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जापान के आधुनिकीकरण में मुत्सुहितो का योगदान

जापान का आधुनिकीकरण

1867 ई. में मुत्सुहितो नामक व्यक्ति जापान का सम्राट बना। सम्राट बनने पर उसने मेइजी की उपाधि धारण की।

'मेइजी' का अर्थ है- 'बुद्धिमतापूर्ण शासन'। मेइजी पुनर्स्थापन से आशय सम्राट की शक्ति की पुनर्स्थापना से है।

1867 के अन्त में जापान के विभिन्न सामन्तों ने शोगुन की सेवा में एक आवेदन पत्र भेजा, जिसमें यह अनुरोध किया गया कि नये सम्राट को राजसत्ता का स्वयं उपयोग करने का अवसर दिया जाना चाहिए और शोगुन सरकार की सत्ता का अन्त होना चाहिए।

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जापान के आधुनिकीकरण में मुत्सुहितो का योगदान


1868 में तत्कालीन शोगुन केइकी ने दूरदर्शिता का परिचय देते हुए स्वयं अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। अब शासन की वास्तविक तथा वैधानिक शक्ति सम्राट के हाथ में आ गई। इस घटना को इतिहास में सम्राट की शक्ति का पुनरुद्धार अथवा मेइजी पुनर्स्थापना के नाम से पुकारा जाता है।

शोगुन की समाप्ति और मेइजी पुनर्स्थापना दोनों घटनायें अत्यन्त असाधारण ढंग से सम्पन्न हुई लेकिन इन घटनाओं ने जापान को नवजीवन प्रदान किया, जिससे वह कुछ ही वर्षों में एक आधुनिक राज्य बन गया। जापान में आधुनिकीकरण के लिए एक प्रबल आन्दोलन आरम्भ हो गया, जिसके फलस्वरूप देश के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन हुए और जापान का कायाकल्प हो गया।

मुत्सुहितो की भूमिका

विदेशी शक्तियों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध करने के लिए जापानियों ने अपने देश के आधुनिकीकरण पर बल दिया। उनकी मान्यता थी कि जापान स्वयं एक आधुनिक शक्तिशाली राज्य बनकर ही विदेशी शक्तियों का मुकाबला कर सकता है अतः जापान में देश के आधुनिकीकरण के लिए एक आंदोलन शुरू हो गया, जिसके फलस्वरूप जापान ने सैनिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में तीव्र गति से उन्नति की।

एच.जी. वेल्स का कथन है कि "मानव सभ्यता के इतिहास में किसी भी राष्ट्र ने जापान के समान तेजी से प्रगति नहीं की है। जापान की तुलना में यूरोप की प्रगति बहुत धीमी मालूम पड़ती है।"

जापान के आधुनिकीकरण के लिए निम्नलिखित कदम उठाये गये-

1. सामन्ती प्रथा का अन्त-

जापानी सरकार ने सामन्ती प्रथा का अन्त करने के लिए निम्न उपाय किये-

(i) 1868 में जापान की सरकार ने एक आदेश जारी किया जिसके अनुसार प्रत्येक सामन्त की जागीर में एक केन्द्रीय अधिकारी की नियुक्ति की गई।

(ii) 1869 ई. में सातसूमा, चोशू, तोसा तथा हीजन के सामन्तों ने अपनी जागीरें स्वयं ही सम्राट को समर्पित कर दी और केन्द्रीय सरकार की अधीनता स्वीकार कर ली। सम्राट ने उनकी समस्त सामन्ती सुविधाएँ समाप्त कर दीं। अन्य सामन्तों ने भी स्वेच्छा से अपनी जागीरें सम्राट को सौंप दी।

(iii) 1871 में सम्राट की आज्ञा द्वारा सामन्ती प्रथा का विधिवत अन्त कर दिया गया। सामन्तों को पेन्शन दे दी गई। इस प्रकार सदियों से चली आ रही सामन्ती प्रथा का अन्त हो गया।

2. सैनिक सुधार-

अब तक जापान की सेना में केवल समुराई वर्ग के लोगों को ही लिया जाता था। किन्तु अब सभी वर्गों के लोग जापान की सेना में भर्ती हो सकते थे। 1872 में जापान में अनिवार्य सैनिक सेवा लागू की गई। फ्रांसीसी, जर्मन तथा ब्रिटिश विशेषज्ञों को प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया गया। जापान ने यूरोपियन पद्धति पर अपनी सेना का पुनर्गठन किया। जर्मनी के आधार पर स्थल सेना का तथा इंग्लैण्ड के आधार पर नौ-सेना का गठन किया गया। जापान के बन्दरगाहों को विशाल और मजबूत बनाया गया। 1882 ई. तक नौसेना के क्षेत्र में जापान ने अत्यधिक उन्नति कर ली थी।

3. शिक्षा का पुनर्गठन-

1871 ई. में जापान में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके लिए एक कानून बनाकर यह व्यवस्था की गई कि, "हर व्यक्ति ऊँचा और नीचा, स्त्री और पुरुष शिक्षा प्राप्त करे, जिससे सारे समाज में कोई भी परिवार और परिवार का कोई भी व्यक्ति अशिक्षित और अज्ञानी नहीं रह जाय।" प्राथमिक शिक्षा सभी के लिए अनिवार्य कर दी गई। सम्पूर्ण देश को आठ विश्वविद्यालयी क्षेत्रों में बाँटा गया। इस प्रत्येक क्षेत्र में 32 माध्यमिक विद्यालय प्रदेश बनाये गये। प्रत्येक प्रदेश को 210 प्राथमिक पाठशाला क्षेत्रों में बाँटा गया। इस प्रकार प्रत्येक छ: सौ व्यक्तियों के लिए एक प्राथमिक पाठशाला उपलब्ध हो गई।

उच्च शिक्षा के लिए अनेक विश्वविद्यालय स्थापित किये गये। 1871 में होसी तथा 1877 में टोक्यो विश्वविद्यालय की स्थापना की गई। 1880 में शैन्सू विश्वव्यिालय, 1882 में वाशेडा, 1897 में क्योटो, 1907 में सेन्दाई तथा 1910 में फूफू ओका विश्वविद्यालय स्थापित किये गये। 1902 के बाद लड़कियों के लिए पृथक् कॉलेजों की स्थापना की गई। 1913 में जापान में एक महिला विश्वविद्यालय की भी स्थापना की गई। अंग्रेजी भाषा को माध्यमिक और उच्चतर पाठ्यक्रमों का अंग बनाया गया। जर्मन तथा फ्रेंच भाषाओं के अध्ययन की भी व्यवस्था की गई।

4. कानूनी समानता की स्थापना-

मेइजी पुनर्स्थापना के बाद सामन्ती प्रथा की समाप्ति के साथ ही सामन्तों को जन सामान्य की स्थिति में लाना अनिवार्य हो गया था। 1869 ई. में सरकारी और व्यावसायिक नौकरियों पर से वर्ग विषयक पाबन्दियाँ हटा ली गई। 1870 ई. में सामान्य जनता को पारिवारिक नाम धारण करने का अधिकार मिल गया। 1871 ई. में समाज के सबसे निम्न वर्ग को भी पूरी समानता दे दी गई। 1876 ई. में कानूनन तलवार रखने पर ही प्रतिबन्ध लगा दिया गया। इससे सामन्ती प्रतिष्ठा और पृथकता का दिखावटी चिह्न समाप्त हो गया। इस प्रकार जापान में कानूनी समानता की स्थापना कर दी गई।

5. औद्योगिक विकास-

जापान ने तीव्रता के साथ पाश्चात्य व्यावसायिक संगठन को अपनाना प्रारम्भ कर दिया। यूरोप और अमेरिका से मशीनें मंगवायी गई और जापान में शीघ्र ही नये-नये कारखाने स्थापित किये गये। 1870 में जापान में उद्योग मंत्रालय स्थापित किया गया, जिसने सरकारी उद्योग स्थापित किये गये तथा निजी उद्योगों की सहायता की। 1871 ई. में मशीन के पुर्जे और सामान बनाने का कारखाना, 1875 ई. में सीमेन्ट का कारखाना, 1876 में काँच का कारखाना और 1878 ई. में सफेद ईंटों के कारखाने शुरू किये गये। सूती-रेशम वस्त्र उद्योग भी स्थापित किये गये। इस प्रकार कुछ ही वर्षों में जापान में औद्योगिक क्रान्ति हो गई। डॉ. सत्यकेतु विद्यालंकार का कथन है कि "1890 के बाद तो जापान ने व्यावसायिक क्षेत्र में और भी अधिक उन्नति की 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ तक वह आर्थिक उत्पादन में इंग्लैण्ड जैसे उन्नत देशों का सफलतापूर्वक मुकाबला करने लगा।"

जापान की सरकार ने यातायात और संचार-साधनों के विकास की ओर भी ध्यान दिया। 1872 में जापान में पहली रेलवे लाइन का निर्माण हुआ जो टोक्यो से योकोहामा तक बनाई गई ती। 1894 तक 2118 मील लम्बी रेलवे लाइनों का निर्माण हो चुका था।

जापानी सरकार ने डाक विभाग का भी संगठन किया। 1868 में जापान में सर्वप्रथम तार लाईन लगाई गई। जहाज निर्माण के क्षेत्र में बड़ी संख्या में जहाजों का निर्माण होने लगा। 1873 ई. में जापान में प्रथम राष्ट्रीय बैंक की स्थापना हुई। 1880 ई. तक जापान में 150 से भी अधिक बैंकों की स्थापना हो चुकी थी। 1885 में 'बैंक ऑफ जापान' की स्थापना हुई।

औद्योगिकीकरण के लिए खानों का विकास अनिवार्य था अतः 1869 ई. में हीजन में आधुनिक ढंग की खान चालू की गी। 1873 में एक खान विभाग स्थापित किया गया। 1880 ई. तक सरकार की ओर से आठ और कोयले की खानें चालू की गई। 1881 में सरकार ने एक लोहे की खान चालू की तथा सोने-चाँदी की खानों का धन्धा अपने हाथ में ले लिया।

6. पत्रकारिता का विकास-

1870 ई. में जापान का सबसे पहला समाचार-पत्र 'याकोहामा माई चीनी शीम्बून' प्रकाशित हुआ। 1875 ई. तक लगभग 100 समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगे। महिलाओं और बच्चों के लिए अलग से पत्रिकाएँ निकलती थीं। समाचार-पत्रों के प्रसार ने जापानियों के बौद्धिक स्तर को ऊँचा उठाने में सहायता प्रदान की।

7. कृषि सम्बन्धी सुधार-

जापान में सामन्ती प्रथा की समाप्ति से कृषि के क्षेत्र में भी सुधार हुआ। किसानों की स्थिति सुधरी, 1872 में किसानों का अपने पर स्वामित्व स्थापित कर दिया गया। अब किसानों से सिक्कों के रूप में भूमि कर लिया जाने लगा। कृषि की उन्नति के लिए पैदावार बढ़ाने पर विशेष बल दिया गया। किसानों को हर प्रकार से राजकीय सहायता दी गई ताकि वे पैदावार में वृद्धि कर सके। उन्हें वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया गया।

8. प्रशासन तंत्र में सुधार-

जापानी सरकार ने प्रशासनिक ढाँचे में भी सुधार करने का निश्चय किया। 1882 ई. में जापान के प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ ईतो को पश्चिमी देशों की शासन पद्धतियों का अध्ययन करने के लिए यूरोप भेजा गया। 1883 ई. में ईतो ने वापस लौटकर रिपोर्ट प्रस्तुत की, उसके आधार पर एक संविधान का निर्माण किया गया जिसे 1889 ई. में लागू कर दिया गया।

संविधान के अनुसार शासन का प्रधान सम्राट को घोषित किया गया। वह प्रशासन का सर्वोच्च अधिकारी था। देश की सर्वोच्च सत्ता उसके हाथों में केन्द्रित थी। सैनिक तथा असैनिक अधिकारियों को नियुक्त करने तथा उन्हें अपने पद से हटाने और उनके वेतन निर्धारित करने के अधिकार उसी के हाथों में थे। संधि एवं युद्ध करने का अधिकार भी उसे ही था। मंत्रिपरिषद् सम्राट के प्रति उत्तरदायी थी। नवीन संविधान में द्विसदनात्मक व्यवस्थापिका (डायट) की व्यवस्था थी। संसद की स्वीकृति के बिना कोई नया कानून स्वीकृत नहीं हो सकता था और न ही कोई नया कर लगाया जा सकता था। सम्राट को प्रत्येक कानून के विषय में निषेधाधिकार प्राप्त था। इस संविधान द्वारा जनता को कुछ मूल अधिकार यथा-प्रत्येक व्यक्ति को भाषण देने, लिखने, सभाएँ करने, संगठन बनाने और धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी।

9. न्याय व्यवस्था में सुधार-

जापान की सरकार ने दीवानी और फौजदारी कानूनों का नये सिरे से निर्माण किया। 1882 में फौजदारी कानूनों का संग्रह किया गया जिन पर फ्रांसीसी कानूनों का प्रभाव था। 1890 में दीवानी संहिता तैयार हो गई तथा 1891 में उसे लागू कर दिया गया। इन कानूनों के लागू हो जाने के बाद पश्चिमी राष्ट्रों के जापान में जो क्षेत्रातीत अधिकार थे, वे समाप्त कर दिये गये। 1889 ई. तक न्यायालय से सम्बन्धित नई व्यवस्था की रूपरेखा तैयार कर ली गई और 1894 में सम्पूर्ण जापान में इस पद्धति के अनुसार न्याय-प्रशासन का संचालन किया जाने लगा।

10. नई जीवन-शैली का विकास-

शिक्षा के पश्चिमीकरण, पत्रकारिता का विकास तथा विदेशों से आवागमन के कारण जापान की जीवन शैली एवं संस्कृति के क्षेत्र में क्रान्तिकारी परिवर्तन दिखाई देने लगे। विदेशी व्यापार में लगे जापानी लोग विदेशी पोशाक पहनने लगे। तिनकों का टोप लगाये, सफेद सूती दस्ताने, हाथ में बेंत लिये और एड़ीदार जूते पहने हुए जापानी लोग याकोहामा के बाजारों में गर्मी की शाम को घूमते हुए दिखाई देने लगे। वे अमरीकी नमूने के सूट पहनने लगे।

1872 ई. में सभी पदाधिकारियों के लिए पाश्चात्य वेश-भूषा धारण करना अनिवार्य कर दिया गया। जापानी महिलायें भी पाश्चात्य ढंग के वस्त्र पहनने लगीं। पहले दाँतों को काला करवाने व भौहें मुंडवाने का रिवाज प्रचलित था। परन्तु 1873 के बाद ये रिवाज समाप्त कर दी गयी। जापानियों ने पाश्चात्य शैली की नृत्य कला को भी अपना लिया। जापान में पश्चिमी शैली के मकान बनाये जाने लगे। जापान में सर्वप्रथम 1887 में बिजली का प्रवेश हुआ तब से बिजली का प्रयोग बहुत बढ़ गया। 1869 ई. में हाथ से खींचने वाले हल्के पहियों की गाड़ी का प्रचलन हुआ जिसे जीन की कीशा (मानव शक्ति से चलने वाली गाड़ी) कहते थे। जापान में अपनी प्राचीन ललित-कलाओं को त्याग दिया और उनके स्थान पर मशीनों द्वारा छपी तस्वीरों का आयात किया जाने लगा। यहाँ तक कि खाने-पीने के बर्तनों तक का यूरोपीकरण हो गया। इस प्रकार जापानी जीवन-शैली का पश्चिमीकरण हुआ।

11. धार्मिक जीवन में परिवर्तन-

मेइजी पुनर्स्थापना के बाद जापान में धार्मिक जीवन में एक नवीन जागृति लाने का प्रयास किया गया। बौद्ध धर्म के स्थान पर अब प्राचीन शिन्तों धर्म का पुनरुद्धार कर उसे लोकप्रिय बनाया जाने लगा। यह जापान का राजधर्म बन गया। शिन्तो धर्म में सम्राट के प्रति आदर का विशिष्ट स्थान था तथा विविध प्रकार की प्रार्थनाओं और 'अनुष्ठानों की व्यवस्था भी थी। इस धर्म के माध्यम से राष्ट्रीयता के विकास में सहायता मिली। लोग सम्राट के प्रति पहले से अधिक राजभक्ति और सम्मा' प्रदर्शित करने लगे। लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करने में धर्म का उपयोग किया गया जिसने जापानियों में राष्ट्रीय चेतना और एकता की भावना उत्पन्न हुई।

जापानी आधुनिकीकरण का यह परिणाम निकला कि जापान की खोई हुई सम्प्रभुत्ता प्राप्त हुई, जापान पाश्चात्य देशों की श्रेणी में आ गया और जापानी साम्राज्यवाद का विकास हुआ।

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