इतिहास के प्रति राष्ट्रवादी दृष्टिकोण
राष्ट्रवाद
फ्रांसीसी क्रान्ति ने उदारवाद के साथ-साथ राष्ट्रवाद की भावना एवं सिद्धान्त को भी जन्म दिया। फ्रांसीसी सिद्धान्त के अनुसार राष्ट्र का निर्माण सर्वसाधारण जनता के मत आधारित होना चाहिये। इस सिद्धान्त के पक्षधर सामान्य कानूनी व्यवस्था में अधीन होने के लिये तैयार थे। नेपोलियन को विजय द्वारा ये विचार और भी मजबूत बने। नेपोलियन को राष्ट्रवाद के जनक का रूप दिया गया तथा उसकी आत्मकथा के अनेक कथन लोकप्रिय हो गये।
दूसरी प्रकार का राष्ट्रवाद जर्मन सिद्धान्तों पर
आधारित था तथा उसे लोकप्रिय बनाने में हर्डर (Harder)
का विशेष योगदान था। एक राष्ट्रवादी ढाँचे से हटकर भाषा तथा कौम पर
आधारित था। हर्डर के अनुसार राज्य को शक्तिशाली बनाना आवश्यक था, केवल संस्थाओं और सार्वजनिक कल्याण से राष्ट्र महान् नहीं बन सकता। इन
विचारों पर आधारित राष्ट्रवाद 1848 ई. को क्रान्ति की
असफलता के बाद अधिक फैला और जनता में लोकप्रिय हुआ। ऐतिहासिक प्रगति की
दृष्टि में 1815 से 1848 ई. के बीच दो
बड़ी सामाजिक शक्तियों में प्रतिद्वन्द्विता सामने आयी।
इतिहास के प्रति राष्ट्रवादी दृष्टिकोण
औद्योगिक क्रान्ति के बाद की
नई पीढ़ी जो उदारवाद के नाम की सहायता से राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना चाहती थी। उदारवादियों
के साथ राष्ट्रवादी तत्वों ने मिलकर इस संघर्ष में विजय प्राप्त करने का
निर्णय लिया। विएना काँग्रेस के निर्णय के कुछ वर्षों के बाद
रूढ़िवादी शक्तियों के विरुद्ध विद्रोहों तथा आन्दोलन ने जन्म लिया। किन्तु 1848 ई. तक प्रगतिशील शक्तियों का उभार इतना अधिक हुआ कि रूढ़िवादी शक्तियों
के समक्ष खुलकर सामने आ गयौं। इसके बाद यूरोप में क्रान्ति, जनतन्त्र
आदि का जन्म और विकास उत्तरोत्तर होने लगा।
राष्ट्रवाद का
इतिहास
अठारहवीं शताब्दी के अन्तिम तथा 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में फ्रांस की राज्य क्रान्ति तथा नेपोलियन
बोनापार्ट की साम्राज्यवादी नीतियों ने यूरोपीय देशों में राष्ट्रीयता की
भावना के द्वारा विकास में बहुत योगदान दिया। बिस्मार्क के द्वारा जर्मनी
के तथा मैजिनी, गैरीबाल्डी व काबूर के द्वारा इटली के एकीकरण
की दिशा में जो महान् प्रयास किये, उनसे इन राज्यों में राष्ट्रीयता
की भावना को बहुत बल मिला।
19 वीं सदी के अन्त तक औद्योगिक क्रान्ति
में फलस्वरूप एक नये प्रकार के राष्ट्रवाद का जन्म हुआ जिसको आर्थिक राष्ट्रवाद
कहा जा सकता है। राष्ट्रीयता व राष्ट्रवाद की भावना के बलवती होने
के कारण एशिया तथा अफ्रीका के देशों में स्वतन्त्रता प्राप्ति के प्रयास किये जाने
लगे जिनको एशियाई तथा अफ्रीकी पुनर्जागरण की संज्ञा दी जाती है।
राष्ट्रवाद एकता की भावना है जिसको हम
मानसिक अथवा आध्यात्मिक एकता कह सकते हैं। एकता को यह भावना समानधर्म, नस्ल, क्षेत्र, साहित्य व
संस्कृति आदि के आधार पर विकसित होती है। इनमें से सभी या कुछ तत्वों के मिलने से
ही राष्ट्रवाद की भावना पनपने लगती है। जब एक राष्ट्रीयता अपना अलग
राज्य स्थापित कर लेती है अथवा ऐसा करने की एक तीव्र इच्छा उसमें क्रियाशील हो
जाती है तो वह राष्ट्र कहलाने लगता है।
राष्ट्रवाद एक वरदान
रूप में
राष्ट्रवाद के निम्नलिखित लाभ बताये जाते हैं-
1. राष्ट्रवाद के
द्वारा सामाजिक एकता स्थापित होती है-
राष्ट्रवाद की भावना समाज में व्याप्त
ऊँच-नीच तथा जाति-पाँति के संकीर्ण भेद-भाव को नष्ट करके सब मनुष्यों में
एकता की भावना का संचार करती है।
2. त्याग तथा बलिदान
की भावना उत्पन्न होती है-
राष्ट्रवाद व्यक्तियों में देश की खातिर
बड़े से बड़ा त्याग किये जाने की भावना को उत्पन्न करता है। जब भी किसी देश में
विदेशी आक्रमण होते हैं, राष्ट्रवाद की
भावना उत्पन्न होकर देश के नागरिकों में बलिदान करने का उत्साह भर देती है। इजराइल
ने यहूदी राष्ट्रवाद के बल पर ही अपने से कई गुणा अधिक मुस्लिमों का
सफलतापूर्वक मुकाबला किया।
3. राष्ट्रवाद
साहित्य तथा संस्कृति का विकास करता है-
राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित
होकर राष्ट्र के साहित्यकार तथा कविगण देश भक्ति से परिपूर्ण महान् कृतियों की
रचना करते हैं। भारत में सर्व श्री मैथिलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर तथा श्याम नारायण
पाण्डेय आदि कवियों ने राष्ट्रवाद से प्रेरित होकर भारत को अमर काव्यों की
भेंट दी।
4. मर्यादित
राष्ट्रवाद अन्तर्राष्ट्रवाद के विकास में सहायक होता है-
सच्चा राष्ट्रवादी अन्तर्राष्ट्रवाद का समर्थक होता
है, क्योंकि वह अपने राष्ट्र में प्रेम करते विश्व के सभी राज्यों
के साथ सहयोग की भावना रखेगा। महात्मा गाँधी तथा जवाहरलाल नेहरू सच्चे राष्ट्रवादी
होने के साथ-साथ शान्ति के दूत भी थे। जवाहरलाल नेहरू की प्रेरणा से 1965 वर्ष को अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग का वर्ष घोषित किया गया था।
5. राष्ट्रवाद देश
की राजनीतिक एकता तथा स्थिरता को उत्पन्न करता है-
राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित
होकर मनुष्य पारस्परिक मतभेदों को भुलाकर राष्ट्र हित में निर्णय लेते हैं। जिसमें
देश को विखण्डित करने वाली प्रवत्तियों को बल नहीं मिलता है।
6. राष्ट्रवाद
उदारवाद को उत्पन्न करता है-
राष्ट्रवादी भावना में पले हुए
व्यक्ति राष्ट्र का महत्त्व समझते हैं, इस कारण वे
दूसरे देशों में विकसित हुई राष्ट्रवाद की भावना का सम्मान कर सकते हैं। एक
सच्चे राष्ट्रवादी की यही आकांक्षा रहती है कि सभी राष्ट्रीयताओं को
आत्म निर्णय का अधिकार प्राप्त हो। इस आधार पर कहा जा सकता है कि राष्ट्रवाद उदारवाद
को उत्पन्न करता है।
7. राष्ट्रवाद देश
की प्रगति में सहायक होता है-
राष्ट्रवादी भावना से ओत-प्रोत
जनता पूर्ण उत्साह तथा सामर्थ्य से परिश्रमपूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन करती है।
देश में आर्थिक प्रगति होती है तथा देश की समृद्धि में वृद्धि होती है।
8. विदेशी शासन से
मुक्ति दिलाने में सहायक-
विदेशी साम्राज्यवाद के चंगुल में फंसी जनता में जब
राष्ट्रवाद को भावना विकसित होती है तो वह विदेशी शासन को उखाड़ फेंकने के लिये
मानसिक रूप से तैयार हो जाती है। राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर ही
किसी देश की जनता मुक्ति आन्दोलन चला सकती है।
उग्रराष्ट्रवाद- अभिशाप
के रूप में
उदार राष्ट्रवाद देश प्रेम
के साथ-साथ विश्व प्रेम की भावना का भी प्रसारक होता है लेकिन देश प्रेम की भावना
कभी-कभी अत्यधिक उग्र रूप ले लेती है तो यह विश्व प्रेम का सन्देश देने के स्थान
पर विश्व युद्ध का कारण बन जाती है। उग्र राष्ट्रवाद की भावना को हम
राष्ट्रोन्माद का नाम भी दे सकते हैं। हिटलरकालीन जर्मनी में तथा मुसोलिनीकालीन
इटली में राष्ट्रोन्माद इस सीमा तक पहुंचा दिया गया कि उसको अन्तिम परिणति भयंकर
विनाशकारी विश्व-युद्ध के रूप में हुई। उग्रराष्ट्रवाद के हानिकारक
प्रभाव निम्नलिखित बताये गये हैं-
1. विश्व शान्ति को
खतरा होता है-
जब किसी देश में राष्ट्रोन्माद बढ़ जाता है तो उस
देश की जनता अन्य राष्ट्रों को हीन-दृष्टि से देखने लगती है, उसके परिणामस्वरूप विभिन्न राष्ट्रों में वैमनस्य की भावना जन्म लेती है।
इस सबसे विश्व में शान्ति का वातावरण क्षुब्ध होता है तथा शान्ति खतरे में पड़
जाती है।
2. साम्राज्यवाद को
प्रोत्साहन मिलता है-
इतिहास इस बात का साक्षी है कि
समय-समय पर उग्र राष्ट्रोन्माद की भावना को तुष्टि के लिये यूरोपीय
जातियों ने एशिया तथा अफ्रीका में अपने उपनिवेश तथा साम्राज्य कायम किये। नेपोलियन
बेनोपार्ट, हिटलर तथा मुसोलिनी
ने अपने राष्ट्रोन्माद के परिणामस्वरूप ही सम्पूर्ण यूरोपीय देशों को अपने
अधीन लाने के लिये भयंकर विनाशकारी युद्ध किये थे।
3. उग्र राष्ट्रवाद जातिवाद
को प्रोत्साहित करता है-
उग्र राष्ट्रवाद से जातिवाद को
प्रोत्साहन मिलता है। हिटलर ने जर्मन जाति को विश्व की सर्वश्रेष्ठ जाति
बताकर विश्व की अन्य जातियों को उसके अधीन लाने का दुष्प्रयास किया था। हिटलर
के द्वारा 60 लाख यहूदियों को मौत के घाट उतारने के
पीछे उग्र जातीयता की भावना क्रियाशील थी।
4. विश्व संघ तथा
अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के मार्ग में बाधक-
महान् संहारकारी शास्त्रों के आविष्कृत हो जाने के कारण
विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की नितान्त आवश्यकता हो गयी है।
विश्व सरकार के निर्माण को बावत भी गम्भीरता से सोचा जाने लगा है लेकिन उग्रराष्ट्रवाद
एक बाधा के रूप में है. क्योंकि उग्र राष्ट्रवाद अपने राष्ट्र की
राजसत्ता का कोई सा भी अंश विश्व संघ को देने को सहन नहीं करेगा।
राष्ट्रवाद व प्रजातांत्रिक शासन
व्यवस्था नागरिकों के लिये एक वरदान है। उदार राष्ट्रवाद राष्ट्रप्रेम के
साथ-साथ विश्व प्रेम तथा विश्व शान्ति का सन्देशवाहक होता है। किन्तु उग्र
राष्ट्रवाद अशान्ति का वातावरण फैलाता है। साम्राज्यवाद की अत्यधिक
अनीति तथा प्रजा के प्रति अत्याचार की भावना ही राष्ट्रवाद को जन्म देती
है। यदि राष्ट्रवादी नेता शान्ति और उदारता तथा उच्चस्तरीय राष्ट्रवादी
भावना से राष्ट्र का नेतृत्व करते हैं तो यह व्यवस्था प्रजा के लिये एक वरदान है।
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