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पुनर्जागरण के परिणाम एवं प्रभाव

पुनर्जागरण के परिणाम एवं प्रभाव

पुनर्जागरण विश्व-इतिहास की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण घटना है। इसने मानव-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है। संक्षेप में पुनर्जागरण के प्रभाव निम्नलिखित थे-

1. साहित्य के क्षेत्र में-

पुनर्जागरण के फलस्वरूप साहित्य के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई। पुनर्जागरण से पूर्व साहित्य की रचना केवल लैटिन तथा यूनानी भाषाओं में. की जाती थी परन्तु पुनर्जागरण के कारण देशी भाषाओं का विकास हुआ और जर्मनी इटालवी, अंग्रेजी, फ्रेंच आदि भाषाओं में भी साहित्य की रचना की जाने लगी। पुनर्जागरण के फलस्वरूप साहित्य पर से धर्म का प्रभाव कम हुआ। अब साहित्य में धार्मिक विषयों के स्थान पर मनुष्य के सुख-दुख, विचार और कार्यकलाप व्यक्त किये जाने लगे। अब मानव-जीवन से सम्बन्धित साहित्य की रचना की जाने लगी। जब साहित्य आलोचना, प्रधान, व्यक्तिवादी तथा मानववादी हो गया। पुनर्जागरण युग का साहित्य तर्क और दर्शन पर आधारित था।

1. इटली का साहित्य-

पुनर्जागरण के कारण इटली में साहित्य के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई।

दांते (1265-1321 ई.)- दांते इटली का उच्चकोटि का कवि था। इटली में पुनर्जागरण का प्रारम्भ करने वाला प्रथम व्यक्ति वही था। उसने 'डिवाइन कामेडी' नामक महाकाव्य की रचना इटालियन भाषा में की। इसमें उसने चर्च एवं सामन्तों के नैतिक पतन की निन्दा की है। दांते को 'इटालियन कविता का पिता' भी कहा जाता है।

पैट्रार्क (1304-1374 ई.)- पैट्रार्क भी इटली का प्रसिद्ध कवि एवं विद्वान था। उसे 'मानववाद का पिता' भी कहा जाता है। उसने अनेक कविताओं की रचना की। उसने प्राचीन यूनानी तथा लैटिन भाषा के अध्ययन पर बल दिया। उसने यूनानी तथा लैटिन भाषा के पुराने हस्तलिखित ग्रन्थों को संग्रहीत किया। उसने 'अफ्रीका' नामक एक गीत लिखा जो काफी प्रसिद्ध हुआ। उसे 'पुनर्जागरण का पिता' भी कहा जाता है।

बोकेशियो (1313-1375 ई.)- बोकेशियों को लैटिन गद्य साहित्य का पिता कहा जाता है। उसने 'डेकोमेरन' नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें एक सौ हास्य कहानियों का संकलन

एरि आस्ट्रो (1474-1533 ई.)- एरि आस्ट्रो इटली का एक प्रसिद्ध कवि था। उसे 'ओरलैण्डो पुरिओसी' नामक काव्य-ग्रन्थ की रचना की।

टासो (1544-1595 ई.)- टासो भी इटली का एक प्रसिद्ध कवि था। उसने 'मक- जेरूसलम' नामक काव्य-ग्रंथ की रचना की।

मैकियावली (1474-1520 ई.)- मैकियावली इटली का प्रसिद्ध राजनीतिक विचारक तथा उच्चकोटि का साहित्यकार था। उसने 'दि प्रिंस' नामक ग्रंथ की रचना की जिसमें उसके राजनीतिक विचार संकलित हैं।

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पुनर्जागरण के परिणाम एवं प्रभाव


2. फ्रांस का साहित्य-

पुनर्जागरण के कारण फ्रांसीसी साहित्य का भी काफी विकास हुआ।

विलो (1431-1484 ई.)- विलो फ्रांस का एक प्रसिद्ध कवि था। उसने फ्रांसीसी भाषा में अनेक कविताएँ लिखीं।

रेबीलेस (1494-1553 ई.)- रेवीलेस फ्रांस का एक उच्चकोटि का साहित्यकार था। वह फ्रांसीसी उपन्यास साहित्य का जन्मदाता माना जाता है। उसने 'गर्णन तुआ' तथा 'पेण्टेगरुएल नामक ग्रंथों की रचना की। उसने अपनी रचनाओं में कुलीन वर्ग के लोगों, धार्मिक कट्टरता तथा अंधविश्वासों का मजाक उड़ाया।

मोण्टेन- मोण्टेन एक अच्छा निबन्ध लेखक था। उसने अपने निबन्धों में ओजपूर्ण शैली में अपने भाव स्पष्ट रूप से व्यक्त किये। उसने शोषण तथा अत्याचारों के विरुद्ध प्रबल आवाज उठायी। वह अपने निबन्धों के कारण काफी प्रसिद्ध है।

3. इंग्लैण्ड का साहित्य-

पुनर्जागरण के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में भी साहित्य के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई।

चौसर (1340-1400 ई.)- चौसर मध्यकालीन युग का महान कवि था। उसे 'अंग्रेजी कविता का पिता' कहा जाता था। उसने 'केन्टरबरीटेल्स' नामक काव्य-ग्रंथ की रचना की।

सर टामसमूर (1477-1535 ई.)- सर टामसमूर इंग्लैण्ड का प्रसिद्ध साहित्यकार था। उसने 'यूटोपिया' नामक पुस्तक की रचना की। इस पुस्तक में उसने एक आदर्शवादी समाज और राज्य की कल्पना की है।

स्पेन्सर (1478-1535 ई.)- स्पेन्सर इंग्लैण्ड का एक प्रसिद्ध कवि था। उसने 'फेयरी क्वीन' नामक काव्य-ग्रन्थ की रचना की। इसमें मानव-स्वभाव की अच्छाई-बुराई का चित्रण हुआ है।

मिल्टन- मिल्टन इंग्लैण्ड का एक उच्चकोटि का कवि था। उसने 'पैराडाइज लास्ट' तथा 'पैराडाइज रिगेन्ड' नामक ग्रंथों की रचना की।

मार्लोव (1564-1593 ई.)- मार्लोव इंग्लैण्ड का प्रसिद्ध विद्वान था। उसने अनेक नाटक लिखे जिनमें 'डॉ. फास्टस' काफी प्रसिद्ध है।

विलियम शेक्सपियर (1564-1616 ई.)- शेक्सपियर इंग्लैण्ड का एक महान् कवि तथा नाटककार था। उसने अपनी रचनाओं में मानवीय स्वभाव के सभी पहलुओं का सुन्दर वर्णन किया है। उसके प्रसिद्ध नाटकों में 'हेमलेट', 'मैकबेध', 'किंग लियर', 'आथेले', 'रोमियो एण्ड जूलियट', 'जूलियस सीजर', 'एज यू लाइक इट', 'ट्वेल्थ नाइट', 'टेम्पेस्ट' आदि उल्लेखनीय हैं। उसने अपने नाटकों में मानवीय गुणों एवं दोषों का सजीव वर्णन किया है।

फ्रांसिस बेकन (1561-1626 ई.)- फ्रांसिस बेकन एक उच्चकोटि का निबन्धकार था। थोड़े शब्दों में अधिक भाव व्यक्त करने में वह निपुण था। उसने अपने निबन्धों के माध्यम से प्रकृति तथा भौतिक विज्ञानों के अध्ययन पर बल दिया। उसकी रचनाएँ 'द एडवान्समेन्ट ऑफ लर्निग' एवं 'द अटलाण्टिस' काफी प्रसिद्ध हैं। उसके निबन्धों का आज भी संसार में आदर किया जाता है।

4. स्पेन का साहित्य-

पुनर्जागरण के कारण स्पेन में भी साहित्य के क्षेत्र में पर्याप्त विकास हुआ। 'सर्वाटिज' स्पेन का उच्चकोटि का लेखक था। उसने 'डान क्वीकजोट' नामक पुस्तक की रचना की। उसने इस पुस्तक में मध्यकालीन रूढ़ियों तथा पम्पराओं का मजाक उड़ाया है। लोपेडीवेग तथा काल्डेन भी स्पेन के प्रसिद्ध विद्वान् थे।

5. हॉलेण्ड का साहित्य-

इरैस्मस हालैण्ड का प्रसिद्ध विद्वान् था। उसने 'मूर्खता की प्रशंसा' नामक पुस्तक लिखी जिसमें उसने व्यंग्यपूर्ण शैली में चर्च के पादरियों के पाखण्डों का मजाक उड़ाया है।

6. पुर्तगाल का साहित्य-

कैमोन्स पुर्तगाल का एक प्रसिद्ध कवि था। उसने लसियाड' नामक महाकाव्य की रचना की । इस ग्रंथ में वास्कोडिगामा की खोज का विस्तृत विवरण दिया गया।

7. जर्मनी का साहित्य-

जर्मन साहित्य की भी पर्याप्त उन्नति हुई। रुडोल्फ एग्रीकोला तथा कोल्टस प्रसिद्ध विद्वान् एवं साहित्यकार थे। उन्होंने मानववादी विचारधारा का प्रसार किया। मार्टिन लूथर भी जर्मनी का प्रसिद्ध विद्वान था। उसने बाइबिल का जर्मन भाषा में अनुवाद किया।

2. कला के क्षेत्र में-

पुनर्जागरण के फलस्वरूप कला के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई। मध्यकाल में कला पर धर्म का गहरा प्रभाव पड़ा। परन्तु पुनर्जागरण काल में कला धर्म के बन्धनों से मुक्त हो गई। अब कलाकार यथार्थवादी बन गए।

1. स्थापत्य कला-

पुनर्जागरण काल में स्थापत्य कला की अत्यधिक उन्नति हुई मध्यकाल में स्थापत्य कला के क्षेत्र में गौथिक शैली प्रचलित थी। परन्तु पुनर्जागरण काल में एक नवीन शैली का उदय हुआ जिसमें यूनानी, रोमन तथा अरब शैलियों का समन्वय था। इस शैली की प्रमुख विशेषताएँ थीं- शृंगार, सज्जा और डिजाइन । बू नेलेस्को इस नवीन शैली का प्रवर्तक था। इस शैली में मेहराबों, गुम्बदों तथा स्तम्भों की प्रधानता थी। अब नुकीले मेहराबों के स्थान पर गोल मेहराबों का निर्माण होने लगा। फ्लोरेन्स के गिरजाघर का गुम्बद का नवीन शैली का सर्वश्रेष्ठ नमूना है।

पुनर्जागरण काल में इटली में इस नवीन शैली में अनेक इमारतें बनवाई गईं जिनमें रोम का सन्त पीटर का गिरजाघर इस युग की स्थापत्य कला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है। इस गिरजाघर का विशाल एवं भव्य गुम्बद दर्शनीय है। वेनिस का मार्क का गिरजाघर भी तत्कालीन स्थापत्य-कला का एक उत्कृष्ट नमूना है।

इटली के अतिरिक्त यूरोप के अन्य देशों में भी स्थापत्य कला की उन्नति हुई । फ्रांस में भी स्थापत्य कला के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। फ्रांस के सम्राट फ्रांसिस प्रथम ने इटली के अनेक कलाकारों को पेरिस बुलाया। पेरिस में 'लूबे का प्रासाद' बनवाया गया जो उस समय की स्थापत्य कला की नवीन शैली का उत्कृष्ट नमूना है। इंग्लैण्ड में भी स्थापत्य कला के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। लंदन में सन्त पाल का गिरजाघर भी इसी नवीन शैली की महान् कृति है, जिसका निर्माण क्रिस्टोपुर की देखरेख में किया गया था। 1669 में इनिमोजान्स ने 'ह्वाइट हाल' में दावत घर का निर्माण करवाया, जो तत्कालीन स्थापत्य कला का एक सर्वश्रेष्ठ नमूना है।

2. मूर्तिकला-

पुनर्जागरण के कारण मूर्तिकला के क्षेत्र में भी पर्याप्त उन्नति हुई । मध्य युग में मूर्तिकला पर धर्म का अत्यधिक प्रभाव था। परन्तु अब मूर्तिकला धार्मिक बन्धनों से मुक्त हो गई। मूर्तिकला के क्षेत्र में भी नवीन शैली अपनाई गई। इस नवीन शैली का जन्मदाता प्रसिद्ध मूर्तिकार दोनोतेलो था उसने धार्मिक सन्तों की मूर्तियों के स्थान पर सामान्य मनुष्यों की मूर्तियाँ बनाई। उसके द्वारा बनाई गई वेनिस की सन्त मार्क की मूर्ति तत्कालीन मूर्तिकला का उत्कृष्ट नमूना है।

गिबर्टी भी एक प्रसिद्ध मूर्तिकार था। उसने फ्लोरेन्स नगर के गिरजाघर के द्वार इतने सुन्दर बनाये कि उन्हें देखकर प्रसिद्ध कलाकार माइकेल ऐंजिलो ने कहा था कि 'ये द्वार तो स्वर्ग के द्वार पर रखे जाने के योग्य हैं।

माइकेल ऐंजिलो इटली का एक महान् मूर्तिकार था। उसने लगभग 400 मूर्तियों का निर्माण किया। रोम में पोप जूलियस, द्वितीय की समाधि पर बनाई गई मूर्तियाँ तथा फ्लोरेन्स में निर्मित डेविड की मूर्ति माइकेल ऐंजिलो की श्रेष्ठ कृतियाँ हैं। इटली के अतिरिक्त यूरोप के अन्य देशों में भी मूर्तिकला का विकास हुआ।

3. चित्रकला

पुनर्जागरण काल में चित्रकला के क्षेत्र में भी अत्यधिक उन्नति हुई। अब चित्रकला पर से धर्म का प्रभाव समाप्त हुआ तथा अब धार्मिक चित्रों के स्थान पर जनजीवन से सम्बन्धित मौलिक एवं यथार्थ चित्र बनने लगे।

लियोनार्दो दा विंची (1452-1519 ई.)- लियोनार्दो दा विंची इटली का महान् चित्रकार था। वह एक प्रसिद्ध चित्रकार, वैज्ञानिक एवं विचारक था। 'मोनालिसा' तथा 'दी लास्ट सपर' उसके प्रसिद्ध चित्र हैं। ये चित्र विश्व के सर्वश्रेष्ठ चित्रों की पंक्ति में रखे जा सकते हैं। उसके चित्रों की प्रमुख विशेषताएँ हैं- प्रकाश और छाया, रंगों का चयन और शारीरिक अंगों का सबल प्रदर्शन । वह चित्रों को अधिक आकर्षक बनाने के लिए उपयुक्त रंगों का प्रयोग करता था। उसने मानव के विभिन्न मुद्राओं को चित्रित किया।

माइकेल (जिलो (1475-1564 ई.)- माइकेल ऐंजिलो भी इटली का एक महान् चित्रकार था। वह एक कलाकार तथा मूर्तिकार भी था। चित्रों में सजीवता तथा वास्तविकता लाने के लिए उसने शरीर-विज्ञान का अच्छा अध्ययन किया था। उसने लगभग 145 चित्र बनाये जिनमें दी लास्ट जजमेन्ट' (अन्तिम निर्णय) सर्वश्रेष्ठ है । इस चित्र को चित्रित करने में उसे लगभग 20 वर्ष का समय लगा। उसने सन्त पीटर के गिरजाघर की भीतरी छत पर ईसा के जन्म से लेकर प्रलय तक की कहानी को चित्रों के रूप में चित्रित किया था। ये चित्र आज भी लोगों के लिए विस्मय की वस्तु बने हुए हैं।

राफेल (1483-1520 ई.)- राफेल भी इटली का एक प्रसिद्ध चित्रकार था । इसने नारियों एवं बालकों के अनेक चित्र बनाये । उसका सबसे प्रसिद्ध चित्र 'सिस्टाइन मेडीना' है । इस चित्र की गणना विश्व के सर्वश्रेष्ठ चित्रों में की जाती है। इस चित्र में वात्सल्य प्रेममातृत्व का सुन्दर चित्रण हुआ है। उसके चित्र अपनी सुन्दरता तथा सजीवता के लिए प्रसिद्ध हैं। उसके चित्रों में मातृत्व, वात्सल्य तथा भक्ति की प्रधानता देखने को मिलती है।

टीशियन- टीशियन भी एक प्रसिद्ध चित्रकार था। उसने राजाओं, सामन्तों तथा सम्पन्न परिवारों की महिलाओं के अनेक पोट्रेट बनाये। वह हल्के रंगों के प्रयोग में बड़ा निपुण था। उसके द्वारा बनाये गये पोप पाल तृतीय तथा सम्राट चार्ल्स पंचम के चित्र काफी प्रसिद्ध हैं।

इटली के अतिरिक्त अन्य देशों में भी चित्रकला का काफी विकास हुआ। लूकस ड्यूरर, हेन्स दाल्बीन जर्मनी के प्रसिद्ध चित्रकार थे। ह्यबर्ट आइक तथा जानवान आइक हालैण्ड के प्रसिद्ध चित्रकार थे। स्पेन का डीगोवेलेस कैथ पोट्रेट के चित्रण में अत्यन्त निपुण था।

4. संगीत कला-

संगीत कला के क्षेत्र में भी पर्याप्त विकास हुआ। 16वीं शताब्दी में यूरोप में संगीत कला के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई। पुनर्जागरण काल में वायलिन और पियानो का आविष्कार हुआ। इस समय वाद्य संगीत की लोकप्रियता बढ़ी और आधुनिक ओपेरा का जन्म हुआ।

पैलेस्ट्रीना- सोलहवीं शताब्दी का इटली का एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ था। उसने Masses नामक संगीत पुस्तक की रचना की।

3. विज्ञान के क्षेत्र में-

पुनर्जागरण के कारण विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई। पुनर्जागरण के प्रभाव से नये-नये आविष्कार एवं खोजें हुईं तथा विज्ञान की सभी शाखाओं की उन्नति हुई।

क. खगोल तथा भूगोल के क्षेत्र में उन्नति-

- पोलैण्ड निवासी कोपर निकस ने इस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है जिससे दिन-रात होते हैं।

- जर्मनी के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री केपलर ने गणित के अंकों से कोपर निकस के सिद्धान्त को सही प्रमाणित कर दिया।

- इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक गैलीलियों ने भी कोपरनिकस के सिद्धान्त की पुष्टि की। उसने दूरबीन का आविष्कार किया।

- इंग्लैण्ड के निवासी आइजक न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। उसने सिद्ध किया कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति है, जिससे ऊपर से कोई वस्तु नीचे की ओर गिरती है।

ख. गणित के क्षेत्र में उन्नति-

- फ्रांस के निवासी देकार्ते ने सर्वप्रथम यह बताया कि बीज गणित का उपयोग ज्यामिति में कैसे किया जा सकता है।

- तारतगलिया नामक गणितज्ञ ने धन समीकरण के सिद्धान्त की खोज की।

- केपलर ने शंकु सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

- स्टेविन नामक विद्वान् ने दशमलव प्रणाली का प्रचार किया।

ग. भौतिक शास्त्र के क्षेत्र में उन्नति-

- गैलीलियो ने पेण्डूलम के सिद्धान्त का आविष्कार किया। उसने एयर तथा हाइड्रोस्टिक तुला की भी खोज की।

- गिलबर्ट नामक वैज्ञानिक ने मेगनेट के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।

घ. रसायन के क्षेत्र में उन्नति-

- हेलमोट ने कार्बन-डाई-आक्साइड नामक गैस की खोज की।

- कोडेस नामक वैज्ञानिक ने गंधक और एल्कोहल को मिलाकर ईथर का आविष्कार किया।

- राबर्ट वाइल नामक वैज्ञानिक ने गैसों के विस्तार के क्षेत्र में नई-नई खोजें कीं।

ङ. चिकित्सा शास्त्र के क्षेत्र में उन्नति-

- नीदरलैण्ड के निवासी पेसेडियम ने 1543 ई. में 'मानव शरीर की बनावट' नामक पुस्तक लिखी। उसने शल्य चिकित्सा के व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया।

- इंग्लैण्ड निवासी विलियम दावें ने शरीर में रक्त-प्रवाह के सिद्धान्त की खोज की।

4. भौगोलिक खोजें

(1) 1486 ई. में बार्थोलोक्यू डिआज अफ्रीका के दक्षिणी छोर तक पहुंचने में सफल हुआ।

(2) 1498 में पुर्तगाली नाविक 'वास्कोडिगामा' भारत के समुद्री तट पर स्थित कालीकट की बंदरगाह पर पहुंचा। वह पहला व्यक्ति था जिसने सर्वप्रथम भारत के जलमार्ग की खोज की।

(3) 1492 कोलम्बस ने भारत का जलमार्ग खोजने के लिए प्रस्थान किया। लगभग ढाई महीने के बाद वह बहामा द्वीप समूह में पहुंच गया। 1502 में उसने अमेरिका की खोज की।

(4) इटली निवास अमेरिगो ने नई दुनिया (अमेरिका) की यात्री की और दक्षिणी अमेरिका का पता लगाया।

(5) 1519 में पुर्तगाल निवासी मेगेलन ने समुद्री यात्रा प्रारम्भ की। उसने फिलिपाइन द्वीप समूह की खोज की। यद्यपि वह इस द्वीप समूह के आदिवासियों द्वारा मार डाला गया, परन्तु उसके साथियों ने उत्तमाथा अन्तरीप होकर पृथ्वी का सर्वप्रथम चक्कर लगाया।

(6) इंग्लैण्ड के निवासी ड्रेक ने भी पृथ्वी की परिक्रमा की।

(7) इटली के नाविक जान कैबाट ने लेबेडोर और न्यूफाउण्डलैण्ड की खोज की।

(8) पुर्तगाली नाविक केबराल ने ब्राजील की खोज की।

(9) फ्रांसीसी नाविक जैक कार्टियर ने कनाड़ा का पता लगाया।

5. मानववाद

पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप मानववाद का विकास हुआ। मानववाद के प्रभाव से लोगों में प्राचीन यूनानी तथा रोमन साहित्य के प्रति रुचि उत्पन्न हुई। अब पठन-पाठन तथा चिंतन-मनन का विषय धर्म न होकर मनुष्य अथवा संसार हो गया। अब साहित्य तथा कला के माध्यम से मानव के सुख-दुःख, विचार, कार्यकलाप आदि प्रकट किये जाने लगे। पेट्रार्क मानवावद का जन्मदाता था। पेट्रार्क के अतिरिक्त दोनातेलो, माइकेल ऐंजिलो, लियोनार्दी आदि विद्वानों ने भी मानववाद के विकास में योगदान दिया। कैम्ब्रिज, ऑक्सफोर्ड, हेडलबर्ग आदि विश्वविद्यालय मानववाद के प्रमुख केन्द्र बन गए। इटली के अतिरिक्त जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैण्ड, हालैण्ड स्पेन आदि देशों में भी मानववादी आन्दोलन का प्रसार हुआ।

6. भौतिकवादी दृष्टिकोण का विकास-

पुनर्जागरण के फलस्वरूप भौतिकवादी दृष्टिकोण का विकास हुआ। मानव की धर्म एवं परलोक में रुचि कम हो गई तथा वह इस लोक के सुखों की प्राप्ति के लिए भरसक प्रयत्न करने लगा। जिन चीजों से मनुष्य का वर्तमान जीवन सुखी एवं सम्पन्न बन सकता है, उनका आविष्कार करना ही लोगों का ध्येय हो गया।

7. बौद्धिक क्षेत्र में प्रभाव-

पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप स्वतन्त्र चिंतन की प्रवृत्ति का विकास हुआ। श्रद्धा और विश्वास का स्थान अब तर्क और स्वतन्त्र चिंतन ने ले लिया।

8. शिक्षा का विकास-

पुनर्जागरण के कारण शिक्षा का विकास हुआ। अब ग्रीक तथा लैटिन भाषाओं का पुनरुत्थान हुआ। स्कूलों और विश्वविद्यालयों में यूनानी तथा रोमन भाषाओं के अध्ययन की व्यवस्था की गई।

9. इतिहास का वैज्ञानिक अध्ययन-

पुनर्जागरण के कारण इतिहास का स्वरूप वैज्ञानिक और आलोचनात्मक हो गया। अब इतिहास में प्रामाणिक तथ्यों पर बल दिया जाने लगा। अब सही इतिहास के लेखन पर बल दिया जाने लगा। मैकियावली द्वारा लिखित 'फ्लोरेन्स का इतिहास' इसी शैली में था।

10. धर्म सुधार आन्दोलन-

पुनर्जागरण ने धर्म सुधार आन्दोलन की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। पुनर्जागरण के कारण मनुष्य में स्वतन्त्र चिंतन, तार्किक दृष्टिकोण तथा वैज्ञानिक चेतना का उदय हुआ जिसके फलस्वरूप उसे धार्मिक पाखण्डों और अंधविश्वासों में कोई रुचि नहीं रही। देशी भाषाओं में बाइबिल का अनुवाद होने से सामान्य लोग भी इसे पढ़कर धर्म के सच्चे स्वरूप को समझने लगे। इस प्रकार पुनर्जागरण ने धर्म सुधार आन्दोलन के लिए अनुकूल वातावरण बना दिया।

11. सामाजिक प्रभाव-

पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप मानववाद का विकास हुआ, साधारण जनता में शिक्षा का प्रसार हुआ। व्यापारी वर्ग के प्रभाव में वृद्धि हुई तथा कुलीन लोगों की प्रतिष्ठा और प्रभाव में कमी हुई।

12. आर्थिक प्रभाव-

व्यापारी वर्ग की धन सम्पन्नता में वृद्धि हुई और पूँजीवाद का विकास हुआ। उद्योग-धन्धों के विकास में औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन मिला।

13. धार्मिक प्रभाव-

पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप पोप और चर्च के प्रभाव में कमी हुई। अब जनता के धार्मिक अंधविश्वास समाप्त होने लगे। इसके फलस्वरूप यूरोप में धर्म सुधार आन्दोलन शुरू हुआ।

14. राजनीतिक प्रभाव-

पुनर्जागरण के परिणामस्वरूप राष्ट्रीयता का विकास हुआ। इसके फलस्वरूप सामन्तवाद को आघात पहुँचा। पोप की राजनीतिक शक्ति में कमी हुई और शासकों की शक्ति में वृद्धि हुई।

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