18वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में नेपोलियन ने उत्तरी इटली के आस्ट्रियन साम्राज्य के उत्तरी प्रान्तों को विजय कर, उनमें दो विशाल गणराज्यों की स्थापना की थी। सम्राट बनने के पश्चात् नेपोलियन ने इटली के गणराज्यों तथा पोप के राज्यों को संयुक्त करके इटली के राज्यों की स्थापना की थी। इस प्रकार उसने अनजाने में ही इटली के एकीकरण का कार्य आरम्भ कर दिया। नेपोलियन ने वहाँ शासन सुधार किया तथा नेपोलियन कोड लागू किया। इससे वहाँ के निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। वे अपना प्राचीन गौरवपूर्ण अतीत याद करके अपने देश को पुन: महान् बनाने का विचार करने लगे।
1815 के वियना
समझौते ने इटली को फिर से छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त कर दिया, जिनके शासक निरंकुश एवं
स्वेच्छाचारी थे। लोम्बार्डी और वेनिस को आस्ट्रियन साम्राज्य का
अंग बना दिया गया। पारमा, न्यूका, टस्कनी मोडेना आदि
छोटे-छोटे राज्यों पर आस्ट्रियन राजघराने के व्यक्ति शासक के रूप में थोप दिये
गये। नेपल्स तथा सिसली का शासक बूढे वंश का एक राजकुमार बना,
रोम में पोप का और पीडमान्ट में विक्टर इमेन्युअल का शासन पहले से ही था।
इटली का एकीकरण |
19वीं शताब्दी के
पूर्वार्द्ध में इटली के देशभक्तों ने देश के एकीकरण के लिए गुप्त
समितियों की स्थापना की और आन्दोलन किये। सन् 1830 और 1848 की क्रान्तियों के समय
विभिन्न राज्यों में विद्रोह हुए, किन्तु संगठन व
निश्चित कार्यक्रम के अभाव और मेटरनिख के दमन चक्र के कारण प्रयास असफल
रहे।
इटली के एकीकरण में प्रमुख बाधाएँ
1815 से 1848 तक
इटली के देश भक्त अपना स्वतन्त्रता संग्राम चलाते रहे, परन्तु सफलता नहीं मिली।
इटली के एकीकरण में निम्नलिखित बाधाएँ थीं-
1. इटली की
धन-सम्पन्नता-
इटली एक धन सम्पन्न राज्य था।
यहाँ वाणिज्य-व्यापार, कला, साहित्य आदि सभी उन्नत
अवस्था में थे। अतः सभी विदेशी शक्तियाँ इटली पर अपना आधिपत्य स्थापित रखना
चाहती थी।
2. पोप का विरोध-
पोप का राज्य शक्तिशाली था
और उसे यूरोप के प्रमुख राजाओं तथा कैथोलिक लोगों का समर्थन प्राप्त था।
अत: पोप को सत्ता से वंचित करना एक कठिन समस्या थी।
3. इटली में एकता का
प्रभाव-
इटली के प्रत्येक भाग में
पृथकता एवं ईर्ष्या की भावना थी और राष्ट्रीय एकता की भावना का
पूर्ण रूप से अभाव था। मेटरनिख कहा करता था "यहाँ का एक प्रान्त दूसरे
प्रान्त के विरुद्ध है, एक नगर दूसरे नगर
के विरुद्ध है,
एक वंश दूसरे वंश
के विरुद्ध है तथा एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के विरुद्ध है।"
4. आस्ट्रिया द्वारा
बाधा उत्पन्न करना-
इटली के एकीकरण में आस्ट्रिया
सबसे बड़ी बाधा था। इटली के अधिकाँश राज्यों में आस्ट्रिया का प्रभुत्त्व
था। आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री मेटरनिख राष्ट्रीयता और उदारवाद का कट्टर
शत्रु था। आस्ट्रिया की दमनकारी और प्रतिक्रियावादी नीति के कारण इटली के
क्रांतिकारी आन्दोलन को असफलता का मुंह देखना पड़ा।
5. निश्चित योजना का
अभाव-
इटली निवासियों के सम्मुख कोई
एक निश्चित योजना न थी। वे भिन्न-भिन्न उद्देश्यों को लेकर भिन्न-भिन्न ढंगों से
कार्य कर रहे थे। मेजिनी गणतन्त्र की स्थापना करना चाहता था, परन्तु साडीनिया
पीडमांट के राजनीतिज्ञ राजतन्त्र पक्ष में थे। कुछ लोग पोप के
नेतृत्त्व में संघीय शासक की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे।
6. सुदढ़ राजनीतिज्ञ
दल का अभाव-
इटली में कोई भी ऐसा दल या
संगठन नहीं था जो सम्पूर्ण देश को एकता के सूत्र में बाँध सकता था। कार्बोनरी
की गुप्त गतिविधियों और छोटे-मोटे विद्रोहों से अधिक लाभ की आशा न थी। मेजिनी
के 'युवा इटली' नामक दल के पीछे भी
लोकमत न था। यह गणतन्त्रवादियों का संगठन समझा जाता था।
7. जाग्रति का अभाव-
इटली के स्वतन्त्रता का
प्रश्न एकमात्र राजनीतिक न था, वह सामाजिक, बौद्धिक और आर्थिक भी था।
अभी तक किसी भी राज्य में सामाजिक सुधारों, आर्थिक योजनाओं, बौद्धिक विकास से जन-साधारण में पूर्ण चेतना और आत्मविश्वास
उत्पन्न न किया था। अत: इटली का स्वतन्त्रता संग्राम अभी तक एक पक्षीय एवं सीमित
था।
इटली के एकीकरण के विभिन्न चरण
इटली का एकीकरण चार
चरणों में पूरा हुआ जिसका विवेचन इस प्रकार है-
1. प्रथम चरण-
काबूर ने फ्रांस के
सम्राट नेपोलियन तृतीय को नीस और सेवाए देने का आश्वासन देकर
उससे 2 लाख फ्रांसीसी सैनिकों की सहायता प्राप्त की। इसके पश्चात् आस्ट्रिया
के साथ पीडमान्ट का युद्ध हुआ, जिससे दो बार आस्ट्रिया पराजित हुआ। इस प्रकार लोम्बार्डी
के प्रान्त से आस्ट्रिया का अधिकार जाता रहा। वह पीडमान्ट संघ में सम्मिलित
कर लिया गया। लोम्बार्डी पर पीडमान्ट का अधिकार होना इटली के एकीकरण का प्रथम
चरण था।
2. द्वितीय चरण-
परामा, मोडेना, टस्कनी और रोमाग्ना आदि
उत्तरी इटली के छोटे-छोटे राज्यों की सहमति प्राप्त करके उनको पीडमान्ट
संघ में मिलाने का निर्णय किया गया। आस्ट्रिया ने इसका कड़ा विरोध किया, किन्तु काबूर ने
चतुरतापूर्वक इस सम्बन्ध में नेपोलियन तृतीय की सहमति प्राप्त कर ली। जनमत
द्वारा यह सिद्ध हो गया कि इन राज्यों की अधिकांश जनता पीडमान्ट संघ में मिलने के
पक्ष में थी। इस प्रकार उत्तरी इटली के इन छोटे-छोटे राज्यों को भी पीडमान्ट
संघ का सदस्य बना लिया गया। यह इटली के एकीकरण का द्वितीय चरण था।
3. तृतीय चरण-
सन् 1860 ई. में सिसली
की जनता ने नेपल्स के निरंकुश शासन के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। प्रसिद्ध
देशभक्त, गैरीबाल्डी अपने लालकुर्ती दल
के लगभग एक हजार सैनिकों के साथ जन आन्दोलन की सहायता के लिए सिसली पहुँच
गया और वहाँ के राजा को दो युद्धों में बुरी तरह हराकर नेपल्स पर अधिकार कर
लिया। इसके पश्चात् उसने नेपल्स के राजा पर आक्रमण कर दिया। राजा बिना
युद्ध नेपल्स से भाग गया। इस प्रकार नेपल्स और सिसली का विशाल राज्य गैरीबाल्डी
के अधिकार में आ गया।
उधर नेपोलियन
तृतीय की सहमति प्राप्त करके विक्टर इमेन्युअल द्वितीय
ने पोप के राज्य के आगब्रिया और मार्सलेज प्रान्तों को सेना भेजकर अपने
अधिकार में ले लिया। अक्टूबर, 1860 में गैरीबाल्डी
ने अनुपम देशभक्ति और त्याग का परिचय देते हुए सिसली और नेपल्स राज्य पीडमान्ट के
शासक विक्टर इमेन्युअल द्वितीय को अर्पित कर दिया। आम्बिया, मार्सलेज, सिसली और नेपल्स में जनमत
संग्रह की व्यवस्था की गई और भारी बहुमत से उन राज्यों की जनता ने पीडमान्ट संघ
में सम्मिलित होने की सहमति दे दी। इस प्रकार इटली के एकीकरण का तृतीय चरण
पूरा हुआ। उस समय तक केवल रोम और वेनेशिया ही पीडमान्ट संघ के सदस्य बनने को शेष रह
गये थे।
4. चतुर्थ चरण-
सन् 1866 ई. में प्रशा
और आस्ट्रिया का युद्ध हुआ, जिसमें प्रशा विजयी हुआ। इस विजय का एक यह भी कारण था कि
प्रशा के चान्सलर बिस्मार्क के इशारे पर विक्टर इमेन्युअल द्वितीय ने
वेनिशया और टाइरोल पर आक्रमण कर आस्ट्रिया के विरुद्ध दूसरा मोर्चा स्थापित कर
दिया था। इसके फलस्वरूप आस्ट्रिया अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग प्रशा के विरुद्ध
नहीं कर सका। संधि की शर्तों के अनुसार, बिस्मार्क ने अपने वचन का पालन करते हुए, विक्टर इमेन्युअल द्वितीय
को आस्ट्रिया से वेनेशिया दिलवा दिया। इस प्रकार वेनिशिया भी पीडमान्ट संघ
में सम्मिलित कर लिया गया। सन् 1870 ई. में फ्रांस और प्रशा का युद्ध छिड़ गया।
अत: नेपोलियन तृतीय को रोम से अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी जिससे रोम
की सुरक्षा जाती रही। नेपोलियन का पतन होते ही विक्टर इमेन्युअल ने अपनी
सेना भेज कर रोम पर अधिकार कर लिया। इस प्रकार इटली का एकीकरण पूर्ण हो गया
और रोम को उसकी राजधानी बनाया गया। यह इटली के एकीकरण का अन्तिम
चरण था।
इस प्रकार
देशभक्तों के प्रयत्नों, विदेशी सहायता और
यूरोप की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों के प्रभाव से सन् 1870 ई. तक इटली
अपनी एकता प्राप्त करने में सफल हुआ।
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