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नेपोलियन बोनापार्ट

नेपोलियन बोनापार्ट एक महान् विजेता तथा प्रशासक

डायरेक्टरी का शासन 10 नवम्बर, 1799 ई. को समाप्त हुआ और तभी से फ्रांस में कान्स्यूलेट का शासन प्रारम्भ हुआ। इस कान्स्यूलेट में तीन सदस्य थे—(1) नेपोलियन, (2) सिए तथा (3) ड्यूको । नेपोलियन को प्रथम कौंसल बनाया गया। उस समय नेपोलियन की आयु 30 वर्ष की थी। उसने 1804 ई. तक प्रथम कौंसल के पद पर कार्य किया। इस अवधि में उसने प्रशासनिक दक्षता का प्रदर्शन किया और अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किये।

नेपोलियन का प्रारम्भिक जीवन

नेपोलियन का जन्म सन् 1769 ई. में इटली के पास कोर्सिका नामक द्वीप के पास छोटे से नगर में हुआ था। उसके पिता चार्ल्स बोनापार्ट एक वकील थे। नेपोलियन ने ब्रीन और पेरिस के सैनिक स्कूलों में शिक्षा प्राप्त की। उसको सैनिक शिक्षा में बहुत रुचि थी। 16 वर्ष की आयु में उसे सैकण्ड लेप्टीनेन्ट बना दिया गया। सन् 1793 ई. में तुलों बन्दरगाहों से अंग्रेजों को खदेड़ने का कार्य उसे सौंपा गया। नेपोलियन ने इस कार्य में सफलता प्राप्त की फलस्वरूप उसे ब्रिगेडियर जनरल बनाया गया।

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नेपोलियन बोनापार्ट


सन् 1795 ई. में उसने राष्ट्रीय कन्वेन्शन को प्रतिक्रियावादियों से पेरिस में बचाया और अगले वर्ष में उसे आस्ट्रिया के विरुद्ध इटली में युद्ध करने भेजा गया। इटली में उसकी प्रबल सफलता ने उसे राष्ट्रीय नायक का स्थान दिला दिया। मिस्र के विरुद्ध आक्रमण में उसे पराजय का सामना करना पड़ा। इस घटना के लिये उसने सरकार को दोषी ठहराया और सरकार बदलने की माँग की, जनता ने नेपोलियन बोनापार्ट का सहयोग किया और उसे प्रथम कौंसल नियुक्त किया गया। सन् 1799 ई. से 1804 ई. तक वह प्रथम कौंसिल के रूप में फ्रांस का शासन करता रहा। उसकी प्रतिभा का अन्दाजा इससे लगाया जा सकता है कि सन् 1802 ई. में उसे जीवन भर के लिए कौंसल बना दिया गया।

नेपोलियन बोनापार्ट की विजय यात्रा

1. इटली पर आक्रमण-

नेपोलियन ने अप्रेल 1796 ई. में इटली पर आक्रमण किया उसने आल्पस पर्वत को पार करके उत्तरी इटली के सभी दुर्गों पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् उसने पीडमांट के राजा को पराजित कर उसके साथ 28 अप्रैल, 1796 को केरास्को नामक स्थान पर एक संधि की जिसके अनुसार नीस तथा सेवाय के प्रान्तों पर फ्रांस का आधिपत्य स्वीकार कर लिया गया।

2. आस्ट्रिया के साथ युद्ध-

साडौँनिया की सेना को पराजित करने के पश्चात् नेपोलियन ने आस्ट्रिया की सेना पर आक्रमण किया और लोदीपुल को पार कर आस्ट्रियाई तोपों पर अधिकार कर लिया। 17 फरवरी,1797 को पोप ने नेपोलियन के साथ एक संधि कर ली जिसके अनुसार पोप ने एविंग्नोन पर फ्राँस का अधिकार स्वीकार कर लिया। नेपोलियन के सैनिक दबाव के कारण अन्त में आस्ट्रिया के सम्राट को 17 अक्टूबर, 1797 को नेपोलियन के साथ संधि करनी पड़ी जिसके फलस्वरूप आस्ट्रिया ने बेल्जियम फ्रांस को दे दिया, फ्राँस और जर्मनी के मध्य राइन प्रदेश भी फ्रांस को दे दिया गया तथा इटली में लोम्बार्डी के राज्यों के ऊपर भी फ्रांस का अधिकार स्वीकार कर लिया गया। इस संधि से फ्रांस की प्राकृतिक सीमाओं में वृद्धि हुई जिससे फ्रांस की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।

3. मिस्त्र पर आक्रमण-

इंग्लैण्ड पर प्रभुत्व जमाने एवं भारत पहुँचने का उसका मार्ग रोकने के लिए नेपोलियन ने मिस्त्र पर आधिपत्य करने की योजना बनाई। 19 मई,1798 को 400 जहाजों तथा 38 हजार सैनिकों को लेकर नेपोलियन मिस्र की ओर रवाना हुआ। उसने शीघ्र ही माल्टा और सिकन्दरिया पर अधिकार कर लिया और 21 जुलाई, 1798 को उसने पिरामिडों के युद्ध में मामूलकों को पराजित करके काहिरा पर भी अधिकार कर लिया। परन्तु नील नदी के युद्ध में अंग्रेजी जल सेनापति नेल्सन ने फ्रांसीसी सेना को बुरी तरह से पराजित किया।

4. प्रथम कौंसिल के रूप में विजय-

इस समय फ्रांस की दशा बड़ी शोचनीय थी। डाइरेक्टरी अपनी अक्षमता, अकर्मण्यता और भ्रष्टाचार के कारण बड़ी बदनाम हो चुकी थी। अत: नेपोलियन ने 21 अगस्त, 1799 को अपने कुछ विश्वस्त सेनापतियों को लेकर फ्रांस की ओर प्रस्थान किया और 9 अक्टूबर को फ्रॉस पहुँच गया। 10 नवम्बर, 1799 को नेपोलियन ने तलवार की नोंक पर डायरेक्टरी का शासन समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर शासनकार्य भारतीय सदस्यों वाले कान्स्ट्रलेट को सौंप दिया गया। सन् 1804 ई. में नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बन गया। प्रथम कौंसिल के रूप में उसने फ्रांस के गौरव में वृद्धि की।

5. सम्राट के रूप में नेपोलियन की विजय-

सन् 1804 ई. में नेपोलियन बोनापार्ट को फ्रांस का सम्राट घोषित किया गया। उसकी धारणा थी यूरोप में शान्ति स्थापित करने के लिए आवश्यक है कि सम्पूर्ण महाद्वीप का एक ही सम्राट हो जिसके अधीन विभिन राजा कर्मचारी के रूप में कार्य करें। अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उसने सम्राट बनते ही सैनिकवादी एवं विस्तारवादी नीति अपनाई और निरन्तर 10 वर्षों तक युद्ध जारी रखा। इस अवधि में उसने निम्नलिखित सैनिक अभियान किये-

1. इंग्लैण्ड से युद्ध-

नेपोलियन इंग्लैण्ड की बढ़ती हुई शक्ति से भयभीत था। अत: उसने इंग्लैण्ड की शक्ति समाप्त करने के लिए सन् 1802 ई. में ब्रिटेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध में नेपोलियन को सफलता प्राप्त हुई। इंग्लैण्ड ने फ्रांस के साथ अभिया की संधि की परन्तु यह संधि स्थायी नहीं रह सकी फलस्वरूप सन् 1803 ई. में इंग्लैण्डफ्रांस के बीच पुनः युद्ध प्रारम्भ हो गया। इंग्लैण्ड ने वादे के अनुसार माल्टा द्वीप को खाली नहीं किया इसके अलावा इंग्लैण्ड अपनी पराजय से नाराज था अतः 18 मई, 1803 में इंग्लैण्ड और फ्रांस के बीच युद्ध छिड़ गया। नेपोलियन ने विशाल सेना एकत्रित करके इंग्लैण्ड पर आक्रमण किया परन्तु वह इस अभियान में सफलता प्राप्त नहीं कर सका।

2. आस्ट्रिया पर आक्रमण-

आस्ट्रिया तीसरे गुट के देशों में फ्रांस के सर्वाधिक समीप था। अतः शत्रु को बचाने के लिए अधिक समय न देने का पक्षपाती होने के कारण उसने सर्वप्रथम आस्ट्रिया पर ही धावा बोला। 20 अक्टूबर को उसने उल्म पर अधिकार कर लिया। इस विजय से नेपोलियन को बड़ा गर्व हुआ। इसके पश्चात् नेपोलियन ने आगे बढ़कर वियना पर अधिकार कर लिया और 2 दिसम्बर, 1805 ई. को आस्ट्रिया तथा रूस की सम्मिलित सेनाओं को आस्टिलिंज के युद्ध में बुरी तरह से पराजित किया । परिणामस्वरूप आस्ट्रिया को 26 दिसम्बर को नेपोलियन के साथ प्रेसवर्ग की संधि करनी पड़ी। इस संधि के कारण वेनिस तथा डालमेशिया के प्रदेशों पर फ्रांस का अधिकार हो गया तथा आस्ट्रिया के सम्राट को पवित्र रोमन साम्राज्य के सम्राट की उपाधि से वंचित कर दिया गया। इस संधि से आस्ट्रिया की प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल गई। उसे 30 लाख जनसंख्या वाले प्रान्त से वंचित होना पड़ा। अब नेपोलियन व फ्रांस की प्रतिष्ठा में अत्यधिक वृद्धि हुई।

3. प्रशा से युद्ध-

सन् 1803 ई. तक जर्मनी तटस्थता की नीति पर आचरण करता रहा। पिट ने उसे तीसरे गुट में मिलाने की हरचन्द कोशिश की परन्तु वह अपने इस कार्य में असफल रहा। नेपोलियन बोनापार्ट ने जर्मनी के शासक फ्रेडरिक विलियम को होनेवर दिलाने का आश्वासन दे दिया था, परन्तु प्रेसवर्ग की संधि के कारण जर्मनी व फ्रांस के मध्य कटु सम्बन्ध हो गये। इसके अलावा जर्मनी की साम्राज्ञी नेपोलियन की नीति को पसन्द नहीं करती थी। वह अपने देशवासियों को नेपोलियन के विरुद्ध भड़का रही थी। पाम की हत्या ने प्रशा के सम्राट को 1 अक्टूबर, 1806 को फ्रांस के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करने को बाध्य कर दिया। फ्राँसप्रशा के बीच हुए इस युद्ध में नेपोलियन को सफलता प्राप्त हुई। विजयी नेपोलियन ने बर्लिन में प्रवेश किया जहाँ जर्मन लोगों ने नेपोलियन का स्वागत किया। नेपोलियन ने युद्ध के हर्जाने के साथ-साथ प्रशा के कई महत्त्वपूर्ण दुर्गों पर भी अधिकार कर लिया।

4. रूस के साथ युद्ध-

प्रशा की शक्ति का दमन करने के पश्चात् नेपोलियन ने रूस से टक्कर लेने का निश्चय किया। रूस नेपोलियन की साम्राज्यवादी नीति से भली-भांति परिचित था। अतः जार ने नेपोलियन का मुकाबला करने के लिए एक शक्तिशाली सेना का गठन किया। नेपोलियन ने एक विशाल सेना के साथ रूस पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान किया। जार ने भी अपनी सेना नेपोलियन के विरुद्ध भेजी। फरवरी, 1807, में दोनों देशों की सेनाओं के बीच आरलों के स्थान पर भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में नेपोलियन को सैनिक दृष्टि से नुकसान उठाना पड़ा।

इतिहासकार हैजन के अनुसार "आरलों के युद्ध में जितना रक्तपात हुआ उतना नेपोलियन के सम्पूर्ण जीवन की किसी भी लड़ाई में नहीं हुआ।" इस युद्ध में एक समय नेपोलियन वीरगति प्राप्त होते-होते बच गया। इतना अधिक रक्तपात होने पर भी यह युद्ध अनिर्णायक रहा। अत: में 14 जून, 1807 को नेपोलियन ने फ्रीडलैण्ड के युद्ध में रूसी सेनाओं को बुरी तरह परास्त कर दिया और रूस के जार अलेक्जेण्डर प्रथम को संधि के लिए प्रार्थना करनी पड़ी। परिणामस्वरूप 8 जुलाई, 1807 में रूस और फ्रांस के बीच टिलसिट की संधि हो गई। इस संधि के अनुसार नेपोलियन तथा अलेक्जेण्डर प्रथम ने यूरोप को आपस में बाँट लिया। नेपोलियन को पश्चिमी यूरोप तथा एलेक्जेण्डर प्रथम को पूर्वी यूरोप में इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता मिल गई। नेपोलियन ने जिन नये राज्यों का निर्माण किया था, जार ने उनको स्वीकार कर लिया।

सन 1807 ई. में रूसप्रशा के साथ टिलसिट की संधि करके नेपोलियन ने अपनी सर्वोच्चता स्थापित की। इस समय वह अपने चरमोत्कर्ष पर था। इसलिए कुछ इतिहासकारों का कहना है कि यदि नेपोलियन इसी वर्ष इस लोक से विदा हो जाता तो उसके समान कुशल सेनानायक का उदाहरण न केवल यूरोप वरन् विश्व के समस्त इतिहास में नहीं मिलता। टिलसिट की संधि के उपरान्त वह विश्व के शासकों में सर्वशक्तिशाली बन गया था।

नेपोलियन बोनापार्ट के सुधार

कान्सलेट के रूप में बोनापार्ट ने संविधान निर्माण का कार्य, सैनिक अभियोजन तथा आन्तरिक सुधार सम्बन्धी कार्य किए जो इस प्रकार हैं-

नया संविधान-

नेपोलियन ने सत्ता पर कब्जा करके सर्वप्रथम नए संविधान का निर्माण कार्य प्रारम्भ कराया, जिसे 1800 में लागू किया। सर्वोच्च शक्ति तीन कौंसलों को दी गई थी, जिसमें प्रथम कौंसल के रूप में 10 वर्ष के लिए नेपोलियन बोनापार्ट को नियुक्त किया। उसी के पास शक्ति थी। जो विधान था उसमें तीन सदनों 1 सीनेट, 2 लेजिसलेटिव असेम्बली 3. ट्रिबूनेट की व्यवस्था की।

सीनेट- इसके सदस्य अधिकतर नेपोलियन बोनापार्ट द्वारा ही नियुक्त होते थे। इसे कानून बनाने का अधिकार प्राप्त था।

लेजिसलेटिव असेम्बली- इसके सदस्य कानूनों पर बहस करने का अधिकार नहीं रखते थे, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार था।

ट्रिबूनेट- ट्रिबूनेट में कानूनों पर बहस हो सकती थी पर मतदान नहीं। फ्रांस के 21 वर्षीय व्यक्ति अपने प्रतिनिधि चुनते थे और नेपोलियन स्वयं लेजिसलेटिव असेम्बली हेतु इसमें से सदस्य चुनता था। अत: नेपोलियन बोनापार्ट के पास व्यापक सत्ता थी।

नेपोलियन का विजय अभियान-

यूरोपीय देशों ने गुटों का संगठन करके फ्रांस के गणराज्यों को समाप्त कर दिया था। नेपोलियन के साथ की गई केम्पोफोर्मियो की संधि समाप्त हो चुकी थी। नेपोलियन बोनापार्ट सर्वप्रथम रूस के जार से सम्पर्क स्थापित करके उस पर अपना प्रभाव जमाया। उसने युद्ध से स्वयं को अलग ही नहीं किया बल्कि ब्रिटिश के विरुद्ध चार उत्तरी राज्यों का एक निष्पक्ष व तटस्थ संघ बनाकर इंग्लैण्ड के साथ व्यापारिक सम्बन्ध विच्छेद कर लिये। फ्रांस ने अपनी कूटनीति द्वारा इंग्लैण्ड को कमजोर कर दिया और आस्ट्रिया पर आक्रमण किया और आस्ट्रिया को इटली से बाहर निकाल दिया। इंग्लैण्ड ने चार उत्तरी राज्यों के विरुद्ध अभियान में कोपेनहेग में डेनमार्क का समुद्री बेड़ा पूर्णत: नष्ट कर दिया।

इस घटना से नेपोलियन ने देखा कि इंग्लैण्ड के साथ 10 वर्षों तक का संघर्ष निरर्थक ही रहा लेकिन अपनी स्थिति को देखकर उसने 1802 में बिना किसी शर्त के साथ अमीनस की सन्धि की और परस्पर विजित क्षेत्र वापस कर दिए। लेकिन एक वर्ष बाद ही 1803 में इंग्लैण्ड ने फ्रांस पर आक्रमण कर दिया और 12 वर्षों तक संघर्ष चलता रहा।

नेपोलियन बोनापार्ट की उपलब्धियाँ

नेपोलियन बोनापार्ट की प्रसिद्धि उसके युद्धों तथा फ्रांस की आर्थिक, सामाजिक व प्रशासनिक क्षेत्रों में सुधार के कारण हुई थी। नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांसीसी राजनीति और समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए। नेपोलियन बोनापार्ट ने प्रथम कौंसल के रूप में निम्न कार्य किए-

1. प्रशासनिक सुधार सम्बन्धी कार्य-

नेपोलियन बोनापार्ट ने फ्रांस की शासन व्यवस्था में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहले फ्रांस की व्यवस्था विभिन्न विभागों द्वारा उसके प्रधानों द्वारा होती थी जो जनता द्वारा निवार्चित होते थे। डायरेक्टरी पीरियड में विभाग का प्रधान सरकारी अधिकारी होने लगा। नेपोलियन ने सम्पूर्ण फ्रांस को जिलों में बाँट दिया जिसका प्रधान प्रीफेक्ट कहलाता था। जिलों को उपजिलों में बाँट दिया जिनके प्रधानों को 'उप प्रीफेक्ट' कहा जाता था। फ्रान्स जिलों, उपजिलों, नगर, कम्यून अधिकारी प्रीफेक्ट, उप-प्रोफेक्ट' मेयर नेपोलियन ने अधिकतर विभागों के प्रधान सैनिकों को बनाया और प्रान्तीय स्थानीय शासन पर अपना नियंत्रण स्थापित किया। इस प्रकार कठोर नियंत्रण स्थापित हो गया।

2. आर्थिक सुधार सम्बन्धी कार्य -

फ्रांस की आर्थिक स्थिति क्रांति के पूर्व ही शोचनीय अवस्था में थी और क्रान्ति के बाद सुधरने के बजाय और बिगड़ गई। नेपोलियन ने देश की आर्थिक दशा सुधारने के लिए निम्न कदम उठाए-

(i) यातायात के साधनों को सुधारा।

(ii) पराजित देशों से फ्रांसीसी सेनाओं का खर्च तथा युद्ध हर्जाना लिया जाने लगा।

(ii) खाद्य सामग्री के सुव्यवस्थित वितरण के लिए कई नियम बनाए गए।

(iv) राजकीय करों की वसूली के लिए सरकारी कर्मचारी नियुक्त किए गए तथा स्थानीय संस्थाओं द्वारा वसूली बन्द कर दी गई।

(v) दशमलव पद्धति लागू की गई।

(vi) पराजित देशों से फ्रांसीसी सेनाओं का खर्च तथा युद्ध हर्जाना लिया जाने लगा।

(vii) सोने तथा चाँदी के सिक्कों का स्तर निर्धारित किया गया।

(vii) प्रत्यक्ष करों को कम किया गया तथा अप्रत्यक्ष करों को बढ़ाया गया।

(ix) व्यापार व उद्योग-धन्धों की उन्नति के लिए राष्ट्रीय उद्योग समिति का गठन किया गया।

3. पोप के साथ समझौता-

नेपोलियन का व्यक्तिगत जीवन में धर्म का कोई महत्त्व नहीं था लेकिन सार्वजनिक जीवन में वह धर्म के महत्त्व को भलीभांति समझता था और इसका प्रयोग अपनी राजनीतिक सत्ता एवं व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए करना चाहता था। क्रान्ति के बाद पादरियों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिए थे जिससे उनमें असंतोष एवं विद्रोह की भावना पनप रही थी। कैथोलिकों का विश्वास प्राप्त करने के लिए कई कदम उठाए । उसका वास्तविक उद्देश्य कैथोलिकों और राजतंत्र के समर्थकों का गठबंधन समाप्त करना था, जिससे उसकी सत्ता को खतरा उत्पन्न न हो जाए। नेपोलियन ने इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पोप के साथ समझौता किया।

1. क्रान्ति के कारण जो पादरी फ्रांस छोड़कर भाग गए थे उन्हें देश में पुनः आने की अनुमति दे दी।

2. पादरियों को वेतन राज-कोष से देने की व्यवस्था जारी रखी गई।

3. नेपोलियन को क्रान्तिकाल में जब्त की गई भूमियों पर से अपना अधिकार त्यागना स्वीकार किया।

4. क्रान्ति के कलैण्डर की जगह प्राचीन अवस्था के दिन पुनः शुरू किए।

5. पादरियों के नये संविधान के प्रति विश्वास की शपथ लेना जरूरी कर दिया।

6. नेपोलियन ने कैथोलिक मत को फ्रांस का राजनीतिक धर्म घोषित कर दिया।

7. पादरियों के नाम प्रस्तुत करने का अधिकार सरकार को दिया किन्तु उनकी नियुक्ति करने का अधिकार पोप को दिया गया।

नेपोलियन ने अपनी धार्मिक नीति से लोगों को संतुष्ट कर अपना समर्थक बना लिया। पोप के साथ समझौते से राज्य का नियंत्रण चर्च पर हो गया।

4. न्यायालयों सम्बन्धी कार्य-

नेपोलियन ने न्यायिक व्यवस्था पर ध्यान देते हुए न्यायालय का पुनर्गठन किया। उसने प्रत्येक जिले में एक सिविल कोर्ट तथा दो या तीन विभागों के लिए एक पुनरावेदन न्यायालय स्थापित किया। प्रत्येक विभाग में एक फौजदारी न्यायालय स्थापित किया। स्थानीय न्यायाधीशों, स्थानीय मजिस्ट्रेटों के अलावा सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति पेरिस में की जाने लगी। प्रशासकीय न्याय प्रणाली को पुनः शुरू किया। इस प्रकार न्यायपालिका पर केन्द्रीय सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया।

5. शिक्षा के क्षेत्र में सुधार-

नेपोलियन ने फ्रांस में शिक्षा के प्रसार के लिए विशेष प्रयास किया । शिक्षा प्रणाली को पुनर्गठित किया। मुख्य-मुख्य नगरों एवं जिलों में प्राइमरी और उच्च विद्यालय स्थापित किए गए। शिक्षकों को राज्य की ओर से वेतन दिया जाता था। सैनिक शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया। पेरिस विश्वविद्यालय पुनर्गठित किया गया। योग्य व निर्धन विद्यार्थियों के लिए छात्रवृत्ति की व्यवस्था की गयी तथा शोध कार्यों के लिए एक विशेष संस्थान की स्थापना की गई। नेपोलियन ने कलाकारों, शिल्पकारों, संगीतज्ञों, कवियों को भी प्रोत्साहन दिया। उसकी बहुत बड़ी आकांक्षा थी कि फ्रांस पुन: यूरोप का सांस्कृतिक केद्र बन जाए।

6. शांति व्यवस्था सम्बन्धी कार्य-

नेपोलियन ने शांति व्यवस्था हेतु सरकारी पदों की ओर ध्यान दिया और जनता के लिए समान शर्तों के साथ खोल दिया। फ्रांस में पुन: बसाने के लिए उदार नियम बनाए। नेपोलियन का विरोध करने वालों का कठोरता से दमन किया।

7. अन्य सुधारवादी कार्य-

बढ़ती बेकारी का समाधान किया। यातायात व्यवस्था अच्छी की, चौड़ी सड़कें, उनके दोनों ओर पेड़ लगवाए। लुबेर में एक अजायबघर बनवाया। पेरिस को प्रासादों से सुसज्जित किया। लेजियन ऑफ ऑनर' की उपाधि शुरू की, जो विशेष प्रतिभा दिखाने वालों को दी जाती थी जो आज भी प्रचलित है।

8. नई विधि संहिता-

सेंट हेलेना में उसने कहा कि विधि संहिता मेरी सर्वोच्च उपलब्धि है जो चिरस्थायी होगी, यह मेरी सभी विजयों से अधिक गौरवपूर्ण है। क्रान्ति से पूर्व अनेक प्रकार, के अलग-अलग कानून अलग-अलग प्रान्तों में प्रचलित थे। इस कारण उसने कानूनों की विसंगतियाँ दूर कर उन्हें निश्चित व स्पष्ट किया। नेपोलियन ने सामाजिक समानता, धार्मिक सहिष्णुता, व्यक्तिगत सम्पत्ति और संयुक्त पारिवारिक जीवन के आधार पर कानूनों का ढाँचा तैयार कराया। इस विधि संहिता में उसने सिविल मैरिज तथा तलाक को मान्यता देकर पादरियों के बिना समाज की व्यवस्था को स्पष्ट कर दिया। नेपोलियन की विधि संहिता के निम्न भाग थे-

1. सिविल कोड, 2. सम्पत्ति सम्बन्धी नियम, 3. नागरिक नियम पद्धति, 4. फौजदारी नियम पद्धति, 5. व्यापारिक नियम संग्रह।

विधि संहिता की विशेषताएँ-

नेपोलियन की विधि संहिता उसके स्वयं के व्यक्तिगत विचारों से प्रभावित थी, वह पारिवारिक अनुशासन को महत्त्व देता था। पत्नी पति के नियन्त्रण में रहे। तलाक को कठिन बनाया। मुखिया अपनी पारिवारिक सम्पत्ति किसी को भी देने का अधिकार रखता था। इस विधि संहिता की ये विशेषताएँ हैं-

1. यह विधि संहिता रोमन कानूनी व्यवस्था जैसी थी तथा क्रान्तिकारी प्रवृत्ति के प्रतिकूल थी।

2. भूमि पर स्वामी का अधिकार कर दिया। किसानों को अधिकार मिल जाने से वे उसके कट्टर समर्थक बन गए।

3. पूँजीवादी आर्थिक व्यवस्था से प्रभावित-

ट्रेड यूनियन बनाना कानूनी अपराध बताया गया।

मालिक-मजदूरों के संघर्ष में मालिकों को महत्त्व दिया जाता था।

ठेका, ऋण, लीज, स्टॉक कम्पनियों से सम्बन्धित अनेक धाराओं का निर्माण किया गया।

इस प्रकार मिल मालिक, मजदूरों से सम्बन्धों में असमानता, पूँजीवादियों को संरक्षण, मजदूरों के हितों की उपेक्षा आदि के कारण इसकी विधि संहिता की आलोचना की जाती है। लेकिन इसके बावजूद भी अनेक विचारकों ने इसकी विधि संहिता की सराहना व प्रशंसा की है।

पामर के शब्दों में, "क्रान्ति से लाभ उठाने वाले अपने को सुरक्षित अनुभव करने लगे। फ्रांस कृषक प्रजातंत्र तथा बुर्जुआ वर्ग का स्वर्ग बन गया था।" कॉमरून के अनुसार, "नेपोलियन का सबसे बड़ा ध्येय फ्रांस का पुननिर्माण था, जिसने उसको 18वीं शताब्दी के प्रबुद्ध शासकों में सबसे महान् कहलाने का अधिकार दिया।"

अन्त में कहा जा सकता है कि नेपोलियन की शासन पद्धति में लगभग सभी गुण थे। वह शासक की निरंकुशता में विश्वास करता था। लेकिन प्रजा की भलाई के लिए हमेशा तैयार रहता था। फ्रांस की जनता का उसके साथ रहने का यही कारण था।

नेपोलियन बोनापार्ट का मूल्यांकन

नेपोलियन जन्मजात महत्त्वाकांक्षी, सैनिकवादी और साम्राज्यवादी था। नेपोलियन इतिहास का अत्यधिक रोचक और प्रकाशित पात्र है। साधारण स्थिति में सम्राट बनना सम्राट के रूप में इसके किये गये कार्य और उसका आकस्मिक पतन ये सभी आश्चर्यजनक हैं। इसकी गणना विश्व के महान् विजेताओं और शासकों में की जाती है लेकिन उसका ठीक मूल्यांकन न तो उसके राज्यकाल में हुआ और न आज।

कुछ विद्वानों का मत है कि नेपोलियन ने फ्रांस की क्रान्ति के सिद्धान्तों के प्रसार के लिए युद्ध किये थे तथा कुछ अन्य विद्वानों के मत हैं कि उसने अपने वंश की उन्नति के लिए युद्ध किये। विजेता के रूप में नेपोलियन का स्थान निर्विवाद रूप से सिकन्दर, सीजर, शार्लमैन और चंगेज खाँ की श्रेणी में है। कुछ लोग उसे सर्वश्रेष्ठ विजेता मानते हैं। उसने साठ युद्ध किये। यह कहा जाता है कि उसका साठवाँ और अन्तिम युद्ध वाटरलू का युद्ध था। अनेक इतिहासकारों ने नेपोलियन के बारे में विरोधी विचार दिये हैं। कुछ इतिहासवेत्ताओं ने उसकी अत्यधिक प्रशंसा की है तो कुछ ने उसे अत्यन्त कठोर दिल और अत्याचारी ठहराया है और ऐसा अत्याचारी जिसने जनता और राष्ट्र के अधिकारों को अपने में सीमित कर लिया।

डॉ. वी. सी. पाण्डेय ने अपने विचार प्रकट करते हुए लिखा है कि "नेपोलियन एक बहुत बड़ा महत्त्वाकांक्षी था। वह समस्त यूरोप को अपने अधीन करना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने चालीस लाख मनुष्यों की हड्डियों को यूरोप के विभिन्न भागों में बिखरा दिया तथा अपार धन पानी की तरह बहाया था। आज भी फ्राँस में नेपोलियन लोकप्रिय है।"

डॉ. शर्मा के अनुसार, "नेपोलियन का व्यक्तित्व परस्पर विरोधी प्रेरणाओं से पूरित था। वह धुन का पक्का था। वह छुपना नहीं जानता था। युद्धनीति में उसका कोई सानी नहीं था और युद्ध क्षेत्र में वह प्रेरणा का दूत था। वह महत्त्वाकांक्षी था। उसने फ्रांस का विशाल साम्राज्य अपने व्यक्तित्व के आधार पर स्थापित किया था।"

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