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विदेश नीति के सम्बन्ध में भारत के पड़ोसी देशों से सम्बन्ध

बीसवीं सदी का विश्व

भारत-चीन सम्बन्ध

भारत-चीन सम्बन्धों की प्रकृति एवं घटनाक्रम का विवेचन इन चरणों के अन्तर्गत किया गया है-

1. भारत-चीन सम्बन्धों का प्रथम काल (1949-1957)-

1949 से 1957 का काल दोनों देशों के सम्बन्धों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों का काल कहा जा सकता है। क्योंकि इस अवधि में जून, 1954 में दोनों देशों के बीच एक व्यापक आर्थिक समझौता हुआ था। भारत ने तिब्बत पर से अपने अधिकारों को चीन को सौंप दिया था और इसी समझौते में पहली बार पंचशील के सिद्धान्त को दोनों देशों ने स्वीकार किया था। अप्रैल, 1955 में बांडुंग सम्मेलन में नेहरू तथा चाऊ-एन-लाई ने सहयोगपूर्वक कार्य किया था जिससे दोनों देशों के मध्य हिन्दी-चीनी भाई-भाई की भावना उत्पन्न की गई थी।

2. भारत-चीन सम्बन्धों का द्वितीय काल-सन्देह एवं कटुता का दौर (1958-1980)-

इस काल में भारत तथा चीन के सम्बन्धों में तनाव और संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद से दोनों देशों के बीच पारस्परिक सम्बन्ध पूरी तरह समाप्त हो गये तथा दोनों ही देश एक-दूसरे को सन्देह की दृष्टि से देखते रहे। भारत-चीन सम्बन्धों में कटुता पैदा करने वाले मुख्य मुद्दे निम्नलिखित रहे हैं-

1. तिब्बत- 1949 के पूर्व तिब्बत नाममात्र के लिए चीन के अधीन था और आन्तरिक एवं बाह्य मामलों में पूर्णतः स्वतन्त्र था। भारत के साथ तिब्बत के घनिष्ठ व्यापारिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध रहे हैं। 1954 में चीन की सरकार ने तिब्बत पर अपना सम्पूर्ण अधिकार जमा लिया। जब चीन ने तिब्बत के धर्म और संस्कृति को नष्ट करने और उसके आन्तरिक मामलों में भी पूर्ण अधिकार करने का प्रयल किया तो तिब्बतियों ने चीन की इस नीति का विरोध किया तथा दलाईलामा ने भारत में आकर शरण ली।

चीन ने, भारत द्वारा शरण दिये जाने की कार्यवाही को अपने प्रति शत्रुता की संज्ञा दी। इसके पहले चीन ने भारत की सीमा में घुसपैठ करके सड़कें बनाना और चौकियाँ स्थापित करना शुरू कर दिया था। 1958 में चीनियों ने एक भारतीय गश्ती दल के कुछ सैनिकों को भी मार दिया।

2. सीमा विवाद- भारत के साथ चीन का सीमा विवाद एक ऐतिहासिक देन है। पूर्व के भारतीय नेताओं की अदूरदर्शिता के कारण यह विवाद अत्यन्त विषाक्त स्थिति में पहुँच गया है। इस विवाद के कारण सन् 1962 में युद्ध हुआ। लेकिन इसके बाद से आज तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला। लगभग 95 वर्ष पूर्व 'मैकमोहन रेखा तय गई थी परन्तु चीन आरम्भ से ही इससे असहमत रहा। इधर, भारत का मत है कि चीन ने कश्मीर के 38 हजार वर्ग किलोमीटर के 'अक्साई चिन' इलाके पर कब्जा कर रखा है और पाकिस्तान ने भी 1955 में उसकी 5 हजार वर्ग किमी. जमीन पर अवैध कब्जा करके चीन को सौंप दिया है। जबकि चीन का कहना है कि भारत नें अरुणाचल प्रदेश में उसके 90 हजार वर्ग किमी. इलाके पर कब्जा कर रखा है। अत: इन मुद्दों को लेकर भारत और चीन के मध्य सीमा विवाद चलता रहता है।

3. सिक्किम का भारत में विलय- तत्कालीन प्रधानमन्त्री (स्व.) श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने सन् 1975 में सिक्किम को भारत में मिलाकर इस देश का 22वाँ राज्य घोषित कर दिया। चीन ने इसकी तीखी आलोचना की और विलय को मान्यता प्रदान नहीं की और चीन द्वारा समय-समय पर प्रकाशित मानचित्रों में सिक्किम को भारत के हिस्से के रूप में नहीं दर्शाया गया। वर्ष 2005 सिक्किम सम्बन्धी विवाद हल हो गया है। में चीन ने सिक्किम को भारतीय भू-भाग में शामिल कर इसे मान्यता दे दी है। अत: वर्तमान में

3. भारत-चीन सम्बन्धों का तृतीय काल (1975-1997)-

सम्बन्धों को सामान्य बनाने की पहल- भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने की सकारात्मक पहल 1975 में की गई जब 1962 के पश्चात् भारत ने चीन के साथ पूर्ण कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित करने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ते हुए के.आर. नारायणन को चीन में भारत का राजदूत नियुक्त किया। इसके पश्चात् 1977 से 13.2 करोड़ राष्ट्र व्यापार के लिए दोनों के मध्य समझौता हुआ एवं 1978 में 16 सदस्यीय व्यापार प्रतिनिधि मण्डल व्यापार की सम्भावनाओं को तलाशने के लिए भारत आया। इसी प्रकार भारतीय प्रतिनिधि मण्डल भी चीन गया। इसके बाद दोनों देशों के नेताओं ने एक-दूसरे के देश की यात्राएँ की और दोनों देशों के सम्बन्ध सुधारने की पहल की। 1981-87 के काल में सीमा विवाद हल करने के लिए वार्ताओं के आठ चक्र चले, परन्तु कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। इस काल में सीमा-व्यापार शुरू करने तथा अन्तरिक्ष अनुसन्धान विज्ञान तथा तकनीकी क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग के समझौते हुए।

4. परमाणु परीक्षण बनाम भारत-चीन सम्बन्ध (1998-2000)-

मई, 1998 से भारत-चीन सम्बन्धों में पुनः ठहराव आया। इसका प्रारम्भ चीन द्वारा दलाईलामा के भारत के प्रधानमन्त्री से मिलने पर उठायी आपत्ति से हुआ। इसके पश्चात् भारत के रक्षामन्त्री जार्ज फर्नान्डिस ने चीन की विस्तारवादी नीति को इंगित किया। मई, 1998 में भारत द्वारा परमाणु परीक्षण कर लिये जाने पर चीन ने अमेरिका के साथ मिलकर उसकी निन्दा की। चीन ने भारत पर आरोप लगाया कि दक्षिण एशिया पर वर्चस्व स्थापित करने के लिए भारत ने परमाणु परीक्षण किये हैं। इससे दक्षिण एशिया में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो जायेगी।

चीन ने सुरक्षा परिषद् में 5 जून 1998 के उस प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने में अहम् भूमिका निभाई, जिसमें भारत से परमाणु परीक्षण, परमाणु हथियार विकसित करने का कार्यक्रम, बैलिस्टिक मिसाइलों का विकास रोकने तथा एन.पी.टी, एवं सी.टी.बी.टी. पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा था। इस प्रकार चीन सुसंगठित अभियान चलाकर भारत पर एन.पी.टी. पर हस्ताक्षर करने के लिए दबाव डालता रहा। दूसरे, चीन द्वारा पूर्वी सीमा पर (खासकर तिब्बत में) सैकड़ों मिसाइलें अणु शस्त्रों से लैस कर दी गईं। ऐसी स्थिति में दोनों राष्ट्रों के मध्य कड़वाहट आनी स्वाभाविक थी।

5. सन् 2000 के पश्चात् भारत-चीन सम्बन्ध-

परमाणु परीक्षण से आई कड़वाहट को समाप्त करने तथा सम्बन्धों में सुधार की दिशा में पहल करते हुए 1999 में तत्कालीन विदेश मन्त्री जसवंत सिंह चीनी यात्रा पर गये और वर्ष 2000 में दोनों देशों ने कूटनीतिक सम्बन्ध स्थापित किये जाने की स्वर्ण जयन्ती मनायी। इसके पश्चात् सम्बन्धों में सुधार लाने की दिशा में निम्नलिखित प्रयास हुए-

(i) 2001 में चीन की राष्ट्रीय जन कांग्रेस की स्थायी समिति के अध्यक्ष ली पेंग ने भारत तथा भारतीय सेना प्रमुख ने चीन की यात्रा की।

(ii) वर्ष 2002 में चीनी प्रधानमन्त्री 6 दिवसीय भारत की यात्रा पर आये तथा इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, अन्तरिक्ष विज्ञान और व्यापार क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति हुई।

(iii) सन् 2003 में भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने चीन की पाँच दिवसीय यात्रा की। इस यात्रा के दौरान 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये तथा 23 जून, 2003 को चीन-भारत के बीच व्यापक सहयोग एवं सम्बन्धों पर पंचशील, समानता, एशिया तथा विश्व में शान्ति बनाए रखने, एक-दूसरे के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग न करने और न ही इसके प्रयोग की धमकी देने तथा सीमा विवाद को शान्तिपूर्ण वार्ताओं के द्वारा सुलझाने पर सहमति हुई। इसके अलावा इस घोषणा में तिब्बत के प्रश्न पर भारत द्वारा चीन की स्थिति को स्वीकार कर लिया गया।

भारतीय पक्ष को भी यह आशा थी कि चीन भी तिब्बत के बदले सिक्किम पर भारत के पक्ष को मान्यता देगा। भारत की यह आशा फलीभूत हुई क्योंकि मई, 2004 में प्रकाशित वर्ल्ड अफेयर्स ईयर बुक, 2003-04 में चीन ने प्रथम बार सिक्किम को भारत के अंग के रूप में प्रदर्शित किया।

(iv) भारत-चीन के बीच निकटता को बढ़ाने में आर्थिक-व्यापारिक सम्बन्धों में सुधार की मुख्य भूमिका रही है। इन व्यापारिक सम्बन्धों का एक महत्त्वपूर्ण पहलू रहा है-सीमा पार व्यापार को बढ़ावा देने की नीति । इसी नीति के अन्तर्गत 1991 में दोनों देशों के मध्य एक समझौता हुआ। इस समझौते के अन्तर्गत शिपकी दर्रा जो चीन को हिमाचल प्रदेश से जोड़ता है तथा लिपुलेख दर्रा जो चीन एवं उत्तराखण्ड के मध्य है, दोनों देशों के बीच व्यापार हेतु खोल दिये गये तथा जुलाई, 2006 में नाथूला दर्रा को भी व्यापार हेतु खोल दिया गया है। इससे दोनों देशों के व्यापार में तीव्र गति से वृद्धि होगी।

(v) नवम्बर, 2006 में चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के लोगों का आपसी सम्पर्क, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, पर्यटन, विद्यार्थियों की आपसी आवाजाही के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग के समझौते हुए।

(vi) जनवरी, 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की चीन यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने द्विपक्षीय व्यापार को 40 अरब से 60 अरब डॉलर तक करने का लक्ष्य तय किया और रेल, आवास, भू-विज्ञान, भूमि-संसाधन प्रबन्ध और अन्य क्षेत्रों में सहयोग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये।

(vii) सन् 2010 में चीनी प्रधानमन्त्री के भारत यात्रा के दौरान सम्बन्धों में प्रगाढ़ता लाने तथा द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डालर तक पहुँचाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की।

6. चीनी प्रधानमन्त्री ली केकियांग की भारत यात्रा (मई, 2013)-

मई 2013 में चीन के प्रधानमन्त्री ने भारत की यात्रा की। इससे पहले चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा के लद्दाख क्षेत्र में अचानक घुस आने के कारण भारत में चीन विरोध लहर फैल गई थी। इस यात्रा ने इस विरोधी लहर को कुछ शान्त किया है। इस यात्रा के दौरान दोनों के बीच निम्न मुद्दों पर सहमति बनी-

1. सीमा विवाद- सीमा विवाद के सम्बन्ध में दोनों देशों के बीच यह सहमति बनी है कि वर्तमान में लाइन ऑफ कन्ट्रोल पर जो स्थिति है, वही बनी रहेगी। सीमा प्रबन्ध तन्त्र में ऐसा सुधार किया जायेगा ताकि पुन: लद्दाख जैसी स्थिति न बने।

2. व्यापार असन्तुलन का मुद्दा- दोनों देशों के मध्य व्यापार में बढ़ते तथा भारत के विरुद्ध बढ़ते व्यापार असन्तुलन के सम्बन्ध में दोनों देश तीन कार्य समूह गठित करेंगे ताकि व्यापार असन्तुलन से उभरने का रास्ता निकाला जा सके।

3. ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध- ब्रह्मपुत्र नदी पर बाँध से सम्बन्धित भारतीय आशंकाओं के सम्बन्ध में यह सहमति बनी कि चीन हर साल 1 जून से लेकर 15 अक्टूबर तक दिन में दो बार अपने हाइड्रोलोजिकल स्टेशनों के जल-स्तर और जल-प्रवाह सम्बन्धी सूचनाएँ भारत को देगा।

4. वीजा सम्बन्धी विवाद- स्टेपल वीजा के विवाद का हल निकालने के लिए विशेष कार्यदल गठित किया जायेगा लेकिन वर्तमान में यह जारी रहेगा।

5. मानसरोवर यात्रा के सम्बन्ध में दोनों देश सीवरेज ट्रीटमेंट और यातायात से जुड़े मामलों में अनुभव साझा करेंगे।

स्पष्ट होता है कि चीन सीमा विवाद को हल करना नहीं चाहता क्योंकि इसके माध्यम से वह भारत पर गाहे-बगाहे दबाव डालता रहता है। वह भारत को घेरने की नीति तथा हमारे व्यापार असन्तुलन के सम्बन्ध में कोई संतोषजनक आश्वासन नहीं देता है।

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विदेश नीति के सम्बन्ध में भारत के पड़ोसी देशों से सम्बन्ध


7. शी जिनपिंग की भारत यात्रा, 2014-

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 17-19 सितम्बर, 2014 को तीन दिवसीय भारत यात्रा पर रहे। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में चीन और गुजरात सरकार के बीच तीन करार सम्पन्न हुई-

(1) पहला करार- ग्वांगडोंग की तर्ज पर गुजरात का विकास,

(2) दूसरा करार- ग्वांगडोंग की राजधानी ग्वांगझू की तर्ज पर अहमदाबाद का विकास तथा

(3) तीसरा करार- बड़ोदरा के पास औद्योगिक पार्क विकसित करने से सम्बन्धित हैं तथा दोनों देशों के मध्य 18 सितम्बर, 2014 को 12 करार हुए जिनमें कैलास- मानसरोवर के लिए नया रास्ता खोलने पर सहमति बनी, चीन भारत में लगभग 1200 अरब रुपये का निवेश पाँच वर्ष में करने के लिए राजी हुआ तथा बुलेट ट्रेन चलाने, रेलवे स्टेशनों को आधुनिक करने पर भी चीन का भारत को सहयोग मिलेगा।

8. भारत-चीन सम्बन्ध, 2015 (सुषमा स्वराज की चीन यात्रा)-

भारत-चीन विवादित सीमा मुद्दे के जल्द समाधान हेतु भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने चीन की चार दिवसीय यात्रा (2 से 5 फरवरी, 2015) की। यात्रा के दौरान विदेश मंत्री ने दोनों देशों के सम्बन्धों को बेहतर बनाने के लिए छह सूत्री मॉडल प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने कार्य आधारित रवैया, वृहद द्विपक्षीय सम्बन्ध और संलग्नता, सामान्य धार्मिक और वैश्विक हितों को साझा करना, रणनीतिक संचार को बढ़ावा, नये क्षेत्रों में सहयोग और एशियन युग के लिए आम आकांक्षाओं को पूर्ण करने का जिक्र किया।

9. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चीन यात्रा 14-16 मई, 2015-

14 से 16 मई, 2015 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चीन की तीन दिवसीय यात्रा की। इस यात्रा में दोनों देशों ने 10 अरब डॉलर के 24 करार किए जिनमें से कुछ है- एजुकेशन एक्सचेंज प्रोग्राम, माइनिंग एण्ड मिनरल सेक्टर में सहयोग, अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग, इंडिया-चाईना थिंक टैंक की स्थापना, वोकेशनल एजुकेशन और स्किल डवलपमेंट के क्षेत्र में सहयोग, रेलवे के क्षेत्र में सहयोग, भूकम्प विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में सहयोग, इंपोर्ट के क्षेत्र में सेफ्टी रेगुलेशन और भू- विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग आदि। 16 मई को भारत और चीन की कम्पनियों के बीच 22 अरब डालर के 26 समझौते हुए। मोदी ने चीन के निवेशकों को भारत में निवेश के लिए आमंत्रित किया। मोदी ने चीन के नागरिकों को ई-वीजा देने की घोषणा की। कैलाश-मानसरोवर जाने वालों के लिए नाथूला मार्ग जून 2015 से खोल दिया गया है।

भारत-पाक सम्बन्ध

दक्षिण एशिया में पाकिस्तान के साथ भारत के सम्बन्ध निरन्तर तनावपूर्ण रहे हैं, यद्यपि सम्बन्धों को सुधार के दोनों देशों द्वारा निरन्तर प्रयत्न भी किये जाते रहे हैं, परन्तु विवादित मुद्दों का स्थायी समाधान अभी तक नहीं निकल पाया है।

दोनों देशों के मध्य तनाव पैदा करने वाले कारक (मुद्दे)

भारत और पाकिस्तान के मध्य सम्बन्धों में तनाव पैदा करने वाले प्रमुख कारण निम्नलिखित है-

1. पाकिस्तान का साम्प्रदायिक आधार पर उदय-

पाकिस्तान का उदय साम्प्रदायिक आधार पर हुआ था। अत: 1947 में एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान की स्थापना के समय से ही दोनों के सम्बन्ध अविश्वासपूर्ण एवं तनावयुक्त बन गये।

2.  कश्मीर का मुद्दा-

कश्मीर के मुद्दे पर दोनों देशों के मध्य 1948 से लेकर 2019 तक कोई आम सहमति नहीं बन पायी। वर्तमान में यह समस्या अत्यन्त जटिल हो गई है क्योंकि पाकिस्तान वहाँ पर निरन्तर अप्रत्यक्ष एवं अघोषित युद्ध का संचालन कर रहा है। कश्मीर समस्या तथा अन्य मुद्दों को लेकर दोनों के बीच 1947, 1965, 1971 तथा 1999 में चार बार सैनिक संघर्ष भी हो चुके हैं। इन सैनिक संघर्षों का पाकिस्तान को यह सन्देश गया है कि पाकिस्तान भारत के साथ सीधे सैनिक संघर्ष में विजय हासिल नहीं कर सकता।

3.  पाकिस्तान में विकास व लोकतन्त्र का अभाव-

दोनों देशों के मध्य मधुर सम्बन्ध न होने का एक अन्य कारण पाकिस्तान में विकास व लोकतन्त्र दोनों का अभाव होना है। पाकिस्तान लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से अछूता रह गया है। इसका परिणाम यह हुआ कि राजनीतिक स्थिरता एवं प्रबल लोकतान्त्रिक जनमत के अभाव में सैनिक शासकों तथा कठमुल्लावादी तत्वों ने पाकिस्तान की राजनीतिक प्रक्रिया में प्रभावशाली भूमिका प्राप्त कर ली है। विकास की दृष्टि से भी पिछले 68 वर्षों में पाकिस्तान ने कोई खास प्रगति नहीं की है।

अत: पाकिस्तान की आन्तरिक परिस्थितियों के कारण वहाँ के राजनीतिक नेतृत्व को विवश होकर भारत विरोधी दृष्टिकोण अपनाना होता है। भारत विरोधी दृष्टिकोण ही उनकी राजनीतिक स्थिरता व समर्थन का आधार है।

4.  भारत विरोधी देशों के साथ सैनिक गठजोड़ एवं आतंकवाद को बढ़ावा-

पाकिस्तान ने कश्मीर में पाक-समर्थित आतंकवाद को बढ़ावा दिया। इसके बाद वह भारत के साथ सैनिक समानता हासिल करने के लिए भारत विरोधी देशों के साथ सैनिक गठजोड़ के साथ- साथ आणविक शस्त्रों के विकास और आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसे साधन भी अपनाता रहा है।

वह 1970 तथा 80 के दशक में अमेरिका से आर्थिक व सैनिक सहायता प्राप्त कर उसे भारत के विरुद्ध प्रयुक्त करता रहा। बाद में पाकिस्तान ने चीन के साथ आणविक गठजोड़ करके आणविक शस्त्रों तथा मिसाइलों के विकास का प्रयास किया। फिर भी वह भारत के समान सैन्य बराबरी प्राप्त नहीं कर पाया है। अत: विकल्प के रूप में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का समर्थन कर भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध चलाया जा रहा है। इसके प्रमाण में कश्मीर में निरन्तर होने वाली आतंकवादी घटनाएँ, 13 दिसम्बर, 2001 को पाक-समर्थित आतंकवादियों द्वारा भारत की संसद पर हमला करना, 14 जुलाई, 2006 को मुम्बई में एक ट्रेन में पाक-समर्थित आतंकवादी हमला, नवम्बर, 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों द्वारा मुम्बई के एक होटल में एक बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम देना और पाकिस्तान द्वारा उनके विरुद्ध कोई ठोस कार्यवाही नहीं करना आदि।

समकालीन सन्दर्भ में सम्बन्धों में सुधार के लिए किये गये प्रयत्न

1999 में हुए कारगिल संघर्ष के पश्चात् पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल मुशर्रफ ने 12 अक्टूबर, 1999 को लोकतान्त्रिक सरकार का तस्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा किया। तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सुधारने की दिशा में किये गये प्रयत्न इस प्रकार हैं-

1. आगरा शिखर वार्ता-

14-16 जुलाई, 2001 को दोनों देशों के बीच आगरा में शिखर वार्ताएँ आयोजित की गईं लेकिन कश्मीर के मुद्दे को लेकर दोनों में मतभेद बने रहने से ये वार्ताएँ सफल नहीं हो पाईं। इसके बाद 13 दिसम्बर, 2001 को भारत की संसद पर पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों के हमले से सम्बन्ध पुनः तनावपूर्ण हो गये। भारत ने तीव्र विरोध स्वरूप पाकिस्तान से भारत के राजदूत को वापस बुलाने, समझौता एक्सप्रेस रेल सेवा तथा लाहौर बस सेवा को बंद करने की घोषणा कर दी।

2. समग्र वार्ता प्रक्रिया का निरस्त होना (2008-2010)-

नवम्बर, 2008 में पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने मुम्बई के एक होटल में एक बड़ी आतंकवादी घटना को अंजाम दिया। चूँकि पाकिस्तान इन आतंकवादियों के विरुद्ध ठोस कार्यवाही करने के लिए तैयार नहीं था, अतः भारत ने समग्र वार्ता को निरस्त करने की घोषणा की। जून, 2010 तक दोनों देशों के मध्य आपसी विचार-विमर्श की कोई पहल नहीं हो सकी।

3. व्यापक वार्ता प्रक्रिया का आरम्भ-

अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के कई देशों के प्रयासों से जुलाई, 2010 में दोनों देशों के बीच पुनः वार्ता प्रक्रिया आरम्भ हुई।

(i) जुलाई, 2010 में भारतीय विदेश मन्त्री ने पाकिस्तान की यात्रा की किन्तु कोई ठोस प्रगति नहीं हो सकी।

(ii) जुलाई, 2011 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सीमा व्यापार को आगे बढ़ाने और कतिपय सजायाफ्ता कैदियों की रिहाई पर सहमति बनी। वार्ताओं के इस नए क्रम में बातचीत में उन्हीं आठ मुद्दों को शामिल किया गया है। इस वार्ता का नाम व्यापक वार्ता रखा गया है।

4. भारतीय विदेश मन्त्री की पाकिस्तान यात्रा (सितम्बर, 2012)-

8 सितम्बर, 2012 को भारतीय विदेश मन्त्री ने पाकिस्तान की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों ने वर्तमान वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने पर बल दिया। इस यात्रा के दौरान निम्न सहमतियाँ बनीं-

(i) दोनों ने यह स्वीकार किया कि आतंकवाद शान्ति एवं सुरक्षा के लिए गम्भीर खतरा है तथा दोनों पक्ष आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में परस्पर सहयोग करेंगे।

(ii) नशीली दवाओं की रोकथाम के लिए दोनों देशों द्वारा एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर भी किए गये।

(iii) दोनों ने भारत तथा पाकिस्तान द्वारा मुक्त किए गए कतिपय कैदियों व मछुआरों की रिहाई पर सन्तोष व्यक्त किया।

(iv) दोनों पक्षों ने आणविक तथा परम्परागत विश्वास पैदा करने वाले उपायों को मजबूत बनाने पर बल दिया।

5. भारत-पाक सम्बन्ध 2014-15-

भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों को एक नई दिशा में ले जाने के लिए भारत के नवनियुक्त प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 26 मई, 2014 को अपने शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को आमंत्रित करके किया जिससे लगा कि दोनों देशों में बातचीत एवं वार्ताओं का सिलसिला शुरू होगा। लेकिन अगस्त 2014 में पड़ोसी देश पाकिस्तान लोकतंत्र के एक नये इम्तिहान के दौर से गुजर रहा है। पाक तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख इमरान खान एवं पाकिस्तानी अवामी तहरीक पार्टी के प्रमुख ताहिर-उल-कादरी दोनों ने नवाज सरकार के सामने गृह संकट पैदा कर रखा है तथा संसद के बाहर धरना देकर निर्वाचित लोकतांत्रिक सरकार को चुनौती दे रखी है।

भारत-पाक सचिव स्तरीय वार्ता 25 अगस्त, 2014 को होने वाली थी लेकिन पाकिस्तान ने इससे पहले ही सीमा का उल्लंघन करके वार्ता को कठघरे में डाल दिया तब तैश में आकर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस्लामाबाद में होने वाली विदेश सचिव स्तर की वार्ता को ठुकरा दिया। इसके बाद 26-27 नवम्बर, 2014 को काठमांडू में आयोजित 18वें सार्क सम्मेलन में भी मोदी-शरीफ के मध्य कोई वार्ता नहीं हुई।

6. नवाज शरीफ ने मून से मुलाकात में उठाया कश्मीर मामला, 27 सितम्बर, 2015-

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने 70वें यू.एन.ओ. सम्मेलन के दौरान 27 सितम्बर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून से मुलाकात में जम्मू-कश्मीर का मसला उठाया। उन्होंने प्रदेश में जनमत संग्रह की भी माँग की। भारत के साथ तनाव कम करने और सीमा पर संघर्ष विराम के उल्लंघन के मामलों को रोकने में भी मदद माँगी। शरीफ ने कश्मीर के मामले में सुरक्षा परिषद् के प्रस्तावों को लागू करने की जरूरत पर जोर दिया तथा मून ने दोनों देशों से संवाद बनाए रखने को कहा। पाकिस्तान के जवाब में भारत ने 28 सितम्बर, 2015 को दूसरे ही दिन पाकिस्तान की जनमत संग्रह की मांग को ठुकरा दिया है तथा द्विपक्षीय मसलों को सुलझाने में किसी भी मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करता।

7. नवाज शरीफ की चार शर्ते, 2015-

यू.एन.ओ. में नवाज शरीफ (पाकिस्तानी वीरे आजम) ने भारत के साथ नये सिरे से शांति वार्ता की पहल की लेकिन उनका भाषण कश्मीर- कश्मीर मसले पर ही केन्द्रित रहा। भारत के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर वजीरे आजम ने चार शर्ते रखी, वे हैं-

(1) दोनों तरफ से सीजफायर का उल्लंघन पूरी तरह बन्द हो, यूएन इस पर नजर रखे,

(2) कश्मीर से सेना हटायी जाए,

(3) दुनिया की सबसे ऊँची चोटी सियाचीन से सेना हटायी जाय,

(4) भारत और पाकिस्तान की तरफ से किसी भी तरह से सैन्य बलों का इस्तेमाल कतई न किया जाये।

इन उपर्युक्त चारों शर्तों का जवाब पाकिस्तान को तत्काल भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 30 सितम्बर, 2015 को दो टूक शब्दों में पाकिस्तान को दे दिया तथा पीओके अधिकृत क्षेत्र पहले पाकिस्तान खाली करे बाद में कश्मीर का मुद्दा उठाये। दोनों देशों को अच्छा माहौल बनाने हेतु एक-दूसरे के प्रति टांग खिंचाई की रणनीति न अपनाये, यही बेहतर रहेगा। मूल्यांकनवर्तमान सन्दर्भ में विचारों के आदान-प्रदान के बावजूद दोनों देशों के बीच तनाव और अविश्वास के कई स्थायी कारण विद्यमान हैं। यथा-

(1) अभी तक जम्मू-कश्मीर समस्या का कोई स्थायी समाधान नहीं खोजा जा सका है।

(2) पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवाद भारत के लिए एक चुनौती है। पाकिस्तान आतंकवादी तत्त्वों पर नियन्त्रण रखने का न तो इच्छुक है और न ही सक्षम।

(3) दोनों के बीच साझा नदियों के जल बँटवारे को लेकर भी विवाद उठते रहते हैं।

(4) 1960 के दशक से ही पाकिस्तान और चीन के बीच भारत विरोधी गठजोड़ का विकास हो रहा है। यथा—(i) पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर क्षेत्र की 5 हजार वर्ग किमी. भूमि चीन के नियन्त्रण में सौंप दी है। (ii) चीन ने हाल के वर्षों में इस भूमि से होकर पाकिस्तान के साथ रेल-सड़क यातायात का तेजी से विकास किया है। (ii) चीन पाकिस्तान के अरब सागर स्थित ग्वादर बंदरगाह तक पहुँच बनाने में सफल रहा है। (iv) पाकिस्तान का परमाणु तथा मिसाइल विकास कार्यक्रम चीन की गुप्त सहायता से चल रहा है। (v) चीन ने 2010 में स्टेपिल वीजा की प्रक्रिया जारी करके जम्मू-कश्मीर की कानूनी स्थिति को विवादास्पद बना दिया है, जबकि भारत यह मानता है कि जम्मू कश्मीर भारत का अंग है।

(5) अफगानिस्तान में भारत एवं पाकिस्तान की भूमिका भी दोनों के मध्य तनाव का कारण है। भारत अफगानिस्तान में एक लोकतान्त्रिक व स्थिर सरकार की स्थापना के लिए प्रयासरत है, जबकि पाकिस्तान वहाँ तालिबान समर्थित सरकार की स्थापना करना चाहता है। इन जटिलताओं के बावजूद यदि पाकिस्तान में लोकतान्त्रिक सरकार की स्थापना होती है तथा वहाँ राजनीतिक स्थिरता मजबूत होती है, तो इसका भारत-पाक सम्बन्धों में सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

(नोट- यह लेख 2018 तक अपडेट किया गया है, शीघ्र ही अपडेट कर दिया जाएगा।)

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