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औद्योगिक क्रांति के प्रभाव

औद्योगिक क्रान्ति के प्रभाव

औद्योगिक क्रान्ति को वर्तमान औद्योगिक युग का जन्मदाता कहा जाता है। विश्व में जितना प्रभाव व परिणाम औद्योगिक क्रान्ति के निकले किसी और क्रान्ति के नहीं निकले। रेम्जे म्योर लिखते हैं कि यह एक बड़ी भारी किन्तु शान्ति पूर्वक बिना किसी कोलाहल के हुई क्रान्ति थी जिसने अंग्रेजी समाज में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण परिणाम दिये। औद्योगिक क्रान्ति के प्रमुख प्रभावों का वर्णन हम निम्न प्रकार से कर सकते हैं।

1. सामाजिक प्रभाव-

1. समाज का नया विभाजन-

औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप समाज तीन नये वर्गों में विभाजित हो गया (1) पूँजीपति (2) मध्यम वर्ग (3) मजदूर वर्ग। इस क्रान्ति के परिणामस्वरूप पूँजीपति दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली एवं धनी होते गए परन्तु मजदूर वर्ग की दशा दयनीय होती चली गई।

2. मध्यम वर्ग का उदय-

औद्योगिक क्रान्ति के फलस्वरूप मध्यम वर्ग का तेजी से विकास हुआ। इस वर्ग की व्यवसाय के क्षेत्र में काफी रुचि थी। अतः औद्योगिक विकास के साथ-साथ मध्यम वर्ग का भी विकास होता गया। कुछ ही समय में मध्यम वर्ग का इतना प्रभाव बढ़ गया कि वह समाज का नेतृत्व करने लगा।

3. मजदूरों की दयनीय दशा-

कारखानों में काम करने वाले मजदूरों की दशा अत्यन्त शोचनीय हो गई। उन्हें कम से कम मजदूरी दी जाती थी तथा उनसे अधिक से अधिक काम लिया जाता था। मजदूरों को नगर के गन्दे मकानों में रहना पड़ता था। इन मकानों में वायु, प्रकाश, पानी आदि की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसके अतिरिक्त मजदूरों को गन्दे कारखानों में काम करना पड़ता था।

4. मजदूरों का जीवन अनैतिक होना-

औद्योगिक क्रांति के कारण लोगों का नैतिक पतन हुआ। थकावट को दूर करने के लिए उन्होंने मद्यपान, वैश्यावृत्ति, जुआ आदि का सहारा लिया। इससे समाज का नैतिक पतन शुरू हुआ।

5. संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन-

औद्योगिक क्रांति ने संयुक्त परिवार प्रणाली के विघटन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अब संयुक्त परिवारों के स्थान पर छोटे-छोटे परिवारों का उदय हुआ।

6. जनसंख्या में वृद्धि-

औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई। गाँवों की जनसंख्या घटती चली गई और गाँव उजड़ते चले गये तथा नगरों की जनसंख्या में वृद्धि होने लगी।

7. मानव जीवन का सुखी होना-

औद्योगिक क्रांति ने मानव जीवन की सुख- सुविधा में वृद्धि की। उत्पादन में वृद्धि की। उत्पादन में वृद्धि होने से दैनिक जीवन की वस्तुएँ सस्ती एवं अच्छी मिलने लगीं। अब लोगों को रेडियो, सिनेमा, टेलीविजन आदि के रूप में मनोरंजन के श्रेष्ठ साधन उपलब्ध होने लगे।

8. नवीन समस्याएँ-

औद्योगिक क्रांति ने अनेक नवीन समस्याओं को भी जन्म दिया। औद्योगिक क्रांति के कारण नगरों में कोलाहल बढ़ गया। कारखानों की चिमनियों से निकलने वाले धुएँ तथा पेट्रोल और डीजल से चलने वाली गाड़ियों ने नगरों के वातावरण को दूषित कर दिया।

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औद्योगिक क्रांति के प्रभाव


2. आर्थिक प्रभाव-

1. दैनिक जीवन की वस्तुओं का सस्ता होना-

कारखानों में उत्पादित वस्तुएँ गृह उद्योग धन्धों से निर्मित वस्तुओं से सस्ती होती थीं। अत: दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुएँ पहले की अपेक्षा काफी सस्ती हो गई।

2. बड़े कारखानों की स्थापना-

औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप बड़े-बड़े कारखानों की स्थापना हुई जिनमें हजारों लोग एक साथ काम करते थे। इन कारखानों में बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन किया जाता था।

3. नये नगरों का विकास-

औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप कई नये नगरों का विकास हुआ। इंग्लैण्ड में मैनचेस्टर, लिवरपूल, लंकाशायर आदि बड़े-बड़े नगरों की स्थापना हुई।

4. जनसंख्या में वृद्धि-

औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप अनेक देशों की जनसंख्या में वृद्धि हुई। कृषि और उद्योग-धन्धों की उन्नति के कारण लोगों को पहले की अपेक्षा अच्छा भोजन मिलने लगा। इसके अतिरिक्त लोगों के जीवन स्तर में उन्नति होने तथा चिकित्सा की सुविधाओं के उपलब्ध होने से मृत्यु की गति भी काफी कम हो गई।

5. मानव जीवन स्तर ऊँचा उठना-

औद्योगिक क्रांति के कारण मानव जीवन के रहन-सहन के स्तर में काफी वृद्धि हुई। इस क्रान्ति से ऐसी वस्तुओं का निर्माण हुआ, जिनसे मानव जीवन का स्वरूप ही बदल गया।

6. वाणिज्य व्यवसाय का विकास-

औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप व्यापार के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई हुई। अब कारखानों में बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा। यातायात के नये साधनों के कारण भी व्यापार की उन्नति हुई।

7. पूँजीवाद का प्रादुर्भाव-

औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप विश्व दो प्रमुख गुटों में बंट गया है- (1) पूँजीवाद, (2) साम्यवाद। कारखानों के उत्पादन में वृद्धि हो जाने से कारखानों के मालिकों की पूँजी बढ़ने लगी और वे दिन-प्रतिदिन धनी होते चले गए।

8. घरेलू उद्योग-धन्धों का विनाश-

औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप घरेलू उद्योग-धन्धों का पतन हुआ। मशीनों द्वारा निर्मित वस्तुएँ अधिक सस्ती होती थीं। परिणामस्वरूप जन-साधारण ने मशीनों द्वारा निर्मित वस्तु खरीदना शुरू कर दिया। इसका घरेलू उद्योग धन्धों पर घातक प्रभाव पड़ा तथा घरेलू उद्योग धन्धे चौपट होते चले गए।

9. बेरोजगारी की समस्या-

घरेलू उद्योग धन्धों के नष्ट हो जाने से असंख्य मजदूर बेरोजगार हो गए। कल-कारखानों में सभी मजदूरों के लिए स्थान मिलना संभव नहीं था। इस कारण बहुत से मजदूर बेकार होने लगे।

10. यातायात के साधनों का विकास-

औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप यातायात के साधनों का पर्याप्त विकास हुआ। नहरों, रेलवे, लाइनों, सड़कों आदि का निर्माण किया गया। इस प्रकार रेलों, वायुयानों, जहाजों आदि का निर्माण हुआ।

11. बाजार पर नियंत्रण-

औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप प्रत्येक देश अपने राष्ट्रीय बाजार को संरक्षण देने लगा। इस प्रकार राष्ट्रीय उत्पादन को महत्त्व दिया जाने लगा। अन्य राष्ट्रों की नीर्मित वस्तुओं पर भारी चुंगी कर लगाया जाने लगा ताकि वे स्वदेशी वस्तुओं का मुकाबला न कर सके।

12. परस्पर निर्भरता-

औद्योगिक क्रांति ने संसार के सभी देशों को परस्पर निर्भर बना दिया। आज औद्योगिक देश कच्चे माल के लिए पिछड़े देशों पर निर्भर हैं तथा पिछड़े देश मशीनों तथा निर्मित माल के लिए औद्योगिक देशों पर निर्भर हैं। इस प्रकार ओद्योगिक क्रांति ने सभी को एक दूसरे पर निर्भर बना दिया है।

3. राजनीतिक प्रभाव-

1. राजनीतिक सुदृढ़ता-

औद्योगिक क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम है- औद्योगिक देशों की राजनीतिक सुदृढ़ता। प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि हुई। यातायात व संचार के साधनों का विकास हुआ तथा आर्थिक व्यवस्था को स्थायित्व मिला, इन सबने मिलकर राजनीतिक सुदृढ़ता को बल प्रदान किया। चूँकि प्रत्येक देश की विस्तारवादी नीति की सफलता उसकी आर्थिक सुदृढ़ता पर ही निर्भर है। अत: अधिक सम्पन्न देश औपनिवेशिक विस्तार करने में सफल रहे।

2. औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा-

यद्यपि औपनिवेशिक प्रतिस्पर्धा का कार्य काफी पहले से ही आरम्भ हो गया था लेकिन जब अमेरिका के तेरह उपनिवेश इंग्लैण्ड के हाथ से निकल गये तो इस कार्य में काफी शिथिलता आ गयी। लेकिन औद्योगिक क्रान्ति ने इस प्रवृत्ति को पुनः सक्रिय बनाया, यूरोप में अपेक्षित कच्चा माल प्राप्त करने व बने माल को बेचने के लिये बाजार की आवश्यकता थी, जिसकी पूर्ति केवल उपनिवेशों से ही हो सकती थी। अतः उपनिवेशों की स्थापना करने व कमजोर देशों पर राजनीतिक नियन्त्रण प्राप्त करने की प्रवृत्ति को बल मिला। इसी को हम साम्राज्यवाद कहते हैं। इस क्षेत्र में इंग्लैण्ड सबसे आगे निकल गया।, इस दौड़ में इटली व जर्मनी काफी पीछे रह गये क्योंकि वे एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप में 1870 ई. में अन्तर्राष्ट्रीय रंगमंच पर प्रकट हो पाये थे। इन दोनों देशों में राजनीतिक मनमुटाव पैदा हो गया। इससे प्रत्येक देश को सुरक्षा की चिन्ता लग गयी। इसका परिणाम यह निकला कि विश्व दो परस्पर विरोधी गुटों में बँट गया।

3. विदेशी नीतियों में परिवर्तन-

औद्योगिक क्रान्ति के बाद धर्म व जाति की बात गौण हो गयी। उसके स्थान पर उपनिवेशों तथा अविकसित देशों के नियन्त्रण व राष्ट्रीय हितों की बात अधिक महत्त्वपूर्ण हो गयी। जैसे कि तुर्की की सरकार व उसके अधिकारी बाल्कन राष्ट्रों की जनता पर जुल्म करते रहे, लेकिन अपनी सुरक्षा व राष्ट्रीय नीति के कारण इंग्लैण्ड हमेशा तुर्की का साथ देता रहा। अब उसकी विदेश नीति महाद्वीपीय स्तर से हटकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की हो गयी।

4. मध्यम वर्ग का राजनीतिक उत्कर्ष-

औद्योगिक क्रान्ति को सफल बनाने व उसका अत्यधिक लाभ उठाने वाला मध्यम वर्ग ही था। शिक्षा व धन दोनों ही क्षेत्रों में मध्यम वर्ग कुलीनों व सामन्तों से काफी आगे निकल गया था, लेकिन उसके पास राजनीतिक अधिकार नहीं थे। यह एक आश्चर्य की बात थी कि औद्योगिक क्रान्ति सबसे पहले इंग्लैण्ड में आरम्भ हुयी लेकिन सबसे पहले राजनीतिक अधिकार अमेरिका के मध्यम वर्ग को मिले। इसके बाद फ्रांस के मध्यम वर्ग को अधिकार मिले, 1832 ई. में इंग्लैण्ड के मध्यम वर्ग को अधिकार प्राप्त हुये जबकि उदारवादी दल की सरकार ने प्रथम सुधार बिल पास करवाया।

5. श्रमिकों का संघर्ष-

श्रमिकों को अपने अधिकारों के लिये निरन्तर संघर्ष करना पड़ा। राबर्ट ओवन जैसे साहसी सुधारक ने उनका पक्ष लेकर सुधारों की माँग की, काफी समय के बाद सरकार ने इस तरफ ध्यान दिया। सबसे पहले 1802 ई. में एक कानून बनाया गया जिसके अनुसार यह निश्चित किया गया कि निर्धन व अनाथ बच्चों से सप्ताह में केवल 62 घण्टे काम लिया जावे। 1822 में काम के घण्टे और भी कम कर दिये गये। इन कानूनों से मजदूरों में जागृति पैदा हुयी और उनमें आत्मविश्वास बढा। अब मजदूरों के सामने दो विकल्प थे, एक वे संयुक्त होकर अपने मालिकों से माँग करे और दूसरा राजनीतिक कार्यवाही करें। लेकिन राजनीतिक कार्यवाही करना मुश्किल था और मजदूर संगठनों का एकत्र होना और भी मुश्किल था क्योंकि 1800 ई. के एक कानून के अनुसार श्रम संगठनों पर रोक लगा दी गयी थी।

1825 ई. में इंग्लैण्ड की संसद को बाध्य किया गया कि वे मजदूरों को अपनी यूनियन बनाने की अनुमति दे, कुछ समय बाद ही कई यूनियनें बनने लगीं व 1834 ई. में उन सब को मिलाकर एक नेशनल यूनियन की स्थापना का सफल प्रयास किया गया। अधिकांश यूनियनों की माँग आठ घण्टे प्रतिदिन काम करने, कारखानों की सफाई करने, काम पर सुरक्षा की स्थिति, अच्छा वेतन, बाल श्रम को बन्द करना आदि माँगों की थी। मजदूरों का यह मानना था कि जब तक उन्हें राजनीतिक अधिकार नहीं मिलेंगे, तब तक उनकी माँगें, नहीं मानी जायेगी।

1848 ई. का चार्टिस्ट आन्दोलन असफलता के साथ समाप्त हो गया लेकिन अन्त में मजदूरों को सफलता मिली और 1867 के सुधार बिल पास होते ही उन्हें वोट देने व पदासीन होने का अधिकार मिल गया। इस प्रकार उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट होता है कि औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण मौलिक परिवर्तन हुये। आर्थिक दृष्टि से समृद्धि के प्रारम्भिक वर्षों में सामाजिक उत्पीड़न की प्रक्रिया प्रबल रही। संक्रमण काल में इन बुराइयों का पाया जाना स्वाभाविक था। लेकिन धीरे-धीरे एक सुदृढ़ औद्योगिक श्रमिक वर्ग अपनी आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति को सुधारने में सफल रहा, आन्दोलन चलाये। इस प्रकार से साम्राज्यवाद के विरुद्ध इन आन्दोलनों का स्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय था। एक देश के निवासियों ने जो स्वयं साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे, दूसरे देशों में संघर्ष करने वाली जनता की सहायता की। साम्राज्यवादी देशों ने अपने उपनिवेशों पर दूसरे महायुद्ध तक कब्जा किये रखा। किन्तु युद्ध के पश्चात् करीब दो दशकों में ही अधिकतर देश स्वतंत्र होने में सफल हो गये।

इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि साम्राज्यवाद के अच्छे प्रभावों की अपेक्षा बुरे प्रभाव अधिक पड़े। साम्राज्यवाद के कारण उपनिवेश जनता को लम्बे समय तक शोषण का शिकार होना पड़ा। उपनिवेश देशों का मार्थिक दृष्टि से ही नहीं अपितु सांस्कृतिक दृष्टि से भी पतन हुआ।

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