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गुटनिरपेक्षतावाद का अर्थ

बीसवीं सदी का विश्व

गुट निरपेक्ष आन्दोलन (Non-Alignment movement)

गुटनिरपेक्षतावाद का अर्थ एवं परिभाषाएँ

गुटनिरपेक्षता का तात्पर्य है विभिन्न शक्ति-गुटों से तटस्थ या अलग रहते हुए अपनी स्वतन्त्र निर्णय नीति एवं राष्ट्रीय हित के अनुसार न्याय का समर्थन देना। इसका अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में तटस्थता नहीं है। गुट निरपेक्ष, विश्व की घटनाओं के प्रति उदासीन नहीं रहते) बल्कि एक ऐसी स्पष्ट तथा रचनात्मक नीति अपनाते हैं जो विश्व शान्ति रखने में सहायक हो। विभिन्न विद्वानों ने गुटनिरपेक्षता की अनेक परिभाषाएँ दी हैं। इनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-

भारत सरकार के प्रकाशन 'An Ambassador Speaks' के अनुसार, "गुट निरपेक्षता का अर्थ है- अपनी स्वतन्त्र रीति-नीति। गुटों से अलग रहने से हर प्रश्न के औचित्य-अनौचित्य को देखा जा सकता है। एक गुट के साथ मिलकर उचित-अनुचित का विचार किये बिना आँखें मूंदकर पीछे-पीछे चलना गुट निरपेक्षता नहीं है।"

श्वार्जन बर्जर के शब्दों में, "गुटनिरपेक्षता शीत युद्ध, सैनिक सन्धियों व विरोधी खेमों से अलग रहने की नीति है।"

जार्ज लिस्का के अनुसार, "किसी विवाद के बारे में यह जानते हुए कि कौन सही है और कौन गलत है? किसी का पक्ष न लेना तटस्थता है, किन्तु असंलग्नता या गुट निरपेक्षता का अर्थ है- सही और गलत में भेद करके सदैव सही नीति का समर्थन करना।"

अप्पादोराय के शब्दों में गुटनिरपेक्षता की सबसे अच्छी परिभाषा इस तरह की जा सकती है- "किसी भी देश के साथ सैन्य सन्धि और विशेषतया किसी साम्यवादी या पश्चिमी गुट के किसी राष्ट्र के साथ सैनिक सन्धि में शामिल न होना।"

पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, "गुटनिरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गुटों से अपने आपको अलग रखने का किसी देश द्वारा प्रयत्न करना। इसका अर्थ है, जहाँ तक हो सके तथ्यों को सैन्य दृष्टि से न देखना, तथा चाहे कभी-कभी ऐसा करना भी पड़ता है, परन्तु हमारा स्वतन्त्र दृष्टिकोण होना चाहिए तथा सारे देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होना चाहिए।"

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गुटनिरपेक्षतावाद


गुट-निरपेक्ष आन्दोलन की उपलब्धियाँ

निरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-

1. विश्व को खेमेबन्दी के चंगुल से बचाना-

गुटनिरपेक्ष राष्ट्रों ने महाशक्तियों की खमेबन्दी की राजनीति में सम्मिलित होने से मना कर दिया। जैसा कि प्रो. एम.एस. राजन मानते हैं कि उन्होंने अमरीका तथा सोवियत आदर्श अपने ऊपर थोपे जाने का विरोध किया और अपनी राष्ट्रीय प्रकृति के अनुसार विकास के अपने राष्ट्रीय साँचों और पद्धतियों का आविष्कार किया। इसी प्रकार भारत ने अपने समाज के समाजवादी ढाँचे को अपनाया और अरब राज्यों ने अरब समाजवाद को। यह बात राजनीतिक संस्थाओं, शासन और प्रशासन प्रणालियों के सन्दर्भ में लागू होती है।

2. विश्व शान्ति और सुरक्षा की स्थापना में सहायक-

गुटनिरपेक्ष देशों का हमेशा यही प्रयास रहा है कि राष्ट्र आपसी विवादों को शान्तिपूर्ण समाधानों के द्वारा हल करे, युद्ध से नहीं। इसके लिए उन्होंने समय-समय पर अनेक संकटों के दौरान युद्धरत राष्ट्रों पर नैतिक दबाव डालकर यह समझाने-बुझाने की कोशिश की कि वे शान्तिपूर्ण तरीकों से विवादों का समाधान ढूँढे। विश्व शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना के लिए उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रत्येक कार्यवाही को प्रभावशाली बनाने के लिए उसका सदैव भरपूर समर्थन किया।

3. अफ्रो-एशियाई,लैटिन अमरीकी तथा कैरेबियाई देशों को स्वतन्त्रता मिलना-

गुट-निरपेक्ष देशों ने एकजुट होकर हर मंच से इन देशों में चल रहे मुक्ति संग्रामों का समर्थन किया। इससे उन्हें आजादी मिलने में काफी आसानी रही, क्योंकि औपनिवेशिक शक्तियाँ विश्व के इतने बड़े समुदाय की,आलोचना एवं तिरस्कार का शिकार लम्बे समय तक नहीं होना चाहती थीं।

4. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद और रंगभेद की समाप्ति-

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने हमेशा ही बड़ी शक्तियों की साम्राज्यवादी, उपनिवेशवादी एवं रंगभेद की नौति का घोर विरोध किया। इससे वह विश्व में बड़ी शक्तियों की साजिश के खिलाफ जनमत बनाने में सफल रहा। इसी का परिणाम है कि वर्तमान में बड़ी शक्तियों की उक्त चाल काफी हद तक नाकाम रही।

5. राष्ट्रवाद की रक्षा तथा स्वतन्त्र विदेश नीति के निर्माण को प्रोत्साहन-

गुट-निरपेक्ष नीति का जन्म ही महाशक्तियों द्वारा अन्य देशों को उनके अधीनस्थ बनाने की नीति के विरुद्ध हुआ था। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि वह महाशक्तियों द्वारा राजनीतिक दबावों से जुड़ी आर्थक या अन्य प्रकार की सहायता प्राप्त नहीं करेंगे। वे किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय संकट पर दबावमुक्त होकर अपना विचार व्यक्त करेंगे। इस प्रकार उन्होंने छोटे राष्ट्रों में राष्ट्रवाद की भावना की रक्षा एवं स्वतन्त्र विदेश नीति निर्माण को पूरा प्रोत्साहन दिया।

6. तीसरी दुनिया में आपसी सहयोग कर आत्मनिर्भरता का मार्ग प्रशस्त करना-

गुटनिरपेक्ष देशों ने धीरे-धीरे चहुंमुखी क्षेत्रों में आपसी सहयोग करने का रास्ता अपनाया। नई विश्व अर्थव्यवस्था, नई समाचार व्यवस्था, तेल का उचित दामों पर उपलब्ध होना आदि क्षेत्रों में व्यावहारिक आपसी सहयोग कर उन्होंने गुट निरपेक्ष देशों द्वारा आत्मनिर्भरता बढ़ाने का मार्ग प्रशस्त किया है। इससे विभिन्न क्षेत्रों में उनके विकास के लिए बड़ी शक्तियों पर निर्भरता घटेगो तथा वे आत्मनिर्भरता के पथ पर अग्रसर होंगे।

7. अनेक अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर एकजुट होकर आवाज उठाना-

गुटनिरपेक्ष देशों ने अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए केवल अपने ही मंच से नहीं, बल्कि अन्य अन्तर्राष्ट्रीय मंचों का भी उपयोग किया। अर्थात् संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्रमण्डल, अंकटाड (UNCTAD), अफ्रीकी एकता संगठन, समुद्री कानून सम्मेलन में अनेक मुद्दों पर एकजुट आवाज उठाकर अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में काफी हद तक सफलता अर्जित की।

8. महाशक्तियों द्वारा गुटनिरपेक्षता के महत्त्व को स्वीकार करना-

जब आरम्भ में कुछ राष्ट्रों ने गुटनिरपेक्षता नीति अपनायी तो महाशक्तियों ने इसकी तीव्र आलोचना की। सोवियत संघ ने गुटनिरपेक्ष देशों द्वारा उसके खेमे में नहीं मिलने के कारण उन्हें पूँजीवादी अमरीकी दलाल की संज्ञा दी, परन्तु अब इस बारे में महाशक्तियों के विचार बदल चुके हैं। सोवियत संघ के खुश्चेव ने माना कि देश तटस्थ हो सकते हैं व्यक्ति चाहे तटस्थ न हो। अब जब भी गुटनिरपेक्ष देशों के शिखर सम्मेलन होते हैं वहाँ अमेरिका और सोवियत संघ दोनों उनकी सफलता के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ भेजते हैं।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की समकालीन प्रासंगिकता

वर्तमान समय में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रसंगिकता के निम्नलिखित कारण हैं-

1. गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सिद्धान्त एवं उद्देश्य-

जिन उद्देश्यों एवं सिद्धान्तों को लेकर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की शुरुआत 1961 में की गई वह आज भी विद्यमान हैं। इस कारण से गुटनिरपेक्ष आन्दोलन आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। ये उद्देश्य हैं

(1) प्रत्येक देश की स्वतन्त्रता व सीमाओं की रक्षा;

(2) अन्तर्राष्ट्रीय शस्त्र परिसीमन,

(3) विदेशी आधिपत्य व उपनिवेशवाद से मुक्ति,

(4) अन्तर्राष्ट्रीय कानून के प्रति आदर,

(5) अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में लोकतान्त्रिक विचारधारा का आदर,

(6) अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का एकजुटता से मुकाबला,

(7) आर्थिक, सामाजिक एवं मानव संसाधनों का विकास,

(8) विकास के समान अधिकार,

(9) आपसी सद्भाव तथा,

(10) सभी सांस्कृतिक व सामाजिक मूल्यों की रक्षा आदि।

2. नये राष्ट्रों की स्वतन्त्रता और विकास की दृष्टि से प्रासंगिक-

गुट निरपेक्षता की अवधारणा का प्रादुर्भाव वस्तुत: नये स्वतन्त्र देशों की इस भावना के कारण हुआ था कि ये देश अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा तथा आर्थिक और सामाजिक विकास हेतु युद्धों से दूर रहना चाहते थे। स्थायी शान्ति को सुदृढ़ करना चाहते थे। स्थायी शान्ति की समस्या अभी भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी गुट निरपेक्ष आन्दोलन के प्रारम्भ होने के समय थी। इन गुट निरपेक्ष राष्ट्रों की आर्थिक एवं सामाजिक विकास की स्थिति विकासोन्मुख प्रक्रिया तथा संक्रान्तिक अवधियों से गुजर रही हैं, जहाँ स्थायी शान्ति की आवश्यकता पहले की अपेक्षा अधिक जरूरी है।

3. विश्व जनमत में सहायक-

गुट निरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान काल में विश्व जनमत के निर्माण के लिए अत्यधिक आवश्यकता है। नि:शस्त्रीकरण के क्षेत्र में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन विश्व की पुकार की भूमिका निबाह सकता है तथा इस प्रकार के विश्व जनमत का निर्माण कर सकता है कि महाशक्तियाँ तीसरी दुनिया के देशों में शस्त्रों के जमावड़े को रोकें। इस प्रकार अपनी भूमिका में विश्व जनमत के निर्माण में योगदान दे सकता है।

4. विकासशील राष्ट्रों के बीच परस्पर आर्थिक तथा सांस्कृतिक सहयोग-

यद्यपि वर्तमान समय में उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद अपनी अन्तिम साँस ले रहा है तथापि महाशक्तियाँ दूसरे रूपों में एशिया और अफ्रीका के विकासशील राष्ट्रों का अब भी आर्थिक व सांस्कृतिक शोषण कर रही हैं। विकासशील देशों को इस शोषण से बचाने, उनमें पारस्परिक आर्थिक और तकनीकी सहयोग को बढ़ाने, अपनी समाचार एजेंसियाँ निर्माण करने के लिए गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का औचित्य बढ़ रहा। गुटनिरपेक्ष देशों में परस्पर एकता को बढ़ाने के लिए इस आन्दोलन की आवश्यकता है। महाशक्तियाँ इस आन्दोलन को समाप्त करने हेतु उसको अप्रासंगिक बता रही हैं, लेकिन गुटनिरपेक्ष आन्दोलन विकासशील देशों में एकता बनाये रखने के लिए आज अत्यन्त जरूरी है।

5. अणुमुक्त विश्व रचना के प्रयासों की दृष्टि से प्रासंगिक-

वर्तमान युग निःशस्त्रीकरण के उद्देश्य को सार्थकता प्रदान करने के उद्देश्य से अभी भी 'नाम' एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तीसरी दुनिया की क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान के लिए विश्व शान्ति की आवश्यकता है तथा विश्व शान्ति की एक महत्त्वपूर्ण शर्त आणविक हथियारों की समाप्ति है। बाद के गुटनिरपेक्ष सम्मेलनों में भी वे इस दिशा में प्रयत्नशील रहे हैं।

6. बहुगुटीय विश्व-

सोवियत संघ के विघटन के पश्चात् दो गुट समाप्त हो चुके हैं और इसके स्थान पर आज विश्व बहु-गुटीय बन रहा है। नए गुट हैं- यूरोप, जापान तथा दक्षिण पूर्व एशिया व रूस। इनके मध्य गुट निरपेक्षता और भी सार्थक होगी। इनके उभरते हुए केन्द्र हैंबीजिंग (चीन), नई दिल्ली (भारत)। इस प्रकार स्पष्ट है कि इस बहुध्रुवीय विश्व में एकमात्र अमेरिका ही शक्ति केन्द्र नहीं है। यद्यपि अमेरिका राजनीतिक, सामरिक एवं तकनीकी दृष्टि से अपने आप में महाकेन्द्र हैं, परन्तु इस महाकेन्द्र की आर्थिक चूलें हिल चुकी हैं और उसे यूरोप, जापान, दक्षिण-पूर्व एशिया तथा शंघाई संगठन आदि आर्थिक चुनौतियाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। इस प्रकार स्पष्ट है कि वर्तमान बहुध्रुवीय विश्व में 'नाम' की महती प्रासंगिकता बनी हुई है।

7. आर्थिक क्षेत्र में प्रासंगिकता-

वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था अमीर देशों के हित साधने के लिए उपयुक्त है, इसमें गरीब राष्ट्रों का शोषण हो रहा है। वर्तमान विश्व की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक संस्थाएँ तीसरी दुनिया के राष्ट्रों को शोषण से बचाने में असमर्थ दिखाई दे रही हैं। कई बार दक्षिण (गरीब) के राष्ट्रों ने उत्तर (अमीर) राष्ट्रों से इस सम्बन्ध में संवाद स्थापित कर इस हेतु ध्यान आकर्षित किया है, परन्तु इन राष्ट्रों ने कोई ध्यान नहीं दिया। फलस्वरूप दक्षिण के राष्ट्रों में एक 'नवीन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था' और 'दक्षिण-दक्षिण सहयोग संवाद' का विचार प्रस्फुटित हुआ। इस विचार को मूर्त रूप देने में गुट निरपेक्ष आन्दोलन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

8. महत्त्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति शेष-

गुट निरपेक्ष आन्दोलन ने अनेक लक्ष्यों को प्राप्त कर लिया है। लेकिन अभी भी ऐसे अनेक लक्ष्य शेष रह गये हैं, जिनको प्राप्त करना अभी आवश्यक है। जब तक इन लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती, तब तक गुट निरपेक्षता की प्रासंगिकता बनी रहेगी, यथा-

(1) नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का लक्ष्य।

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ के लोकतन्त्रीकरण का लक्ष्य।

(3) न्यायसंगत विश्व की स्थापना का लक्ष्य।

इस प्रकार इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु NAM की प्रासंगिकता बनी हुई है।

9. प्रदूषण एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद-

प्रदूषण एवं अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद जैसी समस्याओं के समाधान के लिए भी इनके विरुद्ध एक संगठित दबाव पैदा करने की दृष्टि से भी गुट निरपेक्ष आन्दोलन उपयोगी है। 16वें गुट निरपेक्ष शिखर सम्मेलन (2012) के घोषणा-पत्र में माँग की गई कि विश्व स्तर पर एक ऐसी सुशासित व्यवस्था का विकास किया जाए, जो न्याय, खुलापन और समता की भावना से प्रेरित हो, जिसमें सभी राज्यों की समान भागीदारी हो तथा जो विश्व की प्रमुख चुनौतियों, जैसेसुरक्षा के खतरे, पर्यावरण प्रदूषण, स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्यायें आदि का प्रभावी ढंग से सामना कर सके।

वर्तमान में निम्नलिखित क्षेत्रों में गुट निरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता नजर आती है-

(1) आणविक निःशस्त्रीकरण के लिए दबाव डालना।

(2) संयुक्त राष्ट्र संघ के पुनर्गठन हेतु दबाव डालना।

(3) एक-ध्रुवीय विश्व में अमरीकी दादागीरी का विरोध करना।

(4) नये औपनिवेशिक शोषण का विरोध करना।

(5) शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए परमाणु ऊर्जा विकसित करने के सभी देशों के अधिकार पर बल देना।

(6) नयी अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की पुरजोर माँग करना, दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिए प्रोत्साहन देना तथा उत्तर-दक्षिण संवाद के लिए दबाव डालना आदि।

(7) आतंकवाद का विरोध करना।

(8) वैश्वीकरण की प्रक्रिया में यथोचित बदलाव लाने के लिए बल देना।

गुट निरपेक्ष आन्दोलन का भविष्य

गुट निरपेक्ष आन्दोलन के भविष्य के सम्बन्ध में विद्वानों ने दो प्रकार के विचार व्यक्त किये हैं। यथा-

(अ) गुट निरपेक्ष आन्दोलन वर्तमान में अधिक प्रासंगिक है और भविष्य में भी इसकी प्रासंगिकता बनी रहेगी।अपने कथन की पुष्टि में उन्होंने निम्नलिखित तर्क दिये हैं-

(1) गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सिद्धान्त एवं लक्ष्य- गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सिद्धान्त व उद्देश्य, जैसेअन्तर्राष्ट्रीय शान्ति सुरक्षा, विकास, सांस्कृतिक व सामाजिक मूल्यों की रक्षा, आपसी सद्भाव का विकास आदि सभी भविष्य में भी प्रासंगिक रहेंगे।

(2) नए राष्ट्रों की स्वतन्त्रता और विकास- गुट निरपेक्ष आन्दोलन नव स्वतन्त्र देशों की स्वतन्त्रता की रक्षा तथा उनके सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भविष्य में भी आवश्यक रहेगा

(3) अपूर्ण और सीमित देतान्त- शीतयुद्ध की समाप्ति ने मानव की शान्ति की कोई निश्चित विश्व व्यवस्था का आश्वासन नहीं दिया है। यही कारण है कि महाशक्तियाँ भविष्य में भी शक्ति शून्यता के नाम पर नव स्वतन्त्र देशों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करती रहेंगी। ऐसी स्थिति पर रोक लगाने तथा संगठित प्रतिरोध करने के लिए असंलग्न आन्दोलन की महती आवश्यकता रहेगी।

(4) विश्व जनमत निर्माण में सहायक- गुट निरपेक्ष आन्दोलन की विश्व जनमत के निर्माण के लिए भविष्य में प्रासंगिकता बनी रहेगी।

(5) विकासशील राष्ट्रों के बीच आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहयोग के लिए आवश्यक- विकासशील देशों को महाशक्तियों के शोषण से बचाने, उनमें पारस्परिक आर्थिक तथा तकनीकी सहयोग बढ़ाने, अपनी समाचार एजेंसियों का निर्माण करने तथा उनमें परस्पर एकता को बढ़ाने के लिए गुट निरपेक्ष आन्दोलन की भविष्य में भी महती आवश्यकता रहेगी।

(6) दक्षिण-दक्षिण सहयोग- दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ाने और दक्षिण के देशों को आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से गुट निरपेक्ष आन्दोलन की भविष्य में भी प्रासंगिकता बनी रहेगी।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भविष्य में भी अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना, दक्षिण के देशों को शोषण से बचाने के लिए विश्व जनमत के निर्माण, विकासशील राष्ट्रों की एकता को बनाए रखने, उनमें परस्पर सहयोग को बढ़ाने की दृष्टि से भविष्य में भी गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रासंगिकता बनी रहेगी।

(ब) गुट निरपेक्षता की भविष्य के प्रति आशंकाएँ-

गुट निरपेक्ष आन्दोलन की वर्तमान में प्रासंगिकता के साथ ही साथ कुछ विद्वानों ने भविष्य में इसके अप्रभावी होने की आशंका भी व्यक्त की है। इस बारे में उन्होंने निम्न प्रमुख तर्क दिये

(1) सामाजिक एकता में कमी- यद्यपि वर्तमान में गुट निरपेक्ष आन्दोलन के सदस्यों की संख्या 120 तक पहुँच गई है तथापि इस विस्तार में उसकी कमजोरी में कमी आयी है। आज आन्दोलन द्वारा किये जा रहे विचार-विमर्श में नैतिक और मूल्यों पर आधारित दृष्टिकोणों का अभाव दिखाई देने लगा है। उदाहरणार्थ अगस्त, 1996 में जिनेवा में सी.टी.बी.टी. प्रारूप पर भारत का साथ देने वाला एक भी गुटनिरपेक्ष देश नहीं था। अर्जेन्टीना, ब्राजील, मिस्र आदि देशों ने भारत को समर्थन देने के स्थान पर अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों का साथ दिया।

(2) सम्मेलनों को गम्भीरता से न लेना- गुट निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलनों को अब पहले की तरह गम्भीरता से नहीं लिया जा रहा है। इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि कार्टागेना सम्मेलन में केवल 43 राष्ट्रों के शासनाध्यक्ष सम्मिलित हुए।

(3) अपने महत्त्व तथा प्रभावी होने की क्षमता का खोना- प्रासंगिक रहने के बावजूद गुट निरपेक्ष आन्दोलन अपने महत्त्व व प्रभावी होने की क्षमता को धीरे-धीरे खोता जा रहा है जिसे भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं माना जा सकता है।

(4) राष्ट्रों की अमरीकापरस्ती- गुट निरपेक्ष आन्दोलन के शिखर सम्मेलनों में अब यह भी देखने को मिलता है कि सदस्यों का एक बड़ा हिस्सा संयुक्त राज्य अमरीका का पक्षधर है और उसका पुरजोर विरोध करने के स्थान पर समझौते की भाषा में बात करता है। सदस्य राष्ट्रों की इस अमरीकापरस्ती के चलते अमरीका के ऊपर अंकुश के रूप में 'नाम' की भूमिका सीमित हो जाती है।

गुट निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका

गुट निरपेक्ष आन्दोलन में भारत की भूमिका का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-

1. गुट निरपेक्ष अवधारणा का जनक-

भारत अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट निरपेक्ष अवधारणा का पिता है। इस अवधारणा का प्रतिपादन पं. जवाहरलाल नेहरू ने, भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व,7 दिसम्बर, 1946 को किया था। उस समय नेहरू ने शक्ति-गुटों से अलग रहने की अवधारणा का प्रतिपादन किया था, जो बाद में अन्तर्राष्ट्रीय जगत् में गुट निरपेक्ष आन्दोलन (NAM) के नाम से जानी जाती है।

2. स्वतन्त्र विदेश नीति की घोषणा-

भारत ने ही सबसे पहले (1947 में) गुट निरपेक्ष आन्दोलन के मूलाधार स्वतन्त्र विदेश नीतिकी घोषणा अन्त:एशियाई सम्बन्ध सम्मेलन में की। आज राष्ट्रों की स्वतन्त्र विदेश नीति ही नाम (NAM) का सार है।

3. वैचारिक तथा संगठनात्मक ढाँचे का निर्धारण-

'नाम' की नीतियों के मूल-आधार भारतीय विदेश नीति के मूलभूत सिद्धान्त रहे हैं। स्वतन्त्र विदेश नीति, निःशस्त्रीकरण, उपनिवेशवाद का उन्मूलन और गुटों से असंलग्नता, नई अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, पर्यावरण सुरक्षा, दक्षिण-दक्षिण तथा उत्तर-दक्षिण संवादसभी नीतियों के पीछे भारत का स्पष्ट और सक्रिय योगदान रहा है।

4. शांति एवं सहअस्तित्व के सिद्धान्तों का प्रतिपादन-

1954 में भारत-चीन ने पंचशील के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। ये पंचशील के सिद्धान्त ही 'नाम' के सिद्धान्तों की आधारशिला हैं।

5. गुटनिरपेक्ष नीति को नये आयाम प्रदान करना-

भारत ने गुट निरपेक्ष आन्दोलन को अनेक नये आयाम भी प्रदान किये हैं। जैसे-

(1) 1971 में रूस-भारत सन्धि द्वारा यह स्पष्ट करना कि बिना सैनिक सन्धियों व गुटों में शामिल हुए कूटनीतिक उपायों के बल पर एक निर्गुट देश स्वतन्त्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अपने राष्ट्रीय हितों तथा अखण्डता की रक्षा कर सकता है।

(2) भारत ने विवादास्पद और गम्भीर मामलों में मध्यममार्गी दृष्टिकोण अपनाया।

(3) 1988 में भारत ने मालदीव में तुरन्त कार्यवाही कर यह बताया कि कैसे एक निर्गुट देश दूसरे निर्गुट देश की वैध सत्ता की रक्षा भी कर सकता है तथा उसकी प्रभुता, अखण्डता और स्वाधीनता को बनाये रखने में सक्रिय और सार्थक सहायता भी दे सकता है।

(4) भारत ने ही विकासशील राष्ट्रों के मध्य स्वतन्त्र संचार प्रणाली की स्थापना का विचार रखा था।

6. नाम की एकता एवं सुदृढ़ता का प्रतीक-

भारत 'नाम' की एकता तथा सुदृढ़ता का प्रतीक है। भारत ने 'नाम' को न केवल आन्तरिक दृष्टि से एकजुट बनाये रखा है, बल्कि बाह्य दृष्टि से भी उसे समय-समय पर नेतृत्व प्रदान कर शक्ति और गतिशीलता प्रदान की है। यही कारण है कि कठिनाई के समय नाम देश भारत से मार्गदर्शन, पहल-कदमी एवं नेतृत्व की अपेक्षा करते हैं।

7. तीसरी शक्ति बनाने सम्बन्धी भूमिका-

भारत ने गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को 'तीसरी अन्तर्राष्ट्रीय शक्ति' बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है। भारत की प्रेरणा के परिणामस्वरूप 'नाम' के आज 120 सदस्य देश हैं। आज नाम नई अन्तर्राष्ट्रीय व्यवस्था, दक्षिण-दक्षिण सहयोग और सामूहिक आत्मनिर्भरता पर बल दे रहा है, उनमें भारत की भूमिका सक्रिय है।

8. असाधारण नेतृत्व-

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन के विकास का अन्य कारण यह रहा है कि इन देशों में प्रारम्भ से ही असाधारण नेतृत्व रहा है। नेहरू, नासिर, टीटो का नेतृत्व इसको गति देता रहा है। 1983 के गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का नेतृत्व श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने किया था। भारत अब भी इसका नेतृत्व सम्भाले हुए है। समय-समय पर भारत इसको गतिशील एवं प्रभावी बनाता रहा है।

8. समन्वयकारी भूमिका-

जब कभी जटिल एवं विवादास्पद समस्याओं ने आन्दोलन को उद्वेलित किया है और सदस्य राष्ट्र दो परस्पर विरोधी खेमों में विभाजित होते दिखे; तब भारत ने समन्वयकारी भूमिका निभाते हुए उन निर्णयों को या मुद्दों को टालने अथवा स्थगित करने पर बल देकर आन्दोलन को विभाजित होने से बचाया है। उदाहरणार्थ हवाना सम्मेलन में कंबूजिया के मुद्दे पर, मिस्र को आन्दोलन से निकालने के मुद्दों पर भारत ने समन्वयकारी भूमिका निभायी। कार्टागेना सम्मेलन में भी लातीन-अमेरिकी देश आन्दोलन में अमेरिका का विरोध करना चाहते थे, लेकिन भारत ने समन्वयकारी की भूमिका निभाते हुए आन्दोलन में अमरीकी विरोध को टलवा दिया।

अतः स्पष्ट है कि भारत ने निर्गुट आन्दोलन के विकास में महती भूमिका निभाई है।

आशा हैं कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।

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