टॉयनबी के इतिहास दर्शन की आलोचना
टॉयनबी के इतिहास दर्शन की आलोचना निम्न बिन्दुओं के
अन्तर्गत की जा सकती है-
1. वस्तुनिष्ठता का
अभाव-
टॉयनबी को इन विचारों की कई विद्वानों द्वारा अनेक दृष्टियों से आलोचना की गई है। आलोचक यह मानते हैं कि टॉयनबी के विचारों में वस्तुनिष्ठता का अभाव पाया जाता है। उसका धर्म के प्रति अत्यधिक झुकाव था। इसके अनेक प्रमाण भी उपलब्ध हैं। एक आलोचक ने तो उन्हें आधुनिक समाज का शावरण लिए हुए सन्त आगस्टाइन कह डाला है। इनके चिन्तन में कोई ऐसी विशेषताएँ विद्यमान हैं जिससे इनका चिन्तन मनोवैज्ञानिक की अपेक्षा धार्मिक अधिक प्रतीत होता है। इसके विचारों से यह प्रतीत होता है कि उसका झुकाय रहस्यवाद और धर्म के प्रति अधिक है। उसने अपने चिन्तन का मूल बिन्दु यूनानी सभ्यता को माना है। इसी के आधार पर उसने सभ्यताओं के जन्म, विकास, टूटन और विघटन के चक्र का वर्णन किया है। इस सिद्धान्त को उसने अन्य सभ्यताओं पर लागू करने के लिए तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है।
2. सिद्धान्त में
सभ्यताओं के पुनर्जन्म को कोई स्थान नहीं-
टॉयनबी ने अपने सिद्धान्त में
सभ्यताओं के पुनर्जन्म को कोई स्थान नहीं दिया है। प्रथम टूटन के पश्चात् प्राय:
कोई सी भी सभ्यता को ऊपर उठने का अवसर नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त टायनबी ने
पूर्वी सभ्यताओं के सम्बन्ध में अनेक महत्त्वपूर्ण बातें अपने अध्ययन में छोड़ दी
हैं। उसने पूर्वी सभ्यताओं के बहुत कम उदाहरण पेश किये हैं। जबकि यूनानी और
पाश्चात्य सभ्यताओं के काफी उदाहरण दिए हैं। उसका तुलनात्मक दृष्टिकोण सही
नहीं है। क्योंकि उसने अपने तुलनात्मक विवेचन के पश्चात् निष्कर्ष निकालने की
अपेक्षा अपने निर्धारित मत को सिद्ध करने के लिए इतिहास उदाहरण लिए हैं।
3. कुछ शब्दों की
स्पष्ट परिभाषा का अभाव-
टॉयनबी के चिन्तन की आलोचना इस आधार
पर भी की गई है कि उसने अपने चिन्तन में सभ्यता, समाज,
संस्कृति आदि शब्दों को स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है। परिणामस्वरूप
पाठकों को अध्ययन के समय इन शब्दों के धर्म का केवल अनुमान के आधार पर समझ कर
सन्तुष्ट होना पड़ता है। इसके अतिरिक्त उसने अपने इस प्रकार के विचार भी प्रस्तुत
किए जो प्रायः राष्ट्र के विषय में विरोधी और देशभक्ति की भावना के प्रति घृणा
प्रदर्शित करते हैं जिसके फलस्वरूप इसके अध्ययन की वस्तुनिष्ठता पर विपरीत
प्रभाव पड़ा है।
4. आपत्तिजनक
वर्गीकरण-
उसका सभ्यताओं का वर्गीकरण भी आपत्तिजनक है। उसके
द्वारा रूस को एक पृथक् सभ्यता के रूप में माना गया है तो उसने पुर्तगाल और स्पेन
को पृथक् सभ्यता के रूप में क्यों नहीं माना। इसके अलावा नामेड्स एक सभ्यता है या
समूह अथवा आदिकालीन समाज है? स्पार्टा की सभ्यता क्या
एक स्वतन्त्र और यूनानी सभ्यता से असम्बन्धित थी? इस प्रकार
के कुछ विवेकपूर्ण प्रश्नों का टॉयनबी के चिन्तन में सन्तोषजनक उत्तर
प्राप्त नहीं होता है।
5. प्रजातन्त्र
विरोधी दृष्टिकोण-
टायनबी के चिन्तन का दृष्टिकोण
प्रजातन्त्र विरोधी प्रतीत होता है। उसके द्वारा खुले समाज के प्रति विरोधी और
पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया गया है। उसके धार्मिक विचारों के कारण यहूदी
असन्तुष्ट ही नहीं वरन् नाराज भी हो गए हैं। इसके प्रश्चात् उसने अपने विचारों से
अपने कैथोलिक चर्च और अन्य ईसाई समूहों को भी अप्रसन्न कर दिया है।
6. केवल आध्यात्मिक
पक्ष पर बल देना-
टॉयनबी ने अपने चिन्तन में आध्यात्मिक पक्ष पर विशेष बल दिया है और उसने अपने राष्ट्र और उद्योग एवं भौतिक उपलब्धियों के महत्त्व को अपने चिन्तन में नगण्य स्थान दिया है। उसके द्वारा जनता को नाटकीय रूप से प्रभावित किया गया है इसीलिए उसकी लोकप्रियता में वृद्धि हुई है। जो लोग निराशावादी थे उनके मन में इसके विचारों ने आशा का नया संचार किया एवं कोई उसके अन्तर्राष्ट्रीयवाद और विश्व सरकार के विचार से प्रभावित हो गये।
टॉयनबी के इतिहास दर्शन की आलोचना |
इसके
चिन्तन में यद्यपि काफी कमियाँ पाई जाती हैं जिनको आलोचकों ने जमकर आलोचना की है
परन्तु फिर भी यह कहा जा सकता है कि उसके चिन्तन को व्यापक समर्थन मिला है।
प्रमुख आलोचकों
द्वारा की गई आलोचनाएँ-
उपर्युक्त आलोचनाओं के अतिरिक्त भी टॉयनबी के चिन्तन
को कई आलोचनाएँ हुई हैं जिनमें से प्रमुख आलोचकों द्वारा की गई आलोचनाएँ
निम्नलिखित हैं-
सोरोकिन के अनुसार-
इसने टॉयनबी के इतिहास दर्शन की प्रमुख रूप से निम्न
आलोचनाएँ की हैं-
(क) कार्यों का आकार बड़ा- उसका मत है कि टॉयनबी ने अपने कार्यों का आकार अनावश्यक रूप से बड़ा
कर दिया है। जबकि इसकी स्पष्टता एवं पूर्णता को हानि न पहुंचाते हुए भी इसे छोटा
करना सम्भव था।
(ख) महत्त्वपूर्ण कार्यों को अनदेखा करना- टॉयनबी ने अपने समय के महत्त्वपूर्ण कार्यों को जानबूझ कर अनदेखा कर दिया या
उनसे अनभिज्ञता प्रकट की है। इसके अतिरिक्त टॉयनबी की रचना में अनेक
प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों का नाम नहीं आया है इससे उसको सैकड़ों पृष्ठ ऐसे विषयों
पर लिखने पड़े हैं जिन पर कि काफी चिन्तन पहले ही किया जा चुका है।
(ग) अनेक विषयों के सम्बन्ध में अपर्याप्त
ज्ञान- टॉयनबी द्वारा कला, दर्शन, कानून,विज्ञान आदि
विषयों पर किये गये विचारों के सम्बन्ध में उसका ज्ञान अपर्याप्त है।
(घ) यूनानी सभ्यता का असाधारण ज्ञान- टॉयनबी द्वारा उल्लिखित 26 सभ्यताओं के विषय में
उनका ज्ञान एक स्तर का न होकर यूनानी सभ्यता का उनका ज्ञान प्रायः विशेष है।
(ङ) सत्यता के प्रमाणों का अभाव- टॉयनबी ने अपने ग्रन्थों में अनेक वक्तव्य दिये हैं जिनकी सत्यता प्रमाणित
नहीं है। सोरोकिन का आरोप है कि केवल विस्तार की बातों में ही नहीं वरन् इतिहास के
दर्शन की आत्मा और ह्रदय में भी टॉयनबी ने दो गम्भीर दोष छोड़ दिए हैं ।
इनमें प्रथम सभ्यता से सम्बन्धित है जिसे टॉयनबी ने ऐतिहासिक अध्ययन की
इकाई माना है।
पीटर गेल के अनुसार-
इसके द्वारा उसकी अनुभवात्मक पद्धति की आलोचना की गई
है। पीटर गेल के अनुसार टॉयनबी का यह दावा करना कि उसके सभी तक
अनुभवात्मक पद्धति पर आधारित है, अपने आपको धोखा देना है।
जी. जे. रेनियर के अनुसार-
(क) नीचे देशों के इतिहास पर विचार करते समय वह सतही विचारक
रहा है जबकि उसके पास पर्याप्त सूचनाएँ भी थीं।
(ख) टॉयनबी ने मिथकों का प्रयास न केवल विचारों के
सहायक के रूप में किया है वरन् तर्क-वितर्क एवं वर्गीकरण के आधार के रूप में किया
है।
जी.जे.पी. टेलर के अनुसार-
इसके अनुसार टॉयनबी की पद्धति भाग्यवादी है
अर्थात् वह भाग्य पर अधिक जोर देती है।
क्रिस्टाफर डॉसन के अनुसार-
इसके अनुसार टॉयनबी के इतिहास दर्शन को साधारण
व्यक्ति तथा व्यावसायिक इतिहासकार दोनों ही स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि यह दर्शन
प्रथम के लिए अत्यधिक विद्वतापूर्ण है एवं द्वितीय के लिए यह बहुत अधिक उच्कलपूर्ण
तथा सैद्धान्तिक है।
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