिहास-क्षेत्र को विस्तृत मानते हुए उसकी विषय-वस्तु के अन्तर्गत समाज के सभी पक्षों का वर्णन माना है। इसके अन्तर्गत भौगोलिक, आर्थिक, भू-व्यवस्था, उद्योग, व्यापार, प्रशासनिक व्यवस्था, धार्मिक तथा सांस्कृतिक दशा आदि सम्मिलित हैं। इस प्रकार विषय-वस्तु की दृष्टि से इतिहास का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। डॉ. परमानन्द सिंह लिखते हैं, इतिहास मनुष्य के सामाजिक जीवन का, उसके भौतिक और सांस्कृतिक दोनों ही क्षेत्रों का अध्ययन करता है। आधुनिक समय में इतिहास का अध्ययन केवल राजनीतिक अध्ययन तक ही सीमित नहीं है, अब वह मनुष्य जीवन के सभी क्षेत्रों से भी सम्बद्ध हो गया है। वैसे अध्ययन की सुविधा के लिए हम इसकी विषय-वस्तु को दो वर्गों में रख सकते हैं-दार्शनिक वर्ग और व्यावसायिक वर्ग।

 इतिहास-क्षेत्र का वर्गीकरण

 विषय-वस्तु की दृष्टि से इतिहास-क्षेत्र का वर्गीकरण निम्नानुसार किया जा सकता है-

राजनीतिक इतिहास

      राजनीतिक संस्थाएँ समाज की रंगमंच हैं, जहाँ महापुरुष अपने कार्यों को प्रदर्शित करते हैं। ए.एल. राउज ने राजनीतिक इतिहास को इतिहास की रीढ़ माना है। इसे इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण शाखा भी कहा गया है। इसमें महापुरुषों के कार्यों एवं उपलब्धियों का उल्लेख रहता है जो भावी इतिहास के निर्माण में सहायक होता है। सम्राट अशोक, अकबर, महात्मा गाँधी, पं. जवाहरलाल नेहरू आदि के कार्यों एवं उपलब्धियों का प्रदर्शन राजनीतिक रंगमंच पर ही हुआ है। इन महापुरुषों ने अपने कार्यों के परिवेश में तत्कालीन समाज के भाग्य का निर्माण किया है। महापुरुषों की जीवनी, कार्य तथा उपलब्धियाँ वर्तमान को प्रकाशित करती हैं तथा भविष्य के लिए मार्गदर्शन का कार्य करती हैं। राजनीतिक इतिहास के बिना किसी भी इतिहास का ज्ञान अपूर्ण समझा जाता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का अध्ययन महात्मा गाँधी, पं. जवाहरलाल नेहरू, बालगंगधार तिलक, गोपालकृष्ण गोखले आदि की जीवन- गाथा के अभाव में अधूरा रहेगा। शेक अली का कथन है कि थ्यूसिडिडीज, गिबन तथा मैकाले की महत्त्वपूर्ण रचनाओं का आधार राजनीतिक इतिहास ही रहा है।

      शेक अली का कथन है कि बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में इतिहासकारों ने अनुभव किया कि महापुरुषों की जीवनी के साथ सर्वसाधारण मानव-समाज के योगदान का अध्ययन भी आवश्यक है, क्योंकि जनसाधारण ही महापुरुषों की शक्ति होता है। जनसाधारण के सहयोग से ही महापुरुषों ने सफलता प्राप्त की। अत राजनीतिक इतिहास में जनसाधारण के कार्यों का भी अध्ययन आवश्यक प्रतीत होता है। भारत की स्वतन्त्रता केवल जन-नायकों के प्रयास का ही परिणाम नहीं है, बल्कि असंख्य भारतवासियों ने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में अपने बलिदान एवं त्याग से योगदान दिया है। अत अब समय आ गया है कि राजनीतिक इतिहास में जन-सामान्य की भूमिका का भी अध्ययन किया जाए। शेक अली के अनुसार, आधुनिक युग में इसका सूक्ष्म इतिहास की संज्ञा दी गई है।

आर्थिक इतिहास

      आर्थिक इतिहास का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। आर्थिक इतिहास को महत्त्वपूर्ण बनाने में कोंदोरसे, कोमते, बर्कले तथा कार्ल मार्क्स ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। कार्ल मार्क्स द्वारा इतिहास की आर्थिक व्याख्या ने अनेक इतिहासकारों को इतिहास के क्षेत्र पर विचार के लिए बाध्य किया। समाज के प्रारम्भ के साथ ही आर्थिक इतिहास का उदय होता है। ने अपनी आजीविका के साधनों को किस प्रकार उत्पन्न किया, इसका ज्ञान आर्थिक इतिहास प्रदान करता है । इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति के बाद आर्थिक इतिहास का महत्त्व बढ़ गया। आर.एच. टानी तथा. एलीन पावर ने सबसे पहले आर्थिक इतिहास लिखा। जी.एन. क्लार्क के अनुसार आधुनिक युग में आर्थिक इतिहास ने इतिहास-क्षेत्र के अन्तर्गत एक उच्च स्थान प्राप्त कर लिया है।

संवैधानिक इतिहास

      जी.एन. क्लार्क के अनुसार संस्थाओं का इतिहास अध्ययन का केन्द्र-बिन्दु है। इसका राजनीतिक इतिहास से गहरा सम्बन्ध है। संवैधानिक इतिहास का सामाजिक जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि यह सामाजिक जीवन का आधार है। आज बीसवीं सदी में कुछ इतिहासकारों ने संवैधानिक इतिहास तथा प्रशासकीय इतिहास में अन्तर को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। हैलम, कार्निवाल लेविस, अर्सकीन तथा मेटलैण्ड ने संवैधानिक इतिहास लिखकर इतिहास-क्षेत्र को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इन विद्वानों ने इसके अध्ययन की आवश्यकता अनुभव की, क्योंकि इसने जनसामान्य को प्रभावित किया है। मनुस्मृति, हमुरावी का कोड, जस्टिनियन कोड, नेपोलियन कोड आदि का प्रभाव जनसामान्य पर पड़ा है। ब्लैकस्टोन की रचना कामेन्ट्रीज ऑफ लॉ ऑफ इंग्लैण्ड तथा पी.बी. काणे की रचना धर्मशास्त्र का इतिहास इस वर्ग की महान उपलब्धियाँ हैं।

       विलियम एश्ले के अनुसार, विचार स्वयमेव ऐतिहासिक तथ्य होते हैं। विलियम एश्ले ने आर्थिक इतिहास की परिभाषा देते हुए लिखा है कि आर्थिक इतिहास जीवन के भौतिक आधार के सन्दर्भ में वास्तविक मानव अभ्यास का इतिहास है। एन.एस.बी ग्रास के अनुसार, आर्थिक इतिहास का तात्पर्य मानवीय आजीविका के साधनों से है। आजीविका के साधनों के उत्पादन में मनुष्य किस प्रकार प्रयास करके अधिकतम सन्तोष प्राप्त करता है, वे आर्थिक इतिहास के प्रमुख तत्त्व होते हैं। आर्थिक इतिहास के क्षेत्र में मनुष्य के कार्यों को प्रभावित करने वाले विचार, समाज का उद्देश्य, विभिन्न सामाजिक वर्गों का पारस्परिक सम्बन्ध तथा व्यवहार का अध्ययन आदि विषय होते हैं। सर विलियम एश्ले ने आर्थिक इतिहास के स्वरूप के सम्बन्ध में लिखा है मनुष्य ने आजीविका के साधनों के उत्पादन में अधिकतम सन्तोष प्राप्त करने के लिए क्या किया, यही आर्थिक इतिहास है।

       आदिकाल से मनुष्य एकाकी एवं व्यक्तिवादी नहीं रहा है, किसी न किसी रूप में संगठन तथा सामूहिकता के तथ्य उसकी गतिविधियों से संचालित हैं। श्रम, अभियन्ताओं, भूगर्भशास्त्रियों तथा पूँजीपतियों के सहयोग से किसी वस्तु का उत्पादन सम्भव है। वस्तु उत्पादन में किसान, कोयला, मशीन, श्रम तथा पूँजीपति के पारस्परिक सहयोग की अपेक्षा होती है। इतिहासकार का कर्त्तव्य है कि इन सभी पक्षों पर विचार करे। आजकल व्यावसायिक इतिहास का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। पूँजीपतियों के विकास का भी इतिहास होता है। बैकों का अध्ययन भी आर्थि इतिहास के क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। आर्थिक इतिहास के अन्तर्गत आजीविका के साधन, कृषि, यातायात के साधन, उद्योग, व्यापार, भू-राजस्व आदि विषयों का अध्ययन होता है। मार्क्सवादी विचारों से प्रभावित अनेक भारतीय विद्वानों ने आर्थिक इतिहास की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन किया है। हिरेन मुखर्जी, रजनी पामदत्त, डी.डी. कोसाम्बी, आर.एस. शर्मा, इरफान हबीब आदि ने आर्थिक इतिहास - लेखन को एक नवीन दिशा प्रदान की है।

सामाजिक इतिहास

      कॉम्टे के अनुसार इतिहास सामाजिक भौतिकशास्त्र है। इसके अन्तर्गत मानवीय व्यवहार के सामान्य नियमों का अध्ययन किया जाता है टायनबी ने लिखा है कि इतिहास का निर्माण सामाजिक अणु तत्त्वों से हुआ है। वास्तव में इतिहास की आधारशिला समाज है। सामाजिक इतिहास को लोकप्रिय बनाने का श्रेय ट्रेवेलियन को है। उनके सामाजिक इतिहास का स्थान अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। ट्रेवेलियन के अनुसार, इतिहास के अभाव में आर्थिक इतिहास मरुस्थल तथा राजनीतिक इतिहास अवर्णनीय है। रेनियर के अनुसार, सामाजिक इतिहास आर्थिक इतिहास की पृष्ठभूमि तथा राजनीतिक इतिहास की कसौटी है।

       सामाजिक इतिहास का अध्ययन रोचक है परन्तु इसकी निरन्तरता, मन्दगति तथा परिवर्तन का अध्ययन अत्यन्त जटिल है। राजनीतिक परिवर्तन जीवन के सतह पर दिखाई देते हैं, सामाजिक परिवर्तन भूमिगत जलस्रोत के समान हैं। सामाजिक परिवर्तन का ही परिणाम राजनीतिक परिवर्तन होता है। बीसवीं सदी के अधिकांश इतिहासकारों का ध्यान सामाजिक इतिहास ने आकृष्ट किया है। समाजशास्त्र का विकास सामाजिक इतिहास के परिवेश में हुआ है। शेक अली का कथन है कि सामाजिक विकास तथा परिवर्तन की गतिविधियों का अध्ययन समाजशास्त्र के माध्यम से प्रारम्भ हुआ है।

सांस्कृतिक इतिहास

       सांस्कृतिक इतिहास सामाजिक इतिहास का अभिन्न अंग है। इसके अंतर्गत रीति-रिवाज, संस्कार, शिक्षा, साहित्य, वास्तुकला, चित्रकला, संगीत, तथा आमोद-प्रमोद के साधनों का विवरण रहता है। सांस्कृतिक इतिहास के अध्ययन को सरल तथा सुबोध बनाने के लिए इतिहासकारों ने इतिहास-क्षेत्र को तीन भागों में वर्गीकृत किया है:-

  1. प्राचीनकालीन इतिहास -  प्राचीनकाल मानव के प्रारंभ से लेकर 1000 . तक माना गया है। प्राचीनकालीन इतिहास के अंतर्गत प्रारम्भ से 1000 . तक की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक, तथा सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 
  2. मध्यकालीन इतिहास 1000 . से लेकर 1818 . तक के काल को मध्यकाल माना गया है।मध्यकालीन इतिहास के अंतर्गत 1000 . से लेकर 1818 . तक की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक, तथा सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 
  3. आधुनिक इतिहास1818 . से वर्तमान काल तक का युग आधुनिक युग कहा गया है। आधुनिक इतिहास के अंतर्गत 1818 . से लेकर वर्तमान तक की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक, तथा सांस्कृतिक दशाओं का अध्ययन किया जाता है। 

   किसी महान् सम्राट के को सांस्कृतिक इतिहास का विषय बनाया जाता है। वैदिककालीन, मौर्यकालीन, गुप्तकालीन, हर्षकालीन, अकबरकालीन सांस्कृतिक विकास का अध्ययन इतिहासकारों ने किया है।

राजनयिक इतिहास

      उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ के इतिहासकारों ने राजनयिक इतिहास-लेखन की आवश्यकता अनुभव की। राजनयिक इतिहास में विभिन्न देशों के वैदेशिक सम्बन्धों का वर्णन रहता है। इसके अन्तर्गत समस्याओं के समाधान के लिए विभिन्न राष्ट्रों के प्रयासों तथा आदान-प्रदान के पत्रों का विवरण रहता है। इस प्रकार का इतिहास कई दृष्टि से दोषपूर्ण रहता है। राजनयिक इतिहास का अध्ययन विश्वविद्यालय स्तर के छात्रों को आलोचनात्मक विधि से करना चाहिए।

बौद्धिक इतिहास

      बौद्धिक इतिहास में मानव के मौलिक विचारों तथा सिद्धान्तों का अध्ययन होता है।मानव इतिहास के क्षेत्र में विचारों का स्वतन्त्र अस्तित्व है। मनुष्य के विचार ही उसके कार्यों के प्रेरणा स्रोत होते हैं । कालिंगवुड ने तो समस्त इतिहास को ही विचारों का इतिहास कहा है। विचार ही मानवीय कार्यों का उद्गम स्थल है और मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित तथा बाध्य करता है। परिणामस्वरूप समस्त इतिहास विचार-प्रधान होता है। विचार ज्ञान का स्रोत तथा बुद्धि का फल है।

      डॉ. सैमुअल जॉनसन ने लिखा है कि बौद्धिक इतिहास की अपेक्षा कोई भी इतिहास उतना उपयोगी नहीं है। यह चिन्तन, विवेक व विज्ञान के विकास का अध्ययन करता है। बौद्धिक इतिहास के प्रणेता के रूप में लिपजिंग के कार्ल लीम्परे का नाम विशेष रूप से लिया जाता है। प्रो. जेम्स हार्वे राबिन्सन ने सर्वप्रथम वैज्ञानिक विधि पर बौद्धिक इतिहास की रचना की थी। एच.ई.वाने ने तीन जिल्दों में विश्व के बौद्धिक सांस्कृतिक इतिहास की रचना की है रैण्डल की रचनाओं में आधुनिक बौद्धिक इतिहास का सांगोपांग उल्लेख मिलता है।

धार्मिक इतिहास

       इतिहास का यह अत्यन्त रोचक विषय है अधिकांश इतिहासकारों ने धार्मिक भावना से प्रेरित होकर इस विषय पर अधिकाधिक चर्चा की है। इसके अन्तर्गत आरम्भ से लेकर अब तक होने वाले समस्त धार्मिक क्रियाकलाप आते हैं बौद्ध धर्म, जैन धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम धर्म का इतिहास विभिन्न युगों में लिखा गया है। यूरोप में पुनर्जागरण तथा धर्मसुधार काल धार्मिक इतिहास-लेखन की दृष्टि से स्वर्णकाल माना जाता है । धार्मिक विषयों की चर्चा प्रोटेस्टेन्ट तथा कैथोलिक इतिहासकारों ने की है।

सैनिक इतिहास

      अनेक राज्यों के उत्थान तथा पतन के पीछे सैनिक कारण निर्णायक रहे हैं। नेपोलियन, मुसोलिनी, हिटलर आदि का उत्थान तथा पतन सैनिक गतिविधियों के कारण हुआ। सैनिक इतिहास के अन्तर्गत स्थल सेना, वायुसेना, जल सेना का संगठन, सैन्य सामग्री, अस्त्र-शस्त्र का निर्माण और उसके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है। आजकल अणुबम, न्यूक्लीय अम्ल, प्रक्षेपास्त्र तथा रासायनिक अस्त्रों का निर्माण मानव जाति के विनाश के लिए किया जा रहा है। रेनियर के अनुसार आधुनिक इतिहासकारों का पुनीत कर्त्तव्य है कि नैतिकता के माध्यम से इन नवीन अस्त्रों के निर्माण पर प्रतिबन्ध लगायें। परमाणु अस्त्रों के प्रयोग की भर्त्सना, निशस्त्रीकरण जैसी सन्धियों का उल्लेख ऐसे ही इतिहास में होता है।

औपनिवेशिक इतिहास

      औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् यूरोप के शक्तिशाली देशों ने कच्चे माल की प्राप्ति के लिए एशिया, अफ्रीका,, दक्षिणी अमेरिका तथा उत्तरी अमेरिका के बीच उपनिवेश स्थापित किये। परिणामस्वरूप स्पेन, पुर्तगाल, इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा जर्मनी के बीच उपनिवेश विस्तार के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगी। इन देशों के बीच पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता शुरू हो गई जिसके परिणामस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति तनावपूर्ण हो गई। फशोडा संकट, मोरक्को संकट तथा अगादीर संकट ने कई बार विश्व युद्ध की स्थिति पैदा कर दी। इन समस्याओं ने इतिहासकारों का ध्यान आकृष्ट किया। परिणामस्वरूप औपनिवेशिक इतिहास लेखन प्रारम्भ हुआ। औपनिवेशिक इतिहास ने भी इतिहास-क्षेत्र के अन्तर्गत एक महत्त्वपूर्ण स्थान बना लिया है।

इतिहास दर्शन

      इतिहास दर्शन के जन्मदाता वाल्तेयर थे। उनका एकमात्र उद्देश्य इतिहास के अध्ययन को आलोचनात्मक तथा वैज्ञानिक बनाना था। 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में जब हीगेल ने इतिहास दर्शन का प्रयोग किया तो उसका तात्पर्य सार्वभौमिक मानवीय इतिहास से था। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में दार्शनिक इतिहासकारों ने घटना विशेष के ज्ञान के लिए सामान्य नियमों का प्रतिपादन किया। इन दार्शनिक इतिहासकारों की दृष्टि में इतिहास के माध्यम से मानवीय समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है और यह उनके समाधान के लिए मार्गदर्शन करता है। यदि विज्ञान बाह्य ज्ञान का अध्ययन है, तो दर्शन अन्तर्ज्ञान का अध्ययन है।

कॉमनवेल्थ का इतिहास

             इतिहास क्षेत्र में कॉमनवेल्थ का इतिहास ब्रिटिश साम्राज्य की देन है। कॉमनवेल्थ इतिहास का एकमात्र उद्देश्य है-ब्रिटिश उपनिवेशों की स्वतन्त्रता के बाद उन्हें राजनीतिक दृष्टि से एकता के.सूत्र में बाँधना। आज भी इसके माध्यम से ब्रिटेन तथा स्वतन्त्र राष्ट्रों का सम्बन्ध बना हुआ है। सर कीथ हैंकाक ने सर्वे ऑफ ब्रिटिश कॉमनवेल्थ अफेयर्स नामक पुस्तक लिखी है जो कॉमनवेल्थ के इतिहास क्षेत्र से सम्बन्धित है।

    इतिहास दर्शन के दो रूप हैं-

  1.  आलोचनात्मक इतिहास दर्शन तथा
  2.  परिकल्पनात्मक इतिहास दर्शन।

   आलोचनात्मक इतिहास दर्शन विश्लेषणात्मक है तथा इसका उद्देश्य इतिहास विज्ञान का विश्लेषण तथा तार्किक खोज है। परिकल्पनात्मक इतिहास दर्शन औपचारिक तथा अर्थवादी है तथा इसका उद्देश्य इतिहास की घटनाओं में विशेष महत्त्वपूर्ण अर्थ का अन्वेषण है।

मानव प्रगति का इतिहास

      तुर्गो तथा कोंदोरसे ने मानव प्रगति के इतिहास से ही इतिहास का प्रारम्भ माना है। प्रगति से इतिहास को एकत्व तथा साम्यता मिलती है। इसने अतीत, वर्तमान और भविष्य के बीच निरन्तरता को स्थापित किया है। इसके कारण इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं होती है। अतीतकालीन दास प्रथा से आधुनिक सभ्यताओं का सर्वेक्षण इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि आदि अवस्था से आधुनिक काल तक मानवीय इतिहास का स्वरूप प्रगतिवादी रहा है । कालिंगवुड के अनुसार प्रगति का सम्बन्ध प्रकृति तथा इतिहास से है। प्रकृति में प्रगति नहीं, अपितु विकास होता है परन्तु मानवीय इतिहास का स्वरूप प्रगतिशील रहा है। इसीलिए समस्त मानवीय इतिहास को प्रगति का इतिहास कहा गया है। इतिहास में मानवीय उपलब्धियों के पीछे एक प्रगति का इतिहास होता है।

मानव स्वतन्त्रता का इतिहास

      लार्ड एक्टन ने कहा है कि इतिहास मानवीय स्वतन्त्रता की विकसित कहानी है। इतिहास के महान् आन्दोलन का उद्देश्य साम्राज्यों का निर्माण नहीं, अपितु मानवीय इच्छा की स्वतन्त्रता का निरन्तर प्रयास रहा है। उद्देश्यपरक इतिहास में मनुष्य ने अपनी शक्ति का उपयोग स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए किया है। स्वतन्त्रता के अभाव में मानवीय शक्ति को विकसित होने का अवसर नहीं प्राप्त हुआ है। गिबन ने रोमन साम्राज्य के पतन के कारणों का विश्लेषण करते हुए मानवीय स्वतन्त्रता के अभाव को पतन का प्रमुख कारण बताया है। फ्रांस के इतिहास में 1789, 1830 एवं 1848 की क्रान्तियों के नवीन अध्यायों की प्रमुख उद्घोषणा में स्वतन्त्रता का व्यापक प्रभाव देखा गया है। सम्पूर्ण इतिहास मानवीय इच्छा की स्वतन्त्रता से ओतप्रोत है। इसलिए दार्शनिक इतिहासकारों ने इतिहास को मानवीय स्वतन्त्रता का इतिहास कहा है।

विश्व इतिहास

       विश्व इतिहास से आशय विश्व के सभी राष्ट्रों के ज्ञान से है। आज कोई भी राष्ट्र अपने आप में पूर्ण नहीं है, सभी राष्ट्र एक-दूसरे पर निर्भर हैं। अतः विश्व इतिहास का ज्ञान आवश्यक-सा हो गया है। इतिहास में एक समय ऐसा भी आया था जब उग्र राष्ट्रीयता की भावना के कारण प्रथम विश्वयुद्ध का सूत्रपात हुआ। यह युद्ध मानव-जाति के लिए अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध हुआ। अतः मानव समाज की रक्षा के लिए विश्व संस्थाओं की आवश्यकता अनुभव की गई, इसके परिणामस्वरूप हेग न्यायालय, राष्ट्रसंघ तथा संयुक्त राष्ट्र संघ आदि की स्थापना की गई। इससे विश्व-बन्धुत्ववाद को प्रोत्साहन मिला। विश्व-बन्धुत्ववाद की भावना को जाग्रत करने में इतिहासकारों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। यहीं से विश्व- इतिहास लिखने की ओर लोगों का ध्यान गया।

      सबसे पहले सर वाल्टर रेले ने विश्व इतिहास लिखा। इसके बाद एच.जी. वेल्स, कान्ट, हीगेल, स्पेंगलर, टायनबी, फिश्ते, शीले, हेज, हिक आदि ने भी विश्व इतिहास लेखन की परम्परा को आगे बढ़ाया। इनमें एच.जी. वेल्स की आउटलाइन ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री, टायनबी की दी स्टडी ऑफ हिस्ट्री तथा विलियम डूरण्ट की स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन आदि विशेष उल्लेखनीय हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू द्वारा रचित विश्व-इतिहास की झलक भी एक प्रसिद्ध रचना मानी जाती है।

 

 

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