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इतिहास में कार्य-कारण क्रिया सिद्धान्त

इतिहास में कार्य-कारणवाद मत

कारण का अर्थ-

प्रो. ओकशाट के अनुसार, 'कारण' इतिहास के शब्दकोश का अंग नहीं है। इतिहास के सन्दर्भ में ओकशाट का यह मत तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता, क्योंकि इतिहास समाज में रहने वाले मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों की कहानी है। अतः मनुष्यों के कार्यों के कुछ कारण होते हैं।

मैंडेलबाम ने लिखा है कि "ऐतिहासिक ज्ञान मानवीय मस्तिष्क की प्रक्रिया में निहित है।" परिणामस्वरूप इतिहास मानवीय कार्य व्यापार का अध्ययन है।

कालिंगवुड का कथन है कि "कारण वह प्रमुख तत्त्व है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित तथा बाध्य करता है।"

ई. एच. कार ने लिखा है कि इतिहास का अध्ययन कारणों का अध्ययन है।"

अतीत की घटनाओं के पीछे कारणों की खोज करना- इतिहासकार द्वारा अतीत की घटनाओं के पीछे कारणों की खोज या एकमात्र उद्देश्य यह सिद्ध करना है कि वर्तमान का निर्माण अतीत की आधारशिला पर हुआ है। डेविड थामसन ने लिखा है कि "वर्तमान का पूर्णत्व अतीत का ही परिणाम है।" इस प्रकार वर्तमान का कारण अतीत है। वर्तमान की प्रत्येक उपलब्धि के पीछे अतीत के कारण समाहित हैं। कारणों के अभाव में किसी परिणाम को ढूंढने का तात्पर्य इतिहास के उद्देश्यों की उपेक्षा करना है।

itihas me karya karan kriya siddhant kya hai
इतिहास में कार्य-कारण क्रिया सिद्धान्त

मैंडेलबाम का कथन है कि "सार्वभौमिक नियम केअनुसार प्रत्येक घटना के कुछ कारण होते हैं।" हाल्फेन ने भी लिखा है कि "क्रय-विक्रय, दान, विनिमय, न्यायालय के न्याय, प्रशासनिक अध्यादेश के पीछे कुछ कारण निहित होते हैं।" इतिहासकार का कार्य व्याख्या के परिवेश में अन्तर्निहित कारणों को ढूँढना है।

इतिहासकारों में व्याख्या में मतैक्य न होना-

कारणों की व्याख्या में इतिहासकारों में मतैक्य न होने से इतिहास के वैज्ञानिक स्वरूप पर आघात हुँचा है। प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों की व्याख्या करते समय इतिहासकारों के समक्ष अनेक कारण दिखाई देते हैं-

(1) जर्मन सम्राट कैसर विलियम का व्यक्तित्व,

(2) शक्तिशाली राष्ट्र के बीच आर्थिक प्रतिस्पर्धा,

(3) उग्रराष्ट्रवाद का उदय जिसने तुर्की-साम्राज्य, आस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य तथा रूसी साम्राज्य के अस्तित्व को संकट में डाल दिया था। यही नहीं, यूरोपीय शक्ति सन्तुलन को भी छिन्न-भिन्न कर दिया था।

आधुनिक इतिहासकारों में प्रथम विश्वयुद्ध के मूल कारण के बारे में मतैक्य नहीं है। ऐसी परिस्थिति में इतिहास का विद्यार्थी कारणों की व्याख्या एक सामान्य मार्ग ढूँढकर समन्वित दृष्टि से न्यायोचित कारणों को बताता है। इतिहासकारों की कारण-व्याख्या पर उनकी जाति, राष्ट्रीयता, धर्म तथा व्यक्तिगत दृष्टिकोण आदि का प्रभाव पड़ता है।

घटना के पीछे अनेक कारण होते हैं-

इतिहास में कारण एक घटना अथवा क्रिया होती है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में यूरोपीय देशों के बिगड़ते हुए सम्बन्धों की व्याख्या करते समय इतिहासकार के समक्ष अनेक कारण आते हैं। अतः स्पष्ट है कि घटना के पीछे एक नहीं, अनेक कारण क्रियाशील रहते हैं। प्रत्येक कारण परिस्थिति विशेष की उपज होता है।

कालिंगवुड ने लिखा है कि इतिहासकार परिस्थितिजन्य कारणों की व्याख्या में अपने सिद्धान्त तथा व्यक्तिगत दृष्टिकोण से विशेष प्रभावित होता है। प्रो. वाल्श के अनुसार इतिहासकार का पूर्वग्राही विचार ही प्रायः व्याख्या प्रधान होता है।

कारण-कार्य सिद्धान्त की उत्पत्ति-

कारण-कार्य सिद्धान्त की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अनेक तर्क प्रस्तुत किये गये हैं-

विलियम जेम्स के अनुसार, "इतिहासकार निष्कर्ष-प्राप्ति के उद्देश्य के कारण तथा परिणाम की गवेषणा करता है।"

रेनियर के अनुसार "उद्देश्य तथा निष्कर्ष प्राप्ति की उत्कृष्ट अभिलाषा इतिहासकार को उन कारणों की गवेषणा के लिए बाध्य करती है जो किसी घटना अथवा कार्य के मूल में होते हैं।"

डेवी ने लिखा है कि "यंत्र तथा उसकी सहायता से उत्पादित वस्तु से यह स्पष्ट हो जाता है कि यंत्र किसी वस्तु के उत्पादन में सहायक सिद्ध हुआ। इस प्रकार वस्तु के उत्पादन का कारण यंत्र अथवा मशीन है। कारण-कार्य का समीकरण रेल-पटरी की भाँति समानान्तर है।"

Cause - कारण

Effect - परिणाम

कारण की पंक्ति में अन्तर के परिणामस्वरूप परिणाम में अन्तर अवश्यम्भावी है।

Cause - कारण

Effect - परिणाम

इससे स्पष्ट हो जाता है कि कारण के अनुसार ही परिणाम होता है। अत्यधिक शीत का कारण हिमपात तथा वर्षा का कारण मानसून होता है। प्राकृतिक कारणों का सम्बन्ध निश्चित तथा पारस्परिक होता है।

मैंडेलबाम ने लिखा है कि "जो किसी वस्तु को उत्पन्न करता है अथवा वस्तु में परिवर्तन करता है, उसे कारण कहते हैं; उसके प्रभाव से परिवर्तित स्वरूप को प्रभाव कहते हैं।" सम्पूर्ण ऐतिहासिक अतीत के अध्ययन का एकमात्र उद्देश्य घटनाओं की क्रमबद्धता का विश्लेषण करना है। यदि इतिहास अतीत में मानवीय कार्यों का अध्ययन है तो निश्चित रूप से इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य है कि वह कारणों की व्याख्या में बाह्य तथा आभ्यंतर पक्षों पर ध्यान दें, क्योंकि मनुष्य का कार्य तथा बाह्य आभ्यंतर प्रभावों का ही परिणाम होता है। सम्राट अकबर की राजपूत नीति तथा धार्मिक नीति के कारणों की व्याख्या करते समय इतिहासकार अपने को अकबर की परिस्थिति में रखकर उसी के रूप में समस्याओं पर विचार करता है। मैंडेलबाम के अनुसार, "किसी घटना के प्रमुख कारण को कारण कहते हैं तथा घटना से सम्बन्धित छोटे-छोटे कारणों को परिस्थिति कहते हैं।"

इतिहास में कारण की अवधारणा-

अरस्तू ने सबसे पहले कार्य-कारण सम्बन्ध में अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है। अरस्तू ने कहा है कि "कारणों के अभाव में किसी घटना अथवा कार्य का होना सम्भव नहीं है।" इतिहास के जनक हेरोडोट्स को भी कारण-कार्य सम्बन्ध का अच्छा ज्ञान था। उसने लिखा है कि "उसके इतिहास-लेखन का एकमात्र उद्देश्य ग्रीक तथा बर्बर जाति के कार्यों को सुरक्षित रखना तथा पारस्परिक युद्धों के कारणों को बताना है।"

कालिंगवुड के अनुसार पन्द्रहवीं शताब्दी में कारण का तात्पर्य अपराध, दोषारोपण, युद्ध, पाप एवं गलत कार्य रहा है।" वास्तविक अर्थ में कारण की स्पष्ट अवधारणा अठारहवीं शताब्दी की देन है। मान्तेस्क्यू के अनुसार, "प्रत्येक राजवंश के उत्थान-पतन के पीछे कुछ नैतिक, भौतिक तथा सामान्य कारण होते हैं। सब कुछ उसी के परिवेश के कारण घटता है।"

रेनियर के अनुसार इतिहास में.कोई घटना एक नहीं, अपितु अनेक कारणों का प्रतिफल होती है। इतिहासकार का कार्य इन्हीं कारणों का क्रमबद्ध विवरण प्रस्तुत करना होता है। ई.एच. कार ने लिखा है कि "अतीत की घटनाओं को क्रमबद्धता देना तथा कारण और परिणाम के पारस्परिक सम्बन्धों को क्रम में प्रस्तुत करना ही इतिहास है।" प्रो. रोशेनफील्ड के अनुसार कारण-सिद्धान्त का एकमात्र उद्देश्य किसी तर्कयुक्त योजना के कारण तथा परिणाम सम्बन्धों को क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत करना है।

डेविड थामसन के अनुसार इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य कारण तथा उसके प्रभाव की समुचित व्याख्या करना है। प्रो. बैरकलाफ ने लिखा है कि इतिहासकार को कारणों की व्याख्या को चिन्ता नहीं करनी चाहिए। उसे केवल परिणामों पर ही केन्द्रित होना चाहिए।" परन्तु बैरकलाफ का यह तर्क अनुचित लगता है। कारणों के अभाव में परिणामों को ढूँढना सम्भव नहीं है क्योंकि कार्य-कारण का समीकरण समानान्तर रेखाओं की तरह होता है।

एडवर्ड मेयर ने उचित ही कहा है कि कारणों का अनुसन्धान ही ऐतिहासिक शोध तथा ऐतिहासिक आवश्यकता प्रमुख कारण एवं सहायक कारण की व्याख्या-वाल्श के अनुसार किसी घटना के अनेक कारणों को प्रस्तुत करना ही ऐतिहासिक शोध का उद्देश्य नहीं है। कारणों के प्रस्तुतीकरण के पश्चात् इतिहासकार यह जानने का प्रयास करता है कि कारणों में प्रमुख कारणं कौनसा था, जिसके परिणामस्वरूप घटना हुई। कारणों की क्रमबद्धता में इतिहासकार सहायक तथा प्रमुख कारण की व्याख्या करता है।

जब 1871 में प्रथम विश्वयुद्ध के अनेक सहायक कारण थे, जैसे- 1871 में जर्मनी द्वारा लोरेन तथा अल्सास पर अधिकार करना, कैसर विलियम की नीति, आर्थिक, सैनिक तथा औपनिवेशिक प्रतिद्वन्द्विता, मोरक्को संकट, फशोडा संकट, अग्राडोर संकट आदि। तब इन सहायक कारणों के होते हुए भी प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ न हो सका, परन्तु आस्ट्रिया के राजकुमार फर्डिनेण्ड की सेराजिवो में हत्या ने प्रथम विश्वयुद्ध की अग्नि को प्रज्वलित कर दिया।

इस प्रकार कारणों में एक प्रधान कारण होता है, जिसे घटना का मूल कारण कहते हैं, अन्य कारण सहायक होते हैं । इतिहासकार कारणों की क्रमबद्धता को निश्चित करता है। फ्रेंच इतिहासकार टेने ने लिखा है कि "इतिहासकार कारणों के बिखरे सूत्रों को सूक्ष्म दृष्टि से देखकर उसे बुनकर कपड़े के रूप में प्रस्तुत करता है, जैसे मकड़ी अपने जाले को बुनती है।" इस कार्य में वह क्रमबद्धता को प्रधानता देता है।

इतिहास में आर्थिक कारण

बट्टैण्ड रसेल के अनुसार इतिहास की प्रत्येक घटना में आर्थिक कारण को ढूँढ़ने का तात्पर्य इतिहास को अनैतिहासिक स्वरूप प्रदान करना होगा। यूरोप में औद्योगीकरण का मूल कारण आर्थिक नहीं, अपितु वैज्ञानिक अनुसन्धान रहा है। क्या गैलिलियो का वैज्ञानिक अनुसन्धान आर्थिक कारणों का परिणाम था अथवा कोपरनिकस की देन रहा है।

अत: इतिहास की घटनाओं का मूल कारण आर्थिक नहीं हो सकता। परन्तु रसेल का यह विचार तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता है। कार्ल मार्क्स ने लिखा है कि आर्थिक कारण इतिहास की आधारशिला है। यदि इतिहास मनुष्य के कार्यों तथा उपलब्धियों की कहानी है तो यह नितान्त सत्य है कि मनुष्य भौगोलिक परिस्थितियों एवं वातावरण के अनुसार कार्य करता है। परिणामस्वरूप मनुष्य के कार्यों का कारण भौगोलिक परिस्थिति तथा वातावरण होता है। मानवीय इतिहास इन्हीं कारणों का परिणाम होता है।

1. आन्दोलनों के पीछे आर्थिक कारण-

कार्ल मार्क्स के अनुसार इतिहास में आन्दोलनों के पीछे आर्थिक कारणों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। कार्ल मार्क्स ने कहा है कि 18वीं सदी में बौद्धिक विचारों के विकास के समक्ष ईसाई धर्म अपनी रक्षा करने में असफल रहा। इस आन्दोलन की पृष्ठभूमि में आर्थिक कारणों का विशेष योगदान रहा है। दो राष्ट्रों के बीच संघर्ष तथा राष्ट्रों के संगठन का आधार आर्थिक होता है। इसी से सम्पूर्ण विश्व आज भी पूँजीवाद तथा साम्यवाद गुटों में विभक्त है। इस विभाजन का कारण भी आर्थिक है।

2. क्रान्तियों के लिए आर्थिक कारणों का उत्तरदायी होना-

इतिहास में बौद्धिक, वैज्ञानिक, राजनीतिक तथा सामाजिक क्रान्तियों का नेतृत्व आर्थिक कारणों ने किया है। यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति, फ्रांस की राज्य क्रान्ति (1789) तथा रूस की 1905 एवं 1917 की क्रान्तियों के लिए आर्थिक कारण उत्तरदायी थे। कुस्तुन्तुनिया के पतन ने पुनर्जागरण की भूमिका तैयार की, कुस्तुन्तुनिया के पतन के पीछे तुर्कों का प्रवासन है। तुर्कों के प्रवासन का एकमात्र कारण आर्थिक रहा है। अतः इन सभी ऐतिहासिक घटनाओं का मूल कारण आर्थिक था। इस प्रकार इतिहास की गति में आर्थिक कारण निर्णायक होते हैं। इतिहास-अध्ययन का उद्देश्य घटना विश्लेषण में आर्थिक कारणों की गवेषणा करना है।

3. मंगोलों के पश्चिमी एशिया तथा भारत पर आक्रमण-

मंगोलों की बर्बरता तथा पश्चिमी एशिया और भारत पर उनके विनाशकारी आक्रमण का कारण आर्थिक था। मध्य एशिया की बंजर तथा पठारी भूमि ने आजीविका के साधनों को एकत्रित करने के लिए उन मंगोलों को लुटेरा बना दिया। यदि वहाँ की भूमि कृषि योग्य उपजाऊ होती तो वे स्थायी रूप से मध्य एशिया में ही रहते, परन्तु बंजर, पठारी भूमि, भौगोलिक परिस्थितियाँ तथा वातावरण ने इस जाति को लुटेरा और आक्रामक बना दिया।

4. राजनीतिक घटनाओं के लिए उत्तरदायी आर्थिक कारण-

शासकों की आर्थिक सम्पन्नता उन्हें साम्राज्यवादी बना देती है। उन्नीसवीं तथा बीसवीं सदी में फ्रांस तथा इंग्लैण्ड के बिगड़ते हुए सम्बन्ध का मूल कारण आर्थिक प्रतिस्पर्धा तथा प्रतिद्वन्द्विता थी। जर्मनी में हिटलर के उत्थान का मूल कारण आर्थिक था। इसी प्रकार प्रथम विश्वयुद्ध तथा द्वितीय विश्वयुद्ध का प्रमुख कारण आर्थिक था, परन्तु अन्य सहायक कारण भी थे।

5. अपराधों के लिए उत्तरदायी आर्थिक कारण-

वर्तमान समाज में अपराध, चोरी, डकैती, हत्या आदि आर्थिक परिस्थितियों का परिणाम होते हैं। आर्थिक परिस्थितियाँ मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरित तथा प्रोत्साहित करती हैं। विश्व की अनेक ऐतिहासिक घटनाओं में आर्थिक कारण निर्णायक रहे हैं। मार्क्स का यह कथन सही प्रतीत होता है कि ऐतिहासिक घटनाओं का नेतृत्व आर्थिक कारण करते हैं।

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