केन्द्र और राज्यों के मध्य वित्तीय सम्बन्ध
(अनुच्छेद 301-307)
भारतीय संविधान के भाग 12 में अनुच्छेद 264 से 291 तक केन्द्र तथा राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों को दर्शाया गया है। संघात्मक शासन व्यवस्था का मुख्य आधार यह होता है कि संघ एवं राज्य सरकारों में वित्तीय स्रोतों का विभाजन इस प्रकार होना चाहिए कि दोनों सरकार वित्तीय मामलों में कमजोर न रहें तथा एक-दूसरे पर आश्रित न रहें। परन्तु व्यवहार में ऐसा दिखाई नहीं देता। फिर भी यह प्रयास किया गया कि संघ तथा राज्य सरकारों में वित्तीय सम्बन्ध इस प्रकार से विभाजित किए जाएँ कि दोनों अपना विकास करें तथा एक-दूसरे के साथ समन्वय भी स्थापित करें।
भारत में केन्द्र
तथा राज्यों के मध्य वित्तीय सम्बन्धों को अग्रलिखित बिन्दुओं के
अन्तर्गत समझा जा सकता है-
1. कर निर्धारण की शक्ति का वितरण-
भारतीय संविधान में वित्तीय
प्रावधानों की दो विशेषतायें हैं; एक तो संघ तथा राज्यों के
मध्य कर निर्धारण की शक्ति का पूर्ण विभाजन कर दिया गया है और दूसरे, करों से प्राप्त आय
का बँटवारा होता है।
संघ के राजस्व स्रोत– संघ के प्रमुख
राजस्व स्रोत इस प्रकार हैं—निगम कर, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि-भूमि से अन्य
सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क (इस्टेट ड्यूटी), विदेशी ऋण, संघ सरकार की
सम्पत्ति, रेलें, रिजर्व बैंक, कृषि आय से भिन्न
अन्य आय पर कर, शेयर बाजार आदि।
केन्द्र-राज्य वित्तीय सम्बन्ध |
राज्यों के राजस्व
स्रोत- राज्यों के राजस्व
स्रोत इस प्रकार हैं- प्रति व्यक्ति कर (कैपिटल टैक्स), कृषि भूमि पर कर, सम्पदा शुल्क, राजस्व, भूमि और भवनों पर कर, बिजली के उपयोग तथा
विक्रय पर कर, समाचार पत्रों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर कर, वाहनों पर कर, पशुओं तथा नौकाओं पर
कर, चुंगी पर कर आदि।
संघ द्वारा आरोपित, किन्तु राज्यों द्वारा संगृहीत तथा विनियोजित कर- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 268 के अनुसार कुछ
कर ऐसे हैं जो केन्द्र द्वारा लगाये जाते हैं परन्तु राज्यों द्वारा एकत्र या
संगृहीत तथा खर्च या विनियोजित किए जाते हैं, जैसे बिल, विनिमयों, प्रोमिसरी नोटों, हुण्डियों, चैकों आदि पर
मुद्रांक शुल्क और दवा तथा मादक द्रव्य कर, शौक-श्रृंगार की चीजों पर
कर तथा उत्पादन शुल्क।
संघ द्वारा आरोपित
तथा संगृहीत, किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर- अनुच्छेद 269 के अनुसार
संघ द्वाराआरोपित तथा संगृहीत, किन्तु राज्यों को सौंपे जाने
वाले करों के उदाहरण हैं—कृषि भूमि के अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति के उत्तराधिकार पर कर, कृषि भूमि के
अतिरिक्त अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, रेल, समुद्र, वायु द्वारा ले जाने
वाले माल तथा यात्रियों पर सीमान्त कर (टर्मिनल टैक्स), रेल-भाड़ों तथा
वस्तु भाड़ों पर कर, शेयर बाजार तथा सट्टा बाजार के आदान-प्रदान पर मुद्रांक
शुल्क के अतिरिक्त कर, समाचारपत्रों के क्रय-विक्रय तथा उनमें प्रकाशित किये गये
विज्ञापनों पर और समाचार पत्रों से अन्य अन्तर्राज्यीय व्यापार तथा वाणिज्य के माल
के क्रय-विक्रय पर कर आदि।
2. संघ की विशेष रूप में अनुदान देने की
शक्ति-
अनुच्छेद 275 संघ की
संचित निधि से राज्यों को अनुदान देने की व्यवस्था करता है। यह एक बहुत
महत्त्वपूर्ण शक्ति है जिसके द्वारा संघ राज्यों पर नियन्त्रण रख सकता है। संघ
ऐसे विषय के सम्बन्ध में भी अनुदान दे सकता है जिस विषय पर कानून बनाने का
अधिकार भारतीय संसद के पास नहीं है। अनुदान की राशि संसद द्वारा निर्धारित की जाती
है। प्रायः राज्यों की विकास योजनाओं को पूरा करने के लिए अनुदान दिया जाता है।
विवेकाधीन अनुदानों का अनुपात दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। किसी भी राज्य के
बजट के घाटे की पूर्ति करने के लिए भी केन्द्र अनुदान दे सकता है।
3. वित्त आयोग–
संविधान के अनुच्छेद 280 के
अन्तर्गत वित्त आयोग सम्बन्धी प्रावधानों का वर्णन किया गया है। वित्त आयोग की
नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रति पाँचवें वर्ष की जाती है। आयोग निम्न विषयों के
सम्बन्ध में अपना प्रतिवेदन राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। साधारणतया
वित्त आयोग की सभी सिफारिशें स्वीकार कर ली जाती हैं। यथा-
(1) संघ तथा राज्यों
में विभाजित होने वाली करों से प्राप्त आय के सम्बन्ध में सिफारिश करना,
(2) राज्यों को केन्द्र
द्वारा दी जाने वाली अनुदान राशि का निश्चय करना और
(3) अन्य कोई कार्य जो
राष्ट्रपति उसे सौंपे।
4. उधार सम्बन्धी
अनुच्छेद-
अनुच्छेद 293 के
अनुसार, यदि किसी राज्य सरकार पर संघ सरकार का कोई
कर्ज बाकी है तो राज्य सरकार अन्य कर्जे संघ सरकार की अनुमति से ही ले सकती है। इस
प्रकार का कर्ज देते समय संघ सरकार किसी भी प्रकार की शर्त लगा सकती है। चूँकि सभी
राज्य सरकारें संघ सरकर के कों से दबी पड़ी हैं, अत: उन्हें संघ सरकार के
अधीन रहना पड़ता है।
5. करों से विमुक्ति
(अनु. 285)-
जब तक संसद
विधि द्वारा कोई प्रतिबन्ध न लगा दे राज्यों द्वारा संघ की सम्पत्ति पर कर नहीं
लगाया जायेगा। भारत सरकार की रेल्वे द्वारा प्रयोग में आने वाली बिजली पर संसद की
अनुमति के बिना राज्य किसी प्रकार का कर नहीं लगा सकता। अन्तर्राज्यीय नदियों एवं
घाटियों के विकास के लिए की गई पान व बिजली की व्यवस्था पर राज्य द्वारा कर नहीं
लगाया जाएगा। किसी राज्य की सम्पत्ति तथा आय को संघ के करों से छूट होगी।
6. भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक द्वारा
नियंत्रण-
संविधान के अनुच्छेद 148 के अनुसार राष्ट्रपति एक नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति करेगा। संविधान के अनुच्छेद 149 के अनुसार नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक केन्द्र तथा राज्य सरकारों के हिसाब-किताब का नियन्त्रण रखेगा।
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