मनोविज्ञान का अर्थ
‘‘मन के विज्ञान’’ को मनोविज्ञान कहा जाता हैं। भारतीय वाङ्मय में उसकी प्रकृति पश्चिम के मनोविज्ञान के समान शैक्षणिक (Educational) नहीं होकर आध्यामित्क (Spiritual) हैं। अत: उसे ‘‘मन का ज्ञान’’ कहना अधिक सार्थक प्रतीत होता है। प्राचीन भारत में मनोविज्ञान को आत्मा के विज्ञान और चेतना के विज्ञान के रूप में लिया जाता है। भारतीय मनीषी आध्यात्मिक साधना, जिसमें ध्यान, समाधि और योग भी सम्मिलित था, के द्वारा जो अनुभव एवं अनुभूतियां प्राप्त करते थे उनके आधार पर मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान भी तलाशा जाता था।
मनोविज्ञान को अंग्रेजी भाषा में (Psychology) कहते है | इस शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के साइकी (Psyche) तथा लोगस (Logas) शब्दों से हुई है | Psyche का अर्थ है आत्मा (Soul) और (Logas) का अर्थ है अध्ययन या विचार –विमर्श। इस प्रकार 16 वीं शताब्दी में ग्रीस (Greece) नामक देश में दार्शिकों ने इसके शाब्दिक अर्थ के अनुसार इसे ‘आत्मा का अध्ययन करने वाला विज्ञान माना गया है’ इसी शाब्दिक अर्थ के कारण मनोविज्ञान को ‘आत्मा का ज्ञान’ माना गता है ईसा के पांच सौ वर्ष पूर्व से 16 वीं शताब्दी तक मनोविज्ञान के अर्थ के सम्बन्ध में यही धारणा प्रचलित रही।
मनोविज्ञान की
परिभाषा
यूं तो पाश्चात्य
मनोविज्ञान का उद्भव भी दर्शन से हुआ हैं। मनोवैज्ञानिक मन के
अनुसार ‘‘मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभूति का एक
निश्चित विज्ञान है जिसमें व्यवहार को अनुभूति के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाता
है’’। मनोविज्ञान की विकास की
लम्बी यात्रा के दौरान मनोवैज्ञानिकों एवं मनीषियों ने चिंतन मनन किया तथा
मनोविज्ञान के स्वरूप को निर्धारित किया। अनेक मनोवैज्ञानिकों ने मनोविज्ञान को
निम्नानुसार परिभाषित किया है।
मनोविज्ञान की
परिभाषाएं निम्नलिखित है-
बोरिंग, लैंगफेल्ड व वेल्ड- ‘‘मनोविज्ञान मानव प्रकृति
का अध्ययन है।’’
गैरिसन व अन्य- ‘‘मनोविज्ञान का संबंध
प्रत्यक्ष मानव व्यवहार से है।’’
स्किनर- ‘‘मनोविज्ञान व्यवहार और
अनुभव का विज्ञान है।’’
मन- ‘‘आधुनिक मनोविज्ञान का
संबधं व्यवहार की वैज्ञानिक खोज से है।’’
पिल्सबरी- ‘‘मनोविज्ञान की सबसे संतोषजनक
परिभाषा मानव व्यवहार के विज्ञान के रूप में की जा सकती है।’’
क्रो एवं क्रो- ‘‘मनोविज्ञान मानव व्यवहार और मानव संबंधों का
अध्ययन है।’’
वुडवर्थ- “मनोविज्ञान वातावरण के
संबंध में व्यक्तियों की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
जेम्स- ‘‘मनोविज्ञान की सर्वोत्तम
परिभाषा चेतना के वर्णन और व्याख्या के रूप में की जा सकती है।’’
कालसनिक- “मनोविज्ञान के सिद्धांतों
तथा उपलब्धियों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग ही शिक्षा मनोविज्ञान है।”
एच.आर. भाटिया के अनुसार- “शैक्षणिक पर्यावरण में
किसी विद्यार्थी अथवा व्यक्ति के व्यवहार के अध्ययन को ही शिक्षा मनोविज्ञान कहते
हैं।”
डॉ. विनोद उपाध्याय के अनुसार- “शिक्षा मनोविज्ञान
विद्यालय वातावरण प्राप्त की वहीं बालक की क्रियाओं का अध्ययन है।”
करलिंगर नामक एक प्रसिद्ध
विद्वान ने विज्ञान को परिभाषित करने हेतु एक बड़ी उत्तम उक्ति-कथन का प्रयोग किया
है। उनका यह कथन इस प्रकार है- ‘विज्ञान सामान्य समझ का क्रमबद्ध रूप से नियंत्रित विस्तार
है’
(Science is the systematic and controlled extension of common sense)।
इस कथन के शब्दों
के बड़े ही गूढ़ एवं गहरे निहितार्थ हैं। ‘सामान्य समझ’ वह समझ है जो कि सामान्य व्यक्तियों में उनके जीवन में घटने
वाली विभिन्न प्रकार की घटनाओं के लिए होती है। जीवन में घटने वाली घटना केवल घटना
नहीं होती है बल्कि उस घटना से पूर्व उसका कारण एवं उस घटना के पश्चात उसका परिणाम
होता है। इस प्रकार प्रत्येक घटना में उसका कारण एवं प्रभाव विद्यमान होता है।
प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामान्य समझ के अनुरूप घटना के कारण का अनुमान एवं संभावित
परिणाम की व्याख्या करता है। जब यह सामान्य समझ नियंत्रित एवं निर्देशित हो जाती
है अर्थात् इस समझ को व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप में दिशा मिल जाती है तब यह
वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करने वाली हो जाती है। इसी समझ के विकास का वैज्ञानिक रूप
से अध्ययन करना ही मनोविज्ञान कहलाता है।
मनोविज्ञान का अर्थ, परिभाषा एवं शाखाएं |
मनोविज्ञान की शाखाएं
मनोविज्ञान एक प्रगतिशील विज्ञान
है। शैशवकाल में होते हएु भी इस विज्ञान ने प्रयोग के क्षेत्र में अद्वितीय उन्नति
की है। मनोविज्ञान को दर्शन का अंग समझा जाता है और दर्शानिकों
द्वारा ही यह विज्ञान पढ़ाया जाता था। आज देश देशांतर में मनोविज्ञान की बड़ी-बड़ी
प्रयोगशालएं स्थापित हो चुकी है और बाल मनोविज्ञान, पशु मनोविज्ञान, चिकित्सा मनोविज्ञान अर्थात मनोविज्ञान के अंग-अंग पर खोज
या प्रयोग जारी है। कुछ ही वर्षों के समय में इस विज्ञान के अनेक विभाग हो चुके है
और इन विभागों की भी अनेक शाखाएं उत्पन्न हो चुकी है। यों तो मनोविज्ञान की बहुत
सी शाखाएं है किन्तु उनमें से मुख्य है:-
1. सामान्य
मनोविज्ञान।
2. पशु
मनोविज्ञान।
3. तुलनात्मक
मनोविज्ञान।
4. वैयक्तिक
मनोविज्ञान।
5. सामाजिक
मनोविज्ञान।
6. विश्लेषण मनोविज्ञान।
7. असामान्य
मनोविज्ञान।
8. चिकित्सा
मनोविज्ञान।
9. बाल
मनोविज्ञान।
10. उद्योग मनोविज्ञान।
11. वाणिज्य
मनोविज्ञान।
12. शिक्षा
मनोविज्ञान।
मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता
मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता
क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर हम
सभी को अपने जीवन में झांकने से प्राप्त होता है। हम सभी अपने जीवन में जन्म से
लेकर मृत्युपर्यन्त विभिन्न प्रकार के अनुभवों से गुजरते हैं, एवं जिनमें घटनाओं को
समझना, चुनौतियों से निबटना, संबंधों का विकास, रोग आदि सम्मिलित होते
हैं। इन अनुभवों के प्रकाश में हम जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों में निर्णय लेते
हैं। हमारे ये निर्णय कभी सही साबित होते हैं कभी गलत। कुछ परिस्थितियों में हमें
स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि हम सही निर्णय कर रहे हैं वही कुछ परिस्थितयों में
हम अस्पष्ट होते हैं। हमारे निर्णयों का सही एवं गलत होना हमें प्राप्त सूचनाओं की
समझ एवं उनकी विश्लेषण कर पाने की क्षमता पर निर्भर करता है।
इसके साथ ही
हमारी भाव दशा एवं पूर्व अनुभव भी इसमें महत्वूपर्ण भूमिका निभाते हैं। सही निर्णय
हमें सही परिणाम प्रदान करते हैं एवं हमें हमारे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। सही
निर्णय हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न उठता है कि यह
निर्णय लेने की प्रक्रिया किस प्रकार घटित होती है? कौन से कारक इसमें बाधक होते हैं? एवं कौन से कारक इसमें
सहायक होते हैं?
यदि इन प्रश्नों
का समुचित उत्तर हमें प्राप्त हो सके तो हम निर्णय करने की प्रक्रिया को समझ सकते
हैं। सार रूप में यदि कहें तो अपने दैनिक जीवन में हम अपनी मनोवैज्ञानिक
प्रक्रियाओं द्वारा संचालित होते हैं जिनके बारे में हमें निश्चित रूप से जानना
चाहिए। इसी कारण मनोविज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता है।
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