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मेटरनिख युग

मेटरनिख युग में मेटरनिख व्यवस्था

1815 से 1848 तक यूरोप की समस्त संतति और नीति का नायक मेटरनिख था। उसकी प्रतिभा का महत्त्व हम उसके नाम से सम्बन्धित 'मेटरनिख युग' से जान सकते हैं। 19वीं शताब्दी के राजनीतिज्ञों में उसका नाम सर्वोपरि था। उसकी नीति का आतंक आस्ट्रिया में ही नहीं, वरन् मध्य यूरोप के अधिकांश राज्यों में जमा हुआ था। उसका जन्म कुलीन वर्ग में हुआ था। उसके पिता पवित्र रोमन सम्राट के यहाँ उच्चाधिकारी थे। उनके अधीन राइन नदी के किनारे पश्चिमी जर्मनी में एक विशाल जागीर थी जो जर्मनी की पुनर्व्यवस्था के समय नेपोलियन ने जब्त कर ली थी। प्रारम्भ से ही मेटरनिख के संस्कार क्रान्तिकारी भावनाओं के विरुद्ध बनते जा रहे थे। आतंक के राज्य के अत्याचारों से पीड़ित फ्रेंच-कुलीनों की दशा देखकर उसकी भावनाएँ क्रान्तिकारियों के विरुद्ध हो गयीं । नेपोलियन ने जब उसकी पैतृक जागीर पर कब्जा कर लिया, तो वह क्रान्ति का व्यक्तिगत रूप से भी शत्रु बन गया और जीवन भर उसका दमन करने में लगा रहा।

हेजन का कहना है कि, "मेटरनिख के जीवन का बहुत बड़ा पहलू अहमत्व की भावना थी। उसकी मान्यता थी कि संसार का भार उसके कंधे पर है और उसका जन्म यूरोप के जर्जरित समाज को उभारने के लिए है।" उसका विश्वास था कि उसने नियम के विरुद्ध कोई आचरण नहीं किया है और न जीवन में उसने कोई भूल की है। वह कहता है कि उसकी अनुपस्थिति पर वह अपने अभाव का एक रिक्त स्थान बनायेगा। उसको यह कहने में बड़ा गौरव था कि सब लोग उसकी ओर आशा से निहारते हैं। उसे आश्चर्य था कि जब सभी नहीं सोचते या काम नहीं करते या नहीं लिखते हैं, तो वह अकेला क्यों सोचता है, लिखता है और कर्तव्यपरायण है। उच्च पदाधिकारी का पुत्र होने के नाते उसका विवाह आस्ट्रिया के चांसलर प्रिंस कानिज की पोती से हुआ था। इस वैवाहिक सम्बन्ध से उसके अधिकार और प्रतिष्ठा में अद्वितीय उत्थान हुआ। उसको बर्लिन, रूस और फ्रांस में राजदूत बनकर जाने का भी अवसर प्राप्त हुआ। वह 1809 से 1848 तक आस्ट्रिया का चांसलर बना।

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मेटरनिख युग


मेटरनिख की गृहनीति

1. प्रतिक्रियावादी नीति का क्रियान्वयन-

जैसे ही मेटरनिख आस्ट्रियन साम्राज्य का चांसलर बना उसने अपनी प्रतिक्रियावादी नीति का क्रियान्वयन प्रारम्भ कर दिया। वियना कांग्रेस में अवसर मिलते ही उसने उसकी सीमा में वृद्धि कर दी जिसमें आस्ट्रिया, हंगरी, बोहेमिया, पोलैण्ड का पश्चिमी भाग, वर्तमान यूगोस्लाविया तथा उत्तरी इटली के कई भाग सम्मिलित थे। इस विस्तृत साम्राज्य में विभिन्न जातियों के लोग रहते थे, जिनकी भाषा, संस्कृति और धर्म परस्पर भिन्न थे। इन जातियों में पोल, जर्मन, मगयार, सर्ब, चेक, क्रोट तथा स्लोवॉक आदि मुख्य थे। मेटरनिख जानता था कि साम्राज्य का विकास राष्ट्रीय आधार पर कभी सम्भव नहीं हो सकता, क्योंकि यदि राष्ट्रीयता को प्रोत्साहन दिया गया तो साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो जायेगा। अतः ऐसे बहुजातीय साम्राज्य को एकता के सूत्र में पिरोये रखकर शासन करना कठिन कार्य था।

इसके अतिरिक्त आस्ट्रिया के साम्राज्य ने एक रूसी राजनयिक से कहा था, "मेरा साम्राज्य एक दीमक लगे हुए भवन के समान है, यदि इसका एक भाग अलग किया जाता है, तो उसके साथ कितना भाग गिर जायेगा, यह कहना कठिन है।" अतः ऐसे साम्राज्य को सुरक्षित रखने के लिए निरंकुश और प्रतिक्रियावादी नीति अपनाना आवश्यक था। राष्ट्रीयता के प्रसार को अवरुद्ध करने के लिए मेटरनिख ने विभिन्न जातियों में फूट डालो और शासन करो की नीति को अपनाया। अपनी इस मान्यता के आधार पर उसने बोहेमिया में, जहाँ स्लॉव जाति के लोग रहते थे, जर्मन सैनिक टुकड़ियाँ भेजीं। इटली में जहाँ इटालियन लोग रहते थे, इटालियन सैनिक भेजे। उसने सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति भी इसी आधार पर की।

2. आस्ट्रिया में क्रान्तिकारी एवं उदारवादी विचारों को रोकने का प्रयास-

मेटरनिख ने आस्ट्रिया में प्राचीन व्यवस्था को बनाये रखने के लिए यह प्रयास किया कि किसी भी प्रकार से क्रान्तिकारी एवं उदारवादी विचारों का प्रवेश आस्ट्रिया में न हो। इसके लिए उसने निम्न कदम उठाये-

(1) समाचार-पत्रों, पुस्तकों एवं नाट्यशालाओं पर कड़े प्रतिबन्ध लगाये।

(2) पाठशालाओं और विश्वविद्यालयों में ऐसा पाठ्यक्रम रखा जो राजभक्ति को सुदृढ़ बनाये।

(3) अध्यापकों एवं छात्रों के सम्बन्ध में ऐसे कठोर नियम बनाये जिससे उनका राष्ट्रीय आन्दोलनों के कार्यों में भाग लेना कठिन हो गया।

(4) विद्यार्थियों के संगठनों पर पाबन्दी लगा दी गई तथा शिक्षा प्राप्त करने हेतु विदेश जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।

(5) कोई भी व्यक्ति सरकार की अनुमति के बिना विदेश नहीं जा सकता था और न ही कोई विदेशी साम्राज्य में प्रवेश कर सकता था।

इस पर भी यदि किसी भाग में राष्ट्रीयता की चर्चा करने वाले पाये जाते थे, तो उन्हें बन्दीगृहों में भेज दिया जाता था। विचारों के या वस्तुओं के आदान-प्रदान में भी रोक लगा दी गई जिसका फल यह हुआ कि आस्ट्रिया का स्तर नैतिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा व्यापारिक रूप से बहुत गिर गया। मेटरनिख ने इन दुष्परिणामों की कोई चिन्ता न की, क्योंकि इस अनुदार एवं प्रतिक्रियावादी नीति से उसे आस्ट्रिया में निरंकुश राजतंत्र स्थापित करने में सफलता मिल रही थी।

3. गुप्तचर तंत्र को सुदृढ़ बनाना-

मेटरनिख ने साम्राज्य में क्रांतिकारी संगठन एवं क्रांतिकारी विचार फैलाने की गतिविधियों का पता लगाने के लिए गुप्तचरों का जाल बिछा दिया। उसने गुप्तचरों एवं पुलिस अधिकारियों की सहायता से ऐसी संस्थाओं का पता भी लगा लिया जो नवीन परिवर्तन के पक्ष में गुप्त रीति से काम कर रही थी। उसके अस्तित्व के नाश की ओर वह लग गया। यदि कहीं भी थोड़ी सी उदारता या क्रान्ति की झलक दिखाई पड़ती, वहाँ नियंत्रण कठोर कर दिया जाता। राष्ट्रीय भावना का दमन करने के लिए नागरिकों को राजनीतिक अधिकारों से वंचित रखा गया। यद्यपि साम्राज्य में एस्टेट्स (संसद) जैसी कुछ प्रतिनिधि संस्थाएँ थीं, किन्तु उनमें केवल कुलीन वर्ग का ही प्रतिनिधित्व था तथा उन्हें किसी प्रकार का राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं था।

4. विदेश व्यापार को हतोत्साहित करना-

मेटरनिख विदेश व्यापार को प्रोत्साहित करने का पक्षधर नहीं था। विदेश व्यापार को हतोत्साहित करने के लिए उसने भारी सीमा शुल्क लगाया, जिससे आस्ट्रिया का विदेशी व्यापार बिल्कुल समाप्त हो गया। कृषि प्रधान देश होते हुए भी कृषि की पूर्ण उपेक्षा की गई। आस्ट्रिया में कर प्रणाली इतनी दूषित थी कि अधिकांश करों का भार जनता को ही वहन करना होता था। इस प्रकार मेटरनिख ने साम्राज्य में निरंकुश तंत्र और पुलिस राज्य की स्थापना की। उसकी यह व्यवस्था 1848 तक अनवरत सफलतापूर्वक चलती रही। 1830 की फ्रांसीसी क्रान्ति का आस्ट्रिया पर लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा। उसकी सम्पूर्ण कार्य-प्रणाली इस बात में निहित थी कि, "शासन को दृढ़ करो किन्तु उसमें कोई परिवर्तन मत करो।" इस प्रकार, मेटरनिख ने आस्ट्रिया के पुनर्निर्माण के लिए रचनात्मक कार्यों की अवहेलना की तथा अपनी सारी शक्ति एवं बुद्धि पुरातन व्यवस्था को बनाये रखने में लगा दी।

मेटरनिख की गृहनीति का प्रभाव-

मेटरनिख की अनुदारवादी नीति का खामियाजा अन्ततः आस्ट्रिया के लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई। उसकी अनुदार गृहनीति के परिणामस्वरूप आस्ट्रिया नवीन विचारों से अछूता रह गया तथा साम्राज्य का जीवन सर्वथा गतिहीन एवं निष्क्रिय हो गया। उसकी प्रतिक्रियावादी नीति से अल्प समय के लिए देश में शान्ति अवश्य स्थापित हो गई थी किन्तु प्रशासनिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई तथा आर्थिक उन्नति ठप्प हो गई। कृषकों की स्थिति दिन-प्रतिदिन शोचनीय होती चली गई। दूषित कर-व्यवस्था से जन-असन्तोष बढ़ता गया। परिणामस्वरूप आस्ट्रिया सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं व्यापारिक क्षेत्र में यूरोप के अन्य देशों से काफी पिछड़ गया।

मेटरनिख की नीति का मूल उद्देश्य राष्ट्रीयता एवं उदारवाद के विचारों को साम्राज्य में प्रविष्ट न होने देना भी अन्ततः असफल सिद्ध हुआ। क्योंकि कठोर प्रतिबन्धों एवं गुप्तचर व्यवस्था के बावजूद नवीन विचारों की पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाएँ शिक्षित वर्ग को प्राप्त होती रहीं, जिससे साम्राज्य में क्रान्तिकारी विचारों का उदय एवं फैलाव स्वाभाविक ही था। इन सभी कठिनाइयों एवं अपनी नीति के परिणामों को देखकर भी मेटरनिख ने अपनी नीति में कोई बदलाव नहीं किया जिससे यूरोपीय रंगमंच से 'मेटरनिख युग' का पटाक्षेप हो गया।

मेटरनिख की विदेश नीति

मेटरनिख जो स्वयं को यूरोप में शान्ति का मसीहा समझता था, न केवल आस्ट्रिया के साम्राज्य को इतना शक्तिशाली बना देना चाहता था वरन् यह चाहता था कि भविष्य में आस्ट्रिया समस्त यूरोप का नेतृत्व करने योग्य बन जाये। इसी उद्देश्य को लेकर मेटरनिख ने अपनी विदेश नीति का निर्माण किया था। मेटरनिख की इस विदेश नीति के परिणामस्वरूप ही आस्ट्रिया का साम्राज्य मध्य यूरोप में अत्यधिक शक्तिशाली बन गया। अपनी राजनीतिक कुशलता के कारण ही वह 1815 तक यूरोपीय राजनीति का सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति बना रहा। उसकी विदेश नीति का उद्देश्य यूरोप में शान्ति बनाये रखना था तथा यूरोप की व्यवस्था को बनाये रखने के लिए वह आस्ट्रिया को आवश्यक मानता था।

संक्षेप में मेटरनिख की विदेश नीति से सम्बद्ध गतिविधियों, कार्यों का वर्णन निम्न बिन्दुओं में किया जा सकता है-

1. मेटरनिख और वियना सम्मेलन-

वियना कांग्रेस के द्वारा मेटरनिख का यूरोप में प्रभुत्व स्थापित करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। उसने अपने प्रयासों से आस्ट्रिया की राजधानी में नेपोलियन के पतन के बाद उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर विचार करने के लिए यूरोप के राजाओं और राजनीतिज्ञों की बैठक को आमंत्रित किया तथा अपने प्रभावशाली व्यक्तित्व से इस सम्मेलन का अध्यक्ष भी बन गया। वियना सम्मेलन में प्रस्तावित मौलिक विचार उसके मस्तिष्क की सूझ थी। उसने विशेष रूप से अपनी कुशाग्र बुद्धि और दूरदर्शिता से यूरोप के नक्शे को इस प्रकार पेश किया, जिससे आस्ट्रिया की सीमा अत्यधिक बढ़ जाये और प्राचीन वंशों के राज्यों की पुनः संस्थापना हो सके। नेपोलियन ने यूरोप में फ्रांस को जो गौरव दिलाया, वही गौरव मेटरनिख ने 1815 में आस्ट्रिया को दिलाया। यूरोप के सभी कूटनीतिज्ञ आस्ट्रिया को प्रतिष्ठित दृष्टि से देखने लगे। यह स्थिति मेटरनिख ने वियना सम्मेलन में अपने प्रभाव से अर्जित की थी। जर्मनी का नेतृत्व भी उसने आस्ट्रिया के सम्राट को वियना निर्णयों में दिलाया।

विस्तार से जानने के लिए देखें- मेटरनिख के विशेष संदर्भ में वियना कांग्रेस के सिद्धान्त

2. मेटरनिख और यूरोप की संयुक्त व्यवस्था-

वियना कांग्रेस के निर्णयों को स्थायित्व प्रदान करने के लिए मेटरनिख ने यूरोप में एक संयुक्त जाल बिछाया। पवित्र संघ की घोषणा, जो जार एलेक्जेण्डर ने की थी, उसका अनुमोदन कर उसने रूस के सहयोग को प्राप्त किया। चतुर्मुख मित्र मण्डल, जो यूरोप की राजनीति का व्यावहारिक रूप था, उसका जन्मदाता स्वयं मेटरनिख था। यूरोप के समस्त राष्ट्रों को इस मण्डल से एक सूत्र में बाँधकर उसने यूरोप की सभी राजनीतिक संस्थाओं पर अपना प्रभाव स्थापित कर दिया। जिस कुचक्र से उसने आस्ट्रिया में शासन स्थापित किया था, उसी कुचक्र का प्रयोग उसने मित्र राष्ट्रों के राज्यों में करवाया। अगर कहीं भी क्रान्तिकारी भावनाएँ उठती थीं तो वह उनको संयुक्त व्यवस्था के सदस्यों की बैठक के निर्णयों से दबाता था। 1815-1825 तक होने वाले समस्त सम्मेलनों में उसने महानायक का कार्य किया।

3. मेटरनिख और जर्मनी-

नेपोलियन की विजयों ने जर्मनी को छिन्न-भिन्न कर दिया। वियना सम्मेलन द्वारा मेटरनिख ने जर्मनी को 39 राज्यों की एक संघीय व्यवस्था का रूप दिया और आस्ट्रिया के सम्राट को इस संघ का अध्यक्ष बनवा दिया। जर्मन संघीय परिषद् में जर्मनी के शासकों द्वारा प्रतिनिधि भेजने की व्यवस्था की गई थी। ये प्रतिनिधि प्रतिक्रियावादी नीति के प्रबल पोषक होते थे। मेटरनिख ने इस व्यवस्था से जर्मनी में स्वेच्छाचारी शासन को पुष्ट किया। मेटरनिख ने एलाशेंपल में चतुर्राष्ट्र मैत्री मण्डल से सष्ट्रीय आन्दोलनों को कुचलने की स्वीकृति प्राप्त कर ली। दूसरे ही वर्ष उसने कार्क्सवाद में जर्मन राज्य परिषद् का अधिवेशन बुलाया और अपने प्रभाव से कार्क्सवाद के कठोर नियमों को पारित करवाया। छात्रों की प्रगति रोकने के लिए निरीक्षकों की नियुक्तियाँ की गईं, उनके पीछे गुप्तचर लगा दिये गये। प्रेस की स्वतन्त्रता नष्ट कर दी गई। जिन जर्मन राज्यों में वैध शासन की स्थापना हो गई थी उन्हें उलट दिया गया। इस प्रतिक्रियावादी नीति में उदारवादी विचारधारा को आघात पहुँचा। इस नीति का परिणाम यह हुआ कि आस्ट्रिया की भांति जर्मनी का भी विकास रूक गया।

4. मेटरनिख और इटली-

नेपोलियन ने इटली में फ्रांस का विस्तृत राज्य स्थापित किया था। यह अप्रत्यक्ष रूप से इटली का एकीकरण था लेकिन नेपोलियन के पतन के पश्चात् वियना कांग्रेस ने इटली में प्राचीन वंशों का राज्य पुनः स्थापित कर दिया। इटली पुनः भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र बन गया। इस परिस्थिति का लाभ मेटरनिख ने भी उठाया। उत्तरी और मध्य इटली के भागों में आस्ट्रिया की सत्ता कायम हो गई।

मेटरनिख के इस कदम से इटली के उदारवादियों में खलबली मच गई। जगह-जगह आस्ट्रियन राज्य तथा प्राचीन राजवंशों के विरुद्ध विद्रोह होने लगे। 1820 में नेपल्स तथा 1821 में पीडमाण्ट में देशभक्तों द्वारा क्रांति की भीषण ज्वाला धधक उठी। मेटरनिख ने क्रान्ति की इस आग को बुझाने के लिए लाइबेख सम्मेलन में रूस तथा प्रशा के प्रतिनिधियों से अनुमति प्राप्त कर ली। सैनिक शक्ति से आन्दोलनों को कुचला गया और जहाँ नये संविधान बनाये गये थे, उन्हें भंग कर दिया गया। 1830 में मोडेना के विद्रोह का भी मेटरनिख ने दृढ़ता से दमन कर दिया। यही व्यवस्था 1848 की क्रान्ति के समय भी हुई। मेटरनिख यह नहीं समझ सका कि जन आन्दोलन की आग को दमन नीति से हमेशा शान्त नहीं किया जा सकता। उसके चले जाने के कुछ वर्षों बाद ही इटली आस्ट्रियन राज्य से अलग हो गया।

5. मेटरनिख और इंग्लैण्ड-

वियना सम्मेलन में इंग्लैण्ड और मेटरनिख सहयोगी रहे। संयुक्त व्यवस्था के इस प्रथम सम्मेलन में ही इंग्लैण्ड और आस्ट्रिया के मतभेद उभरकर सामने आ गये। इस व्यवस्था के अन्तर्गत मेटरनिख दूसरे राज्यों के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप के सिद्धान्त को मानता था जबकि इंग्लैण्ड किसी राज्य के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप के विरुद्ध था। इन्हीं मतभेदों के परिणामस्वरूप फ्रांस द्वारा स्पेन में हस्तक्षेप का तथा स्पेन द्वारा अपने दक्षिणी अमेरिकी उपनिवेशों पर पुनः अधिकार का इंग्लैण्ड ने विरोध किया। मेटरनिख द्वारा नेपल्स में विद्रोह को दबाने के लिए सेना भेजने का भी इंग्लैण्ड ने विरोध किया। इंग्लैण्ड मेटरनिख की प्रतिक्रियावादी नीति का विरोध करता रहा और मेटरनिख जहाँ भी उसे अवसर मिला, राष्ट्रीय आन्दोलनों को कुचलने में तत्पर रहा। परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड को संयुक्त व्यवस्था से अलग होना पड़ा।

6. स्पेन, यूनान तथा रूस के प्रति मेटरनिख की नीति-

मेटरनिख ने स्पेन में प्रतिक्रियावादी नीति का अनुसरण करते हुए, स्पेन के शासक से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर वहाँ राष्ट्रीय भावनाओं का दमन करना प्रारम्भ किया। मेटरनिख ने राष्ट्रवादियों को मौत के घाट उतार दिया तथा निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी शासन की स्थापना कर दी। किन्तु 1820 में स्पेन में सैनिक क्रान्ति हो गई और वहाँ के शासक फर्डिनेण्ड को गद्दी से उतार दिया गया। तुर्की के विरुद्ध यूनान के विद्रोह के समय भी मेटरनिख ने प्रतिक्रियावादी नीति अपनायी। मेटरनिख के विरोध के कारण यूरोप के अधिकांश देश जो यूनानियों के पक्ष में थे, कोई सहायता यूनान को नहीं दे सके। परिणामस्वरूप तुर्की ने यूनान के इस विद्रोह का कठोरता से दमन कर दिया। मेटरनिख जानता था कि यदि तुर्की के विरुद्ध यूनान को सहायता दी गई तो यूनान का राष्ट्रीय आन्दोलन सफल हो जाएगा। रूस का जार अलेक्जेण्डर प्रथम प्रारम्भ में उदारवादी था किन्तु धीरे-धीरे वह मेटरनिख के प्रभाव में आकर घोर प्रतिक्रियावादी हो गया। ट्राप्पो सम्मेलन में जार ने स्पष्ट रूप से घोषणा कर दी कि वह मेटरनिख का अनुयायी है। उसने मेटरनिख को वचन दिया कि वह प्रत्येक मामले में उसका समर्थन करेगा। इस प्रकार रूस का जार मेटरनिख के प्रभाव में आकर घोर प्रतिक्रियावादी हो गया।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि मेटरनिख अपनी विशिष्ट वैदेशिक नीति से अपनी और अपने देश की प्रतिष्ठा बढ़ाना चाहता था। जब नेपोलियन जीवित था तो वह उसके विकास को सबसे बड़ा बाधक समझता था। परन्तु वह जानता था कि उसकी स्वतन्त्र शक्ति उसे दवाने के लिए पर्याप्त नहीं है। वह यह भी जानता था कि नेपोलियन को खुले रूप से अप्रसन्न भी नहीं कर सकता। इस स्थिति में उसने मध्यवर्ती मार्ग का अनुसरण किया। जब नेपोलियन का पतन हो गया, तो उसने आस्ट्रिया के प्रभाव में अभूतपूर्व वृद्धि की। वियना सम्मेलन के समय यूरोप के बड़े-बड़े राष्ट्र और राजनीतिज्ञ उसके इशारे पर नाचने लगे और उसकी सहायता की आकांक्षा करने लगे। जब वियना सम्मेलन समाप्त हुआ, तो उसके निर्णयों को स्थायी रखने के लिए तथा यूरोप में उदारवादी तत्त्वों का दमन करने के लिए उसने संयुक्त व्यवस्था का नेतृत्व किया। अपनी वैदेशिक नीति में उसने हमेशा राजसत्तात्मक शासन व्यवस्था को स्थिर रखने के पोषक तत्त्वों को प्रधानता दी। यदि यूरोप के किसी भी भाग में जन आन्दोलन इन तत्त्वों के विरुद्ध होते थे, तो वह उनको दबाना अपना कर्त्तव्य समझता था।

स्पेन के अमेरिकन उपनिवेशों में होने वाले विद्रोहों को दबाने का उसने प्रयत्न किया, परन्तु केनिंग और मुनरो के रुख के कारण वह सफल न हो सका। स्पेन के आन्तरिक विद्रोह को दबाने की उसने फ्रांस को इसलिए अनुमति प्रदान की थी कि वह ऐसे आन्दोलनों को यूरोप की शान्ति को भंग करने वाली घटना मानता था।

एलीसन फिलिप्स के शब्दों में कहा जा सकता है कि वह मेटरनिख था, जिसने आस्ट्रियन नीति को बल और निश्चियता दी जिसके कारण वह पीछे जाकर अपने को नेपोलियन का विजेता मानने लग गया।" यह उसी की नीति का फल था कि यूरोप लगभग चालीस वर्षपर्यन्त शान्ति का उपभोग करता रहा और यह उसके विफल जीवन में एक महान सफलता का चिह्न है।

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