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संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ

बीसवीं सदी का विश्व

संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ (Achievements of U.N.O.)

संयुक्त राष्ट्र संघ को अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में अनेक कठिनाइयों व समस्याओं का सामना करना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र संघ की समिति सुरक्षा परिषद् ने इन्हें हल करने के अनेक प्रयास किये किन्तु निषेधाधिकार (Veto power) का उन्मुक्त प्रयोग किये जाने के कारण उसके मार्ग में अनेक बाधायें आयीं। किन्तु गम्भीर बाधा के बाद भी संयुक्त राष्ट्र संघ अनेक समस्याओं को हल करने में सफल रहा। उनमें से कुछ उपलब्धियाँ निम्नलिखित हैं-

ईरान की समस्या (Problem of Iran)-

1 जनवरी, 1946 को ईरान ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मुख रूस के विरुद्ध एक शिकायत प्रस्तुत की। शिकायत का मूल कारण था कि रूस ने ईरान के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया था। ईरान ने संयुक्त राष्ट्र संघ का ध्यान इस ओर आकर्षित किया, जिसे रूस ने ईरान में उत्पन्न कर दिया था। इस प्रश्न को विचार-विमर्श के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। रूस ने इस आरोप से पूर्णतया इन्कार कर दिया। लेकिन इंग्लैण्ड तथा अन्य महाशक्तियों ने ईरान का समर्थन किया। रूस ने इसका विरोध किया तथा रूस के प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद् का बहिष्कार किया, लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस मामले को दृढ़ कदम उठाते हुए खुला रखा। परिणामतः रूस को ईरान से अपनी सेनाएँ हटानी पड़ीं जो वहाँ कई वर्षों से डेरा डाले पड़ी थीं। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रथम उपलब्धि थी।

सीरिया व लेबनान (Syria and Lebanon)-

सीरिया व लेबनान ने भी संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने शिकायत प्रस्तुत की थी कि इंग्लैण्ड व फ्रांस को उनके देशों से तुरन्त सेनाएँ हटाने के आदेश दे। उन्होंने अपनी प्रार्थना में यह स्पष्ट किया कि संयुक्त राष्ट्र संघ का यह मूल सिद्धान्त है कि वह विश्व के सभी राज्यों की सम्प्रभुता की सुरक्षा करे। दोनों देशों की सेनाओं की सीरिया व लेबनान में उपस्थिति इस सिद्धान्त का पूर्णरूप से उल्लघंन है। अतः यह संयुक्त राष्ट्र संघ का दायित्व है कि वह उसमें हस्तक्षेप करे। इसलिए सुरक्षा परिषद ने इस दिशा में महत्वपूर्ण प्रयास किये और अन्तत: फ्रांस और इंग्लैण्ड की सेनाओं को सीरिया व लेबनान से हटाने में सफल रही।

इण्डोनेशिया (Indonesia)-

इण्डोनेशिया के प्रश्न के रूप में 1947 ई. में एक महत्वपूर्ण मामला संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मुख प्रस्तुत किया गया। द्वितीय महायुद्ध की समाप्ति के बाद इण्डोनेशिया में रहने वाले राष्ट्रवादियों ने वहाँ जनतन्त्रीय सरकार की स्थापना की। लेकिन जावा, मदुरा और सुमात्रा के उपनिवेशों में रहने वाले डच लोगों ने राष्ट्रवादियों के विरुद्ध विरोध का झण्डा खड़ा कर दिया और उनके विरुद्ध सेना भेज दी। अत: राष्ट्रवादियों को भी अपनी स्वतन्त्रता की सुरक्षा हेतु शस्त्र उठाने पड़े। 28 जनवरी, 1949 को सुरक्षा परिषद् ने दोनों पक्षों को गोली चलाना बन्द करने का आदेश दिया तथा इस मामले पर विचार-विमर्श प्रारम्भ किया। सुरक्षा परिषद ने डच सरकार को युद्ध बन्द करने का आदेश दिया। डचों ने इण्डोनेशिया को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करने की सहमति प्रकट की, किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपना वचन भंग कर दिया और पुनः सशस्त्र संघर्ष आरम्भ कर दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् ने डच सरकार को संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मुख उपस्थित होने के लिये बाध्य किया। अन्तत: इण्डोनेशिया की समस्या को हल कर लिया गया।

पैलस्टाइन की समस्या (Problem of Palestine)-

प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद मेडेण्ट व्यवस्था के अन्तर्गत पैलस्टाइन ग्रेट ब्रिटेन को दे दिया था, किन्तु शीघ्र ही अरबों और यहूदियों के मध्य संघर्ष प्रारम्भ हो गया जिससे वहाँ अर्थव्यवस्था और तनाव फैल गया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद दोनों जातियों के बीच यह संघर्ष और भी उग्न हो गया। विशेष समिति की संस्तुति पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने पैलस्टाइन की समस्या के हल के लिए अपने अन्य कार्यों को करना आरम्भ कर दिया। उसने सर्वप्रथम पैलस्टाइन की प्रशासनिक व्यवस्था की देख-रेख के लिये एक कमीशन नियुक्त किया। पैलस्टाइन के यहूदी कमीशन के कार्यों से अत्यन्त प्रसन्न थे तथा उन्होंने इजरायल में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की घोषणा कर दी। रूस व अमेरिका ने तुरन्त ईसाई राज्य को मान्यता प्रदान कर दी। दूसरी ओर अरबों ने पैलस्टाइन के विभाजन की योजना का घोर विरोध किया और यहूदियों के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा खड़ा कर दिया। परिणामत: पैलस्टाइन में अरब लोग तथा नवस्थापित इजराइल के मध्य गृह युद्ध आरम्भ हो गया। यह एक जटिल समस्या थी, जिसको संयुक्त राष्ट्र संघ को हल करना था। उनके प्रयासों के परिणामस्वरूप एक युद्ध विराम सन्धि की गयी और पैलस्टाइन की समस्या का हल कर लिया गया।

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संयुक्त राष्ट्र संघ की उपलब्धियाँ


कश्मीर समस्या (Problem of Kashmir)-

पाकिस्तान और भारत के मध्य भी एक समस्या उठ खड़ी हुई। कश्मीर के प्रश्न पर दोनों देशों में शत्रुता की भावना अत्यधिक बढ़ गयी। इस समस्या को भी संयुक्त राष्ट्र संघ के सामने लाया गया। उसने दोनों देशों के मतान्तरों और शत्रुता को समाप्त करने का हर सम्भव प्रयास किया। संयुक्त राष्ट्र संघ की मध्यस्थता के कारण ही भारत व पाकिस्तान के मध्य युद्ध का अन्त हुआ। लेकिन इस समस्या के लिये एक शान्तिपूर्ण तथा स्थायी हल की आवश्यकता है।

कोरिया समस्या (Korea problem)-

संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मुख लायी गयी समस्याओं में यह सबसे अधिक जटिल समस्या थी। द्वितीय महायुद्ध के प्रारम्भ से पूर्व कोरिया पर जापान का प्रभुत्व था, किन्तु द्वितीय महायुद्ध में जापानी सेनाओं द्वारा आत्मसमर्पण से परिस्थिति में परिवर्तन आया। रूस तथा अमेरिका ने एक समझौते पर हस्ताक्षर कर दिये क्रमश: उसके उत्तरी तथा दक्षिणी कोरिया प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। कोरिया उत्तरी तथा दक्षिणी सरकारों में विभाजित हो गया। दोनों सम्पूर्ण देश पर अपना-अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिये लालायित थे। इससे कोरिया में अव्यवस्था उत्पन्न हो गयी। 24 जून, 1950 ई. को उत्तर कोरिया की सेना ने दक्षिणी कोरिया पर आक्रमण कर दिया। इस मामले को पुनः संयुक्त राष्ट्र संघ को सौंपा गया। सुरक्षा परिषद् ने कोरिया की दोनों सरकारों को तुरन्त युद्ध बन्द करने का आदेश दिया लेकिन उत्तरी कोरिया ने सुरक्षा परिषद् के आदेशों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। उस समय स्थिति और गम्भीर हो गयी, जब चीन ने उत्तरी कोरिया का सहायता देने का निश्यय किया। 1951 ई. को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने चीनी गणतन्त्र की आक्रामक घोषित कर दिया। कई माह के युद्ध के बाद दोनों देशों में सन्धि-वार्ता प्रारम्भ हुई किन्तु युद्धबन्दियों की वापसी के प्रश्न पर निर्णय न हो पाने के कारण वार्ता बन्द हो गयी। अन्त में कोरिया की समस्या का अन्त तटस्थ सन्धियों के प्रभावशाली हस्तक्षेप से सम्भव हुआ। 27 जुलाई, 1953 ई. को दोनों पक्षों में सन्धि के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी सेना को वापिस बुला लिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ की अन्य उपलब्धियाँ

संयुक्त राष्ट्र संघ का कार्य केवल राजनीतिक समस्याओं का समाधान करना तथा राजनैतिक दृष्टि से विश्व शान्ति की स्थापना करना ही नहीं है, अपितु जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मानव मात्र को उन्नति करने के अवसर उपलब्ध कराना भी है ताकि विश्व के सभी मानव परस्पर सौहार्द्रपूर्ण वातावरण में मैत्री की भावना का अनुभव करते हुए सुख व शान्ति की साँस ले सकें। इनकी इन उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-

1. आर्थिक उपलब्धियाँ-

संयुक्त राष्ट्र संघ के आर्थिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिए मुख्य रूप से चार संगठन स्थापित किये गये हैं-

(1) अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International labour organisation I.L.O.)- अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की स्थापना 1919 में की गयी थी। इसका कार्य मजदूरों, मिल-मालिकों एवं सरकारों के त्रिपक्षीय सम्बन्धों की व्याख्या करना एवं तत्सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करना है। यह संगठन श्रमिकों की स्थिति सुधारने के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार की सामाजिक योजनाओं को बनाता है।

(2) खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture organisation-F.A.O.)- खाद्य एवं कृषि संगठन की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत सर्वप्रथम संगठन के रूप में की गयी थी। इसका मुख्य कार्य खाद्य एवं कृषि सम्बन्धी समस्याओं का अध्ययन और अनुसन्धान, विश्व में खाद्य सामग्री तथा कृषि की परिस्थितियों का निरीक्षण तथा विभिन्न सरकारों को इस सम्बन्ध में आँकड़े, अनुमान और भावी सम्भावनाओं से अवगत कराना है।

(3) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-I.M.F.)- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा सम्बन्धी सहयोग, वृद्धि, विनिमय की बाधाओं को दूर करना, उसमें स्थिरता लाने तथा विश्व व्यापार के विस्तार में सुविधायें प्रदान करने के लिए 27 दिसम्बर, 1945 को की गयी थी।

(4) अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation-I.F.C.)- अन्तर्राष्ट्रीय वित्त निगम की स्थापना जुलाई, 1946 में की गयी थी। इसके कुल 53 सदस्य हैं जो अन्तर्राष्ट्रीय बैंक से सम्बद्ध है। इस संगठन की कुल पूंजी 9 करोड़ तीस लाख डालर हैं। इसका मुख्य कार्य आर्थिक विकास हेतु धन का विनियोजन करना तथा निजी क्षेत्र में पूंजी लगाने वाले व्यक्तियों को ऋण की सुविधा उपलब्ध कराना है।

2. संचार सम्बन्धी कार्य-

संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न राष्ट्रों के मध्य संचार, डाक एवं यातायात सुविधाओं को अधिक सरल बनाने के लिये भी कार्य करता है। इस उद्देश्य से अन्तर्राष्ट्रीय सैनिकेत्तर हवाई संगठन, सार्वभौमिक पोस्टल संघ, अन्तर्राष्ट्रीय दूर संचार संघ, विश्व ऋतु विज्ञान संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय सामुद्रिक परामर्शदाता संगठन तथा सरकारी यात्रा संगठनों का अन्तर्राष्ट्रीय संघ आदि अनेक संगठन स्थापित किये हैं।

3. शैक्षणिक उपलब्धियाँ-

शैक्षणिक कार्यों को सम्पन्न करने के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक संगठन की स्थापना 4 नवम्बर, 1945 को की गयी। इस संस्था के मुख्य कार्य ग्रामीण क्षेत्रों में प्रौढ़ शिक्षा के सम्बन्ध में विचार गोष्ठियों का आयोजन करना, विशेष समस्याओं का समाधान करने के लिये विशेषज्ञ भेजना, वैज्ञानिकों के मध्य सम्पर्क व सम्बन्ध स्थापित करना तथा अध्ययन के सम्बन्ध में छात्रवृत्तियाँ प्रदान करना आदि है।

4. स्वास्थ्य एवं कल्याण के क्षेत्र में उपलब्धियाँ-

इस क्षेत्र में दो संगठन स्थापित किये गये थे- प्रथम विश्व स्वास्थ्य संगठन, द्वितीय, संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का मुख्य कार्य अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य के कार्यों का संचालन व समन्वय करना, महामारियों तथा बीमारियों के उन्मूलन के कार्यों को प्रोत्साहित करना, आहार, पोषण, आवास, सफाई तथा कार्य करने की दशाओं में सुधार करना, शिशु एवं मातृ कल्याण कार्यों में वृद्धि करना, स्वास्थ्य शिक्षा एवं प्रशिक्षण के स्तर को उठाना, खाद्य पदार्थों, दवाइयों तथा अन्य ऐसी वस्तुओं के सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय मानक निश्चित करना है।

आपातकालीन कोष का मुख्य कार्य शिशु कल्याण की सेवाओं का आयोजन व प्रशिक्षण, संक्रामक रोगों की रोकथाम करना, बाल पोषण की व्यवस्था करना है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का महत्व

संयुक्त राष्ट्र संघ एक ऐसा संगठन था जिसके माध्यम से दो विश्व युद्धों के दुष्परिणामों से भयाक्रान्त विश्व की जनता को शान्ति की एक किरण दिखायी दी थी। इसने न केवल राजनीतिक समस्याओं को शान्तिपूर्ण बातचीत के माध्यम से हल करने का प्रयास किया बल्कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, स्वास्थ्य एवं कल्याण आदि क्षेत्र में भी योजनायें प्रारम्भ की। संयुक्त राष्ट्र संघ के महत्व का आंकलन निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर किया जा सकता है-

(1) इस संस्था ने राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो सफलतायें अर्जित कीं, उनकी महानता पर कोई प्रश्नचिह्न नहीं लगाया जा सकता। रोगों, दरिद्रता, निरक्षरता आदि का उन्मूलन करने में, ज्ञान प्रसार करने में तथा मानव जीवन को स्वस्थ, सुखी व समृद्ध बनाने में इस संस्था ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

(2) राजनीतिक विवादों का समाधान करने में संयुक्त राष्ट्र संघ को पूर्ण सफलता प्राप्त न होने पर भी इस संस्था ने अनेक अवसरों पर युद्ध के संकट को टालने में सराहनीय भूमिका निभाई है। जैसे भारत-पाकिस्तान युद्ध, कश्मीर समस्या, अरब-इजराइल संघर्ष, कोरिया की समस्या आदि। पं. नेहरू ने इस सम्बन्ध में कहा था- "हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने अनेक बार उत्पन्न होने वाले संकटों को युद्ध में परिणित होने से बचाया है।"

(3) साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद जैसी जटिल समस्याओं का उन्मूलन करने में संयुक्त राष्ट्र संघ की सफलता निर्विवाद है।

(4) इस संस्था के माध्यम से विश्व बन्धुत्व एवं अन्तर्राष्ट्रीय सौहार्द्र को बढ़ाने में पर्याप्त सफलता मिली है।

(5) विभिन्न अवसरों पर यह संघ अन्तर्राष्ट्रीय संघर्षों को रोकने तथा तनावों को कम करने का एक उपयुक्त माध्यम सिद्ध हुआ है। वस्तुत: यह एक ऐसा मंच है जिसके माध्यम से विभिन्न देश वाद-विवाद के समय अपने आक्रोश व असन्तोष को अभिव्यक्त कर सकते हैं।

उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि संयुक्त राष्ट्र संघ राष्ट्र संघ का ही सुधरा हुआ रूप था। इसकी स्थापना राष्ट्रसंघ की असफलताओं को ध्यान में रखकर की गयी थी।

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