Heade ads

क्या इतिहास में नियम बनाए जा सकते है?

इतिहास में नियमों की सम्भावना

इतिहास भौतिक विज्ञानों से भिन्न अतीत की विशेष घटनाओं के वर्णन से सम्बन्ध रखता है न कि इन घटनाओं को प्रशासित करने वाले सामान्य नियमों से। परन्तु जहाँ तक वैज्ञानिक ऐतिहासिक शोध में सामान्य नियमों के सैद्धान्तिक कार्य का प्रश्न है, वह कथन अमान्य है।

सामान्य नियमों का इतिहास में तथा प्राकृतिक विज्ञानों में बहुत कुछ एक जैसा कार्य होता है। ये ऐतिहासिक शोध के आवश्यक साधन हैं। ये विभिन्न प्रक्रियाओं के सामान्य आधार हैं जिनको प्रायः प्राकृतिक विज्ञानों के विरुद्ध सामाजिक विज्ञानों की विशेषताएँ समझा जाता है।

नियम का अर्थ-

इतिहास का प्रत्येक दर्शन इस बात पर जोर देता है कि मानव जगत् में घटनाएँ कुछ नियमितता के साथ घटित होती हैं। इतिहास में पुनरावृत्ति की नियमितता है, जिसे प्रत्येक इतिहास के दर्शन का मूल तत्त्व माना जाता है और इसे इतिहास का नियम कहा जाता है।

नियमों की रचना मूर्त रूप से कारण-कार्य की मान्यता को स्वीकार करती है। तदनुसार न केवल यह माना जाता है कि कुछ घटनाएँ नियमितता से घटित होती हैं, वरन् इन नियमितताओ में से कुछ का उल्लेख किया जा सकर्ता है और नाम दिया जा सकता है।

इतिहास का नियम प्रकृति के नियम की तरह साधारण शक्ति की अपेक्षा एक परिकल्पना है, परन्तु इसे प्रत्येक अन्य परिकल्पना की तरह अस्वीकार किया जा सकता है, यदि वह कार्य न करे। 'नियम' इस विचार को प्रकट करता है कि सम्बन्धित कथन को विश्वसनीय उपलब्ध प्रमाण के आधार पर वास्तव में स्वीकार कर लिया गया है। स्वीकृति से पूर्व इसे सार्वभौमिक रूप की परिकल्पना भी कहा जा सकता है।

क्या इतिहास में नियम बनाए जा सकते है?
इतिहास में नियम

हेम्पेल का दृष्टिकोण-

कार्ल जी. हेम्पेल ने लिखा है कि "सार्वभौमिक परिस्थिति में साक्ष्यों पर आधारित किसी विचार की पुष्टि को नियम कहते हैं। विज्ञान में सामान्य नियम का प्रयोग स्पष्टीकरण के माध्यम से घटनाओं की क्रमबद्धता तथा भविष्यवाणी के लिए किया जाता है।"

कुछ विद्वानों का विचार है कि भौतिकशास्त्र, रसायनशास्त्र तथा जीव विज्ञान में जिस सामान्य नियम का प्रयोग किया जाता है, उसका स्वरूप सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक है। इतिहास का सम्बन्ध विशेष व्यक्ति, स्थान तथा विशेष घटना से होता है। इन ऐतिहासिक तथ्यों का स्वरूप सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक होता है। अत: इतिहास में सामान्य नियमों के प्रयोग का कोई औचित्य नहीं है।

कार्ल जी. हेम्पेल के अनुसार इतिहास को सामान्य नियम से अलग करना एक भूल है। सामान्य नियम का कार्य वैज्ञानिक भविष्यवाणी होता है। अतीतकालिक घटना के आधार पर वैज्ञानिक ग्रहों की वर्तमान स्थिति का अध्ययन कर भविष्य में चन्द्रग्रहण अथवा सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी कर सकता है। इतिहासकार विभिन्न घटनाओं को क्रमबद्ध करके अतीत का चित्रण प्रस्तुत करता है। वह अपनी उपलब्धियों का प्रस्तुतीकरण कुछ नियमों के आधार पर करता है। इन नियमों के द्वारा वह अतीतकालिक घटना का अर्थ प्रदान करता है। वह अपनी सार्वभौमिक परिकल्पना द्वारा इतिहास को मनोवैज्ञानिक, आर्थिक तथा सामाजिक भागों में विभक्त करता है।

हेम्पेल के अनुसार इतिहास का इस प्रकार विभक्तीकरण एक प्रकार के नियम का संकेत करता है। एक सेना की पराजय के कारणों की व्याख्या में इतिहासकार सामान्य नियम द्वारा कह सकता है कि उपयुक्त रसद सामग्री का अभाव, प्रतिकूल मौसम अथवा महामारी कारण हो सकती है।

इसी प्रकार किसी क्रान्ति के कारणों की व्याख्या में इतिहासकार सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक कारणों का विश्लेषण सामान्य नियमों के आधार पर करता है। यद्यपि अतीतकालिक घटना का पुनः प्रत्यक्षीकरण सम्भव नहीं है, फिर भी वह वर्तमान में सामान्य नियमों द्वारा अतीतकालिक विभिन्न घटनाओं की क्रमबद्धता प्रदान करता है। अत: इतिहास में सामान्य नियमों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है।

हेम्पेल के दृष्टिकोण की आलोचना-

माइकेल स्क्रीवेन ने हेम्पेल के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए लिखा है कि इतिहासकार अपने ऐतिहासिक स्पष्टीकरण में न तो सामान्य नियम का प्रयोग कर सकता है और भविष्यवाणी करने की स्थिति में होता है। सामान्य नियम के स्थान पर उसके लिए निगमन तर्कविधि का प्रयोग उचित होता है। विलियम विजेता ने स्काटलैण्ड पर आक्रमण नहीं किया। इसके स्पष्टीकरण में इतिहासकार कह सकता है कि स्काटलैण्ड के शासक की पराजय के पश्चात् उसने अपने राज्य की उत्तरी सीमा को सुरक्षित कर लिया था। अत: स्काटलैण्ड पर आक्रमण का कोई औचित्य नहीं था। इस स्पष्टीकरण में किसी नियम की आवश्यकता नहीं है।

इतिहासकार कथन मात्र के आधार पर स्पष्टीकरण करता है। तर्कयुक्त व्याख्या उसके स्पष्टीकरण को सरल, सुगम तथा सुबोध बनाती है। इतिहासकार के स्पष्टीकरण में औचित्य का आधार यथार्थता होनी चाहिए। इसके लिए सामान्य नियम की आवश्यकता नहीं होती है।

नियमों के कार्य-

1. नियमों के आधार पर घटनाओं का वर्णन करना-

नियमों के आधार पर घटनाओं का वर्णन किया जाता है तथा भविष्यवाणी की जाती है। नियम हमें सार्वभौमिक परिकल्पना की क्षमता प्रदान करता है। इतिहास अपने अध्ययन के विषय में विलक्षण व्यक्तित्व को भौतिकशास्त्र या रसायनशास्त्र की भाँति प्राप्त कर सकता है। इस दृष्टि से निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं-

(i) कुछ प्रकार की घटनायें अनेक प्रकार की घटनाओं का कारण मानी जा सकती हैं जब उन सामान्य नियमों का उल्लेख किया जा सके जो कारण तथा कार्य में सम्बन्ध स्थापित करते हैं।

(ii) कार्य और कारण की शब्दावली का प्रयोग किया जाए अथवा न किया जाए, किन्तु फिर भी वैज्ञानिक व्याख्या प्राप्त की जा सकती है यदि अनुभवात्मक नियमों का इस पर प्रयोग किया जा सकता है।

(iii) वैज्ञानिक प्रकृति की व्याख्या में निर्धारक परिस्थितियों का उल्लेख करने वाले वाक्यों की अनुभवात्मक जाँच होती है। इसमें उस सार्वभौमिक परिकल्पना की अनुभवात्मक जाँच होती है जिस पर व्याख्या निर्भर करती है और जाँच होती है कि व्याख्या तार्किक रूप से निर्णयात्मक है अथवा नहीं।

2. सामान्य नियमों का कार्य भविष्यवाणी की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है-

सामान्य नियमों का कार्य भविष्यवाणी की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता है। अनुभवात्मक विज्ञानों में कुछ ज्ञात परिस्थितियों और उपयुक्त सामान्य नियमों के आधार पर तार्किक रूप से वैज्ञानिक भविष्यवाणी की जाती है। अनुभवात्मक विज्ञानों में व्याख्या की तरह भविष्यवाणी भी हमेशा सार्वभौमिक परिकल्पना के सन्दर्भ में होती है। व्याख्या और भविष्यवाणी में परम्परागत अन्तर दोनों के व्यवहारवादी अन्तर पर निर्भर करता है। व्याख्या में अन्तिम घटना व्याख्या का घटित होना ज्ञात होता है और उसकी निर्धारक परिस्थितियों की खोज करनी होती है। भविष्यवाणी में प्रारम्भिक परिस्थितियाँ दी हुई होती हैं और उनके परिणाम जो कि होने हैं, ज्ञात करने की चेष्टा की जाती है।

व्याख्या उस समय तक पूर्ण नहीं होती जब तक कि वह भविष्यवाणी के रूप में कार्य न करे। यदि अन्तिम घटना प्रारम्भिक परिस्थितियों से निकाली जा सके और व्याख्या में वर्णित सार्वभौमिक परिकल्पना से प्राप्त की जा सके, तो वास्तव में इसके घटने से पूर्व इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है क्योंकि प्रारम्भिक परिस्थितियों का ज्ञान और सामान्य नियम उपस्थित रहते हैं। यह स्थिति एक ज्योतिषी की भाँति है जो ग्रहों की गति के ज्ञान एवं तत्सम्बन्धी सामान्य नियमों के आधार पर भविष्यवाणी करता है।

3. इतिहास के अवबोध के लिए सामान्य नियमों का महत्त्व-

इतिहास के अवबोध के लिए भी सामान्य नियमों का महत्त्व है। कार्ल जी. हेम्पेल के अनुसार इतिहास की व्याख्या को सामान्य नियम से अलग रखना एक भूल है। उसने लिखा है कि "सामान्य नियम का कार्य वैज्ञानिक भविष्यवाणी होता है।" इतिहास की व्याख्याओं में प्राय: सामान्य नियमितता पाई जाती है। यह नियमितता सामान्य नियमों के बिना सम्भव नहीं हो सकती। किसी भी अन्य अनुभवात्मक विज्ञान की भाँति इतिहास में वैज्ञानिक व्याख्या उपयुक्त सामान्य परिकल्पनाओं के माध्यम से या सिद्धान्तों द्वारा प्राप्त की जा सकती है।

4. ऐतिहासिक शोध की विभिन्न शाखाओं में प्रयोग करना-

इतिहासकार व्याख्या के समय जिन सार्वभौमिक परिकल्पनाओं, भविष्यवाणियों, विवेचनों आदि का नाम लेते हैं, उनका प्रयोग वैज्ञानिक शोध की विभिन्न शाखाओं में किया जाता है क्योंकि वे दिन-प्रतिदिन के अनुभवों के पूर्व-वैज्ञानिक सामान्यीकरण नहीं है। ऐतिहासक व्याख्या से जुड़ी हुई अनेक सार्वभौम परिकल्पनाएँ सामान्य रूप से मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, समाजशास्त्रीय तथा सम्भवत: आंशिक रूप से ऐतिहासिक नियमों के रूप में वर्गीकृत की जा सकती हैं।

इनके अतिरिक्त ऐतिहासिक बोध में भौतिकशास्त्र, रसायनशस्त्र तथा जीवशास्त्र में स्थापित नियमों को भी काम में लिया जाता है। उदाहरण के लिए, सेना की पराजय के कारणों की व्याख्या में इतिहासकार सामान्य नियम द्वारा कह सकता है कि उपयुक्त रसद सामग्री का अभाव, प्रतिकूल मौसम अथवा महामारी कारण हो सकते हैं। अभिलेखों, चित्रों, सिक्कों आदि की प्रामाणिकता जाँचने के लिए भौतिक तथा रासायनिक सिद्धान्तों का उपयोग किया जाता है।

सामान्यीकरण-

ऐतिहासिक घटनाओं की क्रमबद्धता के पश्चात् इतिहासकार सामान्यीकरण के माध्यम से महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष प्रस्तुत करता है। गार्डिनर के अनुसार सामान्यीकरण ऐतिहासिक घटना का मार्गदर्शन है। ऐतिहासिक स्पष्टीकरण में सामान्यीकरण का अभिप्राय सामान्य ज्ञान तथा बौद्धिक ज्ञान का प्रस्तुतीकरण होता है, जो जटिल विषय को सरल, सुबोध तथा सुगम बना देता है। उदाहरणार्थ,"शक्ति भ्रष्ट करती है और सर्वशक्तिमान सभी को भ्रष्ट बना देता है।" इस प्रकार एक भ्रष्य व्यवस्था की अभिव्यक्ति इतिहासकार एक वाक्य द्वारा करता है। इसी प्रकार मानसिक प्रक्रिया, व्यक्तिगत योग्यता तथा एक वर्ग को स्पष्ट करने के लिए कुछ विशेष शब्दों का प्रयोग करता है, जैसे प्यूरिटन मस्तिष्क, प्रशियन अधिकारी, विक्टोरियन व्यापारी इत्यादि। इतिहास में इस प्रकार का सामान्यीकरण एक विशेष व्यवस्था का संकेत करता है।

एक व्यक्ति के प्रतिशोध की अभिव्यक्ति के लिए चाणक्य का उद्धरण दिया जाता है कि उसने कुशा का अन्त करने के लिए उसकी जड़ में मट्ठा छोड़ा था। इसी प्रकार एक दुर्व्यवस्था की अभिव्यक्ति के लिए एक हिन्दी कहावत है- "टका सेर भाजी टका सेर खाजा, अंधेपुर नगरी चौपट राजा।" इस प्रकार सामान्यीकरण के माध्यम से इतिहासकार कुछ शब्दों अथवा वाक्यों के माध्यम से ऐतिहासिक स्पष्टीकरण करता है। चार्ल्स फ्रैंकेल के अनुसार, "सामान्यीकरण इतिहासकार के वर्ण्यविषय को सजीवता प्रदान करता है।"

ई.एच. कार लिखते हैं कि "सामान्यीकरण का वास्तविक मुद्दा यह है कि इसके माध्यम से हम इतिहास से सीखने की कोशिश करते हैं। घटनाओं के एक सेट से प्राप्त ज्ञान को हम घटनाओं के दूसरे सेट पर लागू करना सीखते हैं और जब हम सामान्यीकरण करते हैं, तो सचेत या अचेत रूप से हम यह काम कर रहे होते हैं। जो लोग सामान्यीकरण का तिरस्कार करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि इतिहास का सरोकार मुख्यत: असामान्य या विशिष्ट से होता है। वे सही मायनों में ऐसे लोग हैं जो इससे इन्कार करते हैं कि इतिहास से कुछ सीखा जा सकता है। परन्तु यह मान्यता है कि व्यक्ति इतिहास से कुछ नहीं सीखता, अनेकानेक दृश्यमान तथ्यों द्वारा गलत सिद्ध होती है।"

डॉ. गिरिजाशंकर प्रसाद मिश्र ने लिखा है कि "इतिहास साक्ष्य के नियमों से नियन्त्रित बौद्धिक शाखा है किन्तु एलन बुलक इतिहासकार को चित्रकार अथवा उपन्यासकार से तुलनीय समझता है। उसके अनुसार इतिहास कदापि विज्ञान के समान सामान्यीकरण नहीं कर सकता। इतिहासकार विशिष्ट परिस्थितियों के अन्तर्गत स्थित विशिष्ट व्यक्ति अथवा घटना की ओर आकर्षित होता है और उसी का वर्णन करने में अपनी कुशलता प्रदर्शित करता है। जैसे ही इतिहासकार अपनी व्याख्या प्रस्तुत करना प्रारम्भ करता है, उसके लिए सभी प्रकार की सामान्य प्रस्थापनाओं का प्रयोग आवश्यक हो जाता है-मानवीय व्यवहार के बारे में, आर्थिक पक्षों के प्रभाव, विचारों के प्रभाव तथा सैकड़ों अन्य चीजों के बारे में। इतिहासकार के लिए इन प्रस्थापनाओं का तिरस्कार करना असम्भव है, यदि वह न भी चाहे, तो वह पीछे के दरवाजे से घुस बैठती है।"

सामान्यीकरण को विशिष्ट सामान्यीकरण की संज्ञा-

इतिहासकार के सामान्यीकरण को विशिष्ट सामान्यीकरण की संज्ञा दी जा सकती है क्योंकि वह तर्क-वितर्क का प्रयोग ऐतिहासिक स्पष्टीकरण में करता है। ऐतिहासिक स्पष्टीकरण में सामान्यीकरण के माध्यम से वह कारणों की व्याख्या करता है। लुई चौदहवें की अलोकप्रियता का कारण उसकी कठोर कर-नीति था। इतिहासकार अपने सामान्यीकरण की पुष्टि अनेक तर्कों द्वारा करता है। क्लियोपेट्रा की सुन्दरता ने एंटोनी को मिस्र में रुकने के लिए विवश कर दिया था।

इतिहासकार इसे यथावत् स्वीकार न करके अपने सामान्यीकरण की पुष्टि के लिए अनेक प्रकार के तर्क-वितर्क का प्रयोग करता है। क्या सभी सेनापति सौन्दर्य के प्रति आकृष्ट होते हैं? यह सन्देहास्पद है। क्या क्लियोपेट्रा की सुन्दरता ने मिस्र जाने वाली सभी महान् विभूतियों को आकृष्ट कर मिस्र में रुकने के लिए विवश किया। इसका कोई अर्थ प्रामाणिक नहीं है। क्या क्लियोपेट्रा जैसी सुन्दर स्त्री को देखकर एंटोनी अन्य अवसरों पर भी मुग्ध हुआ था। उसका सैनिक व्यक्तित्व तथा पदोन्नति इस तर्क को प्रमाणित नहीं करते।

इस प्रकार तर्क-वितर्क के पश्चात् इतिहासकार ने अपने सामान्यीकरण में क्लियोपेट्रा की सुन्दरता के प्रति आकर्षण को उद्धृत किया है। एक अफगान इतिहासकार ने लिखा है कि गौड़ का किला छोड़ते समय शेरखाँ ने हुमायूँ को मुग्ध करने के लिए वहाँ एक सुन्दर स्त्री छोड़ दी थी। उसकी सुन्दरता के प्रति हुमायूँ इतना अधिक मुग्ध हो गया था कि एक माह तक उसने अधिकारियों से भेंट नहीं की। ऐसे अवसर पर इतिहासकार क्लियोपेट्रा के प्रति ऐंटोनी का आकर्षण कहकर सामान्यीकरण प्रस्तुत करता है। इस एक वाक्य के द्वारा इतिहासकार सम्पूर्ण स्थिति को स्पष्ट कर देता है।

अर्नेस्ट नाडोल के अनुसार सामान्यीकरण के माध्यम से इतिहासकार अपने ऐतिहासिक स्पष्टीकरण को सारयुक्त बनाता है। यही नहीं, वह अपने वर्ण्य-विषय को सूक्ष्म, स्पष्ट एवं विधायुक्त बनाता है।

डॉ. गिरिजाशंकर प्रसाद मिश्र ने सामान्यीकरण के सिद्धान्त को सीमित अर्थ में प्रयुक्त करने की सलाह देते हुए लिखा है कि "इतिहासकार सामान्य सिद्धान्तों का उपयोग करता है, किन्तु एक उपकरण के रूप में जिन्हें समयक्रम में, उनकी उपयोगिता के अनुसार यह त्यागता रहता है अथवा अपने अनुकूल रूपान्तरित करता रहता है अथवा उनका निर्वाह करता चलता है। अत: इतिहासकार का पहला कार्य यह होना चाहिए कि वह अपने अनुमानों तथा पूर्व धारणाओं पर समीक्षात्मक दृष्टि रखे।"

आशा हैं कि हमारे द्वारा दी गयी जानकारी आपको काफी पसंद आई होगी। यदि जानकारी आपको पसन्द आयी हो तो इसे अपने दोस्तों से जरूर शेयर करे।

Post a Comment

0 Comments