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तुर्की के आधुनिकीकरण में मुस्तफा कमाल पाशा का योगदान

मुस्तफा कमाल पाशा (कमाल अतातुर्क)

प्रारम्भिक जीवन-

प्रथम महायुद्ध के उपरान्त तुर्कों के राष्ट्रीय आन्दोलन को संचालित करने तथा आधुनिक तुर्की के निर्माण का श्रेय मुस्तफा कमाल को है, जिसे आधुनिक तुर्की का पिता' अथवा 'अता तुर्क' के नाम से सम्बोधित किया जाता है।

मुस्तफा कमाल का जन्म 1881 ई. में सेलोनिका के एक सामान्य परिवार में हुआ था। सात वर्ष की उम्र में ही उसके पिता अली रजा की मृत्यु हो गयी, अत: उसका लालन-पालन उसकी माता जुबेदा ने किया। मुस्तफा कमाल ने पहले सैन्य सेवा की तथा बाद में कुस्तुन्तुनिया के सैनिक महाविद्यालय से सैनिक अधिकारी की डिग्री ली। मुस्तफा कमाल सुल्तान अब्दुल हमीद के शासन को घृणा की दृष्टि से देखता था, इसलिए वह तुर्की की कई क्रांतिकारी संस्थाओं से जुड़ गया।

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तुर्की के आधुनिकीकरण में मुस्तफा कमाल पाशा


1905 ई. में सुल्तान ने कमाल पाशा को दमिश्क की घुड़सवार रेजीमेन्ट में भेज दिया। 1907 ई. में वह मेजर का पद प्राप्त कर मकदूनिया चला गया। 1908 ई. में जब युवा तर्की ने क्रांति का विगुल बजाया, तब वह सेलोनिका में कार्यशील था। मुस्तफा कमाल तथा युवा तुर्क आन्दोलन के नेताओं से उसके मतभेद थे। 1910 ई. में कमाल पाशा ने यूरोप की यात्रा की थी।

1911 ई. में ट्रिपोली के युद्ध में उसने इटली के विरुद्ध उच्च कोटि के रणकौशल का परिचय दिया था। 1912-13 के बाल्कन युद्ध में ख्याति प्राप्त की थी। प्रथम विश्व युद्ध में वह तुर्की के सम्मिलित होने का विरोधी था, परन्तु जब तुर्की युद्ध में सम्मिलित हो गया तो कमाल पाशा ने निष्ठा से भाग लिया। 1915 ई. में गैलीपोली के युद्ध में उसने मित्र राष्ट्रों की प्रगति को रोक दिया। फरवरी, 1917 में उसे जनरल के पद से सम्मानित किया गया। 1916 ई. में काकेशस क्षेत्र में रूस के विरुद्ध उसे सफलता मिली। प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की के आत्म-समर्पण पर उसे बड़ी निराशा हुई, परन्तु सेनानायक के रूप में उसकी ख्याति तुर्की में फैल गई।

कमाल पाशा के नेतृत्व में राष्ट्रवादी संघर्ष-

मित्र राष्ट्रों की सहमति से कमाल पाशा को सामसून में नवीं सेना का इन्स्पेक्टर जनरल के पद पर नियुक्त किया गया। मुस्तफा कमाल ने तुर्क सेनाओं को संगठित करके धार्मिक और नागरिक नेताओं को संगठित करना प्रारम्भ कर दिया। वह तुर्की की स्वतंत्रता एवं अखण्डता की रक्षा करने के लिए प्रयत्नशील था। मित्र राष्ट्रों ने और तुर्की की सरकार ने उसकी गतिविधियों से निराश होकर पदमुक्त कर दिया। कमाल पाशा ने तुर्की के राष्ट्रवादियों का नेतृत्व ग्रहण कर लिया। जुलाई, 1919 में वह तुकी के पूर्वी प्रदेशों के प्रतिनिधियों के सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया। इस सम्मेलन में निम्नलिखित प्रस्ताव स्वीकृत किये गये-

(1) तुर्की को अखण्डता की रक्षा तथा उसके किसी भी भू-भाग पर विदेशी अधिकार का विरोध,

(2) इस्तामबूल की सरकार यदि देश की अखण्डता और स्वतंत्रता की रक्षा करने में असमर्थ रहे तो नयी अस्थायी सरकार का गठन,

(3) राजधानी में 'राष्ट्रीय सभा' के अधिवेशन को शीघ्र आमंत्रित करने की माँग।

कमाल पाशा के सैनिक कार्य-

4 सितम्बर, 1919 के सिवास के दूसरे सम्मेलन की अध्यक्षता भी उसने की थी। 1919 में संसदीय निर्वाचनों में कमाल पाशा के राष्ट्रवादी दल को पूर्ण बहुमत मिला। 11 अप्रैल, 1920 ई. को सुल्तान ने संसद को भंग कर दिया। अप्रेल, 1920 में अंकारा में एक राष्ट्रीय सभा की मीटिंग आमंत्रित की गयी। इस सभा ने अपने आपको राष्ट्र की वास्तविक एकमात्र प्रतिनिधि संस्था घोषित कर दिया। कमाल पाशा को शासनाध्यक्ष के सर्वोच्च सेनापति के अधिकार दिये गये। कमाल पाशा को तुर्की के लिए एक नया गणराज्य बनाने के लिए समिति नियुक्त की गई। सुल्तान ने कमाल पाशा को बहिष्कृत घोषित कर दिया। सरकारी सेना ने राष्ट्रवादियों के विरुद्ध आक्रमण कर दिया। इसी समय सेबे की संधि हो गई। यूनानियों और आर्मीनिया ने टर्की के विरुद्ध महत्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त कर ली।

कमाल पाशा ने अपनी सेना का अभियान सर्वप्रथम यूनानियों के विरुद्ध किया। राष्ट्रवादी सेना ने आमीनिया को परास्त कर कार्ल अर्दहान और आर्तवीन पर अधिकार करके इनानू नामक स्थान पर यूनानियों को परास्त कर दिया। 1921 में अंकारा के राष्ट्रीय सभा के अधिवेशन में तुर्की के शासन के समस्त अधिकार राष्ट्रीय महासभा को सौंप दिये गये। सेब्रे की संधि में मित्र राष्ट्रों ने जो नाममात्र के परिवर्तन किये थे, उससे तुर्की के राष्ट्रवादी संतुष्ट नहीं हुए और संकारिया नदी के पास कमाल पाशा ने यूनानियों को समाप्त कर दिया। इस विजय के उपरान्त फ्रांस ने राष्ट्रवादी सरकार को मान्यता प्रदान कर दी।

26 अगस्त, 1922 ई. को मुस्तफा कमाल ने यूनानी सेनाओं को घेर कर अफियम कार हिसार की ओर आक्रमण किया। यूनानी सेना परास्त हो गयी और तुर्की सेना ने 9 सितम्बर को स्मार्ता में प्रवेश किया। विजयी तुर्की सेना ने जब चनक के तटस्थ क्षेत्र में प्रवेश किया तो ब्रिटेन से युद्ध की सम्भावना बढ़ गयी, परन्तु 11 अक्टूबर, 1922 को मुदानिया में युद्ध विराम पर हस्ताक्षर हो गये। थ्रोस एवं दार्देनलीज पर तुर्की का अधिकार मान लिया गया।

सुल्तान के पद की समाप्ति

2 नवम्बर, 1922 ई. को अंकारा में राष्ट्रीय सभा का अधिवेशन हुआ, जिसमें एक प्रस्ताव पास करके सुल्तान के पद को समाप्त कर दिया गया। सुल्तान अंग्रेजों के युद्धपोत में बैठकर माल्टा भाग गया। तुर्की को गणराज्य घोषित कर दिया। 20 नवम्बर को लोसान में एक सम्मेलन हुआ, जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, जापान, अमेरिका, रूमानिया, यूगोस्लाविया, रूस, तुर्की और यूनान के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। 24 जुलाई, 1923 को लोसान की संधि हो गयी। यूनान और तुर्की के मध्य एक समझौता हो गया। इस समझौते के अनुसार यूनानी और तुर्की नागरिकों की अदला-बदली की गयी। लोसान की संधि कमाल पाशा के जीवन की श्रेष्ठतम सफलता थी। इस संधि से तुर्की का क्षेत्रफल 295000 वर्गमील हो गया।

नवीन तुर्की का निर्माण

मुस्तफा कमाल पाशा ने लोसान की संधि के बाद तुर्की को गणराज्य बनाने का निर्णय लिया। 29 अक्टूबर, 1923 को तुर्की की राष्ट्रीय महासभा ने तुर्की को गणराज्य बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया और मुस्तफा कमाल पाशा को उसका राष्ट्रपति निर्वाचित किया। राष्ट्रपति के रूप में कमाल पाशा को विस्तृत अधिकार प्रदान किये गये। मुस्तफा कमाल पाशा के राजनैतिक दल 'पीपुल्स पार्टी' को राष्ट्रीय सभा में पूर्ण बहुमत प्राप्त था। इस प्रकार कमाल पाशा को तुर्की के नव-निर्माण करने का सुअवसर प्राप्त हो गया।

1. तुर्की के आधुनिकीकरण में कठिनाइयां-

तुर्की के नव-निर्माण और आधुनिकीकरण में अनेक कठिनाइयाँ थीं। प्रथम महायुद्ध के कारण तुर्की का मध्यकालीन प्रशासनिक ढाँचा नष्ट हो गया था। तुर्की के पास अब न यूरोपीय प्रदेश थे और न अरब भू-भाग। तुर्की के पास अब गैर-तुर्की आबादी की समस्या भी नहीं थी, परन्तु तुर्की की आर्थिक एवं सामाजिक व्यवस्था छिन्न भिन्न हो चुकी थी। देश पर विदेशी ऋणों का भार बहुत अधिक था। तुर्की आबादी का बहुत बड़ा भाग युद्धों में नष्ट हो गया था। अल्पसंख्यक कुर्द लोग स्वराज्य के लिए प्रयत्नशील होने के कारण उपद्रव कर रहे थे।

2. तुर्की के आधुनिकीकरण के लिए मुस्तफा कमाल पाशा की नीति-

तुर्की के नव-निर्माण के लिए मुस्तफा कमाल पाशा ने 6 सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया-

(1) गणतंत्रवाद, (2) राष्ट्रवाद, 3) लोकवाद, (4) नियंत्रित अर्थवाद, (5) धर्म-निरपेक्षवाद, (6) क्रांतिवाद।

इन सिद्धान्तों के आधार पर कमाल पाशा ने प्राचीन तुर्कों की परम्परा से अलग होकर राष्ट्रीयता के सिद्धान्तों के आधार पर धर्म-निरपेक्ष प्रगतिवादी गणतंत्र बनाने का निश्चय किया। 1931 ई. में राजनैतिक दलों ने उसके सिद्धान्तों को मान्यता प्रदान कर दी और वह तुर्की के संविधान का अंग बन गये। मुस्तफा कमाल पाशा को अपने कार्यक्रम को टर्की में सम्पादित करने के लिए दमन नीति का भी सहारा लेना पड़ा।

3. सुल्तान के पद की समाप्ति-

मित्र राष्ट्रों ने लोसान सम्मेलन में भाग लेने के लिए सुल्तान की सरकार तथा राष्ट्रवादी सरकार दोनों को आमंत्रित किया था। मुस्तफा कमाल पाशा यूरोपीय देशों की चालाकी को समझ गया था कि वह तुर्की में फूट डालने का षडयंत्र कर रहे हैं। इसलिए मुस्तफा कमाल पाशा ने सम्मेलन से पूर्व ही सुल्तान के पद को समाप्त करने का निश्चय किया।

उसका सर्वप्रथम प्रयास सुल्तान और खिलाफत को पृथक् कर दोनों को समाप्त करना था। 1 नवम्बर, 1922 को सुल्तान के पद को समाप्त करने का प्रस्ताव राष्ट्रीय सभा के सम्मुख रखा गया। मुस्तफा कमाल पाशा ने अपने ओजस्वी भाषण में कहा, "तुर्की की प्रभुसत्ता किसी व्यक्ति विशेष में न रहकर राष्ट्र सभा में निहित है। सुल्तानों ने बहुत अत्याचार किये हैं और इन अत्याचारों के विरुद्ध राष्ट्र ने विद्रोह कर दिया है।" राष्ट्रीय सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर सुल्तान के पद को समाप्त कर दिया। सुल्तान माल्टा भाग गया। 16 अप्रैल, 1923 को राष्ट्रीय सभा का कार्यकाल समाप्त हो गया। नवीन संसद के लिए 286 प्रतिनिधियों का निर्वाचन हुआ। 11 अगस्त, 1923 को संसद ने मुस्तफा कमाल पाशा को राष्ट्रपति चुन लिया। इस प्रकार शताब्दियों से चला आ रहा आटोमन साम्राज्य समाप्त हो गया।

4. खिलाफत का अन्त-

सुल्तान का पद तुर्की से समाप्त हो गया, परन्तु खिलाफत अभी तक शेष थी। खिलाफत इस्लामी जगत की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का चिह्न था। प्रगतिवादी तुर्की इसे बेकार की निरर्थक चीज मानते थे, परन्तु प्रतिक्रियावादी और कट्टर इस्लामी रूढ़िवादी इसके लिए प्राण न्यौछावर करने को भी तैयार थे। सल्तनत की समाप्ति सुल्तान खलीफा भी होते थे। 1922 ई. में राष्ट्रीय सभा ने सुल्तान के माल्टा भाग जाने पर उसके चचेरे भाई अब्दुल मजीद को खलीफा बनाया था।

कमाल पाशा ने 3 मार्च, 1924 को संसद ने अब्दुल मजीद को खलीफा पद से हटाने और खलीफा पद को समाप्त करने का निर्णय लिया। अब्दुल मजीद तथा ओटोमन साम्राज्य के उस्मानी राजवंश के सभी सदस्यों को तुर्की से निष्कासित कर दिया। यद्यपि इस्लाम राज्य का धर्म बना रहा। इस तरह खलीफ अबूबक्र से चली आयी इस्लामी परम्परा को कमाल पाशा ने समाप्त कर दिया।

5. न्याय सम्बन्धी सुधार-

गणतंत्र की स्थापना होने तक तुर्की की न्याय व्यवस्था इस्लाम के सिद्धान्तों पर आधारित थी। गैर तुर्की नागरिकों का न्याय भी इस्लामी नियमों के अनुसार होता था। मुस्तफा कमाल पाशा ने सम्पूर्ण तुर्की में समान न्याय प्रणाली स्थापित करने का निश्चय किया। 1926 ई. तक समस्त धार्मिक न्यायालय समाप्त कर दिये गये। इसके स्थान पर स्विट्जरलैण्ड की दीवानी संहिता को स्वीकार कर लिया गया। टर्की में इटली की दण्ड संहिता को आवश्यक परिवर्तन कर लागू किया गया। टर्की में नवीन व्यापार संहिता लागू की गयी। टर्की में वह समस्त संस्थाएँ, जहाँ इस्लामिक कानून का अध्ययन कराया जाता था, बन्द कर दिये गये। शेख-उल-इस्लाम का पद समाप्त कर दिया गया। धार्मिक कार्यों के सम्पादन हेतु दो परिषदें बनायी गयीं। यह परिषदें प्रधानमंत्री के अधीन रखी गयीं। मुस्तफा कमाल पाशा यह मानता था कि सार्वजनिक कार्यों में धर्म का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।

6. इस्लामिक तिथि पत्र में परिवर्तन-

26 दिसम्बर, 1925 को मुस्तफा कमाल ने परम्परागत इस्लामी तिथिक्रम को त्याग कर उसके स्थान पर ग्रिगेरियन तिथिक्रम प्रारम्भ कर दिया। मुस्लिम त्यौहारों एवं धार्मिक कार्यों में इस्लामी तिथिक्रम का प्रयोग किया जाता था परन्तु कमाल पाशा ने जनता को नवीन तिथिक्रम प्रचलन में लाने की सलाह दी। इस तिथिक्रम के परिवर्तन के साथ ही तुर्की की राजधानी इस्ताम्बूल से हटाकर अंकारा कर दी गयी।

7. अरबी वर्णमाला की समाप्ति-

कमाल पाशा ने 9 अगस्त, 1928 के अपने दल की मीटिंग में रोमन लिपि के प्रचार का प्रारम्भ किया था। उसने तुर्की के प्रत्येक स्थान पर जाकर रोमन लिपि का प्रचार किया। संसद तथा शासन अधिकारियों के मध्य भी उसने उसका प्रचार किया। कुरान का तुर्की भाषा में अनुवाद करवा कर नवीन वर्णमाला के आधार पर इसका प्रकाशन करवाया। 3 नवम्बर, 1928 को संसद ने यह कानून पास किया कि वर्ष के अन्त तक सार्वजनिक रूप से तुर्की लिपि प्रारम्भ कि जाये तथा अरबी लिपि का प्रयोग बन्द कर दिया जाये। 1929 में अरबी और फारसी को शिक्षा के पाठ्यक्रम से बाहर निकाल दिया गया।

31 जनवरी 1932 को अल्ला-हू-अकबर की ध्वनि तुर्की भाषा में सान्ता सोफिया में गूंजने लगी जोर इसके बाद तुर्की भाषा में अजान तैयार की गई। 1933 ई. में एक कानून बना र तुर्की भाषा में अजान देना हर मुअज्जिन का आवश्यक कर दिया गया। 1935 ई. में शुक्रवार की छुट्टी बन्द कर दी गई। इन परिवर्तनों का मुल्ला लोगों ने विरोध व्यक्त किया, परन्तु वह कुछ भी करने में असमर्थ थे। यह परिवर्तन व्यापारिक दृष्टि से श्रेयस्कर था, क्योंकि तुर्की का समस्त व्यापार यूरोप से होता था और यूरोप में रविवार का अवकाश होता था।

8. उपाधियों की समाप्ति-

मुस्तफा कमाल पाशा ने मध्यकालीन ओटोमन साम्राज्य के प्रतीक चिह्नों को समाप्त करने का संकल्प किया। ओटोमन साम्राज्य की उपाधियों का प्रयोग कानून बना कर प्रतिबन्धित कर दिया गया। 1934 ई. में एक कानून बना कर तुर्को को अपने नाम के आगे पदवी लगाना आवश्यक कर दिया। उदाहरणस्वरूप मुस्तफा कमाल ने 'अता तुर्क' की उपाधि ग्रहण की तो उसके साथी इस्मत ने 'इनीनू' की पदवी ली थी।

9. वेशभूषा में परिवर्तन-

मुस्तफा कमाल पाशा तुर्की का पश्चिमीकरण चाहता था। उसने तुर्की के लोगों की वेशभूषा में परिवर्तन करने का निश्चय किया। 25 नवम्बर, 1925 को एक कानून बना कर तुर्की टोपी ओढ़ने की मनाही कर दी गयी और छज्जेदार टोप ओढ़ना आवश्यक कर दिया गया। छज्जेदार टोप न पहनना कानूनी अपराध माना गया। यह नियम तुर्की में वेशभूषा के मामले में युग परिवर्तनकारी घटना थी। मुलसमानों को नमाज पढ़ने में कई बार जमीन पर माथा टेकना आवश्यक है, लेकिन सिर पर कोई वस्त्र रखकर ही नमाज पढ़ी जा सकती है, क्योंकि नंगे सिर से नमाज पढ़ना अवैध है। टोप पहनकर नमाज पढ़ना कठिन कार्य था। मुस्लिम धार्मिक नेताओं ने इसका विरोध किया, परन्तु कमाल पाशा ने इस कानून को सख्ती से लागू किया।

10. स्त्रियों की दशा में परिवर्तन-

कमाल पाशा तुर्की की नारियों की दशा में सुधार करना चाहता था। वह यह मानता था कि स्त्रियों को भी पुरुषों के समान कार्य करना चाहिए तुर्की में सामाजिक तथा धार्मिक नियमों के कारण स्त्रियाँ बहुत पिछड़ी हुई थीं। इसके लिए सर्वप्रथम पर्दा प्रथा को समाप्त करना आवश्यक था। सरकार ने पर्दाप्रथा को छोड़ने के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित किया। तुर्की में बुर्का का प्रयोग कम हो गया और मुस्लिम महिलाएं पश्चिमी ढंग से वस्त्र पहनने लगीं।

तुर्की की संसद ने बहु-पत्नी प्रथा तथा तलाक के लिए कानून बना दिये गये। सिविल विवाह की प्रथा लागू की गयी। मुस्लिम औरतो को गैर-मुस्लिमों के साथ विवाह करने की अनुमति प्रदान की गई। स्त्री शिक्षा का प्रसार करके तुर्की स्त्रियों को प्रशासनिक नौकरियाँ प्रदान की गईं। 1934 ई. में स्त्रियों को राष्ट्रीय महासभा में मतदान करने तथा सदस्य बनने का अधिकार मिल गया। कमाल पाशा वे प्रयासों से तुर्की की स्त्रियों के आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक जीवन में महत्वपूर्ण परेवर्तन आया।

11. मस्जिदों का आधुनिकीरकण-

तुर्की में शेखुल इस्लाम का पद 1924 ई. में समाप्त कर दिया गया। धार्मिक मामलों से जुड़े मामलों के लिए पृथक् से विभाग खोला गया। इस्लाम धर्म भी राज्य का एक विभाग बन गया। इमाम, मुअज्जिन, मुअल्लिम सब राजकीय सेवक हो गये। धार्मिक शिक्षा संस्थाएँ बन्द कर दी गई। 1928 ई. में प्रो. मोहम्मद फुआद की अध्यक्षता में गठित एक कमेटी की रिपोर्ट के आधा पर इस्लाम धर्म का आधुनिकीकरण किया गया। मस्जिदों में सफाई पर जोर दिया गया तथा पर्थना, प्रवचन सब तुर्की भाषा में करने का आदेश दिया गया। मस्जिदों में संगीत दलों की व्यवथा की गयी।

12. तुर्की में धर्मनिरपेक्षता की विजय-

खिलाफत को समाप्त करके तुर्की गणराज्य ने इस्लाम धर्म से अपना सम्बन्ध विच्छेद करना प्रारम्भ कर दिया। 10 अप्रैल, 1928 को संविधान से यह शब्द निकाल दिया गया, तुर्की राज्य का अर्थ इस्लाम है।' तुर्की इस प्रकार धर्म-निरपेक्ष राज्य हो गया।

13. शिक्षा में सुधार-

कमाल पाशा ने तुर्की में निरक्षरता को समाप्त करने के लिए शिक्षा प्रणाली में सुधार किया। 7 वर्ष से 16 वर्ष तक के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी। धन के अभाव में यह योजना सफल नहीं हो सकी, परन्तु 1933 तक प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों की संख्या बढ़ गई। 1928 ई. में सरकार ने तुर्की भाषा को लिखने के लिए अरबी लिपि को वर्जित कर दिया। समाचार पत्रों और पुस्तकों के प्रकाशकों को भी नई लिपि अपनामे को बाध्य कर दिया गया। अरबी अंकों के स्थान पर यूरोपीय अंकों का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया। विश्वविद्यालय में नये संकाय खोले गये।

14. भाषा और साहित्य की उन्नति-

तुर्की भाषा का विकास अरबी और फारसी भाषा के सहयोग से हुआ है। तुर्की में जनसाधारण, जो अरबी और फारसी भाषा नहीं जानता था, तुर्की भाषा को भी समझने में असमर्थ था। मुस्तफा कमाल ने तुर्की भाषा में अरबी और फारसी शब्दों को ग्रहण कर उसको जनसामान्य के समझने के अनुकूल बनाने की कोशिश की। तुर्की भाषा परिषद् का गठन किया गया। तुर्की भाषा सम्मेलन में पुराने शब्दों को खोजकर नए-नए शब्द निकालने का प्रयास किया गया। तुर्की भाषा को लोकप्रिय बनाने के लिए समाचार पत्रों में तुर्की भाषा की शब्दावली प्रकाशित होने लगी।

राष्ट्रवादियों ने पुराने शहरों का नाम भी परिवर्तित कर दिया। कुस्तुन्तुनिया का नाम इस्ताम्बूल, अंगोरा का अंकारा, और स्मर्ना का नाम इनगिर रखा गया। तुर्की भाषा के श्रेष्ठ साहित्य पाश्चात्य विधाओं की तरह लिखा गया। खलीदे अदीब के उपन्यासों और कविताओं ने तुर्की में लोकप्रियता प्राप्त की, मुहम्मद अमीन ने अपने गीतों के माध्यम से तुर्की भाषा को लोकप्रिय बनाया। तुर्की परम्परा को ऐतिहासिकता प्रदान करने लिए. 1930 में 'तुर्की इतिहास परिषद्' का गठन किया गया। यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया कि तुर्क सफेद रंग की आर्य जाति है और इसका मूल मध्य एशिया है।

15. नई आर्थिक नीति-

मुस्तफा कमाल पाशा ने तुर्की के आर्थिक क्षेत्र में मूलभूत परिवर्तन करने का निश्चय किया था। 1921 ई. में उसने अपनी नीति को स्पष्ट करते हुए कहा, -“हमें उस सिद्धान्त को मानना होगा, जिसमें हमें साम्राज्यवाद और पूँजीवाद से संघर्ष करने के लिए आवश्यक क्षमता प्राप्त हो। यदि हम समाजवाद को नहीं अपना सकते तो फिर किस वाद को अपनाएँ? हमें किसी वाद में न फंस कर असल में अपने जैसा ही बने रहना चाहिये। जो तलवार के जोर से जीतते हैं, निश्चित रूप से उनसे मात खायेंगे,जो हल के जोर से जीतते हैं।कमाल पाशा ने तुर्की की कृषि व्यवस्था में यंत्रीकरण, उद्योगों का विकास और यातायात के मार्गों को उन्नत बनाया। अप्रैल, 1921 में एक आर्थिक सम्मेलन इजगिर में किया गया, जिसमें सभी वर्गों के सहयोग पर जोर दिया गया।

16. कृषि में विस्तार-

कमाल पाशा ने कृषि की दशा सुधारने पर विशेष बल दिया। मुस्तफा कमाल पाशा का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने का था। तुर्की में कृषकों को कठिनाई से 100 डालर वार्षिक आय होती थी। कृषि का आधुनिकीकरण पश्चिमी देशों की सहायता से किया गया। अंकारा में एक आदर्श फार्म स्थापित किया गया। तम्बाकू अनुसंधान केन्द्र की भी स्थापना की गई। कृषकों को आर्थिक सहायता देने के लिए 1925 ई. में एक कृषि बैंक स्थापित किया। सहकारी समितियों का निर्माण भी किया गया। कृषि की शिक्षा के लिए एक उच्च महाविद्यालय खोला गया। तुर्की छात्रों को कृषि ज्ञान प्राप्त करने के लिए अमेरिका और यूरोप के देशों में भेजा गया। सरकार ने निर्धन कृषकों को हल तथा पशु भी सहायता के रूप में प्रदान किये। कमाल पाशा की कृषि नीति के कारण गेहूँ, तम्बाकू, शक्कर और कपास के उत्पादन में तुर्की आत्म-निर्भर हो गया।

1926 ई. में भूमि सुधार नियम लागू किये गये। सामन्तशाही व्यवस्था के समस्त चिह्नों के उखाड़ कर फेंक दिया गया। 1929 ई. में भूमि वितरण के कानून बनाये गये। 1945 ई. में तुर्की में भूमि सुधार बिल द्वारा 500 दो नूम से अधिक भूमि जब्त करके भूमिहीन किसानों में वितरित कर दी गयी।

17. औद्योगिक विकास-

कमाल पाशा ने तुर्की को समृद्ध बनाने के लिए औद्योगिक विकास की ओर विशेष बल दिया। कमाल पाशा तुर्की को एक आत्म-निर्भर राष्ट्र बनाना चाहता था, परन्तु तुर्की का आर्थिक ढाँचा बहुत दुर्बल था। तुर्की के सुल्तानों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया था। तुर्की के उद्योग-धन्धों में यूनानी तथा आर्मेनियन लोग ही सक्रिय थे। यूनानियों के चले जाने और आर्मेनियन लोगों के पराभव से स्थिति और खराब हो गयीं। सरकार के पास धन का भी अभाव था। तुर्की में यातायात के साधन बुरी अवस्था में थे।

मुस्तफा कमाल पाशा ने राज्य द्वारा नियंत्रित और संचालित उद्योग और व्यवसाय की नीति प्रारम्भ की। तुर्की की अर्थ एवं राजस्व व्यवस्था को सुधारने के लिए फ्रांसीसी विशेषज्ञों की सहायता ली गई। कमाल पाशा के आग्रह पर सभी देशों ने विदेशी ऋणों के बोझ को कम कर दिया। राज्य की आय में वृद्धि करने के लिए शराब, तम्बाकू, नमक, पेट्रोल, अल्कोहल, नौ-परिवहन, माचिस एवं हथियारों के उद्योगों पर राज्य ने एकाधिकार कर लिया। विदेशी रेलवे कम्पनियों को खरीद लिया गया तथा नई रेलवे लाइनों का निर्माण किया गया। अंकारा से कामेसेप, सिवास और समसून तक नई रेलवे लाइन बनाई गई। इसी प्रकार सड़क यातायात का विकास किया गया।

1934 ई. में कृषि की उन्नति की चारवर्षीय योजना, उद्योग के लिए एक पंचवर्षीय योजना, खनिज के लिए तीन वर्षीय योजना तथा सड़क निर्माण हेतु दस वर्षीय योजना बनाई गई। राज्य द्वारा संचालित बैंकों को पृथक्-पृथक् कार्य सौंपे गए। सेन्ट्रल बैंक का मुद्रा संचालन, सुमेर बैंक को उद्योग, इज बैंक को व्यवसाय और एटो बैंक को खनिज क्षेत्र का उत्तरदायित्व सौंपा गया। विदेशी व्यापार को प्रोत्साहित किया गया। चेम्बर ऑफ कामर्स की स्थापना की गई। 1934 ई. में तुर्की को रूस से ब्याज रहित ऋण प्राप्त हो गया, जिससे औद्योगीकरण को भारी सहायता मिली। 1935-39 तक वस्त्र उद्योग, खनिज उद्योग, शक्कर उद्योग में प्रगति हुई। विदेशी सहायता से खनिज, कोयला, तांबा, क्रोमियम आदि धातुओं का उत्पादन बढ़ गया। वस्त्र उद्योग में भी आशातीत उन्नति हुई। औद्योगीकरणे के साथ-साथ श्रमिक समस्याओं की ओर भी ध्यान दिया गया। सरकार की ओर से 'श्रमिक संहिता' तैयार की गई। श्रमिक संघ बनाना या हड़ताल करना गैर-कानूनी माना गया। श्रमिक विवादों को हल करने की व्यवस्था की गई। 1936 ई. में श्रम कल्याण हेतु श्रम कानून बनाये गये तथा अंकारा में केन्द्रीय श्रम कार्यालय की स्थापना की गई।

10 नवम्बर, 1938 को मुस्तफा कमाल का देहान्त हो गया। देश की जनता ने उसकी बहुमूल्य उपलब्धियों के कारण उसे 'अता तुर्क' अर्थात् राष्ट्रपिता की उपाधि से सम्मानित किया। 'अता तुर्क' आधुनिक तुर्की के पुनर्जागरण का प्रतीक है। यह कमाल पाशा का ही कार्य था कि प्रथम महायुद्ध से पीड़ित तुर्की को उसने 25 वर्ष में ही आधुनिक रूप प्रदान कर दिया। तुर्की वास्तविक अर्थों में सम्पन्न और समृद्ध राष्ट्र बन गया।

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