रेनियर ने हिस्ट्री को एक ‘स्टोरी’ के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार इतिहास को ‘हिस्ट्री’ नहीं माना जा सकता। रेनियर ने हिस्ट्री शब्द के ‘हि’ शब्द को अलग करके ‘स्टोरी’ रूप में देखा है। इसी प्रकार हेनरी पेरिने ने लिखा है कि इतिहास
समाज में रहने वाले मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों की कहानी है। एफ.एस. ओलिवर, तुईजिंग आदि इतिहासकारों ने भी इतिहास को कथा
के रूपों में स्वीकार किया है। इसमें सन्देह नहीं कि अतीत के यथार्थ (सत्य) का अन्वेषण
ही इतिहास है। वास्तव में इतिहास सम्पूर्ण अतीत का आलेख है।
इतिहास का अर्थ –
कार्ल आर. पापर का मत है कि इतिहास का
कोई अर्थ नहीं होता है क्योंकि इतिहास का कोई लक्ष्य नहीं है। परन्तु काल्हर
ने पापर के विचार का खण्डन करते हुए लिखा है कि इतिहास अर्थपूर्ण होता है। काल्हर
के अनुसार इतिहास में एक व्यवस्था का दर्शन होता है, यहाँ अर्थ का होना अवश्यम्भावी है। गार्डनर
ने काल्हर का समर्थन करते हुए लिखा है कि, इतिहासकार अतीत के तथ्यों पर घटनाओं का एक परिकल्पनात्मक
चित्र प्रस्तुत करता है जिसमें वर्णित घटनाएँ अर्थपूर्ण होती हैं-इसी को इतिहास का
अर्थ कहते हैं।
इतिहास का अर्थ एवं परिभाषा |
अतः यह कहना न्यायसंगत है कि इतिहास का अर्थ
होता है। कालिंगवुड का कथन है कि इतिहास का सम्बन्ध न तो अतीत और न
इतिहासकार के अतीत सम्बन्धी विचार में रहता है, अपितु इतिहास से इन दोनों का अन्योन्याश्रित
सम्बन्ध होता है। इतिहासकार जिस अतीत का अध्ययन करता है, वह मृत अंतीत नहीं, बल्कि इतिहासकार के मस्तिष्क से सजीव अतीत होता
है। प्रो. ओकशाट ने कालिंगवुड के विचारों का समर्थन करते हुए लिखा है कि “इतिहास इतिहासकार का अनुभव होता है । इतिहासकार
के अतिरिक्त अन्य कोई भी इसकी अनुभूति नहीं कर सकता, इतिहास-लेखन का अभिप्राय इसका निर्माण होता है
जिसे निरर्थक नहीं कह सकते। अतएव इतिहास का अर्थ होता है।"
हीगल ने लिखा है कि इतिहास जगत के
प्रति ईश्वर की परियोजना से संगति रखते हुए नैतिक उन्नति की ओर प्रगति कर रहा है।
परन्तु इस प्रकार की उन्नति मानव-इतिहास के उद्देश्य तथा कार्यविधि की चेतना
द्वारा प्राप्त की जाती है। इतिहास का लक्ष्य स्वातन्त्र्य है। हीगल के अनुसार
स्वातन्त्र्य की प्राप्ति राज्य में होती है। राज्य के प्रति मनुष्य का आज्ञापालन
उसका नैतिक कर्तव्य है। इस प्रकार के आज्ञापालन से वह प्रगति में योगदान देता है।
हीगल के अनुसार इतिहास का यही अर्थ
है। अतीत की घटनाएँ अर्थपूर्ण होती हैं। अतः इतिहास का अपना अर्थ है। इतिहासकार
इतिहास को अर्थ प्रदान करता है । इतिहासकार प्रत्येक ऐतिहासिक घटना में अर्थ
ढूँढता है इस अर्थ की गवेषणा में यह घटनाओं को क्रमबद्ध करता है। वह कार्य-कारण
सम्बन्धों के आधार पर अर्थों का अन्वेषण करता है और इसके आधार पर एक तर्कसंगत
निष्कर्ष प्रदान करता है। इतिहासकार का कार्य अतीत की घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में
अर्थ का अन्वेषण होता है। इस प्रकार अतीत को इतिहासकार ही साकार करता है।
ओकशाट ने उचित ही लिखा है कि इतिहासकार का कार्य केवल अतीत की घटना सम्बन्धी तथ्यों का संकलन ही नहीं, अपितु एक अर्थपूर्ण निष्कर्ष प्रदान करना होता है। प्रत्येक इतिहासकार अपने विशेष दृष्टिकोण से अतीत का निरूपण करता है। इसका अभिप्राय यह है कि वह अनेक अतीतकालिक तथ्यों के आधार पर घटना का एक परिकल्पनात्मक चित्र प्रस्तुत करता है। इस चित्र में वर्णित घटनाएँ उद्देश्यपूर्ण तथा अर्थपूर्ण होती हैं। यही इतिहास का अर्थ है।
इतिहास की परिभाषा
इतिहासकारों ने इतिहास को
जिस प्रकार से पृथक् - पृथक् अर्थों में देखा है , उसी के अनुरूप
इतिहास की परिभाषाएँ भिन्न - भिन्न प्रकार से दी गई हैं । इन्हीं विविधताओं को
देखते हुए चार्ल्स फर्थ ने लिखा है कि इतिहास को परिभाषित करना बहुत कठिन कार्य है, फिर भी इतिहासकारों
ने अपने-अपने ढंग से इतिहास की परिभाषा बताई हैं।
इतिहास सामाजिक विज्ञान
है -
इतिहास को समाज का सर्वांगीण चित्रण कहा जाता है। इतिहास
मानवीय कार्यों का वर्णन मात्र ही नहीं अपितु उन नियमों की गवेषणा है जिनके
परिणामस्वरूप प्रगति, विकास तथा पतन होता है । यार्क
पावेल का कथन है कि, “इतिहास में उन प्रभावी प्रवृत्तियों का उल्लेख होना चाहिए
जिन्होंने विभिन्न युगों की परिस्थितियों को परिवर्तित किया है।” सर चार्ल्स फर्थ ने लिखा
है कि इतिहास मानव के सामाजिक जीवन का विवरण है। इतिहास मनुष्य-समाज के जीवन का संकलन है । यह उन समाजों के
परिवर्तनों का, उन विचारों का, जिन्होंने उन समाजों के
कार्यों को प्रभावित किया है और उन भौतिक परिस्थितियों का, जिन्होंने उन समाजों के विकास में सहायता या बाधा उपस्थित
की है, संकलन है।
ए.एल. राउज का कथन है कि इतिहास
अपने भौगोलिक वातावरण के परिवेश में समाज में रहने वाले लोगों का विवरण है।
सामाजिक तथा सांस्कृतिक उद्भव एवं विकास मनुष्य तथा पर्यावरण की अन्तक्रिया की
प्रक्रिया होते हैं। मनुष्य भौगोलिक परिस्थिति में कार्य करता है तथा विचार करता
है। भौगोलिक परिस्थितियाँ मनुष्य की कार्यक्षमता को प्रभावित करती हैं। समाज तथा
संस्कृति का विकास पर्यावरण के परिवेश में होता है। भौगोलिक परिस्थितियों ने अरबी, चीनी, जापानी, अफ्रीकी तथा भारतीय समाज व संस्कृति
को सर्वाधिक प्रभावित किया है। अतः इतिहास- अध्ययन के समय भौगोलिक परिस्थितियों
तथा वातावरण को भी ध्यान में रखना चाहिए। इतिहास सामाजिक विज्ञान का उद्गम स्थल है।
इसका अभिप्राय यह है कि इतिहास में सामाजिक,
राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विकास का उल्लेख स्वाभाविक है। इसलिए
हेनरी पिरेन ने लिखा है कि इतिहास अतीत में स्थित मानवीय समाज के विकास का
व्याख्यात्मक विवरण है। ऑक्सफोर्ड इंग्लिश शब्दकोश के अनुसार इतिहास में किसी देश, समाज तथा मनुष्य से सम्बन्धित सभी घटनाओं का उल्लेख होता
है।
इतिहास कहानी है -
कुछ इतिहासकारों ने
इतिहास को केवल कहानी के रूप में स्वीकार किया है। जी.एम. ट्रेवेलियन ने
लिखा है कि, इतिहास अपने अपरिवर्तनीय
अंश में एक कहानी है। फ्रेंच अकादमी के अनुसार, “इतिहास स्मरण योग्य
वस्तुओं की कहानी है।“ एफ.एस. ओलिवर ने लिखा है कि, इतिहासकार को केवल कहानी
बतानी चाहिए, इस कहानी के स्वरूप को उपदेश तथा नैतिक विचारों से दुष्कृत
नहीं करना चाहिए। तुईजिंग के
अनुसार इतिहास
अतीत की कथात्मक घटनाओं का उल्लेख है। हेनरी पिरेन का कथन है कि इतिहास समाज में रहने वाले मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों
की कहानी है।
परन्तु यह परिभाषा त्रुटिपूर्ण है,
क्योंकि समाज में
रहने वाले सभी व्यक्तियों के कार्यों एवं उपलब्धियों का उल्लेख इतिहास में नहीं होता है। वास्तव में इतिहासकार समाज
के प्रमुख लोगों अर्थात् शासकों, नेताओं आदि का विवरण देता
है। उदाहरणार्थ, अशोक अथवा अकबरकालीन
इतिहासकारों ने अपने इतिहास में समसामयिक
समाज के सभी व्यक्तियों के कार्यों एवं उपलब्धियों का उल्लेख नहीं किया है। वस्तुतः इतिहासकार केवल समाज का नेतृत्व करने
वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों के कार्यों का उल्लेख करता
है। इस प्रकार इतिहास को समाज के सभी व्यक्तियों के कार्यों तथा उपलब्धियों की कहानी नहीं स्वीकार किया जा सकता।
रेनियर ने लिखा है कि इतिहास
में सभ्य समाज में रहने वाले मनुष्यों के कार्यों एव उपलब्धियों का उल्लेख होता है। सभ्य समाज से अभिप्राय
संगठित समाज तथा राज्य और प्रशासन से है । जंगलों
में जीवन व्यतीत करने वाले असंगठित मनुष्यों का इतिहास नहीं होता है। इतिहास जिसका
जन-सामान्य अध्ययन करता है, उसमें प्रत्येक व्यक्ति के कार्यों का उल्लेख सम्भव नहीं है।
इतिहास में सभ्य समाज से तात्पर्य संगठित समाज होता है। समाज का नेतृत्व कुछ व्यक्ति करते
हैं । इसलिए उनके कार्यों का उल्लेख इतिहास में होता है । संगठित समाज द्वारा राज्य का निर्माण
होता है। राज्य का शासन शासक द्वारा होता है। इसीलिए यार्क पावेल ने इतिहास को राज्य से
सम्बन्धित कार्य व्यापार का उल्लेख माना है। उन्होंने सामाजिक राज्य में रहने वाले मानवीय कार्यों
एवं उपलब्धियों को इतिहास माना है।
इतिहास अतीतकालिक अनुभव का वृत्तान्त है-
अतीत का प्रत्यक्षीकरण सम्भव नहीं है। काम्टे
ने जब प्रत्यक्षवाद का प्रतिपादन किया था, तो उसका अभिप्राय था कि
इतिहास एवं
समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी
सिद्धान्त का प्रयोग आवश्यक होना चाहिए। यह एक वैज्ञानिक विधा है, जिसका अभिप्राय यथार्थ तथ्यों की गवेषणा तथा उसके आधार पर
इतिहास लेखन होना चाहिए। प्रो. जे.बी. ब्यूरो के अनुसार इतिहास
विज्ञान है, न कम और न अधिक। यदि वैज्ञानिक विधाओं का समुचित प्रयोग
इतिहास के अध्ययन में किया जावे, तो अतीत सम्बन्धी अनेक
तथ्यों
का रहस्योद्घाटन
होगा जो इतिहास की उपयोगिता में अवश्य वृद्धि करेगा। यदि इतिहास समाज में रहने
वाले मनुष्यों के कार्यों एवं उपलब्धियों की कहानी है, ऐसी परिस्थिति में अतीत के महापुरुषों की उपलब्धि सम्बन्धी
ज्ञान, कैसे प्राप्त किया जाए।
ऐतिहासिक
स्रोतों, पाण्डुलिपियों में वर्णित उनकी उपलब्धियों को अनुभव द्वारा
इतिहासकार अपने मस्तिष्क में एक परिकल्पनात्मक चित्र बनाकर समसामयिक समाज के समक्ष
प्रस्तुत करता है।
रेनियर का कहना है कि प्रत्येक
व्यक्ति के लिए अपने अनुभव के संस्मरण का
सर्वोच्च महत्त्व है। प्रत्येक युग का मानव-समाज अपने बच्चों को अतीत के संस्मरण सुनाता है
और परम्परा के रूप में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी तक निर्बाध रूप से गतिशील रहती
है।
इतिहासकार के लिए
अतीतकालिक घटनाओं, महान् शासकों तथा महापुरुषों
के कार्यों
एवं उपलब्धियों
का प्रत्यक्ष निरीक्षण सम्भव नहीं है। वह अपने अनुभव द्वारा ऐतिहासिक घटनाओं, महान् शासकों तथा महापुरुषों की उपलब्धियों का अनुभव करके
एक परिकल्पनात्मक मानसिक चित्रण प्रस्तुत करता है। मुगल-सम्राट अकबर की धार्मिक नीति
का यथार्थ मूल्यांकन तभी सम्भव है, जब इतिहासकार अपने को
अकबर की स्थिति में रखकर, तत्कालीन सामाजिक- धार्मिक परिस्थिति का
अध्ययन करे।
अतीतकाल से
प्रचलित अनुभवों की कहानी एक पीढ़ी के पश्चात् दूसरी पीढ़ी तक चलती है और इतिहास की
वस्तु-सामग्री बन जाती है।
डॉ. एल.पी. पाण्डेय ने इसे परम्परा के रूप
में
मान्यता देते हुए
परम्परा को ऐतिहासिक वस्तु-सामग्री स्वीकार किया है। परम्पराओं का विवरण इतिहासकार को स्पष्टीकरण
के लिए कारणों, उद्देश्यों, प्रभाव तथा परिणाम की गवेषणा के लिए प्रेरित, प्रोत्साहित तथा विवश करता है।
सम्पूर्ण इतिहास समसामयिक इतिहास होता है –
इटालियन
इतिहासकार क्रोचे का कथन है कि सम्पूर्ण इतिहास समसामयिक इतिहास होता है।
यहाँ पर क्रोचे का तात्पर्य यह है कि प्रत्येक वर्तमान इतिहासकार अतीत का अपनी दृष्टि
से अवलोकन करता है। वह अतीत को उस रूप में नहीं देखता जिस रूप में वह था। अतीत का
निर्माण इतिहासकार के मस्तिष्क में होता है। उसके अनुसार इतिहासवाद इस तथ्य की
स्वीकृति है कि जीवन यथार्थ- इतिहास से अभिन्न है। क्रोचे का कहना है कि घटनाएँ तथा
विचार सभी इतिहास-प्रवाह के अभिन्न अंग हैं।
डॉ. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय के अनुसार, इतिहास की विषयवस्तु यह है कि वर्तमानकालिक जीवन से
सम्बन्ध होने के कारण इतिहास सदैव समसमायिक होता है एवं समसामयिकता की यह
विशिष्टता है कि वह उसे इतिवृत्त से पृथक् करती है। कुछ अन्य विद्वान् भी इस
मत का समर्थन करते हैं कि इतिहास समसामयिक होता है। रेनियर के अनुसार, “सम्पूर्ण अतीत मेरा अतीत है और मैं अपनी व्यक्तिगत
सन्तुष्टि के लिए इसका स्मरण करता हूँ। इतिहासकार अतीत का अध्ययन समसामयिक सामाजिक
उपयोगिता
के लिए करता है।
डेवी ने लिखा है कि इतिहास में अतीत के अध्ययन का विशेष महत्त्व होता है। अतीत के प्रति निष्ठा
न हो तो उसके लिए और न अतीत के लिए, बल्कि सुरक्षित तथा समृद्धशाली वर्तमान के
लिए करते हैं कि वह सुखद भविष्य का निर्माण करेगा। अत यह स्पष्ट है कि अतीत
का अध्ययन अतीत के लिए नहीं, अपितु सुरक्षित वर्तमान तथा सुखद भविष्य के लिए
करते हैं।
डॉ.गोविन्दचन्द्र पाण्डेय
लिखते हैं कि “अतीत उस क्षण वर्तमान हो जाता है जब हम वर्तमान की आवश्यकताओं के अनुरूप
उसका पुनर्विस्तरण करते हैं।“ ऑकशाट ने लिखा है कि इतिहास में अतीत की उन्हीं
उपलब्धियों तथा कार्यों का उल्लेख होता है जो हमारे वर्तमान के आधार होते हैं तथा वे हमारे
भविष्य को प्रभावित करते हैं। यह यथार्थ है कि वर्तमान का निर्माण अतीत की ही आधारशिला पर
हुआ है । मैंडलबाम ने भी अतीत में वर्तमान को महत्त्व देने का अनुरोध किया है।
उन्होंने लिखा है कि अतीत का अध्ययन अतीत के लिए नहीं, अपितु वर्तमान समाज की
उपादेयता के लिए किया जाता है। प्रो. गालब्रेथ का मत है कि अतीतकालिक
घटनाओं के प्रस्तुतीकरण में इतिहासकार वर्तमान आवश्यकताओं को ध्यान में
रखकर महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इस प्रकार समसामयिक इतिहास का एक आवश्यक लक्षण है। वर्तमान
ही अतीत में प्राण फेंकता है। प्रमाणविहीन इतिहास निरर्थक होता है। परीक्षा-सिद्ध प्रमाण का सम्बन्ध
सदैव वर्तमान
से होता है। क्रोचे के अनुसार वर्तमानकालिक
जीवन में अभिरुचि ही इतिहासकार को अतीत का अन्वेषण करने के लिए
प्रेरित करती है। वास्तव में इतिहासकार वर्तमान को भोगते हुए ही अतीत की संरचना करता है। अतः
इतिहास समसामयिक होता है।
इतिहास अतीत तथा वर्तमान
के बीच सेतु है –
इतिहास अतीत और वर्तमान के बीच एक सेतु है। इस सेतु
के माध्यम से इतिहासकार समसामयिक समाज को अतीत के उन तथ्यों से जोड़ता है जो
वर्तमान के लिए उपयोगी होता है। इतिहासकार के इतिहास की सामग्री अतीतकालिक ऐतिहासिक तथ्य
होते हैं तथा इतिहासकार वर्तमान का प्रतिनिधित्व करता है। सभी ऐतिहासिक तथ्य अपने
युग के प्रतिमानों द्वारा प्रभावित इतिहासकार का व्याख्यात्मक विवरण होता है। यदि तथ्य
अतीत का प्रतिनिधित्व करता है तो इतिहासकार वर्तमान का। ई.एच. कार ने लिखा है कि
वस्तुतः इतिहास इतिहासकार तथा तथ्यों के बीच अन्तक्रिया की अविच्छिन्न प्रक्रिया
तथा वर्तमान और अतीत के बीच अनवरत परिसंवाद है। इस प्रकार इतिहास को अतीत तथा
वर्तमान के बीच अनवरत परिसंवाद कहा गया है। यह एकाकी व्यक्तियों के बीच संवाद नहीं, अपितु अतीतकालिक तथा वर्तमानकालिक समाज के बीच संवाद है। इस प्रकार अतीत तथा वर्तमान
इतिहास एक-दूसरे से सम्पृक्त हैं। वास्तव में इतिहास में अतीत, वर्तमान तथा
भविष्य का समान रूप से महत्त्व होता है।
वर्तमान में
इतिहासकार समसामयिक समाज को अतीत की गवेषणा,
अपने पूर्वजों की
उपलब्धियों
का ज्ञान प्राप्त
करने के लिए प्रेरित तथा प्रोत्साहित करता है कि उसमें समसामयिक के हित में कुछ वृद्धि कर सके। वह
यहाँ पर गौरवपूर्ण अतीत का अन्त न करके भावी पीढ़ी के सुखद तथा समृद्धिशाली भविष्य की
कल्पना करके अतीत की परम्पराओं को भविष्य की गोद में प्रक्षेपित करता है। एल्टन तथा रांके
ने इतिहास में भविष्य को सर्वाधिक महत्त्व दिया है ओकशाट के अनुसार अतीत की आधारशिला
पर वर्तमान का आविर्भाव हुआ है, जो मनुष्य के भविष्य का निर्णायक होगा। डेवी
के अनुसार अतीत में रुचि, वर्तमान की सुरक्षा तथा सुखद
भविष्य के
निर्माण के लिए
की जाती है। भारतीय मनीषियों ने वेदों, महाकाव्यों तथा इतिहास की
रचना
समसमायिक सामाजिक
सुखों तथा स्वांतः सुखाय के लिए नहीं, अपितु अतीत की गौरवपूर्ण परम्पराओं को भावी पीढ़ी
के सुखद भविष्य के लिए की है। अत इतिहास निरन्तर गतिशील कालचक्र-अतीत तथा वर्तमान को
सम्पृक्त करने वाला एक सेतु है । इतिहासकार इस सेतु पर आसीन होकर समसामयिक समाज
को अतीत का अवलोकन कराता है, जो वर्तमान के लिए रुचिकर
तथा उपयोगी हो। इतिहासकार इस सेतु पर निरन्तर चक्रीय प्रकाश स्तम्भ
होता है। अत इतिहास अतीत तथा वर्तमान के बीच सम्पर्क मार्ग पर एक सेतु है जो अतीत, वर्तमान तथा भविष्य के बीच अवरोध को दूर करके भावी पीढ़ी के
लिए निष्कंटक मार्ग का दिशा-निर्देशन करता है।
इतिहास ज्ञान है –
कुछ विद्वानों के अनुसार इतिहास एक प्रकार का
ज्ञान है। शोक अली का कथन है कि, इतिहास दर्शन है जो
उदाहरणों द्वारा ज्ञान प्रदान करता है।चार्ल्स फर्थ के अनुसार, इतिहास ज्ञान की एक शाखा ही नहीं, अपितु एक विशेष प्रकार का ज्ञान है जो मनुष्य के दैनिक जीवन में
उपयोगी है। मनुष्य इतिहास का अध्ययन अतीत के उदाहरणों से ज्ञान प्राप्त करने के लिए करता
है। सर वाल्टर रेले ने लिखा है कि,इतिहास का उद्देश्य अतीत
के
उदाहरणों द्वारा
हमें ऐसी शिक्षा प्रदान करना है जो हमारी इच्छाओं और कार्यों का मार्गदर्शन कर सके। अलाउद्दीन खिलजी
ने सिकन्दर महान की असफलता को देखकर विश्व-विजय की योजना का परित्याग किया।
आज, कोई भी राजनीतिज्ञ अथवा
राष्ट्राध्यक्ष नेपोलियन बोनापार्ट, मुसोलिनी तथा हिटलर का
अनुकरण नहीं करना चाहता। इस प्रकार इतिहास एक प्रकार का ज्ञान है।
कालिंगवुड तथा क्रोचे ने भी
इस विचार को
मान्यता प्रदान
करते हुए लिखा है कि ऐतिहासिक ज्ञान मानव-सम्बन्धी ज्ञान का स्रोत है। ऐतिहासिक ज्ञान मानव
ज्ञान का सर्वश्रेष्ठ रूप है। विको तथा डिल्थे का अनुकरण करते हुए क्रोचे कहता है कि मनुष्य
प्रकृति के परिमण्डल की अपेक्षा स्वयं अपने परिमण्डल को अधिक गहराई से समझ सकता है।
इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक ज्ञान के सापेक्षतावाद तथा इससे वैज्ञानिक ज्ञान के यथार्थवादी
स्वरूप के पार्थक्य पर बल देकर वह ऐतिहासिक ज्ञान की विशेषताओं पर प्रकाश डालता है
कालिंगवुड ने भी इस मत का समर्थन करते हुए लिखा है कि इतिहास एक अद्वितीय प्रकार का ज्ञान
है तथा यह मानव के सम्पूर्ण ज्ञान का स्रोत है।
सम्पूर्ण इतिहास
विचारधारा का इतिहास है –
कालिंगवुड के अनुसार, सम्पूर्ण इतिहास विचारधारा का इतिहास होता है। कालिंगवुड का कहना है
कि जब हम इतिहास का अध्ययन करते हैं तो हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि मनुष्य
ने क्या किया अपितु उसके विचारों पर सोचना चाहिए। इतिहास कार्य-प्रधान नहीं, अपितु विचार-प्रधान है तथा इतिहास प्राचीन विचारों का पुनः
प्रदर्शन करता है। डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डेय लिखते हैं कि मनुष्य का कार्य विचारपूर्ण होता
है। इतिहास में विचार को प्रधानता देने का तात्पर्य यह है कि यह विचार ही मानवीय कार्य व्यापार
का मूल स्रोत तथा उद्गम स्थल है। मानवीय कार्यों के लिए विचार प्रेरक शक्ति है। इतिहास के अभिनेताओं के कार्यों एवं उपलब्धियों का
अध्ययन करने के पहले उसके विचार का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार
विचार का अध्ययन कार्यों के अध्ययन को सुगम तथा बोधगम्य बनाता है। डिल्थे ने इस मत का
समर्थन किया है कि इतिहास वर्तमान में अतीतकालिक ज्ञान का अध्ययन है। इतिहासकार
ऐतिहासिक अभिनेता के विचारों की पुनरावृत्ति कर अतीत का पुनर्निर्माण करता है।
कालिंगवुड ने लिखा है कि वही विचार
इतिहास होता है जिसका अनुभव इतिहासकार कर सके अथवा जो इतिहासकार के मस्तिष्क में पुनर्जीवित हो
सके। अतः अनुभवगम्य विचार को ही इतिहास की संज्ञा दी जा सकती है। प्रो. वाल्श ने कालिंगवुड के
मत की आलोचना करते हुए लिखा है कि इतिहास केवल चिन्तन-प्रधान अथवा
विचार-प्रधान ही नहीं होता है, अपितु मानवीय चिन्तन के
विपरीत दैवी
प्रकोप, बाढ़, भूकम्प, अनावृष्टि एवं अतिवृष्टि आदि अपना परिणाम देते हैं। इस
प्रकार दैव
प्रकोप के समक्ष
मानवीय विचार प्रधान न होकर अस्तित्वहीन प्रतीत होने लगता है। हीगल तथा कार्ल मार्क्स भी इस तथ्य
को स्वीकार किया है कि अन्तर्निहित शक्तियाँ प्रायः मानवीय इच्छा के विपरीत परिणाम
देती हैं। यदि इतिहास में विचार ही प्रधान होता तो सम्भवतः असफलताओं का इतिहास ही नहीं होता।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि विचार मानवीय
क्रियाओं की उत्प्रेरक शक्ति होते हैं। फिर भी अदृश्य दैवी शक्तियों
एवं प्राकृतिक प्रकोपों के समक्ष विचार नगण्य तथा अस्तित्वहीन हो जाते हैं। अतः सभी इतिहास को
विचार का इतिहास नहीं कहा जा सकता है। यदि इतिहास विचार का इतिहास है और यदि
प्रत्येक विचार स्वरूपतः ऐतिहासिक होता है तो मुहम्मद तुगलक की विचार प्रधान योजनाएँ विफल नहीं
होतीं। नेपोलियन बोनापार्ट की रूस की विजय योजना असफल नहीं होती। डॉ.गोविन्द चन्द्र
पाण्डेय का कथन है कि ऐतिहासिक अध्ययन वस्तुतः आत्मगवेषणा की प्रक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप अधिगत
आत्मबोध की सहायता से मनुष्य अपने वर्तमानकालिक जीवन को सुचारु रूप से नियन्त्रित कर सकता है।
अन्य परिभाषाएँ –
लार्ड एक्टन ने इतिहास की परिभाषा देते हुए लिखा है कि भविष्य का मार्ग
प्रदर्शित कर सकने वाली भूतकाल की घटनाओं की वह क्रमबद्ध खोज है, जिसका आधार व्यक्तिगत विचार न होकर प्रामाणिक तथ्य हों, को इतिहास कहते हैं।
डॉ. के.एस. लाल लिखते हैं कि इतिहास वास्तव
में सत्यम्, शिवम् और सुन्दरम् का एक सुन्दर समन्वय है। यहाँ पर सत्यम् का
अभिप्राय अतीत के यथार्थ तथ्यों का संकलन है। यथार्थ तथ्यों के आधार पर
प्रस्तुत इतिहास समाज के लिए कल्याणकारी होता है और जो समाज के लिए कल्याणकारी होगा, उस इतिहास का स्वरूप निश्चित ही सुन्दर होगा। अत इतिहास को सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम् का समन्वय कहना
यथोचित प्रतीत होता है।
è यह भी देखें ¦ इतिहास का क्षेत्र एवं इतिहास-क्षेत्र का वर्गीकरण
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