औद्योगिक क्रांति का
अर्थ
जब गृह उद्योगों
की अपेक्षा कारखानों में विशाल पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन किया जाने लगा जिसके
परिणामस्वरूप व्यवसाय, यातायात, संचार आदि क्षेत्रों में
परिवर्तन हुए। उन सभी परिवर्तनों को हम सामूहिक रूप से औद्योगिक क्रांति
कहते हैं। इस प्रकार उत्पादन के साधनों में जो क्रांतिकारी परिवर्तन हुए, उसे औद्योगिक क्रांति
कहा जाता है।
इतिहासकार डेविस ने औद्योगिक क्रांति की परिभाषा देते हुए लिखा है कि, “औद्योगिक क्रांति का अभिप्राय उन परिवर्तनों से है जिन्होंने यह सम्भव कर दिया है कि मनुष्य उत्पादन के प्राचीन साधनों को त्याग कर बड़े पैमाने पर विशाल कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर सके।”
डॉ. पी.बी.
सक्सेना ने इस क्रांति
का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है कि, “उत्पादन के साधनों में परिवर्तन हो जाने का नाम ही औद्योगिक
क्रांति है।”
इतिहासकार हेजन
का कथन है कि,
“औद्योगिक क्रांति
से तात्पर्य गृह उद्योग-धन्धों का मशीनीकरण है।”
केसिलडीन के अनुसार “औद्योगिक क्रान्ति
एक-दूसरे से सम्बद्ध तीन क्षेत्रों से उत्पन्न प्रक्रिया का परिणाम है। ये तीन
क्षेत्र हैं (i)
आर्थिक संगठन (ii) तकनीकी और (ii) व्यापारिक ढाँचा।
एक अन्य
इतिहासकार का कथन है कि, “औद्योगिक क्रांति
परिवर्तन की उस स्थिति का द्योतक है, जिसके कारण प्राचीनकाल के सीमित गृह-उद्योगों की अपेक्षा
वाष्प या विद्युत यन्त्रों की सहायता से कारखानों में बहुत बड़ी मात्रा में
वस्तुओं का उत्पादन हो रहा है।” औद्योगिक क्रान्ति का तात्पर्य
कुटीर उद्योग में आमूल-चूल परिवर्तन से है।
औद्योगिक क्रांति का
काल
औद्योगिक क्रांति का कार्यकाल
निर्धारित करना कठिन है। इतिहासकार टायनबी का कथन है कि, “औद्योगिक क्रांति एक
आकस्मिक घटना नहीं है। यह क्रांति आज से कई वर्षों पहले प्रारम्भ हो चुकी थी। यह
क्रमशः अपनी गति पर चलती रही और आज भी चल रही है।” फिर भी अधिकाँश इतिहासकारों ने औद्योगिक क्रांति
का काल 1770 से 1870 ई. तक निर्धारित किया है। अनेक अर्थशास्त्री इस क्रांति का
काल 1760 से 1914 स्वीकार करते हैं और इसे दो भागों में बाँटते हैं- (1) 1760
से 1830 तक तथा (2) 1830 से 1914 तक।
औद्योगिक क्रांति |
औद्योगिक क्रांति के कारण
1. राजनीतिक स्थिति-
इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन, हालैण्ड आदि देशों ने
विश्व के अनेक भागों में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए थे। दूरस्थ
उपनिवेशों पर सफलतापूर्वक शासन करने के लिए यातायात के साधनों को विकसित किया गया।
इसी कारण अनेकदेशों ने जलपोतों का निर्माण किया। इसके अतिरिक्त अनेक देशों
में जनता अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रही थी। ऐसी स्थिति में वहाँ
के शासकों ने जनता की सहानुभूति प्राप्त करने के लिए उनकी मांगों पर ध्यान देना
शुरू कर दिया। इससे वाणिज्य-व्यापार के विकास को प्रोत्साहन मिला। इसके अतिरिक्त
मानव जीवन को सुखी एवं सुदृढ़ बनाने के लिए भी प्रयत्न किये जाने लगे। इनसे औद्योगिक
क्रांति को प्रोत्साहन मिला।
2. जनसंख्या में
वृद्धि-
अठाहरवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध
तक यूरोप के देशों की जनसंख्या में काफी वृद्धि हो चुकी थी। बढ़ती हुई जनसंख्या
के कारण बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न हुई, क्योंकि कृषि के द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या को रोटी-रोजी
देना सम्भव न था। अत: अनेक लोग उद्योग-धन्धों की ओर आकर्षित हुए। दूसरी बात यह थी
कि जनसंख्या की वृद्धि के कारण दैनिक उपभोग की वस्तुओं की मांग भी बहुत अधिक बढ़
गई थी। अतः लोगों की बढ़ती हुई माँगों की पूर्ति के लिए बड़े पैमाने पर वस्तुओं का
उत्पादन करना आवश्यक था। इससे भी उद्योग-धन्धों का विकास हुआ।
3. रहन-सहन के स्तर
में वृद्धि-
मनुष्य को
सुख-सुविधाएँ मिलने से उसके रहन-सहन के स्तर में वृद्धि हुई । इससे उसकी
आवश्यकताएँ भी बढ़ीं। अतः बढ़ती हुई आवश्यकताओं से औद्योगिक विकास
को प्रोत्साहन मिला। अब भोग विलास की अनेक वस्तुओं का निर्माण किया जाने लगा। धनी
लोग बड़ी मात्रा में वैभव और विलास की वस्तुएँ खरीदने लगे। इस प्रकार भोग-विलास की
वस्तुओं की मांग बढ़ती गई तथा इस बढ़ती हुई माँग के साथ-साथ औद्योगिक विकास को
बढ़ावा मिला।
4. यूरोप में
साम्राज्यवाद का प्रबल होना-
18वीं शताब्दी
में यूरोप के शक्तिशाली देश साम्राज्यवाद की दौड़ में भाग ले रहे थे।
इंग्लैण्ड, फ्रांस, स्पेन आदि ने विश्व के
भिन्न-भिन्न भागों में अपने-अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए थे। ये अपने अधीन
देशों से कच्चा माल मंगवाते थे तथा अपना माल इन उपनिवेशों में बेचते थे। इस प्रकार
इन देशों को अपना तैयार माल खपाने के लिए उपनिवेशों के रूप में अच्छे बाजार मिल
गए। अत: ये देश बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन करने लगे तथा उन्हें उपनिवेशों
में बेचने लगे। इससे भी औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन मिला।
5. व्यापार की
उन्नति-
18वीं शताब्दी तक
यूरोप में व्यापार की अत्यधिक देशों ने अपने उपनिवेशों में व्यापारिक कम्पनियाँ
स्थापित की। भारत में भी इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की व्यापारिक कम्पनियों की स्थापना
हुई। ये देश 16वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध से ही औपनिवेशिक व्यापार में व्यस्त
हो गए। उपनिवेशक व्यापार की सफलता के लिए वस्तुओं का अधिक उत्पादन आवश्यक था।
उपनिवेशों की जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण भी वस्तुओं की माँग बढ़ रही थी।
अतः लोगों की बढ़ती हुई मांगों को पूरा करने के लिए व्यापारियों तथा पूँजीपतियों
को बड़े पैमाने पर वस्तुओं का उत्पादन करने तथा नवीन कल-कारखाने खोलने की प्रेरणा
मिली। इस प्रकार व्यापार की उन्नति ने औद्योगिक क्रांति के लिए अनुकूल
परिस्थितियाँ उत्पन्न कर दी।
6. यातायात के
साधनों का विकास-
कुतुबनुमा के आविष्कार के बाद अनेक
नवीन समुद्री मार्गों की खोज की गई। समुद्री मार्गों की खोज से यूरोप का व्यापार
अन्य देशों से होने लगा। इससे वस्तुओं की मांग बढ़ गई। यातायात के साधनों के
विकसित हो जाने के कारण व्यापार की उन्नति हुई। व्यापार की उन्नति ने अधिक उत्पादन
को प्रोत्साहन दिया जिसके फलस्वरूप नवीन कल-कारखाने स्थापित किये गये।
7. फ्रांस की
राज्य-क्रांति-
फ्रांस की राज्य-क्रांति ने भी
औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन दिया। नेपोलियन ने अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति
के लिए सम्पूर्ण यूरोप को युद्ध में धकेल दिया। इस अवसर पर इंग्लैण्ड ने अपने
सैनिकों तथा मित्र राष्ट्रों के सैनिकों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वस्तुओं
का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया। इसके अतिरिक्त नेपोलियन ने इंग्लैण्ड के व्यापार
को नष्ट करने के लिए महाद्वीपीय नीति अपनाई। उसने बर्लिन आज्ञा तथा मिलान
आज्ञा की घोषणा कर अपने अधीन राज्यों को इंग्लैण्ड से सामान मंगवाने पर प्रतिबन्ध
लगा दिया। परन्तु इन आज्ञाओं के बाद भी अनेक देश चोरी-छिपे इंग्लैण्ड से सामान
मँगाते रहे और साथ में अपने देशों के औद्योगिक विकास का प्रयत्न भी करते रहे।
युद्ध की समाप्ति के बाद इंग्लैण्ड में बेकारी फैल गई। इस बेकारी को दूर करने के
लिए उद्योग-धन्धों का विकास किया गया, जिससे उत्पादन में वृद्धि हुई। अब तैयार माल को खपाने के
लिए नये बाजार तथा नये उपनिवेशं स्थापित करने पड़े। इससे भी औद्योगिक विकास को
प्रोत्साहन मिला
8. शिक्षा का प्रसार-
पुनर्जागरण के कारण यूरोप में
शिक्षा का व्यापक प्रसार हुआ। शिक्षा के प्रसार से जनसाधारण के ज्ञान में वृद्धि
हुई और वैज्ञानिक आविष्कारों को प्रोत्साहन मिला। छापेखाने द्वारा ज्ञान-विज्ञान
की पुस्तकें, पत्र-पत्रिकाएँ छपने
लगीं। समाचार-पड़ों के द्वारा अन्य देशों के विषय में जानकारी प्राप्त होने लगी।
इससे लाभ उठाकर यूरोपीय देशों ने पिछड़े हुए देशों में अपने औपनिवेशिक राज्य
स्थापित किये। शिक्षा के विकास के कारण विज्ञान की उन्नति हुई। इससे नये-नये
आविष्कार हुए,
जिनसे औद्योगिक
क्रांति को प्रोत्साहन मिला।
9. वैज्ञानिक
आविष्कार-
वैज्ञानिक आविष्कारों ने
औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन दिया। वस्त्र व्यवसाय में अनेक महत्त्वपूर्ण
आविष्कार हुए। 'फ्लाइंग शटल' तथा 'स्पिनिंग जैनी' नामक चरखों के आविष्कारों
से वस्त्र उद्योग के क्षेत्र में पर्याप्त उन्नति हुई। इसी प्रकार कृषि के क्षेत्र
में भी कई आविष्कार हुए जिससे कृषि में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। इन आविष्कारों
ने औद्योगिक विकास को बहुत बढ़ावा दिया। सेवाइन का कथन है कि, यह विज्ञान ही था जिसने
औद्योगिक क्रांति को सम्भव बना दिया।"
10. कोयले और लोहे
की उपलब्धि-
जब एक ही स्थान
पर कोयला और लोहा उपलब्ध हो गया तो औद्योगिक क्रांति के लिए अनुकूल
परिस्थितियाँ बन गई। जब कोयला उपलब्ध नहीं होता था तो लोहा लकड़ी की
भट्टियों पर गलाया जाता था, जिसमें बहुत अधिक समय लगता था, परन्तु जब पत्थर का कोयला
उपलब्ध हो गया तो लोहा शीघ्रतापूर्वक गलाया जाने लगा। परिणामस्वरूप बड़ी-बड़ी
मशीनें बनने लगी और कल-कारखाने स्थापित होने लगे।
11. व्यापारी वर्ग-
पुनर्जागरण के कारण व्यापार-वाणिज्य
की पर्याप्त उन्नति हुई। सामन्ती व्यवस्था के समाप्त हो जाने से भी व्यापार की
उन्नति हुई। इस प्रकार व्यापारी वर्ग का उत्कर्ष हुआ। अधिक धन कमाने के लिए इस
वर्ग के लोगों ने अपना धन बड़े-बड़े कारखाने के स्थापना में लगाना शुरू कर दिया।
उन्होंने वैज्ञानिक आविष्कारों को प्रोत्साहन दिया ताकि उत्पादन के क्षेत्र में
वृद्धि की जा सके। इसके परिणामस्वरूप नये-नये यन्त्रों की खोज हुई जिससे औद्योगिक
विकास को प्रोत्साहन मिला। इस प्रकार व्यापारी वर्ग ने अपने धन की सहायता से
औद्योगिक क्रांति के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
औद्योगिक क्रान्ति
सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में प्रारम्भ हुई
प्रारम्भ में औद्योगिक क्रान्ति
की गति बहुत धीमी रही। इसका कारण यह था कि शिक्षा का प्रसार धीरे-धीरे हो रहा था
तथा वैज्ञानिक आविष्कार भी धीमी गति से हो रहे थे। औद्योगिक क्रान्ति के लिए जिन
साधनों की आवश्यकता थी वे सभी देशों के पास उपलब्ध नहीं थे। इसलिए औद्योगिक
क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैण्ड में हुई।
औद्योगिक
क्रान्ति के सर्वप्रथम इंग्लैण्ड से प्रारम्भ होने के मुख्य कारण ये थे-
1. उपयुक्त भौगोलिक
स्थिति-
इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति और
प्राकृतिक सुविधाएँ भी औद्योगिक क्रान्ति के विकास में महत्त्वपूर्ण कारण थीं।
इंग्लैण्ड की भौगोलिक स्थिति औद्योगिक क्रान्ति के अनुकूल थी। इंग्लैण्ड चारों तरफ
से समुद्र से घिरा हुआ है जिसके तट कटे फटे और श्रेष्ठ बन्दरगाहों के
निर्माण के लिए उपयुक्त थे। इसलिए इंग्लैण्ड में प्रारम्भ से ही शक्तिशाली जहाजरानी
का विकास हुआ। इसी शक्ति के बल पर इंग्लैण्ड अपना विशाल व्यापारिक साम्राज्य
स्थापित करने में सफल हुआ। प्राकृतिक साधनों में कोयले और लोहे का इंग्लैण्ड के
औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
2. पूँजी संग्रह की
परम्परा-
इंग्लैण्ड में पूँजी संग्रह की
परम्परा या दृष्टि विद्यमान थी। धार्मिक प्रवृत्तियों में संचय और मितव्ययिता को
प्रोत्साहन दिया जिससे पूँजी का संचय हुआ। बड़े उद्योगों की स्थापना के लिए पूँजी
की परम आवश्यकता होती है। इसका अभाव इंग्लैण्ड में नहीं था। इंग्लैण्ड में बैंकिंग
व्यवस्था के कारण व्यापार में सुविधा हुई तथा इस समय इंग्लैण्ड की मुद्रा की
अवस्था भी ठोस थी। वहाँ कागज की मुद्रा प्रचलित हो गई थी परन्तु
उसका व्यापार पर कोई अहितकारी प्रभाव नहीं पड़ा था। यही कारण था कि इंग्लैण्ड के
व्यापारी थोड़ी सी पूँजी लगाकर धीरे-धीरे उसके लाभ से ही बड़ी फैक्ट्रियाँ स्थापित
करने में समर्थ हो गये।
3. कोयले और लोहे का
प्रयोग-
मशीनों के
निर्माण के लिए लोहे की आवश्यकता होती है और इंग्लैण्ड में तो लोहे की कमी नहीं
थी। शेफील्ड सर हेनरी बेसम्बर ने शीघ्र ही कच्चे लोहे
से फौलाद बनाने की विधि खोज निकाली थी। इससे परिणाम यह हुआ कि फौलाद लोहे के भाव
मिलने लगा। लोहे के गलाने के लिए कोयले की आवश्यकता होती है और इंग्लैंड में कोयला
भी खानों से भारी मात्रा में निकाला जाने लग गया था। इससे लोहे को गलाने की समस्या
भी नहीं रही। इस लोहे और कोयले के भारी मात्रा में मिलने का परिणाम यह हुआ कि
इंग्लैण्ड यूरोप में प्रथम बड़ी-बड़ी मशीनें बनाने लग गया जिनसे उसने अपने
औद्योगिक विकास में पर्याप्त सहयोग लिया।
4. वाष्पशक्ति का
आविष्कार-
कोयले की प्राप्ति के बाद
वैज्ञानिकों ने उसकी सहायता से वाष्प शक्ति का आविष्कार किया। सन् 1769 ई. में
ग्लासगो के जेम्सवाट ने एक भाप से चलने वाले इंजन का
आविष्कार किया और सन् 1783 ई. में उस इंजन का नाटिंघम में एक सूती कपड़े के
कारखाने में प्रयोग किया गया। इस प्रकार वाष्प शक्ति ने औद्योगिक क्रान्ति के
विकास में एक नवीन प्रेरणा का संचार किया।
5. इंग्लैण्ड का
साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद-
क्रान्ति के समय इंग्लैण्ड ने
दुनिया में चारों तरफ अपने उपनिवेश स्थापित कर लिये थे। अपनी आर्थिक नीति से
इंग्लैण्ड की सरकार ने अपने उपनिवेशों के सारे के सारे उत्पादन को समाप्त कर दिया
था। अतः वे उपनिवेश इंग्लैण्ड के सामान को खरीदने के अच्छे बाजार व मंडियाँ बन
गये। वहाँ इंग्लैण्ड के व्यापारी से अपना तैयार माल भेज सकते थे और वहाँ से कच्चा
माल मँगा सकते थे। कच्चे सामान की उपलब्धि से इंग्लैण्ड का उत्पादन दिनों-दिनों
बढ़ता ही चला गया।
6. इंग्लैण्ड के
वैज्ञानिक आविष्कार-
इंग्लैण्ड में सन् 1758 ई. में लंकाशायर
निवासी जॉन के ने एक उड़ती ढरकी का आविष्कार
किया। इसकी सहायता से एक जुलाहा दस आदमियों के बराबर सूत कातने लगा। सन् 1764 ई.
में ब्लैक नगर निवासी जैमन हार ग्रीव्स ने एक ऐसा चरखा बनाया जिस पर एक साथ
आठ तकुए घूम सकते थे। सन् 1769 ई. में रिचार्ड आर्क राईट ने एक चरखा बनाया
जो पानी की सहायता से चल सकता था। इस अद्भुत आविष्कार से आर्क राइट ने
इंग्लैण्ड में महान् सूती व्यवसाय की नींव रखदी और फैक्टरी सिस्टम
को जन्म दिया। सन् 1779 ई. में सैम्यूअल काम्पटन ने एक ऐसा चरखा
बनाया जिसमें उसके पूर्व में दोनों चरखों के गुण विद्यमान थे। इन आविष्कारों से
इंग्लैण्ड शीघ्र ही एक औद्योगिक देश बन गया। सूत इंग्लैण्ड से निर्यात होने लगा।
सन् 1784 ई. में कार्ट राइट ने शक्ति संचालित करघे का आविष्कार किया
उससे वस्त्र खूब बुना जाने लगा।
7. यातायात के साधन-
अठारहवीं सदी के
उत्तरार्द्ध में इंग्लैण्ड में यातायात के साधन अधिक विकसित नहीं थे, परन्तु फिर भी उसकी
सामुद्रिक शक्ति विश्व में महान् बन चुकी थी। स्टीफेन्सन ने इंजन से
संचालित रेल-गाड़ियों से स्थल यातायात में महान् क्रान्ति उत्पन्न कर दी। कामेट
के जलपोत ने भी समुद्री यात्राओं को भी एक सरल कार्य बना दिया। सन् 1838 ई. में ग्रेट
वेस्टर्टीन नामक जलपोत ने अटलाण्टिक महासागर पार
किया। इस प्रकार धीरे-धीरे इंग्लैण्ड की नौ सैनिक शक्तिं विकसित होती रही और
इंग्लैण्ड विश्व के देशों में शक्तिशाली बनता गया।
8. रसायन शास्त्र
में उन्नति-
पहले कपड़े के ब्लीचिंग
में आठ मास लगते थे। परन्तु सन् 1784 ई. में रोचक ने ब्रिटिश तेल का आविष्कार किया
जिससे वस्त्रों का ब्लीचिंग विलम्बकारी न रहा। इसी प्रकार रसायनशास्त्र के
वेत्ताओं ने कई प्रकार के रंगों का आविष्कार किया। इस प्रकार रंगाई के नवीन तरीकों
तथा वस्त्र के ब्लीचिंग के नवीनीकरण ने इंग्लैण्ड के वस्त्र उद्योग को बहुत उन्नत
बना दिया।
9. सरकार का व्यापार
को संरक्षण देना-
18वीं शताब्दी में इंग्लैण्ड की सरकार व्यापार के क्षेत्र मंक संरक्षण की नीति पर आचरण कर रही थी। इसके परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड के व्यापारी नि:संकोच होकर विदेशों में पूँजी लगा रहे थे। उन्हें विदेशों में माल भेजने में किसी प्रकार का संकोच व भय नहीं होता। उन्हें केवल चिन्ता रहती तो अपना उत्पादन बढ़ाने की तथा उससे उपनिवेश निवासियों की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने की। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि औद्योगिक क्रान्ति के लिए जिन साधनों या परिस्थितियों की आवश्यकता होती है वे सब इंग्लैण्ड में विद्यमान थीं अत: सबसे पहले क्रान्ति इंग्लैण्ड में ही हुई।
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