जर्मनी में नाजीवाद का विकास एवं हिटलर का उत्कर्ष
हिटलर का जन्म आस्ट्रिया के एक छोटे से नगर ब्रानो में 20 अप्रैल, 1889 को एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उसके पिता एलोइस हिटलर आस्ट्रियन साम्राज्य की सेवा में सीमा शुल्क निरीक्षक थे। एलोइस हिटलर अपने पुत्र को उच्च शिक्षा दिलाकर आस्ट्रियन साम्राज्य की सरकारी सेवा में एक उच्च अधिकारी बनाना चाहता था, परन्तु एडोल्फ हिटलर की इच्छा चित्रकार बनने की थी। 1903 में हिटलर के पिता की मृत्यु हो गई तथा अत्यन्त निर्धनता के बावजूद उसने दो वर्ष तक अध्ययन कर उच्च माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। 1907 में उसने वियना की ललितकला अकादमी में प्रवेश पाने का असफल प्रयास किया, परन्तु उसे प्रवेश नहीं मिल सका। उसी वर्ष उसकी माता का देहान्त हो गया। 1908 से 1912 की अवधि में उसे वियना में बड़ा ही दयनीय जीवन व्यतीत करना पड़ा। इस अवधि में वह कभी मजदूरी करके तथा कभी घरों में रंग लेप आदि करके जीवनयापन करता रहा।
इस काल में उसने
आस्ट्रिया तथा जर्मनी से सम्बन्धित राजनीतिक एवं सामाजिक समस्याओं का काफी अध्ययन
और मनन किया। इसी समय से वह जर्मन राष्ट्रीयता का कट्टर समर्थक बन
गया तथा यहूदियों एवं साम्यवादियों आदि से घृणा करने लगा। 1912 के अन्त में वह
वियना छोड़कर म्यूनिख चला गया। 1914 में प्रथम महायुद्ध शुरू होने पर वह जर्मन
सेना में भर्ती हो गया। उसने बड़ी वीरता तथा निष्ठा के साथ अपने सैनिक कर्तव्यों
का पालन किया और 1918 में उसे वीरतापूर्ण कार्यों के लिए प्रथम श्रेणी का 'आयरन क्रॉस' प्रदान किया गया। कुछ
दिनों बाद वह बुरी तरह से घायल हो गया और उसे सैनिक अस्पताल में भर्ती किया गया।
अस्पताल में ही उसे जर्मनी की पराजय का समाचार मिला जिससे उसे प्रबल आघात पहुँचा।
उसने जर्मनी की पराजय के लिए समाजवादियों, साम्यवादियों तथा यहूदियों को दोषी ठहराया। उसकी यह धारणा
थी कि जर्मनी की पराजय का प्रमुख कारण जर्मनी के समाजवादी तथा गणतन्त्रवादी नेताओं
का विश्वासघात या पीठ में छुरा भोंकना था।
1. नाजीदल की
स्थापना-
सैनिक अस्पताल से
मुक्ति मिलते ही हिटलर ने राजनीति में प्रवेश करने का निश्चय कर लिया। वह
वापस म्यूनिख लौट आया। उसे सेना के गुप्तचर विभाग में काम मिल गया। उसका
मुख्य कार्य विभिन्न राजनीतिक दलों की गतिविधियों की सूचना अपने उच्चाधिकारियों तक
पहुँचाना एवं समाजवादी विचारों के प्रचार को रोकना था। इसी समय वह 'जर्मन श्रमिक दल' का सदस्य बन गया। इस दल
की स्थापना 1918 में एन्टन ड्रेक्सलर ने की थी। शीघ्र ही इस दल के सदस्यों
की संख्या बढ़ने लगी और हिटलर इस दल का प्रमुख नेता बन गया। अप्रैल, 1920 में इस दल का नाम
बदलकर 'राष्ट्रीय समाजवादी जर्मन
श्रमिक दल' या संक्षेप में 'नाजीदल' रखा गया। अब हिटलर ने
अपनी नौकरी छोड़ दी और अपने दल की शक्ति को बढ़ाने के कार्य में जुट गया।
2. नाजीदल का
कार्यक्रम-
नाजीदल ने 25
सूत्री कार्यकम घोषित किया, जिसमें दल के सिद्धान्तों तथा उद्देश्यों का उल्लेख किया
गया। इस कार्यक्रम में निम्नलिखित बातें सम्मिलित थी-
(1) वर्साय की
सन्धि को निरस्त करना।
(2) तृतीय जर्मन
साम्राज्य अथवा वृहत्तर जर्मनी की स्थापना करना।
(3) यहूदियों को
जर्मनी से निष्कासित करना।
(4) जर्मनी से
छीने गये उपनिवेशों को पुनः प्राप्त करना।
(5) युद्ध-अपराध
का निराकरण करना।
(6) जर्मनी की
सैन्य-शक्ति का विस्तार करना।
(7) समाजवादियों
एवं साम्यवादियों का दमन करना।
(8) युद्धकालीन
लाभांशों को जब्त करना।
(9) जनसाधारण के
जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना।
(10) ब्याज की
ऊँची दरों को कम करना।
(11) बड़े
उद्योगों तथा कारखानों का राष्ट्रीयकरण करना।
(12) कृषि के
क्षेत्र में व्यापक सुधार करना।
(13) वाइमर
गणतन्त्र को समाप्त करना।
(13) एकपक्षीय
निःशस्त्रीकरण के सिद्धान्त की अवहेलना करना।
3. नाजीदल को
प्रभावशाली बनाना-
हिटलर ने नाजीदल को
प्रभावशाली बनाने के लिए कई स्थानों पर जनसभाओं का आयोजन किया तथा अपने ओजस्वी
भाषणों से जनता को प्रभावित करने का प्रयास किया। उसने अपने दल के लिए एक नया ध्वज
अपनाया जिसमें लाल पृष्ठभूमि पर स्वास्तिक का चिह्न अंकित किया गया। उसने 1920-21
में सशस्त्र सैनिक दलों का गठन किया जिसकी दो शाखाएँ थीं-
(1) एस. ए. (S.A.)- इस दल के स्वयंसेवक भूरे
रंग की कमीज पहनते थे तथा अपनी बाँहों पर स्वास्तिक चिह्न वाले लाल पट्टे लगाते
थे। इनका मुख्य कार्य प्रदर्शन करना, नाजीदल की सभाओं की रक्षा करना तथा विरोधी दलों की सभाओं को
बलपूर्वक भंग करना था।
(2) एस. एस. (S.S.)- इसमें चुने हुए सैनिकों
को भर्ती किया जाता था। इस दल के सदस्य खोपड़ी के चिह्न वाली काली कमीज पहनते थे।
इनका कार्य नाजीदल के नेताओं की रक्षा करना तथा दलीय नेताओं द्वारा सौंपे गये
विशिष्ट कार्यों को पूरा करना था। एक अन्य कार्य भूरी कमीज वाले सशस्त्र
स्वयंसेवकों को अनुशासन तथा नियन्त्रण में रखना था।
नाजीवाद का विकास एवं हिटलर का उत्कर्ष |
4. गणतन्त्र की
सरकार का तख्ता उलटने का प्रयास-
8 नवम्बर, 1923 को हिटलर ने जर्मनी
की सत्ता प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया, परन्तु बवेरियन पुलिस ने हिटलर के विद्रोह का दमन कर दिया।
11 नवम्बर, 1923 को हिटलर को बन्दी
बना लिया गया। उस पर मुकदमा चलाया गया तथा उसे 5 वर्ष के कारावास का दण्ड दिया
गया। इस मुकदमे की कार्यवाही जर्मनी के सभी प्रमुख समाचार-पत्रों में प्रकाशित हुई, जिसमें जर्मनी के अधिकांश
लोग हिटलर के नाम से परिचित हो गये। हिटलर के इस प्रयास को 'मदिरालय का विप्लव' कहा जाता है।
5. 'मीन कैम्फ' की रचना-
जेल में रहते हुए
हिटलर ने 'मीन कैम्फ' (मेरा संघर्ष), नामक पुस्तक की रचना की।
इस पुस्तक के प्रथम भाग में हिटलर अपने प्रारम्भिक जीवन और नाजीदल के जन्म एवं
विकास के बारे में लिखा। दूसरे भाग में उसने नाजीदल के उद्देश्यों, सिद्धान्तों एवं उसके
भावी कार्यक्रमों का विश्लेषण किया। उसने वर्साय की सन्धि को निरस्त करने पर बल
दिया तथा जर्मनी के पुनः शस्त्रीकरण करने का दृढ़ निश्चय प्रकट किया। उसने जर्मनी
के प्रादेशिक विस्तार पर बल देते हुए कहा कि जर्मनी-साम्राज्य में समस्त जर्मन
भाषा-भाषी लोगों को सम्मिलित किया जाना चाहिए। उसकी धारणा थी कि जर्मन-साम्राज्य
का विस्तार केवल पूर्वी देशों में ही सम्भव था। नाजीदल के सदस्यों के लिए यह
पुस्तक एक पवित्र बाइबिल या गीता के समान महत्त्वपूर्ण हो गई थी।
6. नाजीदल का
पुनर्गठन-
दिसम्बर, 1924 के अन्त में हिटलर
को कारावास से मुक्त कर दिया गया। कारावास से मुक्त होने के बाद हिटलर ने नाजीदल
को पुनर्गठित करना शुरू कर दिया। नवम्बर, 1923 में नाजीदल को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया था और
उसकी अनुपस्थिति में दल के कुछ प्रमुख नेताओं में गम्भीर मतभेद उत्पन्न हो गये थे।
हिटलर ने बवेरिया के
प्रधान से मिलकर अपने दल के लिए पुन: मान्यता प्राप्त की। फरवरी 1925 में उसने
नाजीदल का पुनर्गठन किया। सर्वप्रथम, उसने ऐसे सभी लोगों को, जो उसके नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे, नाजीदल से निष्कासित कर
दिया। इससे नाजीदल पर उसका पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया। उसने एस.ए. (S.A.) स्वयंसेवकों की लूटमार
तथा अनुशासनहीनता पर नियन्त्रण रखने के लिए एस.एस. (S.S.) सशस्त्र सैनिक दस्तों का
गठन किया। इस दल में चुने हुए सैनिक होते थे जो खोपड़ी के चिह्न वाली काली कमीज
पहनते थे। इसके अतिरिक्त, हिटलर ने नाजीदल
के सदस्य को लोकसभा के चुनाव लड़ने तथा जीतने का प्रशिक्षण भी दिया। उसने समाज के
विभिन्न वर्गों तथा व्यवस्थाओं के लिए नाजीदल की अलग-अलग शाखाएँ स्थापित की, जैसे- 'हिटलर युवक संगठन', 'नाजी विद्यार्थी परिषद्', 'नाजी नारी संगठन', 'नाजी शिक्षक संघ' आदि।
हिटलर के अथक
प्रयासों के फलस्वरूप नाजीदल के सदस्यों की संख्या बढ़ती चली गई। 1926 में
नाजीदल के सदस्यों की संख्या 17 हजार थी, 1928 में वह बढ़कर 60 हजार तक पहुंच गई।
7. नाजीदल के प्रभाव
में वृद्धि-
1929 में नाजीदल
को अपना प्रभाव बढ़ाने का अवसर मिला। अगस्त, 1928 में वाइमर सरकार ने 'यंग योजना' को स्वीकार कर लिया था।
जर्मनी के दक्षिणपंथी तथा कट्टर राष्ट्रवादी दलों ने 'यंग योजना' का घोर विरोध किया। 'जर्मन नेशनल पार्टी के नेता एवं कट्टर
राष्ट्रवादी एल्फ्रेड ह्यगेनबर्ग ने यंग-योजना विरोधी आन्दोलन चलाया तथा
अपने इस आन्दोलन के लिए अधिक से अधिक समर्थन प्राप्त करने की दृष्टि से हिटलर का
सहयोग भी प्राप्त किया। हिटलर को इस सहयोग से बड़ा लाभ हुआ। हिटलर एवं अन्य नाज़ी
नेताओं के भाषणों को ह्यगेनबर्ग द्वारा संचालित प्रमुख समाचार-पत्रों में
मुख-पृष्ठ पर छापा जाने लगा जिससे हिटलर सम्पूर्ण जर्मनी में एक राष्ट्रीय
नेता के रूप में प्रसिद्ध हो गया।
इसके अतिरिक्त ह्यगेनबर्ग
के आन्दोलन में सम्मिलित होने से हिटलर जर्मनी के कुछ प्रमुख उद्योगपतियों के
सम्पर्क में आया और उन्हें अपने कार्यक्रम की ओर आकर्षित करने में सफल हुआ।
1929-30 के आर्थिक संकट का जर्मनी पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। इस आर्थिक संकट के
फलस्वरूप जर्मनी में बेरोजगारी में वृद्धि हुई तथा मध्यम वर्ग एवं निम्न मध्यम
वर्ग की दशा दयनीय हो गई। इस स्थिति में हिटलर को नाजीदल का प्रचार करने का बड़ा
अच्छा अवसर मिल गया। वास्तव में यह आर्थिक संकट हिटलर एवं नाजीदल के लिए वरदान
सिद्ध हुआ। हिटलर ने जर्मन लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि उनकी समस्त
कठिनाइयों के लिए गणतन्त्रीय सरकार उत्तरदायी है। उसने जर्मन-जनता से अपील की कि
आर्थिक संकट से मुक्ति पाने तथा राष्ट्रीय गौरव में वृद्धि के लिए वह नाजीदल का
समर्थन करे। हिटलर के भाषणों का जर्मन लोगों पर अच्छा प्रभाव पड़ा। 1930 के संसद
के चुनाव में नाजीदल को 107 स्थान प्राप्त हुए।
8. हिटलर द्वारा
सत्ता प्राप्त करना-
मार्च, 1932 में जर्मनी के राष्ट्रपति
के लिए चुनाव हुए। राष्ट्रपति के पद के लिए तीन उम्मीदवार थे— हिण्डेनबर्ग, हिटलर तथा थालमेन। चुनाव में हिण्डेनबर्ग
को 1,86,50,730 मत, हिटलर को
1,13,39,285 मत तथा थालमेन को 49,83,197 मत प्राप्त हुए।
चूँकि तीनों में
से किसी को भी कुल मतदाताओं का आवश्यक मत प्राप्त नहीं हुआ, अत: दूसरी बार निर्वाचन
कराया गया। दूसरा मतदान 10 अप्रेल, 1932 को हुआ। इस चुनाव में हिण्डेनबर्ग को 1,93,59,635 मत
(53.5%) और हिटलर को 1,34,18,051 मत (36.8%) प्राप्त हुए। यद्यपि राष्ट्रपति के
चुनाव में हिटलर हार गया, परन्तु
हिण्डेनबर्ग जैसे प्रसिद्ध व्यक्ति के मुकाबले में 36.8 प्रतिशत मत प्राप्त करना
हिटलर की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी।
राष्ट्रपति के चुनाव के बाद
प्रधानमन्त्री ब्रूनिंग ने नाजीदल की व्यक्तिगत सेनाओं—एम.ए. तथा एस.एस. पर
प्रतिबन्ध लगा दिया। मई, 1932 में
ब्रूनिंग ने अपने पद से त्याग-पत्र दे दिया। में ब्रूनिंग के बाद पापेन को
जर्मनी का प्रधानमन्त्री बनाया गया। जुलाई, 1932 के चुनाव नाजीदल को सर्वाधिक 230 स्थान प्राप्त हुए।
संसद में सबसे बड़े दल के नेता के रूप में हिटलर ने मन्त्रिमण्डल
बनाने की माँग रखी, परन्तु
राष्ट्रपति हिण्डेनबर्ग ने उसकी माँग को अस्वीकार कर दिया। अतः पापेन
ने पुनः अल्पमत सरकार गठित की। उसने हिटलर को मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित होने का
निमन्त्रण दिया,
जिसे हिटलर
ने ठुकरा दिया। कुछ समय बाद पापेन ने राष्ट्रपति की अनुमति से संसद को भंग कर
दिया।
नवम्बर, 1932 में संसद का पुन: चुनाव
हुआ जिसमें नाजीदल को 196 स्थान प्राप्त हुए। फिर भी नाजीदल सबसे बड़ा दल रहा।
चुनाव के तत्काल बाद पापेन ने त्याग-पत्र दे दिया। 2 दिसम्बर, 1932 को हिण्डेनबर्ग ने
श्लीचर को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया, परन्तु श्लीचर की सरकार को 8 सप्ताह बाद ही त्याग-पत्र देना
पड़ा। इस अवधि में 4 जनवरी, 1933 को जर्मनी
के भूतपूर्व प्रधानमन्त्री पापेन तथा हिटलर में तत्कालीन
प्रधानमन्त्री श्लीचर को अपदस्थ करके सत्ता अपने हाथ में लेने के लिए एक
समझौता हो गया। राष्ट्रपति हिण्डेनबर्ग को यह समझाया गया कि केवल हिटलर
ही जर्मनी को साम्यवाद से बचा सकता है।
अत: 30 जनवरी, 1933 को जर्मनी के राष्ट्रपति
हिण्डेनबर्ग ने हिटलर को जर्मनी का चांसलर (प्रधानमन्त्री)
नियुक्त किया। पापेन को उप-प्रधानमन्त्री बनाया गया। हिण्डेनबर्ग ने
यह सोचकर हिटलर को प्रधानमन्त्री बनाया था कि मिले-जुले मन्त्रिमण्डल में वह
मनमानी नहीं कर सकेगा। नेशनलिस्ट नेताओं का भी यह विश्वास था कि हिटलर को
अपनी नीति के अनुसार चला लेंगे, किन्तु उन्होंने
भी हिटलर को समझने में भूल की। हिटलर ने प्रधानमन्त्री का पद इस
उद्देश्य से ग्रहण किया था कि वह स्थायी रूप से सत्तारूढ़ रहेगा। कुछ ही समय में
उसने अपनी स्थिति को सुदृढ़ बना लिया और वाइमर संविधान को स्थगित करा दिया। इस
प्रकार शासन की सम्पूर्ण शक्ति हिटलर के हाथों में केन्द्रित हो गई। हिटलर
का यह कहना सत्य सिद्ध हुआ कि वह वैधानिक उपायों से सत्ता प्राप्त करेगा। परन्तु
सत्तारूढ़ होने के बाद उसने अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के लिए उचित-अनुचित सभी
उपायों का सहारा लिया।
9. सत्ता का
सुदृढ़ीकरण-
हिटलर जर्मनी का चांसलर तो बन
गया, परन्तु लोकसभा में उसके
दल को बहुमत प्राप्त नहीं था। अतः हिटलर ने रीशटाग (लोकसभा) को भंग करके 5
मार्च, 1933 को नये चुनाव कराने की
घोषणा की। इस चुनाव में बहुमत प्राप्त करने के लिए उसने अनैतिक साधन अपनाये। चुनाव
के कुछ दिन पूर्व नाजी सरकार ने अपने विरोधियों का दमन करना शुरू कर दिया। 27
फरवरी, 1933 को नाजीदल के एक
षड्यन्त्र के फलस्वरूप लोकसभा के एक भवन में आग लगा दी गई और इस घटना के लिए
साम्यवादियों को दोषी ठहराया गया। 28 फरवरी, 1933 को हिटलर ने एक आदेश-पत्र जारी किया जिसके
अनुसार वाइमर संविधान द्वारा प्रदत्त व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अधिकार को स्थगित
कर दिया गया अर्थात् भाषण, लेखन, मुद्रण तथा सभा आयोजित
करने आदि की स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया गया तथा सरकार को कई अपराधों के लिए
मृत्युदण्ड तक देने का अधिकार मिल गया। इस प्रकार इस अध्यादेश के द्वारा हिटलर को
सामयवादियों, गणतन्त्रवादियों तथा
सरकार-विरोधी संगठनों का दमन करने का अधिकार मिल गया। साम्यवादी दल के अनेक प्रमुख
नेताबन्दी बना लिए गये।
5 मार्च, 1933 के चुनाव में 647
स्थानों में से नाजीदल को 288 स्थान तथा नेशनलिस्ट दल को 52 स्थान प्राप्त हुए।
हिटलर ने राष्ट्रवादी दल को मिलाकर एक संयुक्त मन्त्रिमण्डल का निर्माण
किया। यद्यपि नाजीदल और उसके सहयोगियों को लोकसभा में बहुमत तो मिल गया, परन्तु दो-तिहाई बहुमत न
मिल सका जो संविधान में संशोधन के लिए आवश्यक था। अब हिटलर लोकसभा में नाजीदल का
निरंकुश शासन स्थापित करना चाहता था। इसका अर्थ था संविधान में संशोधन जिसके लिए
दो-तिहाई बहुमत का समर्थन आवश्यक था। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हिटलर ने
लोकसभा के लिए निर्वाचित 81 साम्यवादी सदस्यों को अयोग्य घोषित करके निकाल दिया।
23 मार्च, 1933 को लोकसभा का अधिवेशन
शुरू हुआ, जिसमें हिटलर ने स्वयं
उपस्थित होकर चार वर्ष के लिए लोकसभा की समस्त शक्तियाँ अपने लिए माँगीं। लोकसभा
ने 'एनेबलिंग एक्ट' (Enabling Act) पास कर दिया जिसके अनुसार
हिटलर ने लोकसभा की समस्त शक्तियाँ 4 वर्ष के लिए प्राप्त कर लीं। अब हिटलर
की सरकार को लोकसभा की स्वीकृति के बिना ही 4 वर्ष तक सभी प्रकार के कानून बनाने
का अधिकार प्राप्त हो गया। इसके बाद लोकसभा भंग हो गई। अब जर्मनी का नया नाम 'तृतीय साम्राज्य' (Third Reich) रखा गया तथा जर्मन
गणतन्त्र का अन्त हो गया।
14 जुलाई, 1933 को नाजीदल के
अतिरिक्त अन्य दल अवैध घोषित कर दिये गये। 2 अगस्त, 1934 को राष्ट्रपति हिण्डेनबर्ग की मृत्यु हो
गई तथा 14 अगस्त को एक जनमत संग्रह द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री के पदों को
एक में मिलाने की व्यवस्था की गई। अब हिटलर ही जर्मनी का चांसलर तथा
राष्ट्रपति दोनों ही बन गया।
डॉ. एम.एल. शर्मा
का कथन है कि, "अब हिटलर जर्मनी का भाग्य-विधाता, सर्वेसर्वा और कानूनों का निर्माता बन गया। वह अब राज्य का
प्रधान था,
शासन का प्रधान
था, सेना का प्रधान था और दल
का प्रधान था। एक शब्द में नाजीदल राष्ट्र का तथा हिटलर नाजीदल का प्रतीक बन
गया।"
10. जर्मनी में
हिटलर तथा नाजीदल की तानाशाही की स्थापना-
हिटलर ने शीघ्र
जर्मनी में अपनी तानाशाही सरकार की स्थापना कर दी। इस संदर्भ में उसने निम्नलिखित
कदम उठाये
1. मार्च, 1933 में एक अध्यादेश
द्वारा जर्मनी में सभी विधानसभाओं को भंग कर दिया गया और वहाँ हिटलर द्वारा
मनोनीत प्रान्तीय गवर्नर नियुक्त किये गये। 30 जनवरी, 1934 को एक कानून बनाकर
सभी प्रान्तीय विधानसभाओं को समाप्त कर दिया गया और प्रान्तीय गवर्नरों को
केन्द्रीय सरकार के अधीन कर दिया गया। इस प्रकार प्रान्तों में प्रतिनिधि शासन का
अन्त हो गया तथा प्रान्तों पर केन्द्रीय सरकार का पूर्ण नियन्त्रण स्थापित हो गया।
2. विरोधी दलों
का दमन किया गया। 26 मई, 1933 के एक आदेश
द्वारा साम्यवादी दल की समस्त सम्पत्ति जब्त कर ली गई। 14 जुलाई, 1933 को एक कानून पास
किया गया जिसके अनुसार नाजीदल को ही जर्मनी का एकमात्र राजनीतिक दल घोषित
किया गया और किसी अन्य दल का गठन करना राज्यद्रोह घोषित किया गया। इस प्रकार
नाजीदल को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दल अवैध घोषित कर दिये गये।
3. सभी राजनीतिक दलों के भंग
हो जाने से केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में भी हिटलर सर्वेसर्वा बन गया।
मन्त्रिमण्डल की बैठकों में विभिन्न मन्त्रियों के मतों की अवहेलना करके वह स्वयं
ही सभी निर्णय करने लगा।
4. जर्मनी के शासनतन्त्र पर
पूर्ण नियन्त्रण स्थापित करने के लिए हिटलर ने अप्रेल, 1933 में सिविल सेवा पुनः
स्थापना अधिनियम'
बनाया जिसके
अनुसार नाजी-विरोधी अधिकारियों को राज्य की सेवाओं से हटा दिया गया। इस कानून के
अन्तर्गत सिविल सर्विस के लगभग 28 प्रतिशत उच्च अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया
गया। विश्वविद्यालयों में भी इसी नियम को लागू किया गया तथा नाजी-विरोधी अध्यापकों
को नौकरियों से हटा दिया गया।
5. जर्मनी के
नगरों और गाँवों की, स्थानीय स्वायत्त
संस्थाओं पर भी नाजी केन्द्रीय सरकार का नियन्त्रण स्थापित हो गया। नगरपालिकाओं के
अध्यक्षों एवं ग्राम परिषदों के अध्यक्षों की नियुक्तियाँ केन्द्रीय सरकार के
गृहमन्त्री द्वारा की जाने लगीं। नगरपालिकाओं तथा ग्रामपरिषदों के सदस्यों को भी
स्थानीय नाजी नेताओं की सहमति से मनोनीत किया जाता था। स्थानीय शासन सम्बन्धी सभी
अधिकार केन्द्र द्वारा नियुक्त अधिकारियों को दिये गये और स्वशासी संस्थाएँ केवल
एक दिखावा मात्र रह गईं।
6. जर्मनी के नवयुवकों पर भी
राज्य का नियन्त्रण स्थापित करने के लिए एक नवीन संगठन बनाया गया। 1926 में हिटलर
यूथ नामक एक संगठन का निर्माण किया गया था। आगे चलकर यह नियम भी बनाया गया कि
कोई भी व्यक्ति हिटलर के युवक संगठन का सदस्य बने बिना, न तो नाजीदल में
प्रवेश पा सकता था और न ही किसी सरकारी पद को प्राप्त कर सकता था।
7. हिटलर ने अपनी सत्ता को
सुदृढ़ एवं स्थायी बनाने के लिए सभी प्रकार की नागरिक स्वतन्त्रताओं का अन्त कर
दिया। भाषण, लेखन एवं समाचार-पत्रों की
स्वतन्त्रता पूर्णत: समाप्त कर दी गई। रेडियो, सिनेमा, शिक्षा केन्द्रों
एवं सांस्कृतिक केन्द्रों पर नाजी सरकार का पूर्ण नियन्त्रण स्थापित कर दिया गया।
किसी भी व्यक्ति को बन्दी बनाकर उसे अनिश्चित काल तक जेल में रखा जा सकता था।
8. एक विशेष गुप्तचर पुलिस
या 'गेस्टापो' का गठन किया गया जिसका
मुख्य कार्य नाजीदल के विरोधियों का दमन करना था। नाजी-विरोधी लोगों को बन्दी
शिविरों में भेज दिया जाता था, जहाँ उन्हें
शारीरिक यातनाएँ भी दी जाती थीं अथवा उन्हें मृत्यु-दण्ड दिया जाता था। जर्मनी में
हजारों निर्दोष व्यक्तियों को गेस्टापो के कारण अपने जीवन से हाथ धोने पड़े
अथवा अमानुषिक यातनाएँ झेलनी पड़ीं।
9. राजनीतिक मामलों के
निर्णय के लिए एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें नाजी नेताओं की
इच्छानुसार दण्ड दिये जाते थे। नाजी-विरोधी नेताओं को कठोर दण्ड दिये जाते थे। इस
न्यायालय द्वारा मृत्युदण्ड दिया जाना एक साधारण-सी बात हो गई।
10. मजदूर संगठनों के कार्यालयों पर अधिकार कर लिया गया। अनेक मजदूर नेताओं को बन्दी बनाकर बन्दी-शिविरों में भेज दिया गया। मजदूरों तथा सामूहिक सौदेबाजी एवं हड़तालों पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
11. नाजीदल में कुछ ऐसे व्यक्ति थे, जो हिटलर के कार्यक्रम से सन्तुष्ट नहीं थे। हिटलर ने उनका भी कठोरतापूर्वक दमन किया। रोहम और उसके सहयोगियों को गोली से उड़ा दिया गया। अब नाजीदल में हिटलर की प्रधानता असंदिग्ध रूप से स्थापित हो चुकी थी।
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