Heade ads

ऐतिहासिक शोध में समीक्षा, कल्पना, सन्देह, विश्लेषण, दृढ़ निश्चय और पूछताछ

ऐतिहासिक शोध की धारणाएँ

प्रत्येक विषय के अध्ययन तथा शोध-कार्य में बहुत से तकनीकी शब्द आते हैं। एक शोधार्थी को उनको इस्तेमाल करने के लिए उन प्रत्येक के अर्थ को पूर्णतया समझने की आवश्यकता होती है। डॉ. बी. शेख अली लिखते हैं, "नैतिक, बौद्धिक और ऐतिहासिक क्षेत्र के व्यावहारिक ज्ञान के साथ एक विद्वान को आवश्यक दक्षता की आवश्यकता होती है, यदि वह कुंछ निश्चित विचारधाराओं के वास्तविक महत्त्व पर जागरूक नहीं है।"

समीक्षा-

इतिहास लेखन में समीक्षा' शब्द अत्यधिक महत्त्व रखता है। प्रायः इस शब्द का उपयोग प्रतिकूल या नकारात्मक अर्थों में किया जाता है और केवल किताब को कमजोरी तथा कमियाँ ही निकालने में इसका उपयोग किया जाता है लेकिन वास्तव में, समीक्षा का अर्थ केवल समीक्षा की खातिर समीक्षा करना नहीं है और शोधार्थी की कृति की गलतियाँ निकालने तथा बेकार ठहराने में नहीं है, अथवा नोट बनाने में मतान्तर होना नहीं है।

ऐतिहासिक शोध में, इसका अर्थ विशेष है कि समीक्षा सत्य को स्थापित करने के लिए अत्यन्त उपयोगी उपकरण है। यह गलत तथा सही, उचित तथा मनगढन्त के बीच सीमा रेखा खींचती है। डॉ. अली टिप्पणी करते हैं, "गलतियाँ तथा भ्रम को दूर करने और एक दस्तावेज की सत्यता या यथार्थता की गणना करने हेतु, यह विद्वान के हाथों में एक हथियार है। वस्तुतः समीक्षा गलतियों को दूर करने की एक विधि तथा उपलब्ध स्रोत सामग्री की मदद से तथ्यों को स्थापित करना है। वास्तव में, कहा जाये कि समीक्षा एक नाजुक विभाग है जो शोध को सत्य स्थापित करने और नकली या खोटे को नकारने योग्य बनाता है।

कल्पना-

कल्पना भी एक शोधार्थी के अधिकार में महत्त्वपूर्ण तथा उपयोगी हथियार है। यह एक सृजनात्मक विभाग है और शोध-कार्य की गुणवत्ता विद्वान की बुद्धिमत्ता पर निर्भर करती है जो कि शोध-कार्य में लिप्त है। यह उसके सोचने की क्षमता का एक भाग है। इतिहास की प्रकृति के अनुसार कल्पना सबसे अधिक आवश्यक तत्त्व है। इसके बिना न तो समीक्षा और न ही विश्लेषण एक वैध भूमिका निर्वाह कर सकते हैं। कड़ियाँ, जो खो गयी हैं, कल्पना की सहायता से भरी जा सकती हैं।

डॉ. बी. शेख अली भी लिखते हैं, "लेकिन ऐतिहासिक कल्पना, तर्क और कारण के ढाँचे के साथ नियन्त्रित होती है। तर्क के आधार पर केवल अनुमान ही लगाये जा सकते हैं। लेकिन बिना कल्पना के इतिहास की प्रवृत्ति को कभी भी स्पष्ट नहीं किया जा सकता।"

वास्तव में, यह अत्यन्त आवश्यक है कि कल्पना को उपयोगी बनाया जाये, जबकि हम इतिहास की वास्तविक प्रवृत्ति को समझने जा रहे हैं। चूँकि कल्पना साहित्य के साथ-साथ इतिहास की जरूरत है, अत: इतिहास साहित्य के अधिक समीप आता है।

सन्देह-

इसमें सन्देह नहीं कि इतिहास में, सन्देह आधारभूत मत है। जिसका परिणाम दृढनिश्चय या विश्वास में है। आरम्भ में, एक इतिहासकार प्रत्येक घटना पर सन्देह करता है, लेकिन एक इतिहासकार का लक्ष्य अभिलेखों की विश्वसनीयता पर आधारित सत्य की स्थापना करना है। वस्तुतः एक सन्देह को सत्य में परिवर्तित करना अत्यन्त कठिन कार्य है। लेकिन वास्तव में इतिहासकार का उद्देश्य समीक्षा, दस्तावेजों, बहस या तर्क के आधार पर इसे सिद्ध करना है।

aitihasik-shodh-vidhiyan, ऐतिहासिक शोध में विश्वसनीयता और वैधता का क्या अर्थ है,
ऐतिहासिक शोध

आरम्भ में, सारे अभिलेख तथा आँकड़ें पूर्वाग्रहमय तथा पक्षपातपूर्ण दिखायी पड़ते हैं लेकिन ऐतिहासिक निरीक्षण के बाद सन्देह दूर हो जाते हैं और कुछ मामलों में सत्य स्थापित हो जाता है। जैसा कि इतिहास को एक विज्ञान कहा गया है हमें अपने लक्ष्य को नकारना नहीं चाहिए और जहाँ तक सम्भव हो वस्तुपरकता स्वीकार ग्रहण करनी चाहिए। यहाँ तक कि सरकारी अभिलेख कभी-कभी फर्जी होते हैं और तथ्यों को छिपाया जाता है या उनकी असफलतओं को छिपाने के लिए मिथ्या विवरण दिया जाता है। अतः उनकी अधिक विश्वसनीयता सन्देहपूर्ण है। इसलिए एक इतिहासकार का सन्देह को दूर कर सत्य की स्थापना करना एक परन कर्तव्य है।

वास्तव में, इतिहासकार के उद्देश्य की अधिक जानकारी इतिहास तथा दर्शनशास्त्र के अध्ययन की अन्य शाखाओं और इतिहास के मध्य भेद करती हैं।

विश्लेषण-

पहले, ऐतिहासिक घटनाओं का विश्लेषण एक इतिहासकार या विद्वान का कार्य नहीं समझा जाता था। इतिहास एक विवरणात्मक तथा वृत्तान्तक विषय माना जाता था और शोध-कार्य का स्तर घटना के कालानुक्रम तथा सरल वृत्तान्त पर आधारित होता था लेकिन वर्तमान में, विश्लेषण पर अधिक ध्यान दिया जाता है और इसे शोधकर्ता के मददगार हथियार के रूप में माना जाता है। एक शोधार्थी की योग्यता उसके विश्लेषण की क्षमता के ऊपर निर्भर करती है। यह क्षमता तथा योग्यता एक इतिहासकार को उचित ढंग से समस्या पर प्रकाश डालना सिखाती है। तथ्यों की पूर्ण महत्तता समस्या विश्लेषण तथा व्याख्या से जानी जा सकती है।

अतः आजकल, विश्लेषण को ऐतिहासिक शोध का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। एक सक्षम विद्वान अथवा शोधकर्ता समस्या के छिपे हुए विचार को समझा सकते हैं, इसके लिए उसे निरीक्षण करना पड़ेगा। अधिकांश इतिहास में सारी घटनाओं और समस्याओं का, विश्लेषणात्मक तथा समालोचनात्मक दृटि से मूलयांकन करने की आवश्यकता होती है। एक विश्लेषणात्मक दृष्टि एक इतिहासकार को, विभिन्न ढंग से उसी सिद्धान्त को स्थापित करने योग्य बनाती है। अत: एक इतिहासकार को विश्लेषणात्मक दृष्टि रखना अति आवश्यक है लेकिन यदि इतिहासकार की पहुंच वास्तविक नहीं है तो वह अध्ययन के उद्देश्य को नष्ट कर देगी और गलत और भ्रमित अथवा पक्षपातपूर्ण निर्णय उत्पन्न हो जायेंगे। यह इतिहास के स्वस्थ विकास को रोक देगा और पाठकों के समक्ष रंगीन तस्वीर (पक्षपातपूर्ण चित्र) प्रस्तुत कर देगा जो कि वास्तव में, इतिहास का लक्ष्य नहीं है।

दृढ़ निश्चय-

डॉ. बी. शेख अली लिखते हैं, "इतिहास में निश्चितता सापेक्ष होती है और यह इतिहास के विस्तृत तथा व्यापक भाग से सम्बन्धित होती है न कि व्याख्यात्मक या वर्णनात्मक भाव से।"

एक योग्य इतिहासकार अपनी व्याख्यात्मक एवं अर्थात्मक या विवरणात्मक योग्यता से सत्य को स्थापित करने का पूर्ण प्रयास करता है। निस्सन्देह, सन्देह को दूर करना और सत्य को स्थापित करना अत्यन्त कठिन है, फिर भी एक योग्य इतिहासकार अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जमीन-आसमान एक कर देता है, परन्तु एक इतिहासकार के लिए यह सम्भव नहीं है कि वह हर मामले में सफलता प्राप्त कर ले। वास्तव में इतिहास केवल सापेक्ष होता है और सम्पूर्ण सन्दर्भ नहीं तथा यह व्याख्यात्मक तथा विवरणात्मक भाग से सम्बन्धित है जिसमें इतिहासकार हालात के अनुसार अपने स्वयं का आंकलन करते हैं।

पूछताछ-

ऐतिहासिक शोध अधिकांशतः पूछताछ पर आधारित होता है। यह एक विद्वान की सफलता तथा उन्नति की कुंजी है। एक विद्वान कई प्रश्न करता है और अपने प्रश्नों के उत्तर को प्राप्त करने की कोशिश करता है। बी. शेख अली भी लिखते हैं, ऐतिहासिक विधियों का मूलाधार खोजी मस्तिष्क, जिज्ञासा, समालोचनात्मक प्रवृत्ति होती है और यह अन्य विज्ञानों की भाँति तार्किक आधार ग्रहण करती है। जैसा कि इतिहास में सीधे प्रयोग करने, उनको प्रमाणित करने और उनको पर्यवेक्षित करने को कोई मौका प्राप्त नहीं होता है। फिर भी अन्य तरीकों से जिज्ञासा बनाये रखकर किसी विगत घटनाओं की सच्चाई को निरीक्षित, परीक्षित एवं सुनिश्चित किया जा सकता है।"

पूछताछ की सीधी विधि निरीक्षण के अन्तर्गत घटनाओं के सत्य को प्रमाणित करने में इतिहासकार की मदद करती है। सारे सन्देह जो कुछ समस्याओं के अध्ययन के दौरान उत्पन्न होते हैं, पूछताछ की मदद से पृथक् कर दिये जाते हैं। एक इतिहासकार के लिये मूलभूत धारणाएँ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे एक इतिहासकार के लिए अतयन्त लाभदायक हैं तथा ऐतिहासिक घटनाओं के अध्ययन के भाग को बनाती हैं। इन धारणाओं की तरफ ध्यान न देने की स्थिति में, एक शोधार्थी अपना कर्तव्य पूर्णतया नहीं निभा पायेगा चूँकि ये धारणाएँ इतिहास के अध्ययन का एक अन्तरंग हिस्सा होती है।

आशा है कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।

Post a Comment

0 Comments