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नीम : फायदे, औषधीय लाभ, नुकसान तथा सावधानियाँ

नीम क्या है? (What is Neem?)

नीम वनस्पति जगत के पुष्प बीजी (एन्जियोस्पर्मी) संघ का द्विबीज पत्री वर्ग का पौधा है जो कि बहूदल पूंजिय उपवर्ग की डिस्कप्लोरी श्रेणी में आता है। यह मेलियेसी कुल में पाया जाता है तथा इसका अलावा अन्य सामान्य प्रजातियाँ जैसे मेलिया अजाडिरेक्ट, मेलिया इंडिका आदि भी हमारे देश में पायी जाती है।

नीम एक तेजी से बढ़ने वाला पर्णपाती पेड़ है, तथा भारतीय मूल का एक पूर्ण पतझड़ वृक्ष है जो 15-20 मी (लगभग 50-65 फुट) की ऊंचाई तक पहुंच सकता है और कभी-कभी 35-40 मी (115-131 फुट) तक भी ऊंचा हो सकता है। नीम गंभीर सूखे में इसकी अधिकतर या लगभग सभी पत्तियां झड़ जाती हैं। इसकी शाखाओं का प्रसार व्यापक होता है। इसकी शाखाएं यानी डालियाँ काफी फैली हुई होती हैं।

नीम : फायदे, औषधीय लाभ, नुकसान तथा सावधानियाँ
नीम : फायदे, औषधीय लाभ, नुकसान तथा सावधानियाँ

तना अपेक्षाकृत सीधा और छोटा होता है और व्यास में 1.2 मीटर तक पहुँच सकता है। इसकी छाल कठोर, दरारयुक्त (विदरित) या शल्कीय होती है और इसका रंग सफेद-धूसर या लाल, भूरा भी हो सकता है। रसदारु भूरा-सफेद और अंत:काष्ठ लाल रंग का होता है जो वायु के संपर्क में आने से लाल-भूरे रंग में परिवर्तित हो जाता है। जड़ प्रणाली में एक मजबूत मुख्य मूसला जड़ और अच्छी तरह से विकसित पार्श्व जड़ें शामिल होती हैं।

20-40 सेमी (8 से 16 इंच) तक लंबी प्रत्यावर्ती पिच्छाकार पत्तियां जिनमें, 20 से लेकर 31 तक गहरे हरे रंग के पत्रक या पत्ते (Neem leaves) होते हैं जिनकी लंबाई 3-8 सेमी (1 से 3 इंच) तक होती है। अग्रस्त (टर्मिनल) पत्रक प्राय: उनुपस्थित होता है। पर्णवृंत छोटा होता है। कोंपलों (नयी पत्तियाँ) का रंग थोड़ा बैंगनी या लालामी लिये होता है। परिपक्व पत्रकों का आकार आमतौर पर असममितीय होता है और इनके किनारे दंतीय होते हैं।

फूल सफेद और सुगन्धित होते हैं और एक लटकते हुये पुष्पगुच्छ जो लगभग 25 सेमी (10 इंच) तक लंबा होता है में सजे रहते हैं। इसका फल चिकना (अरोमिल) गोलाकार से अंडाकार होता है और इसे निंबोली कहते हैं। फल का छिलका पतला तथा गूदा रेशेदार, सफेद पीले रंग का और स्वाद में कड़वा-मीठा होता है। गूदे की मोटाई 0.3 से 0.5 सेमी तक होती है। गुठली सफेद और कठोर होती है जिसमें एक या कभी-कभी दो से तीन बीज होते हैं जिनका आवरण भूरे रंग का होता है।

आयुर्वेद में नीम-

आयुर्वेद में नीम की बड़ी महिमा गाई गई है।भारत में एक कहावत प्रचलित है कि जिस धरती पर नीम के पेड़ होते हैं वहाँ मृत्यु और बीमारी कैसे हो सकती है। इस वृक्ष के ढेरों औषधीय गुण हैं। पौराणिक काल से ही नीम का उपयोग कई बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। आज भी बहुत सी ऐसी दवाइयां हैं जिनमें नीम के पत्तों का रस, नीम के पेड़ के दूसरों हिस्सों का इस्तेमाल होता है। नीम के पेड़ की छांव की तो बात ही कुछ और है क्योंकि यह उन वृक्षों में शुमार होता है जो सबसे ज्यादा वातावरण में ऑक्सीजन प्रदान करता है।

विभिन्न भाषाओं में नीम के नाम (Neem Called in Different Languages)

नीम का वानस्पतिक नाम एजाडिरैक्टा इण्डिका (लैटिन भाषा) (Azadirachta indica (L.) A. Juss.) तथा Syn- Melia indica (A. Juss.) Brantis है। यह कुल मीलिएसी (Meliaceae) का पौधा है।

विभिन्न भाषाओं में इसके नाम निम्नलिखित हैं-

भाषा नाम
हिन्दी नीम, निम्ब
अंग्रेजी Margosa tree (मार्गोसा ट्री), Neem (नीम)
संस्कृत अर्कपादप, पूकमालक, निम्ब, पिचुमर्द, तिक्तक, अग्निधमन, अरिष्ट, सर्वतोभद्र, मालक, छर्दन, हिजु, काकुल, निम्बक, प्रभद्र, पीतसारक, सुमना, सुभद्र, शुकप्रिय, शीर्षपर्ण, शीत, धमन, हिङ्गुनिर्यास, गजभद्रक, पिचुमन्द
पंजाबी निम्ब (Nimb), निप (Nip), बकम (Bakam)
अर्बिक अजाडेरिखत (Azadirakht), मरगोसा (Margosa), निम (Nim)
गुजराती लिम्बा(Limba), कोहुम्बा (Kohumba)
मराठी बलन्तनिंब (Balantnimba)
बंगाली निम (Nim), निमगाछ (Nimgachh)
मलयालम वेप्पु (Veppu), निम्बम (Nimbam)
पेरसियन नीब (Neeb), निब (Nib), आजाद दख्तुल हिंद (Azad dakhtul hind)
गढवाली बेटैन (Betain), निम (Nim)
उड़िया नीमो (Nimo), निम्ब (Nimb)
उर्दू नीम (Neem)
कन्नड़ निम्ब (Nimb), बेवू (Bevu)
तेलगू वेमू (Vemu), वेपा (Vepa)
तमिल बेम्मू (Bemmu), वेप्पु (Veppu)
नेपाली नीम (Neem)

नीम की भौतिक/रासायनिक संरचना (Physical/Chemical Composition of Neem)-

नीम से प्राप्त जड़, तना छाल, टहनियां, पुष्प, फल बीजरस, तेल आदि का औषधियों, कीट नाशकों एवं खाद के रूप में उपयोग होता है। इसलिए इसे बहुपयोगी कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। नीम की इस बहूपयोगिता का प्रमुख कारण उसमें पाये जाने वाले विशिष्ट भौतिक/रासायनिक तत्व हैं जिका संक्षिप्त विविरण निम्नलिखित है:-

काष्ठ (लकड़ी)-

नीम की लकड़ी का विशष्ट घनत्व भार होता है जिसके कारण मजबूती के दृष्टिकोण से यह अन्य इमारती लकड़ी के सामान होता है। इसकी मध्य की लकड़ी में टेनिन, अकार्बनिक कैल्सिमय, पोटैशियम तथा लौह लवण आदि पाये जाते हैं। इसकी जड़ व तने की छाल में सारभूत तेल, रेजिन, गोंद, स्टार्च, मारगोसिन आदि पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं।

पर्ण (पत्ती)-

एक लंबी पर्णवृत्त पर पत्तियाँ एकांतर अथवा समांतर क्रम में संयोजित होकर संयूक्त पत्ती कहलाती है। इनके किनारे दांतेदार होते हैं और रंग गहरा हरा व सतह साफ चिकनी होती है तथा मार्च से अप्रैल में नयी पत्तियाँ आने लगती है। शुष्क परिस्थितियों में सभी पत्तियाँ कुछ समय तक के लिए गिर जाती है तथा वृक्ष पर्णविहीन हो जाता है। हरी पत्तियों में प्रोटीन, वसा कार्बोहाइड्रेटस, रेशा, खनिज तत्व जैसे कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा, कैरोटीन, विटामिन- ए, सी आदि महत्वपूर्ण तत्व पाये जाते हैं।

छाल-

नीम की छाल में मुख्यत: निम्बीन (0.04 प्रतिशत), निम्बीडीन (0.4 प्रतिशत), टेनिन (6 प्रतिशत), एमिनोएसिड, कैल्सियम, पोटाशियम, लोहा, लवण, रेसिन, गोंद, स्टार्च आदि तत्व पाये जाते हैं। जिसका उपयोग टेनिन के उप्तादन, रस्सी एवं औषधि निर्माण आदि के काम में किया जाता है|

पुष्प (फूल)-

पुष्प उभयलिंगी अर्थात नर और मादा जननांग एक ही पुष्प पर होते हैं| इनमें मकरंद की भीनी सुगंध आती है जो मधुमक्खियों को शहद के लिए आकर्षित करती हैं और फूलों से परागण के लिए लाभकारी होती हैं| पुष्प सफेद रंग आकार में छोटे-छोटे तथा गूछों के सदृश्य आते हैं| मध्य व उत्तर भारत में पूष्पकाल मार्च से अप्रैल के बीच होता है| जबकि मालावार क्षेत्र में जनवरी, मैसूर व उसके आसपास के क्षेत्रों में फरवरी, हिमालय पर्वत के निचले क्षेत्रों में मई, देश के कुछ भागों में अगस्त-सितंबर माह में भी फूल लगते हैं|

नीम के फूल में वसीय अम्ल की उपस्थिति पाई पायी गयी है जो कि आरकिडिक (0.7 प्रतिशत) स्टीयरिक (8.2 प्रतिशत), ओलिक (65.3 प्रतिशत), लिनोलिक (8.0 प्रतिशत) आदि के रूप में उसके  वैक्सीय भाग में मिलते हैं| फूल में सोडियम, पोटैशियम, कैल्सियम, आयरन, क्लोराइड, कार्बोनेट, सल्फेट व सिलिका भी पाया जाता है।

फल (निंबोली)-

नीम के फलों को निंबोली कहते हैं। जो शुरू में कच्ची व हरी होती है तथा सामान्यत: मई से जून तक आती है। पकने पर यह पीले रंग की होकर गिरने लगती है। जिसे अगस्त तक प्राप्त किया जा सकता है। इन पकी निंबोलिया में पीले छिलके के अंदर गाढ़ा सफेद तरल चिपचिपा रस होता है तथा मध्य में बीज होता है।

नीम के फल में छिलका लगभग 23.8 प्रतिशत, गूदा 47.5 प्रतिशत, आवरण 18.6 प्रतिशत तथा गिरी 10.1 प्रतिशत पायी जाती है।

बीज (गुठली)-

बीज द्विपत्री होता है तथा अंकुरण में बीज भूमि से बाहर आ जाते हैं। एक निंबोली में सामान्यत: एक बीज होता है। बीजों के सफेद आवरण को उतारने पर मिंगी/ करनल (गिरी) में 40-50 प्रतिशत तेल होता है।

नीम का बीज तोड़ने पर इसका आधे से अधिक भाग (लगभग 55 प्रतिशत) गुठली के रूप में अलग हो जाता है तह शेष लगभग 45 प्रतिशत गिरी या मींगी के रूप में प्राप्त होता है। बीज में तेल लगभग 30-32 प्रतिशत, निम्बीन और निम्बीडीन 2 प्रतिशत तथा निम्बोडोल 0.6 प्रतिशत पाया जाता है।

गिरी/मिंगी-

गिरी में 4550 प्रतिशत तेल पाया जाता है तथा इस तेल में विभिन्न वसीय अम्ल जैसे पामिटिक (14.9 प्रतिशत), लिनोलिक (7.5 प्रतिशत), ओलिक (61.9 प्रतिशत), स्टीयरिक (14.4 प्रतिशत), अरेचिडिक (1.3 प्रतिशत) तथा अन्य वसीय अम्ल (1 प्रतिशत) पाये जाते हैं। नीम के तेल में कडुवा सत 2 प्रतिशत होता है, जिसमें निम्बीडीन (1.2-1.6 प्रतिशत), निम्बिन (0.1 प्रतिशत), निम्बी निन (0.01 प्रतिशत) आदि महत्वपूर्ण रसायन होते हैं।

नीम के तेल में प्रमुख ग्लिसरैड्स जैसे पूर्ण संतृप्त (0.6 प्रतिशत), असंतृप्त (22.0 प्रतिशत) स्टीआरोडियालीन (34 प्रतिशत), पामिटदियालिन (26प्रतिशत), ओलियो-पामिटो स्टीयरिन (12 प्रतिशत) तथा ओलियोडिपामीटिन (5 प्रतिशत) पाये जाते हैं। नीम के तेल में गंधक यौगिक भी होता है जिसके कारण यह खाने योग्य नहीं होता है।

खली (खल)-

नीम का तेल निकालने के बाद नीम की खली एक मुख्य उप उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है जो कि मशीन चालित कोल्हू से पिराई करने पर गिरी /गूदे से 55-70 प्रतिशत तथा बीज से 80-85 प्रतिशत तक प्राप्त की जा सकती है। इसमें प्रोटीन, शर्करा, वसा, रेशा व रख के साथ-साथ नाइट्रोजन (2-3 प्रतिशत) फास्फोरस (1.0 प्रतिशत), पोटाश (1.44 प्रतिशत), तथा राख में आयरन (0.17 प्रतिशत) आदि पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें बहुत से जटिल कार्बनिक यौगिक, अकार्बनिक तत्व पोटैशियम, कैल्सिमय, मैग्नीशियम, लिमनायडस आदि भी उपलब्ध रहते हैं।

अभी तक के अध्ययनों के अनुसार चार प्रमुख लिमनायडस अजाडिरेकटिन, सेलानिन, मीलियनट्रोल तथा निम्बीन सबसे ज्यादा उपयोगी साबित हुए है| नीम की खली अति उपयुक्त कहद के रूप में सिद्ध हुई है तथा प्रयोगों में यह पाया गया है की यूरिया को नीम की खली की कोटिंग देने से इसमें पायी जाने वाली नाइट्रोफिकेशन, फास्फोरस तथा पोटाश की अच्छी मात्रा होने कारण इसे जैविक खाद का एक अच्छा संभावित स्रोत माना जा रहा है|

तना-

नीम का तना, सीधा, एकसार लंबाई व मोटाई वाला होता है। इसके गोल तने पर काले भूरे रंग की एक मोटी, फटी व खुरदरी छाल होती है। लकड़ी मजबूत, गंधयुक्त, हल्के पीले रंग की व मध्य में गहरे मैरून/कत्थई रंग की होती है है। मुख्य तने से शाखाएँ व टहनियां ऊपर ही छत्र के रूप में विकसित होती हैं।

जड़-

इसमें मूसला जड़ होती है। जिसमें मुख्य जड़ गोल लंबी व गहराई तक जाती है। मुख्य जद्से द्वितीयक, तृतीयक जड़ें फूटकर जाल के रूप में गहराई तक फैली रहती है। जड़ गंधयुक्त हल्के पीले रंग की होती है।

नीम के फायदे (benefits of neem)-

👉नीम की दातुन करने से दांत व मसूढे मज़बूत होते है और दांतों में कीडा नहीं लगता है, तथा मुंह से दुर्गंध आना बंद हो जाता है, इसमें दोगुना पिसा सेंधा नमक मिलाकर मंजन करने से पायरिया, दांत-दाढ़ का दर्द आदि दूर हो जाता है। नीम की कोपलों को पानी में उबालकर कुल्ले करने से (neem ka upyog) दाँतों का दर्द जाता रहता है।

👉नीम की पत्तियां चबाने से रक्त शोधन होता है और त्वचा विकार रहित और चमकदार होती है।

👉छाल को जलाकर उसकी राख में तुलसी के पत्तों का रस मिलाकर लगाने से दाग़ तथा अन्य चर्म रोग ठीक होते हैं।

👉नीम का लेप सभी प्रकार के चर्म रोगों के निवारण में सहायक है, नीम के तेल से मालिश करने से विभिन्न प्रकार के चर्म रोग ठीक हो जाते हैं। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर और पानी ठंडा करके उस पानी से नहाने से चर्म विकार दूर होते है।

👉नीम की छाल के काढे में धनिया और सौंठसौं का चूर्ण मिलाकर पीने से मलेरिया रोग में जल्दी लाभ होता है। नीम मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों को दूर रखने में अत्यन्त सहायक है। जिस वातावरण में नीम के पेड़ रहते हैं, वहाँ मलेरिया नहीं फैलता है। नीम के पत्ते जलाकर रात को धुआं करने से मच्छर नष्ट हो जाते हैं और विषम ज्वर (मलेरिया) से बचाव होता है।

👉नीम के द्वारा बनाया गया लेप वालों में लगाने से बाल स्वस्थ रहते हैं और कम झड़ते हैं। नीम और बेर के पत्तों को पानी में उबालें, ठंण्डा होने पर इससे बाल, धोयें स्नान करें कुछ दिनों तक प्रयोग करने से बाल झडने बन्द हो जायेगें व बाल काले व मज़बूत रहेंगें।

👉नीम के तेल की 4-4 बूँदों को कैप्सूल में भरकर दिन में तीन बार सेवन करने से टी.बी. जैसे रोग में फायदा मिलता है।

👉3-6 बूँद शुद्ध नीम के बीज के तेल को पान में डाल कर खाने से दम फूलना आदि सांसों के रोगों में लाभ होता है।

👉नीम की पत्तियों के रस को आंखों में डालने से आंख आने की बीमारी (कंजेक्टिवाइटिस) समाप्त हो जाती है।

👉नीम की पत्तियों के रस और शहद को 2:1 के अनुपात में पीने से पीलिया में फ़ायदा होता है, और इसको कान में डालने कान के विकारों में भी फ़ायदा होता है।

👉नीम के तेल की 5-10 बूंदों को सोते समय दूध में डालकर पीने से ज़्यादा पसीना आने और जलन होने सम्बन्धी विकारों में बहुत फ़ायदा होता है।

👉नीम के बीजों के चूर्ण को ख़ाली पेट गुनगुने पानी के साथ लेने से बवासीर में काफ़ी फ़ायदा होता है।

👉नीम की निम्बोली का चूर्ण बनाकर एक-दो ग्राम रात को गुनगुने पानी से लें कुछ दिनों तक नियमित प्रयोग करने से कब्ज रोग नहीं होता है एवं आंतें मज़बूत बनती है।

👉गर्मियों में लू लग जाने पर नीम के बारीक पंचांग (फूल, फल, पत्तियां, छाल एवं जड) चूर्ण को पानी मे मिलाकर पीने से लू का प्रभाव शांत हो जाता है।

👉नीम की 20 पत्तियाँ पीसकर एक कप पानी में मिलाकर पिलाने से हैजा़ ठीक हो जाता है।

👉बिच्छू के काटने पर नीम के पत्ते मसल कर काटे गये स्थान पर लगाने से जलन नहीं होती है और ज़हर का असर कम हो जाता है।

👉नीम के 25 ग्राम तेल में थोडा सा कपूर मिलाकर रखें यह तेल फोडा-फुंसी, घाव आदि में उपयोग रहता है।

👉नीम के पत्ते कीढ़े मारते हैं, इसलिये पत्तों को अनाज, कपड़ों में रखते हैं।

👉विदेशों में नीम को एक ऐसे पेड़ के रूप में पेश किया जा रहा है, जो मधुमेह से लेकर एड्स, कैंसर और बहुत सी गंभीर बीमारियों का इलाज कर सकता है।

👉नीम की पत्तियाँ तथा अजवाइन दोनों पीसकर कनपट्टियों पर लेप करने से नकसीर बन्द होता है।

नीम के औषधीय लाभ (Medicinal Benefits of Neem in Hindi)

कई ग्रन्थों में वसन्त-ऋतु (विशेषतः चैत्र मास मतलब 15 मार्च से 15 मई) में नीम के कोमल पत्तों (Neem Ke Patte Ke Fayde In Hindi) के सेवन की विशेष प्रंशसा की गई है।

विभिन्न रोगों में नीम का प्रयोग (Uses of Neem in hindi) करने की विधि नीचे दी जा रही हैः-

बालों की समस्याओं में लाभकारी है नीम (Benefits of Neem for Hair Problems in Hindi)

1. नीम तेल नियमित सिर में लगाने से गंजापन या बाल का तेजी से झड़ना रूक जाता है। यह बालों को भूरा होने से भी बचाता है। नीम तेल से हेयर आयल तथा हेयर लोशन भी बनाये जाते हैं। मार्गो या नीम साबुन भी इसमें लाभप्रद है। किन्तु नीम तेल या उससे बने साबुन, तेल, लोशन आदि लगाने से माथे में गर्मी भी होती है, अत: बहुत जरूरी होने पर ही इनका प्रयोग करना चाहिए।

2. बालों में नीम का तेल लगाने से जुएं तथा रूसी नष्ट होते हैं। नीम के बीजों को पीसकर लगाने से या नीम के पत्तों (neem leaves) के काढ़े से सिर धोने से बालों की जुँए और लीखें मर जाती हैं।

3. नीम के बीजों को भांगरा के रस तथा असन पेड़ की छाल के काढ़े में भिगो कर छाया में सुखाएं। ऐसा कई बार करें। इसके बाद इनका तेल निकालकर नियमानुसार 2-2 बूँद नाक में डालें। इससे असमय सफेद हुए बाल काले हो जाते हैं। इस प्रयोग के दौरान केवल दूध और भात यानी पके हुए चावल ही खाने चाहिए।

4. नीम के पत्ते (Neem Ke Patte) एक भाग तथा बेर पत्ता 1 भाग को अच्छी तरह पीस लें। इसका उबटन या लेप सिर पर लगाकर 1-2 घंटे बाद धो डालें। इससे भी बाल काले, लंबे और घने होते हैं।

5. नीम के पत्तों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा हो जाने दें। इसी पानी से सिर को धोते रहने से बाल मजबूत होते हैं, बालों का गिरना या झड़ना रुक जाता है। इसके अतिरिक्त सिर के कई रोगों में लाभ होता है।

आँखों के रोगों के लिए फायदेमंद है नीम (Benefits of Neem for Cure Eye Problems in Hindi)

1. नीम की हरी निबोली (कच्चे फल) का दूध आँखों पर लगाने से रतौंधी दूर होती है। आँख में जलन या दर्द हो तो नीम की पत्ती कनपटी पर बांधने से आराम मिलता है। नीम के पत्ते का रस थोड़ा सुसुम कर जिस ओर आंख में दर्द हो, उसके दूसरी ओर कान में डालने से लाभ होता है। दोनों आँख में दर्द हो तो दोनों कान में सुसुम तेल डालना चाहिए।

2. शुष्ठी और नीम के पत्तों को सेंधा नमक के साथ पीसकर नेत्र पलकों पर लगाने से सूजन, जलन, दर्द तथा आंखो का गड़ना समाप्त होता है।

3. नीम की पत्तियों (neem leaves)  तथा लोधरा का पाउडर कपड़े में बांधकर पानी में कुछ देर छोड़ दें, फिर उस पानी से आँख धोने से नेत्र-विकार दूर होते हैं।

4. नीम काजल: नीम की पीली सूखी पत्तियाँ ७ नग, नीम के सूखे फलों का चूर्ण एक माशा, नीम तेल एक तोला, साफ महीन कपड़ा ४ इंच। कपड़े पर नीम की सूखी पत्तियाँ तथा फलों का चूर्ण रखकर, हाथ से मसलकर तथा लपेटकर बत्ती बना लें। एक मिट्टी के दीपक में नीम का तेल डालकर उसमें बत्ती डूबो कर जला दें। जब बत्ती अच्छी तरह जलने लगे, तब उस पर एक ढकनी लगाकर काजल एकत्र कर लें। इसको आँखों में लगाने से हर प्रकार के नेत्र रोग दूर होते हैं और आँखों की ज्योति बढ़ती है। नीम के फूलों का भी काजल लगाने से लाभ होता है।

दु:खती आँख में नीम पत्तियों का रस शहद में मिलाकर लगाने से भी दर्द दूर होता है और साफ दिखाई पड़ता है। नीम की लकड़ी जलाकर उसकी राख का सूरमा भी लगाने से इसमें लाभ होता है।

5. नीम की बीज की मींगी का चूर्ण नित्य (1 या 2 सलाई) आँखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद में लाभ होता है।

6. 50 ग्राम नीम के पतों को पानी के साथ महीन पीसकर टिकिया बनाकर सरसों के तेल में पकाएं। जब वह जलकर काली हो जाय तब उसे उसी तेल में मिलाकर उसमें दसवां भाग कपूर तथा दसवां हिस्सा कलमी शोरा मिला लें। इसे खूब घोंटकर कांच की शीशी में भर कर रख लें। इसे रात के समय आँख में काजल की तरह लगाएँ और सुबह त्रिफला के पानी से आँखों को धोएं। इससे आँखों की खुजली, जलन, लालिमा आदि दूर होती है और आँखों की रौशनी बढ़ती (neem ka upyog) है।

7. वमनी अथवा सलाक रोग में आँखों की पलकें मोटी हो जाती हैं, खुजली होती है, बरौनी झड़ जाती है तथा पलकों के किनारे लाल हो जाते हैं। इस रोग में नीम के पत्तों के रस को पका कर गाढ़ा कर लें। इसे ठंडा करके काजल के रूप में लगाते रहने से लाभ होता है।

कान के रोग में नीम से लाभ (Benefits of Neem in Ear Problems Treatment in Hindi)

1. नीम का तेल गर्म कर एवं थोड़ा ठंढ़ा कर कान में कुछ दिन तक नियमित डालने से बहरापन दूर होता है।

2. नीम के पते के 40 मिली रस को 40 मिली तिल के तेल में पकाएं। तेल मात्र शेष रहने पर छान कर 3-4 बूँद कान में डालें। कान का बहना बंद हो जाएगा।

3. कान के घाव एवं उससे मवाद आने में नीम का रस (मद) शहद के साथ मिलाकर डालने या बत्ती भिंगोकर कान में रखने से मवाद निकलना बन्द होता है और घाव सूखता है।

4. नीम तेल 40 मिली तथा 5 ग्राम मोम को आग पर गर्म करें। मोम गल जाने पर उसमें फूलाई हुई फिटकरी का 750 मिग्रा चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर शीशी में रख लें। इस मिश्रण की 3-4 बूँद दिन में दो बार डालने से कान का बहना बन्द (neem ka upyog) होता है।

5. कान-दर्द या कान-बहने में नीम तेल कुछ दिन तक कान में नियमित डालने से ठीक होता है।

नीम का इस्तेमाल दांतों के रोगों में लाभदायक (Uses of Neem in Treating Dental Disease in Hindi)

1. अत्यंत प्राचीन काल से ही नीम दातुन यानी दाँतों को साफ करने के लिए नीम की दातुन का प्रयोग होता रहा है। नीम की दातुन करने से दांत संबंधित रोग नहीं होते हैं।

2. 100 ग्राम नीम की जड़ को कूट कर आधा लीटर पानी में एक चौथाई शेष रहने तक उबालें। इस पानी से कुल्ला करने से दांतों के अनेक रोग दूर होते हैं।

3. नीम की जड़ की छाल के चूर्ण से दाँतों को मंजन करने से दाँतों से खून गिरना, पीव निकलना, मुंह में छाले पड़ना, मुंह से दुर्गन्ध आना, जी का मिचलाना आदि रोग दूर (neem ke fayde) होते हैं।

4. मसूड़ों से खून आने और पायरिया होने पर नीम के तने की भीतरी छाल या पत्तों को पानी में औंटकर औं कुल्ला करने से लाभ होता है। इससे मसूड़े और दाँत मजबूत होते हैं। नीम के फूलों का काढ़ा बनाकर पीने से भी इसमें लाभ होता है।

5. नीम का दातुन नित्य करने से दाँतों के अन्दर पाये जाने वाले कीटाणु नष्ट होते हैं। दाँत चमकीला एवं मसूड़े मजबूत व निरोग होते हैं। इससे चित्त प्रसन्न रहता है।

पेट-कृमि में नीम के सेवन से लाभ (Neem Benefits in Cure Stomach Bugs in Hindi)

1. आंत में पड़ने वाली सफेद कृमि या केचुए को जड़ से नष्ट करने में संभवत: नीम जैसा गुणकारी कोई अन्य औषधि नहीं है। नीम की पत्ती 15-20 नग तथा काली मिर्च 10 नग थोड़े से नमक के साथ पीसकर एक गिलास जल में घोलकर खाली पेट 3-4 दिन तक पी लेने से इन कृमियों से कम से कम 2-3 वर्ष तक के लिए मुक्ति मिल जाती है।

2. बैगन या किसी दूसरे साग के साथ नीम की पत्तियों की छौंकछौं लगाकर खाने से भी कृमि नष्ट होती है। सिर्फ नीम की पत्तियों का चूर्ण 10-15 दिन खा लेने से भी लाभ होता है।

3. नीम के पत्तों का रस निकालकर 5 मिली मात्रा में पिलाने से (neem ka upyog)  पेट के कीड़े मर जाते है।

4. एक अन्य मत के अनुसार दस ग्राम नीम के पत्ते, दस ग्राम शुद्ध हींगहीं के साथ कुछ दिन नियमित सेवन करने से भी पेट के सभी प्रकार के कीड़े मर जाते हैं।

नीम का इस्तेमाल दस्त में लाभदायक (Benefits of Neem Tree to Stop Dysentery in Hindi)

1. नीम की 50 ग्राम अंदर की छाल को मोटा कूट कर 300 मिली पानी में आधा घंटे उबालकर छान लें। इसी छनी हुई छाल को फिर 300 मिली पानी में उबालें। 200 मिली शेष रहने पर छानकर शीशी में भर लें और इसमें पहले छना हुआ पानी भी मिला दें। इस पानी को रोगी को 50-50 मिली दिन में 3 बार पिलाने से दस्त बन्द हो जाता है।

2. 125-250 मिग्रा नीम की अंदर की छाल की राख को 10 मिली दही के साथ दिन में दो बार सेवन करें। इससे आमातिसार यानी आँव वाले दस्त में लाभ (neem ke fayde) होता है।

3. रोज सुबह 3-4 पकी निबौलियां खाने से खूनी पेचिश ठीक होता है तथा भूख खुल कर लगती है।

उलटी में लाभकारी है नीम (Benefits of Neem Tree to Stop Vomiting in Hindi)

1. नीम की 7 सीकों को 2 बड़ी इलायची और 5 काली मिर्च के साथ महीन पीसकर 250 मिली पानी के साथ मिलाकर पीने से उलटी बन्द होती है।

2. 8-10 नीम के कोमल पत्तों को घी में भूनकर खाने से भोजन से होने वाली अरुचि दूर होती है।

3. 20 ग्राम नीम के पत्तों को 100 मिली पानी में पीसकर, छानकर 50 मिली मात्रा में सुबह-शाम पिलाने से उलटी तथा अरुचि में लाभ होता है।

4. 5-10 मिग्रा नीम की छाल के रस में मधु मिलाकर पिलाने से उलटी तथा अरुचि आदि में लाभ होता है।

बवासीर में फायदेमंद नीम (Benefits of Neem Tree in Piles Treatment in Hindi)

1. नीम बीज का पाउडर शहद में मिलाकर दिन में दो बार खाने से भी कुछ दिनों में बवासीर नष्ट हो जाते हैं। यह प्रयोग बुन्देलखण्ड के आदिवासियों द्वारा करते देखा गया है।

2. 50 मिली नीम तेल, 3 ग्राम कच्ची फिटकरी तथा 3 ग्राम सुहागा को महीन पीसकर मिलाकर शौच-क्रिया में धोने के बाद इस मिश्रण को उंगली से गुदा के भीतर तक लगाने से कुछ ही दिनों में बवासीर ठीक होता है।

3. प्रतिदिन नीम की 21 पत्तियों को मूंग की भिंगोई और धोयी हुई दाल मे पीसकर बिना कोई मशाला डाले पकौड़ी बनाकर 21 दिन तक खाने से हर तरह का बवासीर निर्बल होकर गिर जाता है। पथ्य में सिर्फ ताजा मट्ठा, भात एवं सेंघा नमक लिया जाना चाहिए।

4. छिलके सहित कूटी हुई सूखी निबौरी के 1-2 ग्राम महीन चूर्ण को सुबह खाली पेट सेवन करने से बवासीर के रोगी को बहुत लाभ होता है।

5. नीम के बीज की गिरी, एलुआ और रसौत को बराबर मात्रा में मिलाकर खरल कर गोलियां बना लें। सुबह एक गोली छाछ के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

6. नीम के बीजों की गिरी 100 ग्राम और जड़ की छाल 200 ग्राम को पीस लें। इसकी 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर 4-4 गोली को दिन में 4 बार सात दिन तक खिलाएं। इसके साथ ही नीम के काढ़े से मस्सों को धोएं या पत्तों (uses of neem leaves) को पीस कर मस्सों पर बाँधें। बवासीर में निश्चित लाभ होगा।

पीलिया में लाभदायक नीम (Benefits of Neem Tree in Fighting with Jaundice in Hindi)

1. नीम का रस (मद) या छाल का क्वाथ शहद में मिलाकर नित्य सुबह लेने से पिलिया में लाभ होता है। मोथा और कियू (Costus speciosus) के जूस में नीम का छाल मिलाकर उसका क्वाथ देने से भी यह रोग नष्ट होता है।

2. नीम के 5-6 कोमल पत्तों को पीसकर, शहद मिलाकर सेवन करने से भी पीलिया, पेशाब संबंधित रोग तथा पेट के रोगों में भी लाभ होता है।

3. पित्त की नली में रुकावट होने से पीलिया रोग हो जाए तो 10-20 मिली नीम के पते के रस में, तीन ग्राम सोंठ का चूर्ण और 6 ग्राम शहद मिला लें। इसे तीन दिन सुबह खाली पेट पीने से लाभ होता है। दवा लेते समय घी, तेल, चीनी व गुड़ का प्रयोग नहीं करें।

4. सुखे हुए नीम के पत्ते (uses of neem leaves) , नीम के जड़ की छाल, फूल और फल को बराबर मात्रा में लेकर महीन पीसकर चूर्ण को एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार घी व शहद में मिलाकर अथवा गाय के पेशाब या गाय के दूध या पानी के साथ सेवन करें, पीलिया रोग ठीक होगा।

5. नीम का पत्ता, गिलोय का पत्ता, गूमा (द्रोणपुष्पी) का पत्ता और छोटी हरड़ (सभी 6-6 ग्राम) लेकर सभी को कूटकर इसे 200 मिली पानी में पकाएं। 50 मिली शेष रहने पर छानकर इसे 10 ग्राम गुड़ मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से पीलिया में विशेष लाभ होता है।

6. नीम के तने की भीतरी छाल तथा मेथी के चूर्ण का काढ़ा बनाकर कुछ दिनों तक नियमित पीने से मधुमेह की हर स्थिति में लाभ मिलता है। 20 मिली नीम के पत्ते के रस में थोड़ी चीनी मिलाकर, थोड़ा गरम कर सेवन करने से भी लाभ हो जाता है।

डायबिटीज में फायदेमंद नीम (Neem Leaf Benefits in diabetes in Hindi)

1. 20 मिली नीम के पत्ते के रस में एक ग्राम नीला थोथा अच्छे से मिलाकर सुखा कर कौड़ियों में रखकर जला कर भस्म करें। 250 मिग्रा. भस्म को गाय के दूध के साथ दिन में दो बार सेवन करें, डायिबटीज में लाभ होगा।

2. नीम के पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर थोड़े से गाय के घी में अच्छी तरह तल लें। टिकिया जल जाने पर, घी को छानकर रोटी के साथ सेवन करने से प्रमेह रोग (डायबिटीज) में लाभ होता है।

3. 10 मिली नीम के पत्ते के रस में मधु मिलाकर प्रतिदिन सेवन करने से डायबिटीज में फायदा होता है।

4. 40 ग्राम नीम के छाल को मोटा-मोटा कूट कर 2.5 लीटर पानी डाल कर मिट्टी के बरतन में पकाएं। 200 मिली शेष रहने पर छान कर दोबारा पकाएं और 20 या 25 ग्राम कलमी शोरा चूर्ण चुटकी से डालते जायें और नीम की लकड़ी से हिलाते जाएं। सूख जाने पर पीस-छानकर रख लें। 250 मिग्रा की मात्रा रोजाना गाय के दूध की लस्सी के साथ सेवन कराने से डायिबटीज में जल्द लाभ हो जाता है।

योनि के दर्द में नीम का लाभ (Neem Benefits in Relief from Vaginal Pain in Hindi)

1. कई बार स्त्रियों को योनि में दर्द हो जाता है। नीम की गिरी को नीम के पत्ते के रस में पीसकर गोलियां बना लें। गोली को कपड़े के भीतर रखकर सिल लें (इसमें एक डोरा लटकता रहे)। रोज एक गोली योनिमार्ग में रखने से दर्द में आराम होता है।

2. नीम के बीजों की गिरी, एरंड के बीजों की गिरी तथा नीम के पत्ते का रस को बराबर मात्रा में मिला लें। इसकी बत्ती बनाकर योनि में डालने से योनि का दर्द ठीक होता है।

3. नीम के छाल को अनेक बार पानी में धोकर, उस पानी में रूई को भिगोकर रोज योनि में रखें। धोने से बची हुई छाल को सुखाकर जलाकर उसका धुँआ योनि के मुंह पर दें। इसके साथ ही नीम के पानी से बार-बार योनि को धोएं। इन प्रयोगों से ढीली योनि सख्त हो जाती है।

मासिक धर्म, सुजाक एवं सहवास क्षत में नीम लाभदायक (Neem Uses in Cure Menstrual Problems in Hindi)

1. 10 ग्राम नीम के छाल के साथ बराबर गिलोय को पीसकर दो चम्मच मधु मिला कर दिन में तीन बार पिलाने से मासिक के दौरान अधिक रक्तस्राव होने में लाभ होता है।

2. मोटी कूटी हुई नीम की छाल 20 ग्राम, गाजर के बीज 6 ग्राम, ढाक के बीज 6 ग्राम, काले तिल और पुराना गुड़ 20-20 ग्राम लें। इन्हें मिट्टी के बर्तन में 300 मिली पानी के साथ पकाएं। 100 मिली शेष रहने पर छानकर सात दिन तक पिलाएं। मासिक विकारों में लाभ होता है। इसे गर्भवती स्त्री को नहीं देना चाहिए।

3. आयुर्वेद मत में नीम की कोमल छाल 4 माशा तथा पुराना गुड 2 तोला, डेढ़ पाव पानी में औंटकर जब आधा पाव रह जाय तब छानकर स्त्रियों को पिलाने से रुका हुआ मासिक धर्म पुन: शुरू हो जाता है। एक अन्य वैद्य के अनुसार नीम छाल 2 तोला सोंठसों, 4 माशा एवं गुण 2 तोला मिलाकर उसका काढ़ा बनाकर देने से मासिक धर्म की गड़बड़ी ठीक होती है।

4. स्त्री योनि में सुजाक (फुंसी, चकते) होने पर नीम के पत्तों के उबले गुनगुने जल से धोने से लाभ होता है। एक बड़े व चौड़े बर्तन में नीम पत्ती के उबले पर्याप्त जल में जो सुसुम हो, बैठने से सुजाक का शमन होता है और शान्ति मिलती है। पुरूष लिंग में भी सुजाक होने पर यही सुझाव दिया जाता है। इससे सूजन भी उतर जाता है और पेशाब ठीक होने लगता है।

5. नीम के पत्तों को पीस कर उसकी टिकिया तवे पर सेंककर पानी के साथ लेने से सहवास के समय स्त्री योनि के अन्दर या पुरूष लिंग में हुए क्षत भर जाते हैं, दर्द मिट जाता है।

प्रदर रोग में फायदेमंद नीम (Neem Uses in Leucorrhea Treatment in Hindi)

1. प्रदर रोग मुख्यत: दो तरह के होते हैं- श्वेत एवं रक्त। जब योनि से सड़ी मछली के समान गन्ध जैसा, कच्चे अंडे की सफेदी के समान गाढ़ा पीला एवं चिपचिपा पदार्थ निकलता है, तब उसे श्वेत प्रदर कहा जाता है। यह रोग प्रजनन अंगों की नियमित सफाई न होने, संतुलित भोजन के अभाव, बेमेल विवाह, मानसिक तनाव, हारमोन की गड़बड़ी, शरीर से श्रम न करने, मधुमेह, रक्तदोष या चर्मरोग इत्यादि से होता है। इस रोग की अवस्था में जांघ के आस-पास जलन महसूस होता है, शौच नियमित नहीं होता, सिर भारी रहता है और कभी-कभी चक्कर भी आता है।

रक्त प्रदर एक गंभीर रोग है। योनि मार्ग से अधिक मात्रा में रक्त का बहना इसका मुख्य लक्षण है। यह मासिक धर्म के साथ या बाद में भी होता है। इस रोग में हाथ-पैर में जलन, प्यास ज्यादा लगना, कमजोरी, मूर्च्छा तथा अधिक नींदनीं आने की शिकायतें होती हैं।

2. नीम की छाल और बबूल की छाल बराबर-बराबर मात्रा में लेकर 10-30 मिली काढ़ा बनाएं। 10-20 मिली काढ़े का सुबह-शाम सेवन करने से सफेद प्रदर यानी ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।

3. श्वेत प्रदर में नीम की पत्तियों के क्वाथ से योनिद्वार को धोना और नीम छाल को जलाकर उसका धुआं लगाना लाभदायक माना गया है। दुर्गन्ध तथा चिपचिपापन दूर होने के साथ योनिद्वार शुद्ध एवं संकुचित होता है। यह आयुर्वेद ग्रंथ 'गण-निग्रह' का अभिमत है।

4. प्रदर रोग में (कफ होने पर) नीम का मद एवं गुडची का रस शराब के साथ लेने से लाभ होता है।

प्रसव एवं प्रसूता काल में नीम का उपयोग (Neem Benefits after Post Delivery Problems in Hindi)

1. प्रसूता को बच्चा जनने के दिन से ही नीम के पत्तों का रस कुछ दिन तक नियमित पिलाने से गर्भाशय संकोचन एवं रक्त की सफाई होती है, गर्भाशय और उसके आस-पास के अंगों का सूजन उतर जाता है, भूख लगती है, दस्त साफ होता है, ज्वर नहीं आता, यदि आता भी है तो उसका वेग अधिक नहीं होता। यह आयुर्वेद का मत है।

2. आयुर्वेद के मतानुसार प्रसव के छ: दिनों तक प्रसूता को प्यास लगने पर नीम के छाल का औटाया हुआ पानी देने से उसकी प्रकृति अच्छी रहती है। नीम के पत्ते या तने के भीतरी छाल को औंटकर औं गरम जल से प्रसूता स्त्री की योनि का प्रक्षालन करने से प्रसव के कारण होने वाला योनिशूल (दर्द) और सूजन नष्ट होता है। घाव जल्दी सूख जाता है तथा योनि शुद्ध तथा संकुचित होता है।

3. प्रसव के दौरान ज्यादा दर्द हो रहा हो तो 3-6 ग्राम नीम के बीज के चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है।

4. प्रसव के बाद रुके हुए दूषित खून को निकालने के लिए 10-20 मिली नीम के छाल के काढ़े को 6 दिन तक सुबह-शाम पिलाना चाहिए।

5. नीम की 6 ग्राम छाल को पानी के साथ पीस लें। 20 ग्राम घी मिलाकर कांजी के साथ पिलाने से प्रसव के बाद होने वाले रोगों में लाभ होता है।

6. नीम की लकड़ी को प्रसूता के कमरे में जलाने से नवजात बच्चे के स्वास्थ्य के लिए भी अच्छा होता है।

नीम के प्रयोग से चेचक में लाभ (Benefits of Neem in Chicken Pox in Hindi)

1. चेचक कभी निकले ही नहीं, हीं इसके लिए आयुर्वेद मत में उपाय है कि चैत्र में दस दिन तक प्रात:काल नीम की कोमल पत्तियाँ गोल मिर्च के साथ पीस कर पीना चाहिए। नीम का बीज, बहेड़े का बीज और हल्दी समान भाग में लेकर पीस-छानकर कुछ दिन पीने से भी शीतला/चेचक का डर नहीं रह जाता।

2. नीम के बीज, बहेड़े के बीज और हल्दी को बराबर मात्रा में लें। इसे ठण्डे पानी में पीस-छानकर कुछ दिनों तक पीने से चेचक निकलने का डर नहीं रहता है।

3. चेचक के दानों में अगर बहुत गर्मी हो तो नीम की 10 ग्राम कोमल पत्तियों को पीस लें। इसका रस बहुत पतला कर लेप करना चाहिए।, नीम के बीजों की 5-10 गिरी को पानी में पीसकर लेप करने से चेचक के दानों की जलन शांत होती है।

4. चेचक के रोगी को अधिक प्यास लगती हो तो नीम की छाल को जलाकर उसके अंगारों को पानी में डालकर बुझा लें और इस पानी को छानकर रोगी को पिलाने से प्यास बुझ जाती है। अगर प्यास इससें भी शान्त न हो तो एक लीटर पानी में 10 ग्राम कोमल पत्तियों को उबाल लें। जब आधा पानी रह जाये, तब छान कर पिलाएं।

5. जब चेचक के दानों के खुंड सूखकर उतर जाते हैं तो उनकी जगह पर छोटे-छोटे गड्ढे दिखाई देते हैं और आकृति बिगड़ जाती है। इन स्थानों पर नीम का तेल अथवा नीम के बीजों की मगज को पानी में घिसकर लगाया जाए तो दाग मिट जाते हैं।

6. चेचक के रोगी के अगर बाल झड़ जाये तो सिर में कुछ दिनों तक नीम का तेल लगाने से बाल फिर से जम जाते हैं।

कुष्ठ रोग में नीम से लाभ (Uses of Neem in Leprosy Treatment in Hindi)

1. यह रोग एक छड़नुमा 'माइक्रोबैक्टेरिया लेबी' से होता है। चमड़ी एवं तंत्रिकाओं में इसका असर होता है। यह दो तरह का होता है- पेप्सी बेसीलरी, जो चमड़ी पर धब्बे के रूप में होता है, स्थान सुन्न हो जाता है। दूसरा मल्टीबेसीलरी, इसमें मुँह लाल, उंगलियाँ टेढ़ी-मेढ़ी तथा नाक चिपटी हो जाती है। नाक से खून आता है। दूसरा संक्रामक किस्म का रोग है। इसमेंडैपसोन रिफैमिसीन और क्लोरोफाजीमिन नामक एलोपैथी दवा दी जाती है। लेकिन इसे नीम से भी ठीक किया जा सकता है, कुष्ठ रोगी को निम्न नियमों का पालन करना चाहिए।

2. प्राचीन आयुर्वेद का मत है कि कुष्ठरोगी को बारहों महीने नीम वृक्ष के नीचे रहने, नीम के खाट पर सोने, नीम का दातुन करने, प्रात:काल नित्य एक छटाक नीम की पत्तियों को पीस कर पीने, पूरे शरीर में नित्य नीम तेल की मालिश करने, भोजन के वक्त नित्य पाँच तोला नीम का मद पीने, शैय्या पर नीम की ताजी पत्तियाँ बिछाने, नीम पत्तियों का रस जल में मिलाकर स्नान करने तथा नीम तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर घाव पर लगाने से पुराना से पुराना कोढ़ भी नष्ट हो जाता है।

3. नीम के तेल में नीम की पत्तियों की राख मिलाकर जहाँ पर भी सफेद दाग हो गया हो वहाँ पर रोज लगाना चाहिए, रोज सुबह 10 मिली नीम के पत्ते का रस पीना चाहिए तथा पूरे शरीर में नीम के पत्ते का रस व नीम के तेल की मालिश करनी चाहिए।

चर्म रोगों में नीम से लाभ (Neem Benefits in Cure Skin Problems in Hindi)

घाव एवं चर्मरोग बैक्टेरियाजनित रोग हैं और नीम का हर अंग अपने बैक्टेरियारोधी गुणों के कारण इस रोग के लिए सदियों से रामवाण औषधि के रूप में मान्यता प्राप्त है। घाव एवं चर्मरोग में नीम के समान आज भी विश्व के किसी भी चिकित्सा-पद्धति में दूसरी कोई प्रभावकारी औषधि नहीं है। इसे आज दुनियाँ के चिकित्सा वैज्ञानिक भी एकमत से स्वीकारने लगे हैं।

1. नीम की जड़ की ताजी छाल और नीम के बीज की गिरी 10-10 ग्राम को अलग-अलग नीम के ताजे पत्ते के रस में पीस लें। इसे अच्छी तरह मिला लें। मिलाते समय ऊपर से पत्तों का रस डालते जायें। जब मिलकर उबटन की तरह हो जाये, तब प्रयोग में लायें। यह उबटन खुजली, दाद, वर्षा तथा गर्मी में होने वाली फुन्सियां, शीतपित्त (पित्त निकलना) तथा शारीरिक दुर्गन्ध आदि त्वचा के सभी रोगों को दूर करता है।

2. छाजन (एक प्रकार का एक्जिमा), दाद, खुजली, फोड़ा, पैंसी, उपदंश यानी सिफलिस आदि रोग होने पर 100 वर्ष पुराने नीम पेड़ (neem ka ped) की सूखी छाल को महीन पीस लें। रात में 3 ग्राम चूर्ण को 250 मिली पानी में भिगो दें और सुबह छानकर शहद मिलाकर पिलाएं। सभी प्रकार के चर्मरोग दूर होंगे।

3. असाध्य/दुसाध्य छाजन में 10 ग्राम छाल के साथ बराबर मात्रा में मंजिष्ठादि काढ़े के द्रव्य तथा पीपल की छाल, नीम तथा गिलोय मिला काढ़ा बना लें। रोज नियमपूर्वक 10-20 मिली की मात्रा सुबह-शाम एक महीने तक पिलाने से पूर्ण लाभ होता है।

4. घाव चाहे छोटा हो या बड़ा नीम की पत्तियों के उबले जल से धोने, नीम पत्तियों को पीस कर उसपर छापने और नीम का पत्ता पीसकर पीने से शीघ्र लाभ होता है। फोड़े-फुंसी व बलतोड़ में भी नीम पत्तियाँ पीस कर छापी जाती हैं। दुष्ट व न भरने वाले घाव को नीम पत्ते के उबले जल से धोने और उस पर नीम का तेल लगाने से वह जल्दी भर जाता है। नीम की पत्तियाँ भी पीसकर छापने से लाभ होता है।

5. नीम के पत्ते के रस में कत्था, गन्धक, सुहागा, पित्त-पापड़ा, नीलाथोथा व कलौंजी बराबर भाग मिलाकर खूब घोट-पीसकर गोली बना लें। गोली को पानी में घिसकर दाद पर लगाएं। इससे चर्म रोग में लाभ होता है।

6. नीम के अन्दर की छाल को रात भर पानी मे भिगो दें। सुबह इस पानी को छान कर चार ग्राम आँवले के चूर्ण के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से पुराना शीतपित्त (पित्त निकलने की परेशानी) ठीक हो जाता है।

7. छाँव में सूखी नीम की पत्ती और बुझे हुए चूने को नीम के हरे पत्ते के रस में घोटकर नासूर में भर देने से वह ठीक हो जाता है। जिस घाव में नासूर पड़ गया हो तथा उससे बराबर मवाद आता हो, तो उसमें नीम की पत्तियों का पुल्टिस बांधने से लाभ होता है।

8. नीम का मरहम लगाने से हर तरह के विकृत, विषैले एवं दुष्ट घाव भी ठीक होते हैं। इसे बनाने की विधि इस प्रकार है- नीम तेल एक पाव, मोम आधा पाव, नीम की हरी पत्तियों का रस एक सेर, नीम की जड़ के छाल का चूर्ण एक छटाक, नीम पत्तियों की राख ढाई तोला। एक कड़ाही में नीम तेल तथा पत्तियों का रस डालकर हल्की आँच पर पकावें। जब जलते-जलते एक छटाक रह जाय तब उसमें मोम डाल दें। गल जाने के बाद कड़ाही को चूल्हे पर से उतार कर और मिश्रण को कपड़े से छानकर गाज अलग कर दें। फिर नीम की छाल का चूर्ण और पत्तियों की राख उसमें बढ़िया से मिला दें। नीम का मरहम तैयार।

उकतव (एक्जिमा), खुजली, दिनाय में नीम से लाभ (Benefits of neem in eczema, itching, diurnal)

1. उकवत में शरीर के अंगों की चमड़ी कभी-कभी इतनी विकृत एवं विद्रूप हो जाती है कि एलोपैथी चिकित्सक उस अंग को काटने तक की भी सलाह दे देते हैं, किन्तु वैद्यों का अनुभव है कि ऐसे भयंकर चर्मरोग में भी नीम प्रभावकारी होता है। एक तोला मजिष्ठादि क्वाथ तथा नीम एवं पीपल की छाल एक-एक तोला तथा गिलोय का क्वाथ एक तोला मिलाकर प्रतिदिन एक महीने तक लगाने से एक्जिमा नष्ट होता है।

2. एक्जिमा में नीम का रस (जिसे मद भी कहते हैं) नियमित कुछ दिन तक लगाने और एक चम्मच रोज पीने से भी 100 प्रतिशत लाभ होता है।

3. कुटकी के काटने से होने वाली खुजली पर नीम की पत्ती और हल्दी 4:1 अनुपात में पीसकर छापने से खुजली में 97 प्रतिशत तक लाभ पाया गया है। यह प्रयोग 15 दिन तक किया जाना चाहिए।

4. वसंत ऋतु में दस दिन तक नीम की कोमल पत्ती तथा गोलमीर्च पीसकर खाली पेट पीने से साल भर तक कोई चर्मरोग नहीं होता, रक्त शुद्ध रहता है। रक्त विकार दूर करने में नीम के जड़ की छाल, नीम का मद एवं नीम फूल का अर्क भी काफी गुणकारी है। चर्मरोग में नीम तेल की मालिश करने तथा छाल का क्वाथ पीने की भी सलाह दी जाती है।

5. नीम के पत्तों को पीसकर दही में मिलाकर लगाने से भी दाद मिट जाता है।

घाव में नीम से फायदा (Neem Uses in Wounds Healing in Hindi)

1. 10 ग्राम नीम की गिरी तथा 20 ग्राम मोम को 100 ग्राम तेल में डालकर पकाएं। जब दोनों अच्छी तरह मिल जायें तो आग से उतार कर 10 ग्राम राल का चूर्ण मिलाकर अच्छी तरह हिलाकर रख लें। यह मलहम, आग से जले हुए और अन्य घावों के लिए लाभदायक है।

2. हमेशा बहते रहने वाले जख्म को नीम के पत्तों के काढ़े से अच्छी प्रकार धो लें। इसके बाद नीम के छाल की राख को उसमें भर दें। 7-8 दिन में घाव पूरी तरह ठीक हो जाता है।

3. इस उपचार से कंठमाला गलगंड (घेंघा रोग) आदि में भी लाभ होता है।

4. 50 मिली नीम के तेल में 10 ग्राम कपूर मिला कर रख लें, इसमें रूई का फाहा डुबोकर घाव पर रखने से घाव सूख कर ठीक हो जाता है।

5. भगन्दर एवं अन्य स्थानों के घावों पर नीम के तेल में कपूर मिला लें। इसकी वर्त्ती (बत्ती) बनाकर अन्दर रखें एवं ऊपर भी इसी तेल की पट्टी बाँधने से लाभ होता है, छह ग्राम नीम के पंचांग के चूर्ण को रोज नियमपूर्वक सेवन करने से पुराने भगन्दर में लाभ होता है।

बुखार में नीम से लाभ (Neem is Beneficial in Fever in Hindi)

1. नीम के अन्तर छाल का चूर्ण, सोंठसों तथा मीर्च का काढ़ा विषम ज्वर में देने से लाभ होता है। इसमें नीम के तेल की मालिश करने तथा प्रमाण से रोगी को पिलाने से भी लाभ होता है। छाल की अपेक्षा तेल का प्रभाव जल्द होता बताया गया है। सूजनयुक्त ज्वर या उष्मज्वर में नीम का छाल अधिक उपयोगी पाया गया है। नीम पत्तों को पीस-छान कर भी रोगी को पिलाया जा सकता है। ये सारी औषधियाँ रोगी को कुछ खिलाने से पहले दी जानी चाहिए।

2. मलेरियस ज्वर में नीम तेल की 5-10 बूंद दिन में दो बार देने से अच्छा लाभ होते देखा गया है। जीर्ण ज्वर में नीम का छाल एक तोला 10 छटांक पानी में औंटकर जब एक छटाक रह जाय तो छानकर प्रात: काल पिलाने से कुछ ही दिनों में अन्दर रहने वाला ज्वर विल्कुल निकल जाता है।

3. तेज सिहरनयुक्त ज्वर के साथ कै होने पर नीम की पत्ती के रस शहद एवं गुड़ के साथ देने से लाभ होता है। नीम का पंचांग (पता, जड़ फूल, फल और छाल) को एक साथ कूटकर घी के साथ मिलाकर देने से भी लाभ होता है। यह सुश्रुत एवं काश्यप का मत है।

4. साधारण बुखार में नीम की पत्तियाँ पीस कर दिन में तीन बार पानी में छानकर पिलाने से बुखार उतर जाता है। साधारण या विषम ज्वर में नीम के पत्तों की राख रोगी के शरीर पर मालिश करना लाभदायक होता है।

5. 50 ग्राम नीम के जड़ की अन्दर के छाल को मोटा-मोटा कूट लें। इसे 600 मिली पानी में 18 मिनट तक उबाल कर छान लें। तेज बुखार में जब किसी दवाई से लाभ न हो तो इस काढ़े को 40 से 60 मिली की मात्रा में बुखार चढ़ने से पहले 2-3 बार पिलाने से लाभ होता है।

6. नीम की छाल, मुनक्का और गिलोय को बराबर भाग मिला लें। 100 मिली पानी में काढ़ा बना कर 20 मिली की मात्रा में सुबह, दोपहर तथा शाम को पिलाने से बुखार में लाभ होता है।

7. 20-20 ग्राम नीम, तुलसी तथा हुरहुर के पत्ते तथा गिलोय और छह ग्राम काली मिर्च को मिला लें। इसे महीन पीसकर पानी के साथ मिलाकर 2.5-2.5 ग्राम की गोली बना लें। 2-2 घंटे के अन्तर पर 1-1 गोली गर्म पानी से सेवन करने से बुखार जल्द ही ठीक हो जाएगा।

मलेरिया में नीम से लाभ (benefits of neem in malaria)

1.  मलेरिया मुख्यत: मच्छरों के काटने से होता है। सर्दी, कंपकपाहट, तेज बुखार, बेहोशी, बुखार उतरने पर पसीना छूटना, इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग में नीम के तने की छाल का काढ़ा दिन में तीन बार पिलाने अथवा नीम के जड़ की अन्तर छाल एक छटाक 60 तोला पानी में 18 मिनट तक उबालकर और छानकर ज्वर चढ़ने से पहले 2-3 बार पिलाना चाहिए, इससे ज्वर उतर जाता है।

2. नीम वृक्ष मलेरिया-रोधी के रूप में प्रसिद्ध है। इसकी छाया में रहने और इसकी हवा लेने वालों पर मलेरिया का प्रकोप नहीं होता, यह ग्रामीण अनुभव है। इस वृक्ष के आस-पास मलेरिया तथा अन्य संक्रामक बीमारियों के वायरस भी जल्दी नहीं आते। यह वायरस- विरोधी (anti Viral) वृक्ष है। अत: घर के आस-पास नीम वृक्ष लगाने और स्वच्छता रखने की सलाह दी जाती है।

3. नीम तेल में नारियल या सरसो का तेल मिलाकर शरीर पर मालिश करने से (neem ka upyog)  भी मच्छरों के कारण उत्पन्न मलेरिया ज्वर उतर जाता है।

रक्त विकार में नीम से फायदा (Neem Purifies Blood in Hindi)

1. नीम के पंचांग को पानी में कूट-छानकर 10-10 मिली की मात्रा में 15-15 मिनट के अंतर से पिलाएं। इसके साथ ही प्लेग की गाँठों पर इसके पत्तों की पुल्टिस (गीली पट्टी) बाँधें तथा आसपास इसकी धूनी करते रहने से प्लेग में लाभ होता है।

2. 10 ग्राम नीम के पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन करने से खून की गर्मी में लाभ होता है।

3. 20 मिली नीम के पत्ते का रस और अडूसा के पत्ते का रस में मधु मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से खून साफ होता है।

4. नीम का काढ़ा या ठंडा रस बनाकर 5-10 मिली की मात्रा में रोज पीने से खून के विकार दूर होते हैं।

प्लेग में नीम से लाभ (benefits of neem in plague)-

1. मिट्टी, जल और वायु के प्रदूषण से इसके कीटाणु (पिप्सू) संक्रमित होते हैं, जो पहले चूहों में लगते हैं, फिर चूहों से मिट्टी, खाद्य पदार्थ, जल एवं वायु के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश करते हैं। तेज बुखार, साँस लेने में कठिनाई, खून की उल्टियाँ, आँत में दर्द, बगल तथा गले में सूजन अथवा गांठे पड़ जाना इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। आयुर्वेद में इसे ग्रन्थिक या वातलिकार ज्वर कहा जाता है। यह बहुत तेजी से फैलता है। इसके वायरस शरीर की कोशिकाओं को नष्ट कर व्यक्ति को अपनी चपेट में तुरन्त ले लेते हैं।

2. प्लेग फैलते ही स्वस्थ लोगों को नीम के पत्ते पीस कर नित्य पीते रहना चाहिए, इससे प्लेग का उनपर असर नही होता। प्लेग के शिकार रोगी को नीम का पंचाग (बीज, छाल, पत्ता, फूल, गोद) कूटकर पानी मे छानकर दस-दस तोले की मात्रा हर पन्द्रह मिनट पर देनी चाहिए। तत्काल नीम के पांचों अंग न मिले तो जो भी मिले उसी को देना चाहिए।

3. शरीर के जोड़ों पर नीम की पत्तियों की पुल्टिस बांधने तथा आस-पास नीम की लकड़ी-पत्तों की घूनी करने से भी प्लेग का शमन होता है।

हैजा में नीम से लाभ (benefits of neem in cholera)

1. हैजा 'विब्रियो कैलेरा' नामक जीवाणु से संक्रमित होता है। कूड़े-कचड़ों के सड़न में इनका निवास अधिक होता है। इस बैक्टेरिया से ग्रस्त व्यक्ति अपने मल द्वारा हैजे के करोड़ों जीवाणु वातावरण में छोड़ता है, उससे जल, मिट्टी, खाद्य पदार्थ तथा वायु संक्रमित होते हैं। मक्खियाँ भी इसके संवाहक बनती हैं। उल्टी-दस्त, हाथ-पांव में ऐठन और तेज प्यास इसके प्रमुख लक्षण हैं।

2. नीम के पत्तों को पीसकर, गोला बनाकर तथा कपड़े में बांधकर ऊपर सनी हुई मिट्टी का मोटा लेप चढ़ाकर उसे आग के धूमल (भभूत) में पकाना चाहिए, जब वह लाल हो जाय तब थोड़ी-थोड़ी देर पर उस पके हुए गोले को अर्क गुलाब के साथ रोगी को देने से दस्त, वमन एवं प्यास रूकता है।

3. नीम तेल की मालिश से शरीर का ऐंठनऐं कम होता है। हैजे में नीम तेल पानी के साथ पीने से भी लाभ होता है। नीम छाल का काढ़ा पतले दस्त में भी लाभकारी होता है।

विषों के प्रभाव में नीम का प्रयोग (Neem Reduces Poisson’s Effect in Hindi)

1. दो भाग निबौली में 1-1 भाग सेंधा नमक तथा काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। 1-2 ग्राम चूर्ण में शहद या घी मिलाकर सेवन करने से वनस्पति तथा तीव-जंतु के विष के प्रभाव नष्ट होते हैं।

2. कई वर्षों तक लगातार हर साल 10-15 दिन तक नीम की पत्तियों का सेवन किये हुए व्यक्ति को सर्प, बिच्छू आदि के विष का असर नहीं होता। नीम बीज का चूर्ण गर्म पानी के साथ पीने से भी विष उतरता है।

3. 8-10 पकी व कच्ची निबौलियों को पीसकर गर्म पानी में मिलाकर पिलाने से उलटी हो जाती है। यह मृदु विरेचक है।

4. इससे अफीम, संखिया, वत्सनाभ आदि के विषों का असर जल्द ही खत्म हो जाता है।

5. कहा जाता है कि जब सूर्य मेष राशि में हो तब नीम के पत्ते (Benefits of Neem Leaves In Hindi) साग के साथ मसूर की दाल सेवन करने से एक वर्ष तक विष से कोई डर नहीं रहता तथा विषैले जन्तु के काटने पर भी कोई प्रभाव नहीं होता है।

सूजन, लकवा, चोट-मोच में नीम से लाभ (Benefits of neem in swelling, paralysis, bruises and sprains)

1. नीम के छाल का अर्क २ से ४ तोले तक नित्य पीने और इसके सेवन के २ घंटे बाद तत्काल बनी रोटी घी के साथ खाने से लकवा अर्द्धांश में लाभ होता है। पक्षाघात वाले अंगों पर नीम तेल की मालिश करने की भी सलाह दी जाती है।

2. चोट लगने के कारण आयी मोच और गिल्टियों के सूजन पर नीम की पत्तियों का बफारा देने से लाभ होता है।

अरूचिनाश तथा शुद्धिकरण में नीम से लाभ (Benefits of Neem in detoxification and purification)

1. पुराने देशी घी या तेल को शुद्ध करने के लिए गर्म करते समय नीम की पत्तियाँ डाली जाती हैं।

2. नीम की कोमल पत्तियाँ घी में भूनकर खाने से भयंकर अरूचि भी नष्ट होती है।

3. अधिक नीम के सेवन से उत्पन्न हुए विकार दूध या सेंधा नमक खाने से दूर होते हैं।

4. नीम की पत्तियों से उबला जल या नीम तेल पानी में मिलाकर फर्श धोने से वातावरण शुद्ध होता है।

जले-कटे में नीम से लाभ (Benefits of neem in burns)

1. आग से जले स्थान पर नीम का तेल लगाने अथवा नीम तेल में नीम पत्तों को पीस कर छापने से शान्ति मिलती है। नीम में प्रदाहकरोधी (anti-inflammatory) गुण होने के कारण ऐसा होता है।

2. नीम के तेल एवं पत्तियों में anticeptic गुण होते हैं। कटे स्थान पर इनका तेल लगाने से टिटनेस का भय नहीं होता।

3. नीम की पत्ती को पानी में उबाल कर उसमें जले हुए अंग को डुबोने से भी शीघ्र राहत मिलती है।

सिर के दर्द में लाभकारी है नीम (Benefits of Neem for Relief from Headache in Hindi)

1. नीम तेल को ललाट पर लगाने से सिर का दर्द ठीक होता है।

2. सूखे नीम के पत्ते, काली मिर्च और चावल को बराबर मात्रा में मिलाकर बारीक चूर्ण बना लें। सूर्योदय से पहले सिर के जिस ओर दर्द हो, उसी ओर की नाक में इस चूर्ण को एक चुटकी भर नाक में डालें। इससे आधासीसी (अधकपारी) के दर्द यानी माइग्रेन में जल्द लाभ (neem ka upyog) होता है।

धवल रोग  में नीम से लाभ (Neem is Beneficial Leucoderma)

1. शरीर के विभिन्न भागों में चकते के रूप में चमड़ी का सफेद हो जाना, फिर पूरे शरीर की चमड़ी का रंग बदल जाना, धवल रोग है। इसका स्वास्थ्य पर कोई असर नहीं पड़ता, इसके होने का कारण भी बहुत ज्ञात नहीं, किन्तु यूनानी चिकित्सा का मत है कि यह रक्त की खराबी, हाजमें की गड़बड़ी, कफ की अधिकता, पेट में कीड़ों के होने, असंयमित खान-पान, मानसिक तनाव, अधिक एंटीबायोटिक दवाइयों के सेवन आदि से होता है।

2. नीम की ताजी पत्ती के साथ बगुची का बीज (Psora corylifolia) तथा चना (Circerarietinum) पीसकर लगाने से यह रोग दूर होता है।

गठिया रोग में नीम से फायदा (Benefits of Neem in Gout Disease in HIndi)

1. 20 ग्राम नीम के अन्दर की छाल को पानी के साथ खूब महीन पीसकर दर्द के स्थान पर गाढ़ा लेप करें। सूख जाने पर लेप उतार कर दुबारा लेप करें। इससे 3-4 बार में ही जोड़ों के दर्द में आराम होता है।

2. नीम के बीज के तेल की मालिश करने से आमवात यानी गठिया में लाभ होता है।

3. नीम के बीज के तेल की कुछ बूँदों को पान में लगाकर खिलाने से तथा रास्नादि काढ़े में इसकी 30 बूँदें डाल कर पिलाने से ऐंठन तथा कई तरह के वात-विकार दूर हो जाते हैं।

नीम के इस्तेमाल से हाथीपाँव रोग में लाभ (Benefits of Neem in Elephantiasis in Hindi)

नीम की छाल और खदिर 10-10 ग्राम को 50 मिली गोमूत्र में पीसकर छान लें। इसमें 6 ग्राम मधु मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाने से हाथीपाँव या फाइलेरिया रोग में लाभ होता है।

पथरी की बीमारी में नीम के पत्ते असरदार (Neem Leaf Benefits in Cure Kidney Stone in Hindi)

1. नीम के पत्तों की 500 मिग्रा राख को कुछ दिनों तक लगातार जल के साथ सेवन करें। इसे दिन में 3 बार खाने से पथरी टूटकर निकल जाती है।

2. दो ग्राम नीम के पत्तों को 50 से 100 मिली तक पानी में पीस-छानकर डेढ़ मास तक पिलाते रहने से पथरी टूटकर निकल जाती है। इसे सुबह, दोपहर तथा शाम लेना होता है।

नीम के उपयोग से सुखते हैं स्तनों के घाव (Neem Uses in Healing Nipple Wounds in Hindi)

50 मिली सरसों के तेल में 25 ग्राम नीम के पत्ते को पकाकर घोट लें। नीम के पत्ते के काढ़े से घाव को धोकर पोछ लें। उसके वाद राख मिला तेल लगा दें तथा कुछ सूखी राख ऊपर से लगाकर पट्टी बाँध दें। 2-3 दिन में काफी आराम हो जाता है। इसके बाद रोज नीम के काढ़े से धोकर नीम तेल लगाते रहें। घाव तुरंत भरकर सूख जाएगा।

नीम के सेवन से एसिडिटी में फायदा (Neem Benefits in Acidity Problem in Hindi)

1. नीम की सींक, धनिया, सोंठ और शक्कर सभी 6-6 ग्राम को एक साथ मिला लें। इसका काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से खट्टी डकारें, अपच तथा अत्यधित प्यास लगने की समस्या दूर होते हैं।

2. नीम पंचांग का महीन चूर्ण एक भाग, विधारा चूर्ण 2 भाग तथा सत्तू 10 भाग तीनों को मिलाकर रखें। उचित मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से एसिडिटी में लाभ होता है। पित्त यानी एसिडिटी के कारण होने वाले बुखार में भी यह प्रयोग लाभकारी है।

पेट दर्द में नीम का उपयोग लाभदायक (Neem Benefits in Cure Stomach Pain in Hindi)

40-50 ग्राम नीम की छाल को जौ के साथ कूटकर 400 मिली जल में पकाएं व इसमें 10 ग्राम नमक भी डाल दें। आधा शेष रहने पर गुनगुना कर पिलाने से पेटदर्द में आराम होता है।

लू की जलन में नीम से लाभ (Neem Benefits in Heat Stroke in Hindi)

1. नीम के पंचांग (पत्ता, जड़, फूल, फल एवं छाल) तथा मिश्री एक-एक तोला पानी के साथ पीसकर पीने से लू का प्रभाव नष्ट होता है। नीम की पत्ती पीसकर नीम के रस के साथ माथे पर छापने से भी लू का असर कम होता है।

2. चैत्र में दस दिन तक नीम की कोमल पत्ती एवं काली मिर्च पीने वाले व्यक्ति को गर्मी में लू नहीं लगती, शरीर में ढंठक बनी रहती है, कोई फोड़ा-फूंसी, चर्मरोग भी नहीं होता। (neem ka upyog)

एड्स रोग में नीम (Neem Benefits in Aids in Hindi)

कुछ ही वर्ष पहले नीम से असाध्य रोग एड्स के वायरस (एच.आई.वी.) प्रतिरोधी कुछ एनजाइम्स की खोज की गई है। भविष्य में नीम से बने एड्स विरोधी टीके आने वाले हैं। नीम छाल से एक ऐसा रसायन तैयार किया गया है जो एड्स को रोकने में काफी प्रभावकारी सिद्ध हुआ है।

नीम के नुकसान तथा सावधानियां (Side Effects & Precautions of Neem)

नीम के नुकसान (neem ke nuksan) भी हो सकते हैं-

1. एक स्वस्थ व्यक्ति को अनावश्यक रूप से नीम का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए, इससे नपुंसकता आती है। बहुत से साधु-संत प्रबल कामशक्ति को जीतने के लिए बारहो मास नीम का सेवन करते हैं। प्रात:काल उषापान करने वाले स्वस्थ व्यक्ति को नीम का अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। नीम का दातुन इसमें अपवाद है।

2. सुबह-सवेरे उठकर मद्यपान (शराब का सेवन) करने वालों को भी इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

3. नीम के खाने से कोई परेशानी हो रही हो तो सेंधा नमक, घी और गाय का दूध इसके दुष्प्रभाव को दूर करते हैं।

नीम कहाँ पाया या उगाया जाता है? (Where is Neem Tree Found or Grown?)

भारत में नीम (neem ka ped) की सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश में है। इसके बाद क्रमशः तमिलनाडू, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान आदि प्रदेशों में पाया जाता है| यह मुख्यतः मैदानी भागों, सड़कों के किनारे, खेतों की मेड़ों पर, गांवों के आसपास एव खाली जमीन पर प्राकृतिक रूप से ही पैदा हो जाता है। अब सम्पूर्ण भारत में उगाया भी जाने लगा है|

नीम मूलतः भारतवर्ष यानी वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बंग्लादेश व म्यांमार का वृक्ष है| इसके बहुउपयोगी गुणों के कारण दक्षिण-पूर्वी एशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, मध्य अमेरिका के राज्यों, श्रीलंका, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि सहित कैरिबियन देशों में भी इसे उगाया जाने लगा है।

नीम का पेड़ सूखे के प्रतिरोध के लिए विख्यात है। सामान्य रूप से यह उप-शुष्क और कम नमी वाले क्षेत्रों में फलता है जहाँ वार्षिक वर्षा 400 से 1200 मिमी के बीच होती है। यह उन क्षेत्रों में भी फल सकता है जहाँ वार्षिक वर्षा 400 मिमी से कम होती है पर उस स्थिति में इसका अस्तित्व भूमिगत जल के स्तर पर निर्भर रहता है। नीम कई अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में विकसित हो सकता है, लेकिन इसके लिये गहरी और रेतीली मिट्टी जहाँ पानी का निकास अच्छा हो, सबसे अच्छी रहती है।

यह उष्णकटिबंधीय और उपउष्णकटिबंधीय जलवायु में फलने वाला वृक्ष है और यह 22-32° सेंटीग्रेड के बीच का औसत वार्षिक तापमान सहन कर सकता है। यह बहुत उच्च तापमान को तो बर्दाश्त कर सकता है, पर 4 डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में मुरझा जाता है। नीम एक जीवनदायी वृक्ष है विशेषकर तटीय, दक्षिणी जिलों के लिए। यह सूखे से प्रभावित (शुष्क प्रवण) क्षेत्रों के कुछ छाया देने वाले (छायादार) वृक्षों में से एक है। यह एक नाजुक पेड़ नहीं हैं और किसी भी प्रकार के पानी मीठा या खारा में भी जीवित रहता है।

तमिलनाडु में यह वृक्ष बहुत आम है और इसको सड़कों के किनारे एक छायादार पेड़ के रूप में उगाया जाता है, इसके अलावा लोग अपने आँगन में भी यह पेड़ उगाते हैं। शिवकाशी (सिवकासी) जैसे बहुत शुष्क क्षेत्रों में, इन पेड़ों को भूमि के बड़े हिस्से में लगाया गया है और इनकी छाया में आतिशबाजी बनाने के कारखाने का काम करते हैं।

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