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द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम

बीसवीं सदी का विश्व

द्वितीय विश्व युद्ध की प्रमुख घटनाओं के विभिन्न चरण एवं परिणाम

द्वितीय विश्व युद्ध में दो प्रतिद्वन्द्वी थे- 1. धुरी राज्य, 2.मित्र राज्य

ऐसा नहीं हुआ कि 1 सितम्बर को जर्मनी द्वारा पौलेण्ड पर आक्रमण करते ही सारे राज्य युद्धरत हो गये हों। विभिन्न राज्यों ने अपने स्वर्थानुकूल गुट चुना, अपनी सुविधानुसार युद्ध में प्रवेश किया। विभिन्न प्रमुख शक्तियों ने निम्नलिखित दिनांक को युद्ध में प्रवेश लिया-

1. जर्मनी- 1 सितम्बर, 1939 ई. को युद्ध की शुरुआत की।

2. ग्रेट-ब्रिटेन- 3 सितम्बर, 1939 ई.।

3. फ्रांस- 3 सितम्बर, 1939 ई.।

4. इटली- 10 जून, 1940 ई. को फ्रांस और ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध घोषणा की।

5. सोवियत संघ- 22 जून, 1941 ई. को जर्मनी द्वारा आक्रमण पूर्व में जर्मनी का सहयोग।

6. जापान- सितम्बर, 1940 ई. में धुरी राज्यों के साथ एक सन्धि सम्पन्न की। 7 दिसम्बर, 1941 को संयुक्त राष्ट अमेरिका के हवाई द्वीप स्थित पर्लहार्बर नामक बन्दरगाह पर आक्रमण किया।

7. संयुक्त राज्य अमेरिका- 8 दिसम्बर, 1941 ई. को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका संसद और ग्रेट ब्रिटेन द्वारा जापान के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। 11 दिसम्बर को जर्मनी और इटली द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा पर संयुक्त राज्य अमेरिका की संसद द्वारा भी तुरन्त युद्ध की घोषणा।

द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाओं के विभिन्न चरण

द्वितीय विश्व युद्ध की घटनाओं को निम्नांकित पाँच चरणों में बाँटा जा सकता है-

प्रथम चरण (1 सितम्बर, 1939 ई. से 21 जून, 1941 तक)-

एक सितम्बर, 1939 ई. को हिटलर ने पौलेण्ड पर तेज गति से आक्रमण किया तथा विद्युत आक्रमण द्वारा दो सप्ताह ही में पौलेण्ड को धाराशाही कर दिया। 3 सितम्बर को ग्रेट ब्रिटेन और फ्रांस ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की, परन्तु वे पौलेण्ड कुछ सहायता नहीं कर सके। इसी बीच सोवियत संघ ने पूर्वी पौलेण्ड पर आक्रमण कर दिया ताकि लूट में वह भी अपना हिस्सा ग्रहण कर सकें। 27 सितम्बर को पौलेण्ड ने घुटने टेक दिये। जर्मनी और रूस में पौलेण्ड विभक्त कर लिया गया। पौलेण्ड के राष्ट्रपति मोसिकी तथा विदेश मंत्री बैक ने रूमानिया में शरण ली। जर्मनी से अपने को सुरक्षित रखने के लिये पतझड़ की ऋतु में रूस ने फिनलैण्ड पर आक्रमण कर दिया और अधिकांश भाग अपने हाथ में ले लिया। इसके बाद ही रूस ने लिटेविया, लिथूनिया आदि प्रजातन्त्र राष्ट्रों को अपने अधीन कर लिया।

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द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम


पौलेण्ड की विजय के पश्चात् हिटलर युद्ध बन्द करना चाहता था, किन्तु ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस इसके लिये तैयार नहीं हुए तो अप्रैल, 1940 ई. में युद्ध ने तेजी पकड़ी। हिटलर ने अप्रैल, 1940 में डेनमार्क नार्वे पर आक्रमण कर अपना अधिकार कर लिया। मई, 1940 ई. में जर्मन सेनाओं ने लक्जेम्बर्ग, हालैण्ड और बेल्जियम पर जो तटस्थ राज्य थे, उन पर आक्रमण कर अपना अधिकार कर लिया। फिर जर्मनी ने पूरी शक्ति लगाकर फ्रांस पर आक्रमण कर दिया। उधर इटली ने भी फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। फ्रांस के बीच सन्धि हो गयी। कम्पनी में उसी रेल के डिब्बे में जिसमें 1918 ई. में जर्मनी ने युद्ध विराम की शर्तों पर हस्ताक्षर किये फ्रेंच दूतों ने जर्मनी के साथ शर्तनामे पर हस्ताक्षर कर दिये। फ्रांस के दो भाग कर दिये गये। एक भाग जर्मनी ने अपने अधिकार में कर लिया, पेरिस इसी में शामिल था। दूसरे भाग में मार्शल पेतां के नेतृत्व में फ्रांसीसी कठपुतली सरकार काम करती रही, जिसकी राजधानी विशी (Vichy) थी।

पश्चिमी यूरोप जीतने के बाद हिटलर ने दक्षिणी-पूर्वी यूरोप (बाल्कन प्रायद्वीप) को जीतने का प्रयास किया। हिटलर ने रूमानिया, हंगरी और बुल्गारिया से सन्धि कर उन्हें अपनी ओर मिला लिया। यूगोस्लाविया द्वारा सन्धि करने से इंकार करने पर जर्मनी सेना ने वहाँ बलपूर्वक कब्जा कर लिया। यूनान को जीतने का कार्य इटली को सौंपा गया था। उसके असफल रहने पर जर्मन सेनाओं ने यूनान पर अधिकार कर लिया, फिर क्रीट द्वीप पर भी अधिकार कर लिया। सम्पूर्ण पूर्वी भूमध्य सागर पर जर्मनी का आधिपत्य हो गया।

ई.एच. कार के अनुसार 1941 ई. के वसन्त तक लगभग समस्त यूरोप पर जर्मनी का आधिपत्य स्थापित हो गया। केवल पुर्तगाल, स्विट्जरलैण्ड, स्वीडन और तुर्की तटस्थ रह गये थे। कहने को तो फ्रांको का स्पेन भी तटस्थ था, किन्तु वास्तव में उसका झुकाव जर्मनी की ओर था। अब केवल ब्रिटेन रह गया था, जिसे हिटलर परास्त नहीं कर सका था। ई.एच. कार के अनुसार ही नवम्बर, 1940 में जर्मनी ने सोवियत संघ को भी धुरी राष्ट्रों के गुटों में सम्मिलित करने का प्रयत्न किया। जर्मनी सोवियत संघ को जो रियायतें देना चाहता था, सोवियत संघ सौदेबाजी में उनसे अधिक माँग कर रहा था। इसलिये सौदा पटा नहीं यदि सौदा पट जाता तो विश्व युद्ध के परिणाम और अधिक भयावह होते। इस प्रकार प्रथम चरण में जर्मनी की तूती बोलती रही।

द्वितीय चरण (22 जून, 1941 ई. से 6 दिसम्बर, 1941 ई. तक)-

इस चरण की महत्त्वपूर्ण बात थी, जर्मनी द्वारा 22 जून, 1941 ई. को बिना घोषणा किये सोवियत संघ पर भीषण आक्रमण। दोनों देशों के बीच स्वार्थों की समानता के आधार पर समझौता हुआ; किन्तु दोनों के बीच सदैव एक सन्देह बना रहा। 27 जून को हंगरी और उसके कुछ ही दिन बाद रूमानिया और फिनलैण्ड ने भी रूस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। जर्मनी का आक्रमण प्रबल था और जर्मन सेनाएँ मास्को तक पहुँच गयीं। रूस आत्मसमर्पण करने वाला ही था कि शीतकाल ने रूस को जर्मन के पंजे से बचा लिया। जर्मन सेना को पीछे हटने पड़ा। मास्को पर आक्रमण उनकी भारी भूल थी। उस पर कब्जा तो कर नहीं सके, उल्टे काफी हानि उठानी पड़ी।

तृतीय चरण (7 दिसम्बर, 1941 ई. से 1942 ई. के अन्त तक)-

7 दिसम्बर को सुदूरपूर्व में जापान ने पर्ल हारबर पर आक्रमण कर अमेरिकन जहाजी बेड़े का नष्ट कर दिया। इस घटना ने संयुक्त राज्य अमेरिका को भी युद्ध में आने को विवश कर दिया। जर्मनी और इटली ने 11 दिसम्बर, 1941 ई. को संयुक्त राज्य अमेरिका के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, तो अमेरिकी कांग्रेस ने भी उनके विरुद्ध तुरन्त युद्ध की घोषणा कर दी। अन्य राज्य भी इस युद्ध में प्रविष्ट हो गये।

1942 ई. की ग्रीष्म ऋतु तक धुरी राज्यों का पलड़ा भारी रहा। इसके बाद पलड़ा मित्र राज्यों के पक्ष में झुकता चला गया। 1942 ई. में ब्रिटिश सेनापति मोंटगोमरी ने जर्मन सेनापति रोमिल को उत्तरी अफ्रीका में परास्त किया। इसी वर्ष के अन्त में अमेरिका ने भी अपनी एक बड़ी फौज उत्तरी अफ्रीका में उतार दी, जिसने जर्मन सेना को परास्त किया। अन्त में उत्तरी अफ्रीका पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया। यह घटना महायुद्ध में मित्र राज्यों के पक्ष में एक निर्णायक मोड़ था।

उधर रूस मोर्चे पर जर्मन सेनाओं ने 1942 ई. की ग्रीष्म ऋतु में पुन: भयंकर आक्रमण किया। कॉकेशस के प्रदेश में उन्होंने महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त की। अगस्त, 1942 ई. के अन्त तक वे कृष्ण सागर तक पहुँच गयीं। इस चरण में जापान की अभूतपूर्व सफलताओं ने धुरी राष्ट्रों का पलड़ा भारी बनाया। किन्तु अन्तिम दौरे में अफ्रीका और सोवियत मोर्चे पर धुरी राज्यों की पराजय से मित्र राज्यों की सफलता का दौर प्रारम्भ हुआ जो निर्णायक विजय पाकर ही पूर्ण हुआ।

चतुर्थ चरण (जनवरी, 1943 ई. से 7 मई, 1945 ई. तक)-

1943 के वर्ष फरवरी मास में जर्मनी पर राष्ट्रों की ओर से बमबारी शुरू हो गयी। रूस के मोर्चे पर भी जर्मनी की दशा शोचनीय थी। 2 फरवरी को जर्मन सैनिकों ने स्टालिन गार्ड पर आत्मसमर्पण कर दिया। इसके बाद रूसियों का प्रत्याक्रमण आरम्भ हुआ और उन्होंने खारकोफ और कीव पर पुनः अधिकार कर लिया। अफ्रीका मोर्चे पर भी अब निरन्तर मित्र राष्ट्रों की विजय हो रही थी। उन्होंने 12 मई को ट्यूनिशिया पर अधिकार कर लिया।

1944 का वर्ष द्वितीय विश्व युद्ध का निर्णायक सिद्ध हुआ। जर्मन सैनिक रूस से बुरी तरह परास्त होने लगे। रूसी सैनिक इस वर्ष पौलेण्ड, रूमानिया और प्रशा को पदाक्रान्त करते हुए, जर्मनी की भूमि पर जा पहुँचे। उधर इटली में भी मित्र पक्ष की सेनाएँ धीरे-धीरे बढ़ती रहीं और 4 जून को उन्होंने रोम नगर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद उन्होंने फ्लोरेन्स पर अधिकार कर लिया। नरमण्डी के तट पर इंग्लैण्ड और अमेरिका की सेनाओं ने उतर कर फ्रांस का महान् उपकार किया। 6 जून को फ्रांस का उद्धार दिवस मनाया गया। अब जर्मनी का प्रतिरोध शिथिल पड़ने लगा। 15 अगस्त को एक नयी सेना फ्रांस के दक्षिणी तट पर उतरी। 25 अगस्त को पेरिस, जर्मनी सैनिक दासता से मुक्त कराया गया। जर्मन सेनाओं ने वहाँ आत्मसमर्पण कर दिया। सम्पूर्ण यूरोप का भाग्यविधाता बनने की सोचने वाला हिटलर स्वयं अपनी और अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिये भी अक्षम सिद्ध हुआ। मित्र राज्यों की सेनाएँ पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों से जर्मनी में प्रवेश कर गयीं। 2 मई, 1945 ई. को बर्लिन का पतन हो गया। 17 मई, 1945 ई. को जर्मन एडमिरल कार्ल डोइनित्स के प्रतिनिधि ने रीम्स के एक छोटे से विद्यालय भवन में मित्र राज्यों के कमाण्डरों के सामने बिना शर्त समर्पण कर दिया। सोवियत संघ के साथ दूसरी सन्धि 9 मई, 1945 को बर्लिन में सम्पन्न हुई।

चतुर्थ चरण में जर्मनी ने आत्मसमर्पण कर दिया। इटली के अधिनायक मुसोलिनी को स्विट्जरलैण्ड की ओर भागते समय पकड़ लिया गया। 28 अप्रैल, 1945 को उसकी भागते हुए गोली मारकर हत्या कर दी गयी और लाश को मिलान में लटका दिया। हिटलर ने बर्लिन के सोवियत सेनाओं के घिर जाने पर 30 अप्रैल, 1945 ई. को अपनी नवपरिणिता के साथ बर्लिन चांसलरी के बंकर में आत्महत्या कर ली।

पंचम चरण (8 मई, 1945 ई. से 2 सितम्बर, 1945 ई. तक)-

जर्मनी की पराजय के पश्चात् एकमात्र जापान ही ऐसा राज्य था, जो धुरी राज्यों का प्रतिनिधित्व कर रहा था। ब्रिटिश फौजों ने सुदूरपूर्व में तेजी से बढ़ते हुए बर्मा, मलाया, फिलीपीन्स व सिंगापुर को मुक्त करवाया। युद्ध जल्दी समाप्त करने की दृष्टि से अमरीकियों ने 6 अगस्त, 1945 ई. को जापान के सैनिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नगर हिरोशिमा पर परमाणु बम गिरा दिया। सम्पूर्ण नगर नष्ट हो गया। लगभग 66,000 निवासी मारे गये। सोवियत संघ अभी तक जापान के साथ युद्धरत था, उसने पराजय के निकट पहुँचे जापान के विरुद्ध सगुन के तौर पर 8 अगस्त, 1945 ई. को युद्ध की घोषणा की। जापान ने अभी भी समर्पण नहीं किया। 9 अगस्त, 1945 को अमरीकियों ने जापान के नागासाकी नगर पर परमाणु बम गिरा दिया, जिससे वहाँ लगभग 40,000 व्यक्ति मारे गये। जापान की कमर टूट गयी और 14 अगस्त, 1945 को उसने भी आत्मसमर्पण कर दिया। इस प्रकार यह युद्ध 6 वर्ष तक मानव समाज को अपनी ज्वाला से भस्मीभूत करता रहा

युद्ध के प्रभाव

युद्ध औपचारिक रूप से 2 सितम्बर, 1945 ई. को जापान द्वारा समर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने के साथ समाप्त हुआ। मानव इतिहास का यह क्रूरतम और भीषणतम युद्ध था। जितने राज्यों ने एक पक्ष के रूप में इस युद्ध में भाग लिया था, वह एक अपूर्व घटना थी। युद्ध में विद्युत जैसी तीव्रता की नई रणनीति अपनायी गयी। जल, थल और नभ में नवीन अस्त्र-शस्त्रों, संसाधनों और तरीकों का प्रयोग किया गया। युद्ध का प्रत्यक्ष परिणाम मानवता की अपूरणीय क्षति थी। डेविड थॉमसन के अनुसार द्वितीय विश्व युद्ध का सबसे मजेदार परिणाम यह रहा कि युद्ध और शान्ति का अन्तर समाप्त को गया। युद्ध के बाद शान्ति नहीं लौटी। उसकी जगह ले ली शीतयुद्ध ने।

द्वितीय विश्व युद्ध के परिणामों को निम्नलिखित शीर्षकों में व्यक्त किया जा सकता है-

राजनीतिक प्रभाव

1. इटली में प्रजातन्त्र की स्थापना- धुरी राष्ट्रों में इटली सर्वप्रथम ऐसा देश था जिसने की राष्ट्रों से पराजय स्वीकार की। इस पराजय के परिणामस्वरूप इटली को यूरोपीय भू-भाग में अपने छोटे प्रदेश छोड़ने पड़े। उसे अपने समस्त उपनिवेशों से भी हाथ धोना पड़ा। उसने अल्बानिया और सासेनो द्वीप पुनः दे दिया और डाडेकनीज व रोड्स यूनान को दे दिये। पराजय के पश्चात इटली में साम्यवाद पनपने लगा था। इस कारण मित्र राष्ट्रों ने इटली में लोकतन्त्रीय सरकार स्थापित करने के लिये दलबन्दी को प्रेरणा दी। मित्र राष्ट्रों के सहयोग से इटली में साम्यवादी दल की पराजय हुई और राष्ट्रों की समर्थक प्रजातंत्र दल सरकार की स्थापना हुई।

2. जर्मनी का बँटवारा- युद्ध समाप्त होते ही जर्मनी को युद्ध का अपराधी घोषित किया गया। जर्मनी की शक्ति को समूल नष्ट करने की दृष्टि से उसको इंग्लैण्ड, फ्रांस, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका ने परस्पर चार भागों में बाँट लिया। इस बँटवारे का निर्णय फरवरी, 1945 में याल्टा में ले लिया गया था। पोट्सडम सम्मेलन में इस विभाजन सम्बन्धी निर्णय की पुष्टि कर दी गयी। किन्तु मित्र राष्ट्रों का यह विभाजन शीघ्र ही अन्तर्राष्ट्रीय कलह का कारण बन गया। इसके अतिरिक्त जर्मन नेताओं पर अभियोग चलाये गये। जो युद्ध अपराधी सिद्ध हुए, उन्हें यथोचित दण्ड दिया गया। इस प्रकार युद्ध की समाप्ति पर परास्त देश के निवासियों पर अभियोग चलाना विश्व की प्रथम घटना थी।

3. जापान में राजतन्त्र की समाप्ति- जापान में युद्ध के समय एक दृढ़ राजतन्त्र कायम था, किन्तु जापान के हथियार रखते ही अमेरिका ने उस पर अधिकार कर लिया और शीघ्र ही वहाँ अमेरिका ने अपने नेतृत्व में एक लोकतन्त्रीय संविधान बनाया। इससे वहाँ प्रजातन्त्र सरकार की स्थापना हुई। यह समस्त कार्य मेक आर्थर (Mac Arthur) के नेतृत्व में किया गया था। जापान को इस पराजय के परिणास्वरूप कोरिया लौटाना पड़ा। इसके अलावा सुदूरपूर्व में उसने जो उपनिवेश जीत लिये थे, वे सब उसे लौटाने पड़े।

4. रूस का शक्तिशाली राष्ट्र होना- इस युद्ध की विजय ने रूस को विश्व में और भी शक्तिशाली बना दिया। स्टालिन के नेतृत्व में रूस विजयी हुआ और उसने रूमानिया, हंगरी, बल्गारिया, अल्बानिया तथा युगोस्लाविया में साम्यवादी सरकारें स्थापित की। रूस की शक्ति से पश्चिमी राष्ट्र भयभीत हो गये। इस कारण रूस शीघ्र ही मित्र राष्ट्रों के गुट से अलग हो गया। 5 मार्च, 1946 को ही चर्चिल ने फुल्टन में दिये गये अपने भाषण में स्पष्ट किया था- "सोवियत रूस और उसके कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल की विस्तारवादी एवं प्रचारवादी नीति की सीमाएँ कहाँ हैं, यह कोई नहीं जानता।"

5. अमेरिका का विश्व में सर्वशक्तिशाली राष्ट्र होना- द्वितीय विश्व युद्ध से पूर्व तक विश्व की प्रथम शक्ति इंग्लैण्ड बना हुआ था। किन्तु युद्ध की समाप्ति के साथ इंग्लैण्ड का विश्व में सर्वशक्तिशाली राष्ट्र माना जाना भी समाप्त हो गया। पश्चिमी राष्ट्रों में आज सबसे महान् शक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका की है। युद्ध में अमेरिका का औद्योगिक विकास हुआ।विश्व के महान् राष्ट्र उसके कर्जदार बने। इसके अलावा आज इंग्लैण्ड और फ्रांस जैसे विशाल राष्ट्र उसकी सुरक्षा पर ही बहुत कुछ अवलम्बित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बिन्दु ही बना गया।

6. भारत का स्वतन्त्र होना- युद्ध समाप्त होते ही इंग्लैण्ड में आम चुनाव हुए। उस निर्वाचन में चर्चिल परास्त हुआ। इस कारण एटली (Attle) इंग्लैण्ड का प्रधानमंत्री बना। उसने भारत वासियों की राष्ट्रीय भावना की जागृति के महत्त्व को समझा और सदियों से गुलाम हुए भारत को 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र कर दिया। स्वतन्त्र भारत के साथ ही एशिया में एक नवीन मुस्लिम राष्ट्र का जन्म हुआ, जिसे पाकिस्तान कहते हैं।

7. अन्य देशों की स्वतन्त्रता- द्वितीय विश्व युद्ध तो प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों पर लड़ा गया था। अत: युद्ध समाप्त होते ही कई परतन्त्र देशों ने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये प्रयास करना आरम्भ किया। साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने उनकी राष्ट्रीयता का दमन चाहा, परन्तु फिर भी फिलीपाइन और इन्डोनेशिया तो सुदूरपूर्व में स्वतन्त्र हो गये। इसके अलावा बर्मा, श्रीलंका, मिस्र, सूडान तथा ट्यूनिशिया भी स्वतन्त्र राष्ट्र बन गये।

8. चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना होना- द्वितीय विश्व युद्ध में चीन ने भी मित्र राष्ट्रों की ओर से भाग लिया था। किन्तु युद्ध से पूर्व ही चीन जापान से युद्ध कर रहा था। अत: उसकी शक्ति क्षीण हो चुकी थी। वहाँ का राष्ट्रपति च्यांग-काई-शेक अमेरिका की शक्ति पर निर्भर रहता था। उसकी इस नीति के कारण देश में साम्यवाद पनपा और वह अपने पड़ोसी देश रूस के सहयोग से शीघ्र ही प्रबल बन गया। युद्ध के समाप्त होते ही चीन में गृहयुद्ध छिड़ गया। उसका परिणाम यह निकला कि च्यांग-काई-शेक की सरकार को फारमोसा टापू में जाकर शरण लेनी पड़ी, जो कि आज भी अमेरिका के संरक्षण से कार्य कर रही है। चीन में साम्यवादी सरकार की स्थापना हुई। चीन की इस साम्यवादी सरकार की स्थापना से भी अन्तर्राष्ट्रीय जगत में महान् परिवर्तन हुए।

9. संयुक्तराष्ट्र संघ की स्थापना- यद्यपि संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व में शान्ति स्थापित करने में सफल नहीं हो सका, फिर भी विश्व के राजनीतिज्ञों ने समझा की आज के इस अन्तर्राष्ट्रीय संघ का होना अत्यन्त आवश्यक है। संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति रूजवेल्ट, इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री चर्चिल और दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति मार्शल स्मट्स इस विचारधारा के पक्के समर्थक थे। 21 अगस्त से 7 अक्टूबर, 1944 तक डम्बरटन-ओक्स में रूस, अमेरिका, ब्रिटेन तथा राष्ट्रवादी चीन के प्रतिनिधि एकत्रित हुए। सात सप्ताह तक विचार करने के पश्चात् वे संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) के प्रारूप पर एक मत हो सके। 24 अक्टूबर, 1945 को इसकी स्थापना की गयी और इसका प्रधान कार्यालय न्यूयार्क में रखा गया। विश्व शान्ति एवं सुरक्षा को सुदृढ़ करने एवं अनुरक्षित करने, अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने एवं मावन अधिकारों एवं आधारभूत स्वतन्त्रताओं के प्रति सम्मान का भाव विकसित करने के उद्देश्य से इस मंच की स्थापना की गयी।

10. शीतयुद्ध (Cold war)- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद एक नये प्रकार का युद्ध आरम्भ हुआ, जो मैदानी युद्ध न होकर प्रोपेगण्डा का युद्ध था। एक-दूसरे पर कटु-आरोप, प्रत्यारोप, धमकी, निन्दा, आलोचना और दुष्प्रचार की प्रक्रिया आरम्भ हुई। संयुक्त राज्य अमरिका और सोवियत संघ दो विचारधाराओं के प्रतिनिधि मसीहा बन गये। वे अपने पक्ष को प्रबल बनाने हेतु विभिन्न राज्यों को अपनी तरफ आकर्षित करते । संयुक्त राष्ट संघ को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति संस्थापक निकाय की अपेक्षा अपने वाद-विवाद का क्लब और काल्पनिक कलह का केन्द्र बना दिया गया। विश्व में जबर्दस्त तनाव और कटुता का वातावरण पैदा हो गया। दोनों के पिछलग्गू देश और अधिक कटुवाणी का प्रयोग करने लगे। युद्ध का खतरा मंडराने लगा, यद्यपि वह वास्तव में घटित नहीं हुआ। इसे शीतयुद्ध के नाम से पुकारा गया। इस तनाव के कारण दोनों पक्षों में हथियारों की अंतहीन होड प्रारम्भ कर दी। 1991 ई. में सोवियत संघ के विघटन के साथ शीतयुद्ध की समाप्ति हो गयी।

सामाजिक और आर्थिक प्रभाव

दूसरे विश्व युद्ध का भी अन्त हो गया। विश्व के राष्ट्र जन और धन की हानि का अनुभव करने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध प्रथम विश्व युद्ध से अधिक भयंकर तथा विस्तृत था। इस कारण इसमें जन हानि अधिक हुई। यूरोप के देशों के ही इस युद्ध में दो करोड़ मनुष्य मारे गये। इस युद्ध ने करोड़ों मनुष्यों का भक्षण किया और करोड़ों मनुष्यों को अपंग बनाकर व्याकुलता से अपना जीवन व्यतीत करने के लिये इस पृथ्वी पर छोड़ दिया। हवाई जहाजों द्वारा बम गिराने के कारण मानव समाज सुखी नहीं रहा। मजदूरों का मिलना दुर्लभ हो गया। स्त्रियों ने खान खोदना व सरकारी कार्यालयों में जाकर काम करना शुरू किया। युद्ध के प्रभाव से मनुष्य नैतिकता से भी गिरने लगे।

विश्व की आर्थिक दशा भी इस युद्ध के कारण अत्यन्त दयनीय हो गयी। जीवन की आवश्यक वस्तुएँ महँगी हो गयीं तथा उनका मिलना दुर्लभ हो गया। युद्ध के कारण वस्त्र व अन्न का अभाव विश्व में व्यापत हुआ। वस्त्र और खाद्य पदार्थों पर नियन्त्रण किया गया किन्तु युद्ध के समय में भी पूंजीपति तो अपनी पूंजी ही बढ़ा रहे थे। दूसरा विश्व युद्ध संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A) के लिये आर्थिक क्षेत्र में अति लाभप्रद सिद्ध हुआ। विश्व के समस्त देशों को अमेरिका का माल जाने लगा था। समर भूमि से दूर रहने के कारण अमेरिका का औद्योगिक विकास निर्विघ्न वृद्धि पाता रहा। इस कारण अमेरिका विश्व में सर्वाधिक सम्पन्न एवं वैभवशाली राष्ट्र बन गया। पूंजीवाद के विकास से देशों में वर्ग-संघर्ष वृद्धि पाने लगा। किन्तु अमेरिका के पूंजीवाद से रूस का साम्यवाद और भी सुदृढ़ बन गया। इस प्रकार विश्व में पूंजीवाद और साम्यवाद समर्थकों के दो गुट बन गये।

वैज्ञानिक व तकनीकी जीवन पर प्रभाव

द्वितीय विश्व युद्ध का यह एक महत्त्वपूर्ण परिणाम था-युद्धकालीन जरूरतों की पूर्ति, विपक्षी खेमे पर श्रेष्ठता स्थापना आदि। युद्धकाल में अनुसंधान, खोजों आदि पर जो धन व्यय किया गया, वह शान्ति काल में सम्भव नहीं था। राडार, जेट विमान, रेडियो, टेलिविजन जैसे क्षेत्रों में भारी निवेश किया गया। परमाणु विज्ञान की भी द्वितीय महायुद्ध के दौरान नींव रखी जा सकीं। जर्मन वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कृत वी-2 प्रक्षेपास्त्र, उन राकेटों के पूर्वगामी थे जो आज अन्तरिक्ष में हमें विजय दिला रहे हैं। युद्ध के दबाव के कारण ही रबड़,खनिज आदि कच्चे माल के विकल्प आविष्कृत हो सके। प्लास्टिक, रेयन, एलॉय, चमत्कारिक औषधियाँ आदि द्वितीय विश्वयुद्ध की ही देन हैं। युद्धोपरान्त पुननिर्माण की आवश्यकता ने भी तकनीकी व वैज्ञानिक प्रगति की ओर बढ़ावा दिया। अतः युद्ध सामग्री के साथ-साथ जीवन के अन्य क्षेत्रों से सम्बन्धित वस्तुओं के उत्पादन की तकनीक के विकास एवं मूलभूत वैज्ञानिक सिद्धान्तों की शोध में युद्धकालीन राज्यों के बीच की वैज्ञानिक प्रतिस्पर्धा ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

सांस्कृतिक प्रभाव

द्वितीय विश्व युद्ध ने हमारे सांस्कृतिक पक्ष को भी प्रभावित किया है। सामाजिक, कला, साहित्य आदि क्षेत्रों में युद्ध का प्रभाव काफी हद तक देखा जा सकता है। पश्चिमी लोकतान्त्रिक समाज में एक खालीपन और खोखलापन उजागर हुआ। निराशा, हताशा और कुण्ठा का प्रतिबिम्ब द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के काल में देखा जा सकता है। पश्चिमी समाज में टेडी बायज, बीटनिको, हिप्पियों को प्रतिष्ठा मिली तो साहित्य कला के क्षेत्र में अमूर्तनों के सृजन को प्रोत्साहन मिला। रॉक आर्ट, पाप म्यूजिक आदि इसी के उदाहरण हैं। समाजवादी देशों में सर्वोच्च नेता की पूजा की परम्परा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की एक विशेष प्रवृत्ति के रूप में देखी जा सकती है। सोवियत संघ में स्टालिन, यूगोस्लाविया में टीटो तथा चीन में माओ का व्यक्तित्व इसी करिश्माई छवि के आधार पर वर्षों टिका रहा। विभिन्न कविताओं, कहानियों, उपन्यासों तथा चित्रों में आक्रोश, हिंसा और ध्वंस की अभिव्यक्ति हुई। अफ्रो-एशियाई देश यूरोपीय औपनिवेशिक शिकंजों से मुक्त हुए तो उपनिवेशवाद की स्थापना के पहले की सांस्कृतिक विरासत का पुनरुद्धार सम्भव हुआ।

द्वितीय विश्व युद्ध ने हमारी सांस्कृतिक चेतना को भी प्रभावित किया। इस प्रकार द्वितीय विश्व युद्ध ने न केवल अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति को ही प्रभावित किया वरन् विश्व की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संरचनाओं को भी बदल डाला। इसके सांस्कृतिक प्रभाव भी हुए, विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में भी प्रभाव पड़ा। इस युद्ध ने प्रायः सभी क्षेत्रों को प्रभावित किया, चाहे वे पक्षकार थे या तटस्थ राज्य। नेतृत्व की बागडोर नये हाथ में आ गयी। साम्राज्य विघटित हो गये, उपनिवेश स्वतन्त्र हो गये, परमाणु होड़ प्रारम्भ हो गयी और पुनः गुटबन्दी उभरने लगी। द्वितीय विश्व युद्ध ने एक ऐसे विश्व को जन्म दिया जो चाल-ढाल और चाल-चलन में 1939 ई. के विश्व से एकदम भिन्न था।

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