1917 रूसी क्रान्ति के प्रभाव एवं महत्व
रूसी क्रान्ति विश्व की महान्
क्रान्ति थी। यह क्रान्ति फ्रांस की क्राति की तरह महत्वपूर्ण थी, जिसने जनता में
प्रजातन्त्रीय भावनाएँ विकसित की इस क्रान्ति से राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्र में
महत्वपूर्ण प्रभाव पड़े।
राजनीतिक प्रभाव (Political results)
1. राजवंश का समाप्त
होना-
यूरोप के अन्य राष्ट्रों की भाँति रूस में भी राजतन्त्र चला आ रहा था। यह राजतन्त्र इंग्लैण्ड में चल रहे सत्रहवीं शताब्दी के राजतन्त्र से कम नहीं था। अत: इस क्रान्ति ने यहाँ की जार शाही को समाप्त कर दिया। निकोलस द्वितीय की दशा इंग्लैण्ड शासक चार्ल्स प्रथम तथा लुई सोहल की जैसी हुई। राजतन्त्र के स्थान पर रूस में समाजवादी शासन व्यवस्था की स्थापना हुई।
2. युद्ध की समाप्ति-
प्रथम महायुद्ध
जो 1914 में चल रहा था, वह युद्ध
रूसवासियों के लिये समास हो गया। लेनिन ने जर्मनी से ब्रेस्टलियवस्ककी सन्धि करके
युद्ध की समाप्ति कर दी। इसका फल यह हुआ कि रूस के सैनिक ब्यर्थ ही युद्धको ज्वाला
व जनसाधारण भूख की ज्वाला से बच गए।
3. पूंजीपति
राष्ट्रों की नाराजगी-
रूस ने जर्मनी के
विरुद्ध युद्ध की घोषणा, केवल मित्र
राष्ट्रों की तुष्टि के लिये की थी, जब लेनिन ने मित्र राष्ट्रों से बिना पूछे संधि कर ली तो
उनका नाराज होना स्वाभाविक ही था।वे नहीं चाहते थे कि रूस जर्मनी से सन्धि कर ले।
इसी कारण इंग्लैण्ड, फ्रांस व अमेरिका
रूस के विरोधी हो गए। इसके अतिरिक्त जब रूस में साम्यवाद प्रबल होने लगा, तो विश्व के सभी
पूंजीवादी देश रूस के कट्टर शत्रु हो गये और यह शत्रुता आज भी विद्यमान है। परन्तु
संयुक राष्ट्र अमेरिका के प्रेसीडेन्ट निक्सन ने रूस के साथ मैत्री सम्बन्ध
स्थापित करने का प्रयास किया था। पूंजीवाद व साम्यवाद का संघर्ष आज भी विश्व में
जारी है।
4. रूस विश्व में एक
शक्तिशाली राष्ट्र बन गया-
उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक रूस एक शक्तिशाली देश माना जाता था, परन्तु 1905 ई. में जापान ने उसके इस गौरव को समाप्त कर दिया। इसके उपरान्त रूस की गणना शक्तिहीन राष्ट्रों में होने लगी थी। परन्तु 1977 की क्रान्ति के बाद वह विश्व को महान् सकि वन गया था। आज रूस पर आक्रमण करने की कोई सोच भी नहीं सकता। पूर्वी नेता (Eastern Block) भी वहीं है। इतिहासकार पियर्स का कहना है कि, "इस क्रान्ति के उपरान्त सोवियत रूस आधुनिक विश्व में सबसे शक्तिशाली व महान् राष्ट्र बनने लगा।"
1917 रूसी क्रान्ति के प्रभाव एवं महत्व |
5. रूस में
राष्ट्रीयता का विकास-
जार के शासन काल
में रूसवासियों में राष्ट्रीय भावना विशेष रूप से नहीं पाई जाती थी। जापान से
परास्त होने पर 1905, रूसवासी अपने शासन
से दु:खी होने लगे थे। यही कारण था कि रूस के सैनिक विश्व युद्ध में दिलचस्पी से
नहीं लड़ रहे थे। वे हृदय से यही चाहते थे कि युद्ध समास हो जाये। परन्तु इस
क्रान्ति के उपरान्त रूसवासियों में राष्ट्रीयता की भावना उग्र रूप से प्रसारित
हुई। प्रत्येक रूसी अपर राष्ट्र के लिये बड़ा से बड़ा त्याग करने में अपना गौरव
समझने लगा और इसी कारण द्वितीय विश्व युद्ध में वह अपने शत्रु से विजयी हुआ।
6. समानता की भावना
का उदय-
रूस में तत्कालीन
असमानता के कारण ही यह क्रान्ति हुई थी। अत: इस क्रान्ति की समाप्ति पर जनसाधारण
में समानता की भावना का उदय हुआ। पूंजीपति व भूमिपति समास कर दिये गये। सरकार में
श्रमिक वर्ग व कृषक वर्ग का प्रभुत्व स्थापित हो गया। जार कालीन असमानता समाप्त हो
गई।
7. साम्यवाद का
प्रादुर्भाव-
आज विश्व में
साम्यवाद का विस्तार दिनों दिन हो रहा है। इस साम्यवाद का प्रादुर्भाव इस क्रान्ति
के परिणामस्वरूप ही हुआ। इस क्रान्ति के द्वारा ही कार्ल मार्क्स के विचार विश्व
में प्रसारित हो रहे हैं। यद्यपि अभी तक इसका विस्तार अधिक देशों में नहीं है, तथापि इसका प्रभाव दिनों
दिन व्यापक होता जा रहा है। पश्चिम के देश साम्यवाद से भयभीत हैं।
आर्थिक प्रभाव (Economic Results)
1. रूस में
सामन्तवाद व पूंजीवाद समाप्त-
यद्यपि रूस
औद्योगिक क्षेत्र में अधिक विकसित नहीं हुआ था तथा उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में
वहाँ काफी उद्योग-धन्धे विकसित हो चुके थे। उद्योगों के विकास के कारण पूंजीपति भी
विकसित हो रहे थे। पूंजीपति वर्ग व्यक्तिगत्त व्यापार वृद्धि में रुचि लेते थे तथा
मजदूरों का शोषण करते थे। परन्तु इस क्रान्ति के बाद पूंजीपतियों से कारखाने छीनकर
उनका राष्ट्रीयकरण किया जाने लगा। पूंजीपतियों के स्थान पर मजदूरों की प्रतिष्ठा
बढ़ने लगी। राजतन्त्र के कारण सामन्तवाद बढ़ रहा था। जब राजतन्त्र ही समाप्त हो
गया तो सामन्तवाद भी समाप्त होने लगा। अब रूस में मजदूर एवं कृषक वर्ग की ही सरकार
काम कर रही थी। अब उनके शोषण की समस्या नहीं थी।
2. खाद्यपदार्थों का
सस्ता होना-
प्रथम विश्व
युद्ध बाद खाद्य सामग्री महँगी हो गई थी। दीन व मजदूर वर्ग को भोजन बड़ी कठिनाई से
उपलब्ध हो रहा था। परन्तु क्रान्ति के समाप्त होते ही सामन्तों से भूमि छीनकर
कृषकों में वितरित कर दी गई। धनीवर्ग के पास जो खाद्य सामग्री थी, वह छीनकर मजदूरों में
बाँट दी गई। इसका परिणाम यह हुआ कि खाद्य पदार्थ सस्ते हो गये, जिससे कृषक व मजदूर वर्ग
को राहत मिली।
3. रूस में औद्योगिक
विकास-
उन्नीस शताब्दी
के अन्त तथा बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में रूस में कल व कारखाने खुलने लग गये थे, परन्तु उस समय औद्योगिक
विकास नाममात्र का था। सन् 1917 की क्रान्ति के उपरान्त रूस ने इस क्षेत्र में
इतनी आश्चर्यजनक उन्नति की, कि विश्व के
समस्त राष्ट्र दाँतों तले अंगुली दबाने लगे। आज रूस में सभी वस्तुओं के बड़े-बड़े
कारखाने विद्यमान हैं। उनमें इतना उत्पादन होता है कि अपनी आवश्यकता की पूर्ति के
बाद निर्यात भी करता है। अमेरिका व इंग्लैण्ड भी इस विकास के आगे अपनी हिम्मत हार
रहे हैं। यही कारण है कि रूस आर्थिक क्षेत्र में आज आत्मनिर्भर है।
4. विभिन्न योजनाओं
का संचालन-
रूस की नवीन
सरकार के समक्ष प्रमुख कठिनाई देश की भुखमरी को समाप्त करने की थी। इस समस्या के
समाधान के लिये सरकार ने भूमि कृषकों को वितरित की तथा कारखानों का राष्ट्रीयकरण
किया। कृषि सुधारों से कृषकों को राहत मिली। परन्तु अकाल के कारण रूस की स्थिति
फिर गड़बड़ा गई। लेनिन ने नवीन आर्थिक नीति बनाई। परन्तु लेनिन के बाद जब स्टालिन
रूस का कर्णधार बना तो उसने दो पंचवर्षीय योजनाएँ चालू की, जिनसे काफी सफलता मिली।
इन योजनाओं की सफलता का परिणाम यह निकला कि रूस अब पिछड़ा राष्ट्र नहीं रहा। देश
का उत्पादन बढ़ने लगा तथा आज वह विकसित राष्ट्र है।
5. वर्ग संघर्ष की
समाप्ति-
प्राय: देखा जाता
है कि औद्योगिक विकास के उपरान्त वर्ग संघर्ष बढ़ता है। एक तरफ पूंजीपति वर्ग बनता
है, तो दूसरी ओर शोषित वर्ग यह
बात पहले रूस में थी, परन्तु 1917 की
क्रान्ति के बाद रूस में यह व्यवस्था समाप्त हो गई। प्रमुख कारखानों का
राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। अतः रूस में वर्ग संघर्ष स्वत: ही समाप्त हो गया।
6. श्रमिकों का जीवन
स्तर उच्च होना-
क्रान्ति से
पूर्व श्रमिकों को कोई महत्व नहीं दिया जाता था। उन्हें मजदूरी बहुत कम मिलती थी
तथा उनकी आवासीय व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं थी। आज रूस का मजदूर सर्वाधिक सुखी है।
उसके विकास के लिये वहाँ हर प्रकार के साधन उपलब्ध हैं। वर्तमान में भी रूस के
श्रमिक वर्ग का जीवनस्तर समय के अनुसार बढ़ता ही जा रहा है।
7. पूंजीवाद का
विनाश-
रूस पूंजीवाद का
कट्टर विरोधी है। साम्यवादियों की धारणा है कि पूंजीवाद ही सामान्य व्यक्तियों के
विकास में बाधा है। अत: रूस पूंजीवाद को विश्व में येन केन प्रकारेण समाप्त करना
चाहता है। इसी कारण संयुक्त राज्य अमेरिका और उसमें भारी मनमुटाव है। अमेरिका एक
पूंजीवादी राष्ट्र है। वह अपने सहयोगी राष्ट्रों से पूंजीवाद की रक्षा करना चाहता
है, जबकि रूस पूंजीवाद को
समाप्त करना चाहता हैं। रूस की यह अटल धारणा है कि पूंजीवाद की समाप्ति पर विश्व
में साम्यवाद अवश्य आयेगा। श्रमिक व कृषक वर्ग का सम्मान विश्व में बढ़ेगा।
महत्व-
उपर्युक्त
परिणामों का अवलोकन करने से ज्ञात होता है कि रूस की क्रान्ति एक महत्वपूर्ण
क्रान्ति थी। निरकुंश शासन का अन्त भी बिना रक्तपात के हुआ तथा कृषक व श्रमिकों का
सम्मान मिला। पूंजीपति वर्ग व सामन्त वर्ग समाप्त हो गये। रूस समानता की भावना का
विकास होने लगा। बोल्शेविक दल के नेता लेनिन ने अपने समय में श्रमिक व कृषक वर्ग
के लिये काफी कार्य किये। रूस में सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्र में क्रान्तिकारी
परिवर्तन हुए। कारखानों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। चर्च की सम्पत्ति भी समाप्त
कर दी गई। इसके बाद स्टालिन ने पंचवर्षीय योजनाएँ प्रारम्भ की जिससे आर्थिक विकास
हुआ। भारत में भी नेहरू जी ने रूस की तरह पंचवर्षीय योजनाएँ
प्रारम्भ की, जो सफलतापूर्वक चल रही
हैं।
रूसी क्रान्ति ने
अधिनायकवाद को जन्म दिया। जर्मनी में नाजीवाद तथा इटली में
फासिस्टवाद का उदय हुआ। जर्मनी में हिटलर ने तथा इटली में मुसोलिनी
ने अपना अधिनायकतन्त्र स्थापित किया। इसके साथ ही विश्व में दो गुट बन गए- पूंजीवादी
गुट तथा साम्यवादी गुट। दोनों गुट एक-दूसरे के प्रभाव को नष्ट करने के
लिये प्रयास कर रहे थे। इन गुटों के कारण अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में तनाव
उत्पन्न हो गया था। रूस में बोल्शेविकों तथा मेनशेविकों के बीच
गृहयुद्ध हो गया। अब 1990 के पश्चात् रूस तथा अन्य पूर्वी यूरोपीय देशों में
साम्यवादी सरकारों का पतन हो गया है।
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