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अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम

भूमिका

अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम का आधुनिक विश्व के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस घटना का केवल अमेरिका पर ही नहीं, अपितु विश्व के अनेक देशों पर काफी प्रभाव पड़ा। प्रो. ग्रीन का कथन है कि, “अमेरिका के स्वतन्त्रता-युद्ध का महत्त्व इंग्लैण्ड के लिए चाहे कुछ भी क्यों न हो, परन्तु विश्व के इतिहास में यह एक महत्त्वपूर्ण घटना है। इस घटना ने नई दुनिया में एक नये युग का मार्ग प्रशस्त कर दिया।"

15वीं शताब्दी में यूरोप से एशिया तक पहुँचने का समुद्री मार्ग तलाश कर रहे थे। सन् 1492 ई. में क्रिस्टोफर कोलम्बस ने अमेरिका की खोज की। उस समय तक कोई भी यूरोपवासी नहीं जानता था कि पश्चिमी मार्ग से जाने पर एशिया से पहले अमरीका के दो महाद्वीप उत्तरी व दक्षिण अमरीका बीच में पड़ते हैं। अमेरिका की खोज होने के बाद यूरोपीय राष्ट्र अमरीका में अपने उपनिवेश स्थापित करने लगे। 18वीं शताब्दी तक उत्तरी अमेरिका में 13 उपनिवेश स्थापित हो चुके थे। यूरोपीय देशों में स्पेन ने सबसे पहले अमरीका में अपने उपनिवेश स्थापित किये। स्पेन के अतिरिक्त यूरोप के अन्य देश इंग्लैण्ड, पुर्तगाल, हालैण्ड आदि भी अमरीकी प्रदेशों में रुचि रखते थे और वहाँ अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे। इंग्लैण्ड व फ्रांस ने भी अमरीका में अपने उपनिवेश स्थापित किये।

उपनिवेशों की आबादी में वृद्धि-

इंग्लैण्ड और अन्य यूरोपीय देशों के लोग बड़ी संख्या में स्वदेश छोड़कर अमरीका में आकर बसने लगे। इसका प्रमुख कारण आर्थिक था। 12वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के बीच यूरोपीय राष्ट्र आर्थिक संकट से ग्रसित थे अतः निर्धन व बेरोजगार लोगों ने उपनिवेशों में व्यापारिक कम्पनियों में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। यूरोपीय लोगों ने कालान्तर में अमेरिका के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना अधिकार कर लिया। साम्राज्यवादी राष्ट्रों ने उपनिवेश की जनता को दबाने का प्रयास किया परिणामस्वरूप उपनिवेश की जनता ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, जिससे अमरीकी स्वाधीनता संग्राम की शुरूआत हुई।

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अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम


स्वतन्त्रता संग्राम के कारण

अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम वास्तव में वहाँ के उपनिवेशों द्वारा अपनी स्वायत्तता को जीवित रखने का एक प्रयास था। यह पूर्व नियोजित घटना नहीं थी। सप्तवर्षीय युद्धों के पूर्व तक अमरिकी उपनिवेशों को इंग्लैण्ड की तथा इंग्लैण्ड को अपने अमेरिकी उपनिवेशों की चिन्ता नहीं थी। परन्तु सन् 1763 ई. के पश्चात् इंग्लैण्ड द्वारा अपनाई गई कठोर व्यापारवादी व्यवस्था एवं औपनिवेशिक नीति ने विद्रोह को जन्म दिया। अमेरिका के स्वतन्त्रता संग्राम के निम्नलिखित कारण थे-

1. उपनिवेशियों में इंग्लैण्ड के प्रति सहानुभूति का अभाव-

अधिकांश उपनिवेशियों की इंग्लैण्ड के प्रति कोई सहानुभूति नहीं थी। इनमें से बहुत से लोग ऐसे थे जो धार्मिक अत्याचारों से परेशन होकर अमेरिका के उपनिवेशों में बस गए थे। इसके अतिरिक्त इंग्लैण्ड में सजा पाये हुए अपराधियों को भी इन उपनिवेशों में भेज दिया जाता था। ऐसे लोगों से भी इंग्लैण्ड के प्रति प्रेम की आशा करना निरर्थक था। इस प्रकार इंग्लैण्ड तथा उपनिवेशों के सम्बन्ध बहुत कच्चे थे।

2. उपनिवेशियों में स्वतंत्रता की भावना-

अमेरिका के उपनिवेशों में बसने वाले लोग इंग्लैण्ड के लोगों की अपेक्षा अधिक उत्साही तथा स्वतन्त्रता प्रेमी थे। इंग्लैण्ड की सरकार अमेरिकन उपनिवेशों पर अपना निरंकुश शासन थोपना चाहती थी, परन्तु उपनिवेशवासी किसी भी कीमत पर अपनी स्वतंत्रता को त्यागने के लिए तैयार नहीं थे।

3. अलग-अलग दृष्टिकोण-

इंग्लैण्ड में कुलीनों का शासन था तथा वहाँ के समाज में कुलीन वर्ग के लोगों की प्रधानता थी। परन्तु उपनिवेशियों में समानता की भावना अधिक प्रबल थी। ये लोग जनतंत्र के प्रबल समर्थक थे। उपनिवेशों के अधिकांश लोग प्यूरिटन थे, जबकि इंग्लैण्ड के लोग इंग्लैण्ड के चर्च के अनुयायी थे। इस प्रकार उपनिवेशियों तथा इंग्लैण्ड के लोगों के दृष्टिकोण में काफी भिन्नता थी।

4. दोषपूर्ण शासन प्रणाली-

इंग्लैण्ड की सरकार की निरंकुश शासन-व्यवस्था से उपनिवेशियों में तीव्र असंतोष था। उपनिवेशों के सभी प्रमुख पदों पर अंग्रेज लोग ही नियुक्त किए जाते थे। इस प्रकार उपनिवेशियों तथा इंग्लैण्ड की सरकार के सम्बन्ध तनावपूर्ण बने हुए थे।

5. उपनिवेशों का आर्थिक शोषण-

इंग्लैण्ड की सरकार उपनिवेशों का अधिक से अधिक आर्थिक शोषण करना चाहती थी। औद्योगिक नियमों के द्वारा उपनिवेशों के उद्योगों पर प्रतिबंध लगाया गया था। इन नियमों के अनुसार उपनिवेशवासी अपने यहाँ का कच्चा माल तथा अन्य समान यूरोप के अन्य किसी देश को निर्यात नहीं कर सकते थे। व्यापारिक नियमों के अनुसार उपनिवेशों में उत्पादित कुछ वस्तुओं का निर्यात केवल इंग्लैण्ड को ही किया जा सकता था। ये वस्तुएँ थीं-चावल, लोहा, तम्बाकू, लकड़ी, चमड़ा एवं नौसैनिक सामान। अतः इंग्लैण्ड की सरकार की आर्थिक शोषण की नीति से उपनिवेशियों में तीव्र असंतोष था।

6. सप्तवर्षीय युद्ध-

1757 ई. में इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के मध्य सप्तवर्षीय युद्ध छिड़ गया जो 1763 ई. तक चलता रहा। सप्तवर्षीय युद्ध में फ्रांस की पराजय हुई और कनाडा पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। अब उपनिवेशियों को इंग्लैण्ड के विरुद्ध विद्रोह करने का अवसर मिल गया, क्योंकि अब फ्रांसीसियों के आक्रमण का भय दूर हो गया था।

7. ग्रेनविल के आपत्तिजनक कार्य-

1763 ई. में ग्रेनविल ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बना। इंग्लैण्ड की सरकार ने एक शीरा अधिनियम पास किया जिसके अनुसार विदेशी शीरे के आयात पर कर लगा दिया गया। इस नियम का कड़ाई से पालन कराया गया, जिससे उपनिवेशवासियों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ। अमेरिकन उपनिवेशवासियों की सुरक्षा के लिए ग्रेनबिल ने एक छोटी-सी सेना अमेरिका में रखने की घोषणा की। इस सेना पर लगभग साढ़े तीन लाख पौण्ड वार्षिक खर्च होने का अनुमान था। ग्रेनविल ने माँग की कि सुरक्षा सेना पर होने वाले खर्चे में से एक लाख पौण्ड वार्षिक उपनिवेशवासी दें। परन्तु उपनिवेशवासियों ने यह रकम देने से इन्कार कर दिया।

8. इंग्लैण्ड की नई आर्थिक नीति-

(1) शक्कर अधिनियम- 1764 में इंग्लैण्ड की सरकार ने शुगर अधिनियम पास किया जिसके अनुसार उपनिवेशवासी केवल ब्रिटिश पश्चिमी द्वीप समूह से ही चीनी खरीद सकते थे। इससे उपनिवोवासियों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ।

(2) खोज वारन्ट अधिनियम- जब उपनिवेशों के व्यापारी चोरी से माल का आयात करने लगे तो ब्रिटिश सरकार ने तस्कर व्यापार को रोकने के लिए खोज वारन्ट अधिनियम पास किया। इससे भी उपनिवेशवासियों में तीव्र असंतोष उत्पन्न हुआ।

(3) मुद्रा अधिनियम- 1764 में इंग्लैण्ड की सरकार ने मुद्रा अधिनियम पास किया जिसके अनुसार उपनिवेशवासियों को पत्र-मुद्रा प्रचलित करने के अधिकार से वंचित कर दिया गया। इस कारण भी उपनिवेशवासियों में तीव्र असंतोष व्याप्त था।

9. फ्रांस तथा यूरोपीय देशों का सहयोग-

फ्रांस ने इंग्लैण्ड को दुर्बल बनाने के लिए उपनिवेशवासियों को इंग्लैण्ड के विरुद्ध भड़काया। उसने उपनिवेशवासियों को इंग्लैण्ड के विरुद्ध हर प्रकार सहायता देने का आश्वासन दिया। स्पेन और हालैण्ड ने भी उपनिवेशवासियों को इंग्लैण्ड के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया।

10. अमेरिका के देशभक्तों का योगदान-

अमेरिका के स्वतन्त्रता-युद्ध में अनेक देशभक्तों ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। टामस पेन नामक प्रसिद्ध लेखक ने साधारण तर्क बुद्धि' नामक एक पुस्तक की रचना की, जिसने उपनिवेशवासियों को अत्यधिक प्रभावित किया। जेम्स आटिस, पैट्रिक हेनरी तथा सैम्यूल एडम्स ने भी अमेरिकन उपनिवेशवासियों में देशप्रेम तथा राष्ट्रीय चेतना जाग्रत की। जार्ज वाशिंगटन ने भी अमरीकन लोगों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया।

11. स्टाम्प अधिनियम-

1765 ई. में इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री ग्रेनविल ने 'स्टाम्प एक्ट' पास करवाया जिसके अनुसार समाचार-पत्रों, पुस्तकाओं तथा सरकारी दस्तावेजों पर रसीदी टिकट (स्टाम्प) लगाना आवश्यक हो गया। परन्तु उपनिवेशवासियों ने 'स्टाम्प एक्ट' का घोर विरोध किया। अमेरिकन उपनिवेशों में स्टाम्प एक्ट का घोर विरोध किये जाने से इंग्लैण्ड के व्यापार में गिरावट आई। अत: इंग्लैण्ड की सरकार ने घोषणा अधिनियम' पास किया। परन्तु उपनिवेशवासियों ने इस अधिनियम का भी घोर विरोध किया।

12. नये कानून-

(1) आयात चुंगी नियम- 1767 ई. में इंग्लैण्ड के वित्त मंत्री-टाउनशैड ने आयात चुंगी नियम पास करवाया जिसके अनुसार चाय, कागज, सीसे, रंग आदि पर कर लगा दिया गया, परन्तु उपनिवेशवासियों ने इसका भी घोर विरोध किया।

(2) क्वार्टरिंग अधिनियम- टाउनशैड ने क्वार्टरिंग अधिनियम पास किया.जिसके अनुसार उपनिवेशों में रहने वाले ब्रिटिश सैनिकों के आवास एवं रसद की व्यवस्था उपनिवेशियों द्वारा की जानी थी। उपनिवेशों ने इस अधिनियम का भी घोर विरोध किया।

13. बोस्टन हत्याकाण्ड-

5 मार्च, 1770 को बोस्टन के निवासियों तथा ब्रिटिश सैनिकों के बीच झगड़ा हो गया। इस पर ब्रिटिश सैनिकों ने बोस्टनवासियों पर गोली चला दी, जिसके फलस्वरूप पाँच उपनिवेशवासी मारे गये। इसे बोस्टन हत्याकाण्ड की संज्ञा दी

14. बोस्टन टी पार्टी-

1773 ई. में लार्ड नार्थ ने चाय अधिनियम पास किया। इस अधिनियम से ईस्ट इण्डिया कम्पनी को अमेरिका में चाय निर्यात करने का एकाधिकार मिल गया परन्तु उपनिवेशवासियों ने इस अधिनियम का भी विरोध किया। जब बोस्टन के बन्दरगाह पर चाय से भरे हुए जहाज पहुँचे तो 26 सितम्बर, 1773 को कुछ अमरीकी देशभक्त जहाजों पर चढ़ गए तथा चाय की 340 पेटियों को समुद्र में फेंक दिया। यह घटना बोस्टन टी पार्टी के नाम से प्रसिद्ध है। इस घटना से अमेरिका तथा इंग्लैण्ड के बीच सम्बन्ध बिगड़ गए।

15. ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीति-

बोस्टन टी पार्टी की घटना से ब्रिटिश सरकार भी नाराज हुई और उसने उपनिवेशवासियों को दण्डित करने का निश्चय कर लिया। ब्रिटिश सरकार ने बोस्टन का बन्दरगाह उस समय तक के लिए बन्द कर दिया जब तक चाय का हर्जाना न दे दिया जाए। इसके फलस्वरूप हजारों लोग बेकार हो गये। इसके अतिरिक्त उपनिवेशवासियों के स्वशासन के अधिकारों में कमी कर दी गई।

16. प्रथम एवं द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस-

अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उपनिवेशों के प्रतिनिधि 5 सितम्बर, 1774 को फिलाडेलफिया नामक स्थान पर एकत्र हुए। इसे प्रथम महाद्वीपीय कांग्रेस कहते हैं। इस सभा ने ब्रिटिश सरकार को चेतावनी दी कि यदि उसने उपनिवेशों पर लगाये गए प्रतिबंध नहीं हटाये तो उपनिवेश इंग्लैण्ड के साथ व्यापार करना बंद कर देंगे। परन्तु ब्रिटिश सरकार ने उपनिवेशों के घोषणा-पत्र पर कोई ध्यान नहीं दिया। 10 मई, 1775 को फिलाडेलफिया में द्वितीय महाद्वीपीय कांग्रेस की सभा हुई जिसमें एक घोषणा-पत्र तैयार किया गया। इसके अनुसार इंग्लैण्ड की दासता से स्वतन्त्रता प्राप्त करने का निश्चय किया गया। 1775 में इंग्लैण्ड तथा अमेरिका के बीच युद्ध छिड़ गया।

युद्ध की घटनाएँ

1775 ई. में लैक्सिंगटन के स्थान पर युद्ध हुआ। इस संघर्ष में आठ उपनिवेशवासी मारे गये। उपनिवेशवासियों को बंकर्स हिल के स्थान पर पराजय का मुंह देखना पड़ा। अमरीकी सेनापति जार्ज वाशिंगटन के ब्रुकलिन की लड़ाई में अंग्रेजी सेना का मुकाबला किया, परन्तु उसे पराजित होना पड़ा। 1776 ई. में जार्ज वाशिंगटन के ट्रेण्डन तथा प्रिसंटन के युद्धों में ब्रिटिश सेना को परास्त कर दिया। 17 अक्टूबर, 1977 को अमरिकी सेना ने साराटोगा के युद्ध में ब्रिटिश सेना को पराजित कर दिया। फ्रांसीसी बेड़े की सहायता से जार्ज वाशिंगटन ने ब्रिटिश सेनापति लार्ड कार्नवालिस के 8000 सैनिकों को चारों ओर से घेर लिया। अन्त में 19 अक्टूबर, 1781 को लार्ड कार्नवास के आत्मसमर्पण कर दिया। अन्त में सितम्बर 1783 में अमेरिका तथा इंग्लैण्ड के बीच एक संधि हो गई, जिसे पेरिस की संधि कहते हैं।

पेरिस की संधि की प्रमुख शर्ते

(1) इंग्लैण्ड ने अपने भूतपूर्व 13 अमेरिकी उपनिवेशों की स्वतंत्रता को स्वीकार कर लिया।

(2) अमेरिका की सीमाएँ निश्चित कर दी गई।

(3) इंग्लैण्ड के पास कनाड़ा, नोवास्कोशिया तथा न्यूफाउंडलैण्ड रहने दिये गये।

(4) इंग्लैण्ड के द्वारा सेनेगल तथा टोबेगो के प्रदेश फ्रांस को लौटा दिये गये।

(5) स्पेन को मिनोरिका तथा फ्लेरिडा के प्रदेश प्राप्त हुए।

अमेरिकी स्वतन्त्रता संग्राम (स्वतन्त्रता-युद्ध) के परिणाम

1. एक स्वतन्त्र राष्ट्र की स्थापना-

इस स्वतन्त्रता-युद्ध के परिणामस्वरूप अमेरिका के 13 उपनिवेश स्वतन्त्र हो गए। इंग्लैण्ड ने भी अमेरिका की स्वतन्त्रता को स्वीकार कर लिया। स्वतन्त्र होने पर 13 उपनिवेशों ने मिलकर एक संघ बनाया, जिसका नाम संयुक्त राज्य अमेरिका रखा गया।

2. लिखित संविधान-

अमेरिका ने अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए एक लिखित संविधान तैयार किया। वहाँ संघात्मक शासन-व्यवस्था स्वीकार की गई। अमेरिका में पूर्ण प्रजातन्त्र की स्थापना हुई। आज भी अमेरिका विश्व के महान् प्रजातन्त्र राष्ट्रों में से एक है।

3. अमेरिका से अन्य शक्तियों के प्रभुत्त्व का अन्त-

इस स्वतन्त्रता-युद्ध के परिणामस्वरूप अमेरिका से फ्रांस तथा स्पेन के प्रभुत्त्व का भी अन्त हो गया। फ्रांस का प्रभाव तो अमेरिका से 1613 में ही सप्तवर्षीय युद्ध के बाद समाप्त हो गया था, परन्तु स्पेन अमेरिका में स्थित अपने उपनिवेशों को सुरक्षित रखना चाहता था, परन्तु वह अपने उद्देश्य में असफल रहा। 1780 में अमेरिकावासियों ने स्पेन के विरुद्ध विद्रोह किया तथा स्पेन के अधीन अपने उपनिवेशों को भी स्वतन्त्र करा लिया।

4. अमेरिका का औद्योगिक तथा आर्थिक विकास-

स्वतन्त्रता के पश्चात् अमेरिका ने गृह उद्योग-धन्धों को विकसित किया। इसके बाद अमेरिका ने अपने यहाँ बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किये। वहाँ लोहे, सूती कपडे तथा अन्य उद्योगों का काफी विकास हुआ। औद्योगिक विकास के कारण अमेरिका की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो गई। आज अमेरिका विश्व का सबसे बड़ा धनी देश बना हुआ है।

5. धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना-

स्वतन्त्रता के पश्चात् अमेरिका को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया। अब राज्य पर से धर्म का प्रभाव समाप्त कर दिया गया। अब धर्म का प्रशासन तथा राज्य से कोई सम्बन्ध नहीं रहा। अब कांग्रेस को अधिकार नहीं था कि वह किसी धर्म को राज्य धर्म घोषित करे या किसी धर्म के स्वतन्त्र पालन पर कोई प्रतिबन्ध लगाए।

6. अमेरिकी समाज पर प्रभाव-

अमेरिकी क्रांति के अमेरिकी समाज पर भी काफी प्रभाव पड़े। इस युद्ध के फलस्वरूप स्त्रियों में जागृति उत्पन्न हुई। युद्ध के दौरान स्त्रियों ने रसद पहुंचाने, अस्त्र-शस्त्र बनाने तथा गुप्तचर का कार्य करने आदि में सहयोग दिया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् अमेरिका के उत्तराधिकार नियम में परिवर्तन किया गया, जिसके अनुसार जमींदार की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति उसके सभी पुत्रों तथा पुत्रियों में बाँटे जाने की व्यवस्था की गई।

7. इंग्लैण्ड की प्रतिष्ठा को आघात-

अमेरिका के स्वतन्त्रता-युद्ध में इंग्लैण्ड की बुरी तरह से पराजय हुई जिससे उसकी प्रतिष्ठा को प्रबल आघात पहुँचा। अब विश्व के देश यह मानने लगे कि इंग्लैण्ड अजेय नहीं है। अमेरिका के 13 उपनिवेश इंग्लैण्ड के हाथों से निकल गए। उपनिवेशों के स्वतन्त्र हो जाने से ब्रिटेन के व्यापार को भी आघात पहुँचा।

8. जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन की समाप्ति-

अमेरिकी स्वतन्त्रता-युद्ध में इंग्लैण्ड के पराजित हो जाने के फलस्वरूप इंग्लैण्ड में जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अन्त हो गया। इंग्लैण्ड की पराजय के लिए जार्ज तृतीय तथा उसके प्रधानमंत्री लार्ड नार्थ को उत्तरदायी ठहराया गया और संसद में उनकी कटु आलोचना की गई। लार्ड नार्थ को त्याग पत्र देना पड़ा। ब्रिटिश संसद ने राजा की शक्तियों पर अंकुश लगा दिया। इस प्रकार इंग्लैण्ड में जार्ज तृतीय के व्यक्तिगत शासन का अन्त हो गया।

9. इंग्लैण्ड की उपनिवेशों के प्रति नीति में परिवर्तन-

अब तक इंग्लैण्ड की नीति उपनिवेशों में वाणिज्यवाद की होती थी। इस नीति के अनुसार वह उपनिवेशों से कच्चा माल मंगाता था तथा तैयार माल का निर्यात करता था। इसके फलस्वरूप इंग्लैण्ड धनी होता जाता था तथा उसके उपनिवेश गरीब होते जाते थे। परन्तु अमेरिका के स्वतवता-युद्ध के बाद इंग्लैण्ड को वाणिज्यवाद की नीति छोड़नी पड़ी। अब उसने एक नवीन नीति अपनाई जिसके अनुसार उसने अपने उपनिवेशों में प्रशासनिक सुधारों को प्रोत्साहन दिया।

10. इंग्लैण्ड की आर्थिक अवस्था का दयनीय होना-

अमेरिका के स्वतन्त्रता-युद्ध के दौरान इंग्लैण्ड को विपुल धनराशि खर्च करनी पड़ी, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति शोचनीय हो गई। अमेरिकी उपनिवेशों के हाथ से निकल जाने के कारण भी इंग्लैण्ड के व्यापार को प्रबल आघात पहुँचा। इस कारण भी इंग्लैण्ड की आर्थिक अवस्था दयनीय हो गई।

11. अन्य उपनिवेशों के प्रति इंग्लैण्ड की सतर्कता-

अमेरिकी स्वतन्त्रता-युद्ध के पश्चात् इंग्लैण्ड के राजनीतिज्ञों ने यह महसूस किया कि बचे हुए उपनिवेशों पर अपना प्रभुत्त्व रखना है तो उन्हें उन उपनिवेशों में शोषण की नीति का परित्याग करके उदारता की नीति अपनानी होगी। अतः इस युद्ध के पश्चात् आयरलैण्ड, कैनेडा तथा आस्ट्रेलिया के साथ इंग्लैण्ड ने उदारता की नीति अपनाई। भारत के लिए 1784 ई. में 'पिंट अधिनियम' पास किया गया।

12. आयरलैण्ड के प्रति इंग्लैण्ड की नीति में परिवर्तन-

आयरलैण्डवासियों को राजनीतिक तथा आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं थी। उस समय आयरलैण्ड में होम रूल आन्दोलन चल रहा था। अमेरिका के स्वतन्त्र होने के बाद इंग्लैण्ड की सरकार ने आयरलैण्ड की समस्या की ओर ध्यान दिया तथा उसकी माँगों पर सहानुभूति से विचार करना शुरू किया। 1780 ई. में आयरलैण्ड पर लगे हुए व्यापारिक प्रतिबन्ध हटा लिए गए तथा 1782 ई. में आयरलैण्ड की व्यवस्थापिका सभा को भी स्वतन्त्रता प्राप्त हो गई।

13. फ्रांस की आर्थिक अवस्था का शोचनीय होना-

अमेरिकी स्वतन्त्रता-युद्ध में फ्रांस ने इंग्लैण्ड के विरुद्ध अमेरिका का साथ दिया था। उसे इस युद्ध में विपुल धन खर्च करना पड़ा। उसे इस युद्ध में सेना तथा युद्धपोत भेजने से बहुत आर्थिक क्षति उठानी पड़ी जिससे फ्रांस की आर्थिक स्थिति बड़ी शोचनीय हो गई।

14. फ्रांस की राज्य-क्रांति-

फ्रांस के हजारों सैनिक अमेरिका में युद्ध करने गए थे। वे अमेरिकी लोगों के स्वतन्त्रता व समानता के विचारों से बड़े प्रभावित हुए। जब विजय प्राप्त करके फ्रांसीसी सैनिक फ्रांस लौटे तो उन्होंने इस बात का प्रचार किया किस में निरकुंश शासन-व्यवस्था का अन्त होना चाहिए। उनके इन विचारों से फ्रांस की राज्य-क्रान्ति को बड़ी प्रेरणा मिली।

15. फ्रांस को कुछ प्रदेशों की प्राप्ति-

1783 की पेरिस की संधि के अनुसार फ्रांस को टोबेगो तथा सेनीगल के प्रदेश प्राप्त हुए। इससे फ्रांस की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

अमेरिकी स्वतन्त्रता-युद्ध का महत्त्व

आधुनिक विश्व के इतिहास में अमेरिकी स्वतन्त्रता-युद्ध का अत्यधिक महत्त्व है। इसने निरकुंश शासन का अन्त कर अमेरिका में प्रजातंत्रीय शासन-व्यवस्था की स्थापना की। इसने निरकुंशवाद तथा साम्राज्यवाद को प्रबल आघात पहुँचाया। इससे यूरोप के अन्य देश भी प्रभावित हुए। आयरलैण्ड तथा फ्रांस के लोगों को इससे बड़ी प्रेरणा मिली। इसने फ्रांस की राज्य-क्रांति को प्रोत्साहन दिया। इसने प्रजातन्त्र को विश्व में लोकप्रिय बनाया।

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