यह सत्य है कि किसी घटना के एक नहीं, अपितु अनेक कारण होते हैं। यह इतिहासकार पर निर्भर करता है कि कारणों की क्रमबद्धता में किस कारण को प्रधान तथा अन्य को सहायक स्वीकार करे। प्रत्येक इतिहासकार अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से कारणों के औचित्य को सिद्ध करता है।
प्रो. वाल्श के अनुसार कार्य के अनेक
कारण होते हैं,
कोई एक कारण
निर्णायक कारण के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। जो भी हो इतना तो स्पष्ट है कि
घटित घटना के सम्बन्ध को स्पष्ट करने के लिए कार्य-कारण सम्बन्धों की
विवेचना की जानी चाहिए।
इतिहास में कार्य-कारण सम्बन्ध |
1. कारण-इतिहासकार
सम्बन्ध-
कारण एक प्रकार का ऐतिहासिक
तथ्य है। इतिहासकार तथा कारण का उतना ही घनिष्ठ सम्बन्ध है, जितना इतिहासकार
तथा तथ्य का। जिस प्रकार तथ्य के अभाव में इतिहासकार व्यर्थ
है और इतिहासकार बिना तथ्य मृत एवं निर्जीव होता है, उसी प्रकार कारण तथा इतिहासकार का सम्बन्ध
होता है। इतिहास के निर्माण का आधार इतिहासकार द्वारा तथ्यों की क्रमबद्धता
है। इतिहासकार द्वारा मान्यता प्रदत्त सामान्य तथ्य भी ऐतिहासिक हो जाता है।
कारणों के प्रति इतिहासकार का यही दृष्टिकोण इतिहास की प्रक्रिया में कार्यशील
रहता है।
इतिहासकार तथा कारणों का
सम्बन्ध अन्योन्याश्रित तथा दोहरा है। इतिहासकार की व्याख्या ही कारणों के चयन
तथा क्रमबद्धता का निर्धारण करती है। कारणों की व्याख्या में वैज्ञानिक
इतिहासकारों की अवधारणा है कि कल्पना को महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करनी
चाहिए। कल्पना के अभाव में कारणों की क्रमबद्धता कठिन है।
क्रोचे तथा कालिंगवुड
अनुसार कल्पना ऐतिहासिक ज्ञान का मूल स्रोत है। कारणों की क्रमबद्धता
हमें घटनाक्रम तथा काल का ज्ञान प्रदान करेगी और अनावश्यक कारणों के परित्याग में सहायक
होगी।
2. कारण-परिस्थिति
सम्बन्ध-
कार्य-कारण के सम्बन्ध का तात्पर्य
घटनाओं के सम्बन्ध को निश्चित करना है। घटना उसे कहते हैं जिसके
परिणामस्वरूप सामाजिक, राजनीतिक तथा
आर्थिक परिवर्तन होते हैं। मुख्य घटना को कारण तथा अन्य को परिस्थिति की संज्ञा
दी जाती है। कोई भी घटना अनेक कारणों का सामूहिक परिणाम होती है।
प्रो. वाल्श के अनुसार 19वीं सदी के
उत्तरार्द्ध में यूरोपीय शक्तियों के बिगड़ते हुए सम्बन्ध का कोई एक कारण नहीं, अपितु अनेक कारण
थे। किसी निर्णायक कारण का ज्ञान तभी सम्भव है जब तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ
में उसके प्रभाव को ढूँढ़ा जाए। प्रथम विश्वयुद्ध का कारण मात्र राजकुमार फर्डिनेण्ड
की सेराजीवो में हत्या नहीं थी, बल्कि तत्कालीन
परिस्थितियाँ उत्तरदायी थीं।
कालिंगवुड के अनुसार कारणों की
क्रमबद्धता में इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य है कि वह कारण तथा परिस्थिति में अन्तर
को स्पष्ट करे। परिसिथतियों के सन्दर्भ में ही कारण के निर्णायक प्रभाव का अध्ययन सम्भव
है।
ओकशाट के अनुसार परिस्थितियों
की व्याख्या में ही कारण के स्पष्ट प्रभाव को ढूँढ़ा जा सकता है।
3. वास्तविक तथा मूल
कारण-
घटना सम्बन्धी अनेक कारणों की
व्यख्या में गार्डिनर ने वास्तविक तथा मूल कारण के अन्तर को
स्पष्ट किया है। निम्नलिखित उदाहरणों में स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) राम
ने कहा था कि प्रीतिभोज में मटर-पुलाव खाने से उसकी पाचन-शक्ति खराब हो गई। इसकी
व्याख्या में पाचन शक्ति खराब होने का गौण कारण प्रीतिभोज तथा मूल कारण मटर-पुलाव
खाना था।
(2) पुलिस
ने अशान्ति की योजना बनाते समय कुछ उपद्रवी तथा असामाजिक तत्त्वों को गिरफ्तार
किया, परन्तु ये लोग सुनियोजित
षड्यन्त्रकारियों के हाथों की कठपुतली मात्र थे। इस प्रकार उपद्रवी तत्त्व गौण
तथा षड्यन्त्रकारी मूल कारण थे।
4. मूल्यसंपृक्त
व्याख्या और कारण-
कारण-कार्य के सम्बन्ध में
इतिहासकार की व्याख्या उद्देश्यपरक तथा मूल्यसंपृक्त होती है। ई.एच.कार
अनुसार इतिहास में व्याख्या के साथ मूल्यों के आधार पर गुण-दोष विवेचन प्रयुक्त
रहता है।
मानेके का कथन है कि
"इतिहास में कारण-कार्य सम्बन्धों की गवेषणा मूल्यों के सन्दर्भ के बिना
असम्भव है। कारणों की गवेषणा के पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मूल्यों की
गवेषणा आवश्यक होती है।" गिबन के रोमन साम्राज्य के पतन के कारणों की
व्याख्या में धार्मिक तथा नैतिक कारणों को विशेष बल दिया है। परन्तु कार्ल
मार्क्स ने पतन के कारणों की व्याख्या करते हुए आर्थिक कारणों की महत्त्वपूर्ण
भूमिका को स्वीकार किया। इस प्रकार हर तरह की व्याख्या का आधार मूल्यसंपृक्त
होता है।
कारणों की क्रमबद्धता
में इतिहासकार सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, नैतिक, आर्थिक मूल्यों को अपनी
व्यक्तिगत रुचि के अनुसार प्रधानता देता है। उसका दृष्टिकोण मूल्यसंपृक्त
होता है।
5. व्यक्तिगत
दृष्टिकोण और कारण-
किसी घटना के एक
से अधिक कारण हो सकते हैं। इतिहासकार अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से कारणों
की व्याख्या करता है। यूगोस्लाविया के शासक एलेक्जेण्डर की मेरीलीज
की भीड़ में गोली मारकर कुछ लोगों ने हत्या कर दी। एक साधारण व्यक्ति की दृष्टि
में हत्यारों द्वारा गोली से एलेक्जेण्डर की हत्या कर दी गई। यदि किसी डॉक्टर
से मृत्यु का कारण पूछा जाए तो वह कहेगा कि गोली लगने से एलेक्जेण्डर के
शरीर में गम्भीर घाव लग गया, परिणामस्वरूप
अधिक रक्तस्राव से उसकी मृत्यु हो गई।
एक इतिहासकार एलेक्जेण्डर
की मृत्यु के कारणों की व्याख्या में कहता है कि उसकी हत्या का प्रमुख कारण निरंकुशता
थी। इस प्रकार एक ही घटना को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से देखा जाता है। सभी की व्याख्या
में यथार्थता है। सभी के व्यक्तिगत दृष्टिकोणों का पारस्परिक सम्बन्ध है।
फ्रेंच इतिहासकार टेने
के अनुसार इतिहासकार कारक तथ्यों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार कर अनुभव के आधार
पर घटना का परिकल्पनात्मक चित्र प्रस्तुत करता है। कारणों को सूत्रबद्ध
अथवा शृंखलाबद्ध करना उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। इतिहासकार वैज्ञानिक
नहीं है और न वह घटना की पुनरावृत्ति कर सकता है। इतिहास में प्रयोग के लिए स्थान
नहीं है। इतिहासकार का अनुभव अनुमानित तथा परिकल्पनात्मक होता है। एक इतिहासकार
सेनाध्यक्ष तथा राजनीतिज्ञ की भाँति घटना के सभी पक्षों का आकलन करता है किन्तु
अन्तिम निष्कर्ष नहीं देता। उसका निष्कर्ष किसी घटना अथवा व्यक्ति के
सम्बन्ध में साक्ष्यों पर आधारित व्यक्तिगत न्याय होता है। व्यक्तिगत दृष्टिकोण
द्वारा उसके निष्कर्ष का प्रभावित होना स्वाभाविक तथा न्यायोचित है।
6. निहित भविष्य-
अतीत तथा वर्तमान
के बीच वर्तमान एक काल्पनिक विभाजन रेखा है। इतिहास का उद्देश्य
अतीत को भविष्य के लिए सुरक्षित रखना है। डेवी ने लिखा है कि अतीत का
अध्ययन हम सुरक्षित तथा वैभवपूर्ण वर्तमान के लिए करते हैं। सुखद भविष्य की कल्पना
इसका एकमात्र उद्देश्य है।
डच इतिहासकार हुईजिंगा
ने लिखा है कि इतिहासकार सदैव उद्देश्यवादी होता है। इसी प्रकार ई.एच. कार
का भी विश्वास है कि इतिहासकार की आस्थाओं में भी भविष्य समाहित रहता है। क्यों
पूछने के अतिरिक्त इतिहासकार प्रायः पूछता है कि किधर? उसका संकेत निहित भविष्य
की ओर होता है। कारणों की व्याख्या करते समय इतिहासकार अतीत, वर्तमान तथा भविष्य पर
समदृष्टि रखता है। यही उद्देश्य उसकी व्याख्या में रहता है। इतिहासकार की व्याख्या
में निहित भविष्य रहता है। कार्य-कारण व्याख्या की यही सर्वोत्कृष्ट
परिकल्पना है।
7. कारण-परिणाम
सम्बन्ध-
कारण के अनुसार ही परिणाम
भी होता है। प्रो. ई. एच.कार ने अतीतकालिक घटनाओं को कुछ कारणों का प्रतिफल
बताया है। उनके अनुसार यदि इतिहास अतीत और वर्तमान के मध्य अनवरत परिसंवाद है तो
इसे अतीत की घटनाओं और उभरते भावी परिणामों के बीच अनवरत परिसंवाद की
संज्ञा दी जा सकती है। अतीत की घटनाओं को क्रमबद्धता देना तथा कारण और परिणाम के
पारस्परिक सम्बन्धों को क्रम से प्रस्तुत करना ही इतिहास है।
विलियम जेम्स के अनुसार इतिहासकार
निष्कर्ष-प्राप्ति के उद्देश्य से कारण तथा परिणाम की खोज करता है। इस कारण
के अनुसार ही परिणाम होता है, जैसे वर्षा का कारण मानसून तथा शीत का कारण हिमपात है।
अधिकांश लोग यही मानते हैं कि कारण एवं परिणाम का अन्वेषण निष्कर्ष की प्राप्ति के
उद्देश्य से किया जाता है। डेवी ने लिखा है कि यन्त्र तथा उसकी सहायता से
उत्पादित वस्तु से यह स्पष्ट हो जाता है कि यंत्र किसी वस्तु के उत्पाद में सहायक
सिद्ध हुआ। इस प्रकार वस्तु के उत्पादन का कारण यंत्र अथवा मशीन है। कारण-कार्य
का समीकरण रेल-पटरी की भाँति समानान्तर है।
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