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मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन व इतिहासकार

मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन परम्परा

मध्य युगीन इतिहास लेखन यूनानी और रोमन इतिहास लेखन का विस्तार था। मध्ययुगीन इतिहासकार तथ्यों के लिये अनुश्रुतियों पर आश्रित थे और उनके आलोचनात्मक विश्लेषण पर कोई ध्यान नहीं देते थे। निःसन्देह वे कभी-कभी आलोचना पर ध्यान देते थे किन्तु यह व्यक्तिगत, अवैज्ञानिक और अव्यवस्थित आलोचना थी। मध्यकालीन लेखकों ने इतिहास में दैवी विधान देखा जिसमें व्यक्ति कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। जो व्यक्ति इस योजना के विरुद्ध करता है, वह भी इतिहास में योगदान देता है। यह व्यक्ति के लिये अच्छा है कि वह दैवी योजना को बढ़ाने के लिये एक साधन बने क्योंकि यदि वह दैवी योजना के विरुद्ध भी करता है तो वह इसे रोक या बदल नहीं सकता है। अधिक से अधिक वह यही कर सकता है कि वह निन्दा का पात्र बन सकता है और निराश हो सकता है। यह एक तरह का पूर्वाचार्य सम्बन्धी इतिहास लेखन है।

मध्य युग के अन्तिम भाग में इतिहासकारों ने धर्म निरपेक्ष इतिहास की भी रचना की। लेकिन ईसाई इतिहास लेखन परम्परा से हटने के बावजूद यह कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन नहीं था क्योंकि इस समय के इतिहासकार पूर्वाचार्य सम्बन्धी परम्परा के दोषों से मुक्त नहीं थे।

रोमन साम्राज्य के पतन के बाद अराजकता-अव्यवस्था मच गयी। जिससे मध्ययुगीन इतिहासकारों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इस समय प्राचीन काल की अनेक महत्त्वपूर्ण कृतियाँ खो गयीं। मध्ययुगीन विद्वान् प्राचीन काल की अमूल्य कृतियों से वंचित हो गये। एक तरह की शून्यता उत्पन्न हो गयी। मध्य युगीन ईसाई पादरियों ने इस शून्यता से लाभ उठाया। शीघ्र ही इतिहास लेखन में उनका एकाधिकार कायम हो गया। उन्हें ऐतिहासिक कृतियों की रचना में मठों से भी सहायता मिलती थी। लेकिन ये पादरी केवल धार्मिक भावनाओं से प्रेरित होकर लिखते थे। अत: तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करते थे।

मध्ययुगीन वर्ष वृत्तान्त इतिवृत्तियाँ, मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये
मध्यकालीन भारतीय इतिहास लेखन व इतिहासकार

प्रो. बार्ने ने प्राचीन काल से मध्यकालीन इतिहास लेखन के संक्रमण पर विचार प्रकट करते हुए कहा है कि प्राचीन शास्त्रीय विधा की निश्चित रूप से अवनति होने लगी।

मध्यकालीन इतिहासकार

मध्यकालीन महत्त्वपूर्ण इतिहासकार निम्नलिखित है-

मार्क औरलियस कैसीडोर (480-570 ईस्वी)-

कैसीडोर इटली के राजा ओसट्रो गोथ (Ostrogoath) का एक महत्त्वपूर्ण असैनिक पदाधिकारी था। उसकी दो महत्त्वपूर्ण रचनायें वेराय (Variae) और गोथ का इतिहास (History of the Goths) है, जिनकी रचना 526 और 533 ई. के बीच की गयी। वेराय (Variae) कैसीडोर द्वारा लिखित राजकीय पत्रों और कागजातों का संकलन है। इनमें से हमें ओस्ट्रोंगोथ (Ostrogoath) द्वारा लिखित राज्य के आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन की जानकारी मिलती है। यह दस जिल्दों में है। किन्तु आजकल पुस्तक का मूल पाठ उपलब्ध नहीं है। इस पुस्तक को सूची की जानकारी हमें गोथिक भिक्षु जोरडेन्स (Jordanes) के सार-संग्रह (Epitdome) से मिलती है। इन कृतियों के अतिरिक्त कैसोडोर (Kasidore) ने हिस्टोरिया ट्रिपार्टिटा (Historia Tipartita) की रचना में मार्ग दर्शन किया। मध्य युग में यह ईसाई चर्च का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ था।

प्रोकोपियस (500-565 ईस्वी)-

कैसीडोर (Kassidore) की अपेक्षा प्रोकोपियस (Procopius)एक उत्कृष्ट इतिहासकार थी। उसने अपनी कृति अपने युग के इतिहास (The History of His own times) में पर्सिया, अफ्रीका और गोथो के विरुद्ध विभिन्न युद्धों का उल्लेख किया है। प्रोकोपियस ने बैजेंटाइन (Byzantine) के महान् सेनापति का साथ दिया था। अत: उसका विवरण विश्वसनीय है। उसने सावधानीपूर्वक स्रोतों का उपयोग किया, लेकिन बैजेंटाइन ने साम्राज्य का पक्ष लिया। प्रोकोपियस की दूसरी पुस्तक गुप्त इतिहास (Secret History) है, जो राजमहल के षड्यन्त्रों और बैजेंटाइन राजधानी के नैतिक पतन पर प्रकाश डालती है।

ग्रेगरी (532-594 ईस्वी)-

ग्रेगरी टौर (Gregory Tours)का विशप था। उसने मध्य युगीन इतिहास लेखन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उसने फ्रैंक का इतिहास (History of the Franks) लिखा है। उसमें का इतिहास गॉल (Gaul) के आक्रमण तथा मेरोविजियन (Merovingians) सभ्यता के सृजन तक का वर्णन किया है। इसके प्रथम भाग में विश्व इतिहास का प्राचीन काल से पाँचवीं शताब्दी तक का बड़ा अव्यवस्थित वर्णन किया है। दूसरे भाग में 147 ई.से 591 ई. तक फ्रैंकों का इतिहास है। ग्रेगरी उत्तरकालीन घटनाओं का सीधा और सहज वर्णन नहीं करता है। इनमें अनेक व्यतिक्रम, आख्यान और उपदेश हैं। प्रो. बार्ने के शब्दों में "ग्रेगरी ने रोमन से मध्य युगीन संक्रमण-इतिहास का सुन्दर वर्णन किया है क्योंकि वह स्वयं संक्रमण युग का था।"

वेनेरबल बेडे (672-735 ईस्वी)-

बेडे ने अंग्रेजों के चर्च सम्बन्धी इतिहास की रचना की। इसमें इंग्लैण्ड में ईसाइयत की विजय और वहाँ आंग्ल सेक्सन संस्कृति की स्थापना का वर्णन है। इस पुस्तक की रचना में उसने न केवल महत्त्वपूर्ण लिखित स्रोतों, अपितु महत्त्वपूर्ण पादरियों को भी सहायता ली। यद्यपि उसने चर्च सम्बन्धी इतिहास (Ecclesiastical History) में अनेक दैवी घटनाओं का भी उल्लेख किया है, तथापि इसे ऐतिहासिक बनाने का भी प्रयास किया है। इसमें इंग्लैण्ड में धर्म की प्रगति और चर्च संगठन के वर्णन के अतिरिक्त राजनीतिक घटनाओं का भी उल्लेख है जिनका धर्म के विकास से प्रत्यक्ष सम्बन्ध था। इसमें कुछ अंग्रेज चर्च पादरियों की आत्म कथाएँ और जुलियस सीजर से लेकर 731 ई. तक इंग्लैण्ड का इतिहास है।

पॉल वार्नेफ्रिदस-

पॉल वार्नेफ्रिदस, पॉल डेकन (Paul Deacon) के नाम से भी विख्यात है। वह दूर-दूर देशों का भ्रमण कर चुका था। उसने अपने जीवन काल की गोधूलि वेला में लोम्बार्डो का इतिहास (History of Lombards) लिखना शुरू किया। 800 ई. में अपने निधन के पूर्व वह केवल छह ग्रन्थों को पूरा कर चुका था।

लोम्बाडों का इतिहास में लोम्बार्डो की उत्पत्ति से 744 ई. तक का वर्णन है। इस पुस्तक की रचना में पॉल ने प्रारम्भिक लेखकों, यथा प्लिनी (Pliny), सेकेंडस (Secundus), ग्रेगरी (Gregory), इसीडो (Isidore), बेडे (Bede) आदि की कृतियों की सहायता ली। उसने अपने व्यक्तिगत दौरों और मौखिक अनुश्रुतियों के चयन द्वारा भी लोम्बार्डो के इतिहास लेखन की सामग्री जुटाई। प्रारम्भ में पाल के लोम्बार्डो के आख्यान विवरण आलोचनात्मक नहीं थे। लेकिन उसने कालानुक्रम पर कोई ध्यान नहीं दिया जिससे उसकी कृति में अस्तव्यस्तता आ गयी। इन दोषों के बावजूद भी लोम्बार्डों के इतिहास को मुख्य विशेषता यह है कि इसमें प्रारम्भिक लेखकों की स्रोत सामग्री है जो बाद में खो गयो।

नीट हार्ड (795-843 ईस्वी)-

नीट हार्ड का चर्च जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं था। उसने मध्य युगीन इतिहास लेखन में बड़ा योगदान दिया है। वह शार्लमाँ का असंगत पुत्र था। उसने अपने इतिहास के चार ग्रन्थ (Four Books of History) में शार्लमाँ के प्रपौत्रों के बीच हुए गृह युद्ध का वर्णन किया है। इसमें 839 से 843 ई. तक की घटनाओं का सविस्तार वर्णन है। नौट हार्ड के लेखन शैली की एक विशेषता मुख्य विषय से अलग नहीं होने की है।

इन हार्ड-

इनहार्ड ने शार्लमाँ के जीवन पर लिखा है। यह मध्य युगीन इतिहास लेखन की एक अमूल्य निधि है। यह शार्लमाँ का एक अधिकारी और मित्र था। अतः उसने आँखों देखी घटनाओं का उल्लेख किया है। उसने अपनी पुस्तक की रचना में शास्त्रीय शैली विशेषतः सुटोनियस (Suetonius) की कृति ऑगस्टस के जीवन (Life of Augustus)का अनुकरण किया है। अत: उसने ऑगस्टस के जीवन के साँचे में ही शार्लमाँ की जीवन-झाँकी प्रस्तुत की है। उसकी कृति का एक दोष यह है कि उसने शार्लमाँ के प्रारम्भिक जीवन पर कुछ विशेष नहीं लिखा है। इन दोषों के बावजूद भी इन हार्ड की कृति महत्त्वपूर्ण है।

उतबी-

उतबी ने किताब उल मामिमी (UAL Mamimi)की रचना की। यह पुस्तक सुबुक्तगीनमहमूद गजनवी का 1020 ई. तक का इतिहास बताती है। इस पुस्तक में महमूद के भारतीय अभियानों के विषय में अनेक त्रुटियाँ हैं। उसमें तिथिवार विवरण ठीक से नहीं मिलता। त्रुटियों के होते हुए भी यह पुस्तक महमूद गजनवी पर एक महान् कृति है।

अबुल फजल बैहाकी-

अबुल फजल बैहाकी ने तारीखे-ए-मसूदी (Tarekha-A-Masoodi)की रचना की। इसने 10 जिल्दों में 1059 ई. तक के गजनी वंश का इतिहास लिखा है। सुबुक्तगीन के शासन का विवरण अधिक विश्वसनीय नहीं किन्तु सुल्तान मसूद के शासन काल, दरबार और उसके चरित्र का पुस्तक में विस्तृत विवरण मिलता है।

अलबेरुनी-

अलबेरुनी अपने समय का एक महान् विद्वान था। उसने अपनी पुस्तक "तहकीके हिन्द" अरबी भाषा में लिखी। इसमें उसने भारत के लोगों के जीवन, उनके धर्म, विश्वास, वर्ण व्यवस्था, साहित्य, रीति-रिवाज, खान-पान इत्यादि के बारे में जानकारी दी है। अल बेरुनी का भारतीयों को कूप-मण्डूकता पर बड़ा आश्चर्य हुआ। वह लिखता है कि वे जो कुछ जानते है उसे व्यक्तिगत थाती बनाकर रखने की प्रवृत्ति रखते हैं और विदेशियों की बात तो दूर अपने ही देश के अन्य जाति के लोगों से भी उसको छुपा कर रखने का प्रयत्न करते हैं।

हसन निजामी-

हसन निजामी ने "ताज-उल-मासिर" नामक पुस्तक लिखो। हसन निजामी ने अपने इतिहास में तराइन के युद्ध 1192 ई. से लेकर इल्तुतमिश के शासन के प्रारम्भ 1217 ई. तक का वर्णन किया है। लेखक आरामशाह के शासन काल का कोई विवरण नहीं देता, वह इल्तुतमिश के शासन के प्रारम्भिक वर्षों का वर्णन करता है। समकालीन रचना होने के कारण इस ग्रन्थ का बड़ा महत्त्व है।

जियाउद्दीन बरनी-

जियाउद्दीन बरनी की प्रसिद्ध रचना "तारीख-ए-फीरोजशाही" है। जिसे उसने 1357 ई. में पूर्ण किया। इसमें बलबन के सिहांसनारोहण से लेकर फीरोजशाह के शासन काल के छठे वर्ष तक का वर्णन है। वरनी प्रारम्भ में पूरे विश्व का इतिहास लिखना चाहता था, किन्तु उसने देखा कि मिन हाज-उस-सिराज की पुस्तक "तबकाते नासिरी" में सब कुछ लिखा जा चुका है। अतः उसने विश्व इतिहास लिखने का विचार त्याग दिया। जियाउद्दीन बरनी ने अपने इतिहास में अधिकतर उन्हों घटनाओं का वर्णन किया है जिसकी सत्यता पर उसे पूर्ण विश्वास था। जियाउद्दीन बरनी के इतिहास की एक अन्य विशेषता यह है कि उसने समस्त घटनाओं का उल्लेख एक विशेष दृष्टिकोण से दिया है।

तारीख-ए-फिरोजशाही के अतिरिक्त बरनी ने "फतवा-ए-जहाँदारी" की भी रचना की। फतवा-ए-जहाँदारी में राजनीतिक आदर्शों को स्थान दिया गया है। जिन्हें मुस्लिम शासकों को लागू करना चाहिये। फतवाये-जहाँदारी तथा तारीख-ए-फीरोजशाही को साथ-साथ पढ़ने से पता चलता है कि बरनी ने बलबन, जलालुद्दीन, अलाउद्दीन और मुहम्मद तुगलक द्वारा जिन सिद्धान्तों का प्रचार कराया है, वे कुछ सीमा तक उसके अपने सिद्धान्त और विचार भी थे। कुछ कमियाँ होते हुए भी बरनी कृत तारीख-ए-फिरोजशाही अपने समय की महत्त्वपूर्ण रचना है।

मिन हाज-उस-सिराज-

मिन हाज-उस-सिराज ने "तवकात-ए-नासिरी" की रचना की। मिन हाज अपने समय का उच्च कोटि का विद्वान और इतिहासकार था। उसने अपनी रचना "तबकाते नासिरी" को सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद को समर्पित किया। इस पुस्तक में 23 अध्याय हैं। यह पुस्तक आदम से मुहम्मद साहब तक, प्रथम चार खलीफा, बनी उम्प्या, बनी अब्बास, ईरान के शाह, यमन के शाह, ताहिरी वंश, सफ्फारी वंश, सुवुक्तगीन से लेकर मुहम्मद गौरी तक और कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर नासिरुद्दीन महमूद के राज्य काल के 15 वें वर्ष तक का वर्णन करती है।

मिन हाज ने सुल्तान इल्तुतमिश के शासन काल से लेकर सुल्तान नासिरुद्दीन के राज्य काल के 15 वें वर्ष तक का विवरण अपनी जानकारी के आधार पर लिखा है। उमरा वर्ग से घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण उसने अपने इतिहास में सुल्तानों के साथ अमीरों का हाल भी लिखा है। इससे हमें अमीरों के चरित्र, षड़यन्त्र, विद्यानुराग, धर्म के प्रति आसक्ति तथा अन्य अनेक ऐसी बातों की जानकारी मिलती है जो अन्यत्र बहुत कम मिलती है।

अमीर खुसरो-

अमीर खुसरो को बचपन से ही कविता से बड़ा प्यार था। खुसरो अपने विषय में लिखते हैं कि मेरा अब्बा मुझे मकतब में पढ़ने भेजा करता था, लेकिन मेरा जो कविता के अलावा किसी चीज में नहीं लगता था।" खुसरो ने आठ वर्ष की आयु से ही कविता करनी प्रारम्भ कर दी। आगे चलकर अमीर खुसरो ने अनेक पुस्तकों को रचना गद्य व पद्य में की। इनकी 11 पुस्तकों का उल्लेख मिलता है, किन्तु इनमें 22 पुस्तकें मिलती हैं। हिन्दी में अमीर खुसरो की तीन रचनाएँ मानी जाती हैं- (1) खालिक बारी (2) हालात-ए-कन्हैया (3) नजरान-ए-हिन्दी।

फिरोज तुगलक-

फिरोज तुगलक को आत्मकथा 'फतुहात-ए-फिरोजशाही' के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें फिरोज तुगलक ने अपने सैनिक अभियानों का वर्णन किया है। सुल्तान अपने सैनिक अभिवानों की असफलता के लिये बिना सत्य को छुपाये स्पष्टीकरण देता है। सुल्तान के रुप में उसके कर्तव्यों का भी वर्णन है। सुल्तान ने जनता को भलाई के लिये जो कार्य किये उनका भी इसमें विवरण है।

याहिया बिन अहमद सरहिन्दी-

याहिया बिन अहमद ने तारीखे मुबारक शाही की रचना की। सैयद वंश (1414-1451 ई.) का इतिहास जानने के लिये यह महत्त्वपूर्ण सामयिक स्रोत है।

ख्वाजा अब्दुला मलिक इसामी-

ख्वाजा अब्दुला मलिक इसामी ने फतूह-उस-सलातीन' की रचना 1349 ई. में की । लेखक ने अपनी पुस्तक में दिल्ली के सुल्तानों का संक्षिप्त विवरण दिया है और बहमनी साम्राज्य की स्थापना के विषय में विस्तृत जानकारी दी है। इस पुस्तक की एक अन्य विशेषता यह है कि यह नासिरुद्दीन महमूद के शासन के अन्तिम वर्षों (1259-66 ई.) की जानकारी देती है। यह इतिहास पद में है।

शम्मस-ए-सिरोज-आफिफ-

आफिफ की पुस्तक "तारीख-ए-फिरोजी शाही' फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल का विस्तृत विवरण देती है। इस ग्रन्थ की रचना लेखक ने तैमूर के आक्रमण 1398 ई. के कुछ समय बाद की। इस पुस्तक में फिरोज के शासन काल की न केवल राजनीतिक और सैनिक घटनाओं का वर्णन है, बल्कि सुल्तान की प्रशासनिक व्यवस्था का भी वर्णन है। फिरोज ने किस्मनों की दशा सुधारने के लिये जो कदम उठाये तथा सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार किया, उसका भी विवरण है। फिरोज द्वारा प्रचलित जागीर प्रथा का भी इसमें वर्णन है। इस प्रकार आफिफ द्वारा रचित "तारीख-ए-फिरोजशाही" फिरोज तुगलक के शासन काल का ज्ञान प्राप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

इब्नबतूता (1304-1378 ई.)-

इब्नबतूता ने किताब-उर-रहलाह" की रचना की। मुहम्मद तुगलक के शासन काल का ज्ञान प्राप्त करने के लिये यह ग्रन्थ प्रमुख स्रोत है। यह पुस्तक तत्कालीन सामाजिक और आर्थिक दशा का भी ज्ञान कराती है।

अब्दुर रजाक-

अब्दुर रजाक ने दो जिल्दों में मध्य एशिया का इतिहास लिखा। प्रथम भाग में लेखक तैमूर के भारत पर आक्रमण का वर्णन लिखता है तथा दूसरे भाग में वह अपनी विजय नगर यात्रा, वहाँ के राजा, दरबार और लोगों की सामाजिक-सांस्कृतिक दशा का वर्णन करता है। उसका यह वृत्तान्त विजय नगर साम्राज्य का इतिहास जानने का मुख्य स्रोत है

बाबर-

बाबर ने बाबर नामा तुर्की भाषा में लिखा है। बाबरनामा को एक विशेषता यह है कि बाबर ने अपनी आत्मकथा में अपने चरित्र का इतना रोचक चित्र प्रस्तुत किया है कि पाठक आश्चर्य में पड़ जाता है। बाबरनामा में राजनीतिक स्थिति से अधिक महत्त्वपूर्ण जानकारी जो बाबर हमें देता है, वह है भारत के लोगों के जीवन, रहन-सहन, स्वभाव, भूमि, जलवायु, प्राकृतिक दृश्य, भवन निर्माण कला, उद्योग धन्धों के बारे में लिखता है कि- "हिन्दुस्तान को सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह एक विशाल देश है, इसमें सोने और चाँदी की अधिकता है। वर्षा के दिनों में जलवायु बहुत अच्छा है।"

बाबर को भारतवर्ष में कमियाँ भी नजर आई फिर भी बाबरनामा ऐतिहासिक दृष्टि से बड़ा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है।

जौहर-

जौहर ने तज-किरात-उल-वाकयात की रचना की। अपने विषय के बारे में जौहर कहता है- मैं हर समय बादशाह हुमायूँ की सेवा में उपस्थित रहता था। मैंने उन प्रमुख घटनाओं का वर्णन किया है, जिन्हें मैंने अपनी आँखों से देखा है। मैं स्वयं को उन घटनाओं तक ही सीमित रखूगा, जिनका सीधा सम्बन्ध बादशाह हुमायूँ से है।" इसमें बादशाह हुमायूँ का सिंहासनारोहण, उसके युद्ध, उसको पराजय, उसका फारस प्रवास, कंधार,अपने खोये हुए राज्य को प्राप्ति का विस्तार से वर्णन है।

मध्ययुगीन वर्ष वृत्तान्त इतिवृत्तियाँ

(Annals and chronicles of the Medieval Age)

पूर्व मध्य काल में एक नये ढंग का इतिहास सामने आया जिसे वर्ष-वृत्तान्त (Annals) कहते हैं। ज्योतिष के निश्चित ज्ञान के अभाव में वर्ष वृत्तान्तों या वार्षिक सूचनाओं को तैयार करने की आवश्यकता पडी। ईस्टर (Easter) उत्सव के तिथि निर्धारण में कठिनाई होती थी। मध्ययुग में पादरी ईस्टर-सारणियाँ तैयार करते थे और ईस्टर की तिथि निर्धारित करते थे। पहले इंग्लैण्ड में ईस्टर सारणियाँ तैयार करने की प्रथा शुरू हुई जो बाद में पूरे यूरोप में फैल गयी। कालान्तर में धार्मिक उत्सवों की तिथियाँ निर्धारित करने के अतिरिक्त वर्ष की मुख्य घटनाओं की तिथियाँ भी लिखी जाने लगीं। इस क्षेत्र में रोगर (Roger) की पुस्तक अंग्रेजी साहित्य का वर्ष वृत्तान्त (Annals of English History) उल्लेखनीय है। इसकी रचना तेरहवीं शताब्दी में की गयी।

वर्ष-वृत्तान्त से इतिवृत्त (Chronicle) लिखने की प्रथा शुरू हुई। जहाँ कि वर्ष-वृत्तान्त मुख्यत: वार्षिक घटनाओं का लेखा-जोखा होता था, इतिवृत्त अनेक वर्ष-वृत्तान्तों के आधार पर लिखे जाते थे। मध्ययुग में रचित कुछ महत्त्वपूर्ण इतिवृत्तों में रीखनू (Reeichenau) कृत ऐंग्लो सेक्सन इतिवृत्त (Anglo-saxon-chronicle), हरमन का इतिवृत्त (Chronicle of Herman), एक हार्ड (Ekkehard) कृत विश्वजनीन इतिवृत्त (Universal chronicle), फ्रेसिंग (Freising) कृत ओटो का इतिवृत्त (Chronicle of Otto), मैथ्यू पेरिस (Matthew Paris) कृत महान् इतिवृत्त (Great Chronicle) आदि महत्त्वपूर्ण हैं।

उपर्युक्त मध्ययुगीन ऐतिहासिक कृतियों के सर्वेक्षण से स्पष्ट है कि उनमें आलोचनात्मक पद्धति का अभाव है। इस समय का इतिहासकार इतिहास के वास्तविक तथ्यों का वैज्ञानिक अध्ययन नहीं करना चाहते थे। वे स्रोतों का क्रमबद्ध चयन भी नहीं करते थे। वे धर्म और चमत्कारों पर विश्वास करते थे। अत: इस समय में इतिवृत्त धर्म प्रधान हैं।

प्रो. बार्ने (Barnes) ने मध्ययुगीन इतिहास लेखन की निम्नलिखित विशेषतायें बताई हैं-

(1) मध्ययुग की अनेक ऐतिहासिक कृतियाँ समकालीन इतिहास से सम्बन्धित हैं। लेकिन इतिहास लेखन के स्रोतों का अभाव था।

(2) लेखकों द्वारा अपनायी गयी प्रणाली से इतिवृत्त, क्रमबद्ध, इतिहास और आत्मकथाओं में भेद करना कठिन हो गया।

(3) अनेक इतिहासकार चर्च के पादरी थे, जिन्होंने ऐतिहासिक पद्धति की उपेक्षा की। किन्तु इस अवधि में उन्होंने पर्याप्त साहित्य की रचना की।

(4) मध्यकालीन इतिहास अनन्य रूप से उपाख्यानात्मक था। ऐतिहासिक विकास में सामाजिक, आर्थिक और बौद्धिक शक्तियों का कोई विश्लेषण नहीं किया गया।

(5) धर्म युद्धों के वर्षों में बौद्धिक जागरण के फलस्वरूप ऐतिहासिक कृतियों में संख्यात्मक और गुणात्मक वृद्धि हुई।

यद्यपि मध्ययुगीन इतिहासकारों में अनेकानेक दोष थे, तथापि इसमें कोई सन्देह नहीं कि उन्होंने इस काल में महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक ग्रन्थों की रचना की। इनके आधार पर ही आधुनिक इतिहासकारों ने मध्ययुगीन इतिहास की रचना की है। इन कृतियों के अभाव में मध्ययुगीन इतिहास की रचना सम्भव नहीं थी।

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