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बीसवीं सदी में विज्ञान और तकनीक

बीसवीं सदी का विश्व

बीसवीं सदी में विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में हुई प्रगति

विश्व में महाद्वीपों का विकास ईसा से पूर्व ही हो गया था, परन्तु आवागमन के तथा जनसंचार के साधनों के अभाव में यह भी पता नहीं था कि अमुक देश कहाँ पर स्थित है। सीमित साधनों के आधार पर सभ्यताओं का विकास विश्व की बड़ी-बड़ी नदियों के किनारे हुआ। विश्व की प्राचीन सभ्यताएँ जैसे सिन्धु घाटी सभ्यता (भारत), मिस्र की सभ्यता, चीन की सभ्यता, बेबीलोनिया की सभ्यता, सुमेरियन की सभ्यता आदि सभ्यताएँ नदियों की घाटियों में विकसित हैं। प्राचीन सामान्य स्तर के जलयानों द्वारा व्यक्ति एक देश से दूसरे देश में जाया आया करते थे, परन्तु इतना सम्पर्क व वस्तुगत आदान-प्रदान विकसित नहीं था। एक देश से दूसरे स्थान पर जाने का मुख्य उद्देश्य या तो धर्म प्रचार रहा या साम्राज्य विस्तार की भावना रही हो। जैसे अशोक के समय भारत में बौद्ध धर्म के प्रचारक श्रीलंका व जावा, सुमात्रा, चीन तक पहुँच गये थे। भारत का ज्ञान-विज्ञान यूनान तक पहुंच गया था। भारतीय संस्कृति में सारी वसुधा यानी संसार को एक परिवार के रूप में देखा है। भारतीय ग्रन्थों में कहा गया है कि उदार चरित्र वालों के लिये सारा संसार परिवार के समान है। यह मेरा है, यह तेरा है, ऐसी गणना संकीर्ण चित्त वाले करते हैं-

अयं निजः परोवेत्ति गणना लघु चेतसाम्।

उदार चरितां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥

आज का युग वैज्ञानिक ही नहीं कम्प्यूटर युग कहलता है। विज्ञान व ज्ञान का विकास तो मानव सृष्टि के विकास से ही चल रहा है, परन्तु वर्तमान ज्ञान-विज्ञान व नवीन तकनीकी विकास ने सारे विश्व को एक सूत्र में ही नहीं पिरोया, अपितु एक परिवार व पड़ौस बना दिया है। अपने कमरे में बैठे हम अमेरिका में बैठे व्यक्ति को सामने देखते हुए बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि वह हमारे सामने ही है, बस प्रत्यक्ष में स्पर्श नहीं कर सकते। राकेश शर्मा चन्द्रमा पर पहुँचे तो उन्होंने हमारी तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाँधी से बात की। इस प्रकार आधुनिक तकनीकी विकास से ब्रह्माण्ड भी एक है। विश्व एकता (Global Uniformity) में निम्नलिखित तत्त्व विशेषकर उत्तरदायी हैं-

1. आवागमन के साधन-

इंग्लैण्ड की औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप भाप की शक्ति का विकास हुआ और भाप की शक्ति से भाप के इंजन बनने लगे, जिनकी सहायता से रेल्वे व मोटर यान बने, जो बड़ी तीव्रगति से सड़कों पर दौड़ने लगे। इससे पूर्व आवागमन के लिये पद यात्रा या पशु शक्तिका ही एक मात्र अवलम्ब था। साम्राज्य विस्तार की बात हो या व्यापार विस्तार की, आवागमन के लिये सुविधानुसार ऊँट, खच्चर, अश्व, बैलगाड़ियाँ, ऊँटगाड़ियाँ, हाथी आदि को ही प्रयोग में लिया जाता था, परन्तु भाप की शक्ति के इंजन से स्वचालित यातायात के साधन बने, जिनसे जल, थल व नभ में आवागमन सुलभ हो गया। पहले जलयान द्वारा दूसरे देशों में महीनों में पहुँचा जाता था, वहाँ आजकल वायुयान द्वारा कुछ घण्टों में पहुँचा जाता है। इन साधनों से अब देशों की दूरी समाप्त हो गई। यातायात के साधनों ने आयात-निर्यात की वृद्धि में काफी सहयोग दिया है। इनके द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार सरल हो गया। इसके माध्यम से एक देश के व्यक्तियों का आवागमन बढ़ने लगा। यातायात के साधनों के विकास के कारण उपनिवेशवाद को बढ़ावा मिला।

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वास्कोडिगामा ने भारत का मार्ग खोजा, जिससे भारत में विदेशियों का आवागमन होने लगा। अमेरिका की खोज के बाद लोग इसे नई दुनिया कहने लगे तथा इंग्लैण्ड वालों ने वहाँ बस्तियाँ भी बना ली हैं। यातायात के उच्चस्तरीय विकसित साधनों के कारण पश्चिमी देश वाले अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, चीन व जापान तक पहुँचने लगे। आवागमन को सुलभ बनाने के लिये मार्ग में आने वाले अवरोधों को भी दूर किया जाने लगा। सड़कें बनीं, नदियों पर पुल बनाये, पहाड़ों में सुरंगें निकाली गई तो सकड़े समुद्री मार्गों में नहरें बनाईं जैसे स्वेज नहर व पनामा नहर आदि । विश्व को एक सूत्र में पिरोने के लिये यातायात के साधनों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अन्तर्राष्ट्रीय नियम बनाये गये, जिसके अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डों व बन्दरगाहों का विकास हुआ।

2. जन संचार क्रान्ति-

विज्ञान ने यातायात के विकास से आवागमन सरल कर दिया, परन्तु दूर संचार के साधनों के समुचित विकास से दूरस्थ स्थानों पर स्थित व्यक्तियों से वार्तालाप की सम्भव हो गया। जन संचार के क्षेत्र में टेलीफोन, मोबाइल फोन, रेडियो, टेलीविजन, तार-फैक्स, टेलीप्रिन्टर, इन्टरनेट आदि ऐसे साधन उपलब्ध हो गये हैं कि व्यक्ति अपनी टेबल पर बैठे-बैठे विश्व के किसी भी कोने में स्थित व्यक्ति से सम्पर्क कर सकता है। कम्प्यूटर पर विश्व की सभी प्रकार की जानकारी कर सकता है। जन संचार क्रान्ति ने विश्व की गतिविधियों को अधिक गतिशील कर दिया। राजनीति के क्षेत्र में पल-पल घटित होने वाली घटनाओं की जानकारी मिलती रहती है। संचार के साधनों के विकास से पूर्व पत्र व्यवहार द्वारा ही एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचारों का सम्प्रेषण होता था। इस विधि से विचारों के आदान-प्रदान में काफी समय लगता था। आवश्यक सूचना समय पर उपलब्ध नहीं होती थी। महत्त्वपूर्ण समाचार के लिये दूत या पत्रवाहकों की सहायता ली जाती थी। पर्वतीय तथा रेगिस्तानी क्षेत्रों में अभी डाक व्यवस्था सही नहीं है।

राजनीतिक सम्मेलन व युद्ध काल में संचार साधनों का बहुत महत्त्व है। महत्त्वपूर्ण सन्देश तत्काल फोन द्वारा सम्प्रेषित कर देते हैं। फैक्स द्वारा लिखित सन्देश तत्काल प्रेषित किये जा सकते हैं। युद्ध काल में जरूरी सन्देश या सैनिक आदेश वांछित स्थान पर पहुँचाये जा सकते हैं। व्यापार के क्षेत्र में संचार साधनों का बड़ा महत्त्व है। आजकल अन्तर्राष्ट्रीय आयात-निर्यात व्यापार फोन द्वारा किये जाते हैं। उत्पादन क्षेत्रों की जानकारी व क्रेता-विक्रेता के व्यापारिक व्यवहार संचार साधनों पर ही निर्भर करते हैं।

सामाजिक क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। पहले अपना देश ही विस्तृत होने तथा प्राकृतिक अवरोधकों, नदियों व पर्वत श्रृंखलाओं के द्वारा आवागमन संभव नहीं था। सामाजिक सम्बन्धों का विस्तार जन संचार साधनों की सहायता से विस्तृत हो गया है। आजकल एक देश से दूसरे देश में भी वैवाहिक सम्बन्ध संभव हो गये हैं। सांस्कृतिक आदान-प्रदान में जन संचार साधनों का सहयोग मिलता है। ध्वनि प्रसारक यन्त्रों द्वारा एक कथन को हजारों व्यक्ति एकसाथ श्रवण कर सकते हैं। वैश्वीकरण को अधिक सफल बनाने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय खेलकूदों की कोमेन्ट्री व दृश्य विश्व के प्रत्येक सुने व देखे जा सकते हैं। इस प्रकार विश्व को एक सूत्र में पिरोने के लिये जन संचार साधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

3. औद्योगिक तकनीकी-

आजकल औद्योगिक क्षेत्र में नवीन तकनीकी विकास हुआ है। विकसित देशों में उद्योग क्षेत्र में नवीन तकनीक अपनाई जा रही है, जिससे प्रत्येक क्षेत्र में वृद्धि हुई। औद्योगिक क्रान्ति के बाद व प्रथम युद्ध की समाप्ति के उपराना अमेरिका, जापान, चीन, फ्रांस आदि में उत्पादन के क्षेत्र मे नवीनतम तकनीकी का प्रयोग किया जा रहा है। कृषि के क्षेत्र में अमेरिका में उत्पादन इतना अधिक हो जाता है कि रखने को जगह नहीं है और उसे यदाकदा नष्ट किया जाता है। अर्द्ध विकसित व विकासशील देश विकसित राष्ट्रों से नवीन तकनीकी सीखते हैं व तत्सम्बन्धी यन्त्रों का आदान-प्रदान करते हैं, इससे एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से सम्बन्ध स्थापित करता है। कृषि, वस्त्र उद्योग, आयुधनिर्माण आदि में नवीन तकनीकी प्रयुक्त है। ऐसा कोई भी देश नहीं, जहाँ आवश्यकता की सभी वस्तुएँ उपलब्ध हैं। अत: एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में निर्भर रहता है।

वैश्वीकरण के युग में प्रयुक्त पुरानी मशीनें व यन्त्र अप्रायोगिक सिद्ध हो रहे हैं। उनसे उत्पादन ठीक से नहीं हो रहा है। अतः विकसित देशों ने सभी प्रकार के उद्योगों के लिये नवीनतम यन्त्रों का निर्माण किया है। अर्द्ध विकसित देश, विकासशील देश नवीन यान्त्रिक तकनीकी के लिये, विकसित देशों से सम्पर्क करते हैं तथा उनसे नवीन मशीनें क्रय करते हैं। इन सब कार्यों के लिये एक-दूसरे से सम्पर्क बनाए रखता है। प्रत्येक देश के पास कुछ न कुछ नवीनता रहती है।

4. आर्थिक अन्तर्निर्भरता-

प्रत्येक देश के विकास के लिये वित्त की आवश्यकता रहती है। वित्त के लिये अर्द्धविकसित व विकासशील देशों को विकसित देशों से ऋण लेना पड़ता है। विकास के कार्य जैसे बाँध बनाना, पुल बनाना, सड़कें बनाना, औद्योगिक इकाईयाँ लगाना आदि के लिये धन की आवश्यकता होती है। प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति पाने के लिये धन की आवश्यकता होती है। आर्थिक अन्तर्निर्भरता के कारण एक देश दूसरे पर निर्भर रहता है। इससे विश्व एक सूत्र में बँधता जाता है।

5. चिकित्सा सहयोग-

बीमारी, महामारी का कोई भरोसा नहीं है। कुछ रोग इस प्रकार के होते हैं जो विश्व स्तर पर फैलते जाते हैं। अधिक स्तर पर फैलने वाले रोगों की रोकथाम के संयुक्त राष्ट्र संघविश्व बैंक से सहयोग लिया जाता है। चिकित्सा के क्षेत्र में चिकित्सीय सहयोग लेने के लिये विकसित राष्ट्रों से सहयोग लेना पड़ता है। विशेष बीमारियों का इलाज कराने के लिए, अमेरिका, रूस व लन्दन जाते हैं। इस प्रकार राष्ट्रों में आपसी सहयोग बनता है। मेडीकल की शिक्षा प्राप्त करने के लिये लोग विकसित देशों में जाते हैं।

6. कला व सांस्कृतिक आदान-प्रदान-

कलासंस्कृति मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति है। कलाओं में गीत, संगीत, नाटक, साहित्य एक अनेक प्रकार की ललित कलायें हैं। कला व सांस्कृतिक धरोहर प्रत्येक राष्ट्र के विकास में सहयोग देती है तथा पारस्परिक सम्पर्क सम्वर्द्धन में सहायक है। प्रत्येक देश किसी न किसी कलात्मक वस्तुओं के लिये विख्यात है। जैसे भारत में आगरा का ताजमहल, पिंकसीटी ऑफ इण्डिया जयपुर, कश्मीर व कई अन्य स्मारक प्रसिद्ध हैं। विदेशी लोग राजस्थान व भारत लोकनृत्य पसन्द करते हैं। इसी प्रकार एक देश के निवासी दूसरे देशों की कला के प्रति आकर्षण के कारण सम्पर्क बनाते हैं। अच्छी कलात्मक शिक्षा को अपने देश में अपनाते हैं। इस प्रकार विश्व के देश एक दूसरे से सम्पर्क करते हैं।

7. परमाणु शक्ति-

द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा परमाणु शक्ति का प्रयोग विनाशात्मक कार्य के लिये किया। उसके बाद विश्व के प्रत्येक देश को यह ज्ञात हो गया कि परमाणु शक्ति सबसे बड़ी शक्ति है। सभी देशों ने परमाणु बम बनाना प्रारम्भ कर दिया। परमाणु शक्ति के भय के कारण प्रत्येक देश एक-दूसरे देश से भयभीत रहने लगा। शीतयुद्ध इसी भय के कारण बना रहा। अप्रत्यक्ष रूप से सभी महाशक्तियों से भयभीत रहे तथा भविष्य में कोई भी परमाणु शक्ति प्रयोग विनाशकारी कार्य के लिये न करें, इसके शिखर सम्मेलन आयोजित किये। सम्मेलनों में इस बात पर भी चर्चा की गई कि परमाणु शक्ति का उपयोग शान्तिमय कार्यों में भी किया जा सकता है। परमाणु शक्ति सम्पन्न देशों से यह अपेक्षा की गई कि भविष्य में परमाणु शक्ति का प्रयोग विनाश के लिये न करें तथा उसका उपयोग अन्य रचनात्मक कार्य, चिकित्सा व अन्य औद्योगिक विकास में करें। इस प्रकार के सम्मेलनों से सभी देश विश्व की महान् शक्तियों से सम्पर्क करने लगे। कुछ देश गुटनिरपेक्ष रहे।

8. आतंकवाद-

आतंकवाद विश्व की सबसे बड़ी समस्या है। अमेरिका जैसे विकसित एवं सर्वशक्ति सम्पन्न देश पर भी आतंकवादियों ने हमला कर दिया, भारत में लोकसभा पर आतंकी हमला हुआ, कश्मीर में आतंककारी घटनाएं होती रहती हैं, मुम्बई व जयपुर तथा भारत की राजधानी दिल्ली में आतंकी घटनाएं हो रही हैं। पाकिस्तान आतंकियों को प्रशिक्षण देता है, परन्तु स्वयं पाकिस्तान भी आतंकवाद से ग्रसित है। अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद को समाप्त करने के लिए सहायता देता है। प्रत्यक्ष में तो पाकिस्तान आतंकवाद को समाप्त करने में तत्परता दिखाता है, परन्तु वास्तविकता क्या है? सन्देहास्पद है, क्योंकि पाकिस्तान में ही आतंकवाद के प्रशिक्षण केन्द्र हैं। विश्वव्यापी आतंकवाद की समस्या का समाधान प्रत्येक राष्ट्र के सहयोग से ही किया जा सकता है। इसके लिए प्रत्येक राष्ट्र को बड़े राष्ट्रों के साथ मिलकर कार्य करना होगा। विश्व में अर्द्धविकसित व विकासशील देशों को भी अपनी सुरक्षा के लिये आतंकवादी गुटों से सावधान रहना चाहिए।

वर्तमान में प्रमुख आतंकवादी गुट हैं- (1) स्थानीय इस्लामिक विद्रोही गुट। (2) अलकायदा व स्थानीय चरमपंथी गुट (3) तालिबान व अलकायदा (4) हमास और फतह (5) पीजेन्ट सेल्फ डिफेंस फोर्सेज ऑफ कोलम्बिया (6) सोमाली ट्रॉजिशनल फेडरल फोर्सेज (7) इस्लामिक ग्रुप (8) तहरीक ए तालिबान और लश्कर ए तोएबा (9) तालिबान और अलकायदा (10) हिजबुल मुजाहिद्दीन (11) लश्कर ए तोएबा (12) जैश-ए-मोहम्मद एवं अन्य पाकिस्तान आधारित आतंकवादी संगठन।

ये गुट तो प्रत्यक्ष में हैं, कुछ ऐसे भी हो सकते हैं, जिनका अभी तक पता नहीं चला, परन्तु वे अपनी गतिविधि सक्रिय रखते हैं। अब तक पुरुष आतंकवादी व मानव बम के बारे में ही सुना जाता है, परन्तु इस क्षेत्र में महिलाएँ भी सक्रिय होती जा रही हैं। आतंकवादी गतिविधियाँ करने वाले मानवीय हिंसा भी करते हैं। अत: इस समस्या के समाधान हेतु सभी राष्ट्रों को मिल जुलकर रहना आवश्यक है। वैश्वीकरण की हितकारी गतिविधियों के लिये यह आवश्यक है। इस कारण भी संसार के सभी देश एकता के सूत्र में बँधते हैं।

9. प्राकृतिक आपदायें-

प्राकृतिक संसाधन सब जगह एक से नहीं हैं। कहीं रेगिस्तान हैं तो कहीं पथरीली भूमि है। कहीं पर्वतीय श्रृंखलाएँ हैं तो कहीं नदियाँ हैं। वर्षा का वितरण भी सर्वत्र समान नहीं है। कहीं मानसून अच्छा है, तो वर्षा अच्छी हो जाती है। कहीं सूखा रहता हैं, तो अकाल की समस्या आती है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में नदियों में भीषण बाढ़ आ जाती हैं, तो कहीं भूकम्प से नगर के नगर धराशाही हो जाते हैं, जिससे धन-जन की हानि होती है। प्राकृतिक आपदायें सभी देशों में होती हैं। ऐसे समय अवस्था तथा हानि को देखते हुए सभी देश एक-दूसरे की यथासम्भव मदद करते हैं। कोई राष्ट्र पुनर्वास के लिये तकनीकी सहयोग देते हैं तो कोई आर्थिक सहयोग करते हैं। इस मानवीय भावना से भी सभी देश एक-दूसरे से सम्पर्क बनाए रखना आवश्यक समझते हैं।

10. अन्तर्राष्ट्रीय खेलकूद-

खेल खेल की भावना से ही खेले जाते हैं। राष्ट्रों में परस्पर राजनीतिक मतभेद व वैमनस्य हो, परन्तु इससे खेलकूद की टीमों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। खिलाड़ी एक-दूसरे देश में जाते हैं तो उनका यथोचित सम्मान किया जाता है। ओलम्पिक खेलकूद तो विश्व के बड़े-बड़े देशों में खेले जाते हैं। मेजबान देश करोड़ों रुपये खर्च करता है तथा गर्व का अनुभव करता है कि उसके देश में ऐसे खेलकूद आयोजित हो रहे हैं। हॉकी, क्रिकेट के खेल तो वर्ष भर होते ही रहते हैं। भारत व पाकिस्तान के मध्य राजनीतिक विवाद होते हुए भी टीमें खेलती रहती हैं। ये अन्तर्राष्ट्रीय खेल अन्तर्राष्ट्रीय एकता बनाने में सहायक हैं। इससे एक देश दूसरे देश के साथ मैत्री भाव बनाए रखते हैं। इससे राजनीतिक मनमुटाव भी दूर होते रहते हैं।

11. अन्तरिक्ष कार्यक्रमों में सहयोग-

आज के युग में वैज्ञानिक प्रगति चरम सीमा पर है। सभी विकसित व विकासशील देश अन्तरिक्ष खोज में लगे हुए हैं। अन्तरिक्ष यान के निर्माण व प्रक्षेपण में बड़े देश आपस में सहयोग करते हैं। अन्तरिक्ष यात्रा व अन्वेषण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक देश दूसरे देश से सम्पर्क करते हैं।

12. पेट्रोलियम (ऊर्जा संसाधन)-

यातायात के साधन व उद्योग धन्धों को संचालित करने के लिये पेट्रोलियम पदार्थों की आवश्यकता होती है। पेट्रोल-डीजल का उत्पादन सभी देशों में नहीं होता है। कुछ देशों में तो पेट्रोल बिल्कुल भी नहीं निकलता है। ऐसी स्थिति में पेट्रोल उत्पादक देशों से सम्पर्क करना आवश्यक हो जाता है। ईरान-इराक व अरब देशों में पेट्रोल अधिक उपलब्ध है। अत: ऊर्जा के इस महत्त्वपूर्ण साधन के लिये एक देश दूसरे देश पर निर्भर है। इस साधन के कारण भी विश्व के देश एक सूत्र में बंधते हैं।

13. आयात-निर्यात-

मानवीय आवश्यकता सबकी समान है। जलवायु की दृष्टि से आवश्यकताओं में परिवर्तन होता रहता है। सभी देश अपनी आवश्यकताओं की सभी वस्तुओं का उत्पादन का आयात-निर्यात करना आवश्यक होता है। औद्योगिक विकास की दृष्टि अपने उत्पादों को खपाने के लिये भी निर्यात आवश्यक है। निर्यात की अधिकता से देश सम्पन्न होता है। आज हर देश निर्यात व्यापार को बढ़ाने में विशेष तत्पर है। आयात-निर्यात में खाद्यान्न, यन्त्र एवं मशीनरी, मेडीकल उपकरण भारी उद्योग सम्पन्न आदि प्रमुख हैं। चाय, चीनी व वस्त्र, हस्तशिल्प, स्वर्णाभूषण का भी आयात-निर्यात किया जाता है।

14. गुटनिरपेक्षता-

विश्व युद्ध के उपरान्त संसार दो गुटों में विभाजित हो गया। अब राष्ट्रों के समक्ष यह समस्या थी कि किसी भी गुट में सम्मिलित हो या तो वे अमेरिका के साथ रहे या सोवियत रूस के साथ। साम्यवादी राष्ट्र रूस के साथ हो गये। परन्तु कुछ राष्ट्र ऐसे भी जो किसी भी गुट के साथ नहीं रहना चाहते थे। वे गुट-निरपेक्ष ही बने रहना चाहते थे। इस प्रकार गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों का पृथक संगठन बना। इसके लिये कई सम्मेलन आयोजित किये गये। 7 मार्च, 1983 को नई दिल्ली में गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों का सातवाँ सम्मेलन हुआ। इस सम्मेलन की अध्यक्षता स्व. श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने की थी। इस सम्मेलन में 101 राष्ट्रों ने भाग लिया था।

इस प्रकार विश्व के समस्त राष्ट्र तीन भागों में बँट गये। कुछ राष्ट्र गुटों से सम्मिलित हो गये तो कुछ गुटनिरपेक्ष रहे। तात्पर्य यह है कि वर्तमान में वैश्वीकरण का विस्तार इतना हो गया कि अपने राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक प्रगति के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए विश्व के अन्य राष्ट्रों के साथ समन्वय बनाये रखना आवश्यक हो गया। यातायात के साधन, जनसंचार सुविधाओं ने वैश्वीकरण एकता में बहुत बड़ा सहयोग दिया है। विकासशील व अर्द्धविकसित राष्ट्रों के लिये अन्य बड़े व छोटे राष्ट्रों के साथ मिल जुलकर रहना आवश्यक है।

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