प्रो. ब्यूरी ने लिखा है कि "इतिहास विज्ञान है, न कम और न अधिक।" कालिंगवुड का कथन है कि इतिहास एक प्रकार का शोध है, इसका सम्बन्ध विज्ञान से है। जिस प्रकार विज्ञान में प्रकृति-सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है, उसी प्रकार मानव-समाज के जीवन सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर इतिहास से प्राप्त होता है। वाल्श के अनुसार इतिहास एक वैज्ञानिक अध्ययन है। इसकी अपनी विधि तथा तकनीक है। अन्य वैज्ञानिक विषयों की भाँति इतिहास-अध्ययन की अपनी विधियाँ तथा नियम हैं। विज्ञान की भाँति इतिहास में वस्तुनिष्ठ यथार्थता का अन्वेषण क्रमबद्ध विधियों एवं नियमों के माध्यम से किया जाता है। अत: इतिहास भी एक क्रमबद्ध विज्ञान है।
विज्ञान प्रकृति का अध्ययन है, प्रकृति के परिवेश में मानवीय कार्यों एवं उपलब्धियों का अध्ययन इतिहास में होता है। मनुष्य प्रकृति, भौगोलिक परिस्थिति तथा वातावरण के अनुसार कर्य करता है। इतिहास तथा विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। इतिहास मनुष्य के संगठित सामाजिक समूहों के सभी पहलुओं (आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि) का अध्ययन है।
इतिहास का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध |
दूसरे शब्दों में, इतिहास मनुष्य के संगठित सामाजिक
समूहों के सभी पहलुओं का अध्ययन है। इसे अन्य विज्ञानों से सम्बद्ध करने का कार्य
मुख्यत: डार्विन ने किया है। मानव-समाज के अध्ययन की दृष्टि से इतिहास
समस्त समाज विज्ञानों से घनिष्ठता से सम्बद्ध है।
1. इतिहास और समाज
विज्ञान-
सामाजिक विज्ञान में वे सभी विषय आते हैं
जिनका सम्बन्ध सामान्यत: समाज से होता है। इतिहास को इस आशय से
सामाजिक विज्ञान का ही अंग माना जाना चाहिए। सामाजिक विज्ञान प्राकृतिक
विज्ञान के अनुकरण में प्रत्यक्ष विधियों के सामान्य नियम निकालना चाहता है जिनके
विषय में सम्भावना है कि वे कभी इतिहास की सहायक सामग्री बन सकते हैं।
सामाजिक विज्ञान में केवल अर्थशास्त्र ही कुछ विशेष महत्त्व स्थापित कर
पाया है। यदि वास्तविक समाज विज्ञान सम्भव है, तो वह ऐतिहासिक ही
होगा। ऐतिहासिक सामाजिक विज्ञान का मूल स्रोत है- राजनीति। अर्थशास्त्र तथा
समाजशास्त्र इसकी प्रस्फुटित शाखाएँ हैं।
लेबनित्स और उसके बाद के प्रयासों
से इतिहास भी सामाजिक विज्ञान की श्रेणी में आ सका है। सामाजिक विज्ञानों का गठन
19वीं सदी में हुआ जिसमें कार्ल मार्क्स का महत्त्वपूर्ण योगदान है। सामाजिक
विज्ञान के क्षेत्र का अभी भी नये-नये विषयों की खोज करके विस्तार किया जा रहा
है। इतिहास का सम्बन्ध सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत आने वाले प्रायः सभी
विषयों से किसी न किसी प्रकार से अवश्य है।
डिल्थे ने भी इतिहास को सामाजिक
विज्ञान बनाने का प्रयास किया। उसने प्राकृतिक विज्ञान और मानवीय विज्ञान में
अन्तर स्पष्ट किया। उसके अनुसार ज्ञान के दो मार्ग हैं—प्रकृति के ज्ञान के लिए
विज्ञान और मानव सम्बन्धी ज्ञान के लिए इतिहास। डिल्थे का कहना है कि
इतिहास ही इस प्रकार के ज्ञान का एकमात्र स्रोत है क्योंकि मनुष्य एक जीवन
प्रक्रिया के बीच में स्थित है, वह स्थिर नहीं है
और साथ ही इतिहासकार भी समान रूप से जीवन-प्रक्रिया के बीच में स्थित है। मनुष्य
मुख्यतः ऐतिहासिक जीव है। डिल्थे के अनुसार इतिहास आत्मप्रकाशकीय है।
डॉ.
गोविन्दचन्द्र पाण्डेय के अनुसार, "डिल्थे ने प्राकृतिक और मानवीय विज्ञान के बीच जो मूलभूत अन्तर
बनाया, वह उचित था। यह भी ठीक है
कि उसने इतिहास को निर्वैयक्तिक अध्ययन बनाने की चेष्टा की। आधुनिक इतिहास का
विकास प्राकृतिक विज्ञानों के साथ हुआ है तथा इसने सदैव ठोस अविकार्य तथ्यों में
रुचि रखी है। इतिहास कल्पना नहीं है, इतिहास की पुस्तक उपन्यास से भिन्न है। यह 'वास्तव में क्या घटा' इसे समझने का प्रयास है।
इसे एक प्रकार की निर्वैयक्तिकता की प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए।"
2. इतिहास और
प्राकृतिक विज्ञान-
इतिहास को प्राकृतिक विज्ञान
मानने की इच्छा के अनेक कारण हैं। इतिहास में तथ्यों से सम्बद्ध होने का
आग्रह रहता है। तथ्यों की स्थापना, अनुसंधान आदि के विषय में वैज्ञानिक पद्धति सर्वाधिक सफल
रही है, अतः स्वाभाविक है कि
इतिहास में भी इसको अपनाया जाए, प्रत्यक्षवादियों का यही मत है। उनके
मतानुसार मनुष्य भी प्राकृतिक जगत् का एक अंग है। व्यक्ति की मूलभूत भौतिक एवं
शारीरिक आवश्यकताओं में आदिकाल से कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है। मनुष्य के
सामूहिक कार्य-व्यापारों की पूर्णत: यान्त्रिक रूप से व्याख्या की जा सकती है।
18वीं तथा 19वीं
शताब्दी में वैज्ञानिकों की यह धारणा थी कि न्यूटन के गति नियम, आकर्षण शक्ति का नियम, बायल का विकास का नियम
आदि प्राकृतिक नियमों का आविष्कार हो चुका है तथा ये पूर्णतः स्थापित वैज्ञानिक
नियम बन चुके हैं। अब वैज्ञानिकों का काम है कि वे अध्ययन से प्राप्त तथ्यों
के आधार पर निगमनात्मक पद्धति से इसी प्रकार के दूसरे नियमों की स्थापना
करें। समाज वैज्ञानिकों ने भी अपने अध्ययन को विज्ञान का दर्जा दिलाने के लिए ऐसे
नियमों की खोज की।
3. इतिहास और
चिकित्सा विज्ञान-
चिकित्सा विज्ञान मानवीय
इतिहास के अधिक निकट है। इसमें भिन्न-भिन्न लोगों का भिन्न-भिन्न वातावरण में
अध्ययन किया जाता है तथा उनके मध्य जो सामान्यता है, उसका पता लगाकर विश्लेषण किया जाता है। ऐसा करने से सामान्यीकरण
सम्भव होते हैं। एक बीमारी' घटनाओं का क्रम
होती है। इसकी नियमितता के आधार पर यह पता लगाया जा सकता है कि यह कैसे प्रारम्भ
होती है तथा यह कैसे निरन्तर बनी रहती है। मानवीय ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ हम
बीमारी के कारणों को जान जाते हैं तथा समान परिस्थितियों में उनकी पुनरावृत्ति
करके भी देख सकते हैं। कुछ बीमारियाँ ऐसी हैं जिनके कारण अज्ञात हैं तथा उनका उपचार
सम्भव नहीं है। इतने पर भी निकट के पर्यवेक्षण द्वारा जो घटा है, उसे देखकर सही-सही
रिकार्ड रखना तथा व्यवस्थित रूप से विश्लेषण करना महत्त्वपूर्ण है।
4. इतिहास और
सांख्यिकी-
सांख्यिकी द्वारा अल्पकाल में ही
जोड़-बाकी करके संख्या या अंक का निर्धारण कर दिया जाता है। इतिहास में सांख्यिकी
का प्रयोग आरम्भ होने से अब इतिहासकारों ने अनुमानित संख्या के स्थान पर निश्चित
संख्या लिखना आरम्भ कर दिया है। कम्प्यूटर के प्रयोग से यह और भी सरल हो
गया है। प्रो. लारेंस स्टोन के अनुसार, "सांख्यिकी माप से अनिश्चितता दूर हो जाती है तथा सार रह
जाता है, असार हट जाता है। इसके
अभाव में सामाजिक तथ्यों का सामान्यीकरण गलत हो सकता है।"
5. इतिहास और
मनोविज्ञान-
व्यक्ति और समाज इतिहास
के विषय हैं, जबकि इनकी प्रवृत्तियाँ मनोविज्ञान
का विषय हैं। उन प्रवृत्तियों एवं कार्यवाहियों का विश्लेषण करते समय इतिहासकार मनोवैज्ञानिक
अन्तर्दृष्टि की सहायता लेता है। प्रो. मार्विक ने लिखा है कि
"ऐतिहासिक समस्याओं के बौद्धिक विश्लेषण के लिए कुछ परिस्थितियों में सामाजिक
मनोविज्ञान आवश्यक है।" दूसरी ओर ध्यान देने पर हम यह पाते हैं कि इतिहास के
निर्णयों पर स्वयं इतिहासकार के व्यक्तिगत जीवन और वहाँ के वातावरण का
प्रभाव पड़ता है और ये दोनों ही मनोविज्ञान की परिधि में आते हैं।
दोनों विषयों का
सम्बन्ध इस बात से भी स्पष्ट है कि पहले युद्ध के कारण पर ध्यान दिया जाता था, परिणाम पर ध्यान नहीं
दिया जाता था,
किन्तु अब मनोविज्ञान
के प्रभाव में आने पर परिणामों पर गम्भीरता से विचार करके युद्ध की रूपरेखा तैयार
की जाती है। अन्य उदाहरण यह है कि समूह-मनोविज्ञान को समझकर ही इतिहासकार विभिन्न
क्रान्तियों में जनता के योगदान का निश्चय कर सकता है। इस तरह हम देखते हैं कि
मनोविज्ञान ने इतिहास के पारस्परिक अध्ययन-पद्धति को बदल दिया है।
प्रो. बोन ने लिखा है कि
"इतिहास मनोविज्ञान को पर्याप्त सामग्री प्रदान करता है। मानव सभ्यता का
आदिकाल से आज तक का इतिहास मनोविज्ञान की विषय-सामग्री है। मनोवैज्ञानिक मानव की
प्रवृत्तियों और कार्यवाहियों का अध्ययन करता है। ऐसा करके वह इतिहासकार के लिए
परिस्थितियों में आचरण प्रतिमानों को प्रस्तुत करता है। इसी तरह इतिहास भी
मनोविज्ञान से मानव-प्रवृत्तियों, कार्यवाहियों तथा
आस्थाओं का अध्ययन करता है।"
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