इतिहास कला नहीं है
कुछ इतिहासकारों
के अनुसार इतिहास कला नहीं है। इस सम्बन्ध में उन्होंने निम्नलिखित तर्क
प्रस्तुत किये हैं-
1. इतिहास में कला
की आवश्यकता का विशेष महत्त्व नहीं है-
क्रोचे के अनुसार इतिहास का कार्य कहानी का प्रस्तुतीकरण मात्र है। इसमें कला की आवश्यकता का विशेष महत्त्व नहीं है। अनुसन्धान इतिहास का मूल तत्त्व है। कला को प्राथमिकता देने वाले इतिहासकार मोटले को इतिहासकार की श्रेणी में नहीं रखा जाता। यद्यपि इतिहास विज्ञान नहीं है, फिर भी विषय-वस्तु के प्रति इतिहासकार का दृष्टिकोण सर्वथा वैज्ञानिक होता है।
रेनियर ने लिखा है कि
"यद्यपि इतिहास विज्ञान नहीं है, फिर भी एक अनुशासन है और विषय-वस्तु के प्रति इसकी पहुँच
विज्ञान की भाँति है।" इस कथन का तात्पर्य यह है कि इतिहास के अध्ययन की शैली
कलात्मक नहीं,
अपितु वैज्ञानिक होनी
चाहिए। विज्ञान की विधियों से परिष्कृत इतिहास को आधुनिक इतिहासकारों ने मान्यता
प्रदान की है। यही कारण है कि कारलाइल तथा मैकाले को सफल
इतिहासकारों की श्रेणी में नहीं रखा जाता, क्योंकि उनकी रचनाओं में वैज्ञानिक विधियों का सर्वत्र अभाव
दिखाई देता है। उनकी रचनाएँ साहित्यिक शैली में हैं।
इतिहास और कला में सम्बन्ध |
2. ऐतिहासिक तथ्यों
की उपेक्षा-
साहित्यिक शैली
को इतिहास-लेखन में प्रधानता देने वाले जी.एम.ट्रेवेलियन को इतिहासकारों की
श्रेणी में नहीं रखा जाता है। उनकी रोचक तथा आकर्षक साहित्यिक शैली को देखकर उनका
इतिहास-सम्बन्धी ज्ञान आज सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है। वैज्ञानिक अवधारणा से
प्रेरित अधिकांश इतिहासकार उन्हें इतिहासकार की श्रेणी में नहीं रखते। उनकी
ऐतिहासिक कृतियाँ- 'इंग्लैण्ड अण्डर
क्वीन एन'
तथा 'गैरीबाल्डी सीरीज' साहित्यिक शैली से
परिष्कृत तथा अत्यन्त रोचक हैं, परन्तु उन्हें
इतिहास की श्रेणी में नहीं रखा जाता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि उनकी रचनाओं
में ऐतिहासिक तथ्यों की सर्वत्र उपेक्षा की गई। ट्रेवेलियन की रचनाएँ भाव
प्रधान तथा व्यक्तित्व प्रधान हैं। सत्य तथा यथार्थता को प्रधानता देने वाले
इतिहासकारों ने इतिहास को कला तथा साहित्य की शाखा स्वीकार नहीं किया है।
3. इतिहास का
साहित्यिक स्वरूप उसके वैज्ञानिक स्वरूप में बाधक है-
प्रो. जे. बी.
ब्यूरी के अनुसार
इतिहास कला नहीं है। उन्होंने लिखा है कि "जब तक इतिहास को कला माना जायेगा
तब तक इसमें सत्यता तथा यथार्थता का प्रतिष्ठापन कठिन होगा और मैं स्मरण दिलाना
चाहूँगा कि इतिहास साहित्य की शाखा नहीं है।" प्रो. ब्यूरी ने इतिहास
के साहित्यिक स्वरूप का विरोध इसलिए किया है, क्योंकि वह उसके वैज्ञानिक स्वरूप में बाधक है। उन्होंने
स्पष्ट कहा है कि अब उपयुक्त समय आ गया है कि इतिहास को साहित्यिक शैली से वंचित
किया जाए तथा व्यक्तिगत भावनाओं के प्रभाव से मुक्त किया जाए।
जर्मनी के
अधिकांश विद्वानों ने इतिहास को विज्ञान माना है। आधुनिक युग के अधिकांश
इतिहासकारों की रचनाओं में रोचक तथा साहित्यिक शैली का अभाव दिखाई देता है। एच.
डब्ल्यू टेम्परले के इतिहास-लेखन व शैली में सर्वत्र रोचकता का अभाव दिखाई देता
है। जी. एन. क्लार्क ने भी अपनी रचनाओं को साहित्यिक शैली से रोचक तथा
आकर्षक बनाने का प्रयास नहीं किया।
4. इतिहास को कला
स्वीकार करने का तात्पर्य यथार्थता की उपेक्षा करना है-
इतिहास को कला
स्वीकार करने का तात्पर्य यथार्थता की उपेक्षा करके उसे व्यक्तित्व, भावनाओं तथा साहित्यिक
शैली से परिष्कृत करना है। यथार्थता के अभाव में इतिहास निश्चित रूप से
अपना अस्तित्व खोकर कल्पना तथा भाव प्रधान साहित्य बन जायेगा। वैज्ञानिक
इतिहासकारों ने इतिहास के कलात्मक स्वरूप की आलोचना करके उसे कला स्वीकार नहीं
किया है। क्रोचे ने भी इतिहास को कला स्वीकार करने में अपनी असमर्थता
व्यक्त की है।
इतिहासकार का
पुनीत कर्त्तव्य है कि उसे ऐतिहासिक गवेषणा की आधुनिक विधाओं के आधार पर ऐतिहासिक
व्यक्ति तथा घटनाओं का समसामयिक सामाजिक आवश्यकता के अनुरूप अतीत का यथार्थ चित्रण
प्रस्तुत करना चाहिए। उसका कार्य किसी अभियन्ता की भाँति कार्य योजना, मानचित्र प्रस्तुत करना, किसी प्रशासकीय सचिव के
रूप में शोध अथवा अन्वेषण सम्बन्धी परिणामों का स्पष्ट प्रस्तुतीकरण करना होना
चाहिये। उसे अनावश्यक शब्दावलियों द्वारा यथार्थता को अतिरंजित करने का प्रयास
नहीं करना चाहिए तथा स्पष्ट और यथार्थ चित्रण पर अपने ध्यान को केन्द्रित करना
चाहिए। रेनियर के अनुसार, "डच इतिहासकार जे. पी.
ब्लॉक की आलोचना का प्रमुख कारण यह है कि उसने आवश्यक शब्दावलियों द्वारा अपने
वाक्यों को दुरूह बनाने का प्रयास किया है। इतिहास का सारतत्व शोध होता है।"
इतिहास कला है
अनेक इतिहासकारों
के अनुसार इतिहास कला है। रेनियर ने लिखा है कि इतिहास कला है तथा एक
कलाकार की भाँति इतिहासकार समाज की सेवा कर सकता है।
हेनरी पिरेन के अनुसार, "इतिहास प्राचीन काव्य है
तथा काव्य के रूप में हमारे स्वभाव की आवश्यकताओं के अनुरूप है।" मानवीय
स्वभाव की आवश्यकताओं की पूर्ति काव्य तथा इतिहास द्वारा होती है।
प्रो. गालब्रेथ ने अपनी पुस्तक "हवाई
वी स्टडी हिस्ट्री" में स्पष्ट रूप से कहा है कि “इतिहास का अध्ययन
व्यक्तिगत विषय है जिसमें प्रक्रिया, परिणाम की अपेक्षा अधिक मूल्यवान है।" प्रक्रिया का
अभिप्राय कलात्मक इतिहास लेखन है।
1. इतिहास के
कलात्मक स्वरूप का समर्थन-
इतिहास की अतीत
के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति का कलात्मक प्रस्तुतीकरण बड़ा रोचक और आकर्षक होता
है। प्रो. बुशमेकर का कथन है कि इस तथ्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि
इतिहास मानव जीवन की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। अंग्रेजी साहित्य के
प्रसिद्ध विद्वान् हेजलिट ने महान् दार्शनिक रूसो के सम्बन्ध में
लिखा है कि "वह अपनी कृति 'कानफेसन' में अतीत की घटनाओं की मधु बूंदों को इस प्रकार एकत्रि करते
हैं कि उनसे बहुमूल्य आनन्दमयी मादक शराब निर्मित कर सके।" इस प्रकार अतीत
सम्बन्धी अनुभवों का साहित्यिक शैली में प्रस्तुतीकरण इतना रोचक और आनन्दमय होता
है, जैसे कोई व्यक्ति बसन्त
ऋतु के अन्त में एक ग्रामीण उद्यान में बैठकर सुन्दर पुष्पों के मादक सुगन्ध का
आनन्द प्राप्त कर रहा हो। इस प्रकार सभी विद्वानों ने इतिहास के कलात्मक स्वरूप का
समर्थन किया है।
2. कलात्मक शैली को
भी विज्ञान का अभिन्न अंग स्वीकार किया गया है-
कार्ल पियर्सन के अनुसार कलात्मक शैली
को भी विज्ञान का अभिन्न अंग स्वीकार किया गया है, क्योंकि कला से ज्ञान को दक्षता प्रदान की जाती है। कला ही
अभिव्यक्ति का प्रेरणास्रोत है। विज्ञान तथा कला का सम्बन्ध मछली एवं पानी, मनुष्य एवं वातावरण जैसा
होता है।
3. अतीतकालिक तथ्यों
का कलात्मक एवं साहित्यिक प्रस्तुतीकरण करना इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य है-
मानवीय स्वभाव
सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति काव्य तथा इतिहास द्वारा सम्भव है। दार्शनिक
इतिहासकार क्रोचे के अनुसार, "कला न तो आनन्द के आदान-प्रदान का साधन है और न प्राकृतिक
सौन्दर्य का चित्रण, बल्कि यह व्यक्तिगत
अन्तर्ज्ञानात्मक दृष्टि को अभिव्यक्ति है।" कलाकार के इस विशिष्ट
प्रस्तुतीकरण को सभी लोग उसी रूप में देखते हैं। कला इस प्रकार भावनाओं की
प्रक्रिया नहीं,
अपितु कलाकार के
ज्ञान की अभिव्यक्ति है। क्रोचे के अनुसार अतीतकालिक तथ्यों का कलात्मक एवं
साहित्यिक प्रस्तुतीकरण करना इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य है।
4. इतिहासकार एक
कलाकार के रूप में अनुभव करता है-
एक वैज्ञानिक
प्राकृतिक तथ्य का अवलोकन करता है तथा इतिहासकार एक कलाकार के रूप में अनुभव करता
है। इतिहासकार तथा कलाकार में यही सामंजस्य है। इतिहास एक अत्यन्त लोकप्रिय
कला है। कला और इतिहास में थोड़ा-सा अन्तर केवल यही है कि कला में सम्भावनाओं का
वर्णन होता है,
जबकि इतिहास में
यथार्थता का प्रस्तुतीकरण होता है।
वाल्श के अनुसार एक कलाकार
अपने उद्देश्य की प्राप्ति में साधनों पर विशेष ध्यान नहीं देता। परन्तु एक इतिहासकार
तथ्यों के वर्णन में वस्तुनिष्ठ साधनों का प्रयोग करता है। साधनों का प्रयोग दोनों
अपने-अपने ढंग से करते हैं।
5. इतिहासकार अपनी
रोचक तथा साहित्यिक शैली से कल्पनात्मक वर्णन को आकर्षक बनाता है-
ऐतिहासिक कल्पना
के विषय में कालिंगवुड ने लिखा है कि इतिहास अतीत में मानवीय कार्यों का
अध्ययन होता है। इतिहासकार ऐलिजाबेथ, मार्लबरो, पिलोयनिसियन युद्ध, फर्डिनेण्ड तथा इजाबेला की
नीति का अध्ययन करता है। इतिहास को उपर्युक्त घटनाएँ विलुप्त हैं। उन्हें न तो
इतिहासकार देख सका है और न कोई अन्य व्यक्ति । किसी युद्ध में बम विस्फोट तथा
गोलाबारी आदि की घटनाएँ प्रत्यक्ष रूप से दृश्य नहीं हैं, परन्तु इतिहासकार इन सभी
घटनाओं की अनुभूति अपने मस्तिष्क में करता है। घटनाओं तथा मानवीय कार्यों की
उपलिब्धयों का एक परिकल्पनात्मक चित्र प्रस्तुत करता है। उसके इस परिकल्पनात्मक
प्रस्तुतीकरण को ऐतिहासिक कल्पना कहते हैं। इतिहासकार अपनी रोचक तथा साहित्यिक
शैली से कल्पनात्मक वर्णन को आकर्षक बनाने का प्रयास करता है।
6. इतिहास-लेखन के
प्रस्तुतीकरण तथा व्याख्या में कलात्मक शैली की आवश्यकता होती है-
जी.आर. एल्टन के मतानुसार इतिहास कला
है। उसने लिखा है कि इतिहास-लेखन के प्रस्तुतीकरण एवं व्याख्या में कलात्मक शैली
की नितान्त आवश्यकता है। जिस प्रकार प्रत्येक युग में इतिहास-लेखन समसामयिक
दृष्टिकोण से किया जाता है, उसी प्रकार
इतिहासकार के लेखन में उनका व्यक्तिगत दृष्टिकोण निर्णायक तत्त्व होता है। इतिहास
में यथार्थता के साथ विवरण सम्बन्धी कुशलता, रोचकता, दृष्टान्तों का
चयन तथा चरित्र-चित्रण की विशेषताओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
डॉ. गोविन्द
चन्द्र पाण्डेय के अनुसार इस गम्भीर अर्थ में इतिहास निश्चित रूप से कला है। ए. एल. राउज
ने लिखा है कि यदि इतिहास को वैज्ञानिक विधियों से परिष्कृत करके अध्ययन किया जाए, तो इतिहास नीरस तथा
अत्यन्त दुरूह बन जायेगा। परिणामस्वरूप इतिहास का अध्ययन कोई भी पसन्द नहीं करेगा।
7. इतिहास में
परित्याग तथा चयन की आवधारणा-
इतिहासकार में एक
कुशल कलाकार की भाँति चयन तथा परित्याग कला का गुण आवश्यक है। चयन तथा परित्याग
प्रक्रिया में इतिहासकार की अन्तश्चेतना की निर्णायक भूमिका होती है। इतिहासकार
में ऐतिहासिक तथ्यों में से आवश्यक तथ्यों का चयन तथा अनावश्यक तथ्यों के परित्याग
का गुण होना चाहिए। इतिहास-लेखन में अधिकाधिक तथ्यों का समावेश गुण नहीं अपितु एक
दोष है। लिटन स्ट्रैची का कथन है कि "विस्मरण इतिहास-लेखन की प्रथम
आवश्यकता है। विस्मरण जो इतिहास को सरल तथा सुस्पष्ट बना सके तथा आवश्यक तथ्यों के
चयन और अनावश्यक तथ्यों के परित्याग में सहायक हो सके।"
8. इतिहास के
अन्तस्तल की अभ्यर्थना परिकल्पनात्मक होती है-
इतिहास को तथ्य
तथा कल्पना का सुन्दर सम्मिश्रण कहा जा सकता है। इतिहास के अन्तस्तल की अभ्यर्थना
परिकल्पनात्मक होती है। इतिहासकार साक्ष्यों या ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर
अतीतकालिक घटनाओं,
महापुरुषों के
कार्यों तथा उपलब्धियों का काल्पनिक चित्रण प्रस्तुत करता है। वह समसामयिक समाज का
सजीव दिग्दर्शन कराता है। ऐतिहासिक तथ्य प्रायः नीरस तथा निर्जीव होते हैं।
हड़प्पा
मोहनजोदड़ो, सारनाथ में भग्नावशेष आदि
की नीरसता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। परन्तु इतिहासकार अपनी कलात्मक
अभिव्यक्ति से निर्जीव ऐतिहासिक तथ्यों को सजीव एवं रोचक बनाकर पाठकों के हृदय में
अतीत के अध्ययन के प्रति रुचि पैदा करता है। यदि इतिहास में नीरस तथा निर्जीव
तथ्यों का समावेश किया जायेगा, तो इतिहास भी
निर्जीव तथा नीरस बन जायेगा और पाठक उसका अध्ययन करने का प्रयास नहीं करेगा।
9. ऐतिहासिक तथ्यों
की क्रमबद्धता तथा अतीत के पुनर्निर्माण के लिए कलात्मक शैली का प्रयोग करना-
इतिहासकार
कल्पनात्मक शैली का प्रयोग ऐतिहासिक तथ्यों की क्रमबद्धता तथा अतीत के
पुनर्निर्माण के लिए करता है। इतिहासकार की यही अनिवार्यता और बाध्यता है और कवि
अपनी रचना को प्रभावी बनाने के लिए इस बाध्यता से मुक्त है। रेनियर के
अनुसार,
"इतिहास प्रेम की
अभिव्यक्ति है। इसमें सौन्दर्य ही नहीं, अपितु मार्मिक तत्त्व भी है, क्योंकि प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में वह जीवन प्रेम
की अभिव्यक्ति है।"
इतिहासकार तथ्यों
के संकलन तथा विश्लेषण के बाद अतीत का चित्रण समाज के समक्ष सुव्यवस्थित भाषा में
साहित्यिक तथा कल्पनात्मक शैली के माध्यम से प्रस्तुत करता है। कथा-वस्तु के
प्रस्तुतीकरण में वह अपनी बौद्धिक कुशलता का प्रयोग करता है। भाषा की शुद्धता तथा
ऐतिहासिक तथ्यों की यथार्थता ही इतिहास की कसौटी है। अनावश्यक तथ्यों का समावेश
इतिहास को अरुचिकर बना देता है।
10. इतिहासकार
द्वारा पाठकों के मस्तिष्क पर अतीतकालीन समाज की अमिट छाप छोड़ना-
मैकाले ने लिखा है कि इतिहास का
आनन्द विदेशी परिभ्रमण के समान होता है। जिस प्रकार यात्रियों को भ्रमण कराने वाला
व्यक्ति उन्हें नगर के सुन्दर स्थानों को दिखाकर उनके मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ता
है, उसी प्रकार इतिहासकार
पाठक को अतीतकालिक समाज में भ्रमण कराता है। वह तत्कालीन समाज की वेशभूषा, अभिव्यक्ति के साधनों, रीति-रिवाजों, सामाजिक कानून, विधि, कर्म तथा नैतिकता आदि से
अवगत कराता है। वह पाठकों के मस्तिष्क पर अतीतकालीन समाज की एक अमिट छाप छोड़ता
है। यदि इतिहासकार में कलात्मक बोध का अभाव है, तो वह अपने पाठकों को सभी तथ्यों से अवगत कराने में सफल
नहीं होगा। इसका यह परिणाम हो सकता है कि वह अपने अथक प्रयास के बावजूद पाठक के
मस्तिष्क को प्रभावित नहीं कर सके। यदि इतिहासकार में कलात्मक प्रतिभा है, तो वह पाठक को राजमहलों
का अवलोकन कराने के पश्चात् सामान्य जनसमूह के बीच परिभ्रमण कराकर व्यक्तियों के
कार्यों और उनके मनोरंजन के साधनों को भी दिखाने का प्रयास करेगा। परिणामस्वरूप
पाठक राजमहलों के विलासमय तथा वैभवपूर्ण जीवन के साथ- साथ जन-सामान्य की झोपड़ियों
तथा रसोईघर की दशा का भी ज्ञान प्राप्त कर सकेगा। यही कारण है कि मैकाले
जैसे इतिहासकारों ने अपनी रचना को अत्यधिक रोचक बनाने का प्रयास किया है। जिस
इतिहासकार में इतिहास-लेखन की यह उत्कृष्ट कल्पना हो, उसका इतिहास निश्चित रूप
से सर्वाधिक लोकप्रिय होगा। मैकाले तथा कारलाइल की लोकप्रियता का
यही रहस्य है।
इस प्रकार
अतीतकालिक घटनाओं को अपनी कला के बल पर ही इतिहासकार रोचक और आकर्षक बनाता है।
परन्तु इतिहासकार की कल्पना और कवि की कल्पना में अन्तर होता है। इतिहासकार
साक्ष्यों के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों को काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत करता है
जबकि उसकी रचना यथार्थ प्रधान होती है, कल्पना प्रधान नहीं, वृन्दावन लाल वर्मा का उपन्यास 'झाँसी की रानी' तथा भगवतीचरण वर्मा
की रचना 'चित्रलेखा' का आधार ऐतिहासिक है, परन्तु उनकी रचनाएँ
कल्पना-प्रधान हैं। उनमें यथार्थता का स्पष्ट अभाव दिखाई देता है। एक इतिहासकार
काव्यात्मक शैली के माध्यम से यथार्थता का चित्रण कल्पना के परिवेश में करता है
ताकि पाठक उस काल के सजीव दृश्य को देख सके। कवि तथा इतिहासकार में यही अन्तर है।
प्रो. झारखण्डे
चौबे लिखते हैं कि
"इतिहासकार का कार्य कुशल, कलाकार, माली के कार्य से मेल
खाता है। जिस प्रकार सुन्दर उद्यान का माली उद्यान को सुन्दर, रोचक तथा आकर्षक बनाने के
लिए अनावश्यक पौधों को काटकर फेंक देता है तथा आवश्यक पौधों का निरन्तर रोपण करता
है, उसी प्रकार इतिहासकार
अपनी रचना को रोचक बनाने के लिए आवश्यक तथ्यों के आधार पर साहित्यिक तथा
काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत करता है।"
इतिहासकार कलाकार
की भाँति अतीत के तथ्यों के आधार पर साहित्यिक शैली का प्रस्तुतीकरण करता है। इस
दृष्टि से मैकाले,
कारलाइल, गिबन, मोटले आदि को उच्च कोटि
के कलाकारों की श्रेणी में रखा जाता है। मैकाले ने कहा था कि "उन्हें
अपनी रचना से तब तक सन्तोष नहीं होगा, जब तक उनकी रोचक रचना नवयुवतियों की मेज से नवीनतम उपन्यास
को हटाकर उनकी आकर्षक इतिहास-रचना को न पढ़ें।" इस प्रकार उनकी रचना साहित्य
की । सुन्दरतम कृतियाँ हैं। इन महान् इतिहासकारों ने अन्धकारमय अतीत के महापुरुषों
की जीवनी को सजीव बनाने का यथाशक्ति सराहनीय प्रयास किया है।
ई.एच कार का कथन है कि यदि
इतिहासकार में एक कलाकार की भाँति चयन करने का गुण नहीं है, तो सफल इतिहासकार नहीं हो
सकता। एक कलाकार की विशेषता यह है कि वह अनावश्यक तथ्यों का परित्याग करता है तथा
आवश्यक तथ्यों को यथोचित स्थान देता है। इतिहासकार में भी ऐसा गुण होना चाहिए।
ट्रेवेलियन ने लिखा है कि “निर्जीव अतीत को सरल, रोचक और काव्यात्मक बनाने
के लिए इतिहासकार को मैकाले की रचनाओं से प्रेरणा प्राप्त करनी चाहिए।" मैकाले
की रचनाएँ साहित्यिक विधियों से युक्त हैं। अपनी साहित्यिक तथा कलात्मक रोचक शैली
के कारण आज मैकाले को सफल इतिहासकारों की श्रेणी में उच्च स्थान प्राप्त
है। परन्तु गिबन मैकाले जैसी प्रसिद्धिन प्राप्त कर सके क्योंकि उनकी रचनाओं
में रोचक साहित्यिक-शैली का अभाव है। अभी तक कल्पना-शक्ति के अभाव में कोई भी
इतिहासकार सफलता के उच्च शिखर पर नहीं पहुँच सका है।
11. इतिहासकारद्वारा
अतीत का काल्पनिक चित्र बनाना-
ऐतिहासिक
परिकल्पना के सम्बन्ध में कालिंगवुड ने लिखा है कि इतिहास अतीतकालीन मानवीय
कार्यों तथा उनके विचारों का अध्ययन है। इतिहास के नेपोलियन बोनापार्ट, एलिजाबेथ, बिस्मार्क, हिटलर तथा मुसोलिनी की
उपलब्धियाँ तथा नीतियाँ विलुप्त हो चुकी हैं। उनसे सम्बन्धित अतीतकालिक घटनाओं को
न तो इतिहासकार स्वयं देख सकता है और न समसामयिक समाज को दिखा सकता है। परन्तु
इतिहासकार मानवीय कार्यों की उपलब्धियों का एक परिकल्पनात्मक चित्र प्रस्तुत करता
है। इतिहासकार भारतीय इतिहास में गुप्तकालीन स्वर्णयुग का सजीव चित्र अपनी लेखनी
द्वारा साहित्यिक एवं काव्यात्मक शैली में प्रस्तुत करके वर्तमानकालीन लोगों के
हृदय में गौरवपूर्ण अतीत के प्रति प्रेम और श्रद्धा की भावना जाग्रत करता है।
इतिहासकार अतीत की उपलब्धियों का प्रत्यक्षदर्शी नहीं है, परन्तु उस गौरवपूर्ण अतीत
का एक काल्पनिक चित्र बनाकर अपनी रोचक शैली में समाज के सामने प्रस्तुत करता है।
12. इतिहास अतीत से
वर्तमान तक प्रगति के माप का एकमात्र यन्त्र है-
इतिहास अतीत से
वर्तमान तक प्रगति के मापन का एकमात्र यन्त्र है। शेक अली का कथन है कि
"इतिहास के अभाव में समाज वैसा ही प्रतीत होता है जैसे स्मरण शक्ति के अभाव
में मनुष्य।" अत: यह स्पष्ट है कि मानव प्रगति का एकमात्र यन्त्र इतिहास
मानव-समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी है। अतः इतिहास की रचना इतनी रोचक, आकर्षक तथा कलात्मक हो कि
समाज का प्रत्येक व्यक्ति उससे अपने अतीत तथा पूर्वजों की उपलब्धियों का ज्ञान
प्राप्त कर सके।
बीसवीं शताब्दी
में भारतीय इतिहास की पृष्ठभूमि तैयार करने में महात्मा बुद्ध, अशोक, समुद्रगुप्त, हर्षवर्धन, अकबर, शिवाजी, महात्मा गाँधी, पं. जवाहरलाल नेहरू आदि का महत्त्वपूर्ण
योगदान सदैव प्रेरणा का स्रोत रहेगा। इतिहासकारों का यह पुनीत कर्त्तव्य है कि वे
अपनी रोचक साहित्यिक शैली में इन महान् विभूतियों की गौरवगाथा को प्रस्तुत करें।
इसमें कोई सन्देह नहीं कि ऐतिहासिक तथ्य स्वयमेव इतिहास नहीं, बल्कि निर्जीव अवशेष
अस्थि-पंजर होते हैं। सारनाथ, हड़प्पा, मोहनजोदड़ो आदि की खुदाई में प्राप्त निर्जीव अवशेष अस्थि-पंजर मात्र
होते हैं। यह इतिहासकार की विशेषता है कि अपनी परिकल्पना के माध्यम से उन निर्जीव
तथ्यों के आधार पर अतीत के एक सजीव चित्र को मांसलयुक्त बनाकर उसमें रक्त का संचार
करता है और समसामयिक समाज को मधुर रसपान कराता है। इस प्रकार काल्पनिक पुनर्रचना
सम्बन्धी विधियों का प्रयोग नाटककार, उपन्यासकार तथा इतिहासकार करता है।
13. इतिहासकार में
कलात्मक गुण की परिकल्पना होती है-
आस्कर वाइल्ड का कथन है कि
प्रतिभाशाली व्यक्ति ही इतिहास की रचना कर सकता है। दूसरे शब्दों में, इतिहासकार में कलात्मक
गुण की परिपक्वता होनी चाहिए। कलात्मक गुण के आधार पर ही इतिहासकार अनावश्यक
तथ्यों का परित्याग, आवश्यक तथ्यों का
चयन और अस्थि-पंजर मात्र तथ्यों के आधार पर परिकल्पना के माध्यम से अतीत का
सर्वोत्कृष्ट चित्र प्रस्तुत करता है।
उपर्युक्त तथ्यों
की विवेचना से यह स्पष्ट है कि परिकल्पना के अभाव में इतिहास का एक वाक्य लिखना भी
सम्भव नहीं है। टायनबी का कथन है कि एक सफल इतिहासकार में काव्यात्मक, कलात्मक तथा
परिकल्पनात्मक शैली का होना आवश्यक है।
निष्कर्ष-
इतिहासकार अपनी काव्यात्मक
तथा साहित्यिक शैली से विषय को रोचक बना देता है। यही कारण है कि मैकाले,
कारलाइल आदि की रचनाओं को अत्यधिक प्रसिद्धि मिली है अतः इतिहासकारों को मैकाले, कारलाइल, गिबन आदि की रचनाओं से प्रेरणा
लेकर उनकी साहित्यिक तथा काव्यात्मक शैली का अनुकरण करना चाहिए। इस प्रकार इतिहास
विज्ञान तथा कला का सुन्दर समन्वय बनकर समाज के लिए उपयोगी बन जायेगा। सभी लोग
इतिहास के माध्यम से अतीत के अध्ययन के लिए प्रेरित होंगे। जर्मनी के सर्वाधिक
लोकप्रिय इतिहास की सफलता का एकमात्र कारण उनकी काव्यात्मक तथा साहित्यिक शैली है।
वैज्ञानिक विधियाँ परित्याज्य नहीं हैं, परन्तु इतिहास-रचना में काव्यात्मक तथा साहित्यिक शैली
अपरिहार्य है।
नेवूर की रचनाओं में कलात्मक
शैली तथा वैज्ञानिक विश्लेषणों का अद्भुत समन्वय सर्वत्र दिखाई देता है। नेवूर
ने स्वयं कहा है कि “मैं एक इतिहासकार
हूँ, क्योंकि विभिन्न ऐतिहासिक
तथ्यों को श्रृंखलाबद्ध करके अतीत का एक सजीव चित्र बना सकता हूँ। खोई हुई कड़ियों
को जानकर उनकी पूर्ति की कला भी जनता हूँ। जिस प्रकार एक चिकित्सा वैज्ञानिक मानव
शरीर का छिन्द्रान्वेषण करता है, ठीक उसी प्रकार
शब्दों की उपयुक्तता का सूक्ष्म निरीक्षण करता हूँ।" इस प्रकार की अभिव्यक्ति
इस महान् इतिहासकार की कलात्मक तथा काव्यात्मक शैली का परिचायक ए.एल. राउज
ने लिखा है कि सभी वैज्ञानिक विधियों के सफल नियोजन के बाद भी इतिहास सदैव साहित्य
की शाखा रहेगा।
रेनियर ने भी कहा है कि गिबन, मोटले तथा मैकाले सफल
कलाकार तथा इतिहासकार थे। उनकी रचनाएँ विश्व-साहित्य में उच्च कोटि की हैं। उनका
सर्वोत्कृष्ट योगदान अतीत के प्रति जनमानस के हृदय में उत्कंठा जाग्रत करना था। रेनियर
के अनुसार,
"कला एक शाश्वत
सुन्दर पुष्प है।" इस प्रकार इतिहास कला के रूप में सुन्दर शाश्वत पुष्प बनकर
मानव समाज के आनन्द का स्रोत रहेगा। निष्कर्ष में हम कह सकते हैं कि तथ्य ऐतिहासिक
अध्ययन की कसौटी है तथा इसकी उत्प्रेरक अभ्यर्थना काव्यात्मक है। दार्शनिक कान्त
के अनुसार सत्यरहित इतिहास जीवनरहित शरीर है। इतिहासकार का कर्तव्य है कि इतिहास
को आख्यानों से निकलकर उसे यथार्थता की आधारशिला पर प्रतिष्ठित करना चाहिए। इतिहास
के सभी भाग पूर्णतः यथार्थ नहीं हो सकते। प्राचीन इतिहास में वर्णित अनेक अप्रत्यक्ष
उद्देश्यों का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। इतिहास की इन श्रृंखलाओं को इतिहासकार
अपनी काव्यात्मक कल्पनाओं से सुसज्जित करने का सराहनीय प्रयास करता है। इस प्रकार
इतिहास यथार्थता तथा काव्यात्मक शैल का एक सुन्दर सामंजस्य है।
आशा हैं कि हमारे
द्वारा दी गयी जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो
इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।
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