ऐतिहासिक तथ्य का अर्थ एवं
परिभाषा
प्रो. वाल्श के अनुसार एक तथ्य
साधारणतः स्वयं व्यवस्थित सिद्धान्त होता है जिसकी विश्वसनीयता के विषय में
गम्भीर सन्देह न हो। तथ्य के सम्बन्ध में इस प्रकार की अवधारणा विज्ञान में
सम्भव हो सकती है, इतिहास में नहीं। इतिहास
को पूर्णरूप से विज्ञान मानकर ही वाल्श ने तथ्य के विषय
में इस प्रकार की परिभाषा दी है।
वैज्ञानिक तथ्यों की विश्वसनीयता का परीक्षण प्रयोगशाला में किया जाता है। इतिहास, इतिहासकार के मस्तिष्क की परिकल्पनात्मक पुनर्रचना होता है। अतीत का प्रत्यक्षीकरण तथा परीक्षण सम्भव नहीं है। अतः इतिहासकार से स्वीकृति तथ्यों में इतनी अधिक विश्वसनीयता का स्पष्ट अभाव दिखाई देता है।
(1) एक साधारण घटना से
सम्बन्धित सभी बातें ऐतिहासिक तथ्य होती हैं- डेविड थामसन के अनुसार सम्पूर्ण समष्टि तथ्य, ऐतिहासिक तथ्य होता है। घटना से सम्बन्धित एक मनुष्य का कार्य,
एक स्थान, एक समय से लेकर फ्रांस की राज्य क्रान्ति, प्रथम विश्वयुद्ध जैसी जटिल घटनाओं
से सम्बन्धित विश्वसनीयतापूर्ण अंकित तथ्य जिसने लाखों मनुष्यों को प्रभावित किया है, सभी इतिहास के तथ्य होते
हैं। इस प्रकार एक साधारण घटना से सम्बन्धित सभी बातें ऐतिहासिक तथ्य होती हैं ।
हेनरी पिरेन ने कहा है कि "इतिहास
समाज में रहने वाले सभी मनुष्यों के कार्यों
एवं उपलब्धियों की कहानी है।"
इस प्रकार डेविड
थामसन तथा हेनरी पिरेन ने एक साधारण घटना और
समाज में रहने वाले सभी मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों को ऐतिहासिक तथ्य स्वीकार किया है।
परन्तु
वास्तविकता तो यह है कि इतिहास में सभी मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्थान नहीं
दिया जाता है। फ्रांस की राज्य क्रान्ति, प्रथम विश्वयुद्ध अथवा भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने वाले सभी
मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों का विवरण इतिहास में
नहीं मिलता है। समाज, राज्य क्रान्ति, राष्ट्रीय आन्दोलन तथा प्रथम विश्वयुद्ध का नेतृत्व करने वाले व्यक्तियों के कार्यों एवं उपलब्धियों
का वर्णन ही इतिहास में मिलता है।
(2) ऐतिहासिक तथ्य के उद्गम
स्रोत अनेक होते हैं- बेवर के अनुसार प्रत्येक ऐतिहासिक तथ्य में कुछ ऐसे तत्त्व होते हैं जिनके उद्गम
स्रोत अनेक होते हैं। सेराजिवो में
आस्ट्रिया के
राजकुमार फर्डिनेण्ड की हत्या के कारण प्रथम विश्वयुद्ध प्रारम्भ हुआ। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है, परन्तु प्रथम विश्वयुद्ध
की घटना के कारण का विवरण प्रस्तुत करने के लिए इतिहासकार इससे सम्बन्धित अनेक ऐतिहासिक तथ्यों का
प्रस्तुतीकरण करता है। इस प्रकार एक ऐतिहासिक तथ्य के
उद्गम स्रोत अनेक होते हैं। आधुनिक शोधकर्ता ऐसे तथ्यों की विश्वसनीयता तथा यथार्थता को सिद्ध करता है।
Aitihasik-tathya |
(3) ऐतिहासिक तथ्य एक प्रतीक
अथवा सामान्यीकरण है जो वर्तमान में इतिहासकार के मस्तिष्क में रहता है- कार्ल बेकर के अनुसार ऐतिहासिक तथ्य
एक प्रतीक अथवा सामान्यीकरण है, जो वर्तमान में इतिहासकार के मस्तिष्क में रहता है।
ऐतिहासिक तथ्य अतीतकालीन घटना नहीं, अपितु एक प्रतीक है जो इतिहासकार को कल्पना द्वारा घटना के
पुनर्निर्माण में समर्थ बनाती है। ऐतिहासिक तथ्य
इतिहासकार के मस्तिष्क में होता है अथवा कहीं नहीं होता है।
14 अप्रेल, 1865 को वाशिंगटन की फोर्ड नाट्यशाला में अमेरिका के
राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की
हत्या हुई। जिस
समय यह घटना हुई, वह एक वास्तविक घटना थी।
अब वह घटना एक ऐतिहासिक तथ्य है। इस
घटना के धूमिल चित्र तत्कालीन लेखों, समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं आदि में उपलब्ध हैं। इस
प्रकार तत्कालीन स्रोतों में प्राप्त साक्ष्य वर्तमान में इतिहासकार के उपादान हैं। इन ऐतिहासिक स्रोतों में उपलब्ध साक्ष्य यदि
वर्तमान में न हों, तो लिंकन की हत्या आज ऐतिहासिक तथ्य नहीं रह जाती। इन साक्ष्यों के आधार पर
इतिहासकार अपने मस्तिष्क में घटना का एक धूमिल चित्र
बनाकर घटना का परिकल्पनात्मक पुनर्निर्माण करता है।
सेनबोस ने लिखा है कि ऐतिहासिक
स्रोतों में वर्णित तथ्यों का हम न तो निरीक्षण कर सकते हैं और न उन्हें यथार्थ रूप में समझ ही सकते हैं। अत:
ऐतिहासिक तथ्य एक प्रतीक है जो वर्तमान में इतिहासकार के
मस्तिष्क में रहता है। ऐलेन बुलाक ने भी यह स्वीकार किया है ऐतिहासिक तथ्य एक प्रकार का अनुमान होता है। अतीतकालिक घटना
के परिकल्पनात्मक पुनर्निर्माण के लिए
ऐतिहासिक तथ्य इतिहासकार के उपादान होते हैं।
डॉ.
गोविन्दचन्द्र पाण्डेय के अनुसार इतिहासकार
द्वारा अतीत की परिकल्पनात्मक पुनर्रचना का आधार अतीत के अन्तराल में निहित ऐतिहासिक तथ्य होते हैं।
(4) अतीत की सभी घटनाएँ
ऐतिहासिक तथ्य नहीं होतीं- अतीत की सभी घटनाएँ ऐतिहासिक तथ्य नहीं होतीं। कोई भी तथ्य तब ऐतिहासिक तथ्य
बनता है जबकि स्वयं इतिहासकार उसका चयन करके उसे
महत्त्व देता है।
1850 ई. में इंग्लैण्ड के
स्टैलीब्रिज नामक स्थान पर अदरख की रोटी बेचने वाले
एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। इस प्रकार की घटना को ऐतिहासिक तथ्य नहीं कहा जा सकता है क्योंकि इस प्रकार की
घटनाएँ प्रायः होती रहती हैं। परन्तु किसी महान्
व्यक्ति ने इस घटना का उल्लेख अपनी आत्मकथा में किया और इस प्रकार एक साधारण घटना ऐतिहासिक तथ्य बन गई। कुछ समय के पश्चात् डॉ.
किटसन क्लार्क ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय
के एक भाषण में इस साधारण घटना का उल्लेख कर दिया, तो यह ऐतिहासिक तथ्य बन गई।
(5) कुछ तथ्य ऐतिहासिक तथ्य न
होकर मान्यता प्रदत्त विचार होते हैं- बैरकलाफ के अनुसार यद्यपि इतिहास तथ्य पर आधारित होता है, परन्तु कुछ तथ्य ऐतिहासिक तथ्य न होकर मान्यता प्रदत्त विचार होते हैं। अधिकांश इतिहासकारों की यह
अवधारणा है कि सन् 1917 की रूस की राज्य क्रान्ति ने रूसी जनमानस की धार्मिक भावना को
समाप्त कर दिया। यद्यपि यह एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है, परन्तु अधिकांश इतिहासकारों ने इसे स्वीकार किया है। अत: यह मान्यता प्रदत्त निर्णय ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकार
किया जाता है।
(6) इतिहासकार का सम्बन्ध
अतीत में सुस्थित ऐतिहासिक तथ्यों से होता है- ई.एच. कार के अनुसार ऐतिहासिक तथ्य पुस्तकों, पाण्डुलिपियों, अभिलेखों, शिलालेखों में
प्रचुर मात्रा
में उपलब्ध होते हैं। माइकेल ओकशाट के अनुसार इतिहासकार वर्तमान की पृष्ठभूमि में विस्तृत अतीत को एक विश्व के रूप में देखने
का अभ्यस्त है, उसमें अन्तर्निहित ऐतिहासिक तथ्य निश्चित होते हैं। इतिहासकार द्वारा उसकी खोज
की उपेक्षा की जाती है। इतिहासकार का सम्बन्ध
अतीत में सुस्थित तथा सुनिश्चित ऐतिहासिक तथ्यों से होता है। ऐसे ऐतिहासिक तथ्यों को इतिहासकार न तो बढ़ा सकता है और न घटा
सकता है। अत: इतिहासकार केवल उन्हीं तथ्यों को
स्वीकार करता है जिनका सम्बन्ध वर्तमान से न हो।
(7) अतीत के सभी तथ्य
ऐतिहासिक नहीं होते- वाल्श के अनुसार, "इतिहास में अतीत सम्बन्धी तथ्य वर्तमान से भिन्न परन्तु वर्तमान पर
आधारित होते हैं। ऐसे तथ्य प्रमाणों के आधार पर
इतिहासकार को स्वीकार करने के लिए बाध्य करते हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि अतीत के सभी तथ्य ऐतिहासिक तथ्य नहीं होते हैं। इतिहासकार
जिन तथ्यों को स्वीकार करे, उसे ही ऐतिहासिक तथ्य कहा जा सकता है। ऐतिहासिक तथ्यों का
इतिहासकार चयन करता है।"
ई.एच. कार ने लिखा है कि "इतिहासकार
मोजायक बनाने वाले कलाकार की भाँति विभिन्न रंगों के संगमरमर के टुकड़ों में से अपनी पसन्द की आकृति
वाले रंगीन टुकड़ों का चयन कर
मोजायक शिला का
निर्माण करता है। उसी प्रकार इतिहासकार तथ्यों का चयन करके इतिहास का परिकल्पनात्मक पुर्निर्माण करता है। उसकी रुचि समसामयिक
समाज की रुचि होती है।"
ई.एच. कार के अनुसार ऐतिहासिक तथ्य
मछली बेचने वाले की पट्टी पर विभिन्न प्रकार की मछलियों की भाँति होते हैं । इतिहासकार अपनी रुचि के अनुसार
मछली खरीदकर घर ले आता है और अपनी इच्छानुसार
उसे पकाकर रसास्वादन करता है। इसी प्रकार इतिहासकार द्वारा चयन किया हुआ तथ्य ही ऐतिहासिक तथ्य होता है।
(8) ऐतिहासिक तथ्यों का यथावत्
वर्णन करना होता है- जर्मन इतिहासकार रांके के अनुसार इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य ऐतिहासिक तथ्यों का
यथावत् वर्णन करना होता है। उसका कार्य इच्छानुसार
इतिहास को उपदेशात्मक बनाना नहीं है। रांके के अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों के संकलन तथा वर्णन में इतिहासकार की इच्छा के लिए
स्थान नहीं रहता। परन्तु रांके का यह कथन पूर्ण रूप
से यथार्थ प्रतीत नहीं होता है। यदि इतिहासकार तथ्यों के संकलन में समसामयिक समाज की रुचि की उपेक्षा करेगा, तो उसके इतिहास का कोई अध्ययन नहीं करेगा।
कारलायल तथा मैकाले ने
स्पष्ट लिखा है कि उनके इतिहास-लेखन का अभिप्राय समसामयिक समाज के लिए मनोरंजन का साधन प्रस्तुत करना है।
(9) इतिहास में दो प्रकार के
तथ्य होते हैं- इतिहास में दो
प्रकार के तथ्य
होते हैं-
(क) कठोर तथ्य
तथा (ख) कोमल तथ्य।
(क) कठोर तथ्य- कठोर तथ्य उसे कहते हैं जिसे इतिहासकार अपनी इच्छानुसार नहीं बदल सकता
है जैसे सन् 1526, पानीपत का युद्ध, बाबर तथा इब्राहीम लोदी
कठोर ऐतिहासिक तथ्य हैं। इनके चयन में इतिहासकार की इच्छा के लिए स्थान नहीं है और न ही वह अपनी रुचि के अनुसार
इन ऐतिहासिक तथ्यों में परिवर्तन कर सकता है।
(ख) कोमल तथ्य- इतिहास का कोमल तथा
इतिहासकार का व्याख्यात्मक वर्णन होता है। बाबर की विजय तथा इब्राहीम लोदी की पराजय के व्याख्यात्मक वर्णन में वह
अपनी रुचि के अनुसार तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर चित्रण
प्रस्तुत कर सकता है। ई.एच. कार का कथन है कि "तथ्य स्वयं नहीं बोलते बल्कि इतिहासकार उन्हें बुलवाता है।" परन्तु यह
भी सत्य है कि कठोर सत्यों को इतिहासकार अपनी
इच्छानुसार नहीं बुलवा सकता है। केवल कोमल तथ्यों के विषय में ही वह अपने इस अधिकार का प्रयोग कर सकता है। ई.एच. कार ने ठीक ही
लिखा है कि ऐतिहासिक तथ्य वस्तुनिष्ठ तथा
इतिहासकार की व्याख्या से बिलकुल भिन्न होते हैं।
प्रो. झारखण्डे
चौबे लिखते हैं कि "अतीत
रूपी अगाध समुद्र में ऐतिहासिक तथ्य मछलियों की भाँति
हैं । यह संयोग की बात है कि मछुआ रूपी इतिहासकार अतीत के किस भाग का चयन करता है। परिश्रम से संकलित ऐतिहासिक तथ्य कच्चे माल
की भाँति होते हैं । तथ्य इतिहास का कच्चा माल नहीं, अपितु इतिहासकार का कच्चा माल होता है। इतिहासकार इस रुई को साफ करके सूत बनाता है। पुनः उससे सुन्दर वस्त्र तैयार
करता है। अतीत में निहित ऐतिहासिक तथ्यों का यही
स्वरूप होता है।"
टेने का कथन है कि ‘‘सावधानीपूर्वक संकलित, अभिप्राययुक्त,
प्रमाणित
विश्वसनीय तथा विशेष सावधानी से
संकलित महत्त्वपूर्ण तथ्यों से ही इतिहास का परिकल्पनात्मक पुनर्निर्माण इतिहासकार करता है। इस प्रकार संकलित तथ्य ऐतिहासिक अध्ययन
के पवित्र आधार होते हैं।’’
तथ्य तथा इतिहासकार
(1) तथ्य तथा इतिहासकार के
सम्बन्धों के विषय में विचारधारा- तथ्य तथा इतिहासकार के
सम्बन्धों के विषय में दो प्रकार की
अवधारणाएँ हैं-
(क) यथार्थवादी तथा (ख) व्याख्यावादी विचारधारा।
(क)
यथार्थवादी विचारधारा- एक वर्ग के विद्वानों की
मान्यता है कि अतीत के अधिकाधिक तथ्यों को यथावत् इतिहास में स्थान देना चाहिए। उपलब्ध तथ्यों को स्वयं बोलने का अवसर देना ही
इतिहास का यथार्थ प्रस्तुतीकरण है। इस दृष्टिकोण वाले
इतिहासकारों को प्रत्यक्षवादी कहा जाता है। दूसरे वर्ग का प्रतिनिधित्व व्याख्यावादी इहिासकारों ने किया है। उनका मत है कि तथ्यों
की अपेक्षा व्याख्या अधिक महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि
तथ्यों का अधिकाधिक संकलन इतिहास को विश्वकोष बना देता है। कालिंगवुड ने ऐसे इतिहास को कैंची तथा गोंद इतिहास' कहा है।
(ख)
व्याख्यावादी
विचारधारा- व्याख्यावादी
इतिहासकारों की अवधारणा है कि वर्तमान के सन्दर्भ में अतीत की व्याख्या आवश्यक है। प्रत्येक युग का इतिहासकार अपनी समसामयिक दृष्टि
से अतीत के तथ्यों को देखता है, समाज का अवलोकन करता है तथा सुखद भविष्य का मार्ग प्रशस्त
करता है। वर्तमान तथा भावी पीढ़ी का कल्याण
अतीत की व्याख्या की आधारशिला होती है।
(2) इतिहासकार तथ्यों की
व्याख्या करता है- जी.एन. क्लार्क के अनुसार इतिहासकार तथ्यों के आधार
पर अतीतकालीन घटनाओं का पूर्वाभिनय ही नहीं करता, बल्कि तथ्यों की व्याख्या भी करता है। व्याख्या सम्पूर्ण अतीतकालिक तथ्यों
की नहीं, अपितु उसके एक भाग की होती है। तथ्यों की ऐतिहासिक यथार्थता प्रमाणों द्वारा
सिद्ध की जा सकती है। इतिहासकार को
अपनी व्याख्या
में उन्हों तथ्वों का उपयोग करना चाहिए, जिन्हें अतीत के
इतिहासकारों ने सुरक्षित रखने के उद्देश्य से
संकलित किया था। तथ्य का स्वरूप स्थायी तथा अस्थायी होता है क्योंकि ऐतिहासिक अनुसन्धान में शोध-कार्य नवीन तथ्यों तथा
साक्ष्यों की गवेषणा में निरन्तर क्रियाशील है। इस सन्दर्भ
में ऐतिहासिक व्याख्या में परिवर्तन अपरिहार्य है।
(3) ऐतिहासिक तथ्य की
विशेषताएँ- प्रो. गाट्सचाक
के अनुसार ऐतिहासिक तथ्य की प्रमुख विशेषताएँ
निम्नलिखित हैं-
क. अतीत की घटना का प्रत्यक्षदर्शी, जिसे उसके विषय में स्मरण हो।
ख. प्रत्यक्षदर्शी ने घटना के विवरण को लिखा हो तथा जो काल के
विनष्टकारी प्रभावों से बचा हो।
ग. वह इतिहासकार के ध्यान को आकृष्ट कर सके तथा उसका स्वरूप
विश्वसनीय हो।
घ. जिसका व्याख्यात्मक विवरण इतिहासकार कर सके। सम्पूर्ण अतीत
के इसी अंश को ऐतिहासिक तथ्य की संज्ञा दी
जा सकती है।
(4) तथ्य तथा इतिहासकार
एक-दूसरे के लिए आवश्यक होते हैं- ई.एच. कार के अनुसार "तथ्य तथा इतिहासकार एक-दूसरे के लिए आवश्यक
होते हैं। तथ्यों से विहीन इतिहासकार
बिना जड़ का और
व्यर्थ का होता है। इतिहासकार के बिना तथ्य निर्जीव तथा अर्थहीन होते हैं।" दोनों का सम्बन्ध मछली और पानी की भाँति अन्योन्याश्रित है।
उन दोनों का सम्बन्ध उतना ही घनिष्ठ होता है जितना
मनुष्य और वातावरण का।
(5) ऐतिहासिक तथ्यों का
सम्बन्ध अतीत से तथा इतिहासकार का सम्बन्ध वर्तमान से रहता है- ऐतिहासिक तथ्यों का सम्बन्ध अतीत से रहता है. और इतिहासकार
का सम्बन्ध वर्तमान से। प्रो. वाल्श
ने ठीक ही कहा है कि साक्ष्यों के रूप में इतिहासकार द्वारा ऐतिहासिक तथ्यों का उपयोग ही वर्तमान होता है, क्योंकि इतिहासकार ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर वर्तमान दृष्टि से अतीत का निरूपण करता है। इसीलिए क्रोचे
ने सम्पूर्ण इतिहास को समसामयिक इतिहास कहा है। समसामयिक
इतिहास से उसका अभिप्राय वर्तमान दृष्टिकोण से अतीत का निरूपण होता है। इस प्रकार इतिहासकार अतीत के अन्तराल में
छिपे हुए तथ्यों का संकलन नहीं, अपितु वर्तमान के परिवेश में समसामयिक दृष्टिकोण से उनका
मूल्यांकन करता है। प्रो. वाल्श के अनुसार समसामयिक
सामाजिक आवश्यकता इतिहासकार को अतीत के तथ्यों की गवेषणा के लिए प्रेरित तथा बाध्य करती है।
(6) हमारा अतीत सम्बन्धी
ज्ञान ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित है- कालिंगवुड ने
कहा है कि हमारा
अतीत सम्बन्धी ज्ञान ऐतिहासिक तथ्य पर आधारित है जिसे हम वर्तमान की संज्ञा देते हैं। अतीत सम्बन्धी प्रमाण इतिहासकार के
मस्तिष्क में रहता है जिसका प्रयोग वह
समसामयिक परिवेश
में करता है, परन्तु इन प्रमाणों का
सम्बन्ध वर्तमान में नहीं, अपितु अतीत से रहता है। अतीतकालिक ऐतिहासिक तथ्य जिसका प्रयोग इतिहासकार
करता है, वह मृत अथवा निर्जीव नहीं, अपितु वर्तमान में सजीव
दिखाई देता है। इतिहास ऐतिहासिक तथ्यों मात्र का संकलन नहीं, बल्कि समसामयिक
आवश्यकतानुसार अतीत का परिकल्पनात्मक पुनर्निर्माण होता है।
(7) इतिहास में अधिकाधिक
तथ्यों का समावेश करना- 19वीं शताब्दी के
इतिहासकारों की यह अवधारणा थी कि
इतिहास में अधिकाधिक तथ्यों का समावेश होना चाहिए। ग्राडग्रिड ने 'हार्ड टाइम्स' में लिखा था कि "मुझे तथ्य चाहिए ............. जीवन
में हमें मात्र तथ्यों की आवश्यकता है।"
जर्मन इतिहासकार रांके
के अनुसार इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य तथ्यों का यथावत् वर्णन करना है। उसने इतिहास को उपदेशात्मक बनाने का
विरोध किया। इसलिए 19वीं शताब्दी को तथ्यों के संकलन का युग माना गया है।
(8) ऐतिहासिक तथ्य इतिहास की
रीढ़ होता है- निःसन्देह
ऐतिहासिक तथ्य इतिहास की रीढ़ होता है। तथ्यों
का अधिक समावेश ही इतिहासकार का लक्ष्य एवं अभिप्राय होना चाहिए। एक्टन ने अपने शिक्षक डालिंजर से कहा था कि
वे अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर इतिहास नहीं लिखेंगे और
उनके लिए ऐतिहासिक तथ्य सदैव अपर्याप्त प्रतीत होते हैं। परन्तु इतिहास में यथातथ्य होना एक दायित्व है, कोई गुण नहीं।
(9) इतिहास इतिहासकार द्वारा
अतीत का व्याख्यात्मक पुनर्निर्माण होता है- इतिहास मात्र तथ्यों का संकलन नहीं, अपितु इतिहासकार द्वारा अतीत का व्याख्यात्मक पुनर्निर्माण होता है। कार्ल बेकर के अनुसार ऐतिहासिक तथ्यों का
इतिहासकार के लिए कोई अस्तित्व नहीं
रहता, जब तक वह उनकी पुनर्रचना न करे। प्रत्यक्षवादी इतिहासकारों
की अवधारणा है कि पहले तथ्यों की जाँच करो, फिर उनके परिणाम निकालो।
एक्टन तथा रांके का
विचार है कि तथ्यों को यथावत् रखना
चाहिए। किन्तु व्याख्याहीन इतिहास को इतिहास नहीं कहा जा सकता है। केवल तथ्यों का संकलन इतिहास को विश्वकोष बना देगा और
इतिहास अपना अस्तित्व खो देगा। जार्ज क्लार्क के
अनुसार इतिहासकार का पुनीत कर्त्तव्य तथ्यों की गुठली को विवादास्पद व्याख्या के गूदे से अलग करना है। ई.एच. कार का कहना
है कि तथ्य रूपी गुठली से अधिक महत्त्वपूर्ण भाग बाहरी
गूदा होता है।
(10) तथ्य स्वयं नहीं बोलते- इतिहासकार की व्याख्या
का तात्पर्य तथ्यों को मनोनुकूल समसामयिक रुचि के अनुसार
बुलवाना होता है। ई.एच.कार का कहना है कि "तथ्य स्वयं नहीं बोलते, बल्कि इतिहासकार उन्हें
बुलवाता है।" यह वही तय करता है कि किन तथ्यों को किस क्रम और सन्दर्भ में वह मंच पर बुलाएगा। तथ्य बोरे की तरह
होते हैं। जब तक उनमें कुछ न भरा जाए, वे खड़े नहीं होते। इतिहासकार अपनी व्याख्यात्मक पद्धति से
तथ्यों को बोलने के लिए बाध्य करता है। एच.
बटरफील्ड का कथन है कि पहले तथ्यों का संकलन करो और उनके कारणों तथा परिणामों की व्याख्या करो।
कालिंगवुड ने भी ठीक ही कहा है कि
सम्पूर्ण इतिहास विचार का इतिहास होता है। अतीत की घटनाओं
के पीछे विचारों के ढूँढने का तात्पर्य इतिहास की व्याख्या है। प्रो.ओकशाट ने लिखा है कि "इतिहास इतिहासकार का अनुभव होता है।
इतिहासकार के अतिरिक्त अन्य कोई भी इसका अनुभव तथा
पुनर्निर्माण नहीं कर सकता। अतीत के परिकल्पनात्मक पुनर्निर्माण का एकमात्र साधन है-इतिहास-लेखन।"
(11) ऐतिहासिक तथ्यों का
चयनात्मक स्वरूप- इतिहास-लेखन को व्याख्या प्रधान
बनाने के लिए
ऐतिहासिक तथ्यों का चयनात्मक स्वरूप आवश्यक हो जाता है। इतिहास का अर्थ ही व्याख्या होता है। इतिहासकार समसामयिक सामाजिक रुचि के
अनुरूप तथ्यों का संकलन तथा उनकी व्याख्या करता
है। इतिहास में अधिकांश तथ्यों का संकलन तथा उनका समावेश व्याख्या के पक्ष को कमजोर करता है। इस प्रकार इतिहास के
व्याख्यात्मक स्वरूप पर आघात पहुँचाता है।
ई.एच. कार के अनुसार, "इतिहासकार का कर्त्तव्य
है कि महत्त्वपूर्ण तथ्यों को
ऐतिहासिक तथ्य
में परिणत करे तथा महत्त्वहीन तथ्यों को अनैतिहासिक सिद्ध कर उनका परित्याग कर दे।"लिटेन स्ट्रैची ने लिखा है कि
"अज्ञान इतिहासकार का प्रथम गुण होता है। अज्ञान जो विषय को सरल तथा सुबोध बना सके तथा जो आवश्यक
तथ्यों के चयन और अनावश्यक तथ्यों के
परित्याग में सहायक हो सके।"
(12) वर्तमान के परिवेश में
अतीत की व्याख्या- कालिंगवुड के अनुसार इतिहास के वैज्ञानिक स्वरूप
की सबसे बड़ी विशेषता वर्तमान के परिवेश में अतीत की व्याख्या है। यही कारण है कि उन्होंने इतिहास की कैंची तथा गोद' शैली का प्रबल विरोध किया है। इतिहासकार का कार्य ऐतिहासिक तथ्यों का यथावत् वर्णन नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर वर्तमान के सन्दर्भ में सारयुक्त निष्कर्ष का प्रस्तुतीकरण
होता है, जो समसामयिक समाज को नियन्त्रित कर सके तथा भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सके।
मैंडेलबाम ने भी वर्तमान सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवेश में अतीतकालीन तथ्यों की व्याख्या को आवश्यक बताया है। डेविड थामसन ने
लिखा है कि जब तक वर्तमान के सन्दर्भ में अतीत की व्याख्या
न हो, तब तक व्याख्या का कोई
अर्थ नहीं है। मैंडेलबाम के अनुसार यूनानी इतिहासकार
ध्यूसिडिडीज तथा रोमन इतिहासकार पोलिबियस के इतिहास लेखन का एकमात्र उद्देश्य भावी पीढ़ी के लिए अतीत के ज्ञान को
सुरक्षित करना था।
(13) ऐतिहासिक तथ्यों को
क्रमबद्धता प्रदान करना- यद्यपि ऐतिहासिक तथ्यों की अपनी क्रमबद्धता होती है, फिर भी इतिहासकार
अपनी व्याख्या से उन्हें क्रमबद्धता प्रदान करता है। इस क्रमबद्धता का आधार समसामयिक समाज की आवश्यकता होती
है, जिसका निश्चय इतिहासकार करता है। ई.एच. कार ने लिखा है कि
"इतिहासकार न तो अपने ऐतिहासिक तथ्यों का गुलाम है और न
निरंकुश स्वामी। तथ्यों तथा
इतिहासकार का सम्बन्ध समानता तथा आदान- प्रदानात्मक होता
है।"
तथ्य का सम्बन्ध
अतीत और इतिहासकार का सम्बन्ध वर्तमान से होता है। अतीतकालीन तथ्यों की व्याख्या इतिहासकार वर्तमान दृष्टिकोण से करता
है। अतीत वर्तमान तथा भविष्य में रुचि का पारस्परिक
सम्बन्ध होता है। वर्तमान में इतिहासकार की रुचि अतीत की गवेषणा के लिए प्रेरित तथा प्रोत्साहित करती है। इतिहासकार इसे रुचि
की परम्परा मानकर भविष्य में सम्प्रेषित करना चाहता
है।
डॉ.
गोविन्दचन्द्र पाण्डेय के अनुसार "इतिहास परम्परा के साथ आरम्भ होता है और परम्परा का अर्थ होता है अतीत की आदतों और
परम्पराओं का भविष्य में सम्प्रेषण।" अतीत के विवरण को भावी
पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखा जाता है अत: इतिहास में भविष्य में प्रति रुचि सदैव स्थित रहती है। इतिहासकार की
दृष्टि अतीत वर्तमान तथा भविष्य पर
समान रूप से रहती
है।
(14) ऐतिहासिक तथ्य तथा
इतिहासकार का सम्बन्ध अतीत तथा वर्तमान का सम्बन्ध है- इतिहास अतीत की घटी घटना नहीं, अपितु इतिहासकार द्वारा लिखित इतिहास होता है। अतीतकालीन ऐतिहासिक तथ्यों का चयन तथा इतिहासकार के
व्याख्या की अन्त:प्रक्रिया का स्वरूप अतीत तथा वर्तमान
का सम्बन्ध होता है। यदि तथ्य अतीत का प्रतिनिधित्व करता है, तो इतिहासकार वर्तमान का।
ई.एच. कार का कथन है कि वस्तुतः
इतिहास, इतिहासकार तथा तथ्यों के बीच अन्तक्रिया की अविच्छिन्न प्रक्रिया एवं
वर्तमान तथा अतीत के बीच अनवरत परिसंवाद है। मनुष्य की
अतीतकालिक समाज को समझने योग्य बनाना तथा वर्तमानकालिक समाज के ऊपर नियन्त्रण की वृद्धि करना इतिहास का द्विविध
कर्त्तव्य होता है। इतिहास-व्याख्या
का अभिप्राय अतीत
की परम्पराओं का भविष्य में सम्प्रेषण है। इतिहासकार तथा ऐतिहासिक तथ्यों के सम्बन्ध का यही सर्वोच्च आदर्श है। ऐतिहासिक तथ्य
तथा इतिहासकार का सम्बन्ध अतीत तथा वर्तमान का
सम्बन्ध है। दोनों के सम्बन्ध से इतिहासरूपी परिकल्पनात्मक सेतु का निर्माण होता है । इतिहासकार इस सेतु का डाट तथा सेतु
प्रकाश-स्तम्भ होता है। रांके का कथन है कि "इतिहास वास्तव में इतिहासकार का अतीत के
सम्बन्ध में निर्णय होता है, जिसका उद्देश्य वर्तमान को प्रशिक्षित करना तथा भावी पीढ़ी के कल्याण के
लिए मार्गदर्शन होता है।"
तथ्य तथा व्याख्या
(1) तथ्य तथा इतिहासकार का
घनिष्ठ सम्बन्ध- तथ्य ही इतिहासकार की व्याख्या के आधार होते हैं।
तथ्य तथा इतिहासकार का सम्बन्ध घनिष्ठ तथा अन्योन्याश्रित होता है। तथ्य के अभाव में इतिहासकार का कोई महत्त्व नहीं है और इतिहासकार के
अभाव में तथ्य निर्जीव तथा मृतप्राय होते हैं। इन
दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध इतना घनिष्ठ है जितना भौगोलिक स्थिति और मनुष्य का। अतीत एक अगाध समुद्र है और इतिहासकार इस अगाध
समुद्र से तथ्यों को चयन करके उनकी व्याख्या करता
है। इसलिए टेलकाट पार्सन ने ऐतिहासिक व्याख्या का चयन- प्रक्रिया की संज्ञा दी है। इतिहासकार अतीत के महासमुद्र से
कुछ ऐतिहासिक तथ्यों का चयन करता है जिसका ऐतिहासिक
महत्त्व होता है। इसके बाद उन्हें शृंखलाबद्ध करके व्याख्या के द्वारा इतिहास में अतीत का निर्माण करता है।
(2) तथ्यों की चयन प्रक्रिया- एल. पाल ने तथ्यों की
चयन प्रक्रिया के सम्बन्ध में लिखा है कि
"इतिहासकार अवलोकित तथ्यों को कूड़े के ढेर से चुनता है और एक-एक करके सामने रखता है। वह सम्बद्ध अवलोकित तथ्यों को क्रम देता है
तथा असम्बद्ध तथ्यों को किनारे फेंककर चलता है, जब तक वह ज्ञान की एक तार्किक युक्तियुक्त रजाई सिलकर तैयार
नहीं कर लेता।" एल. पाल के
इस कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि इतिहासकार ऐतिहासिक महत्त्व के ही तथ्यों का चयन करके उन्हें अपनी ऐतिहासिक व्याख्या में
स्थान देता है।
(3) इतिहास में तथ्य कुछ नहीं
होता, व्याख्या सब कुछ होती है- कुछ इतिहासकारों का दृष्टिकोण है कि इतिहास में तथ्य प्रधान होता है, किन्तु उसकी व्याख्या की प्रधानता रहती है। इतिहास तथ्यों का संकलन मात्र नहीं, बल्कि इतिहासकार की व्याख्या द्वारा पुनर्निर्मित होता है। इतिहास में तथ्य कुछ नहीं होता, व्याख्या सब कुछ होती है। कार्ल बेकर के अनुसार
इतिहासकार के लिए तथ्यों का कोई
अस्तित्व नहीं होता है, जब तक उसकी व्याख्या न
हो। निःसन्देह तथ्य इतिहास की रीढ़ होते हैं, परन्तु व्याख्या के अभाव में तथ्यों का संकलन इतिहास को
विश्वकोश मात्र बना देगा।
ई.एच. कार ने लिखा है कि तथ्य
इतिहास के लिए नहीं, अपितु इतिहासकार के लिए कच्चे माल जैसा होता है। अधिकांश इतिहासकारों का
विश्वास है कि तथ्य स्वयं नहीं बोलते, बल्कि व्याख्या के माध्यम से इतिहासकार उन्हें बुलवाता है।
तथ्यों को बुलवाने का अभिप्राय उनकी व्याख्या
करना है। इसीलिए सर जार्ज क्लार्क ने कहा है कि इतिहास में तथ्यों की गुठली के चारों ओर विवादास्पद व्याख्या को अलग करना अधिक
महत्त्वपूर्ण माना है। सी.पी. स्काट के अनुसार तथ्य पवित्र
है, परन्तु मन्तव्य स्वतन्त्र
है।
(4) इतिहास को समझने के लिए
व्याख्या उपयोगी सामग्री प्रदान करती है- ई.एच.कार के अनुसार व्याख्याएँ वस्तुतः इतिहास को जीवन देने वाले
रक्त के समान होती हैं। इतिहास को समझने के लिए
भी व्याख्या उपयोगी सामग्री प्रदान करती है। इतिहास की व्याख्या के स्वरूप एवं प्रकृति पर इतिहासकार की मन:स्थिति का निर्णायक
प्रभाव रहता है। अतः पाठक को भी चाहिए कि वह तथ्यों का
अध्ययन करने से पूर्व इतिहासकार का अध्ययन करना प्रारम्भ करे।
ई.एच. कार ने लिखा है कि "जब
आप इतिहास की कोई पुस्तक पढ़ें,
तो हमेशा कान
लगाकर उसके पीछे की आवाज को
सुनें। यदि आपको कोई आवाज सुनाई नहीं देती हो, तो आप एकदम बहरे हैं अथवा आपका इतिहासकार एकदम बोदा है।" इतिहास का अर्थ ही
व्याख्या है।
(5) व्याख्या को महत्त्व- तथ्यों को गौण मानने
वाले विचारक जैसे डिल्थे, क्रोचे तथा कालिंगवुड आदि ने व्याख्या को महत्त्व दिया है। क्रोचे के
अनुसार सभी इतिहास समसामयिक होते हैं। इसका अर्थ यह
हुआ कि इतिहास-लेखन आवश्यक रूप से वर्तमान की आँखों से तथा वर्तमान की समस्याओं के प्रकाश में अतीत को देखता है और
इतिहासकार का मुख्य कार्य विवरण देना नहीं, वरन् मूल्यांकन करना होता है। विवरण देने में तथ्य तथा
मूल्यांकन में व्याख्या निहित होती है।
कालिंगवुड के अनुसार इतिहासकार जिस
इतिहास का अध्ययन करता है, उसके विचारों को वह अपने
मन में पुनर्निर्मित करता है। यह पुनर्निर्माण की प्रक्रिया तथ्यों के चुनाव और व्याख्या को निर्धारित करती है। यही उनको ऐतिहासिक
तथ्य बनाती है। ओकशाट का कथन है कि इतिहास
इतिहासकार का अनुभव है। इतिहासकार के अतिरिक्त अन्य कोई इसका निर्माण नहीं करता और इसके निर्माण का एकमात्र तरीका
है इतिहास लेखन।
0 Comments