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इतिहास और विज्ञान में सम्बन्ध

आधुनिक विज्ञान की आश्चर्यजनक उपलब्धियों ने इतिहासकारों को विवश कर दिया कि वे इतिहास को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने के विषय में सोचें। बीसवीं सदी के इतिहासकारों के बीच एक गम्भीर समस्या पर तर्क-वितर्क प्रारम्भ हुआ।

1859 ई. में प्रो. डार्विन ने इतिहास को विज्ञान घोषित किया। उसने इतिहास के अध्ययन को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया और उसे अन्य विज्ञानों से सम्बद्ध कर दिया।

इतिहास और विज्ञान में सम्बन्ध
इतिहास और विज्ञान में सम्बन्ध


प्रो. ब्यूरी
ने स्पष्ट कहा कि "इतिहास विज्ञान है, न कम और न अधिक।" उनका कहना था कि जब तक इतिहास को कला मात्र स्वीकार किया जायेगा, तब तक उसमें यथार्थता तथा सूक्ष्मता का समावेश गम्भीरतापूर्वक नहीं हो सकेगा।

प्रो. यार्क पावेल का कथन है कि आधुनिक इतिहास का तात्पर्य नवीन इतिहास है जिसका स्वरूप पुराने इतिहास से बिलकुल भिन्न है। आधुनिक इतिहास उन विद्वानों द्वारा लिखा गया है जिनका विश्वास है कि इतिहास रोचक, उपदेशात्मक तथा विनोदपूर्ण वर्णन नहीं है, अपितु विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है।

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इतिहास सम्बन्धी वैज्ञानिक अवधारणा उन्नीसवीं सदी की देन है। जर्मन विद्वानों ने इतिहास को पूर्ण विज्ञान बनाया। उन्होंने इतिहास का अध्ययन तुलना एवं अन्वेषण आदि द्वारा किया और उसे क्रमबद्ध करके वैज्ञानिक अध्ययन की श्रेणी में ला दिया। कार्ल मार्क्स ने अपने को वैज्ञानिक इतिहासकार समझा। रांके ने भी इतिहास को विज्ञान बतलाया। विज्ञान का एकमात्र उद्देश्य है प्रकृति का अन्वेषण करके उसमें अन्तर्निहित गूढ तत्त्वों को प्रकाश में लाना। इसी प्रकार इतिहास को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने का एकमात्र उद्देश्य समाज में मानवीय अवस्था एवं परिस्थितियों को नियन्त्रित करने वाले नियमों को प्रकट करना है। सामान्यः प्राय: ये नियम सामाजिक विकास, अवनति तथा प्रगति के कारक होते हैं। वैज्ञानिक आवरण में इतिहास को रखकर ही इन समस्याओं का उद्देश्यपरक समाधान ढूँढा जा सकता है।

विज्ञान का अर्थ-

विज्ञान लैटिन भाषा के शब्द 'साइन्टिया' से बना है, जिसका अर्थ बोधगम्य नियमों से है। विज्ञान दो शब्दों से बना है- वि+ज्ञान। वि का अर्थ विशिष्ट तथा ज्ञान का अभिप्राय जानकारी से है। इसके अन्तर्गत क्रमबद्ध ज्ञान तथा कला का सम्मिश्रण किया गया है। विज्ञान के क्रमबद्ध ज्ञान को कला के माध्यम से दक्षता प्रदान की जाती है।

कार्ल पियर्सन के अनुसार "तथ्यों का वर्गीकरण, उनके क्रमों की स्वीकारोक्ति तथा सापेक्षिक महत्त्व को जानना ही विज्ञान है।"

ए.वुल्फ के अनुसार विज्ञान की तीन विशेषताएँ हैं- (i) आलोचनात्मक, (ii) सामान्यता तथा व्यवस्था, (iii) अनुभावत्मक मूल्यांकन। विज्ञान शब्द की उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट हो जाता है कि विज्ञान की निम्नलिखित स्पष्ट विशेषताएँ हैं-

(1) विज्ञान तथ्यात्मक है।

(2) विज्ञान कार्यकारण सम्बन्धों की गवेषणा करता है।

(3) विज्ञान सार्वभौमिक होता है।

(4) विज्ञान प्रामाणिक होता है।

(5) विज्ञान भविष्यवाणी करता है।

क्या इतिहास में उपर्युक्त विशेषताओं का समन्वय है अथवा नहीं, यह विषय विद्वानों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ विद्वान् इतिहास को विज्ञान मानते हैं जबकि कुछ विद्वान इतिहास को विज्ञान नहीं मानते।

इतिहास विज्ञान नहीं है

अनेक पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार इतिहास विज्ञान नहीं है। इन विद्वानों के अनुसार निम्नलिखित तर्कों के आधार पर इतिहास को विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता-

1. इतिहास में सामान्य नियमों का अभाव-

भौतिक विज्ञान में विशिष्ट वृत्तों की अपेक्षा सामान्य नियमों में विश्वास रखा जाता है। इतिहास में न तो ऐसे सामान्य नियम हैं और न ही इतिहासकार ऐसे नियमों में विश्वास करता है। उदाहरणार्थ, कोई स्वस्थ व्यक्ति प्रतिदिन सूर्य को पूर्व में उदय होते हुए देखता है। इसका विश्लेषण करते हुए एक वैज्ञानिक नियम को बदलने की अपेक्षा अन्य कारण ढूँढने का प्रयास करेगा। उस दिन आकाश मेघाच्छन्न रहा होगा अथवा व्यक्ति की दृष्टि से दोष रहा होगा। इसके विपरीत इतिहास में इस प्रकार के सामान्य नियमों से सत्य का निरूपण नहीं हो सकता।

आस्टरलीज के युद्ध में नेपोलियन एक प्रकार का टोप पहनता था। सामान्य नियम पर इसे मिथ्या नहीं कहा जा सकता तथा यह भी नहीं कहा जा सकता कि युद्ध के मैदान में फ्रांसीसी सेनापति अथवा राष्ट्राध्यक्ष के लिए इस प्रकार का टोप पहनना अनिवार्य था। डॉ. पाण्डेय के अनुसार, "इतिहासकार को इस सत्यता का निर्धारण घटना-सम्बन्धी साक्ष्यों के आधार पर करना होगा।"

2. इतिहासकारों की सिद्धान्तों एवं नियमों में आस्था न होना-

इतिहासकारों की सिद्धान्तों तथा नियमों में आस्था नहीं होती परन्तु वैज्ञानिक सामान्य नियमों में विश्वास के बिना एक क्षण भी कार्य नहीं कर सकता। वस्तुतः वैज्ञानिक सामान्यताओं पर ध्यान केन्द्रित करता है तथा सामान्य रुचि रखता है। इतिहासकार का ध्यान विभेद तथा विभिन्नताओं पर केन्द्रित होता है। फ्रांसीसी क्रान्ति की चर्चा करते हुए इतिहासकार फ्रांसीसी क्रान्ति तथा अन्य क्रान्तियों में समानता ढूँढने की अपेक्षा अन्तर को जानने का प्रयास करता है। इस प्रकार वह एक विशिष्ट क्रान्ति का अध्ययन करता है। डॉ. गोविन्द चन्द्र पाण्डेय के अनुसार वैज्ञानिक तथा इतिहासकार में यही अन्तर है।

3. एक ही घटना के विविध कारणों का उल्लेख-

बकल के अनुसार, इतिहासकार एक ही घटना के विविध कारणों का उल्लेख करता है। उदाहरणार्थ, फ्रांस की 1789 ई. की राज्य क्रान्ति के कारणों की व्याख्या में वह फ्रांस की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्थिति, लुई 15वें तथा 16वें की मूर्खता, वाल्तेयर, रूसो तथा मान्तेस्क्यू के प्रभाव का उल्लेख करता है। इनमें अधिकांश कारणों का सम्बन्ध समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा मनोविज्ञान से है।

इतिहास को विज्ञान में रूपान्तरित करने वाला कोई भी व्यक्ति इन विषयों के सम्मिश्रण से घबरा उठेगा, परन्तु यह इतिहासकार की विशिष्टता है कि इन सभी तथ्यों को मिलाकर यह घटना का एक चित्र प्रस्तुत करता है। इतिहासकार इन पृथक्-पृथक् आयामों को एकसूत्र में बाँध कर समग्र रूप में देखता है। एक भौतिक विज्ञान शास्त्री अपने विषय के शोध के समय विज्ञान की अन्य शाखाओं के अध्ययन से घबरा उठेगा। उसका ध्यान केवल अपने विषय पर केन्द्रित होगा। डॉ. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय के अनुसार, "इतिहास तथा विज्ञान में यही अन्तर है।"

4. निश्चित नियमों का अभाव-

विवादग्रस्त विषयों में समाधान ढूँढने के लिए वैज्ञानिकों की अपनी विधियाँ हैं। इतिहास-सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिए निश्चित नियमों का निर्धारण अभी तक नहीं किया जा सका है। इतिहास में भाषा की समस्या विवादों को कम करने की बजाय उन्हें अत्यन्त जटिल बना देती है।

पी. गार्डिनर के अनुसार, "इतिहास में सुनिश्चित अवधारणा का स्पष्ट अभाव दिखाई देता है।" जेम्स बी कीनेट ने लिखा है कि "इतिहास को विज्ञान इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें तथ्यों के अन्वेषण के लिए क्रमबद्ध तथा निश्चित नियमों का अभाव है।"

5. सार्वभौमिक नियमों का अभाव-

बकल के अनुसार, "गणितज्ञों, भौतिकशास्त्रियों तथा रसायनशास्त्रियों की मानसिक क्षमता की अपेक्षा इतिहासकारों में क्षमता का स्पष्ट अभाव दिखाई देता है। गैलीलियो तथा न्यूटन जैसे प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों से विज्ञान-क्षितिज सुशोभित है। यदि ऐसे ही प्रतिभाशाली इतिहासकार हुए, तो इतिहास को विज्ञान की श्रेणी में रखना सम्भव होगा।" आज तक इतिहास में विज्ञान की भाँति सार्वभौमिक नियम नहीं बनाये जा सके, जो सभी देशों, युगों तथा परिस्थितियों में कार्यान्वित किये जा सकें। वैज्ञानिक नियमों की सहायता से भविष्य में क्या होगा तथा अतीत में क्या हुआ, इसका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। परन्तु इतिहासकार के लिए भावी घटनाओं का अनुमान लगाना अथवा अतीत की घटनाओं का सूक्ष्म दर्शन सम्भव नहीं है।

6. इतिहास-सम्बन्धी तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण नहीं-

सिमेल के अनुसार वैज्ञानिक, प्रयोगशाला में प्राकृतिक तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण अपने नेत्रों से करता है परन्तु इतिहासकार अपने आभ्यन्तर में इतिहास-सम्बन्धी तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण नहीं कर पाता । उसके तथ्य पाण्डुलिपियों तथा अभिलेखों में उपलब्ध होते हैं। अतीत के ऐतिहासिक तथ्यों का सूक्ष्म निरीक्षण करने का उसके पास कोई साधन नहीं होता। वैज्ञानिक को तथ्यों के सूक्ष्म निरीक्षण का अवसर प्राप्त होता है। ऐसी स्थिति में इतिहास को विज्ञान स्वीकार करना एक भारी भूल है।

डिल्थे के अनुसार इतिहास ज्ञान का एक अनुभव है जबकि विज्ञान बाह्य तथ्यों का सूक्ष्म दर्शन है। हीगेल का कथन है कि इतिहास तथा विज्ञान में इस अन्तर को देखते हुए इतिहास को इतिहास को विज्ञान की संज्ञा देना तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता है।

7. इतिहास में इतिहासकार की भावनाओं एवं विचार की अभिव्यक्ति-

इतिहास में इतिहासकार की भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति है। इतिहासकार आदि से अन्त तक अपनी रचना को व्यक्तिगत दृष्टिकोण तथा व्यक्तिगत शैली से अतिरंजित करता है। वैज्ञानिक को अपने निष्कर्ष को व्यक्तिगत दृष्टिकोण से अतिरंजित करने का अवसर नहीं मिलता। इतिहास में इतिहासकार के व्यक्तित्व की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। इसी कारण ट्रेवेलियन ने इतिहास को भाव प्रधान स्वीकार किया है। प्रो. वाल्श के अनुसार इतिहास मात्र वर्णन ही नहीं अपितु एक मूल्यांकन है।

8. वैज्ञानिक अपने निष्कर्ष की यथार्थता को अनेक बार सिद्ध करता है-

रेनियर भी इतिहास को विज्ञान स्वीकार नहीं करते। एक वैज्ञानिक के लिए प्रयोगशाला, दूरवीक्षक तथा सूक्ष्मवीक्षक यन्त्रों का प्रयोग आवश्यक है। निष्कर्ष की उद्घोषणा के पहले वह अपने निष्कर्ष की यथार्थता को अनेक बार सिद्ध करता है। उसे भय रहता है कि अन्य वैज्ञानिक उसके निष्कर्ष का पुनर्निरीक्षण करेंगे। इतिहासकार के लिए समय तथा स्थान का प्रतिबन्ध नहीं होता है। वह अपने निष्कर्ष को उद्घोषणा के समय पूर्ण आश्वस्त रहता है कि उसके प्रस्तुतीकरण का पुनर्मूल्यांकन कई पीढ़ियों तक नहीं होगा। रेनियर का कथन है कि "इतिहास तथा विज्ञान में इस अन्तर को देखते हुए इतिहास को विज्ञान स्वीकार करना हास्यास्पद है।"

9. इतिहास तथा विज्ञान में बाह्य तथा आभ्यन्तर पक्षों का अन्तर-

विज्ञान तथा इतिहास में बाह्य तथा आभ्यन्तर पक्षों का अन्तर है। निःसन्देह वैज्ञानिक दृष्टामात्र होता है। इतिहासकार आभ्यन्तर पक्ष में प्रवेश करने के मानवीय कार्यों एवं ऐतिहासिक घटनाओं की अनुभूति करता है। वैज्ञानिक सामान्य नियमों का निर्णय करता है। इतिहासकार विलगता के स्थान पर सम्बद्धता ढूँढता है। इतिहासकार प्रयोगशाला का प्रयोग न करके मानवीय कार्य-व्यापार के सन्दर्भ में अपेक्षित गुणों का अध्ययन करता है।

10. मानव जीवन का अध्ययन भौतिक अणु तत्त्वों तथा पशु-पक्षियों के समान नहीं किया जा सकता-

ट्रेवेलियन का कथन है कि इतिहास को विज्ञान स्वीकारना कठिन है क्योंकि मानव-जीवन का अध्ययन भौतिक अणु तत्त्वों तथा पशु-पक्षियों के जीवन के समान नहीं किया जा सकता। विज्ञान में एक धातु सम्बन्धी निष्कर्ष सार्वभौमिक होता है, किन्तु इतिहास में एक व्यक्ति सम्बन्धी निष्कर्ष सभी व्यक्तियों के सम्बन्ध में लागू कर सकना सम्भव नहीं है। यही नहीं, मनुष्य का जीवन इतना जटिल, आध्यात्मिक तथा विभिन्नताओं से परिपूर्ण है कि उसका वैज्ञानिक विश्लेषण अत्यन्त कठिन है। मुहम्मद तुगलक तथा औरंगजेब जैसे शासकों के जीवन-निष्कर्ष से समकालीन समाज का परिचय प्राप्त कर सकना सम्भव नहीं है। इतिहास उपलब्ध तथ्यों के आधार पर एक अनुमानित चित्रण है। इसमें बौद्धिक आध्यात्मिक शक्तियों का अध्ययन वैज्ञानिक विधियों से नहीं किया जा सकता।

11. इतिहास में वैज्ञानिक तत्त्वों का अभाव है-

शापेनहोर के अनुसार, "इतिहास को विज्ञान स्वीकार करना हास्यास्पद है, क्योंकि इतिहास में वैज्ञानिक तत्त्वों का अभाव है। विज्ञान की भाँति इतिहास में सुनिश्चित नियम नहीं हैं, बल्कि यह कुछ तथ्यों का संकलन मात्र है। क्रमबद्धता के कारण विज्ञान वर्ग विशेष का ज्ञान प्रदान करता है, जबकि इतिहास में किसी व्यक्ति विशेष अथवा घटना विशेष का अध्ययन होता है।"

ट्रेवर रोपर का कथन है कि इतिहास विज्ञान नहीं है, अपितु मानवीय अनुशासन का अध्ययन है। इतिहासकार जब किसी घटना का वर्णन करता है, तो उसके मस्तिष्क में घटना विशेष का चित्र रहता है। वह स्वयं विशेष व्यक्ति होता है तथा अपनी बात समाज विशेष के लिए कहता है। अत: इतिहास के तथ्य, विशेष घटना, विशेष समाज के लिए, विशेष व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत किये जाते हैं। इतिहास के प्रस्तुतीकरण में व्यक्तिगत रुचि तथा समाज रुचि प्रधान होती है। इतिहासकार की रुचि इतिहास को विषयनिष्ठ बना देती है। विज्ञान का स्वरूप वस्तुनिष्ठ होता है। इस प्रकार विज्ञान में इतिहास-सम्बन्धी प्रतिबन्ध नहीं है। अत: इतिहास को विज्ञान की संज्ञा नहीं दी जा सकती।

12. इतिहास को विज्ञान स्वीकार करने में कठिनाइयाँ-

प्रो. वाल्श ने इतिहास को विज्ञान स्वीकार करने में अग्रलिखित कठिनाइयों का उल्लेख किया है-

(1) विज्ञान में सामान्यीकरण होता है। इतिहास में इसका अभाव है।

(2) वैज्ञानिक भविष्यवाणी करने में समर्थ होता है। इतिहासकार भविष्यवक्ता नहीं हो सकता।

(3) विज्ञान में किसी वस्तु का क्रमबद्ध ज्ञान है। इतिहास में इसका अभाव स्पष्ट दिखाई देता है।

(4) विज्ञान में किसी भी वस्तु का क्रमबद्ध ज्ञान है। इतिहास में इसका अभाव स्पष्ट दिखाई देता है।

(5) विज्ञान शिक्षाप्रद है। इतिहास में इस गुण का अभाव है।

(6) विज्ञान तथ्यों पर आधारित वस्तुनिष्ठ होता है, जबकि इतिहास का स्वरूप विषयनिष्ठ होता है।

(7) इतिहास में धर्म तथा नैतिकता के लिए स्थान होता है। विज्ञान में नैतिकता तथा धर्म का कोई महत्त्व नहीं है।

क्रोचे ने लिखा है कि इतिहास को विज्ञान स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें स्पष्ट अवधारणा का अभाव दिखाई देता है। कालिंगवुड का कथन है कि इतिहास को कैंची तथा गोंद का स्वरूप प्रदान करके विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

इतिहास विज्ञान है

प्रो. वाल्श ने विज्ञान की परिभाषा बताते हुए कहा है कि किसी भी वस्तु के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कहते हैं । जोसे आरतेगाई गैसे ने लिखा है कि "इतिहास मेंरे जीवन का सुव्यवस्थित विज्ञान है। अत: इसे वर्तमान विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है।"

कालिंगवुड का कथन है कि "इतिहास एक प्रकार का शोध है, इसका सम्बन्ध विज्ञान से है। इसमें हमारे प्रश्नों का उत्तर मिलता है। जिस प्रकार विज्ञान में प्रकृति सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त होता है, उसी प्रकार मानव-समाज के जीवन-सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर इतिहास से प्राप्त होता है। "

प्रो. जे. बी. ब्यूरी ने कहा है कि "इतिहास विज्ञान है, न कम और न अधिक।" सूक्ष्म विवेचना की आधुनिकतम प्रणाली ने अनेक विद्वानों को सोचने के लिए विवश कर दिया कि इतिहास को वैज्ञानिक स्तर प्रदान किया जाए। इतिहासकार अतीत सम्बन्धी वास्तविक ज्ञान प्रस्तुत करने में समर्थ है। इतिहास को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने के बारे में इतिहासकार का उद्देश्य तथ्यों का निरूपण मात्र रह जाता है। ब्यूरी ने स्पष्ट कहा है कि अब समय आ गया है कि इतिहास को साहित्य से युक्त किया जाए। इतना ही नहीं, इतिहास को इतिहासकार के व्यक्तित्व तथा उसकी परिष्कृत शैली से वंचित कर मात्र यथार्थता के आवरण से सुशोभित किया जाए।

शेक अली का कथन है कि "विज्ञान की विशेषता यथार्थता का अन्वेषण है। इस उच्च आदर्श को इतिहास में प्रतिरोपित करके वैज्ञानिक स्तर प्रदान किया जा सकता है।" ब्यूरी ने वैज्ञानिक ढंग से तथ्यान्वेषण तथा सूक्ष्म निरीक्षण पद्धति को इतिहास-अध्ययन का अनिवार्य अंग स्वीकार किया है। इतिहासकार को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ मानव-जीवन सम्बन्धी न्यूनतम यथार्थ तथ्यों का संकलन करना चाहिए। रांके के अनुसार इतिहास-अध्ययन की यही वैज्ञानिक अनिवार्यता है।

एडम स्मिथ ने लिखा है कि इतिहासकार अतीत में मानव जाति के जीवन तथा कार्यों से सम्बन्धित वस्तुनिष्ठ यथार्थ तथ्यों को क्रमबद्ध सुनिश्चित नियमानुसार करे, तो इतिहास की तुलना भौतिक विज्ञान से की जा सकती है। वाल्श का कथन है कि इतिहास एक बौद्धिक प्रक्रिया है तथा चयनशीलता उसकी विशेषता है। यदि विज्ञान की विशेषता चयनशीलता है, तो इस विशेषता के आवरण में इतिहास भी निश्चित रूप से विज्ञान है। इन आधारों पर इतिहास को विज्ञान की संज्ञा दी जा सकती है-

1. इतिहास सामान्य तथ्यों से युक्त है-

ई. एच. कार के अनुसार इतिहास को सामान्यीकरण के सिद्धान्त से अलग करना उपहासास्पद एवं मूर्खतापूर्ण है। इतिहास सामान्यीकरण पर आधारित और विकसित होता है। एल्टन ने भी सामान्यीकरण को इतिहास का अभिन्न अंग स्वीकार किया है। उसके अनुसार इतिहास तथा ऐतिहासिक तथ्यों के संकलनकर्ता में अन्तर का आधार सामान्यीकरण का सिद्धान्त है। ब्यूरी ने लिखा है कि इतिहास में सामान्यीकरण की कुछ प्रवृत्तियों एवं नियमों का आभास होता है। इतिहास की कुछ प्रमुख घटनाओं के आधार पर इस तर्क की पुष्टि की जा सकती है। कावूर के नेतृत्व में इटली के एकीकरण तथा बिस्मार्क के नेतृत्व में जर्मनी के एकीकरण के पश्चात् इतिहासकारों ने सामान्यीकरण सिद्धान्त के आधार पर कहना शुरू किया कि राष्ट्रीयता के सिद्धान्त की अपेक्षा करना इतिहास की गति से टकराना होगा।

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नेपोलियन तथा हिटलर की विफलता इस तथ्य का स्पष्ट प्रमाण है कि कोई व्यक्ति सम्पूर्ण यूरोप पर शासन नहीं कर सकता। इस प्रकार के प्रयास में महत्त्वाकांक्षी व्यक्तियों का उद्देश्य विफल होगा। एक्टन के अनुसार "सत्ता सर्वशक्तिसम्पन्न को भ्रष्ट करती है और सर्वशक्तिसम्पन्न सत्ता को पूर्णतया भ्रष्ट करता है।" यद्यपि एक्टन का संकेत किसी विशेष शासक से है, परन्तु सामान्यीकरण के सिद्धान्त के आधार पर यह विचार अन्य शासकों के सम्बन्ध में भी लागू होता है। राजा रिचर्ड द्वारा टावर में राजकुमारों की हत्या के उपयुक्त प्रमाणों के अभाव में इतिहासकार सामान्यीकरण के आधार पर कह देता है कि उस युग के शासकों की नीति के अनुसार सम्भावित प्रतिद्वन्द्वी राजकुमारों की हत्या कर दी जाती थी। इस प्रकार सामान्यीकरण का सिद्धान्त इतिहासकार के निष्कर्ष को प्रायः प्रभावित करता है। ई. एच. कार के अनुसार इतिहास का सम्बन्ध विशेष तथा सामान्य दोनों से होता है।

2. इतिहास सुव्यवस्थित तथा क्रमबद्ध ज्ञान है-

प्रो. वाल्श के अनुसार इतिहास एक वैज्ञानिक अध्ययन है। इसकी अपनी विधि तथा तकनीक है। इतिहासकार प्रस्तावित विषयों का निष्कर्ष सामान्य नियम एवं साक्ष्य पर आधारित नवीन विधियों द्वारा निकालता है। इस आवश्यकता को ध्यान में रखकर बीसवीं सदी के इतिहासकारों ने ऐतिहासिक गवेषणा की आधुनिकतम विधियों का प्रतिपादन किया है। परिणामस्वरूप अन्य वैज्ञानिक विषयों की भाँति इतिहास- अध्ययन के अपने नियम तथा विधियाँ हैं । ऐतिहासिक चिन्तन की तुलना वैज्ञानिक चिन्तन से की जा सकती है। ए. एल. राउज के अनुसार विज्ञान की भाँति इतिहास में वस्तुनिष्ठ यथार्थता का अन्वेषण क्रमबद्ध विधियों तथा नियमों के माध्यम से किया जाता है। अतः इतिहास भी एक क्रमबद्ध विज्ञान है।

इतिहास के कुछ विषयों का वैज्ञानिक विश्लेषण अनिवार्य है। इतिहास की दो स्पष्ट विधियाँ हैं- पहली, बौद्धिक एवं वैज्ञानिक तथा दूसरी, अन्तरसंज्ञात्मक तथा सौन्दर्यशास्त्रीय। इनका पारस्परिक सम्बन्ध विरोधी नहीं, बल्कि सहयोगपूर्ण है। ए.एल. राउज का कथन है कि "इतिहास-अध्ययन में इतिहासकार दूरवीक्षक तथा सूक्ष्मवीक्षक यन्त्रों का प्रयोग नहीं करता, परन्तु उसके दोनों नेत्र उपर्युक्त यन्त्रों की भाँति तथ्यों के सूक्ष्म विवेचन में सदैव क्रियाशील रहते हैं। एक दृष्टि विश्लेषणात्मक तथा वैज्ञानिक है, दूसरी चयनात्मक तथा सौन्दर्यशास्त्रीय।"

डिल्थे ने लिखा है कि विज्ञान प्रकृति का तथा इतिहास मनुष्य का अध्ययन है। सर जान मायर्स के अनुसार, "प्रकृति तथा मनुष्य का सम्बन्ध इतना घनिष्ठ है कि एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता।" ऐतिहासिक तथा वैज्ञानिक अध्ययन की विधाएँ समान हैं। विज्ञान प्रकृति का अध्ययन है, प्रकृति के परिवेश में मानवीय कार्यों एवं उपलब्धियों का अध्ययन इतिहास में होता है। इतिहास तथा विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। शिलर ने भी इतिहास में वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग को आवश्यक बताया है, क्योंकि दोनों के उद्देश्यों में समानता है। उसके अनुसार वैज्ञानिक विधि का प्रयोग सार्वभौमिक है तथा वैज्ञानिक विधि ज्ञान की एकमात्र विधि है। इसीलिए इतिहास में वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग अनिवार्य है।

3. विज्ञान की भाँति इतिहास शिक्षाप्रद है-

इतिहास विज्ञान की भाँति शिक्षाप्रद है। इसीलिए अनेक विद्वानों ने इतिहास को विज्ञान स्वीकार किया है। बेकन के अनुसार इतिहास मनुष्य को बुद्धिमान बनाता है। चार्ल्स फर्थ के अनुसार भी इतिहास विज्ञान की भाँति उपयोगी एवं शिक्षाप्रद है। उसने लिखा है कि इतिहास एक प्रकार का ज्ञान है जो मनुष्य के दैनिक जीवन में उपयोगी है। उसने सर वाल्टर रेले के तर्क को प्रस्तुत किया है-"इतिहास का उद्देश्य अतीत के उदाहरणों से ऐसी शिक्षा प्रदान करना है जो हमारी इच्छाओं तथा कार्यों का मार्गदर्शन कर सके।" इतिहास की शिक्षाओं की अनुभूति करने के बाद ही पुनर्जागरण काल में यूरोप की अधिकांश जनता ने प्राचीन यूनानी तथा रोमन इतिहास का अध्ययन किया तथा प्रेरणा प्राप्त की। ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासकों ने रोमन साम्राज्य के इतिहास से साम्राज्यवादी नीति की शिक्षा ग्रहण की।

1917 ई. में रूसी क्रान्ति के क्रान्तिकारी नेताओं ने फ्रांस की 1789, 1830 एवं 1848 ई. की राज्य क्रान्तियाँ तथा पेरिस की कम्यून की घटनाओं से शिक्षा ग्रहण कर अपनी क्रान्ति का नेतृत्व किया तथा अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। वर्तमान के सन्दर्भ में जब इतिहासकार अतीत का अध्ययन करता है, तो उसका दृष्टिकोण उद्देश्यपरक होता है। वह अतीत से शिक्षा प्राप्त करना चाहता है। वर्तमान तथा भावी आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर वह अतीत का अवलोकन करता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि इतिहास विज्ञान की भाँति शिक्षाप्रद है।

4. इतिहास में वस्तुनिष्ठा है-

वस्तुनिष्ठा विज्ञान की सबसे बड़ी विशेषता है। यही कारण है कि वैज्ञानिक के निष्कर्ष को सार्वजनिक मान्यता दी जाती है। समुचित प्रमाणों तथा साक्ष्यों के आधार पर विश्व के सभी वैज्ञानिक अनुसन्धान के निष्कर्ष को स्वीकार करते हैं। इसके विपरीत इतिहास का स्वरूप विषयनिष्ठ होता है। इतिहास लेखक की भावनाओं तथा व्यक्तित्व से ओतप्रोत होता है। इतिहासकार का निष्कर्ष सार्वभौमिक नहीं होता। अतः सभी इतिहासकार उसके निर्णयों को स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं हैं। इसके अतिरिक्त एक व्यक्ति की उपलब्धियों को सभी लोग विभिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं । परिणामस्वरूप इतिहास में वस्तुनिष्ठा का स्पष्ट अभाव है। परन्तु इतिहास-सम्बन्धी उपर्युक्त अवधारणा सर्वथा सत्य नहीं है। इतिहास में वस्तुनिष्ठा होती है।

आगस्ट कॉम्टे के अनुसार जब इतिहासकार व्यक्ति भाव का परित्याग कर सिद्धान्त का आश्रय लेता है, तो इतिहास का विषयनिष्ठ स्वरूप वस्तुनिष्ठा में बदल जाता है । इतिहास-चिन्तन तथा वैज्ञानिक चिन्तन में यही समानता है। प्रो. वाल्श के अनुसार, "इतिहास क्षेत्र के अर्थशास्त्र, पुरातत्व आदि का अध्ययन का आधार ही वैज्ञानिक है।" वैज्ञानिक इतिहासकारों को उत्कट अभिलाषा इतिहास-अध्ययन को वस्तुनिष्ठ स्वरूप प्रदान करना है। ऐतिहासिक तथ्यों को प्रमुखता प्रदान करके विषयनिष्ठ स्वरूप को वस्तुनिष्ठा में परिवर्तित किया जा सकता है। इस प्रकार ऐतिहासिक अनुसन्धान वैज्ञानिक अन्वेषण की भाँति वस्तुनिष्ठ तथा सार्वभौमिक हो सकता है।

5. इतिहास में भविष्यवाणी के लिए पर्याप्त अवसर-

कुछ विद्वानों की मान्यता है कि वैज्ञानिक भविष्यवक्ता होता है और इतिहासकार भावी घटनाओं के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करने में असमर्थ होता है। ई. एच. कार के अनुसार इतिहासकार भविष्यवक्ता नहीं हो सकता। उसे भविष्यवक्ता के रूप में देखना तथा उससे भविष्यवाणी की अपेक्षा करना एक महान् भूल है।

वाल्श के अनुसार वैज्ञानिक एक सफल भविष्यवक्ता है परन्तु इतिहासकार में इस गुण का स्पष्ट अभाव दिखाई देता है। परन्तु अनेक इतिहासकारों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि विज्ञान की भाँति इतिहास में भविष्यवाणी के लिए पर्याप्त अवसर है। जैसे एक वैज्ञानिक कह सकता है कि 16 फरवरी, 1980 को दिन में 2 बजकर 35 मिनट पर पूर्ण सूर्यग्रहण होगा। पृथ्वी तथा चन्द्रमा की गति के आधार पर वैज्ञानिक तथा ज्योतिषी तिथि तथा निश्चित समय की भविष्यवाणी करते हैं। मानव इतिहास में सामान्य परिस्थितियों की पुनरावृत्ति होती है। फ्रांस में 1789 की राज्य क्रान्ति के बाद 1830 तथा 1848 की क्रान्तियाँ परिस्थितियों की पुनरावृत्ति की परिणाम थीं। इतिहासकार सामान्य रूप से भविष्यवाणी कर सकता है कि यदि क्रान्ति की परिस्थितियों की पुनरावृत्ति किसी भी स्थान और समय में होगी तो उसके परिणामस्वरूप क्रान्ति का होना निश्चित है। परिस्थितियों के परिवेश में इतिहासकार घटना के सम्बन्ध में भविष्यवाणी करता है। अफ्रीका के मूल निवासियों में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता की भावना तथा रोडेशिया की स्वतन्त्रता के आधार पर कोई भी इतिहासकार भविष्यवाणी कर सकता है कि बहुसंख्यक मूल निवासियों पर अल्पसंख्यक श्वेतों के शासन का अन्त होना निश्चित है। इतिहासकार की भविष्यवाणी का स्वरूप सामान्य होता है।

कार्ल आर. पापर के अनुसार वैज्ञानिक भविष्यवाणी करता है और इतिहासकार परिस्थितियों के सन्दर्भ में भविष्य के लिए मार्गदर्शन करता है। संक्रामक रोग छूत की बीमारी है। किसी विद्यालय में दो-तीन बच्चों के चेचक निकलना अथवा हैजे से प्रभावित होना महामारी का संकेत करता है, परन्तु यह नहीं कहा जा सकता है कि अतीत में सुन्दरलाल तथा मोहनलाल नामक विद्यार्थी संक्रामक रोग से प्रभावित थे और भविष्य में महेश तथा सोहन रोगग्रस्त होंगे। इतिहासकार अतीत के आधार पर संकेत करता है कि विद्यालय में कुछ विद्यार्थियों के संक्रामक रोगग्रस्त होने से महामारी फैलने की आशंका है, क्योंकि इसी प्रकार की परिस्थिति में भयंकर महामारी के कारण अनेक लोगों की मृत्यु हुई थी। ई. एच. कार का कथन है कि "इतिहासकार की भविष्यवाणी तथा भावी मार्गदर्शन का आधार सामान्यीकरण का सिद्धान्त है।"

6. इतिहास में नैतिकता के लिए स्थान नहीं-

विज्ञान की भाँति इतिहास में भी नैतिकता के लिए स्थान नहीं है। प्रायः इतिहासकार अपनी रचना के माध्यम से नैतिक शिक्षा देते हैं, परन्तु एक्टन ने कहा है कि इतिहासकार का कार्य नैतिक शिक्षा देना नहीं है। उसका पुनीत कर्त्तव्य ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर किसी शासक की उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है। हेनरी अष्टम पारिवारिक जीवन में एक बुरा पति अवश्य था। नैतिक दृष्टि से उसका व्यक्तित्व निन्दनीय है, परन्तु इस दोष के कारण उसकी शासकीय उपलब्धियों को कम नहीं किया जा सकता। इतिहासकार का कार्य उसकी शासकीय उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है, न कि उसके चरित्र के सम्बन्ध में नैतिक न्याय देना।

7. इतिहास में धर्म के लिए स्थान नहीं-

भारतीय, यूनानी, ईसाई तथा इस्लाम धर्म के अनुसार इतिहास में ईश्वरीय इच्छा प्रधान है। यदि प्रकृति विज्ञान का अध्ययन है और इतिहास मानवीय कार्यों तथा उपलब्धियों का अध्ययन है तो दोनों ही आदिशक्ति सृष्टिकर्ता द्वारा प्रभावित होते हैं। वैज्ञानिक धर्म से अप्रभावित होकर अनुसन्धान करता है। आज अधिकांश मार्क्सवादी इतिहासकारों पर धर्म का कोई प्रभाव दिखाई नहीं देता। इतिहास-अध्ययन उत्तरोत्तर धर्म से अप्रभावित होता जा रहा है। ऐतिहासिक तथ्यों को प्रधानता देने का तात्पर्य उसे धर्म के प्रभाव से मुक्त करना है। इस प्रकार विज्ञान की भाँति इतिहासकार में धर्म तथा धार्मिक भावनाओं के लिए स्थान नहीं रह गया है।

अतः इतिहासकार का कार्य तथ्यों के आधार पर किसी शासक अथवा व्यक्ति का मूल्यांकन करना है। व्यक्तिगत जीवन-सम्बन्धी बातों को इतिहास में स्थान देने का तात्पर्य इतिहास की गरिमा को कम करना होगा। वैज्ञानिक पद्धति में आस्थावान इतिहासकारों ने भावना तथा नैतिकता-प्रधान इतिहास-लेखन की सर्वत्र कटु आलोचना की है। इस प्रकार विज्ञान तथा इतिहास में नैतिकता का कोई स्थान नहीं है।

निष्कर्ष-

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि इतिहास को विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता है। कालिंगवुड के अनुसार विषय को क्रमबद्ध ज्ञान प्रदान करने के कारण इतिहास एक विशेष प्रकार का विज्ञान है। इसलिए ए. एल. राउज ने इतिहास के वैज्ञानिक अध्ययन को उपयोगी तथा महत्त्वपूर्ण बताया है। विज्ञान की भाँति इतिहास में भी यथार्थता तथा क्रमबद्धता का ध्यान रखा जाता है। तथ्यों के विश्लेषण में भी वैज्ञानिक विधियों के प्रयोग की आवश्यकता का अनुभव आधुनिक इतिहासकारों ने किया है। ऐतिहासिक गवेषणा की आधुनिकतम विधाओं का आधार पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है।

यदि विज्ञान निर्जीव तत्त्वों का अध्ययन है, तो इतिहास में हम सजीव मानवीय मस्तिष्क की प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं। भौतिक पदार्थ एक प्रकार का साधारण मूर्तीकरण है। जबकि इतिहास सक्रिय तथा वास्तविक मस्तिष्क का अध्ययन होता है। इस प्रकार इतिहास क्रियाशील मस्तिष्क का वैज्ञानिक अध्ययन है। डिल्थे ने भी इस विचार का समर्थन किया है।

इतिहास मानसिक प्रक्रियाओं का अवलोकन है, जबकि प्राकृतिक विज्ञान में इसका अभाव है। वैज्ञानिक मात्र पदार्थों को देखता है, उनकी गतिविधियों को नहीं देख पाता। प्रो.होजेस तथा डिल्थे ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि इतिहास न केवल विज्ञान है, अपितु उससे बढ़कर है, क्योंकि वह मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन है जिसका स्पष्ट अभाव प्राकृतिक विज्ञान में दिखाई देता है। रेनियर के अनुसार, "इतिहास विज्ञान है जिसका एकमात्र उद्देश्य ज्ञानार्जन है तथा इस ज्ञान की उपयोगिता को सिद्ध करना है। विज्ञान की ही भाँति मानव-जीवन के लिए इतिहास अत्यन्त उपयोगी है।"

विज्ञान की विशेषता यथार्थता है। इसी प्रकार इतिहास की कसौटी भी यथार्थता है। कालिंगवुड ने इतिहास में यथार्थता की आवश्यकता को स्वीकार किया है। कालिंगवुड के अनुसार, "इतिहास एक विशेष प्रकार का विज्ञान है जिसका अभिप्राय उन घटनाओं का अध्ययन करना है जिन्हें हम देख नहीं पाते, परन्तु अनुमानित विधि से विज्ञान उन घटनाओं का दिग्दर्शन करने का सामर्थ्य प्रदान करता है।"

प्रो. ई. एच. कार का कथन है कि "वैज्ञानिक, समाज वैज्ञानिक तथा इतिहासकार एक ही विषय की विभिन्न शाखाओं का अध्ययन करते हैं। मनुष्य तथा उसके वातावरण का अध्ययन ही इतिहास का वैज्ञानिक अध्ययन है।" कार महोदय का कहना है कि इतिहास वास्तव में एक विज्ञान है। यदि यह दूसरे स्थापित भौतिक या सामाजिक विज्ञानों से भिन्न है, तो इससे यह सिद्ध नहीं होता कि इतिहास विज्ञान नहीं है। वास्तव में विज्ञान के अन्तर्गत ज्ञान की अनेक शाखाएँ हैं और उनके द्वारा अपनाए जाने वाले विभिन्न तरीके और तकनीकी शामिल हैं। कार महोदय का निष्कर्ष है कि इतिहास प्राचीन ग्रन्थों से कहीं अधिक कठिन है और किसी भी विज्ञान के बराबर गम्भीर विषय है।

इतिहास में प्रायः विज्ञान सम्बन्धी सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं। डिल्थे ने इतिहास को विज्ञान के समकक्ष ही नहीं, बल्कि विज्ञान से भी बढ़कर स्वीकार किया है परन्तु प्रो. जे. बी.ब्यूरी ने बढ़ाने तथा घटाने की उलझनों में न पड़कर केवल इतना ही कहा है कि "इतिहास विज्ञान है, न कम और न अधिक।" इंग्लैण्ड में सर्वप्रथम प्रो.ब्यूरी ने सन् 1903 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के सत्रारम्भ के अवसर पर अपने अभिभाषण में कहा था कि "इतिहास विज्ञान है,न कम और न अधिक।" इसका कारण बताते हुए उन्होंने पुन: कहा था कि जब तक इतिहास को कला मात्र स्वीकार किया जायेगा, तब तक उसमें यथार्थता तथा सूक्ष्मता का समावेश गम्भीरतापूर्वक नहीं हो सकेगा।

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