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इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान

इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान

मेजिनी इटली में राष्ट्रीय आन्दोलन का मसीहा था। वह इस आन्दोलन का आध्यात्मिक नेता था। उसका जन्म 1805 ई. में जिनेवा में हुआ था उसका पिता एक प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री था। वह फ्रांसीसी क्रांति का समर्थक था तथा अपने पुत्र मेजिनी को क्रांति की घटनाएँ बड़े रोचक शब्दों में सुनाया करता था, अतः मेजिनी बाल्यकाल से ही क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित हो गया और अपने देश को विदेशी शक्तियों से मुक्त कराने का प्रयास करने लगा। अपने देश की हीन दशा को देखकर उसको बहुत दुख होता था।

इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान
इटली के एकीकरण में मेजिनी का योगदान


मेजिनी ने इटली की शोचनीय अवस्था का चित्रण करते हुए लिखा था हमारा न कोई विशेष झन्डा है, न कोई राजनीतिक नाम, न यूरोपीय राष्ट्रों के बीच हमारा कोई स्थान है न कोई सम्मिलित बाजार, हम आठ राज्यों के विरुद्ध हैं टस्कनी, गोडेना, परमा, लोम्बार्डी, वेनशिया, पोप का राज्य, पीडमांट तथा नेपल्स का राज्य। वे सब एक दूसरे से स्वतन्त्र हैं, उनमें किसी प्रकार की एकता तथा व्यवस्थित सम्बन्ध नहीं है। प्रतिबन्धों एवं अनेक करों के कारण इटली के प्रत्येक राज्य में सबसे आवश्यक वस्तुओं के आयात तथा निर्यात में अवरोध उपस्थित होता है और हम स्वतन्त्रतापूर्वक उन वस्तुओं को बेच नहीं सकते जो हमारे पास आवश्यकता से अधिक है और न उन वस्तुओं को परस्पर बदल सकते हैं, जिनकी आवश्यकता हमें अनुभव होती है। इन राज्यों में किसी में भी प्रेस स्वतन्त्रता नहीं हैं, न भाषण की स्वतन्त्रता है और न सम्मिलित रूप से कार्य करने की स्वतन्त्रता है, न विदेशों में पुस्तकें मंगवाने की स्वतन्त्रता है, न शिक्षा सम्बन्धी स्वतन्त्रता है और न किसी अन्य प्रकार की स्वतन्त्रता है।" उसने वियना कांग्रेस द्वारा की गई अव्यवस्था की कटु आलोचना करते हुए कहा था "उसने उनका देश स्वतन्त्रता तथा उनका भातृत्व छीन लिया।" मेजिनी शीघ्र ही कार्बोनरी नामक गुप्त क्रातिकारी संस्था का सदस्य बन गया। इस संस्था का उद्देश्य विदेशी व्यक्तियों को इटली से बाहर निकालना और इटली में लोकतन्त्रीय शासन स्थापित करना था।

मेजिनी की गिरफ्तारी और 'युवक इटली' की स्थापना-

1830 में क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने के कारण मेजिनी को बन्दी बना लिया गया और उसे सेवोना दुर्ग में बन्द कर दिया गया। एक वर्ष पश्चात् उसे जेल से मुक्त कर दिया गया और उसे देश से निर्वासित कर दिया गया। निर्वासित होने के उपरान्त मेजिनी फ्रांस में मार्सेल्ज नामक नगर में पहुंचा और वहीं पर 1831 ई. में उसने 'यंग इटली' (Young Italy) नामक संस्था की स्थापना की। 40 वर्ष से नीचे के नवयुवक ही इस संस्था के सदस्य बन सकते हैं। इस संस्था के उद्देश्य निम्नलिखित थे-

(1) आस्ट्रिया को इटली से बाहर निकाल दिया जाए।

(2) इटलो को स्वतन्त्र कर उसका एकीकरण किया जाए।

(3) इटली में गणतन्त्र की स्थापना हो। देश का नया संविधान जनतों द्वारा बनाया जाए।

(4) इटली का स्वतन्त्रता संग्राम केवल इटलीवासियों द्वारा चलाया जाए।

(5) पोप का सुधार किया जाए।

'यंग इटली' की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई और 1833 तक इस संस्था के सदस्यों की संख्या 60 हजार तक पहुंच गई। इस संस्था ने इटलीवासियों में देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता का प्रसार किया।

इटली में राष्ट्रीयता का प्रसार-

मेजिनी ने अपने लेखों और भाषणों में इटली के नवयुवकों में देश प्रेम, त्याग और बलिदान की भावनाएँ कूट-कूट कर भर दी थीं। मेजिनी का कहना था कि इटली का उद्धार नवयुवकों द्वारा होगा। उसे नवयुवकों की शक्ति में पूरा विश्वास था। उसने कहा था, यदि समाज में क्रांति लानी है तो क्रांति नेतृत्त्व नवयुवकों के हाथ में सौंप दो। युवकों के हृदय में असीम शक्ति छिपी हुई है, जनसाधारण पर उनकी आवाज का जादू के समान असर होता है। उसने देशवासियों को बताया है कि इटली में सजीव एकता है, उसकी परम्पराएँ तथा ऐतिहासिक स्मृतियाँ एक हैं। उसने घोषित किया "इटली एक राष्ट्र बनकर रहेगा। उसका नारा था इटली इटैलियन्स के लिए है (Italy for Italians)"

मेजिनी ने स्वतन्त्र इटली के निर्माण के लिए नवयुवकों को अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने की प्रेरणा दी। उसने नवयुवकों को प्रेरणा देते हुए कहा था, 'स्वतन्त्रता के वृक्ष तभी फलते-फूलते हैं, जब इन्हें खून से सींचा जाता है। उसने युवक इटली के माध्यम से इटली की जनता को तीन नारे दिये-परमात्मा में विश्वास रखो, सब देशवासियों को संगठित करो और इटली को मुक्त करो।" इस प्रकार मेजिनी ने इटली के लोगों में नया जीवन और राष्ट्रीय भावना का प्रचार किया। उसने राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना, बलिदान करने का साहस, राष्ट्रीयता की चेतना और दृढ़ आत्मविश्वास उत्पन्न किया जिससे वे इटली की स्वतन्त्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने के लिए तैयार हो गये।

प्रो. हेजन का कथन है, "मेजिनी इटली की मुक्ति तथा एकीकरण के कार्य को सचमुच एक नया धर्म मानता था और कहा करता था कि यह धर्म मनुष्य की उच्चतम भावनाओं को सम्पादित करता है, इसके लिए पूर्ण आत्मोसर्ग और तल्लीनता की आवश्यकता है और युवक ही इसके सन्देशवाहक हो सकते हैं। उनका जीवन मिशनरियों का सा होना चाहिए। उनसे मेजिनी से कहा कि तुम देश-देश और गाँव-गाँव में स्वतन्त्रता की मशाल ले जाओ, जनता को स्वतन्त्रता के लाभ समझाओ और एक धर्म के रूप में प्रतिष्ठित करो, जिससे लोग उसकी पूजा करने लगे। उनके हृदय में इतना साहस और सहन शक्ति भर दो कि स्वतन्त्रता देवी की आराधना के लिए उन्हें जो यातनाएँ और कारागार के कष्ट भोगने पड़े उनसे चे न घबरायें। इससे पहले कभी कोई ऐसा आदर्श नहीं हुआ था जिसका नेता मेजिनी से अधिक निर्भीक, चरित्रवान, कल्पनाशील, कवित्व सम्पन्न, दुधश और प्रतिभावान रहे हो और जिसकी वाणी में इतना आश्चर्यजनक प्रभाव और जिसके हृदय में ऐसा ज्वलन्त उत्साह रहा हो। अगणित लोगों ने उत्साह के साथ मेजिनी का साथ दिया।"

रोम में गणतन्त्र की स्थापना-

यद्यपि कुस्तोजा के युद्ध में पीडमांट के शासक को पराजय हो चुकी थी, परन्तु इससे भी मेजिनी हतोत्साहित नहीं हुआ। इटली में राजाओं का आन्दोलन हो गया, परन्तु अब जनता का युद्ध आरम्भ हो गया। मेजिनी ने इटली पहुंचकर क्रांतिकारियों का नेतृत्त्व किया और 1848 में रोम के पोप को गद्दी छोड़कर भागने के लिए विवश कर दिया। इस प्रकार मेजिनी के नेतृत्त्व में रोम की गणतन्त्र की स्थापना हुई, परन्तु मेजिनी की यह सफलता अस्थायी है। कुछ समय पश्चात् ही फ्रांस के राष्ट्रपति लुई नेपोलियन ने पोप की सहायता के लिए फ्रांसीसी सेनाएं भेज दी। मेजिनी और गेरीबाल्डी को फ्रांसीसी सेनाओं ने पराजित कर दिया और रोम में पोप को पुनः सत्तारूढ़ कर दिया।

मेजिनी का मूल्यांकन-

यद्यपि मेजिनी अपने उद्देश्य में असफल रहा, परन्तु फिर भी इटली का राष्ट्र-निर्माता कहलाता है। वह इटली का महान् देशभक्त था। उसने अपना समस्त जीवन अपने देश की स्वतन्त्रता के लिए समर्पित कर दिया था। उसकी सबसे बड़ी देन यह थी कि जिस युग में इटली की स्वाधीनता के विषय में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था, जिस युग में इटली की स्वतन्त्रता असम्भव जान पड़ती थी, उस युग में उसने इटली निवासियों में देश-प्रेम, त्याग और बलिदान की भावनाएं उत्पन्न की।

हेजन के अनुसार, “मेजिनी की समता का अन्य कोई निर्भीक, नैतिक आचरण वाला, विचारशील, मृदुभाषी और उत्साही नेता नहीं देखा गया।' साउवगेट का कथन है, यह मेजिनी ही था जिसने अपने देशवासियों में स्वतन्त्रता के लिए उत्कृष्ट भावना उत्पन्न की। यद्यपि यह काबूर की भाँति कूटनीतिज्ञ था, गेरीबाल्डी की भाति यह सेनानायक नहीं था, परन्तु वह एक कवि, आदर्शवादी विचारक और क्रांति का अग्रदूत था।"

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